न्यायिक प्रक्रिया PDF

Summary

यह दस्तावेज़ न्यायिक प्रक्रिया के बारे में डिस्कस करता है। यह पुलिस, वकीलों और न्यायाधीशों की भूमिकाओं और एक उदाहरण-विवाद के साथ विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों को सूचित करता है, जो विभिन्न चरणों से गुजरती हैं, जिसमें थाने में रिपोर्ट दर्ज करना, मामले की जांच करना, गिरफ्तारी, ज़मानत और कोर्ट में सुनवाई शामिल है।

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# अध्याय 6: न्यायिक प्रक्रिया **"समग्र शिक्षा - 2024-25 (निःशुल्क)"** - आप में से शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने पुलिस का ज़िक्र नहीं सुना है न ही उसे आपने देखा भी होगा। आम आदमी की बातों में या फिल्मों में अक्सर पुलिस का ज़िक्र आता है। - आपके विचार में पुलिस के क्या-क्या काम होते हैं? क्या पुलिस वाले...

# अध्याय 6: न्यायिक प्रक्रिया **"समग्र शिक्षा - 2024-25 (निःशुल्क)"** - आप में से शायद ही कोई ऐसा होगा, जिसने पुलिस का ज़िक्र नहीं सुना है न ही उसे आपने देखा भी होगा। आम आदमी की बातों में या फिल्मों में अक्सर पुलिस का ज़िक्र आता है। - आपके विचार में पुलिस के क्या-क्या काम होते हैं? क्या पुलिस वाले बहुत शक्तिशाली होते हैं? - आपके अनुसार पुलिस के क्या-क्या काम होते हैं? लिखकर या चित्र बनाकर बताइए । **आइए, न्याय की प्रक्रिया व उसमें पुलिस, वकील व न्यायाधीश की भूमिकाओं को समझने का प्रयास आगे दी गई एक घटना के माध्यम से करते हैं।** - विनोद आज अपने घर की नींव डालने के लिए मज़दूरों के साथ अपनी ज़मीन पर आया। - विनोद की ज़मीन अवधेश के घर से सटी हुई थी। - जैसे ही विनोद ने मज़दूरों से अपने नये घर की नींव खोदने की बात कही, तभी अवधेश वहां आ पहुँचा। - उसने विनोद को अपने घर से 2 फीट हटकर नींव खोदने की बात कही, पर विनोद ने नहीं माना। - उसने कहा, "मेरी ज़मीन तो आपके घर से सटी हुई है और मेरी दीवार आपके घर की दीवार से सटी रहेगी।" - विनोद ने काम शुरू करवा दिया। - इस पर अवधेश भड़क गया। दोनों तरफ के लोग झगड़ने लगे। - तब किसी ने कहा, "भाई क्यों झगड़ते हो? क्यों नहीं अपनी बात ग्राम कचहरी में ले जाते हो।" - ग्राम कचहरी ने ज़मीन के कागज़ात के आधार पर अवधेश के पक्ष में फैसला सुनाया। **विनोद ने इस फैसले को नहीं माना और अगले दिन जब अवधेश अपने घर फरहीं था तो विनोद ने उसकी दीवार से सटाकर अपनी दीवार खड़ी करना शुरू कर दिया। शाम को जब अवधेश अपने घर वापस लौटा तो उन्हें इस बात का पता चला। उन्होंने उसी रात को विनोद के द्वारा तैयार की गई दीवार को तुड़वा दिया। सुबह जब विनोद को दीवार तोड़ देने की बात पता चली तो वह लाठी-डंडे के साथ अवधेश के यहाँ आया और अवधेश की जमकर पिटाई कर दी। उस पिटाई में अवधेश का एक हाथ भी टूट गया।