Hindi Guessing 100 Marks 23 PDF
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This document appears to be a collection of Hindi literary works, including prose and poetry, along with some questions related to them. The content explores various themes and periods of Hindi literature. The passages may be excerpts from longer texts or independent pieces.
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गद्यखंड :- काव्यखंड:- महंगाई ्वचि भारत अनभयाि को िफल बिािे के नलए बहुत िारे िेताओ,ं अनभिेताओ,ं 1. बातचीत - बालकृ ष्ण भट्ट 1. कड...
गद्यखंड :- काव्यखंड:- महंगाई ्वचि भारत अनभयाि को िफल बिािे के नलए बहुत िारे िेताओ,ं अनभिेताओ,ं 1. बातचीत - बालकृ ष्ण भट्ट 1. कड़बक - र्नलक र्ुहम्र्ि जायिी भारत जब आजाि हुआ है तब िे निि प्रनतनिि हर व्तु की कीर्तों र्ें लगातार बढोतरी अनभिेनत्रयों और आर् जिता िे अपिा पूरा योगिाि निया है। इि नर्शि के नलए उत्तर निबंध (लनलत) भनिकाल (प्रेर्र्ागी) (पद्मावत) 2. उसने कहा था - चन्द्रधर शर्ाा गुलेरी 2. पद - िूरिाि होती जा रही है। व्तु की कीर्तें लगातार इि प्रकार िे बढ रही है नक निम्ि ्तर और प्रिेश के र्ुख्यर्ंत्री योगी जी िे नजतिे हो िकें िफल प्रयाि नकए हैं। कहािी 1915 भनिकाल (कृ ष्ण भनिशाखा) (िूरिागर ) र्ध्यर् ्तर के लोगों के नलए हर कोई व्तु खरीििा र्ुनककल हो गया है। ििू री तरफ िैलरी तिज्ञान िरदान या अतभिाप 3. संपूर्ण क्ांतत - 'जयप्रकाश िारायण 3. पद - तुलिीिाि और कर्ाई र्ें नजतिा इजाफा िहीं हुआ है। उििे ज्यािा व्तुओ ं की कीर्तें र्हगं ी होती निि प्रनतनिि नवज्ञाि की टेक्िोलॉजी बढती जा रही है, नजिकी वजह िे र्िुष्य को ऐनतहानिक भाषण भनिकाल (रार्भनिशाखा) (नविय पनत्रका) 4. अर्णनारीश्वर - रार्धारी निंह नििकर 4. छप्पय - िाभािाि जा रही है।िेखा जाए तो पेरोल और डीजल के िार् भी नपिले कई नििों िे इतिी तेजी पर हजारों िुख िुनवधाएं नर्ल रही है। लेनकि ििू री तरफ नवज्ञाि की वजह िे र्िुष्य निबंध भनिकाल (रार्भनिशाखा) (भिर्ाल) है नक हर कोई व्यनि पेरोल और डीजल अपिे वाहि र्ें भरवािे िे नहचकीचा रहा है। निि िभ्यता का िाश हो रहा है, नजिकी वजह िे र्िुष्य का जीवि नविाश की ओर जा 5. रोज - िनचचिािंि हीरािंि वात्स्यायि 5. कतित्त – कनव भूषण प्रनतनिि बढती र्हंगाई गरीबों के नलए िर््या पैिा कर रही है। गरीब लोगों के नलए हर रहा है और र्िुष्य जानत को िानभकीय यंत्रों िे खतरा पैिा हो रहा है। यनि हर् नवज्ञाि अज्ञेय कहािी (गैग्रीि) रीनतकाल (रीनतबद्ध कनव) व्तु का खरीििा र्ुनककल होता जा रहा है। क्योंनक िेश र्ें इि प्रकार िे बढती र्हगं ाई के फायिे और िुकिाि की बात करें तो नजतिे नवज्ञाि के फायिे नर्लेंग,े उतिे ही 6. एक लेख और एक पत्र - भगत निंह 6. तुमुल कोलाहल कलह में - जय शंकर प्रिाि निबंध और पत्र आधुनिक काल (िायावाि) (कार्ायिी) नजिके बीच गरीब व्यनि और अनधक गरीब होता जा रहा है। र्हंगाई को इि तरह िे बढिे आपको िुकिाि भी नर्ल जाएंगे। नवज्ञाि के द्वारा बिाए गए परर्ाणु बंब, नजिे र्िुष्य 7. ओ सदानीरा - जगिीशचंर र्ाथुर 7. पुत्र-तियोग - िुभरा कु र्ारी चौहाि िे रोकिे के नलए िरकार को कई प्रकार के किर् उठािे की आवकयकता है। िरकार को शनि के तौर पर र्ािता है। लेनकि इिका ििू री तरफ गलत उपयोग जापाि के निबंध (बोलते क्षण िे) आधुनिक काल (राष्रीय भाव धारा) (र्ुकुल) नियनर्त रूप िे यह बात अवकय चेक करिी चानहए नक कालाबाजारी नकतिी हो रही है। नहरोनशर्ा और िागािाकी जैिे उिाहरण के रूप र्ें उभरता है। नवज्ञाि के हजारों 8. तसपाही की मााँ - र्ोहि राके श 8. उषा - शर्शेर बहािरु निंह एकांकी (अंडे के निलके ) आधुनिक काल (प्रयोगवािी) क्योंनक आज के िर्य र्ें भी नकिाि िे अिाज बहुत ही कर् िार् र्ें खरीिा जाता है। लेनकि िुनवधाएं और वरिाि है। नवज्ञाि की वजह िे ही यह हजारों िुख िुनवधाएं िंभव हुई 9. प्रगीत और समाज - िार्वर निंह 9. जन-जन का चेहरा - गजािि र्ाधव बाजार र्ें जाकर उिी अिाज की कीर्त कई गुिा हो जाती है। बीच र्ें नबचौनलयों की िख्ं या है। र्िुष्य को अंधकार िे जीत निलािे का कार् नवज्ञाि का ही है। नवज्ञाि की वजह निबंध (वाि नववाि िंवाि) र्ुनिबोध आधुनिक काल (प्रयोगवािी) अनधक हो जािे की वजह िे गरीबों को और अनधक गरीबी झेलिी पड़ रही है। इिी प्रकार िे ही नवद्युत का आनवष्कार हुआ है और हजारों उपकरण का आनवष्कार हुआ है। 10. जूठन - ओर्प्रकाश बाल्र्ीनक 10. अतर्नायक - रघुवीर िहाय आधुनिक िे हर िार्ाि के उत्सपािि करता िे कर् िार् र्ें खरीिकर नबचौनलए बाजार र्ें उिी व्तु नवज्ञाि िे ही इतिी िारी टेक्िोलॉजी को बढाया है लेनकि ििू री तरफ उि िभी का आत्सर्कथा काल (िई कनवता) (आत्सर्हत्सया के नवरोध) 11. हाँसते हुए मेरा अके लापन – र्लयज 11. प्यारे नन्हें बेटे को - नविोि कु र्ार शुक्ल को ज्यािा िार् र्ें बेच रहे हैं और इिी वजह िे निि प्रनतनिि र्हगं ाई बढती जा रही है। िुकिाि भी है। डायरी लेखि आधुनिक काल (वह आिर्ी कोट पहिकर) पयाणिरर् िसंत ऋतु 12. ततररछ - उिय प्रकाश 12. हार-जीत - अशोक वाजपेयी पयाावरण का अथा है िभी प्राकृ नतक पररवेश जैिे भूनर्, वायु, जल, पौधे, पशु, ठोि पिाथा, भारत र्ें फरवरी और र्ाचा र्ें वितं ऋतु आता है। वितं ऋतु को ऋतुओ ं का राजा कहािी आधुनिक त्राििी आधुनिक काल (कही िहीं वही ीँ) 13. तिक्षा - जे. कृ ष्णर्ूनता 13. गााँि का घर - ज्ञािेंरपनत अपनशष्ट, धूप, वि और अन्द्य चीजें। ्व्थ वातावरण प्रकृ नत के िंतुलि को बिाए रखता या ऋतुराज बितं भी कहा जाता है। इि ऋतु के आिे िे प्रकृ नत र्ें कई िारे बिलाव िंभाषण आधुनिक काल (िंशयात्सर्ा) है और िाथ ही पृथ्वी पर िभी जीनवत चीजों को नवकनित, पोषण और नवकनित करिे र्ें होते हैं। वृक्षों पर िए पत्ते आ जाते हैं, आर् के पेड़ पर बौर लग जाते हैं, िरिों के खेतों र्िि करता है। हालानं क, आजकल कु ि र्ािव निनर्ात तकिीकी प्रगनत पयाावरण को कई र्ें पीले-पीले खूबिूरत फू ल नखल उठते हैं। कोयल की कू -कू बड़ी ही प्यारी लगती िेवा र्ें तरीकों िे खराब कर रही है जो अंततः प्रकृ नत के ितं ुलि या ितं ुलि को परे शाि करती है। है। इि नििों आिर्ाि िाफ होता है और निि र्ें पक्षी उड़ते हुए निखाई िेते हैं और प्रधािाचाया र्होिय हर् इि ग्रह पर भनवष्य र्ें जीवि के अन्तत्सव के िाथ-िाथ अपिे जीवि को भी खतरे र्ें रात र्ें चाीँि की चांििी र्िर्ोहक निखाई िेती है। विंत ऋतु के आगर्ि िे नकिािो क, ख. ग. नवद्यालय, पटिा डाल रहे हैं। यनि हर् प्रकृ नत के अिुशािि िे बाहर कु ि भी गलत तरीके िे करते हैं, तो यह की फिलें भी पकिे लगतीं हैं। पेड़-पौधे, िभी जीव-जंतु और र्िुष्य इि र्ौिर् र्ें नििाकं : अग्त 16, 2018 पूरे वातावरण को परे शाि करता है नजिका अथा है वायुर्ंडल, जलर्ंडल और लेपोन्फयर। जोश और उल्लाि िे भरे होते हैं। बितं ऋतु बहुत ही िुहाविा होता है। यह ्वा्थ्य प्राकृ नतक पयाावरण के अलावा, एक र्ािव निनर्ात पयाावरण भी र्ौजूि है जो प्रौद्योनगकी, के नलए भी एक अचिा र्ौिर् होता है क्योंनक इि नििों वातावरण का तापर्ाि नवषय - फीि र्ाफी हेतु काया पयाावरण, िौंियाशास्त्र, पररवहि, आवाि, उपयोनगताओ,ं शहरीकरण आनि िे िार्ान्द्य होता है। इि िर्य ्कू ल र्ें परीक्षाएं भी होती हैं और परीक्षा खत्सर् होते ही श्रीर्ाि् जी/ र्होिय, िंबंनधत है। र्ािव निनर्ात पयाावरण प्राकृ नतक पयाावरण को काफी हि तक प्रभानवत करता