Political Science Sem 2 by Ashish Sir (PDF)

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WellManneredHeliotrope6208

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A S College Deoghar, Jharkhand

Ashish Sir

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political philosophy locke's theory natural rights political science

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These notes explain John Locke's theory of natural rights, particularly focusing on the right to life, liberty, and property. The document argues that these rights are inherent and precede the formation of government. It discusses the concept of natural law and how it shapes individual rights.

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लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का सिद्िान्ि लॉक का राजदर्शन के इतिहास को सबसे बड़ी दे न उसके प्राकृतिक अधिकार विर्ेषकर सम्पवि का अधिकार है। यह िारणा लॉक के राजऩीतिक दर्शन का सार है। लॉक के सभ़ी ससद्िान्ि ककस़ी न ककस़ी रूप में लॉक के प्राकृति...

लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का सिद्िान्ि लॉक का राजदर्शन के इतिहास को सबसे बड़ी दे न उसके प्राकृतिक अधिकार विर्ेषकर सम्पवि का अधिकार है। यह िारणा लॉक के राजऩीतिक दर्शन का सार है। लॉक के सभ़ी ससद्िान्ि ककस़ी न ककस़ी रूप में लॉक के प्राकृतिक अधिकारों के ससद्िान्ि से जुडे हुए हैं। लॉक के अनुसार मनुष्य एक वििेकऱ्ील, नैतिक िथा सामाजजक प्राण़ी है। इस कारण सभ़ी मनुष्य अपने साथ़ी ि समत्रों के साथ सुख-र्ाजन्ि और सौहादशपूणश भाि से रहिे हैं। लॉक ने एक ऐस़ी अिस्था की कल्पना की है जजसमें सभ़ी व्यजति र्ाांतिमय िरीके से राज्य के बबना ही रहिे हैं। लॉक इसे प्राकृतिक अिस्था कहिा था, लॉक ने इस अिस्था को सद्भािना, पारस्पररक सहयोग, सांरक्षण और र्ाजन्ि की व्याख्या बिाया है। लॉक की यह अिस्था राजऩीतिक समाज से पूिश की अिस्था है। इसमें मानि वििेक कायश करिा है। मनुष्यों को ईश्िर ने वििेक प्रदान ककया है। अि: प्रकृति के कानून के अनुसार काम करना सभ़ी का स्िाभाविक किशव्य है। इन प्राकृतिक कानूनों द्िारा ही व्यजति को प्राकृतिक अधिकार प्राप्ि होिे हैं। आिुतनक युग में सािारणिया यह माना जािा है कक व्यजति को अधिकार समाज और राज्य से प्राप्ि होिे हैं। इसके विपरीि लॉक की मान्यिा है कक व्यजति के कुछ ऐसे अधिकार हैं जो कक उसके पैदायऱ्ी अधिकार हैं। ये अधिकार अलांघ्य होिे हैं। राज्य बनने से पहले भ़ी व्यजति को प्राकृतिक अिस्था में प्राकृतिक तनयमों के िहि अधिकार प्राप्ि थे। प्राकृतिक अिस्था में रहने िाले लोगों ने इन अधिकारों को अधिक प्रभािर्ाली, सरु क्षक्षि और इनके प्रयोग में आने िाली बािाओां को दरू करने के सलए राज्य बनाया। लॉक राज्य से पहले भ़ी प्राकृतिक अिस्था में सांगठिि समाज का अजस्ित्ि स्ि़ीकारिा है। लॉक का मानना है कक प्राकृतिक अिस्था में इस सांगठिि समाज के प़ीछे प्राकृतिक कानन ू का ससद्िान्ि था जो स्ियां वििेक पर आिाररि था। प्राकृतिक कानून और अधिकार ईश्िर द्िारा बनाई गई नैतिक व्यिस्थाएँ हैं। लॉक ने ज़ीिन, स्ििन्त्रिा और सम्पवि के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना है। यद्यवप 17 ि़ीां र्िाब्दी के अन्ि िक प्राकृतिक अधिकारों का अथश ज़ीिन, व्यजतिगि स्ििन्त्रिा और सम्पवि के अजशन को माना जाने लगा था पर उन्हें प्राकृतिक मान िाककशक आिार लॉक ने ही प्रदान ककया। लॉक ने प्राकृतिक अधिकारों के बारे में कहा है- “अधिकार मनुष्य में प्राकृतिक रूप से जन्मजाि होिे हैं और यही अधिकार ‘प्राकृतिक’ हैं। ये अधिकार अपररििशनऱ्ील ि स्िाभाविक होिे हैं। ये अधिकार समाज की दे न हैं और उनका कियान्ियन सभ्य समाज के माध्यम से ही होिा है। इनका जन्म मनुष्य की बुद्धि ि आिश्यकिा के कारण होिा है िथा िे सामाजजक अधिकार कहलािे हैं। लॉक के अनुसार हर व्यजति के पास कुछ प्राकृतिक, कभ़ी न छोडे जाने िाले, मूलभूि अधिकार होिे हैं, जजन्हें कोई छू नहीां सकिा, चाहे िह राज्य हो या समाज या कोई अन्य व्यजति। ये प्राकृतिक अधिकार हर सामाजजक, प्राकृतिक, कानूऩी िथा राजऩीतिक व्यिस्था में सिशमान्य होंगे। लॉक ने कहा कक ज़ीिन, स्ििन्त्रिा िथा सम्पवि के अधिकार जन्मससद्ि और स्िाभाविक होने के कारण समाज की सजृ ष्ि नहीां हैं। मनुष्य इन अधिकारों की रक्षा के सलए नागररक समाज या राज्य का तनमाशण करिे हैं। मनुष्य प्राकृतिक अिस्था में भ़ी स्िभाि से प्राकृतिक कानन ू का पालन करिे हैं। ये ि़ीन अधिकार हैं : 1. जीवन का अधिकार : मनुष्य को ज़ीिन का अधिकार प्राकृतिक कानून से प्राप्ि होिा है। लॉक की िारणा है कक आत्मरक्षा व्यजति की सिोिम प्रिवृ ि है और प्रत्येक व्यजति अपने ज़ीिन को सरु क्षक्षि रखने का तनरां िर प्रयास करिा है। आत्मरक्षा को हॉब्स मानि की सिोिम प्रेरणा मानिा है, उस़ी प्रकार लॉक का मानना है कक ज़ीिन का अधिकार जन्मससद्ि अधिकार है और प्राकृतिक कानन ू ों के अनुसार उनका विर्ेषाधिकार है। व्यजति न िो अपने ज़ीिन का स्ियां अन्ि कर सकिा है और न ही िह अन्य ककस़ी व्यजति को इसकी अनुमति दे सकिा है। 2. स्विन्रिा का अधिकार : लॉक के अनुसार तयोंकक सभ़ी मनुष्य एक ही सजृ ष्ि की कृति हैं, इससलए िे सब समान और स्ििन्त्र हैं। यह स्ििन्त्रिा प्राकृतिक कानून की स़ीमाओां के अन्िगशि होि़ी है। स्िाि़ीनिा के अथश प्राकृतिक कानून जो मनुष्य की स्ििन्त्रिा का सािन होिा है के अतिरति सभ़ी बन्िनों से मुजति होि़ी है। “इस कानून के अनुसार िह ककस़ी अन्य व्यजति के अि़ीन नहीां होिे िथा स्ििन्त्रिापूिशक स्िेच्छा से कायश करिे हैं।” व्यजति की यह स्ििन्त्रिा प्राकृतिक कानून की स़ीमाओां के अन्दर होि़ी है। अि: मनमाऩी स्ििन्त्रिा नहीां है। मानि सुख़ी और र्ान्ि ज़ीिन व्यि़ीि करिे थे तयोंकक सभ़ी स्ििन्त्र और समान थे। िे एक-दस ू रे को हातन नहीां पहुँचािे थे। इससलए प्रत्येक स्ििन्त्रिा का पूणश आनन्द लेिा था। 