Delhi: From 12th to 15th Century PDF

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Delhi Sultanate Indian History Medieval India History

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This document is a chapter from a history textbook focusing on the Delhi Sultanate and its significance in Indian history from the 12th to 15th centuries. It discusses the key rulers, administrative structures, and cultural aspects of this period.

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3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्‍दी हमने अध्याय 2 में देखा कि कावेरी डेल्टा जैसे क्षेत्र बड़े राज्यों के कें द्र बन गये थे। क्या आपने गौर किया कि अध्याय 2 में ऐसे किसी राज्य का जि़क्र...

3 दिल्ली: बारहवीं से पंद्रहवीं शताब्‍दी हमने अध्याय 2 में देखा कि कावेरी डेल्टा जैसे क्षेत्र बड़े राज्यों के कें द्र बन गये थे। क्या आपने गौर किया कि अध्याय 2 में ऐसे किसी राज्य का जि़क्र नहीं है जिसकी राजधानी दिल्ली रही हो? इसकी वजह यह है कि दिल्ली महत्त्वपरू ्ण शहर बारहवीं शताब्दी में ही बना। तालिका 1 पर नज़र डालिए। पहले पहल तोमर राजपतू ों के काल में दिल्ली किस साम्राज्य की राजधानी बनी। बारहवीं सदी के मध्य में तोमरों को अजमेर मानचित्र 1 के चौहानों (जिन्हें चाहमान नाम से भी जाना जाता है) ने परास्त किया। तोमरों तेरहवीं-चौदहवीं सदी में और चौहानों के राज्यकाल में ही दिल्ली वाणिज्य का एक महत्त्वपरू ्ण कें द्र बन दिल्ली सल्तनत के कुछ गया। इस शहर में बहुत सारे समद्ृ धिशाली जैन व्यापारी रहते थे जिन्होंने अनेक चनु े हुए शहर। मदिं रों का निर्माण करवाया। यहाँ देहलीवाल कहे जाने वाले सिक्के भी ढाले जाते थे जो काफ़ी प्रचलन में थे। तेरहवीं सदी के आरंभ में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई और इसके साथ दिल्ली एक ऐसी राजधानी में बदल गई जिसका नियंत्रण इस उपमहाद्वीप के बहुत बड़े क्षेत्र पर फै ला था। तालिका 1 पर फिर से नज़र डालिए और उन पाँच वंशों की पहचान कीजिए जिनसे मिलकर दिल्ली की सल्तनत बनी। जिस इलाके को हम आज दिल्ली के नाम से जानते हैं, वहाँ इन सलु तानों ने अनेक नगर बसाए। मानचित्र 1 को देखकर देहली-ए कुह्ना, सीरी और जहाँपनाह को पहचानिए। हमारे अतीत–2 30 2024-25 Chapter 3.indd 30 15-06-2022 14:56:09 तालिका 1 दिल्ली के शासक राजपूत वंश तोमर आरंभिक बारहवीं शताब्दी–1165 अनंगपाल 1130 –1145 चौहान 1165 –1192 पथृ ्वीराज चौहान 1175 –1192 प्रारंभिक तुर्की शासक 1206 –1290 क़ुत्‍बउद्दीन ऐबक 1206 –1210 शमसद्ु दीन इल्तुतमिश 1210 –1236 रजि़या 1236 –1240 ग़यासद्ु दीन बलबन 1266 –1287 ख़लजी वंश 1290 –1320 जलालद्ु दीन ख़लजी 1290 –1296 अलाउद्दीन ख़लजी 1296 –1316 तुग़लक वंश 1320 –1414 गयासद्ु दीन तुग़लक़ 1320 –1324 महु म्मद तुग़लक़ 1324 –1351 फिरोज़ शाह तुग़लक़ 1351 –1388 सैयद वंश 1414 –1451 खिज़्र ख़ान 1414 –1421 लोदी वंश 1451 –1526 बहलोल लोदी 1451 –1489 31 दिल्ली: बारहवीं से पद्रं हवीं शताब्‍दी 2024-25 Chapter 3.indd 31 8/28/2022 10:05:11 AM सल ु तानों के अधीन दिल्‍ली ‘इतिहास’, तारीख (एकवचन) / तवारीख (बहुवचन) हैं जो सल ु तानों के शासनकाल में, प्रशासन की भाषा फ़ारसी में लिखे गए थे। तवारीख के लेखक सचिव, प्रशासक, कवि और दरबारियों जैसे सशिक्षिु त व्यक्‍त‍ि होते थे जो घटनाओ ं का वर्णन भी करते थे और शासकों को प्रशासन संबंधी सलाह भी देते थे। वे न्यायसंगत शासन के महत्त्व पर बल देते थे। ? न्याय-चक्र क्या आपको लगता है कि न्याय-चक्र राजा और तेरहवीं सदी के इतिहासकार फ़ख्र-ए मदु ब्बिर ने लिखा थाः प्रजा के बीच के संबंध को समझाने के लिए राजा का काम सैनिकों के बिना नहीं चल सकता। सैनिक वेतन के बिना नहीं जी उपयक्‍त ु शब्द है? सकते। वेतन आता है किसानों से एकत्रित किए गए राजस्व से। मगर किसान भी राजस्व तभी चक ु ा सकें गे, जब वे खश ु हाल और प्रसन्न हों। ऐसा तभी हो सकता है, जब राजा न्याय और ईमानदार प्रशासन को बढ़ावा दे। जन्मसिद्ध अधिकार जन्म के आधार पर विशेषाधिकार का दावा। उदाहरण के लिए, लोग ये कुछ और बातें ध्यान में रखें: (1) तवारीख के लेखक नगरों में मानते थे कि कुलीन (विशेषकर दिल्ली में) रहते थे, गाँव में शायद ही कभी रहते हों। (2) वे व्यक्‍त‍ियों को, कुछ खास अकसर अपने इतिहास सल ु तानों के लिए, उनसे ढेर सारे इनाम-इकराम परिवारों में जन्म लेने के कारण शासन करने का पाने की आशा में लिखा करते थे। (3) ये लेखक अकसर शासकों को अधिकार विरासत में जन्मसिद्ध अधिकार और लिंगभेद पर आधारित ‘आदर्श’ समाज व्यवस्था मिलता है। बनाए रखने की सलाह देते थे। उनके विचारों से सारे लोग सहमत नहीं होते थे। लिंगभेद ु तान इल्तुतमिश की बेटी रजि़या सिंहासन पर बैठी। उस सन् 1236 में सल स्‍त्रि‍यों तथा परुु षों के बीच सामाजिक तथा शरीर-रचना यगु के इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज ने स्वीकार किया है कि वह अपने सबं ंधी अतं र। आमतौर पर यह सभी भाइयों से अधिक योग्य और सक्षम थी, लेकिन फिर भी वह एक रानी तर्क दिया जाता है कि ऐसे को शासक के रूप में मान्यता नहीं दे पा रहा था। दरबारी जन भी उसके स्वतंत्र अतं र के कारण परुु ष स्‍त्रि‍यों रूप से शासन करने की कोशिशों से प्रसन्न नहीं थे। सन् 1240 में उसे सिंहासन की तल ु ना में श्रेष्‍ठ होते हैं। से हटा दिया गया। हमारे अतीत–2 32 2024-25 Chapter 3.indd 32 15-06-2022 14:56:12 रजि़या के विषय में मिन्‍हाज के विचार:अन्‍य महत्‍वपूर्ण भारतीय शास‍िकाओ ं ने क्‍या किया ? मिन्हाज-ए-सिराज का सोचना था कि ईश्वर ने जो आदर्श समाज व्यवस्था बनाई है उसके अनसा ु र स्‍त्र‍ियों को परुु षों के अधीन होना चाहिए और रानी का शासन इस व्यवस्था के विरुद्ध जाता था। इसलिए वह पछू ता है: “खदु ा की रचना के खाते में उसका ब्यौरा चकि ँू मर्दों की सचू ी में नहीं आता, इसलिए इतनी शानदार खबिय ू ों से भी उसे आखिर हासिल क्या हुआ?” रजि़या ने अपने अभिलेखों और सिक्कों पर अकि ं त करवाया कि वह सलु तान इल्तुतमिश की बेटी