** - इन दोनों की लड़ाई को देखकर आस-पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए और बीच-बचाव करके बात को आगे बढ़ने से रोका। - इसी बीच उस गाँव का चौकीदार भी वहाँ आ पहुँचा। - सत्येन्द्र एवं अरुण, जो अवधेश के पड़ोसी थे, उसे नज़दीक के अस्पताल ले गये। - उन्होंने अस्पताल में अवधेश की जाँच करवाई। उसके हाथ पर प्लास्टर लगवाया और फिर सब इस मामले की शिकायत दर्ज करवाने थाने गए। **चर्चा कीजिए** 1. ग्राम कचहरी ने अपना फैसला अवधेश के पक्ष में क्यों सुनाया? चर्चा कीजिए। 2. क्या विनोद को अवधेश की पिटाई करनी चाहिए थी? 3. अगर विनोद ग्राम कचहरी के फैसले से संतुष्ट नहीं था तो उसे क्या करना चाहिए था? ## थाने में - अवधेश ने विनोद के विरुद्ध मामला दर्ज करवाया। - दारोगा ने सादे कागज़ पर रिपोर्ट लिखी। - यह मामले की पहली रिपोर्ट यानी एफ.आई.आर. या फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट थी। - अवधेश ने उस पर हस्ताक्षर करके दारोगा से कहा, "आप रजिस्टर में रिपोर्ट दर्ज कीजिए, और इस रिपोर्ट की एक प्रति मुझे भी दीजिए।" - दारोगा ने कहा, "जब थाना प्रभारी आएंगे, तब आपकी रिपोर्ट रजिस्टर में लिखी जाएगी।” - थाना प्रभारी के आने तक अरुण, सत्येन्द्र, अवधेश एवं चौकीदार थाने पर रुके रहे। - कुछ ही समय बाद थाना प्रभारी भी आ गए। - उनसे अवधेश ने रजिस्टर में रिपोर्ट दर्ज करवाई। ### अनुसूचित जाति जनजाति कल्याण थाना - अवधेश ने अपना मामला एक सामान्य थाने मे दर्ज करवाया। - प्रत्येक ज़िले में एक विशेष थाना भी होता है, जहां अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के सदस्य अपने विरुद्ध हुए अत्याचार या अपराध के खिलाफ मामला दर्ज करा सकते हैं। - क्योंकि इसके विरुद्ध किया गया अपराध एक खास तरह का अपराध माना जाता है। ### एफ.आई.आर. (प्रथम दृष्टया रिपोर्ट) - थाने में एफ.आई.आर. कोई भी दर्ज करा सकता है। - यदि पीड़ित व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो तो स्वयं लिखकर और हस्ताक्षर करके एफ.आई.आर. कर सकता है। - मौखिक बताने पर दारोगा लिख लेता है, फिर पढ़कर सुनाता है और जानकारी देने वाले से हस्ताक्षर करवाता है। - एफ.आई.आर. में अपराध का ब्यौरा, अपराधी का नाम, जगह का नाम और अपराध का समय होना जरूरी है। - गवाहों के नाम भी एफ.आई.आर. में दर्ज होने चाहिए। - जानकारी देने वाले को एफ.आई.आर. की एक प्रति निःशुल्क मिलती है। - यदि कोई थानेदार एफ.आई.आर. दर्ज करने से इंकार करता है तो डाक और इन्टरनेट के माध्यम से भी पुलिस अधिकारी और मजिस्ट्रेट के पास एफ.आई.आर. दर्ज करवाई जा सकती है। - एफ.आई.आर. उसी थाना क्षेत्र में दर्ज करवाई जाती है, जिस थाना क्षेत्र में घटना हुई हो। - अवधेश जाने को तैयार हुआ, पर अरुण ने उसे रोककर थाना प्रभारी से एफ.आई.आर. की एक प्रति मांगी। - अरुण को पता था कि एफ.आई.आर. करवाने वाले को एफ.आई.आर. की एक प्रति मिलती है। - उसने एफ.आई.आर. की एक प्रति ली और फिर सब अपने घर के लिए निकल गये। **चर्चा कीजिए** 1. थाने में रिपोर्ट लिखवाना क्यों ज़रूरी है? 2. अगर किसी के घर में चोरी हो जाए तो वे कैसे और कहाँ रिपोर्ट लिखवाएँगे ? विवरण लिखिए। 3. एफ.आई.