3. िम्पत्ति का अधिकार : लॉक ने सम्पवि के अधिकार को एक महत्त्िपण ू श अधिकार माना है। लॉक के अनस ु ार सम्पवि की सुरक्षा का विचार ही मनुष्यों को यह प्रेरणा दे िा है कक िे प्राकृतिक दर्ा का त्याग करके समाज की स्थापना करें । लॉक ने सम्पवि के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना है। अपऩी रचना ‘द्त्तविीय तनबन्ि’ में लॉक ने इस अधिकार की व्याख्या की है। लॉक ने इस अधिकार को ज़ीिन िथा स्ििन्त्रिा के अधिकार से भ़ी महत्त्िपूणश माना है। लॉक ने सम्पवि के अधिकार का विस्िार से प्रतिपादन ककया है। सांकुधचि अथश में लॉक ने केिल तनज़ी सम्पवि के अधिकार की ही व्याख्या की है। व्यापक अथश में लॉक ने ज़ीिन िथा स्ििन्त्रिा के अधिकारों को भ़ी सम्पवि के अधिकार में र्ासमल ककया है। सम्पवि पर लॉक के विचार काफी दृढ़ हैं िथा सम्पवि के अधिकार के सलए अक्षुण्िा की भािना से युति है। प्रारम्भ में ईश्िर ने सभ़ी मनुष्यों को विश्ि ठदया। अि: ककस़ी एक िस्िु विर्ेष पर कोई अधिकार नहीां था। यद्यवप भूसम िथा अन्य दीन ज़ीि सभ़ी की सम्पवि थे। कफर भ़ी हर व्यजति को स्ियां भ़ी सम्पवि का अधिकार था। उसके र्रीर का श्रम और उसका फल उसकी अपऩी सम्पवि थ़ी। उसका श्रम भूसम के साथ समलकर उसकी सम्पवि बन जािा था। इस प्रकार श्रम को ककस़ी िस्िु के साथ समलाकर व्यजति उसका स्िाम़ी बन जािा था। लॉक ने अपने इस ससद्िान्ि के विपरीि लॉक श्रम ससद्िान्ि के आिार पर स्िासमत्ि की बाि करिा है। रोमन विधि के अनुसार- “व्यजतिगि सम्पवि का उदय उस समय हुआ जब व्यजतियों ने िस्िुओां पर अनधिकृि कब्जा करना आरम्भ ककया।” लॉक ने उपयुशति िारणा का खण्डन ककया और कहा कक व्यजति का र्रीर ही उसकी एकमात्र सम्पवि है। जब व्यजति अपने र्ारीररक श्रम को प्रकृति प्रदि अन्य िस्िओ ु ां के साथ समला लेिा है िो िह उन िस्िओ ु ां का अधिकारी बन जािा है। सम्पवि ससद्िान्ि के उद्भि के बारे में लॉक ने कहा- “जजस च़ीज को मनुष्य ने अपने र्ारीररक श्रम द्िारा प्राप्ि ककया है, उस पर उसका प्राकृतिक अधिकार है।” लॉक ने आगे कहा है- “िम्पत्ति का अधिकार बहुि पत्तवर है। जीवन, स्विन्रिा और िम्पत्ति उिके प्राकृतिक अधिकार हैं। िमाज न िो िम्पत्ति पर तनयंरण कर िकिा है और न ही कर लगा िकिा है।” लॉक का सम्पवि का अधिकार ससद्िान्ि िास्िि में प्रकृति के कानून पर आिाररि िांर्ानुगि उिराधिकार का ही ससद्िान्ि है। कोई व्यजति ककस़ी िस्िु में अपना श्रम समलाकर ही उसके स्िासमत्ि का अधिकार ग्रहण करिा है। प्रकृति के द्िारा प्रदि ककस़ी िस्िु में अपना श्रम समलाकर ही अपना अधिकार उस पर जिािा है। िांर्ानुगि उिराधिकार का अधिकार प्रकृति के इस कानून से उत्पन्न होिा है कक मनुष्य को अपऩी पत्ऩी और बच्चों के सलए कुछ करना चाठहए। ईश्िर ने मनुष्य को िस्िुओां पर अपना स्िासमत्ि कायम करने के सलए बुद्धि िथा र्रीर प्रदान ककया है। िह श्रम के आिार पर अपऩी व्यजतिगि सम्पवि का सजशन कर सकिा है। प्रो. िेबाइन के अनुसार- “मनुष्य वस्िुओं पर अपनी आन्िररक शक्ति व्यय करके उन्हें अपना हहस्िा बना लेिा है।” लॉक के सलए तनज़ी सम्पवि का आिार एक साांझ़ी िस्िु पर व्यय की हुई श्रम र्जति है। लॉक सम्पवि के दो रूप बिािा है : 1. प्राकृतिक िम्पत्ति 2. तनजी िम्पत्ति प्राकृतिक सम्पवि सभ़ी मानिों की सम्पवि है और उस पर सभ़ी का अधिकार है। प्राकृतिक सािनों के साथ मानि उसमें अपना श्रम समलाकर उसे तनज़ी सम्पवि बना लेिा है। लॉक ने सम्पवि के महत्त्ि को स्पष्ि करिे हुए कहा है कक सम्पवि मानि को स्थान, र्जति और व्यजतित्ि के विकास के सलए अिसर प्रदान करि़ी है। लॉक ने अस़ीम सम्पवि सांधचि करने के अधिकार को उधचि िहराया है। व्यजति को प्रकृति से उिना ग्रहण करने का अधिकार है जजिना नष्ि होने से पहले उसके ज़ीिन के सलए उपयोग़ी हो। मनुष्य को सम्पवि सांधचि करनेका िो अधिकार है, परन्िु उसे बबगाडने, नष्ि करने या दरु ु पयोग करने का अधिकार नहीां है। लॉक ने कहा कक प्रत्येक व्यजति स्िेच्छा से सम्पवि िो एकबत्रि कर सकिा है, परन्िु प्राकृतिक कानून दस ू रे व्यजति के अधिकार क्षेत्र में अतििमणको स्ि़ीकृति नहीां दे सकिा। लॉक का यह भ़ी मानना है कक यठद ककस़ी के पास आिश्यकिा से अधिक सम्पवि हो िो उसे जन सम्पवि मान लेना चाठहए। लॉक ने सम्पवि अजशन में श्रम का महत्त्ि स्पष्ि ककया है। लॉक के अनुिार मनष्ु य का श्रम तनिःिंदेह उिकी अपनी चीज है, और श्रम िम्पत्ति का सिर्फ तनमाफण ही नहीं करिा, बक्कक उिके मूकय को भी तनिाफररि करिा है। यह ससद्िान्ि स्पष्ि करिा है कक ककस़ी िस्िु का मूल्य एिां उपयोधगिा उस पर लगाए गए श्रम के आिार पर ही तनिाशररि हो सकि़ी है। तनजी िम्पत्ति के पक्ष में िकफ लॉक ने तनज़ी सम्पवि को औधचत्यपण ू श ससद्ि करने के पक्ष में िकश ठदए हैं : 1. आरम्भ में भूसम िथा इसके सारे फल प्रकृति द्िारा सारी मानि जाति को ठदये गए थे। 2. मानि को इनका प्रयोग करने से पहले इन्हें अपना बनाना है । 3. हर व्यजति का व्यजतित्ि, उसकी र्ारीररक मेहनि िथा उसके हाथों का कायश उनकी अपऩी सम्पवि है। 4. प्राकृतिक अिस्था में मनुष्य अपऩी-अपऩी मेहनि से जो लेिे हैं, िह उनकी तनज़ी सम्पवि है बर्िे कक िह दस ू रों के सलए काफी छोड दें । 