गर्ी की िु रट्टयाीँ शुरू हो जाती हैं। विंत ऋतु र्ें होली का त्सयौहार पूरे िेश र्ें बड़े आप िे नविम्र निवेिि है नक र्ैं आप के नवद्यालय के कक्षा 12वीं का िात्र हीँ। र्ेरे है जो हर् िभी को एक िाथ बचािा चानहए। प्राकृ नतक पयाावरण के घटकों का उपयोग धूर्धार् िे र्िाया जाता है। बिंत पंचर्ी के अविर पर र्ाीँ िर्वती की पूजा की नपताजी र्जिरू ी का काया करते हैं। नजिके चलते उिकी कोई निनित आय िहीं एक ििं ाधि के रूप र्ें नकया जाता है, लेनकि यह कु ि बुनियािी भौनतक आवकयकताओ ं जाती है और बेहतर भनवष्य और खुशहाली की कार्िाएं की जातीं हैं। है। हर्ारे पररवार र्ें उिकी आर्ििी िे ही पूरे पररवार का गुजर बिर होता है। र्ेरे और जीवि के उद्देकय को पूरा करिे के नलए र्ािव द्वारा भी शोषण नकया जाता है। हर्ें तिद्याथी जीिन अलावा भी पररवार र्ें 5 अन्द्य िि्य हैं, नजिके भरण पोषण की नजम्र्ेिारी भी अपिे प्राकृ नतक िंिाधिों को चुिौती िहीं िेिी चानहए और पयाावरण को इतिा प्रिषू ण या नकिी भी इिं ाि के नलए नवद्याथी जीवि एक ्वनणार् काल की तरह होता है क्योंनक नपताजी पर ही है। ऐिे र्ें र्ेरी फीि भरिे के नलए वो िर्था िहीं हैं। र्ेरे नपिले कचरा डालिा बंि करिा चानहए। हर्ें अपिे प्राकृ नतक िंिाधिों को र्हत्सव िेिा चानहए इि िर्य वो अपिे भनवष्य की आधारनशला रखता है। नवद्याथी जीवि र्ें ही एक िाल बोडा परीक्षा र्ें 90 प्रनतशत आये थे। िाथ ही खेल कू ि र्ें भी र्ैं हर्ेशा और प्राकृ नतक अिुशािि र्ें रहकर उिका उपयोग करिा चानहए। िात्र र्ें शारीररक और र्ािनिक गुणों के नवकाि के िाथ-िाथ आध्यानत्सर्क गुणों अव्वल रहा हीँ। समाचार पत्र का भी नवकाि होता है। इि िब र्ें िबिे ज्यािा र्हत्सवपूणा योगिाि अध्यापक का अतः आप िे प्राथािा है नक र्ेरी नवद्यालय की फीि पूणातः र्ाफ अब के नििों र्ें अखबार जीवि की आवकयकता बि गया है। यह लगभग िभी भाषाओ ं होता है, जो अपिे िभी नवद्यानथायों को नशक्षा िेिे के िाथ-िाथ उन्द्हें िही रा्ते पर करिे की कृ पा करें । इिके नलए र्ैं आप का ििा आभारी रहंगा। र्ें बाजार र्ें उपलब्ध है। एक िर्ाचार पत्र एक िर्ाचार का प्रकाशि होता है जो कागज भी चलाते हैं। नकिी भी इिं ाि के नलए नशक्षा हानिल करिा आिाि िहीं होता पर िप जाता है और िभी को उिके घर पर नवतररत नकया जाता है। नवनभन्द्ि िेशों की इिीनलए नवद्यानथायों को अपिी नजंिगी र्ें एक कार्याब इिं ाि बििे के नलए निि रात आपका आज्ञाकारी नशष्य अपिी िर्ाचार प्रकाशि एजेंनियां हैं। िर्ाचार पत्र हर्ें अपिे िेश और िाथ ही पूरी िनु िया र्ेहित करिी पड़ती है। नकिी भी िेश के नलए नवद्याथी बहुत र्हत्सव रखते हैं क्योंनक क, ख. ग र्ें क्या हो रहा है, इिके बारे र्ें बताता है। हर्ें खेल, राजिीनत, धर्ा, िर्ाज, अथाव्यव्था, वे पढ नलख कर अपिे िेश के गौरव को ऊंचा बिाते हैं। इिके नलए कोई नवद्याथी कक्षा- नफल्र् उद्योग, नफल्र्ें, भोजि, रोजगार आनि के नवषय िे िंबंनधत िटीक जािकारी बताएं। वैज्ञानिक बिता है, कोई डॉक्टर बिता है तो कोई इजं ीनियर। इिीनलए अध्यापक क्रर्ांक इििे पहले, िर्ाचार पत्रों को के वल िर्ाचार नववरणों के िाथ प्रकानशत नकया गया था, अपिे िात्रों र्ें िहयोग, िंयर्, नविम्रता, िेवा और िह अन्तत्सव जैिे गुणों को वतार्ाि र्ें इिर्ें नवनभन्द्ि नवषयों के बारे र्ें िर्ाचार और नवचार शानर्ल हैं। बाजार र्ें नवकनित करिे के नलए प्रयाि करते हैं। इिर्ें कोई शक िहीं नक आज के नवद्याथी नवनभन्द्ि िर्ाचार पत्रों की लागत उिके िर्ाचार नववरण और क्षेत्र र्ें लोकनप्रयता के आिे वाले कल र्ें िेश का भनवष्य होते हैं। अिुिार अलग-अलग होती है। वतार्ाि िैनिक र्ार्लों वाले िर्ाचार पत्र प्रनतनिि िपते हैं अनुिासन लेनकि उिर्ें