आर. की कॉपी क्यों ज़रूरी है? 4. अगर कोई थानेदार आपकी एफ.आई.आर. दर्ज न करे तो आप क्या कर सकते हैं? ## मामले की छानबीन - एफ.आई.आर. के आधार पर थाना प्रभारी ने दारोगा से मामले की छानबीन करने को कहा। - दारोगा उसी दिन अवधेश के घर पहुँचा। - पहले तो उसने अवधेश की चोटें देखीं। - डॉक्टर की पर्ची से पता चला कि चोटें काफी गंभीर हैं। - उसने अवधेश के पड़ोसियोंसे पूछताछ की। - पड़ोसियों ने मारपीट के बारे में विस्तार से जानकारी दिया। - दारोगा को विश्वास हो गया कि अवधेश को मारपीट से ही इतनी चोट लगी थी। - वह विनोद के पास गया और उसको बताया कि वह उसे अवधेश को गंभीर चोट पहुँचाने के जुर्म में गिरफ्तार कर रहा है। - दारोगा उसे अपने साथ थाने ले गया। - वहां उससे पूछताछ की गई विनोद इस बात से इन्कार कर गया कि उसने अवधेश की मारपीट की है। ## गिरफ्तारी - किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय उसे यह बताना ज़रूरी है कि उसे किस अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। - यदि उसे यह नहीं बताया जाता है तो उसको यह अधिकार है कि वह अपनी गिरफ्तारी का कारण पूछे। - बिना अपराध बताए किसी को गिरफ्तार करना गलत है। - किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना आवश्यक है। - कानून के अनुसार पुलिस थाने में किसी पर भी अपना जुर्म कबूल करने के लिए ज़बरदस्ती नहीं कर सकती है। - यदि थाने में कोई अपना जुर्म कबूल कर भी ले तो इसके आधार पर उसे सज़ा नहीं हो सकती. - सज़ा तब होगी जब वह मजिस्ट्रेट के सामने अपना जुर्म कबूल करेगा। ## पुलिस का काम तो सिर्फ मामले की छानबीन करके न्यायालय में सबूत पेश करना है। **चर्चा कीजिए** 1. एफ.आई.आर. की शिकायत के मामले में पुलिस छानबीन से क्या पता लगाने की कोशिश करती है? 2. मामले की छानबीन के लिए पुलिस को मार-पिटाई का प्रयोग क्यों नहीं करना चाहिए? 3. किसी भी अपराधी द्वारा थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर उसे वहीं पर ही सज़ा क्यों नहीं सुनाई जा सकती? 4. क्या छानबीन की प्रक्रिया को कोई व्यक्ति प्रभावित कर सकता है? कैसे? आपस में चर्चा कीजिए । ## ज़मानत - थाना प्रभारी ने विनोद को हवालात में बंद कर दिया। - उसने थानेदार से बहुत कहा कि उसे छोड़ दिया जाए। - तब थानेदार ने विनोद को बताया “तुम्हारा जुर्म ज़मानतीय है, इसलिए तुम्हें किसी की ज़मानत पर छोड़ा जा सकता है। - कोई व्यक्ति जिसके पास ज़मीन-जायदाद हो, तुम्हारी ज़िम्मेदारी ले सकता है।" - उसने आगे समझाया, “यदि वह तुम्हारी ज़मानत ले तो तुम्हें घर जाने दिया जा सकता है। - यदि तुम्हारे पास भी कुछ ज़मीन-जायदाद है तो तुम भी बॉण्ड भर सकते हो। - तुम्हें जब भी थाने या कचहरी बुलाया जाएगा तो तुम्हें आना पड़ेगा, नहीं तो वह जायदाद ज़ब्त कर ली जाएगी।" - विनोद ने बताया कि उसके पास पांच एकड़ ज़मीन है। - फिर उसने अपने लिए बॉण्ड भर दिया। - थानेदार ने उसे यह भी बताया- "कल तुम्हें पेशी के लिए अदालत आना पड़ेगा। - तुम चाहो