5. सम्पवि पैदा करने के सलए ककस़ी दस ू रे की आज्ञा लेने की जरूरि नहीां है, तयोंकक यह जजन्दा रहने की आिश्यकिा है। इस प्रकार लॉक उपयुशति िकों के आिार पर तनज़ी सम्पवि को न्यायसांगि िहरािे हैं। तनजी िम्पत्ति के अधिकार पर िीमाएँ लॉक तनज़ी सम्पवि के अधिकार पर कुछ स़ीमाएँ या बन्िन लगािे हैं जो हैं : 1. ककिी को िम्पत्ति नष्ट करने का अधिकार नहीं है - लॉक कहिा है कक सम्पवि को एकबत्रि िो ककया जा सकिा है लेककन नष्ि नहीां ककया जा सकिा। सम्पवि को बेचकर मुद्रा के रूप में प्राप्ि कर सकिे हैं। लॉक ने अस़ीसमि मुद्रा को पूांज़ी के रूप में एकत्र ककये जोने पर बल ठदया। अि: लॉक ने तनज़ी सम्पवि को सुरक्षक्षि रखने के सलए इसको नष्ि करने पर रोक लगाई है। लॉक के अनुसार- “मानि को सम्पवि सांधचि करने का अधिकार है, परन्िु उसे बबगाडने, नष्ि करने या दरु ु पयोग करने का अधिकार नहीां है। ू रों के सलए छोड़ दे ना चाहहए - लॉक कहिा है कक जो प्राकृतिक भूसम आठद मनुष्य मेहनि से 2. िम्पत्ति को दि अपऩी तनज़ी सम्पवि बना लेिे हैं, उससे िह दस ू रों के सलए कुछ उत्पादन करिे हैं और यह उत्पादन समाज की सामान्य भूसम आठद की कम़ी को पूरा कर दे िा है। व्यजति सारी प्राकृतिक सम्पवि को तनज़ी सम्पवि में नहीां बदल सकिा। लॉक का कहना है- “प्रत्येक व्यजति को प्रकृति से उिना ग्रहण करने का अधिकार है। जजिना उसके ज़ीिन के सलए उपयोग़ी हो और दस ू रों के सलए भ़ी पयाशप्ि ठहस्सा बचा रहे।” 3. तनजी िम्पत्ति वह है क्जिे व्यक्ति ने अपना श्रम समलाकर अक्जफि ककया है - लॉक का कहना है व्यजति अपने सामथ्र्य अनुसार अपना श्रम समलाकर ककस़ी भ़ी प्राकृतिक िस्िु को अपना सकिा है। व्यजति अपने श्रम का मासलक होिा है िथा श्रम उसकी सम्पवि है। यठद िह अपना श्रम दस ू रे को बेच दे िा है िो िह श्रम दस ू रे व्यजति की सम्पवि बन जािा है। अि: श्रम द्िारा ही ककस़ी िस्िु पर व्यजति के स्िासमत्ि का फैसला तनभशर करिा है। बबना श्रम प्राप्ि सम्पवि तनज़ी सम्पवि नहीां हो सकि़ी। 4. आिश्यकिा से ज्यादा सांधचि सम्पवि जन सम्पवि माऩी जा सकि़ी है। तनजी िम्पत्ति के अधिकार के तनहहिार्फ लॉक के तनज़ी सम्पवि के ससद्िान्ि की कुछ महत्त्िपूणश बािें हैं : 1. तनज़ी सम्पवि र्ारीररक श्रम ि योग्यिा से प्राप्ि होि़ी है। 2. व्यजति का श्रम एक तनज़ी िस्िु है। िह जब चाहे ककस़ी को भ़ी इसे बेच सकिा है िथा दस ू रा इसे खरीद सकिा है। 3. तनज़ी सम्पवि का अधिकार प्राकृतिक है। 4. तनज़ी सम्पवि उत्पादन का आिार है। 5. श्रम को खरीदने िाला श्रम का न्यायसांगि स्िाम़ी बन सकिा है। 6. तनज़ी सम्पवि िय ि वििय योग्य िस्िु है। 7. तनज़ी सम्पवि के अधिकार के बबना मानि ज़ीिन का कोई आकषशण नहीां है। 8. समाज ठहि में तनज़ी सम्पवि के अधिकार पर बन्िन लगाया जा सकिा है। 9. तनज़ी सम्पवि का अधिकार मेहनि को प्रोत्साठहि करिा है। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्िान्ि की आलोचना लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का ससद्िान्ि राजऩीतिक धचन्िन के इतिहास में एक महत्त्िपूणश दे न होिे हुए भ़ी कुछ कसमयों से ग्रससि है। अनेक विचारकों ने इस की आलोचनाएँ की हैं :- 1. लॉक का यह कथन कक अधिकार, राज्य या समाज से पहले उत्पन्न हुए - इतिहास, िकश या सामान्य बुद्धि के विपरीि है। लॉक की दृजष्ि में अधिकारों का स्रोि प्रकृति है। परन्िु अधिकारों का स्रोि समाज होिा है और उसकी रक्षा के सलए राज्य का होना अतनिायश है। 2. लॉक ने सम्पविके अधिकार पर िो विस्िार से सलखा है लेककन ज़ीिन िथा स्ििन्त्रिा के अधिकार पर ज्यादा नहीां कहा। 3. लॉक के प्राकृतिक अधिकारों में परस्पर विरोिाभास है। लॉक एक िरफ िो उन्हें प्राकृतिक मानिा है और दस ू री िरफ श्रम को सम्पवि के अधिकार का आिार मानिा है। यठद प्राकृतिक अधिकार जन्मजाि ि स्िाभाविक हैं िो उसके अजशन की तया जरूरि है। 4. लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का ससद्िान्ि पांज ू ़ीिाद का रक्षक है। श्रम-ससद्िान्ि को पररभावषि करिे हुए लॉक ने कहा है- “जजस घास को मेरे घोडे ने खाया है, मेरे नौकर ने कािा है, और मैंने छीला है; िह मेरी सम्पवि है और उस पर ककस़ी दस ू रे का अधिकार नहीां है।” अि: लॉक का यह ससद्िान्ि पांज ू ़ीिाद का समथशक है। 5. लॉक ने स्ििन्त्रिा पर जोर ठदया है, समानिा पर नहीां। जबकक आिुतनक युग में समानिा के अभाि में स्ििन्त्रिा अिरू ी है। 6. लॉक के अधिकारों का क्षेत्र स़ीसमि है। आिुतनक युग में सर्क्षा, िमश सांस्कृति के अधिकार भ़ी बहुि महत्त्िपूणश अधिकार हैं। 7. लॉक ककस़ी व्यजति के बबना श्रम ककये उिराधिकार द्िारा दूसरे की सम्पवि प्राप्ि करने के तनयम का स्पष्ि उल्लेख नहीां करिा। 8. लॉक आधथशक असमानिा की िो बाि करिा है लेककन उसे दरू करने के उपाय नहीां बिािा। 9. लॉक आिश्यकिा से अधिक सम्पवि सांधचि करने पर सम्पवि को जनठहि में छीनने की बाि िो करिा है लेककन सम्पवि छीनने की प्रकिया पर मौन है। अनेक आलोचनाओां के बािजूद भ़ी लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का ससद्िान्ि राजऩीतिक धचन्िन में उत्कृष्ि दे न है। लॉक का ससद्िान्ि आिुतनक युग में भ़ी महत्त्िपूणश है। इसका महत्त्ि तनम्न आिारों पर स्पष्ि हो जािा है। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्िान्ि का प्रभाव 1. लॉक का यह ससद्िान्ि मौसलक अधिकारों का जनक है। आज के सभ़ी प्रजािन्त्ऱीय दे र्ों में लॉक के इन ससद्िान्िों को अपनाया गया है। अमेररका के सांवििान पर िो लॉक का गहरा प्रभाि है। अमेररकन सांवििान का चौदहिाँ सांर्ोिन घोषणा करिा है कक- “कानून की उधचि प्रकिया के बबना राज्य ककस़ी भ़ी व्यजति को ज़ीिन, स्ििन्त्रिा और सम्पवि से िांधचि नहीां कर सकिा।” 2. इस ससद्िान्ि का सांयुति राष्र सांघ पर भ़ी स्पष्ि प्रभाि है । इसके चािशर में मानि़ीय अधिकारों के महत्त्ि को स्ि़ीकार करिे हुए मानिाधिकारों को र्ासमल ककया गया है। िे अधिकार लॉक की दे न है। 3. इस ससद्िान्ि का कालश मातसश के ‘अतिररति मूल्य के ससद्िान्ि’ पर भ़ी स्पष्ि प्रभाि है। मातसश भ़ी श्रम को ही महत्त्ि दे कर अपने ससद्िान्ि की व्याख्या करिा है। 