िे िप्ताह र्ें िो बार, िप्ताह र्ें एक बार या र्हीिे र्ें एक बार िपते हैं। िर्ाचार एक अचिा जीवि जीिे के नलए जरूरी है नक व्यनि के जीवि र्ें अिुशािि हो। जो पत्र लोगों की आवकयकता और आवकयकता के अिुिार एक िे अनधक उद्देकयों की पूनता लोग अिुशािि का पालि करते हैं वह अपिे िभी कार्ों को िर्य पर करते हैं और करते हैं। िर्ाचार पत्र बहुत प्रभावी हैं और शनिशाली िनु िया भर िे एक ही ्थाि पर िभी अचिी तरह िे करते हैं। नजि लोगों र्ें अिुशािि होता है उिके अिं र आज्ञाकारी गुण जािकारी िेते हैं। इिकी जािकारी िेिे की तुलिा र्ें, इिकी लागत बहुत कर् है। यह हर्ारे अपिे आप ही आ जाते है। इि वजह िे ऐिे लोग जब नकिी र्हत्सवपूणा कार् को आिपाि की िभी घटिाओ ं के बारे र्ें हर्ें अचिी तरह िे िूनचत करता है। करते हैं तो वो अपिे बड़ों की आज्ञा का पालि करके अपिे कार् को अचिी तरह िे छठ पूजा करते हैं। इिके नवपरीत जो लोग अिुशाििहीि होते हैं और अपिे बड़ों की कोई भी िठ पूजा नहंिओ ु ं का एक प्रनिद्ध त्सयोहार है औऱ भारत के कई नह्िों जैिे झारखंड, बात िहीं र्ािते उि लोगों को जीवि र्ें बहुत िारी परेशानियों का िार्िा पड़ जाता ओनडशा, अिर्, नबहार और उत्तर प्रिेश र्ें बहुत धूर्धार् िे र्िाया जाता है िाथ ही िठ है। नफर ऐिे लोग नजिं गी के नकिी भी क्षेत्र र्ें िफलता हानिल िहीं कर पाते। इिीनलए पूजा पवा को र्ॉरीशि और िेपाल र्ें भी इिको र्िाया जाता है। िठ पूजा पवा चार नििों अिुशािि का र्हत्सव हर इिं ाि के नजंिगी र्ें होिा बहुत ही ज्यािा जरूरी है। नजंिगी तक चलता है और यह पवा आर्तौर पर अक्टूबर-िवंबर के र्हीिे र्ें आता है। िठ पूजा र्ें ििू रों िे आगे बढिे के नलए हर्ें चानहए नक हर् हर्ेशा अिुशािि र्ें रहें। अपिे पवा को डाला िठ के िार् िे भी जािा जाता है औऱ िठ पूजा पवा पर उगते िूया की पूजा अध्यापकों और र्ाता-नपता के आिेशों पालि करिे िे हर् अपिे जीवि र्ें काफी की जाती है। यह पनवत्रता, िूया िेव की भनि िे जुड़ा हुआ त्सयौहार है नजिे इि धरती पर प्रगनत कर िकते हैं। अिुशािि हर्ारे िैनिक जीवि का एक र्हत्सवपूणा नह्िा है और जीवि का स्रोत र्ािा जाता है और यह िेवता के रूप र्ें र्ािा जाता है जो हर्ारी िभी इिीनलए हर निि की नििचयाा र्ें इिका होिा आवकयक है। इचिाओ ं को पूरा करता है। यह त्सयौहार पृथ्वी को ऊजाा प्रिाि करिे और जीवि िेिे के नलए िूया िेव का धन्द्यवाि व्यि करिे के उद्देकय िे र्िाया जाता हैं तानक लोगों को रहिे के नलए उपयुि वातावरण उपलब्ध हो िके और यह त्सयौहार इि नवश्वाि के िाथ र्िाया जाता है नक िूया िेव इचिाओ ं को पूरा करते हैं। िूया िेव के िाथ ही लोग इि निि “िठी र्ैया” की पूजा करते हैं क्योंनक िठी र्ैया िूया िेव की बहि है जो बचचो नक रक्षा करिे वाली िेवी के िार् िे जािी जाती है इिनलए इि निि िूया िेव को प्रिन्द्ि करिे के िाथ-िाथ लोग िठी र्ैया की भी पूजा करते है। इि त्सयोहार पर भि िनियों और तालाबों र्ें घाटों पर इकट्ठा होते हैं और पनवत्र ्िाि करते हैं उिके बाि प्रिाि तैयार करते है और िूया भगवाि और िठी र्ैया को अनपात करते है। स्िच्छ भारत अतभयान ्वचि भारत अनभयाि को िरें र र्ोिी जी िे एक राष्रव्यापी िफाई अनभयाि के रूप र्ें शुरू नकया था नजिे ्वचि भारत की कल्पिा की दृनष्ट िे लागू नकया गया था। ्वचि भारत का िपिा गाीँधी जी का था नजिका अथा था पूरे भारत का ्वचि होिा। र्हात्सर्ा गाीँधी जी िे ्वचि भारत के नर्शि को पूरा करिे के नलए बहुत प्रयत्सि नकए लेनकि उि िर्य पर लोगों को ्वचि भारत नर्शि र्ें कोई निलच्पी िहीं थी नजिकी वजह िे गाीँधी जी का िपिा पूरा िहीं हुआ था इिनलए भारत िरकार िे गाीँधी जयंती के निि र्हात्सर्ा गाीँधी जी के ्वचि भारत के िपिे के नलए ्वचि भारत अनभयाि की घोषणा की। ्वचि भारत अनभयाि को गाीँधी जी की 145वीं जयंती पर 2 अिू बर, 2014 को शुरू नकया गया। ्वचि भारत अनभयाि र्ें भाग लेिा िभी लोगों के नलए एक बहुत बड़ी चुिौती है क्योंनक इि नर्शि को के वल तभी िफल बिाया जा िकता है जब िभी लोग िाथ नर्लकर इिर्ें भाग लेंगे। जयप्रकाि नारायर् की पत्नी का क्या नाम था? िे तकसकी पत्री थी? 