तो अपने बचाव के लिए वकील रख सकते हो।" ## गैर-ज़मानती अपराध - विनोद तो ज़मानत पर छूट गया पर सभी जुर्म ज़मानती नहीं होते। - चोरी, डकैती, कत्ल, रिश्वत आदि जुर्मों में गिरफ्तार लोगों को ज़मानत पर छूटने का अधिकार नहीं है। - ऐसे गैर-ज़मानती जुर्मों में भी मजिस्ट्रेट (दण्डाधिकारी) को ज़मानत की अर्जी दी जा सकती है। - फिर यह मजिस्ट्रेट के ऊपर है कि ज़मानत मंजूर करे या इंकार कर दे। **चर्चा कीजिए** 1. ज़मानत का प्रावधान क्यों रखा गया है? 2. इस कहानी में विनोद का जुर्म ज़मानती है या गैर-ज़मानती? 3. चोरी, डकैती, कत्ल जैसे जुर्मों को गैर-ज़मानती क्यों माना गया है? ## पहली पेशी - अगले दिन प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की कचहरी में विनोद की पेशी होने वाली थी। - यह कचहरी जिला मुख्यालय आरा में थी। - कचहरी के आस-पास काफी लोग थे। - उनमें से काले कोट पहने हुए वकील थे। - कई अभियुक्त (अर्थात् वे लोग जिनके खिलाफ किसी अपराध की शिकायत दर्ज थी) और दूसरे मामलों की पेशी के लिए आये हुए लोग भी थे। - विनोद, अवधेश, अरुण, विनोद का पुत्र, थाना प्रभारी और दारोगा भी वहां थे। - विनोद ने अपना वकील कर लिया था। - पुलिस की ओर से सरकारी वकील मुकदमा लड़ रहा था। - कुछ ही देर में विनोद की पेशी की पुकार हुई। - प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के सामने इस मुकदमे की यह पहली पेशी थी। - थानेदार ने विनोद के वकील को एफ.आई.आर. और पुलिस रिपोर्ट की एक प्रति दे दी ताकि उसे यह पता रहे कि विनोद पर क्या इल्ज़ाम लगाये गये हैं। - यह भी पता हो कि उसके विरुद्ध क्या जानकारी इकट्ठी की गई है। - इन सारी बातों को जानने के बाद ही विनोद का वकील उसका बचाव कर सकता था। - सरकारी वकील ने विनोद पर अवधेश को गंभीर चोट पहुँचाने का आरोप लगाया। - विनोद ने इल्ज़ाम कबूल नहीं किया। - मजिस्ट्रेट ने 25 दिन बाद अगली पेशी की तारीख दी। ## गवाह और पेशी - विनोद ने अपने पक्ष में कुछ दोस्तों के नाम गवाहों के रुप में दिए थे। - अवधेश ने जो मामला थाने में दर्ज कराया था, उसमें भी कुछ लोगों के नाम गवाह के रूप में लिखवाए थे। - दारोगा ने छानबीन के समय अवधेश के दो पड़ोसियों के नाम लिख लिये थे। - इन सब को मजिस्ट्रेट से आदेश मिला कि उन्हें मजिस्ट्रेट की अदालत में गवाही देने के लिए उपस्थित होना है। - 25 दिन बाद दूसरी पेशी की तारीख आई सभी लोग आरा की कचहरी पहुँचे। - पहले सरकार की तरफ से एक गवाह को बुलाया गया। - उसने उस दिन की सारी बातें बताईं। - फिर दोनों तरफ के वकीलों ने उसने पूछताछ की। - ऐसे दो गवाहों की गवाही के बाद मजिस्ट्रेट ने अगली पेशी की तारीख दे दी। - इस तरह हर पेशी में एक या दो गवाहों के बयान लिए जाते और फिर अगली पेशी की तारीख मिल जाती। - इस तरह पेशियाँ होती रहीं। - विनोद को हर पेशी पर अपने वकील को फीस देनी पड़ती। - करीब एक साल तक पेशियाँ हुई फिर मजिस्ट्रेट ने फैसला सुनाया "विनोद अवधेश की गंभीर पिटाई करने का दोषी है उसे चार साल की कैद होगी।" **चर्चा कीजिए** 1. क्या सत्र न्यायालय में अपील की जा सकती है? 