4. लॉक की सबसे महत्त्िपूणश इस दे न का प्रभाि 18 ि़ीां िथा 19 ि़ीां र्िाब्दी के उदारिादी विचारकों पर भ़ी पडा। अि: तनष्कषश के रूप में कहा जा सकिा है कक अपऩी अनेक आलोचनाओां के बािजद ू भ़ी लॉक का प्राकृतिक अधिकारों का ससद्िान्ि राजऩीतिक धचन्िन के इतिहास में एक बहुि महत्त्िपूणश दे न है। डतनांग ने कहा है- “राजऩीतिक दर्शन को लॉक का सिाशधिक विसर्ष्ि योगदान प्राकृतिक अधिकारों का ससद्िान्ि है।” लॉक ने एडम जस्मथ जैसे अथशर्ाजस्त्रयों पर भ़ी अपऩी असमि छाप छोड़ी है। प्राकृतिक अधिकारों के रूप में लॉक की यह दे न उत्कृष्ि है। लॉक का सामाजिक समझौता ससद्धान्त लॉज के राजनीतिक चिन्िन का सर्ााचिक प्रमुख भाग सामाजजक समझौिा ससद्िान्ि है जजसके द्र्ारा लॉक ने इंगलैण्ड में हुई 1688 की गौरर्पूर्ा क्राजन्ि ;ळसर्िपर्ने त्मअर्सनजपर्दद्ि के औचित्य को ठीक ठहराया है। सामाजजक समझौिा ससद्िान्ि सबसे पहले हॉब्स ने प्रतिपाददि ककया, परन्िु लॉक ने उसे उदारर्ादी आिार प्रदान करने में एक महत्त्र्पूर्ा भूसमका तनभाई। लॉक भी हॉब्स के इस वर्िार से सहमि था कक राज्य की उत्पवि समझौिे का पररर्ाम है, दै र्ी इच्छा की नहीं। लॉक के इस ससद्िान्ि का वर्र्रर् उसकी प्रमुख पुस्िक ‘शासन पर दो ननबन्ध’ में समलिा है। लॉक ने इसमें सलखा है कक “परमात्मा ने मनुष्य को एक ऐसा प्राणी बनाया कक उसके अपने ननणणय में ही मनुष्य को अकेला रखना उचित नहीीं था। अत: उसने इसे सामाजिक बनाने के सलए आवश्यकता, स्वेच्छा और सुववधा के मिबूत बन्धनों में आबद्ध कर ददया तथा समाि में रहने और उसका उपभोग करने के सलए इसे भाषा प्रदान की।” जॉन लॉक के अनुसार मनुष्य एक सामाजजक, शाजन्िवप्रय प्रार्ी है। प्राकृतिक अर्स्था में मनुष्य समान और स्र्िन्रिा का जीर्न व्यिीि करिा था। मनष्ु य स्र्भार् से स्र्ाथी नहीं था और एक शान्ि और सम्पन्न जीर्न जीना िाहिा था। अि: प्राकृतिक अर्स्था शाजन्ि, सम्पन्निा, सहयोग, समानिा िथा स्र्िन्रिा की अर्स्था थी। प्राकृतिक अर्स्था में पर् ू ा रूप से भ्राित्ृ र् और न्याय की भार्ना का साम्राज्य था। प्राकृतिक अर्स्था को शाससि करने के सलए प्राकृतिक कानून था। प्राकृतिक कानून पर शाजन्ि एर्ं व्यर्स्था आिाररि होिी थी जजसे मनुष्य अपने वर्र्ेक द्र्ारा समझने में समथा था। प्राकृतिक अर्स्था में प्रत्येक मनष्ु य को ऐसे अचिकार प्राप्ि थे जजसे कोई र्ंचिि नहीं कर सकिा था। लॉक ने इन िीनों अचिकारों को मानर्ीय वर्र्ेक का पररर्ाम कहा है। ये िीन अचिकार - जीर्न, स्र्िन्रिा िथा सम्पवि के अचिकार हैं। लॉक ने कहा कक प्राकृतिक अर्स्था की कुछ कसमयााँ थीं, इससलए उन कसमयों को दरू करने के सलए समझौिा ककया गया। 1. प्राकृतिक अर्स्था में तनयम स्पष्टिा का अभार् था। उसमें कोई ऐसी तनजचिि, प्रकट एर्ं सर्ासम्मि वर्चि नहीं थी, जजसके द्र्ारा उचिि-अनुचिि का तनर्ाय हो सके। इस अर्स्था में सलखखि कानून के अभार् में सदै र् कानून की गलि व्याख्या की जािी थी। प्राकृतिक कानून का शजतिशाली व्यजति अपने वर्र्ेक के आिार पर स्र्ाथा-ससद्चि के सलए प्रयोग करिे थे। 2. इस अर्स्था में तनष्पक्ष एर्ं स्र्िन्र न्यायिीशों का अभार् था। इस अर्स्था में न्याय का स्र्रूप पक्षपािपूर्ा था। पक्षपािपूर्ा ढं ग से न्याय ककया जािा था। कोई िीसरा पक्ष तनष्पक्ष नहीं था। प्रत्येक व्यजति स्र्यं न्यायिीश था। 3. इस अर्स्था में न्याययुति तनर्ाय लागू करने के सलए कायापासलका का अभार् था। इससलए तनर्ायों का उपयुति कक्रयान्र्यन नहीं हो पािा था। अि: प्राकृतिक अर्स्था में पाई जाने र्ाली असुवर्िाओं और कदठनाइयों से बिने के सलए मनष्ु यों ने एक समझौिा ककया। लॉक के अनुसार समझौिे का स्र्रूप सामाजजक है। इसके अन्िगाि प्रत्येक व्यजति ने सम्पूर्ा समाज के प्रत्येक व्यजति को सर्ासम्मति से यह समझौिा ककया। लॉक का सामाजजक समझौिा दो बार हुआ है। पहले समझौिे द्र्ारा मनुष्य ने राजनीतिक र् नागररक समाज की स्थापना की। इससे मानर् ने अपनी प्राकृतिक अर्स्था का अन्ि ककया। इस प्रकार मनुष्य ने इस समझौिे द्र्ारा जीर्न, स्र्िन्रिा िथा सम्पवि के अपने प्राकृतिक अचिकारों िथा कानून को मानर् ने सदै र् के सलए सुरक्षक्षि कर ददया। दस ू रे समझौिे द्र्ारा जनसहमति से शासन को तनयुति ककया जािा है। शासक, नागररक समाज के असभकिाा के रूप में जीर्न स्र्िन्रिा िथा सम्पवि के प्राकृतिक अचिकारों के अन्िगाि ही कानून की व्याख्या एर्ं उसे लागू करिा है। शासक, नागररक समाज के एक ट्रस्टी के रूप में अपने किाव्यों का पालन करिा है। लॉक कहिा है कक सामाजजक समझौिे की प्रकक्रया के अन्ि में राजनीतिक समाज है, जजसका तनमाार् इस प्रकार हुआ है- “प्रत्येक व्यजति प्रत्येक के साथ संगठन िथा समद ु ाय के तनमाार् हेिु सहझौिा करिा है। जजस उद्दे चय के सलए समझौिा ककया जािा है र्ह सामान्यि: सम्पवि की सुरक्षा है जजसका अथा जीर्न, स्र्ािीनिा िथा सम्पवि की आन्िररक िथा बाहरी खिरों से सरु क्षा है। इस समझौिे के अनुसार मनुष्य अपने सारे अचिकार नहीं छोड़िा लेककन प्राकृतिक केर्ल अपनी असुवर्िाओं को दरू करने के सलए प्राकृतिक कानन ू की व्याख्या और कक्रयान्र्यन के अचिकार को छोड़िा है। लेककन यह अचिकार ककसी एक व्यजति या समूह को न समलकर सारे समुदाय को समलिा है। यह समझौिा तनरं कुश राज्य की उत्पवि नहीं करिा। इससे राजनीतिक समाज को केर्ल र्े ही अचिकार समले हैं जो व्यजति ने उसे स्र्ेच्छा से ददए हैं। र्ह व्यजति के उन अचिकारों में हस्िक्षेप नहीं कर सकिा जो उसे नहीं ददए गए हैं। लॉक के इस समझौिे के अनुसार दो समझौिे हुए। पहला समझौिा जनिा के बीि िथा दस ू रा जनिा र् शासक के बीि हुआ। सम्प्रभु पहले में शासमल नहीं था। इससलए र्ह व्यजति के प्राकृतिक अचिकारों में हस्िक्षेप नहीं कर सकिा। राजनीतिक समाज की स्थापना हेिु ककया गया दूसरा समझौिा सीसमि र् उिरदायी सरकार की स्थापना करिा है। इस समझौिे की प्रमुख वर्शेषिाएाँ हैं : 1. लॉक के अनुसार दो बार समझौिा हुआ। प्रथम समझौिे द्र्ारा नागररक समाज की स्थापना होिी है िथा दस ू रे समझौिे द्र्ारा राजनीतिक समाज की स्थापना होिी है। 