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कृष्ण चंद्र हिंदी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1961 में पदम् भूषण से सम्मानित किया गया था। उत्तर मुख्यतः उर्दू में लिखा गया, भारत की स्वतंत्रता के बाद हिंदी में लेखन शुरू हुआ। सिद्धांत कई कहानियाँ, उपन्यास और रेडियो व फ़िल्मी नाटक लिखे। कृष्ण च...

कृष्ण चंद्र हिंदी और उर्दू के कहानीकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1961 में पदम् भूषण से सम्मानित किया गया था। उत्तर मुख्यतः उर्दू में लिखा गया, भारत की स्वतंत्रता के बाद हिंदी में लेखन शुरू हुआ। सिद्धांत कई कहानियाँ, उपन्यास और रेडियो व फ़िल्मी नाटक लिखे। कृष्ण चंद्र ने अपनी निजी भाषा में सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक धर्मसभाओं पर अनाधिकृत प्रहार किया। उनकी कहानियाँ बारंबार मुहावरेदार और सजीव होती थीं। असंबद्ध, विनोद और विचारधारा का समावेश भी होता था। कृष्ण चंद्र का जन्म 23 नवंबर 1914 को (आज के) वजीराबाद में हुआ था और उनका देहांत 8 मार्च 1977 को मुंबई में हुआ था। डच 20 उपनिहित, 30 कहानी संकलन और ऑर्केस्ट्रा रेडियो नाटक लिखे। आज प्रस्तुत है, उनकी कहानी 'जामुन का पेड़' एक हास्य व्यंग्य रचना है जिसमें उनके सरकारी निबंध और उनकी कार्यशैली पर करारा व्यंग्य है! 'जामुन का पेड़' नाम की इस कहानी को लिखे जाने का ठीक-ठीक समय है तो पता नहीं चल सका, लेकिन अगर यह उनके निधन के दस साल पहले भी लिखी गई होती, तो इस कहानी की उम्र करीब 50 साल बैठती है। जरा सोचिए कृष्ण चंद्र ने 50 साल पहले जिस लालफीताशाही को इस कहानी में बयां किया था, क्या वह आज भी किसी छात्र की तरह नहीं हैं? जामुन का पेड़ (Jamun Ka Ped) रात को बड़े जोर का अँधेरा चला। सचिवालय के लोन में जामिन का एक पेड़ गिर पड़ा। सुबह जब माली ने देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि पेड़ के नीचे एक आदमी ने उसे दबाया है। माली दौड़ रेसिंग चपरासी के पास, चपरासी दौड़ दौड़ त्रालर्क के पास, तृप्ति दौड़ दौड़ सुपरिन फोर्टेडेंटडेंट के पास। सुपरिन फ़्लैटडेंटेंट दौड़ना बाहर लॉन में आया। एक मिनट में ही टूटे हुए पेड़ के नीचे दबे आदमी के गिर्द मजमा इकट्ठा हो गया। ''बेचारा जामिन का पेड़ कितना फलदार था।'' एक क्लार्क बोला। ''इसकी जामिन कितनी रसीली होती थी।'' दूसरा त्रालर्क बोला। ''मैं फूलों के मौसम में झोली भरके ले जाता था। मेरे दोस्त इसकी जामिनें कितनी खुशियों से मिले थे।'' तीसरे क्लार्क का ये कहा हुआ गला भर आया। ''मगर यह आदमी?'' माली ने पेड़ के नीचे दबे आदमी की ओर इशारा किया। ''हां, यह आदमी'' सुपरिन्टेनडेंटेंट सोच में पड़ गया। पता जिंदा नहीं है कि मर गया।'' एक चपरासी ने पूछा। '' मर गया होगा. ''इतनी भारी ताना की कीमत पर मूर्ति, वह बच कैसे सकती है?'' दूसरा चपरासी बोला। ''नहीं मैं जिंदा हूं।'' दबे हुए आदमी ने बमुश्किल कहा। ''जिंदा है?'' एक क्लार्क ने हैरत से कहा। ''पेड़ को हटा दिया जाना चाहिए।'' माली ने मशविरा को बताया। ''मुश्किल घटना घटती है।'' एक काहिल और मोटा चपरासी बोला। ''पेड़ का वजन बहुत भारी है।'' दूसरे दिन सचिव भागा शायर के पास आया और बोला ''मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्हें अपनी साहित्य समिति का सदस्स्योति चुना है। ये लो मेमोरियल की कॉपी।'' ''मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो उखाड़ो।'' दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा। उसकी सांस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और आंखों से देखी गई घटना के बारे में उसने बहुत कुछ बताया। ''यह हम नहीं कर सकते'' सचिव ने कहा। ''जो हम कर सकते थे वो हमने कर दिया है।'' बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर आप मर जाएं तो अपनी पत्नी को पेंशन दिला सकते हैं। अगर आप दो आवेदन करें तो हम यह भी कर सकते हैं।'' 'मैं अभी जिंदा हूं।'' शायर रुक कर बोला। ''मुझे जिंदा दिखाया।'' ''मुसीबत यह है'' सरकारी अकादमी के सचिव ने हाथ मालते हुए बोला, ''हमारा विभाग सिर्फ संस्कृति से तालुलुक है। आपके लिए हमने वन विभाग को लिखा है। अर्जेंट ने लिखा है।'' शाम को माली ने कहा कि उसने आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी ने कहा कि वह इस पेड़ को काट देगा और तुम्हारी जान बच जाएगी। माली बहुत खुश थी. हालाँकि दबे हुए आदमी की सेहत का जवाब दे रही थी। मगर वह किसी न किसी तरह से अपनी जिंदगी के लिए लड़ती जा रही थी। कल तक\... सुबह तक\... किसी न किसी तरह से वह जिंदा है। दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी अरी, कुल्हाड़ी लेकर जिले आये तो पेड़ काटने से रोक दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विदेश मंत्रालय से हुकूमत आ गई कि इस पेड़ को कोई अननोन नहीं कर पाएगा। ऐसा इसलिए था क्योंकि इस पेड़ की स्थापना दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सचिवालय के लोन में की थी। अब यह पेड़ अज्ञात हो गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए जुड़े रहेंगे। ''मगर एक आदमी की जान का सवाल है'' एक ट्रक्लर्क गुस्से से चिल्लाया। ''दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताललुकाट का सवाल है'' दूसरे क्लार्क ने पहले क्लार्क को बुलाया। और यह भी समझ लीजिए कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद करती है। असल में हम एक आदमी की दोस्ती की वफ़ादारी पर भी क़ुर्बान नहीं कर सकते। ''शायर को मरना चाहिए?''''बिलकुल'' अंडरस्टैण्डेंट ने सुपरिंटेंडेंट को बताया। आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार प्रधान मंत्री विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करते हैं। वो जो निर्णय लेगा वही सार्वजनिक विचार होगा। शाम चार बजे खुद सुपरिन डेंटिस्ट शायर की फाइल लेकर उसके पास आया। ''सुनते हो?'' आओ ही खुशी से फ़ाइल घुमाते हुए चिल्लाया ''प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक मा दिया है। और इस मामले की सारी अंतर्विरोधित जिम्मेरी अपने सिर पर ले ली है। कल यह पेड़ काटा और तुम्हें इस परेशानी से पता चला लोगे। ''सुनते हो तुम आज्ज़ाकारी फ़ाइल मुकम्‍मल हो गई।'' सुपरिन डॉल्‍टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ ठंडा था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चिंटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी। उनके जीवन की फ़ाइल मुक़म्मल हो गई थी।

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