🎧 New: AI-Generated Podcasts Turn your study notes into engaging audio conversations. Learn more

Suno_Khani.pdf

Loading...
Loading...
Loading...
Loading...
Loading...
Loading...
Loading...

Full Transcript

सुनो कहानी उच्‍च प्राथमिक स्‍तर के लिए हिंदी की पूरक पुस्‍तक प्रथम सस्ं ‍करण ISBN 978-93-5007-315-5 जनू 2015 ज्‍येष्‍ठ 1937 सर्व...

सुनो कहानी उच्‍च प्राथमिक स्‍तर के लिए हिंदी की पूरक पुस्‍तक प्रथम सस्ं ‍करण ISBN 978-93-5007-315-5 जनू 2015 ज्‍येष्‍ठ 1937 सर्वािधकार सरु क्षित पुनर्मुद्रण  प्रकाशक की परू ्व अनमु ित के िबना इस प्रकाशन के िकसी भाग को छापना तथा जल इलैक्‍ट्रॉिनकी, मशीनी, फोटोप्रतििलपि, िरकॉिर्डंग अथवा िकसी अन्‍य िवधि से पनु : ु ाई 2019 ‍श्रावण 1941 प्रयोग पद्धति द्वारा उसका सग्रं हण अथवा प्रचारण वर्जित है। जनू 2020 ज्‍येष्‍ठ 1942  इस पस्ु ‍तक की िबक्री इस शर्त के साथ की गई है िक प्रकाशन की परू ्व अनमु ित के िबना यह पस्ु ‍तक अपने मल ू आवरण अथवा िजल्‍द के अलावा िकसी अन्‍य प्रकार से व्‍यापार द्वारा उधारी पर, पनु र्विक्रय या िकराए पर न दी जाएगी, न बेची PD 145T RPS जाएगी।  इस प्रकाशन का सही मल्ू ‍य इस पृष्‍ठ पर मद्ु रित है। रबड़ की महु र अथवा िचपकाई गई पर्ची (िस्‍टकर) या िकसी अन्‍य िवधि द्वारा अिं कत कोई भी संशोिधत मल्ू ‍य © राष्‍ट्रीय शै ि क्षक अनु सं ध ान और प्रशिक्षण गलत है तथा मान्‍य नहीं होगा। परिषद्, 2015 एन. सी. ई. आर. टी. के प्रकाशन प्रभाग के कार्यालय एन.सी.ई.आर.टी. कैं पस श्री अरविंद मार्ग नयी िदल्‍ली 110 016 फ़ोन : 011-26562708 108ए 100 फीट रोड हेली एक्‍सटेंशन, होस्‍डेके रे बनाशकं री III इस्‍टेज बेंगलुरु 560 085 फ़ोन : 080-26725740 नवजीवन ट्रस्‍ट भवन डाकघर नवजीवन अहमदाबाद 380 014 फ़ोन : 079-27541446 सी.डब्‍ल्‍यू.सी. कैं पस िनकट: ध्‍ानकल बस स्‍टॉप पिनहटी कोलकाता 700 114 फ़ोन : 033-25530454 ` 55.00 सी.डब्‍ल्‍यू.सी. कॉम्‍प्‍लैक्‍स मालीगांव गुवाहाटी 781021 फ़ोन : 0361-2676869 प्रकाशन सहयोग अध्यक्ष, प्रकाशन प्रभाग : अनपु कुमार राजपतू मख्ु ‍य संपादक : श्‍वेता उप्‍पल मख्ु ‍य उत्‍पादन अधिकारी : अरूण िचतकारा मख्ु ‍य व्‍यापार प्रबंध्‍ाक (प्रभारी) : ि‍वपिन दिवान 80 जी.एस.एम. पेपर पर मद्ु रित। संपादक : रे खा अग्रवाल प्रकाशन प्रभाग में सचिव, राष्‍ट्रीय शै क्षि क सहायक उत्‍पादन : ?? अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद,् श्री अरविंद मार्ग, अधिकारी नयी िदल्‍ली-110016 द्वारा प्रकाशित तथा ???? अावरण एवं सज्जा-चित्रांकन तापशी घोषाल आमुख राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद् समय-समय पर विद्यार्थियों के लिए पाठ्यपस्ु ‍तकों के साथ-साथ परू क पाठ्यसामग्री/अतिरिक्‍त पाठ्यसामग्री का प्रकाशन करती है। राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा-2005 में कहा गया है कि बच्‍चों की पठन रुचि को विकसित करने के लिए उनके आस-पास पठनसामग्री का विपल ु भडं ार होना चाहिए। उनके सामने चयन के ऐसे विकल्‍प मौजदू हों, जो उन्‍हें स्‍थायी पाठक बनने में मदद करें । इसे ध्‍यान में रखकर उच्‍च प्राथमिक स्‍तर के हिदं ी विद्यार्थियों के लिए सनु ो कहानी को तैयार किया गया है। इस पस्ु ‍तक में देश-विदेश की श्रेष्‍ठ लोक कथाओ ं का सग्रं ह किया गया है। आशा है यह पस्ु ‍तक विद्यार्थियों में पढ़ने की सस्‍कृति ं विकसित करे गी तथा अध्‍यापकों सहित अन्‍य पाठकों को आकृ ष्‍ट करे गी। पस्ु ‍तक के सामग्री-चयन और समीक्षा के लिए आयोजित कार्यशालाओ ं में उपस्‍थित होकर जिन विषय विशेषज्ञों तथा अनभु वी अध्‍यापकों ने अपने बहुमल्ू ‍य सझु ावों द्वारा पस्ु ‍तक को उपयोगी बनाने में सहयोग किया है, परिषद् उनके प्रति आभार व्‍यक्‍त करती है। हम श्री अशोक वाजपेयी, सप्रु सिद्ध लेखक-कवि के भी आभारी हैं जिन्‍होंने पस्ु ‍तक की समग्र रूप से समीक्षा कर पस्ु ‍तक को बेहतर बनाने में सहायता की है। यह पस्ु ‍तक परिषद् के भाषा शिक्षा विभाग के हिदं ी संकाय सदस्‍यों द्वारा किया गया एक सराहनीय प्रयास है। निश्‍चय ही, पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपस्ु ‍तकों का विकास एक नि‍रंतर चलने वाली प्रक्रिया है। अत: पस्ु ‍तक को और उपयोगी बनाने के लिए विद्यार्थियों, अध्‍यापकों और विशेषज्ञों के सझु ावों का स्‍वागत है। निदेशक राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान नयी दिल्‍ली और प्रशिक्षण परिषद् सनु ो कहानी बच्‍चों, अक्‍सर घर में बड़ों से जिन कहानियों को सनु ने की जि़द हम करते हैं, उनके मल ू में कहीं न कहीं लोककथा ही होती है। किस्‍से-कहानियों की दनिय ु ा में बिखरी कथाएँ लोककथा का रूप ले लेती हैं। एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी तक की यात्रा करती लोककथाएँ जब देश और काल के बंधन को भी नहीं मानती तो सिर्फ़ एक कहानी सनु ाने वाले से दसू रे कहानी सनु ाने वाले तक की अनंत यात्रा में रहती हैं। बस थोड़े हेर-फे र के साथ सारी दनियु ा के बच्‍चों को राेमांिचत करती हैं। लोक कथाओ ं का परिवेश जितना असाधारण होता है कल्‍पना की उड़ान उतनी ही ऊँची और सशक्‍त होती है। तमु जानते ही हो कि लोक कथाएँ वाचिक परं‍परा की धरोहर के रूप में सदियों से प्रत्‍येक सभ्‍यता और समाज में विद्यमान रही हैं। ये सहज स्‍वाभाविक लोक कथाएँ लोक संस्‍कृति का अगं हैं और इनका रचना संसार बहुत