2. यह समझौिा सभी व्यजतियों की स्र्ीकृति पर आिाररि होिा है। सहमति मौन भी हो सकिी है, परन्िु सहमति अति आर्चयक है तयोंकक राज्य का स्रोि जन-इच्छा है। 3. यह समझौिा अखंड्य है। एक बार समझौिा हो जाने पर इसे भंग नहीं ककया जा सकिा। इसको िोड़ने का मिलब है - प्राकृतिक अर्स्था में र्ावपस लौटना। 4. इस समझौिे के अनुसार प्रत्येक पीढी इसको मानने को बाध्य है। भार्ी पीढी समझौिे पर मौन स्र्ीकृति दे िी है। यदद र्े अपनी जन्मभसू म त्यागिे हैं िो र्े उिराचिकार के लाभों से र्ंचिि रह जािे हैं। 5. इस समझौिे द्र्ारा व्यजति अपने कुछ प्राकृतिक अचिकारों का पररत्याग करिा है, सभी प्राकृतिक अचिकारों का नही। र्ह अपना अचिकार समस्ि जनसमह ू को सौंपिा है। यह समझौिा जीर्न स्र्िन्रिा िथा सम्पवि की सरु क्षा के सलए ककया जािा है। अि: यह सीसमि समझौिा है। 6. इस समझौिे से नागररक समुदाय का जन्म होिा है, सरकार का नहीं। सरकार का तनमाार् िो एक ट्रस्ट द्र्ारा होिा है। इससलए सरकार िो बदली जा सकिी है, लेककन इस समझौिे को भंग नहीं ककया जा सकिा। 7. लॉक के अनुसार प्रकृति के कानून की व्याख्या करने िथा उसे लागू करने र्ाला शासक स्र्यं भी उससे बाचिि है। जजन शिों के आिार पर शासक को तनयुति ककया जािा है, शासक को उसका पालन करना है। अि: शासक सर्ोच्ि सिा सम्पन्न नहीं है। 8. लॉक के सामाजजक समझौिे के अन्िगाि शासक को जीर्न, स्र्िन्रिा िथा सम्पवि के प्राकृतिक अचिकारों का सम्मान करना पड़िा है। अि: प्राकृतिक अर्स्था के अन्ि होने के बाद भी सामाजजक समझौिे में मनुष्य के प्राकृतिक अचिकार सरु क्षक्षि रहिे हैं। 9. नागररक समाज सामाजजक समझौिे द्र्ारा शासन के दो अंगों वर्िानसभा िथा कायापासलका की स्थापना करिा है। वर्िानसभा का काया कानन ू तनमाार् करना है, जजनके आिार पर न्यायिीश तनष्पक्ष न्यातयक तनर्ाय करिे हैं। कायापासलका वर्िानसभा के कानूनों और न्यायिीशों के न्यातयक तनर्ायों को लागू करिी है। अि: सामाजजक समझौिा ससद्िान्ि सीसमि रूप से शजति पथ ृ तकरर् ससद्िान्ि को स्र्ीकार करिा है। 10. लॉक ने व्यजतिर्ादी राज्य-व्यर्स्था की स्थापना की है और उसे व्यजति के प्राकृतिक अचिकारों की रक्षा करने र्ाला सािन कहा है। 11. यह समझौिा प्राकृतिक कानून का अन्ि नहीं करिा। इससे प्राकृतिक कानून के महत्त्र् में र्द्ृ चि होिी है। लॉक ने कहा है- “प्राकृतिक कानून के दानयत्वों का समाि में अन्त नहीीं होता।” 12. यह समझौिा हॉब्स के समझौिे की िरह दासिा का बन्िन नहीं है। अवपिु स्र्िन्रिा का एक अचिकार पर है। इससे व्यजति कुछ खािे नहीं हैं। उन्हें अचिकारों को लागू करने में जो कदठनाइयााँ आिी हैं, उनका अन्ि करने को प्रयत्न समझौिे द्र्ारा ककया जािा है। हॉब्स से तुलना हॉब्स और लॉक दोनों समझौिार्ादी वर्िारक हैं। दोनों के अनुसार एक ही समझौिा होिा है। दोनों ने यह माना कक सरकार समझौिा प्रकक्रया में शासमल नहीं होिी। दोनों ने राज्य की उत्पवि के दै र्ीय अचिकार का वर्रोि ककया है। दोनों के अनुसार समझौिा व्यजतियों में होिा है। दोनों सामाजजक समझौिे में वर्चर्ास करिे हैं, सरकारे समझौिे के ससद्िान्ि में नहीं। उपयुाति बािों में समान होिे होन पर भी दोनों के ससद्िान्ि में कुछ अन्िर मौसलक हैं : 1. हॉब्स का समझौिा कठोर आर्चयकिा का प्रतिफल है, परन्िु लॉक का समझौिा वर्र्ेक का पररर्ाम है। 2. हॉब्स का समझौिा सामान्य स्र्भार् का है, लॉक का सीसमि और वर्सशष्ट स्र्भार् का है। 3. हॉब्स के समझौिे के अनुसार व्यजति अपना अचिकार ककसी वर्शेष व्यजति या व्यजति समूह को सौंपिे हैं, लॉक के अनुसार व्यजति समुदाय को अपना अचिकार दे िे हैं। 4. हॉब्स के अनुसार व्यजति अपने सारे अचिकार राज्य को सौंपिा है, परन्िु लॉक के अनुसार व्यजति अपने सीसमि अचिकार राज्य को दे िा है। 5. हॉब्स के समझौिे के पररर्ामस्र्रूप एक तनरं कुश, सर्ाशजतिशाली, असीम एर्ं अमयााददि सम्प्रभु का जन्म होिा है, परन्िु लॉक के अनुसार एक सीसमि, मयााददि एर्ं उदार राज्य का जन्म होिा है। 6. हॉब्स का समझौिा एक दाशातनक वर्िार है, लॉक का ऐतिहाससक िथ्य भी। 7. हॉब्स का सामाजजक समझौिा प्राकृतिक अर्स्था र् प्राकृतिक कानून दोनों को समाप्ि कर दे िा है, परन्िु लॉक का समझौिा प्राकृतिक अर्स्था का िो अन्ि करिा है, प्राकृतिक कानून का नहीं। लॉक के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक अर्स्था के समान राज्य में भी प्राकृतिक कानून का पालन करने को बाध्य है। 8. हॉब्स का शासक कानून बनािा है, परन्िु लॉक का शासन कानून नहीं बनािा, ससफा कानून का पिा लगािा है। हॉब्स के अनस ु ार राज्य के बाद कानन ू का जन्म होिा है। लॉक के अनस ु ार कानन ू के बाद राज्य का जन्म होिा है। 9. लॉक का समझौिा स्र्िन्रिा का प्रपर है, जबकक हॉब्स का समझौिा दासिा का पट्टा है। 10. हॉब्स का समझौिा प्राकृतिक अर्स्था की अराजकिा को दरू करने के सलए हुआ था, जबकक लॉक का समझौिा प्राकृतिक अर्स्था की िीनों कसमयों को दरू करने के सलए हुआ था। 11. हॉब्स के अनस ु ार एक समझौिा हुआ जबकक लॉक के अनस ु ार दो प्रकार के समझौिे हुए। लॉक के सामाजिक समझौते की आलोिनाएँ 1. अस्पष्टता और अननजश्ितता : लॉक के सामाजजक समझौिे के बारे में आलोिक कहिे हैं कक लॉक ने यह स्पष्ट नहीं ककया कक सरकार का तनमाार् कब और कैसे हुआ। लॉक के वर्िारों से यह प्रिीि होिा है कक सामाजजक समझौिे के द्र्ारा राज्य का तनमाार् हुआ है, परन्िु उसकी व्याख्या से यह स्पष्ट नहीं होिा कक सामाजजक समझौिे से सरकार की भी स्थापना होिी है या नहीं। अि: वर्िारकों में इस बाि पर मिभेद है कक लॉक एक समझौिे की बाि करिा है या दो की। 