2. यदि हां, तो अपील करने पर क्या होगा? 3. यदि अपील को स्वीकार कर लिया जाता है, तो न्यायालय द्वारा क्या निर्णय लिया जा सकता है? 4. यदि अपील अस्वीकार कर दी जाती है, तो विनोद को क्या करना होगा? ## सत्र न्यायालय में अपील - विनोद फैसले से असंतुष्ट था। - विनोद के वकील ने बताया- “सत्र न्यायालय में अपील की जा सकती है। - सत्र न्यायाधीश मजिस्ट्रेट से ऊपर होते हैं और मजिस्ट्रेट का फैसला बदल सकते हैं। - हो सकता है सत्र न्यायाधीश तुम्हें दोषी न ठहराएँ या सज़ा कम कर दे।” - विनोद के वकील ने सत्र न्यायालय में अपील कर दी। - इसके कारण सत्र न्यायाधीश ने विनोद की सज़ा स्थगित कर दी। - उसे तुरंत जेल नहीं जाना पड़ा। - फिर सत्र न्यायालय में मुकदमा चलता रहा। - दो साल बाद सत्र न्यायाधीश ने अपना फैसला सुना दिया। - उसने विनोद की सज़ा चार साल से तीन साल कर दी। ## उच्च न्यायालय - सत्र न्यायाधीश का फैसला सुनकर विनोद हताश हो गया। - उसने अपने वकील से पूछा “क्या ये फैसला बदला जा सकता है?" - वकील ने बताया- "सभी राज्य में एक उच्च न्यायालय होता है। - वह उस राज्य की सबसे बड़ी कचहरी होती है। - किसी भी मुकदमे के फैसले प्रदेश के उच्च न्यायालय में बदले जा सकते हैं। - उच्च न्यायालय में अभियुक्त या गवाह नहीं बुलाये जाते । - वहाँ पर तो केवल जानकारी की फाइल के आधार पर ही फैसला होता है? - हमारे राज्य का उच्च न्यायालय पटना में है। - तुम चाहो तो अपील कर सकते हो। - हो सकता है सज़ा और कम हो जाए।” - विनोद ने वकील को और फीस देकर उच्च न्यायालय में अपील की। - उच्च न्यायालय ने अपील दर्ज कर ली और कुछ समय बाद फैसला दिया। - लेकिन विनोद उच्च न्यायालय में मुकदमा हार गया। - उसे वही सज़ा काटनी पड़ी जो सत्र न्यायाधीश ने दी थी। - अंत में विनोद को जेल जाना पड़ा। **चर्चा कीजिए** 1. अपील के प्रावधान का क्या उद्देश्य है? 2. ऊपर की अदालतों द्वारा अपील के मामले में दिये गये फैसले नीचे की अदालत को क्यों मानने पड़ते हैं? 3. कई मुकदमे कई साल तक चलते हैं। ऐसा क्यों होता है? ## विनोद एवं अवधेश का मामला - ग्राम कचहरी (लाठी-डंडे से पिटाई) -> थाना -> सत्र न्यायालय (गवाह और पेशी) -> उच्च न्यायालय (जानकारी की फाइल के आधार पर फैसला) ## दीवानी और फौजदारी मामले - विनोद बहुत दुखी था। - उसने अपने वकील से कहा, "इतने साल मैं जेल में रहूंगा तो मेरे परिवार की देखभाल कौन करेगा? - क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मैं अवधेश को कुछ रुपये दे दूँ और बात निपट जाए?” - वकील ने कहा, “ऐसा नहीं हो सकता। - तुमने अवधेश के साथ मारपीट की थी, इसलिए यह एक फौजदारी का मामला है। - यानी ऐसा अपराध जिसमें दण्ड दिया जा सकता है।" - मारपीट, चोरी, डकैती, मिलावट करना, रिश्वत लेना, दहेज लेना, हत्या, खतरनाक दवाईयाँ बनाना आदि, ये सब फौजदारी मामले हैं। - इनमें अपराध साबित होने पर सज़ा अवश्य मिलती