विस्‍तृत है। इसमें समाज के द:ु ख-सख ु , रिश्‍ते-नाते, हार-जीत समाए रहते हैं। बच्‍चे कहानी के नायकों के द:ु ख में दख ु ी होते हैं, खश ु ी में खश ु होते हैं। उन्‍हें बरु ाई से नफ़रत होती है और भलाई का वे बड़े उत्‍साह से स्‍वागत करते हैं। लोक कथाएँ बच्‍चों के लिए अजीबो-गरीब, रोमांचक घटनाओ ं का विवरण मात्र नहीं होतीं, उनके लिए तो यह एक परू ा संसार होता है जिसमें वे रहते हैं, संघर्ष करते हैं, बरु ाई का अच्‍छाई से मकु ाबला करते हैं। ये लोक कथाएँ किसी काल विशेष या विशेष परिस्‍थितियों में निर्मित नहीं हुर्इं ये तो लोक भाषाओ,ं बोलियों में सदियों से कही-सनु ी जाती रही हैं। इनके पात्रों में, परिवेश में मख्ु ‍य रूप से प्रकृ ति, पश-ु पक्षी, धरती, पहाड़, प्रकृ ति के रहस्‍य, परियों, भतू ों के रूप में, राजा-रानी सरीखे काल्‍पनिक पात्र होते हैं पर मल ू में होते हैं मानव जीवन के संघर्ष और समाज का प्रतिबिंब। मनष्ु ‍य की कहने-सनु ने की चाहत ने लोककथाओ ं को विकसित किया है। लोककथा की दनिय ु ा में आपको सब कुछ मिलेगा—मान्‍यताएँ, रीति- रिवाज़, लोक-व्‍यवहार, मेले-त्‍यौहार, मनोरंजन, अनभु व का बाँटना, शिक्षा, भय, कल्‍पना, इच्‍छा-पर्ति ू , राक्षस-भतू , जाद,ू राजकुमार-राजकुमारी आदि-आदि। सब कुछ जो आप सोच सकते हैं; या नहीं। कुल मिलाकर फंतासी और सच्‍चाई के बीच लोककथा झल ू ा झल ु ाती है। लोककथा की दनिय ु ा बड़ी रोमाचं क है। जहाँ हमारी मल ु ाकात-बोलते जानवर, बोलते पेड़, चलते पहाड़, रूप बदलते इसं ान, इसं ान को चकमा देते पक्षी, दानव से लड़ता मानव, सरू ज-चाँद-सितारों का इसं ान बन बोलना आदि से होती है। लोककथा का विषय साधारण होते हुए भी गंभीर और मज़बतू होता है; और अतं अधिकतर सख ु से भरा। लोककथा को पढ़ते हुए आपका परिचय लोक परिवेश से जड़ी ु कहावतों और भाषा से भी होगा जिसमें मेलोडी, ड्रामा, रहस्‍य, रोमांच, उत्तेज- ना, गदु गदु ी भरपरू मात्रा में मिलेगी। तमु ने महससू किया होगा कि लोक-कथाओ ं की भाषा में एक अनोखी लय होती है जो सीधे पाठक के मन को छू जाती है, साथ ही यह लय होती है– शब्‍दों की, छंदों की, बिम्‍बों की। यह लय होती है– पहाड़ी झरने-सी सहज, स्‍वाभाविक और स्‍वच्‍छंद। देश-विदेश की लोक कथाओ ं की धरोहर से चनु ी कुछ स्‍तरीय और चनि ु ंदा लाेक कथाओ ं को तमु तक पहुचँ ाने और सनु ने-सनु ाने का प्रयास है यह सग्रं ह— सनु ो कहानी। वास्‍तव में यह तम्‍हा ु री ही अमानत है जो एक पीढ़ी दसू री पीढ़ी को सौंपती चली आ रही है...। उम्‍मीद है यह सिलसिला ज़ारी रहेगा... vi पुस्‍तक निर्माण समूह सदस्‍य-समन्‍वयक चद्रा ं सदायत—प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली नरे श कोहली—सहायक प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली प्रमोद कुमार दबु े—सहायक प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली संध्‍या सिंह—प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली सदस्‍य अपरू ्वानंद—प्रोफे ़सर, हिदं ी विभाग, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली अश्‍ाोक वाजपेयी—हिदं ी लेखक, सी-18, अनपु म अपार्टमेंट्स, वसंधु रा एनक्‍लेव, दिल्‍ली अक्षय कुमार—हिदं ी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय, फ़तेहपरु बेरी, दिल्‍ली उषा शर्मा—एसोसिएट प्रोफे ़सर, प्राथमिक शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली प्रेमपाल शर्मा—हिदं ी लेखक, 96, कला विहार, मयरू विहार, फे ़ज़-।, दिल्‍ली माधवी कुमार—परू ्व एसोसिएट प्रोफे ़सर, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली राके श कुमार—उप-प्राचार्य, बी.आर.एस.बी.वी., भोलानाथ नगर, दिल्‍ली रामजन्‍म शर्मा—परू ्व प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली लता पाण्‍डेय—प्रोफे ़सर, प्राथमिक शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली विमल थोराट—प्रोफे ़सर, इदि ं रा गांधी मक्ु ‍त विश्‍वविद्यालय, (इग्‍नू) नयी दिल्‍ली श्‍यामसिहं सश ु ील—हिदं ी लेखक, ए-13, दैनिक जनयगु अपार्टमेंट्स, वसंधु रा एनक्‍लेव, दिल्‍ली संजय कुमार समु न—एसोसिएट प्रोफे ़सर, भाषा शिक्षा विभाग, एन.सी.ई.आर.टी., नयी दिल्‍ली संतोष कुमार पाण्‍डेय—हिदं ी शिक्षक, कें द्रीय विद्यालय, जे.एन.य.ू , नयी दिल्‍ली viii विषय-क्रम आमख ु iii सनु ो कहानी v 1. समय-समय की हवा (राजस्‍थान) 1 2. खटँू े में दाल है (उत्तर प्रदेश) 10 3. कौन बनेगा निंगथउ (राजा) (मणिपरु ) 19 4. भख ू की रजिस्‍ट्री (दक्षिण अफ़्रीका) 25 5. तीन अक्‍लमदं भाई (उज़बेकिस्‍तान) 31 6. तोता और राजा (झारखडं ) 39 7. सबसे बड़ा कौन ? (रूस) 43 8. सबसे भली चपु (गजु रात) 49 9. मरता क्‍या न करता (के रल) 51 10. रोटी और मर्गी ु (नेपाल) 56 11. लोमड़ी और ढेला (छत्तीसगढ़) 63 आभार परिषद् रचनाकारों, उनके परिजनों, संस्‍थानों / प्रकाशकों के प्रति आभारी है जिन्‍होंने उनकी रचनाओ ं को प्रकाशित करने की अनमति ु प्रदान की। पस्ु ‍तक निर्माण सबं ंधी कार्यों में तकनीकी सहयोग के लिए परिषद् डी.टी.