थी। आधनिु क आध्रं प्रदशे के वारंगल क्षेत्र में किसी समय काकतीय वशं का राज्य था। उस वशं की रानी रुद्रम्मा देवी (1262 –1289) के व्यवहार से रजिया का व्यवहार बिलकुल विपरीत था। रुद्रम्मा देवी ने अपने अभिलेखों में अपना नाम परुु षों जैसा लिखवाकर अपने परुु ष होने का भ्रम पैदा किया था। एक और महिला शासक थी– कश्मीर की रानी दिदद् ा (980–1003)। उनका नाम ‘दीदी’ (बड़ी बहन) से निकला है। ज़ाहिर है प्रजा ने अपनी प्रिय रानी को यह स्नेहभरा सबं ोधन दिया होगा। मिन्हाज के विचार अपने शब्दों में व्यक्‍त कीजिए। क्या आपको ? लगता है कि रजि़या के विचार भी यही थे? आप के अनसु ार, स्‍त्री के लिए शासक बनना इतना कठिन क्यों था? ख़लजी और तुग़लक़ वंश के अंतर्गत प्रशासन– नज़दीक से एक नज़र दिल्ली सल्तनत जैसे विशाल साम्राज्य के समेकन के लिए विश्‍वसनीय सबू ेदारों तथा प्रशासकों की ज़रूरत थी। दिल्ली के आरंभिक सल ु तान, विशेषकर इल्तुतमिश, सामतं ों और ज़मींदारों के स्थान पर अपने विशेष गलाम ु ों को सबू ेदार नियक्‍त ु करना अधिक पसदं करते थे। इन गलाम ु ों को फ़ारसी में बंदगाँ कहा जाता है तथा इन्हें सैनिक सेवा के लिए खरीदा जाता था। उन्हें राज्य के कुछ बहुत ही महत्त्वपरू ्ण राजनीतिक पदों पर काम करने के लिए बड़ी सावधानी से प्रशिक्षित किया जाता था। वे चकि ँू परू ी तरह अपने मालिक पर निर्भर होते थे, इसलिए सल ु तान भी विश्‍वास करके उन पर निर्भर हो सकते थे। 33 दिल्ली: बारहवीं से पद्रं हवीं शताब्‍दी 2024-25 Chapter 3.indd 33 12-04-2024 14:44:46 बेटों से बढ़कर ग़ुलाम सल ु तानों को सलाह दी जाती थी: जिस गल़ु ाम को हमने पाला-पोसा और आगे बढ़ाया है, उसकी हमें देखभाल करनी चाहिए, क्योंकि तकदीर अच्छी हो, तभी परू ी जि़दं गी में कभी-कभी ही योग्य और अनभु वी गल ़ु ाम मिलता है। बद्ु धिमानों का कहना है कि योग्य और अनभु वी गल़ु ाम बेटे से भी बढ़कर होता है... क्या आपको गल ़ु ाम को बेटे से बढ़कर मानने का कोई कारण समझ ? में आता है? आश्रि‍त ख़लजी तथा तग़ु लक़ शासक बंदगाँ का इस्तेमाल करते रहे और साथ ही जो किसी अन्‍य व्‍य‍क्‍त‍ि के अपने पर आश्रित निम्न वर्ग के लोगों को भी ऊँचे राजनीतिक पदों पर बैठाते संरक्षण में रहता हो, उस पर रहे। ऐसे लोगों को सेनापति और सबू ेदार जैसे पद दिए जाते थे। लेकिन इससे निर्भर हो। राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा होने लगी। ग़ुलाम और आश्रित अपने मालिकों और संरक्षकों के प्रति तो वफ़ादार रहते थे मगर उनके उत्तराधिकारियों के प्रति नहीं। सल ु तानों के अपने नौकर होते थे। फलस्वरूप किसी नए शासक के सिंहासन पर बैठते ही प्रायः नए और परु ाने सरदारों के बीच टकराहट शरू ु हो जाती थी। सल ु तानों द्वारा निचले तबके के लोगों को संरक्षण दिए जाने के कारण उच्च वर्ग के कई लोगों को गहरा धक्का भी लगता था और फ़ारसी तवारीख के लेखकों ने ‘निचले खानदान’ के लोगों को ऊँचे पदों पर बैठाने के लिए दिल्ली के सल ु तानों की आलोचना भी की है। सल ु तान मुहम्मद तुग़लक़ के अधिकारीजन सलु तान महु म्मद तग़ु