मनुष्यता (प्रश्नोत्तर) PDF - कक्षा 10
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यह दस्तावेज़ राष्ट्रीय पब्लिक स्कूल, एचएसआर, बेंगलुरु दसवीं कक्षा के लिए मैथलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई 'मनुष्यता' कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर है। इसमें कविता से संबंधित अवधारणाओं और प्रश्नों को शामिल किया गया है।
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NATIONAL PUBLIC SCHOOL HSR, BENGALURU Class: 10 मनुष्यता - मैथलीशरण गुप्त १. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ? उत्तर: कवि का मानना है वक अगर वकसी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात ि...
NATIONAL PUBLIC SCHOOL HSR, BENGALURU Class: 10 मनुष्यता - मैथलीशरण गुप्त १. कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ? उत्तर: कवि का मानना है वक अगर वकसी मनुष्य की मृत्यु के पश्चात िह दू सरे लोगोों की यादोों में बसा रहे , लोग उसे उसके सत्कमो के वलए याद कर आँ सू बहाए तो ऐसी मृत्यु को कवि ने सुमृत्यु कहा है | २. उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है ? उत्तर: उदार व्यक्ति की पहचान उसकी परोपकार कायों से की जा सकती है | कवि के शब्ोों में िही उदार कहलाता है , जो अपने -पराए में भेद-भाि नहीों करता, अखोंडता और आत्मीयता की भािना को समुचय विश्व में भरता है | ३. कवि ने दधीवच, कणण आवद महान व्यक्तियो का उदहारण दे कर मनुष्यता के वलए क्या सन्दे श वदया है ? उत्तर: कवि ने दधीवच, कर्ण आवद महान व्यक्तियोों का उदहारर् दे कर सारे सोंसार को त्याग, बवलदान और मनुष्यता का सन्दे श वदया है | दधीवच ने दे िताओों की रक्षा के वलए अपने शरीर की सारी हवियाँ भी दान कर दी थी | कर्ण ने माँ गने पर अपना किच-कुोंडल शरीर से अलग कर दान कर वदया | उशीनर ने कबूतर के प्रार्ोों की रक्षा के वलए उसके बदले अपने शरीर का माों स दे वदया | रों वतदे ि ने भूखे अवतवथयोों को सोंतुष्ट करने के वलए अपने वहस्से का भोजन भी खुशी-खुशी दान कर वदया था | इस प्रकार इन महापुरुषोों ने आत्मबवलदान और मानि-सेिा का पाठ पढ़ाया | 1 ५. ‘मनुष्य मात्र बंधु है ’ से आप क्या समझते हैं ? उत्तर: ‘मनुष्य मात्र बोंधु है ’- इस कथन से हम यह समझते है वक इस सोंपूर्ण जगत में केिल मनुष्य ही ऐसा प्रार्ी है जो वििेकशील है | भाईचारे की भािना का प्रसार करना मनुष्य का मुख्य कतणव्य है | सभी मनुष्य आपस में वमलजुल कर रहे , सब में एकता, भाईचारा एिों प्रेम की भािना बनी रहे , यही मनुष्यता है | ६. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है ? उत्तर: कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरर्ा इसवलए दी है क्ोोंवक एकता में ही ऐसी ताकत होती है वजससे हम सोंसार के वकसी भी असोंभि कायण को सोंभि कर सकते हैं | जीिन में आने िाली प्रत्येक विघ्न- बाधा पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और जीिन के कवठन-से-कवठन क्षर् का भी सामना कर सकते हैं | इसके अलािा भाईचारे और एकता में समाज को प्रेम और सरसता का भी फल वमलता है | ७. व्यक्ति को वकस प्रकार का जीिन व्यतीत करना चावहए ? स्पष्ट कीवजए | उत्तर: ‘मनुष्यता’ कविता यह सोंदेश दे ती है वक हमें दू सरोों के काम आना चावहए, उनका सहारा बनना चावहए, परोपकार करना चावहए आवद | मनुष्य को वनजी स्वाथों को छोड़ दे ना चावहए, पूरी मानि जावत के वलए सोचना चावहए | सोंपूर्ण सोंसार को अपना बोंधु मानकर उनके सारे दु ुः ख-ददण दू र करना चावहए | अहों कार रवहत होकर सबके साथ दया, करुर्ा और परोपकार का व्यिहार करना चावहए | भूलकर भी मानि-मानि में अलगाि पैदा न करे | जहाँ तक हो सके सभी में प्रेम ि मेलजोल का भाि बढ़ने का प्रयास करें | ८. ‘मनुष्यता’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश दे ना चाहते है ? उत्तर: कवि मैथलीशरर् गुप्त मनुष्य को यह समझाना चाहते हैं वक मुनष्य को अपने जीिन के उद्दे श्य को समझाना चावहए | केिल स्वाथी बनकर, स्वयों खा-पीकर पशुओों की तरह हमें नहीों जीना चावहए क्ोोंवक यह सब अिगुर् मात्र पशुओों में ही वदखाई दे ते हैं क्ोोंवक िे अवििेक होते हैं | अत: हम मनुष्योों को ऐसे साथणक कायण करने चावहए वजससे पूरे सोंसार का कल्यार् हो सके | कवि मनुष्योों को विवभन्न महापुरुषोों जैसे कर्ण , दधीवच, रों वतदे ि आवद का उदहारर् दे कर समझाना चाहते है वक अगर मनुष्य इस सोंसार में 2 अमर होना चाहता है तो उसका एकमात्र साधन है - मनुष्यता या परोपकार | कवि का मनना है वक अगर आपके मृत्यु के पश्चात लोग आपके आगे आँ सू बहाते हैं , अच्छे कमों को याद करते हैं , तभी आपकी मृत्यु सुमृत्यु में बदल सकती है | मनुष्य केिल शरीर प्राप्त कर लेने से ही मनुष्य नहीों बनता | िह मनुष्य मनुष्यता की भािना से ही बनता है | जहाँ िह स्वयों से पहले दू सरोों की वचोंता करता है , समुचय सोंसार को अपना पररिार मानकर सबसे एकता की भािना स्थावपत कर मनुष्य के कतणव्य को वनभाता है | ********************************************************************* 3