21/19 Ans- जयप्रकाश िारायण की पत्सिी का िार् प्रभावती था | वह प्रनिद्ध गांधीवािी नवचारक ब्रजनकशोर प्रिाि की पुत्री थीं। नारी की परार्ीनता कब से आरम्भ हुई? Ans - र्ािव जानत िे कृ नष का आनवष्कार नकया तब िे िारी की पराधीिता आरम्भ हो गई। कृ नष के आनवष्कार के चलते िारी घर र्ें रहिे लगी। भगत तसंह की तिद्यातथणयों से क्या अपेक्षाएाँ हैं? Ans – भगत निंह कहते हैं नक नहन्द्ि्ु ताि को ऐिे िेशिेवकों की जरूरत है जो ति-र्ि-धि -िेश पर अनपात कर िें और पागलों की तरह िारी उम्र िेश की आजािी के नलए या िेश के नवकाि र्ें न्द्योिावर कर िे। िभी िेशों को आजाि करिे वाले वहाीँ के नवद्याथी और िौजवाि ही हुआ करते हैं। वे ही क्रांनत कर िकते हैं। मानक और तसपाही एक-दूसरे को क्यों मारना चाहते हैं? युद्ध िो िेशो के बीच हो रहा था| र्ािक और निपाही अलग अलग िेश िे थे | िोिों अलग अलग िेश के कारण एक ििु रे को िकु र्ि िर्झे है और एक-ििू रे को र्ारिा चाहते हैं| कुं ती का पररचय दें। Ans - कुं ती 'निपाही की र्ाीँ' शीषाक एकांकी र्ें एक प्रर्ुख पात्र है। वह एक अचिी पड़ोिि के रूप र्ें रंगर्ंच पर प्र्तुत हुई है। यद्यनप कुं ती की भूनर्का थोड़े िर्य के नलये है। तब भी उिे थोड़े र्ें आीँका िहीं जा िकता। वह नबशिी की पुत्री र्ुन्द्िी के नववाह के नलय नचंनतत है। वह ्वयं र्ुन्द्िी के नलये वर-घर खोजिे को भी तैयार है। वह नबशिी को िांत्सविा भी िेती है। । 'हृदय की बात' का क्या अथण है? Ans -घिघोर कोलाहल, अशांनत और कलह के बीच हृिय की बात का काया र्न्तष्क को शांनत पहुंचािा, उिे आरार् िेिा है। र्न्तष्क व नवचारों को कोलाहल िे नघरा जाता है तो हृिय की बात उिे आरार् िेती है। हिय कोर्ल भाविाओं का प्रतीक है जो र्न्तष्क को नवचारों के कोलाहल िे िरू करता है। भूषर् ने तििाजी की तुलना मृगराज से क्यों की है? नजि प्रकार हाथी निंह िे ज्यािा शनिवाला, भारी भरकर् वजिी होते हुए भी निंह द्वारा आनखर र्ारा जाता है उिी प्रकार हर्ारे नशवाजी निंह के िर्ाि हैं जो हर्ेशा िकु र्िों को र्ार नगराते हैं। यहाीँ शनि का उतिा र्हत्सव िहीं है नजतिा नक निंह की चु्ती-फु ती का, उिके र्न्तष्क का। अत: नशवराज भी इिी चु्ती-फु ती िे िकु र्िों पर नवजय प्राप्त करते हैं इिनलए कनव िे नशवराज की तुलिा र्ृगराज िे की है। प्यार का इिारा और क्ोर् का दुर्ारा से क्या तात्पयण है? Ans - प्यार का इशारा और क्रोध का िधु ारा िे कनव का तात्सपया है नक चाहे वह यािी जिता नजि िेश र्ें निवाि करती हो, उिके प्यार का इशारा यािी र्ािवतावािी दृनष्टकोण एक होता है। उिर्ें नकिी प्रकार का बिलाव िहीं होता। हरचरना कौन है? 2021/20 Ans - हरचरिा 'अनधिायक' शीषाक कनवता र्ें एक आर् आिर्ी का प्रनतनिनधत्सव करता है। वह एक ्कू ल जािे वाला बिहाल गरीब लड़का है। राष्रीय त्सयोहार के निि झंडा फहराए जािे के जलिे र्ें राष्रगाि िहु राता है। हरचरिा की पहचाि 'फटा िुथन्द्िा' पहिे एक गरीब िात्र के रूप र्ें है। अतर्नायक कौन है? Ans - लोकतांनत्रक व्यव्था र्ें ित्ताधारी वगा अनधिायक के रूप र्ें है। उिकी राजिी ठाठ-बाठ, भड़कीले रोब-िाब उिकी पहचाि है। मानक स्ियं को िहिी और जानिर से भी बढ़कर क्यों कहता है? Ans - र्ािक और िकु र्ि निपाही एक-ििू रे को घायल करते हैं। र्ािक भागता हुआ अपिी र्ाीँ के पाि आता है। िकु र्ि निपाही र्ािक को वहशी और जािवर कहकर पुकारते हैं। र्ािक का पौरुष जग उठता है तो घायल अव्था र्ें भी वह खड़ा होकर निपाही को र्ारिे का प्रयाि करता है और क्रोध की न्थनत र्ें वह ्वयं को वहशी और जािवर िे भी बढकर कहता है। तबिनी और मुन्नी को तकसकी प्रतीक्षा है? िे डातकये की राह क्यों देखती हैं? 