लक़ ने अज़ीज खमु ्मार नामक कलाल (शराब बनाने और बेचने वाला), ि‍फ़रुज़ हज्जाम नामक नाई, मनका तब्बाख नामक बावर्ची और लड्ढा तथा पीरा नामक मालियों को ऊँचे प्रशासनिक पदों पर बैठाया था। चौदहवीं शताब्दी के मध्य के इतिहासकार जि़याउद्दीन बरनी ने इन नियक्‍त‍िय ु ों का उल्लेख सल ु तान के राजनीतिक विवेक के नाश और शासन करने की अक्षमता के उदाहरणों के रूप में किया है। ? आपके ख्याल से बरनी ने सलु तान की आलोचना क्यों की थी? हमारे अतीत–2 34 2024-25 Chapter 3.indd 34 15-06-2022 14:56:12 पहले वाले सल ु तानों की ही तरह ख़लजी और तग़ु लक़ शासकों ने भी इस काल में खराज़ के सेनानायकों को भिन्न-भिन्न आकार के इलाकों के सबू ेदार के रूप में नियक्ु ‍त अलावा कुछ अन्‍य कर किया। ये इलाके इक़्ता कहलाते थे और इन्हें सँभालने वाले अधिकारी भी लगाए गए:- इक़्तदार या मकु ़्ती कहे जाते थे। मकु ़्ती का फ़र्ज था सैनिक अभियानों का ु मे लटु े गए खुम्‍स- यद्ध नेततृ ्व करना और अपने इक़्तों में काननू और व्यवस्था बनाए रखना। अपनी माल पर लगने वाला सैनिक सेवाओ ं के बदले वेतन के रूप में मकु ़्ती अपने इलाकों से राजस्व की कर। इस धन का 1/5 वसल ू ी किया करते थे। राजस्व के रूप में मिली रकम से ही वे अपने सैनिकों सलु ्‍तान का एवं 4/5 को भी तनख्वाह देते थे। मकु ़्ती लोगों पर काबू रखने का सबसे प्रभावी तरीका सैनिकों का होता था। यह था कि उनका पद वश ं -परंपरा से न चले और उन्हें कोई भी इक़्ता थोड़े- जकात- यह एक थोड़े समय के लिए ही मिले, जिसके बाद उनका स्थानांतरण कर दिया जाए। धार्मिक कर था जो सल ु तान अलाउद्दीन ख़लजी और महु म्मद तग़ु लक़ के शासनकाल में नौकरी मस्लि ु मों की आय का के इन कठोर नियमों का बड़ी सख्ती से पालन होता था। मकु ़्ती लोगों द्वारा 2.5% या 1/40 भाग था। लोकप्रिय मतों के एकत्रित किए गए राजस्व की रकम का हिसाब लेने के लिए राज्य द्वारा लेखा अनसु ार इसका आरंभ अधिकारी नियक्ु ‍त किए जाते थे। इस बात का ध्यान रखा जाता था कि मकु ़्ती पैगवं र के द्वारा किया राज्य द्वारा निर्धारित कर ही वसल ू ें और तय संख्या के अनसु ार सैनिक रखें। गया था। इसे सभी जब दिल्ली के सल ु तान शहरों से दरू आतं रिक इलाकों को भी अपने मस्लिु मों के लिए अधिकार में ले आए तो उन्होंने भमि ू के स्वामी सामतं ों और अमीर ज़मींदारों अनिवार्य कर दिया गया को भी अपनी सत्ता के आगे झक ु ने को बाध्य कर दिया। अलाउद्दीन ख़लजी था। सल्‍तनत एवं मगु ल के शासनकाल में भ-ू राजस्व के निर्धारण और वसल ू ी के कार्य को राज्य काल में व्‍यापारियों अपने नियंत्रण में ले आया। स्थानीय सामतं ों से कर लगाने का अधिकार छीन से आयात-निर्यात पर लिया गया, बल्कि स्वयं उन्हें भी कर चक ु ाने को बाध्य किया गया। सल ु तान 2.5% जकात वसल ू ा के प्रशासकों ने ज़मीन की पैमाइश की और इसका हिसाब बड़ी सावधानी जाता था। से रखा। कुछ परु ाने सामतं और ज़मींदार राजस्व के निर्धारण और वसल ू ी जजिया- यह गैर अधिकारी के रूप में सल्तनत की नौकरी करने लगे। उस समय तीन तरह के मस्लि ु मों से