2. अनैनतहाससक व काल्पननक : लॉक ने सामाजजक समझौिे द्र्ारा राज्य र् शासन का जो वर्र्रर् ददया है, र्ह काल्पतनक है। उसके वर्र्रर् का ऐतिहाससक िथ्यों से मेल नहीं है। लॉक के मानर् स्र्भार् का चिरर् एक पक्षीय है। सत्य यह है कक मनुष्य कई सद्गुर्ों िथा दग ु ुार्ों का समश्रर् है। परन्िु लॉक केर्ल सद्गुर्ों का ही चिरर् करिा है। लॉक के इस कथन में ऐतिहाससक प्रमार्ों का अभार् है। 3. लॉक ने राज्य और शासन में अन्िर करिे हुए, व्यर्स्थावपका एर्ं कायापासलका की स्थापना की है। ककन्िु आलोिकों का मानना है कक प्राकृतिक अर्स्था में मानर् शासन से अपररचिि थे। अि: उनसे राजनीतिक पररपतर्िा की उम्मीद नहीं की जा सकिी। सामाजजक समझौिे में लॉक ने जो मानर् की राजनीतिक सूझ-बूझ ददखाई है, उसकी कल्पना नहीं की जा सकिी। 4. सामाजजक समझौिे का एक दोष यह भी है कक यह ससद्िान्ि राज्य के पूर्ा समझौिे की कल्पना करिा है परन्िु राज्य की स्थापना के बाद ही समझौिे ककये जा सकिे हैं। 5. ववरोधाभास : लाकॅ का सामाजजक समझािै का ससद्िान्ि एक िरफ िो सर्सा म्मति की बाि करिा है िो दस ू री आरे बहुमि के शासन का समथान करिा है। लॉक ने इस जस्थति की कल्पना नहीं की है कक बहुमि भी अत्यािारी हो सकिा है और अपनी शजति का प्रयोग जनिा के अचिकारों के हनन के सलए कर सकिा है। 6. लॉक समझौिे का आिार सहमति को मानिा है, परन्िु इतिहास में ऐसे कई राज्यों का उल्लेख समलिा है जो बल र् शजति के आिार पर बने र् नष्ट हुए। 7. लॉक ने बार-बार मूल समझौिा शब्द का प्रयोग ककया है लेककन कहीं भी इसका अथा स्पष्ट नहीं ककया। लॉक इस बाि को भी स्पष्ट नहीं कर पाए कक मौसलक समझौिे के पररर्ामस्र्रूप र्ास्िर् में जो उत्पन्न होिा है, र्ह स्र्यं समाज ही है या केर्ल सरकार। इस प्रकार लॉक के सामाजजक समझौिे की कई आलोिनाएाँ की गइं। अनेक वर्िारकों ने कहा कक लॉक में कुछ भी नया नहीं है। ऐसा काया िो पहले भी कई दाशातनकों द्र्ारा सम्पन्न हो िुका है। परन्िु लॉक के समझौिे की सबसे बड़ी वर्शेषिा यह है कक उसने इसे सतु नजचिििा प्रदान की, उसका मख् ु य लक्ष्य व्यजति के अचिकारों की सरु क्षा को स्र्ीकार ककया। बाद र्ाली पीदढयों ने उसके इस ससद्िान्ि को बहुि पसन्द ककया। उनके उदारर्ादी वर्िारों ने लॉक को मध्यर्गीय क्राजन्ि का सच्िा प्रर्तिा बना ददया था। उसके इस ससद्िान्ि ने परर्िी राजनीतिक चिन्िकों को प्रभावर्ि ककया। इस प्रकार लॉक एक महत्त्र्पूर्ा एर्ं प्रभार्शाली हैं। RAJ COACHING CENTRE BY ASHISH SIR 7209208609 राजनीतिक सिद्ाांि िे आप क्या िमझिे हैं और राजनीतिक सिद्ाांि में हाल के रुझानों का वर्णन करें । (Recent trends in political Theory) राजनीतिक सिद्ाांि एक ऐिी वि्ा है जो िमाज, राज्य, ित्ता, अध्कार, स्ििांत्रिा, न्याय, िमानिा और नैतिकिा जैिे मौसिक राजनीतिक मुददों का अध्ययन करिी है । इिका मुख्य उददे श्य राजनीति के बुतनयादी सिद्ाांिों और विचारों को िमझना, उनकी व्याख्या करना और विश्िेषण करना होिा है । राजनीतिक सिद्ाांि के मुख्य ित्ि 1. राज्य का स्िरूप: राज्य क्या है, इिका गठन क्यों हुआ, इिका कायय और उददे श्य क्या है — ये ििाि राजनीतिक सिद्ाांि में मुख्य भूसमका तनभािे हैं। 2. ित्ता और अध्कार: ित्ता का उपयोग, अध्कार का स्िरूप और इिके स्रोि जैिे मुददे महत्िपूणय होिे हैं। यह अध्ययन करिा है कक ककिे ित्ता प्राप्ि होनी चाहहए और इिके प्रयोग के मानदां ड क्या होने चाहहए। 3. न्याय और िमानिा: िमाज में न्याय और िमानिा की भूसमका को िमझना भी राजनीतिक सिद्ाांि का हहस्िा है। यह विसभन्न दृष्टिकोणों िे यह विश्िेषण करिा है कक िभी नागररकों के िाथ कैिे िमान व्यिहार ककया जा िकिा है । 4. स्ििांत्रिा और अध्कार: राजनीतिक सिद्ाांि व्यष्क्ि की स्ििांत्रिा और अध्कारों को पररभावषि करिा है, जैिे असभव्यष्क्ि की स्ििांत्रिा, ्मय की स्ििांत्रिा और विचारों की स्ििांत्रिा। 5. िांप्रभुिा और िैश्िीकरण: राज्य की िांप्रभुिा और िैष्श्िक स्िर पर उिका प्रभाि भी राजनीतिक सिद्ाांि के अांिगयि आिा है, विशेष रूप िे िैश्िीकरण के प्रभाि को दे खिे हुए। राजनीतिक सिद्ाांि का महत्ि राजनीतिक सिद्ाांि हमारे िमाज को बेहिर िमझने का अििर प्रदान करिा है और िमाज में होने िािी िमस्याओां का िमा्ान ढूांढने में िहायक होिा है। यह नागररकों को उनके अध्कारों, कियव्यों और िोकिाांत्रत्रक मूल्यों के प्रति जागरूक बनािा है और एक आदशय िमाज की कल्पना करने में मदद करिा है। राजनीतिक तिद्ाांि में हाल के रुझान 1. पहचान की राजनीति (Identity Politics) पहचान आधारित िाजनीतत जैसे ति जातत, धर्म, त िंग, औि नस् पि ध्यान िें तित ििना हा िे वर्षों र्ें प्रर्ुख हो गया है। इसर्ें सार्ातजि सर्ूहों िी पहचान औि उनिे अतधिािों िे र्ुद्दों िो प्राथतर्िता दी जाती है। 2. पोस्ट-कोलोतनयल (उत्तर-औपतनवेतिक) तिद्ाांि उत्ति-औपतनवेतिि तसद्ािंत पतिर्ी िाजनीतति तवचािों िे प्रभाव िी आ ोचना ििता है औि औपतनवेतिि प्रभावों िी पड़ता ििता है। इसिा उद्देश्य तविासिी देिों िे परिप्रेक्ष्य से िाजनीतत िो सर्झना है। 3. पयाावरणीय राजनीति (Environmental Politics) पयामविण सिंिक्षण, ज वायु परिवतमन, औि प्रािृ तति सिंसाधनों िे सतत उपयोग िो प्राथतर्िता देना आज िी िाजनीतत िा र्हत्वपूणम तहस्सा बन चुिा है। 4. लोकिाांतिक तिद्ाांिों का पुनममालयाांकन (Re-evaluation of Democratic Theories) ोितािंतिि तसद्ािंतों िी पुनर्वयामख्या िे तहत पािदतिमता, जवाबदेही औि तनष्पक्षता पि ध्यान तदया जा िहा है। यह प्रतिया जनसाधािण औि सत्ता िे बीच नए प्रिाि िे सिंबिंधों िो स्थातपत ििने िा प्रयास है। 5. वैश्वीकरण और उत्तर-राष्ट्रीय राज्यवाद (Globalization and Post-National Statehood) वैश्वीििण ने िाष्र-िाज्य िी पाििंपरिि अवधािणा िो बद तदया है औि नए प्रिाि िे अिंतििाष्रीय सहयोग िी र्ािंग िी है। 