पी. ऑपरे टर नरगिस इस्‍लाम, कंप्‍यूटर टाइपिस्‍ट चद्रं कांत और कॉपी एडीटर श्‍यामसिंह सशु ील की अाभारी है। समय-समय की हवा समय की बात–समय के हाथ– िक िकसी समय की गोद में एक सख ु ी-संतोषी गाँव बसा हुआ था। अपने-अपने घर और अपने-अपने दरवाज़े होते हुए भी गाँव की चौपाल एक थी। सभी घरों के बजु ़ुर्ग और नौजवान ब्‍यालू से िनबटते ही अलाव के चारों तरफ़ बैठकर घरे लू बातें करते थे। परु ानी बातों के झपाटे उड़ते थे। हँसने की बात सनु कर हँसते थे, दख ु की बात सनु कर आहें भरते थे। किसी का भी महँु झठू और छल-कपट की वाणी सीखा हुआ नहीं था। सच्‍ची बात कहते थे और सच्‍ची बात सनु ते थे। घर-घर चलू ्‍हे में मदं -मदं आँच तो जलती थी, मगर िकसी भी कोने में आग लगी हुई नहीं थी। बतू े की कामना और बतू े का काम–नीचे धरती और ऊपर राम। मट्ु ठी में समाय इतनी ही ज़रूरतें थीं। पेट के लिए रोटी– पीने के लिए पानी। पहनने को कपड़े– रहने को मकान। सर्ू योदय से पहले ही घर-घर में रोशनी फ़ै ल जाती। उस गाँव के ज़मींदार ने अपनी ज़मीन किसान को खेती के लिए सौंप रखी थी। किसान ने लगान न देने की खातिर बहुत मिन्‍नतें कीं, लेकिन ज़मींदार किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हुआ। किसान ने ज्‍़यादा मगज़मारी की तो ज़मींदार बोला कि उसके पास काफ़ी ज़मीन है। मरने पर साथ तो ले जाने से रहा! जोतो-बोओ-कमाओ और खाओ। किसान ने एक दिन खटपट निबटाने के लिए चौपाल में बात चलाई तो बस्‍ती के सब लोगों ने ज़मींदार की बात ही रखी। संयोग का खेल कि एक दिन ज़मींदारवाली ज़मीन से झाड़ियों की जड़ें निकालते समय िकसान को मोहरों से भरा एक कलश नज़र आया। चारों ओर से उके रने पर एक-एक करके सात कलश हाथ लगे। काम छोड़कर किसान ने तरु ं त बैल जोते। गाड़ी पर सातों कलश रखे और तपती दोपहर में ज़मींदार के घर की तरफ़ चल पड़ा। 2/ सुनो कहानी ज़मींदार ने दरू से ही गाड़ी को आते देखा तो मन-ही-मन किसान पर नाराज़ हुआ। साफ़ इनकार करने के बावजदू लगान की गाड़ी जोतकर लाया तो लाने दो। अच्‍छी तरह खबर लँगू ा। बस्‍ती की बात को टालने की हिम्‍मत हुई तो हुई कै से! लेकिन गाड़ी पर कलश देखकर उसका गसु ्‍सा कुछ ठंडा पड़ गया। मसु कराकर पछू ा, “यह फिर क्‍या नयी मसु ीबत ले आया?” किसान ने भी उसी तरह मसु कराते हुए जवाब दिया, “लगान न लेने की हेकड़ी तो निभ गई, लेकिन अब यह मसु ीबत तो कबल ू करनी ही पड़ेगी।” ढक्‍कन उघाड़ने पर ज़मींदार ने चमचमाती मोहरें देखीं तो आश्‍चर्य से पछू ा, “बाजरे की जगह खेत में मोहरें पैदा हुई हैं क्‍या?” पैदावार की बात करने पर तो फिर वही लगान वाला फंदा फँ सेगा। इसलिए तरु ं त ज़मींदार की बात काटते हुए कहने लगा,“इससे पहले भी किसी के खेत में मोहरें पैदा हुई होंगी? जड़ें निकालते समय यह सात कलश हाथ लगे हैं, सो कबल ू कराे।” ज़मींदार की त्‍योरियाँ चढ़ गर्इं । बोला, “तेरे हाथ लगे हैं तो तू रख, मेरे यहाँ क्‍यूँ लाया?” किसान ने भी कड़ाई से जवाब दिया, “ज़मीन तम्‍हा ु री है, इसलिए लाया। आँखें दिखाने की ज़रूरत नहीं। मझु े काम के लिए देरी हो रही है। शराफ़त से चपु चाप कलश कबल ू करके मेरा फंदा काटो। लगान वाली बात निभ गई सो ही बहुत है।” समय-समय की हवा /3 ज़मींदार आत्‍मीयता के स्‍वर में मीठा उलाहना देते कहने लगा, “देख, तू फिर अन्‍याय की बात कर रहा है। जड़ें निकालते समय कलश तेरे हाथ लगे हैं तो मैं कै से कबलू कर सकता हू!ँ मेरी अक्‍ल तो अभी तक ठिकाने है।” “अगर अक्‍ल ठिकाने होती तो यँू तरु ं त ना नहीं करते। ऐसी अबझू बात तो कोई बच्‍चा भी नहीं करता। जब खेत तम्‍हा ु रे हैं तो कलश भी तम्‍हा ु रे हैं। इसमें ऐसी कलह की बात ही क्‍या है।” ज़मींदार व्‍यंग्‍य करते हुए बाेला, “सारे इलाके की अक्‍ल का तू अके ला ही इज़ारे दार दिखता है। ऐसी बेवकूफ़ी की बात सनु कर बस्‍ती के लोग हँसेंगे, फिर भी पंचायत बैठाने के लिए मेरी ना नहीं है।” किसान ने कुछ तड़पते हुए ज़ोर से कहा, “तम्‍हा ु री ना क्‍यों होगी, मेरी ना है। गरीब के साथ कोई भी न्‍याय नहीं करता। पंचायती के लायक बात हो तो पंचायती भी कराएँ।” ज़मींदार तैश में आकर कहने लगा, “तेरे कहने से क्‍या होता है। कै से पंचायती की बात नहीं है, उस दिन मेरे खेत में तनू े करचा गड़ा था तब मेरा पाँव तो बेकार नहीं हुआ। बता, चौमासे में मेरे खेत पर काम करते समय तझु पर बिजली गिरे तो तू मरे गा या मैं?” 4/ सुनो कहानी “मझु पर बिजली गिरे गी तो मैं ही मरूँ गा!” “खेत मेरा है तब मझु े मरना चाहिए! बता, मेरे खेत में काम करते हुए अगर तझु े साँप काट खाए तो उसका ज़हर मझु े चढ़ेगा या तझु ?े बोल?” “अब इन उलटी-सीधी पहेलियों में मत उलझाओ। तमु पर अच्‍छा-खासा विश्‍वास करके मैं यहाँ आया था। मैं जानता हूँ कि पंचायती होने पर मेरे साथ इसं ाफ़ नहीं होगा।” “तब पचं ायती क्‍यों करवाता है? चपु चाप ये कलश अपने घर ले जा। मैं कहीं भी चर्चा नहीं करूँ गा।” “खबू चर्चा करो, मैं किसी से डरता थोड़े ही हू।ँ उधार लिया हुआ महँु हो तब भी ऐसी बात करते थोड़ी-बहुत शर्म आती है। तम्‍हा ु रा माल मैं कै से घर ले जाऊँ? ये कलश जानें और तमु जानो। मैं तो यहीं गाड़ी छोड़कर खेत जा रहा हू।ँ इतनी देर में तो मैं आधी जड़ें निकाल लेता। खामखाह बहस करना मझु े नहीं पोसाता।” और यह आखिरी बात कहकर वह वहाँ से चल पड़ा। ज़मींदार ने उसे पक ु ारकर कहा, “देख, बेकार जि़द करके मत जा। पछताएगा।” “कोई बात नहीं।” ज़मींदार का गसु ्‍सा समाया नहीं। पर किसान नहीं माना, तब वह कर ही क्‍या सकता था! घड़ी-डेढ़ घड़ी रात ढलने पर वहीं अलाव के पास पंचायत जमी। किसान की बात सनु कर पंचों ने भिड़ते ही उससे सवाल किया, “ये कलश अपने आप उछलकर बाहर आए या तनू े खोदकर निकाले?” “निकाले तो मैंने खोदकर ही। कलश अपने आप उछलकर बाहर कब आते हैं।” समय-समय की हवा /5 पंच मसु कराकर कहने लगे, “तब तो यह न्‍याय तेरे अपने महँु से ही हो गया कि तेरी मेहनत का फल तझु े ही मिलना चाहिए।” लेकिन गँवार किसान तब भी नहीं माना। पंचों के सामने वही हठ करते कहने लगा, “लेकिन ज़मीन तो मेरी नहीं है। दसू रे की ज़मीन में गड़ा धन लेने के लिए मेरा मन नहीं मानता।” पंचों ने कहा, “तेरे मन को मनाना हमारे वश में नहीं है। इसं ाफ़ करना हमारे जि़म्‍मे था, जो हमने निबटा दिया। धरती, पानी और हवा पर किसी का भी हक नहीं होता। अगर तू ऐसा ही हरिश्‍चंद्र है तब दसू रे की ज़मीन पर बहती हवा में तझु े साँस भी नहीं लेना चाहिए।” “आप फरमाएँ तो नहीं लँ?