लिया जाने वाला कर था जो उन्‍हे कर थे– (1) कृषि पर, जिसे खराज कहा जाता था और जो किसान की उपज जिम्‍मी या सरं क्षित का लगभग पचास प्रतिशत होता था; (2) मवेशियों पर; तथा (3) घरों पर। नागरिक का दजार् यह याद रखना ज़रूरी है कि इस उपमहाद्वीप का काफ़ी बड़ा हिस्सा प्रदान करता था। दिल्ली के सल ु तानों के अधिकार से बाहर ही था। दिल्ली से बंगाल जैसे सल्‍तनत काल में इसकी सदु रू प्रांतों का नियंत्रण कठिन था और दक्षिण भारत की विजय के तरु ं त वसल ू ी खराज़ के साथ बाद ही वह परू ा क्षेत्र फिर-से स्वतंत्र हो गया था। यहाँ तक कि गंगा के 35 दिल्ली: बारहवीं से पद्रं हवीं शताब्‍दी 2024-25 Chapter 3.indd 35 12-04-2024 14:45:12 की जाती थी। किन्‍तु मैदानी इलाके में भी घने जगं लों वाले ऐसे क्षेत्र थे, जिनमें पैठने में सल ु तान फिरोज़ शाह तगु लक ने की सेनाएँ अक्षम थीं। स्थानीय सरदारों ने इन क्षेत्रों में अपना शासन जजिया को एक अलग जमा लिया। अलाउद्दीन ख़लजी और महु म्मद तग़ु लक़ इन इलाकों पर कर के रूप में संगहि ृ त ज़ोर-ज़बरदस्ती अपना अधिकार जमा तो लेते थे, पर वह अधिकार कुछ किया। ही समय तक रह पाता था। ‍‍स्रोत- य.ू एन.डे., 1959 एडमिनिस्‍ट्रेटिव सिस्‍टम सरदार और उनकी ि‍कलेबंदी ऑफ दिल्‍ली सल्‍त ु नत, अफ़्रीकी देश, मोरक्को से चौदहवीं सदी में भारत आए यात्री इब्न बततू ा ने किताब महल प्रकाशन, बतलाया है कि सरदार कभी-कभी इलाहबाद चट्टानी, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में किले बनाकर रहते थे और कभी-कभी बाँस के झरु मटु ों में। भारत में बाँस पोला नहीं होता। यह बहुत बड़ा होता है। इसके अलग-अलग हिस्से आपस में इस तरह से गँथु े होते हैं कि उन पर आग का भी असर नहीं होता और वे कुल मिलाकर बहुत ही मज़बतू होते हैं। सरदार इन जंगलों में रहते हैं, जो इनके लिए किले की प्राचीर का काम देते हैं। इस दीवार के घेरे में ही उनके मवेशी और फ़सल रहते हैं। अदं र ही पानी भी उपलब्ध रहता है, अर्थात् वहाँ एकत्रित हुआ वर्षा का जल। इसलिए उन्हें प्रबल बलशाली सेनाओ ं के बिना हराया नहीं जा सकता। ये सेनाएँ जगं ल में घसु कर खासतौर से तैयार किए गए औज़ारों से बाँसों को काट डालती हैं। ? सरदारों की रक्षा-व्यवस्था का वर्णन कीजिए। चग़ेज़ ं ख़ान के नेततृ ्व में मगं ोलों ने 1219 में उत्तर-पर्ू वी ईरान में ट्रांसऑक्ससियाना (आधनि ु क उज़बेकिस्तान) पर हमला किया और इसके शीघ्र बाद ही दिल्ली सल्तनत को उनका धावा झेलना पड़ा। अलाउद्दीन ख़लजी और महु म्मद तग़ु लक़ के शासनकालों के आरंभ में दिल्ली पर मगं ोलों के धावे बढ़ गए। इससे मजबरू होकर दोनों ही सल ु तानों को एक विशाल स्थानीय सेना खड़ी करनी पड़ी। इतनी विशाल सेना को सँभालना प्रशासन के लिए भारी चनु ौती थी। पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी में सल्तनत तालिका 1 को फिर से देख।