20/18 Ans - नबशिी को अपिे निपाही पुत्र एवं र्ुन्द्िी को निपाही भाई की प्रतीक्षा है। वे डानकए की राह नचट्ठी आिे को िेखती है। क्योंनक उििे नपिली नचट्ठी र्ें नलखा था वे वर्ाा की लड़ाई पर जा रहे हैं। र्ाीँ और बेटी नकिी अनिष्ट की शंका के कारण नचट्ठी का इंतजार करते है| 'उसने कहा था' कहानी का कें द्रीय भाि क्या है? Ans - 'उििे कहा था' प्रथर् नवश्वयुद्ध की पृष्ठभूनर् र्ें नलखी गयी कहािी है। गुलेरीजी िे लहिानिंह और िूबेिारिी के र्ाध्यर् िे र्ािवीय िंबधं ों का िया रूप प्र्तुत नकया है। लहिा निंह िूबिे ारिी के अपिे प्रनत नवश्वाि िे अनभभूत होता है, क्योंनक उि नवश्वाि की िींव र्ें बचपि के िंबंध है। िूबिे ारिी का नवश्वाि ही लहिानिंह को उि र्हाि त्सयाग की प्रेरण िेता है। कहािी एक और ्तर पर अपिे को व्यि करती है। प्रथर् नवश्वयुद्ध की पृष्ठभूनर् पर यह एक अथा र्ें युद्ध-नवरोधी कहािी भी है। क्योंनक लहिानिंह के बनलिाि का उनचत िम्र्ाि नकया जािा चानहए था परन्द्तु उिका बनलिाि व्यथा हो जाता है और लहिानिंह का करुण अंत युद्ध के नवरुद्ध र्ें खड़ा हो जाता है। लहिानिंह का कोई िपिा पूरा िहीं होता 'बचपन से ही आपका ऐसे िातािरर् में रहना अत्यंत आिश्यक है जो स्ितंत्रतापूर्ण हो।' क्यों ? Ans - उत्तर बचपि िे ही ्वतंत्रतापूणा वातावरण र्ें रहिा आवकयक है जहाीँ भय की गुंजाइश िहीं हो। र्िचाहे काया करिे की ्वतंत्रता िहीं बनल्क ऐिा वातावरण जहाीँ ्वतंत्रतापूवक ा जीवि की िंपणू ा प्रनक्रया िर्झी जा िके । नजििे िचचे जीवि का नवकाि िंभव हो पाये। क्योंनक भयपूणा वातावरण र्िुष्य का ह्राि कर िकता है नवकाि िहीं। इिनलए लेखक जे. कृ ष्णर्ूनता का यह ित्सय और िाथाक कथि है नक बचपि िे ही आपका ऐिे वातावरण र्ें रहिा अत्सयंत आवकयक है जो ्वतंत्रतापूणा हो। "पंच परमेश्वर" के खो जाने को लेकर कति तचंततत क्यों है ? उत्तर- पंच परर्ेश्वर' का अथा है-'पंच' परर्ेश्वर का रूप होता है। व्तुतः पंच के पि पर नवराजर्ाि व्यनि अपिे िानयत्सव-निवााह के प्रनत पूणा िचेष्ट एवं ितका रहता है। वह निष्पक्ष न्द्याय करता है। उि पर िम्बनन्द्धत व्यनियों की पूणा आ्था रहती है तथा उिका निणाय 'िेव वाक्य' होता है। कनव यह िेखकर नखन्द्ि है नक आधुनिक पंचायती राज व्यव्था र्ें पंच परर्ेश्वर का िाथाकता नवलुप्त हो गई। एक प्रकार िे अन्द्याय और अिैनतकता िे व्यव्था को निनष्क्रय कर निया है, पंगु बिा निया है। पंच परर्ेश्वर शब्ि अपिी िाथाकता खो चुका है। कनव उपरोि कारणों िे ही नचनन्द्तत है। बूढ़ा मिकिाला क्या कहता है और क्यों कहता है ? उत्तर-बूढा र्शकवाला प्रतीक प्रयोग है। वह िेश के बुनद्धजीवी वगा िे तात्सपया रखता' है। वह वा्तनवक न्थनत िे अवगत है। वह कहता है नक नकिी की भी जीत िहीं हुई है। िेिा नवजयी िहीं है बनल्क हारी हुई िेिा है। इि पंनियों र्ें बूढा र्शकवाला िेश की जो भयावह न्थनत है, उििे वह अवगत होते हुए ित्सय के निकट है। िभी लोग तो धोखा र्ें जी रहे हैं लेनकि र्शकवाला.