ू ” पंचों ने कहा, “लेकिन हम ऐसी उलटी बात क्‍यों फरमाएँ। हमारा कहना मान, जब तक गाड़नेवाले का पता नहीं चले तब तक यह अमानत तू ही सँभाल।” “यह अमानत मेरे किस काम की? यह तो नींद बेचकर जागरण मोल लेना है। भगवान जाने, किसने क्‍या आस करके ये मोहरें गाड़ी होंगी! या तो दधू का दधू और पानी का पानी करो, वरना मझु े ये कलश राज्‍य के खज़ाने में जमा कराने पड़ेंगे।” पचं ों ने कहा, “हमने तो अपनी समझ के अनसु ार जो इसं ाफ़ करना था सो कर दिया। तू न माने तो तेरी मरज़ी।” तब वह किसान चटकते हुए बोला, “जब इसं ाफ़ का रास्‍ता ही नहीं जानते तो इसं ाफ़ करने के लिए महँु धोते ही क्‍यों हो?” उसके बाद वह जि़द्दी किसान सीधा राजदबार पहुचँ ा। ध्‍यान से सारी बात सनु ने के बाद राजा ने कहा, “जान-माल की रक्षा के लिए मैं राजा बना, तब तेरा माल छीनने का मझु े अधिकार ही क्‍या है। तनू े बेकार ही जतू े घिसे। गाँव के पचं ों ने तेरे साथ बेइसं ाफ़ी नहीं की। तू खशु ी-खशु ी ये कलश अपने घर ले जा। तेरी मेहनत और तेरा ही फ़ल!” राजा के महँु से यह न्‍याय सनु कर किसान का महँु फीका पड़ गया। वह कुछ दसू री आस लेकर यहाँ आया था। धीमें सरु में कहने लगा, “आपका यह आदेश तो 6/ सुनो कहानी मैं हरगिज़ नहीं मानँगू ा। और इन मोहरों का मैं क्‍या करूँ ? बेकार जगह घेरेंगी। आप नाराज़ न हों तो मैं पचं ों के सामने उसी जगह ये सातों कलश वापस गाड़ द?ँू ” उस वक्‍त की गोद में जैसी प्रजा थी, वैसा ही उसका राजा था। होंठों पर मसु क- राहट छितराते कहने लगा, “जैसी तेरी मश ं ा।” आखिर उस किसान की जो मश ं ा थी, वही हुआ। तीसरे दिन सर्ू योदय के वक्‍त बस्‍ती के लोग पास खड़े देखते रहे और उसने अपने हाथों उसी जगह कलश वापस गहरे गाड़ दिए। उसके बाद वक्‍त की ढलान पर, वक्‍त की हवा, निरंतर बिना साँस लिए, बहती ही गई– बहती ही गई। हवा के उन थपेड़ों के आगे न तो वह किसान रहा, न वे बस्‍ती के लोग और न वह राजा। वक्‍त की गोद में नयी पीढ़ी अवतरित हुई–नया राजा और नये ही पचं –नयी पीढ़ी, नया ही खनू । नयी हवा में अभी तक वह परु ानी बात घल ु ी हुई थी। एक दिन ज़मींदार का नौजवान बेटा उस किसान के बेटे के पास जाकर कहने लगा, “मेरे परु खे तो बिलकुल नासमझ थे। लेकिन मैं वैसा नासमझ नहीं हू।ँ ” वह आगे कुछ और कहना चाहता था लेकिन लड़का बीच में बोला तो उसे रुकना पड़ा। किसान का लड़का मसु कराने की चेष्‍टा करते कहने लगा, “आप क्‍यों नासमझ होने लगे? लेकिन मैं तो अभी तक अपने परु खों की तरह वैसा ही नासमझ हू।ँ ” “हाँ, तू नासमझ है, सो मैं जानता हू।ँ तभी मेरे खेत में गड़े हुए कलश तू मझु से बगैर पछू े , छुपाकर रात को घर ले आया।” किसान के बेटे ने मन-ही-मन सोचा कि हज़रत खेत की ज़मीन टटोलकर आए दिखते हैं! समय-समय की हवा /7 वहाँ कलश हों तो मिलें! समु त सझू ी जो सात दिन पहले सारे कलश घर ले आया। नहीं तो आज एक मोहर भी हाथ न लगती। अब दबने से बात बिगड़ जाएगी। िनस्‍संकोच बोला, “क्‍यों, इसमें पछू ने की क्‍या बात है? खेत कोई मफ़ु ्त में नहीं जोतता। तीसरे हिस्‍से का लगान चक ु ाता हू।ँ जड़ें निकालते समय अगर साँप काट खाता तो मेरे बच्‍चे यतीम होते। आपका कुछ भी नहीं बिगड़ता। अपनी मेहनत से खोदा धन अपने घर लाया। इसमें छुपाने की क्‍या बात है?” दोनों में परस्‍पर बहुत दाँताकसी हुई, लेकिन ज़मींदार के लड़के की कुछ दाल नहीं गली। आखिर धमकी देते बोला, “मैं भी देखता हू,ँ मेरे खेत में गड़ा धन तझु े कै से पचता है?” “पचना-वचना क्‍या ठाकुर, वह तो पच गया। दसू रे के माल की आस करने से काम नहीं चलता। अाखिर तो पसीने की कमाई से ही पार पड़ेगा।” लाल-पीली आँखें निकालते वह बस्‍ती के लोगों के सामने चिल्‍लाया। पंचों ने सोचा, एेसी शानदार पंचायती तो मश्‍कि ु ल से ही हाथ लगती है। काफ़ी दिनों तक आँतें और अँगलि ु याँ चिकनी रहेंगी। ज़मींदार के लड़के ने पंचों को घर बलु ाकर काफ़ी खातिर-तवज्‍जह की। किसान के बेटे को पता चला तो उसने भी पचं ों को अपने घर बल ु ाया और उनकी मट्ठिु याँ गरम कीं। पंचों की राय फिर बदल गई। रात को नित पचं ायत जड़ु ती। आधी रात ढलने तक खबू थक ू उछलता। गाँव में दो दल बन गए, आधे पंच खेत के मालिक के साथ और आधे किसान के साथ। सतू उलझा तो उलझा, लेकिन पंचों की मौज में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी। 