है। - सिर्फ ज़मीन-जायदाद के मामले में सज़ा नहीं होती, ये दीवानी मामले कहलाते हैं। “दीवानी मामले क्या होते हैं?” विनोद ने पूछा। - वकील ने कहा, “जब भी कोई ज़मीन-जायदाद के झगड़े होते हैं या मज़दूर-मालिक के बीच मज़दूरी को लेकर या किसी के बीच पैसे के लेन-देन या व्यापार के झगड़े, किराया, तलाक सम्बान्धित झगड़े होते हैं, तो दीवानी मामले दर्ज कराए जाते हैं। - जैसे- तुम्हारी ज़मीन का झगड़ा अवधेश के साथ था तो तुम मारपीट न करके कोर्ट में दीवानी मुकदमा कर सकते थे। - कोर्ट के फैसले के अनुसार जिस भी पक्ष का नुकसान होता या जिसकी सम्पत्ति पर नाजायज़ कब्ज़ा किया जाता, उसे उस नुकसान का मुआवज़ा दिया जा सकता था।" - दीवानी मामले में आमतौर पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जाता। - बल्कि गवाह और कागज़ों को देखकर फैसले किये जाते हैं। - दीवानी मामलों को निपटाने के लिए जो नियम बनाए गए हैं, वे नियम फौजदारी मामलों से अलग होते हैं। - क्योंकि वे ऐसे अपराध नहीं होते, जो सामाजिक व्यवस्था को भंग करते हैं जैसे-चोरी, डकैती आदि । - आपने देखा कि अवधेश को न्याय दिलाने का कार्य एक सुनिश्चित न्याय प्रणाली की वजह से ही संभव हो पाया। - इस प्रक्रिया में पुलिस, वकील और न्यायाधीश की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। - जहाँ न्याय दिलाने की प्रक्रिया में पुलिस पहली कड़ी थी, वहीं न्यायाधीश का निर्णय अंतिम कड़ी। - इस अध्याय में हमने विनोद और अवधेश के बीच होने वाली फौजदारी मुकदमे की चर्चा की है। - ऐसे मामलों का स्वरूप तथा इनके लिए दण्ड के प्रावधान भारतीय दण्ड संहिता में दिए गये हैं। - विनोद और अवधेश का यह मामला भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अंतर्गत आता है। - ऐसा कोई भी मामला जिससे समाज की शांति और व्यवस्था भंग होती है, फौजदारी मामला माना जाता है। - फौज़दारी मामलों में पुलिस में रिपोर्ट कैसे की जाएगी या पुलिस के अधिकारी न्यायालय में मुकदमा कैसे दायर करेंगे, ये सारे बिन्दु आपराधिक दण्ड प्रक्रिया संहिता (क्रिमिनल प्रोसीजर कोड) में दिए गए प्रावधानों के तहत तय किए जाते हैं। ## अभ्यास के प्रश्न 1. इस पाठ को पढ़ने के बाद क्या आपको न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष लगी? यदि हाँ तो उन बिन्दुओं की सूची बनाइए, जिससे न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पता चलती है। 2. क्या न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित किया जा सकता है? अपने उत्तर कारण सहित लिखिए । 3. पाठ के आधार पर निम्नलिखित कामों के बारे में तालिका को पूरा कीजिए। आप यह भी बताइए कि न्याय दिलाने के मामले में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका किसकी है और क्यों? - पुलिस: प्रथम रिपोर्ट दर्ज करना - वकील: अपने-अपने पक्ष में सबूत पेश करना व उनकी जाँच-पड़ताल करना। - न्यायाधीश: मुकदमे को सुनना

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