यथाथा का जािकार है। इिनलए वह कहता है नक जीत ि शािक का खेल है। प्रजा के िाथ की ि िागररक की, ि िेिा की हुई। ये िारी बातें झूठे प्रचार तंत्र का खेल है। पर िल है. धोखा है। िबको धोखे र्ें रखा जा रहा है और ित्सय को निपाया जा रहा है | तबतटया कहााँ-कहााँ लोहा पहचान पाती है ? उत्तर- नबनटया की िर्झ (जािकारी) र्ें नचर्टा, कलिु ल, कढाई, िड़िी, िरवाजे की िाीँकल (निकरी), कब्जा, पेंच तथा निटनकिी आनि र्ें लोहा है। इिके अनतररि िेफ्टी नपि, िाईनकल तथा अरगिी के तार र्ें भी वह लोहा पाती है। प्रातः नभ की तुलना बहुत नीला िंख से क्यों की गई है? उत्तर- प्रात: िभ की तुलिा बहुत िीला शंख िे की गई नक कनव के अिुिार प्रात: कालीि आकाश (िभ) गहरा िीला प्रतीत हो रहा है। वह िीले िर्ाि शंख के िर्ाि पनवत्र और उज्ज्वल है। िीला शंख पनवत्रता का प्रतीक है। प्रात:कालीि िभ भी पनवत्रता का प्रतीक है। लोग उषाकाल र्ें िूया िर््कार करते । शंख का प्रयोग भी पनवत्र कायों र्ें होता है। अतः यह तुलिा उनचत है। मााँ के तलए अपना मन समझाना कब कतठन है और क्यों ? उत्तर- बेटा र्ाीँ की अर्ूल्य धरोहर होता है। उिकी आीँखों का तारा होता है। वही उिका िवा्व होता है। यनि क्रूर नियनत द्वारा वही उििे िीि नलया जाता है, अथाात् उिके बेटे की अिार्नयक र्ृत्सयु हो जाती है तब र्ाीँ के नलए अपिे र्ि को िर्झिा कनठि हो जाता है। तुलसी सीता से कै सी सहायता मांगते हैं ? उत्तर- तुलिी िीता िे वचिों िे ही िहायता र्ांगते हैं अथाात् वाणी की िहायता र्ांगते हुए िीता र्ाता िे वे कहते हैं नक यनि प्रभु र्ेरा िार्, िशा पूिे तो यह बता िेिा नक िीिहीि निबाल हीँ और उन्द्हीं का िार् लेकर अपिा पेट भरता हीँ। प्रथम पद में तकस रस की व्यंजना हुई है ? उत्तर- िूरिाि रनचत 'प्रथर् पि' र्ें वात्सिल्य रि की व्यंजिा हुई हैं। वात्सिल्य रि के पिों की नवशेषता यह है नक पाठक जीवि की िीरि और जनटल िर््याओं को भूलकर उिर्ें तन्द्र्य और नवभोर हो उठता है। प्रथर् पि र्ें िल ु ार भरे कोर्ल-र्धुर ्वर र्ें िोए हुए बालक कृ ष्ण को भोर होिे की िूचिा िेते हुए जगाया जा रहा है। कति ने अपनी एक आंख की तुलना दपणर् से क्यों की है ? उत्तर- जायिी को एक ही आंख थी। उन्द्होंिे अपिी एक आीँख की तुलिा िपाण िे की, क्योंनक नजि तरह िपाण ्वचि और निर्ाल होता है उिी तरह कनव की आीँख है। कोई व्यनि नजि तरह नजि प्रकार िपाण र्ें अपिी िनव िाफ एवं ्पष्ट रूप िे िेख पाता है उि प्रकार कनव की आीँख भी ्वचिता एवं पारिनशाता का प्रतीक है। ततररछ क्या है ? कहानी में यह तकसका प्रतीक है ? उत्तर- 'नतररि' निपकली प्रजानत का जहरीला नलजाडा है नजिे नवषखापर भी कहते हैं। कहािी र्ें 'नतररि' प्रचनलत नवश्वािों और रूनढयों का प्रतीक है। डायरी का तलखा जाना क्यों मुतश्कल है ? उत्तर डायरी र्ि का कू ड़ा है। डायरी र्ें शब्िों और अथों के बीच तट्थता कर् रहता है। डायरी र्ें व्यनि अपिे र्ि की बातों को कागज पर उतारता है। वह अपिे यथाथा को अपिे ढंग िे अपिे िर्झिे योग्य शब्िों र्ें नलखता है। डायरी खुि के नलए नलखी जाती है, नलए िहीं। डायरी नलखिे र्ें अपिे भाव के अिुिार शब्ि िहीं नर्ल पाते हैं। यनि शब्िों का भंडार है भी तो उि शब्िों के लायक वे भाव ही ि होते हैं। डायरी र्ें र्ुिाकाश होता है, तो िूक्ष्र्ता भी। शब्िाथा और भावाथा र्ेल के कारण डायरी का नलखा जािा र्ुनककल है। बचपन में लेखक के साथ जो कु छ हुआ, आप कल्पना करें तक आपके साथ भी हुआ हो-ऐसी तस्थतत में आप अपने अनुभि और प्रतततक्या को अपनी भाषा में तलतखए। उत्तर- "जुठि" शीषाक आत्सर्कथा के र्ाध्यर् िे लेखक और ओर्प्रकाश वाल्र्ीनक िे अपिे बचपि के जो अिुभव प्र्तुत नकये हैं भारतीय िर्ाज के नलये एक नचन्द्ता का नवषय है। बचपि ईश्वर का निया हुआ एक अनद्वतीय उपहार है। बचपि र्ें बालक निकिल एवं िरल होता है। जीवि का यह बहुर्ूल्य िर्य नशक्षा ग्रहण एवं बड़ों द्वारा लाड़-प्यार की प्रानप्त का अविर है। ऐिे र्ें नकिी बालक को िनलत अिू त िर्झ कर प्रतानड़त करिा िर्ाजनवरोधी, र्ािवतानवरोधी एवं