8/ सुनो कहानी काफ़ी दिनों तक सिर खपाने के बाद पंचों ने लगान के हिस्‍से माफि़क मोहरें बाँटने का फै ़सला दिया। लेकिन किसान का बेटा नहीं माना। उसके पास सरू ज के टुकड़ों की ताकत थी। उसने फिर पचं ों को अपने घर बल ु ाकर शानदार आवभगत की। यकायक ज़मींदार के हिमायती फि़सल गए। बेहाड़ की ज़बान इधर से उधर मड़ु गई। बेचारे ज़मींदार ने खर्च- खाते के बावजदू सब्र किया। वक्‍त की हवा फिर अपनी मस्‍ती में बही-खबू बही। गाछ-बिरछों के अनेक पात झड़े और अनेक कोपलें फूटीं। नये अक ं ु र उगे। अनगिनत नदियों का पानी समद्रु में इकट्ठा हुआ। असंख्‍य सरू ज उदित हुए, चोटी पर चढ़े और अस्‍त हो गए। फिर एक पीढ़ी ठिकाने लगी। नयी पीढ़ी का नया खनू नसों के भीतर उलटी छाती चढ़ने लगा। नयी हवा में अभी तक परु ानी बातें घल ु ी हुइ थीं। ज़मींदार का नौजवान दिलेर पोता नंगी तलवार लेकर किसान के घर पहुचँ ा। किसान का पोता भी ललकार सनु कर हाथ में फरसा लिए बाहर आया। कहा-सनु ी से जब निबटारा नहीं हुआ तो ज़मींदार के पोते के एड़ी से चोटी तक आग लग गई। पजं े के बल उचककर किसान के गले पर भरपरू वार किया। तलवार सपाक-से गले के पार हो गई। कटा मडंु पैरों में आ गिरा। भाभी की चीत्‍कार सनु कर मझला और छोटा भाई बाड़े से दौड़े आए। दोनों के हाथों में दो लबं े तड़े थे। नौजवान ज़मींदार के गले में मझले भाई ने तड़ा फँ साकर ज़ोर से झटका दिया तो उसका गला आधा कटकर लटक गया। खनू की फुहार से सारा बदन सराबोर होने लगा। उस गाँव की धरती पर पहली दफ़ा पसीने की जगह खनू की आकृ ति चित्रित हुई। गाँव के पचं शामिल होकर राजा की शरण में पहुचँ ।े गड़े धन की बात सनु ते ही राजा को गसु ्‍सा आ गया। समय-समय की हवा /9 पंचों ने इतने दिनों तक भेद छिपाकर क्‍यों रखा? गड़ा धन तो राजा का ही होता है। उसके आदेश से पचं ों को इक्‍कीस-इक्‍कीस जतू ों की सजा मिली। तत्‍पश्‍चात् राज्‍य के घड़ु सवारों ने घोड़े दौड़ाए, सो किसान के पचावे में छुपाए हुए कलश तरु ं त सरकारी खज़ाने के हवाले किए। समय-समय की हवा और समय-समय की बयार। उस सख ु ी और सतं ोषी गाँव में जमी हुई चौपाल उठ गई। घर-घर आग की लपटें लपलपाने लगीं। भगवान जाने, वह आग बझु गे ी कि नहीं। समय की बात–समय के हाथ। – विजयदान देथा खूँटे में दाल है उस चिड़िया का नाम धीरा था। वह एक बहुत खश ु दिल और मेहनती गौरै या थी। सवेरे उठकर ही ताल किनारे वाले बड़े मैदान में उतर जाती और शाम तक अपने और अपने बच्‍चों के लिए दाना-टुनका चगु ती रहती। वह हमेशा खश ु ी से चहकती रहती। जब वह थक जाती तो ताल के जल में दो-चार बार डुबकी लगाती और फरफर अपने पखों को फरफराने के बाद फ़ु र्र से उड़कर अपने काम में जटु जाती। पर एक दिन धीरा चिड़िया परे शानी में फँ ़स गई। वह काफी खोजने-तलाशने के बाद चने की दाल का एक दाना बीन कर ले आई थी। दाल का दाना उसे बहुत पसंद था। वह मैदान में गड़े एक खटँू े पर बैठ गई। दाने को प्रेम से खाने के लिए उसने खटँू े पर रख दिया। खटँू ा बहुत ही दष्‍ट ु और ईर्ष्यालु था। उससे चिड़िया का सख ु देखा नहीं गया। उसने अपनी दरार चौड़ी कर दी और दाल का दाना अदं र हड़प लिया। धीरा चिड़िया बहुत परे शान हुई। उसने दाल निकालने की बड़ी कोशिश की पर दाल का दाना वह नहीं निकाल पाई। वह इधर फुदकी, उधर फुदकी, पर उसकी कोशिश बेकार गई। अतं में खटँू े से उसने कहा, खटँू ा, खटँू ा, दाल निकालो, खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? खूँटे में दाल है /11 खटँू े ने उसे झिड़क दिया, ‘जाओ, जाओ, दाल-वाल नहीं मिलेगी।’ धीरा चिड़िया के नन्‍हे दिल को इससे बहुत चोट पहुचँ ी। वह खदु अपनी मेहनत से दाल बीनकर ले आई थी। वह उसकी पसीने की कमाई है। वह तो अपना हक माँग रही है। नहीं, वह अपना हक नहीं छोड़ेगी। वह उड़कर बढ़ई के पास पहुचँ ी। बढ़ई से उसने प्रार्थना की– बढ़ई, बढ़ई, खटँू ा चीरो खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? बढ़ई ने उसे घरू कर देखा। ऐसे छोटे लोगों के लिए वह खटँू ा चीरे ? उसने कहा, ‘जाओ, जाओ, अपना रास्‍ता नापो। हम खटँू ा-वँटू ा नहीं चीरते।’ इसके बाद धीरा गौरै या राजा के पास गई। उसने राजा से निवेदन किया– राजा, राजा, बढ़ई दडं ो, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? राजा ने उसको डाँट कर भगा दिया। इस नाचीज़ चिड़िया के लिए वह बढ़ई को क्‍यों दडं दे? धीरा इसके बाद रानी के पास गई। उसने रानी से कहा– 12/ सुनो कहानी रानी, रानी, राजा छोड़ो, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? रानी ने कहा, ‘तम्‍हा ु रे लिए मैं राजा को छोड़ द?ँू जाओ-जाओ...।’ चिड़िया ने इसके बाद साँप के पास जाकर कहा– साँप, साँप, रानी डसो, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? साँप इसके लिए तैयार न हुआ तो वह लाठी के पास गई और उसने कहा– लाठी, लाठी, साँप मारो, साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, खूँटे में दाल है /13 क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ क्‍या ले परदेश जाऊँ? लाठी ने भी उसका काम नहीं किया। पर उसने हिम्‍मत नहीं हारी। वह उड़कर आग के पास पहुचँ ी। आग से वह बोली– आग, आग, लाठी जारो, लाठी न साँप मारे , साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? आग भी धीरा चिड़िया के लिए लाठी जलाने को तैयार नहीं हुई। तब चिड़िया समद्रु के पास जाकर बोली : समद्रु , समद्रु , आग बझु ाओ, आग न लाठी जारे , लाठी न साँप मारे , साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, 14/ सुनो कहानी क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ क्‍या ले परदेश जाऊँ? समद्रु ने भी उसका कहना नहीं माना। तब उसने हाथी के पास जाकर कहा– हाथी, हाथी, समद्रु सोखो, समद्रु न आग बझु ाए, आग न लाठी जारे , लाठी न साँप मारे , साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? हाथी ने भी समद्रु का पानी सोखने से इक ं ार कर दिया। तब चिड़िया जाल के पास गई