6. वैकतलपक आधुतनकिा (Alternative Modernities) यह तवचाि पतिर्ी आधुतनिता िे एिर्ाि र्ॉड िो चुनौती देता है औि तवतभन्न सास्िं िृ तति पृष्ठभूतर्यों िे अनुसाि तविास िे अ ग-अ ग र्ागों िा सर्थमन ििता है। 7. तितजटल राजनीति (Digital Politics) तडतजट र्ीतडया औि सोि नेटवर्कसम ने िाजनीतत र्ें गहिा बद ाव ाया है, तजससे िाजनीतति तवचाि तेजी से फै ते हैं औि जनता िी िाय पि प्रभाव डा ते हैं। 8. नारीवादी और तलांग आधाररि राजनीति (Feminist and Gender-Based Politics) नािीवादी औि ैंतगि िाजनीतत त िंग आधारित असर्ानताओ िं िो दूि ििने औि र्तह ा एविं LGBTQ+ सर्ुदाय िे अतधिािों िी िक्षा िे त ए सर्तपमत है। तनटकषय राजनीतिक सिद्ाांि केिि ित्ता और शािन की प्रकियाओां का अध्ययन नहीां करिा, बष्ल्क उन विचारों, मान्यिाओां और मूल्यों को भी शासमि करिा है जो एक िमाज को आकार दे िे हैं। "अरस्तू: क्रांतत, सांपत्ति और सरकरर कर वर्गीकरण कर वणणन करें " अरस्तू ने राजनीतत, क्ाांतत, सांपत्ति और सरकार के वर्गीकरण पर अपने महत्वपूणण त्तवचार दिए हैं। उनका दृष्टिकोण प्रकृतत और समाज के वास्तत्तवक स्वरूप को समझने पर आधाररत था। उन्होंने यह समझाने की कोशिि की कक राज्य और सरकार का उद्िे श्य केवल िष्तत का प्रििणन नह ां, बष्कक समाज में न्याय और समानता की स्थापना करना है। Ashish Sir 7209208609 क्ाांतत का त्तवचार अरस्तू के अनुसार, क्ाांतत का मुख्य कारण सामाष्जक असांतोष और सरकार की कायणप्रणाल में िोष होता है। क्ाांतत तब होती है जब लोर्ग अपने अधधकारों को न पाए या जब सरकार अपने कतणव्यों से भिक जाए। अरस्तू ने इसे िो प्रकारों में बाांिा: 1. सांत्तवधातनक क्ाांतत - जब एक िासन प्रणाल से िस ू र प्रणाल में पररवतणन होता है, जैसे लोकतांत्र से औशलर्गाकी में पररवतणन। 2. सामाष्जक क्ाांतत - जब समाज की सांपत्ति और वर्गण सांरचना में बिलाव आता है। यह तब होता है जब सांपत्ति का अत्यधधक केंद्र करण होता है, ष्जससे समाज में असांतोष बढ़ता है और वर्गण सांघषण का रूप लेता है। सांपत्ति का महत्व अरस्तू ने सांपत्ति के त्तवतरण को सरकार की ष्स्थरता और समाज के समद् ृ धध के शलए महत्वपण ू ण माना। उनका मानना था कक अर्गर सांपत्ति का असमान त्तवतरण हो, तो समाज में असांतोष और भ्रटिाचार बढ़ सकता है। इसके साथ ह , उन्होंने यह भी कहा कक सरकार को समाज के सभी वर्गों की भलाई का ख्याल रखना चादहए। सांपत्ति का अधधक केंद्र करण एक अष्स्थरता पैिा कर सकता है और यह कारण है कक वह समाज में सांपत्ति के समान त्तवतरण के पक्षधर थे। सरकार का वर्गीकरण अरस्तू ने सरकारों के प्रकारों का वर्गीकरण ककया और उन्हें िो मुख्य श्रेणणयों में बाांिा: 1. समान िासन (Just Government) - इसमें सरकार समाज के भले के शलए काम करती है। राजतांत्र: जब एक राजा राज्य का सांचालन करता है और उसका उद्िे श्य समाज की भलाई होता है। अररस्िोक्सी: श्रेटठ नार्गररकों द्वारा िासन ककया जाता है जो समाज के सवोिम दहत में काम करते हैं। पोशलि : यह एक शमधश्रत िासन है, ष्जसमें मध्यम वर्गण के नार्गररकों का िासन होता है और यह सबसे ष्स्थर माना जाता है। 2. असमान िासन (Corrupt Government) - इसमें सरकार अपने लाभ के शलए काम करती है और जनता की भलाई की अनिे खी करती है। तानािाह : एक तानािाह द्वारा िासन ककया जाता है, जो केवल अपनी इच्छाओां के अनुसार कायण करता है। ओशलर्गाकी: कुछ अमीर और िष्ततिाल व्यष्ततयों का िासन होता है, जो केवल अपने वर्गण के भले के शलए काम करते हैं। लोकतांत्र: यह िासन र्गर ब वर्गण द्वारा सांचाशलत होता है, लेककन इसका उद्िे श्य शसर्ण उनके भले के शलए होता है, ष्जससे अन्य वर्गों के अधधकारों का हनन हो सकता है। अरस्तू का आििण िासन अरस्तू ने आििण िासन के रूप में पोशलि को माना, ष्जसमें सभी वर्गों का सांतशु लत प्रतततनधधत्व होता है और समाज का भला प्राथशमक उद्िे श्य होता है। उनका यह मानना था कक आििण िासन वह होता है, ष्जसमें कानन ू सवोपरर होते हैं और कोई भी व्यष्तत या वर्गण अत्यधधक िष्तत का उपयोर्ग नह ां करता। अरस्तू के अनुसार, जब ककसी समाज में न्याय और समानता होती है, तब ह उस समाज का पूणण त्तवकास सांभव होता है। स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर जे एस मिल के ववचारों को व्यक्त करें । जे. एस. मिल (John Stuart Mill) का स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर योगदान आधुननक राजनीनतक दर्शन का एक अहि हहस्सा है। मिल ने अपने ववचारों िें सिाज, स्वतंत्रता और व्यक्ततगत अधधकारों की रक्षा की आवश्यकता को प्रिुखता दी। उनके ववचार ववर्ेष रूप से उनके प्रमसद्ध ग्रंथ "On Liberty" (1859) िें ववस्तत ृ रूप से प्रस्तुत ककए गए हैं। By Ashish Sir 7209208609 1. जे. एस. मिल का जीवन पररचय जे. एस. मिल का जन्ि 20 िई 1806 को लंदन िें हुआ था। वह एक िहान दार्शननक, अथशर्ास्त्री और सिाजर्ास्त्री थे। उनके ववचारों का व्यापक प्रभाव ब्रिहिर् और यूरोपीय दर्शन पर पडा। उनका काि न केवल सािाक्जक और राजनीनतक दृक्टिकोण से िहत्वपूणश था, बक्कक उन्होंने आधुननक लोकतंत्र की नींव को भी िजबूती दी। मिल का कायश स्वतंत्रता, सिानता, और अधधकारों की रक्षा करने के पक्ष िें था, और यही कारण था कक उनके ववचार आज भी प्रासंधगक हैं। 