राष्रनवरोधी काया है। लेखक के िाथ उिके बचपि र्ें जो घटिायें घटी वे घोर निंििीय हैं। अगर र्ैं उिकी जगह बालक होता तो र्ेरे र्ि र्ें वही प्रभाव पडता जो लेखक के निलोनिर्ाग पर पड़ा। र्ैं लेखक की भाविाओं का आिर करता हीँ। िर्ाज की कु रीनतयाीँ शीघ्र िरू होिी चानहये। र्ािव-र्ािव र्ें भेि करिा ईश्वर को अपर्ानित करिे जैिा है। कला कला के तलए" तसद्धान्त क्या है 'कला-कला के नलए' निद्धान्द्त का अथा है नक कला लोगों र्ें कलात्सर्कता का भाव उत्सपन्द्ि करिे के नलए है। इिके द्वारा रि एवं र्ाधुया की अिुभनू त होती है, इिीनलए प्रगीत र्ुिकों (नलररक्ि) की रचिा का प्रचलि बढा है। इिके नलए यह भी तका निया जाता है नक अब लंबी कनवताओं को पढिे तथा िुििे की फु रित नकिी के पाि िहीं है। र्ााँगड़ िब्द का क्या आिय है ? धाीँगड़ शब्ि का अथा ओराीँब भाषा र्ें है-भाड़े का र्जिरू । धाीँगड़ एक आनिवािी जानत है, नजिे 18 वीं शताब्िी के अंत र्ें िील की खेती के निलनिले र् िनक्षण नबहार के िोटािागपुर पठार िे चम्पारण के इलाके र्ें लाया गया था। धांगड जानत आनिवािी जानतयों-ओराीँव, र्ुंडा, लोहार इत्सयानि के वंशज हैं, लेनकि ये अपिे आप को आनिवािी िहीं र्ािते हैं। धाीँगड़ नर्नश्रत ओराीँव भाषा र्ें बात करते हैं। धाीँगड़ों का िार्ानजक जीवि बेहि उल्लािपूणा है, स्त्री-पुरुष ढलती शार् के र्ंि प्रकाश र्ें िार्ूनहक िृत्सय करते हैं। गैंग्रीन क्या होता है ? उत्तर-पहानड़यों पर रहिे वाले व्यनियों को काीँटा चुभिा आर् बात है। परन्द्तु काीँटा चुभिे के बाि बहुत नििों तक िोड़ िेिे के बाि व्यनि का पांव जख्र् का शक्ल अनख्तयार कर लेता है नजिका इलाज र्ात्र पाीँव का काटिा ही है। काीँटा चुभिे पर जख्र् ही गैंग्रीि कहते हैं। नर और नारी एक ही द्रव्य की ढली दो प्रततमाएं हैं? कै से ? िारी और िर एक ही रव्य की ढली िो प्रनतर्ाएीँ हैं । आरंभ र्ें िोिों बहुत कु ि िर्ाि थे । आज भी प्रत्सयेक िारी र्ें कहीं ि कहीं कोई एक प्रचिन्द्ि िर और प्रत्सयक े िर र्ें कहीं ि कहीं एक क्षीण िारी निपी हुई है । जय प्रकाि नारायर् कम्युतनस्ट पाटी में क्यों नहीं िातमल हुए ? उत्तर- जय प्रकाश िारायण अर्ेररका र्ें घोर कम्युनि्ट थे। वह लेनिि का जर्ािा था, वह राट्की का जर्ािा था। 1924 र्ें लेनिि के र्रिे के बाि वे र्ाक्िावािी बि गये। वे जब भारत लौटे तो घोर कम्युनि्ट बिकर लौटे, लेनकि वे कम्युनि्ट पाटी र्ें िहीं शानर्ल हुए। वे काीँग्रिे र्ें िानखल हुए। जय प्रकाश िारायण कम्युनि्ट पाटी र्ें इिनलए शानर्ल िहीं हुए क्योंनक उि िर्य भारत गुलार् था। उन्द्होंिे लेनिि िे जो िीखा था वह यह िीखा था नक जो गुलार् िेश हैं, वहाीँ के जो कम्युनि्ट हैं, उिको किानप वहाीँ की आजािी की लड़ाई िे अपिे को अलग िहीं रखिा चानहए। चाहे उि लड़ाई का िेतत्सृ व 'बुजुाआ क्लाि' करता हो या पूीँजीपनतयों के हाथ र्ें उिका िेतत्सृ व हो। बातचीत अगर हममें िाक्िति न होती तो क्या होता? उत्तर- हर्र्ें वाशनि ि होती तो र्िुष्य गूंगा होता, वह र्ूकबनधर हो िृनष्ट की िबिे र्हत्सवपूणा िेि उिकी वाक्शनि है। इिी वाक्शनि के कारण वह िर्ाज र्ें वाताालाप करता है। वह अपिी बातों को अनभव्यि करता है और उिकी वाक् शनि भाषा कहलाती है। व्यनि िर्ाज र्ें रहता है। इिनलए अन्द्य व्यनि के िाथ उिका पार्पररक िम्बन्द्ध और कु ि जरूरतें होती हैं नजिके कारण वह वाताालाप करता है । यह ईश्वर द्वारा िी हुई र्िुष्य की अिर्ोल कृ नत है। इिी वाक्शनि के कारण वह र्िुष्य है| यनि हर्र्ें इि वाक्शनि का अभाव होता तो र्िुष्य जािवरों की भाीँनत ही होता। वह अपिी नक्रयाओं को अनभव्यि िहीं कर पाता। जो हर् िुख-िख ु इंनरयों के कारण अिुभव करते हैं रहिे के कारण िहीं कह पाते।