और बोली– जाल, जाल, हाथी छानो, हाथी न समद्रु सोखे, समद्रु न आग बझु ाए, आग न लाठी जारे , लाठी न साँप मारे , साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, खूँटे में दाल है /15 राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ, क्‍या ले परदेश जाऊँ? जाल भी हाथी के पैर छानने के लिए उसके साथ नहीं गया। चिड़िया बेहद थक गई थी। पर वह अपने हक की लड़ाई छोड़ने वाली नहीं थी। वह चहू े के पास गई। चहू े से उसने कहा– चहू ा, चहू ा, जाल कुतरो, जाल न हाथी छाने, हाथी न समद्रु सोखे, समद्रु न आग बझु ाए, आग न लाठी जारे , लाठी न साँप मारे , साँप न रानी डसे, रानी न राजा छोड़े, राजा न बढ़ई दडं े, बढ़ई न खटँू ा चीरे , खटँू े में दाल है, क्‍या खाऊँ, क्‍या पीऊँ क्‍या ले परदेश जाऊँ? चहू ा उसकी बात सनु कर अचभं े में आ गया। कितने शक्‍तिशाली लोगों के पास यह चिड़िया गई, पर किसी ने उसकी फ़रियाद नहीं सनु ी। उसकी मदद नहीं की। 16/ सुनो कहानी वह खदु एक छोटा व साधारण जीव था–उसे चिड़िया से सहानभु ति ू हुई। साधारण लोग ही साधारण लोगों की मदद कर सकते हैं, शक्‍तिशाली लोग तो अपने घमडं में चरू रहते हैं। चहू े ने कहा, ‘चलो मैं तम्‍हा ु रा साथ दगँू ा।’ चहू ा चिड़िया के साथ जाल कुतरने के लिए चल पड़ा। चहू े को आते देखकर जाल बेहद डर गया। उसने गिड़गिड़ाकर कहा– हमको कुतरे -वतु रे मति कोई, हम हाथी छानेंगे, लोई। जाल चल पड़ा हाथी के पैर छानने। जाल को देखकर हाथी की घिग्‍घी बँध गई। किसी तरह से उसके महँु से आवाज़ निकली– हमको छाने-वाने मति कोई, हम समद्रु सोखेंगे, लोई। हाथी चिड़िया के साथ समद्रु को सोखने के लिए चल पड़ा। हाथी को देखकर समद्रु काँपने लगा। विनती करते हुए बोला– हमको सोखे-वोखे मति कोई, हम आग बझु ाएँगे, लोई! समद्रु हहरा कर आग बझु ाने चल पड़ा। समद्रु को देखकर आग बेहद डरी। उसने समद्रु से प्रार्थना की– हमको बझु ाए- बझु ाए मति कोई, हम लाठी जारें गे, लोई! खूँटे में दाल है /17 अाग चल पड़ी लाठी को जलाने। आग को अपनी ओर आते देखकर लाठी गिड़- ‍गिड़ाने लगी – हमें जारे -वारे मति कोई, हम साँप मारे गे, लोई! अब चिड़िया के साथ लाठी साँप को मारने चली। साँप सब कुछ समझ गया। उसने दरू से ही चि- ल्‍लाकर कहा– हमें मारे -वारे मति कोई, हम रानी डसेंगे, लोई! साँप रानी को डसने चल पड़ा। रानी साँप को देखकर बेहद डरी। उसने साँप से प्रार्थना की– हमको डसे-वसे मति कोई, हम राजा छोड़ेंगे, लोई! राजा को छोड़ने के लिए रानी तैयार हो गई। यह सचू ना देने के लिए वह चिड़िया के साथ राजा के पास पहुचँ ी। राजा रानी का फ़ै सला सनु कर काँप गया। उसने रानी से कहा– हमको छोड़े-वोड़े मति कोई, हम बढ़ई दडं ेंगे, लोई! राजा बढ़ई के पास गया। राजा के गसु ्‍से भरे चेहरे को देखकर बढ़ई थर-थर काँपने लगा। हाथ जोड़कर बोला– हमको दडं े-वंडे मति कोई, हम खटँू ा चीरें गे, लोई! 18/ सुनो कहानी बढ़ई आरी लेकर चिड़िया के साथ खटँू े के पास आया तो खटँू े के होश ठिकाने आ गए। उसने बढ़ई से कहा– हमको चीरे -वीरे मति कोई, हम दाल निकालेंगे, लोई! इसके बाद खटँू े ने दरार चौड़ा करके दाल का दाना बाहर निकाल दिया। दाल के दाने को पाकर चिड़िया प्रसन्‍न होकर नाचने लगी। अपने हक के लिए वह खड़ी थी और उसकी कोशिश सफ़ल हुई थी। उसके बाद वह दाल के दाने को अपनी चोंच में लेकर फुर्र से अपने घोंसले की अोर उड़ गई! – अमरकांत कौन बनेगा निंगथउ (राजा) बहुत-बहुत पहले की बात है। मणिपरु के कांगलइपाक (राज्‍य) में एक निंगथउ और एक लेइमा, (राजा और रानी) रहते थे। सब उन्‍हें बहुत प्‍यार करते थे। निंगथउ और लेइमा अपने मीयम (प्रजा) का बड़ा खयाल रखते थे। ‘हमारे मीयम सख ु ी रहें,’ वे कहते, ‘कांगलइपाक में शांति हो।’ वहाँ के पश-ु पक्षी भी अपने राजा-रानी को बहुत चाहते थे। निंगथउ और लेइमा हमेशा कहते – “कांगलइपाक में सभी को खश ु रहना चाहिए। सिर्फ़ मनष्‍य ु ों को ही नहीं, पक्षियों, जानवरों और पेड़-पौधों को भी।” निंगथउ और लेइमा के बच्‍चे नहीं थे। लोगों की एक ही प्रार्थना थी – ‘हमारे निंगथउ और लेइमा का एक पत्रु हो। हमें अपना तंगु ी निंगथउ मिल जाए, हमारा यवु राज।’ फिर एक दिन, लेइमा ने एक पत्रु , एक मौचानीपा, को जन्‍म दिया। लोग बहुत खश ु थे। सब अपने यवु राज को देखने आए। बच्‍चे का सिर चमू कर उन्‍होंने कहा– “कितना सदंु र बेटा है, कितना सदंु र बेटा है।” राज्‍य में धमू मच गई। लोग ढोलों की ताल पर नाच उठे , बाँसरु ी पर मीठी धनु ें छे ड़ीं। उस वक्‍त उन्‍हें पता नहीं था कि अगले साल भी उसी तरह जश्‍न मनाया जाएगा। और उसके अगले साल फिर। हाँ, िनगं थउ और लेइमा का एक और बेटा हुआ। फिर एक और। अब उनके प्रिय राजा-रानी के तीन बेटे थे– सानाजाउबा, सानायाइमा और सानातोंबा। 