2. स्वतंत्रता का िहत्व मिल के अनुसार, स्वतंत्रता केवल व्यक्ततगत इच्छा और स्वच्छं दता का नाि नहीं है, बक्कक यह प्रत्येक व्यक्तत के मलए अपने जीवन के ननणशयों को अपने तरीके से लेने का अधधकार है, बर्ते कक इससे ककसी अन्य व्यक्तत को नक ु सान न पहुंचे। मिल का िानना था कक स्वतंत्रता, सिाज के सवोत्ति ववकास के मलए आवश्यक है। उनका यह दृक्टिकोण इस आधार पर था कक हर व्यक्तत को अपनी राय रखने, अपने ववचार व्यतत करने, और जीवन के उद्दे श्यों के ननधाशरण िें पूणश स्वतंत्रता मिलनी चाहहए। मिल ने अपनी प्रमसद्ध कृनत "On Liberty" िें स्वतंत्रता पर कई िहत्वपूणश ववचार व्यतत ककए। उन्होंने इसे इस प्रकार पररभावषत ककया: "स्वतंत्रता का अक्स्तत्व तब तक होना चाहहए जब तक वह दस ू रों को नुकसान न पहुुँचाए।" इसका ितलब यह था कक सरकार और सिाज को केवल उस व्यक्तत की स्वतंत्रता को ननयंब्रत्रत करने का अधधकार है, जो दस ू रों को नुकसान पहुुँचाता है। मिल के अनुसार, व्यक्ततगत स्वतंत्रता केवल तभी सीमित की जा सकती है, जब वह ककसी अन्य व्यक्तत के अधधकारों या स्वतंत्रता िें हस्तक्षेप करे । यह ववचार "हानन का मसद्धांत" (Harm Principle) के रूप िें जाना जाता है। हानन का मसद्धांत "हानन का मसद्धांत" मिल का सबसे प्रिख ु ववचार था, क्जसिें उन्होंने यह मसद्धांत प्रस्तत ु ककया कक ककसी व्यक्तत को केवल तब तक अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करने की अनि ु नत मिलनी चाहहए, जब तक उसका व्यवहार सिाज के अन्य व्यक्ततयों को हानन न पहुुँचाए। इस मसद्धांत का उद्दे श्य व्यक्ततगत स्वतंत्रता की रक्षा करना और यह सुननक्श्चत करना था कक ककसी का भी व्यवहार दस ू रों के अधधकारों का उकलंघन न करे । मिल ने इस ववचार को जोर दे कर कहा कक एक व्यक्तत का आत्िननणशय, सिाज के आदर्श और भलाई के अनुरूप होना चाहहए, परं तु जब तक वह सिाज के अन्य व्यक्ततयों को नुकसान नहीं पहुुँचाता, तब तक उसे अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करने का पूरा अधधकार होना चाहहए। 3. लोकतंत्र पर मिल के ववचार मिल का लोकतंत्र पर दृक्टिकोण अत्यधधक ववचारर्ील था। उन्होंने लोकतंत्र की आलोचना की और इसके फायदे और नक ु सानों को गहराई से सिझने की कोमर्र् की। मिल ने लोकतंत्र को सिाज िें व्यक्तत की स्वतंत्रता और सिानता को बढावा दे ने का एक तरीका िाना, लेककन इसके साथ ही उन्होंने लोकतांब्रत्रक र्ासन िें कुछ खामियों की भी पहचान की। बहुित का र्ासन मिल का िानना था कक लोकतंत्र िें बहुित के र्ासन की नीनत कभी-कभी अकपसंख्यकों के अधधकारों के मलए खतरे का कारण बन सकती है। यहद लोकतंत्र केवल बहुित की इच्छा पर आधाररत हो, तो यह अकपसंख्यकों के अधधकारों को दबा सकता है। मिल के अनुसार, लोकतंत्र का सही उद्दे श्य हर व्यक्तत की स्वतंत्रता और अधधकारों की रक्षा करना होना चाहहए, न कक केवल बहुित की इच्छाओं को पूरा करना। अकपसंख्यक अधधकार मिल ने लोकतंत्र िें अकपसंख्यक के अधधकारों की रक्षा के िहत्व को स्वीकार ककया। उनका िानना था कक लोकतंत्र का असली िूकय तब सिझ िें आता है, जब यह उन ववचारों और अधधकारों को भी संरक्षक्षत करता है, जो बहुित द्वारा उपेक्षक्षत या अवहेमलत होते हैं। वे इस बात को स्वीकार करते थे कक बहुित की आवाज़ को सुनना आवश्यक है, लेककन इसके साथ ही यह भी आवश्यक है कक अकपसंख्यक वगों के अधधकारों को भी संरक्षण मिले। मर्क्षा और सिझौ मिल का िानना था कक लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है, जब नागररकों को अपने अधधकारों और कतशव्यों के प्रनत जागरूक ककया जाए। उन्होंने नागररकों के बीच मर्क्षा और जागरूकता को लोकतंत्र के स्थानयत्व के मलए आवश्यक सिझा। उनका यह भी िानना था कक केवल एक मर्क्षक्षत और सिझदार नागररक वगश ही लोकतांब्रत्रक संस्थाओं का प्रभावी उपयोग कर सकता है। 4. स्वतंत्रता और सिाज का संबंध मिल के अनुसार, सिाज का ननिाशण केवल व्यक्ततगत स्वतंत्रताओं के मलए नहीं होता, बक्कक इसका उद्दे श्य व्यक्तत के ववकास और ककयाण को बढावा दे ना होता है। सिाज का असली उद्दे श्य यह सुननक्श्चत करना था कक हर व्यक्तत को स्वतंत्रता का पूरा उपयोग करने का अवसर मिले। लेककन इस स्वतंत्रता का उपयोग केवल तब तक ककया जाना चाहहए जब तक वह दस ू रों को नुकसान न पहुुँचाए। सािाक्जक ननयंत्रण मिल के ववचार िें, सिाज के भीतर कुछ सािाक्जक ननयंत्रण की आवश्यकता थी ताकक व्यक्ततयों की स्वतंत्रता का गलत उपयोग न हो। इस ननयंत्रण का उद्दे श्य ककसी व्यक्तत के अधधकारों और स्वतंत्रता का सम्िान करना था। हालांकक, उन्होंने इस ननयंत्रण के बारे िें भी यह कहा कक यह केवल उतनी ही सीिा तक होना चाहहए, जब तक वह दस ू रों को नुकसान न पहुुँचाए। नैनतकता और स्वतंत्रता मिल का यह भी िानना था कक सिाज िें नैनतकता का होना आवश्यक है, लेककन यह नैनतकता व्यक्ततगत स्वतंत्रता की सीिा को ननधाशररत नहीं कर सकती। मिल के अनुसार, नैनतकता का पालन करते हुए व्यक्ततयों को अपनी स्वतंत्रता का पूरा अधधकार होना चाहहए, बर्ते कक वह दस ू रों को नुकसान न पहुुँचाएं। 5. आधुननक सिाज िें मिल के ववचारों की प्रासंधगकता मिल के ववचार आज भी आधनु नक सिाज िें अत्यधधक प्रासंधगक हैं। उनके "हानन का मसद्धांत" और लोकतंत्र पर ववचार आज के राजनीनतक और सािाक्जक दृक्टिकोणों को आकार दे ते हैं। मिल का यह ववचार कक व्यक्ततगत स्वतंत्रता का उकलंघन केवल तब ककया जाना चाहहए, जब वह दस ू रों को हानन पहुुँचाए, आज भी कई लोकतांब्रत्रक दे र्ों िें प्रचमलत है। आज के सिय िें, जहां व्यक्ततगत अधधकारों और स्वतंत्रता की रक्षा की जा रही है, मिल के ववचार हिारे मलए एक िागशदर्शक के रूप िें कायश करते हैं। उनका यह ववचार कक मर्क्षा और जागरूकता के िाध्यि से लोकतंत्र को क्स्थर ककया जा सकता है, आज के सिाज िें लोकतांब्रत्रक संस्थाओं के ववकास के मलए अत्यधधक िहत्वपूणश है। ननटकषश जे. एस. मिल का योगदान न केवल स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर ववचारों के रूप िें बक्कक सिाज और व्यक्ततगत अधधकारों की रक्षा करने के एक िागशदर्शक के रूप िें भी िहत्वपण ू श है। उनके ववचार यह बताते हैं कक लोकतंत्र और स्वतंत्रता का सही उपयोग तभी हो सकता है, जब उसे सिाज के हहत िें संतुमलत ककया जाए। मिल ने यह भी मसद्ध ककया कक लोकतंत्र का उद्दे श्य केवल बहुित की इच्छा को पूरा करना नहीं, बक्कक हर व्यक्तत के अ?

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