ें आप पाएँगें कि तग़ु लक़ वश ं के बाद 1526 तक दिल्ली तथा आगरा पर सैयद तथा लोदी वंशों का राज्य रहा। तब हमारे अतीत–2 36 2024-25 Chapter 3.indd 36 12-04-2024 14:45:32 तक जौनपरु , बंगाल, मालवा, गजु रात, राजस्थान तथा परू े दक्षिण भारत में स्वतंत्र शासक उठ खड़े हुए थे। उनकी राजधानियाँ समद्ध ृ थीं और राज्य फल-फूल रहे थे। इसी काल में अफ़गान तथा राजपतू ों जैसे नए शासक समहू भी उभरे । इस काल में स्थापित राज्यों में से कुछ छोटे तो थे पर शक्‍त‍िशाली थे और उनका शासन बहुत ही कुशल तथा सवु ्यवस्थित तरीके से चल रहा था। शेरशाह सरू (1540 –1545) ने बिहार में अपने चाचा के एक छोटे-से इलाके के प्रबंधक के रूप में काम शरू ु किया था और आगे चलकर उसने इतनी उन्नति की कि मग़ु ल सम्राट हुमायँू (1530 –1540, 1555 –1556) तक को चनु ौती दी और परास्त किया। शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करके स्वयं अपना राजवश ं स्थापित किया। सरू वश ं ने के वल पद्रं ह वर्ष (1540 –1555) शासन किया, लेकिन इसके प्रशासन ने अलाउद्दीन ख़लजी वाले कई तरीकों को अपनाकर उन्हें और भी चसु ्त बना दिया। महान सम्राट अकबर (1556 –1605) ने जब मग़ु ल साम्राज्य को समेकित किया, तो उसने अपने प्रतिमान के रूप में शेरशाह की प्रशासन व्यवस्था को ही अपनाया था। कल्पना करें आप अलाउद्दीन ख़लजी या महु म्मद तग़ु लक़ के शासन बीज शब्‍द काल में एक किसान हैं और आप सलु तान द्वारा लगाया गया कर नहीं चका ु सकते। आप क्या करें गे?  इक़्ता तारीख फिर से याद करें गैरिसन मगं ोल 1. दिल्ली में पहले-पहल किसने राजधानी स्थापित की? लिंग 2. दिल्ली के सल ु तानों के शासनकाल में प्रशासन की भाषा क्या थी? खराज 3. किसके शासन के दौरान सल्तनत का सबसे अधिक विस्तार हुआ?  4. इब्न बततू ा किस देश से भारत में आया था? 37 दिल्ली: बारहवीं से पद्रं हवीं शताब्‍दी 2024-25 Chapter 3.indd 37 15-06-2022 14:56:13 आइए समझें 5. ‘न्याय चक्र’ के अनसु ार सेनापतियों के लिए किसानों के हितों का ध्यान रखना क्यों ज़रूरी था? 6. सल्तनत की ‘भीतरी’ और ‘बाहरी’ सीमा से आप क्या समझते हैं? 7. मकु ़्ती अपने कर्त्तव्यों का पालन करें , यह सनिश्‍च‍ि ु त करने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए गए थे? आपके विचार में सल ु तान के आदेशों का उल्लंघन करना चाहने के पीछे उनके क्या कारण हो सकते थे? आइए विचार करें 8. क्या आपकी समझ में तवारीख के लेखक, आम जनता के जीवन के बारे में कोई जानकारी देते हैं? 9. दिल्ली सल्तनत के इतिहास में रजिया सल ु तान अपने ढंग की एक ही थीं। क्या आपको लगता है कि आज महिला नेताओ ं को ज़्यादा आसानी से स्वीकार किया जाता है? 10. दिल्ली के सल ु तान जगं लों को क्यों कटवा देना चाहते थे? क्या आज भी जंगल उन्हीं कारणों से काटे जा रहे हैं? आइए करके देखें 11. पता लगाइए कि क्या आपके इलाके में दिल्ली के सल ु तानों द्वारा बनवाई गई कोई इमारत है? क्या आपके इलाके में और भी कोई ऐसी इमारत है, जो बारहवीं से पद्रं हवीं सदी के बीच बनाई गई हो? इनमें से कुछ इमारतों का वर्णन कीजिए और उनके रे खाचित्र बनाइए। हमारे अतीत–2 38 2024-25 Chapter 3.indd 38 15-06-2022 14:56:13

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