20/ सुनो कहानी बारह साल बाद, उनकी एक पत्री ु हुई। उसका नाम सानातोंबि रखा गया। बड़ी प्‍यारी थी वह, कोमल दिल वाली। सभी उसे बहुत चाहते थे। कई साल बीत गए। बच्‍चे जवान हुए। एक दिन निंगथउ ने मत्ं रियों को बल ु ाकर कहा–“अब वक्‍त आ गया है। हमें घोषणा करनी होगी कि कौन तम्‍हा ु रा यवु राज बनेगा, तम्‍हा ु रा तंगु ी निंगथउ।” “इतनी जल्‍दी क्‍यों?” आश्‍चर्य से मत्ं रियों ने एक-दसू रे से पछ ू ा। पर जब उन्‍होंने करीब से निंगथउ को देखा, उन्‍हें भी लगा कि हाँ, वे सचमचु बढ़ेू हो चक ु े थे। यह देखकर वे दख ु ी हो गए। “अब मझु े तम्‍हाु रा यवु राज चनु ना ही है ”, निंगथउ ने कहा। मत्री ं हक्‍के -बक्‍के रह गए—“पर हे निंगथउ, चनु ाव की क्‍या ज़रूरत है? आपका सबसे बड़ा पत्रु , सानाजाउबा ही तो राजा बनेगा।” निंगथउ ने जवाब दिया, “परु ाने ज़माने में ऐसा होता था। सबसे बड़ा बेटा ही हमेशा राजा बनता था। लेकिन अब समय बदल गया है। इसलिए हमें उसे चनु ना है जो राजा बनने के लिए सबसे योग्‍य है।” “चलो, राजा चनु ने के लिए एक प्रतियोगिता रखते हैं ”, लेइमा ने कहा। और तब कांगलइपाक में एक मक ु ाबला रखा गया, एक घड़ु दौड़। जो भी उस खोगनंग तक, बरगद के पेड़ तक, सबसे पहले पहुचँ गे ा, यवु राज उसे ही बनाया जाएगा। कौन बनेगा िनंगथउ (राजा) /21 लेकिन एक अजीब बात हुई। सानाजाउबा, सानायाइमा और सानातोंबा– तीनों ने दौड़ एक साथ खत्‍म की। कौन जीता, कौन हारा, कहना मश्‍कि ु ल था। “देखो, देखो!” लोगों में शोर मच गया, “कितने अच्‍छे घड़ु सवार!” मगर सवाल वहीं का वहीं रहा–तंगु ी निंगथउ कौन बनेगा? निंगथउ और लेइमा ने अपने बेटों को बल ु ाया। निंगथउ ने कहा– “सानाजाउबा, सानायाइमा, सानातोंबा, तमु ने यह साबित कर दिया कि तमु तीनों ही अच्‍छे घड़ु सवार हो। अब अपने-अपने तरीके से कुछ करो ताकि हम तमु में से यवु राज चनु सकें ।” लड़कों ने राजा, रानी तथा लोगों को प्रणाम किया और अपने घोड़ों के पास चले गए। एक-दसू रे को देखकर वे मसु कराए। मगर मन-ही-मन तीनों यही सोच रहे थे कि क्‍या खास किया जाए। अचानक, हाथ में बरछा लिए, सानाजाउबा अपने घोड़े पर सवार हो गया। उसने चारों तरफ़ देखा। लोगों में सन्‍नाटा-सा छा गया। ‘सानाजाउबा, सबसे बड़ा राजकुमार, अब क्‍या कर दिखाएगा?’ उन्‍होंने सोचा। 22/ सुनो कहानी सानाजाउबा ने दरू खड़े शानदार खोंगनंग को ध्‍यान से देखा। उसने घोड़े काे एड़ लगाई और घोड़ा झट से दौड़ पड़ा। वह तेज़, और तेज़, पेड़ की ओर बढ़ा। “शाबाश! शाबाश!” सब चिल्‍लाए, “थाउरो! थाउरो!” और फिर एकदम शांत हो गए। सानाजाउबा धड़धड़ाता हुआ खोंगनंग के पास पहुचँ ा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वह पेड़ को भेदकर घोड़े समेत उसके अदं र से निकल गया। “थाउरो! थाउरो!” लोग फिर चिल्‍लाए। अब दसू रे राजकुमार, सानायाइमा, की बारी थी। वह भला क्‍या करे गा? सानायाइमा ने भी खोंगनंग को गौर से देखा। फिर उसने भी घोड़ा दौड़ाया, बहुत तेज़। साँस थामे सब चपु चाप देख रहे थे। पेड़ के नज़दीक आकर उसने घोड़े को कूदने के लिए एड़ लगाई। दोनों ऊपर कूदे, इतने ऊँचे कि एक अद् भतु छलाँग में वे उस विशाल वृक्ष को पार कर दसू री ओर पहुचँ गए। देखने वाले दगं रह गए। “कमाल है! कमाल है!” वे चिल्‍लाए। और अब बारी थी छोटे राजकुमार, सानातोंबा की। उसने भी खोंगनंग की ओर घोड़ा दौड़ाया, और पलक झपकते ही उसे जड़ से उखाड़ डाला। बड़ी शान से फिर उसने पेड़ को उठाया और निंगथउ और लेइमा के सामने जाकर रख दिया। बाप रे , कितना हगं ामा मच गया– ‘थाउरो! थाउरो! शाबाश! शाबाश!’ की आवाज़ें पास के पहाड़ों से गँजू उठीं। अब आप ही बताओ तंगु ी निंगथउ किसे बनना चािहए? सानाजाउबा? सानायाइमा? सानातोंबा? पेड़ को भेदकर कूदने वाला? कौन बनेगा िनंगथउ (राजा) /23 पेड़ के ऊपर से छलाँग लगाने वाला? या फिर, पेड़ को उखाड़ने वाला? ज्‍़यादातर लोग सानातोंबा को चाहते थे। क्‍या वह सबसे बलवान नहीं था? उसी ने तो इतने बड़े खोंगनंग को आसानी से उठा लिया था। लोग बेचनै होने लगे। निंगथउ और लेइमा अपना फै ़सला सनु ाने में क्‍यों इतनी देर लगा रहे थे? वे कर क्‍या रहे थे? निंगथउ और लेइमा सानातोंबि को देख रहे थे। पाँच साल की उनकी बेटी उदास और अके ली खड़ी थी। वह ज़मीन पर पड़े खोंगनंग को देख रही थी। पेड़ के आसपास पक्षी फड़फड़ा रहे थे। घबराए हुए, वे अपने घोंसले ढूँढ़ रहे थे। सानातोंबि खोंगनंग के पास गई, “खोंगनंग मर गया ”, वह धीरे से बोली, “उसे बरछे से चोट लगी, और अब वह मर गया।” सन्‍नाटा छा गया। लेइमा ने सानातोंबि के पास जाकर उसे बाँहों से भर लिया। फिर कहा, “निंगथउ वही है जो देखे कि राज्‍य में सब खश ु हैं। निंगथउ वही है जो राज्‍य में किसी को भी नकु सान न पहुचँ ाए।” सब चौकन्‍ने होकर सनु रहे थे। निंगथउ उठ खड़े हुए। उन्‍होंने अपने तीनों बेटों को देखा। फिर बेटी को देखा। उसके बाद अपनी प्रजा से कहा, “अगर कोई शासक बनने योग्‍य है, तो वह है छोटी सानातोंबि। खोंगनंग को चोट लगी तो उसे भी दर्द हुआ। उसी ने हमें याद दिलाया कि खोंगनंग में भी जान है।” “सानातोंबि दसू रों का दर्द समझती है। उसे मनष्‍य ु , पेड़-पौधे, जानवर, पक्षी– सबकी तकलीफ़ महससू होती है।” “मेरे बाद सानातोंबि ही राज्‍य सँभालेगी। मैं उसे कांगलइपाक की अगली लेइमा घोषित करता हू”ँ , निंगथउ ने एलान किया। 24/ सुनो कहानी सभी ने मड़ु कर उस छोटी लड़की, अपनी होने वाली रानी, को देखा। पाँच साल की बच्‍ची यँू खड़ी थी जैसे खदु एक नन्‍हा-सा खोंगनंग हो। उसके चारों तरफ पक्षी फड़फड़ा रहे थे। कुछ उड़कर उसके कंधों पर आ बैठे, कुछ सिर पर। उसने दानों से भरे अपने छोटे हाथ फै लाए और धीरे -धीरे पास आकर पक्षी दाने चगु ने लगे। भूख की रजिस्‍ट्री किसी मरुभमि ू में एक नदी थी। उस नदी में एक मगरमच्‍छ रहता था। लेकिन दख ु के साथ कहना पड़ता है कि जलचर उसे पसदं नहीं करते थे। इसका यह कारण नहीं था कि उसका महँु अस्‍वाभाविक रूप से बड़ा था। जो कुछ भी हो, महँु की बनावट तो बाहरी ढाँचा ठहरा। उसकी कुख्‍याति का कारण उसकी असाधारण ‘भख ू ’ थी। किसी ने ठीक ही कहा है कि जितनी अधिक भख ू बढ़ती जाती है, उतनी ही अधिक लोकप्रियता भी घटती जाती है। प्रेम एवं मित्रता तो तभी तक पनपती है जब तक पेट भरा रहता है। मगर उस मगरमच्‍छ का पेट कभी नहीं भरता था। वह प्रत्‍येक को निगलने के लिए तैयार रहता था। अत: वह सबके बीच कुख्‍यात हो गया था। मछलियों, मेढकों, मनष्‍य ु ों एवं बंदरों को निगलना, मगर अधिक पसंद करता था, यहाँ तक कि वह अपने संबंधियों को भी हज़म करने में नहीं हिचकिचाता था। एक दिन वही मगर रे गिस्‍तानी नदी में भख ू ा और उदास लेटा था। वह उदास इसलिए नहीं था कि वह भख ू ा था, बल्‍कि उसकी भख ू के लिए वहाँ कुछ मिल नहीं रहा था। सबु ह का समय था। अनायास ही उसे नाश्‍ते की याद आ गयी। वह सोचने लगा—‘कितना अच्‍छा होता, यदि मझु े अभी कोई अादमी नाश्‍ते के लिए मिल जाता। और कुछ नहीं तो कम से कम एक बंदर ही मिल जाता।’ इतना सोचते ही उसकी भख ू और भी बढ़ गयी। वहाँ कुछ नहीं आ रहा था। वह उदासी की हँसी हँसते हुए मन ही मन बदु बदु ाने लगा– “साधारण खाना भी नसीब नहीं होता। ‘घरे ल’ू खाना भी क्‍या बरु ा है? लेकिन वह भी तो संभव नहीं। क्‍योंकि परिवार के अधिकांश सदस्‍यों को चट कर चक ु ा हू।ँ शेष गत बाढ़ में बह चक ु े हैं।” 26/ सुनो कहानी वह भख ू से तिलमिला उठा। उसकी आँखें बंद हो गयीं। उसने अपने खाली महँु में अपने पंजों को रख लिया। लेकिन उसके बड़े महँु के लिए उसके पंजे भी छूछे लगने लगे। अत: उसने झपकी लेना उचित समझा। उधर नदी के किनारे एक लंबे खजरू के पेड़ पर एक बंदर आत्‍मविभोर था। वह सोच रहा था कि वह अधिक संदु र कै से बने। वह अत्‍यधिक संदु र पँछू , लंबी बाँहों और छोटे पैरों का होना अधिक पंसद करता था। बीच-बीच में अपने सघन रोंयेदार शरीर में से जओ ु ं का शिकार कर रहा था। उस काम में उसे परिश्रम तो अवश्‍य ही करना पड़ रहा था, लेकिन संतोष एवं तृप्‍ति से वह खश ु था। यकायक उसे नदी के मगर की कर्क श आवाज़ सनु ाई पड़ी—“ऐ बंदर, तमु नीचे आ जाओ। मैं तम्ु ‍हें खाना चाहता हू।ँ ” बंदर बहुत डर गया, लेकिन साहस करके उसने उत्तर दिया—“नहीं, कभी नहीं।” मगर ने थक ू ते हुए कहा—“तो तमु नीचे नहीं उतरोगे? अच्‍छी बात है। मैं यहाँ तब तक तम्‍हा ु री प्रतीक्षा करूँ गा जब तक कि तमु भख ू से बेहाल होकर नीचे नहीं उतरोगे। मैं यह अच्‍छी तरह जानता हूँ कि जीवन ही भख ू है।” बंदर ने कुछ उत्तर नहीं दिया। वह खजरू के पत्तों में अपना महँु छिपाकर रोने लगा। उसे अपने माता- पिता और उस बँदरिया की याद आने लगी जिसके साथ थोड़े दिनों में उसकी शादी होने वाली थी। लेकिन, मगर की धमकी के सामने उसे अपना भविष्‍य अधं कारमय लगने लगा। मरता क्‍या न करता। उसने मगर की ओर एक पका खजरू फें कते हुए कहा—“सनु ते हो, मगर भाई! क्‍या तम्‍हा ु री भी रजिस्‍ट्री हो चक ु ी है?” मगर ने कहा—“कै सी रजिस्‍ट्री और किसकी रजिस्‍ट्री? मैं यह कुछ नहीं जानता। मैं तो तम्ु ‍हें खाना चाहता हूँ और मैं वह करके ही रहूगँ ा।” बंदर ने कहा—“रे गिस्‍तान के सभी अच्‍छे लोगों ने अपनी रजिस्‍ट्री करा ली है। बिना रजिस्‍ट्रेशन के किसी का कुछ अस्‍तित्‍व नहीं।” बंदर की सलाह ने मगर के दिमाग में ‘अस्‍तित्‍व’ की बात जमा दी क्‍योंकि मगरों के पास बड़ा दिमाग होता नहीं। हो भी कै से? जितना महँु बड़ा होता है, दिमाग भी उतना ही छोटा होता है। अत: मगर की विचार-शक्‍ति समाप्‍त हो गयी और वह बोला—“अच्‍छा, मैं अपनी रजिस्‍ट्री करा लँगू ा, लेकिन यह तो बताओ कि रजिस्‍ट्री कहाँ होती है?” भूख की रजिस्‍ट्री /27 बंदर ने खशु होकर कहा—“रे गिस्‍तान रजिस्‍ट्रेशन आफिस में तम्ु ‍हें जाना पड़ेगा।” मगर ने कहा— “खैर, मैं वहाँ चला जाऊँगा, बशर्ते कि तमु मेरा यहीं इतं ज़ार करते रहो।” बं‍दर ने उछलते हुए कहा—“क्‍यों नहीं! मैं तो तम्‍हा ु री प्रतीक्षा में रहूगँ ा ही, क्‍योंकि मझु े तम्‍हा ु री रजिस्‍ट्री का शभु समाचार सनु ना है।” प्रतीक्षा एवं आशा ने मगर के भख ू े शरीर में इतनी शक्‍ति ला दी कि वह तेज़ी से बालू पर रें गता हुआ एक ऐसे स्‍थान पर जा पहुचँ ा, जहाँ मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था—“रे गिस्‍तान रजिस्‍ट्रेशन आफिस”। दफ़्तर के द्वार पर पहुचँ ते ही मगर ने देखा कि आगंतक ु ों की अगवानी में एक गैंडा खड़ा है। वह सहानभु ति ू पर्वू क मगर को अदं र ले गया, जहाँ दफ़्तर के काम- काज में ऊँट, गीध और बघेरा व्‍यस्‍त थे। काननू ी कार्र वाई रे गिस्‍तानी विशेषज्ञ ऊँट द्वारा की जा रही थी। वह अपनी लंबी गर्दन ऊँची करके बैठा था। उसकी गर्दन में सार्वजिनक ख्‍याति का एक तमगा भी लटक रहा था। गीध सहायक की हैसियत से ऊँट की सहायता में तत्‍पर था। उसका सिर गजं ा था। बघेरा वहाँ एक मेज़ पर बैठकर रजिस्‍ट्रेशन का काम निपटा रहा था। मगर ने ज्‍यों ही वहाँ बैठे हुए लोगों को देखा तो उसके महँु में पानी भर आया, क्‍योंकि वहाँ पर जितने भी बैठे थे वे सभी उसके प्रिय खाद्य पदार्थ थे। भख ू के मारे उसका महँु चटपटाने लगा। बघेरे ने मगर को डाँटते हुए कहा—“दाँत खटखटाना बंद करो। क्‍या बदतमीज़ी है?” 28/ सुनो कहानी मगर को क्रोध अवश्‍य आया, लेकिन वह चपु चाप बैठा रहा, क्‍योंकि उसे अपना रजिस्‍ट्रेशन जो करवाना था। ऊँट ने मगर से पछू ा —“तम्ु ‍हें क्‍या चाहिए?” “मैं अपनी रजिस्‍ट्री कराना चाहता हू।ँ ” “किस चीज की रजिस्‍ट्री?” “अपनी भख ू की रजिस्‍ट्री।” “कै सी मर्ख ू ता की बात करते हो?” बघेरे ने धीरे से कहा—“भख ू तो सबके पास होती है। इसमें क्‍या विशेषता हुई?” मगर ने लजाकर कहा—“तो फिर मेरे बड़े महँु की ही सही।?

Use Quizgecko on...
Browser
Browser