Hindi Chapter 6 Meri Maa PDF

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रामप्रसाद ‘बिस्मिल’

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biography mother self-reliance Indian History

Summary

This chapter details the life story of a person named Ram Prasad Bisaml and his mother. It emphasizes the mother's role in shaping his character and values during his formative years. The chapter also shows the influence and dedication.

Full Transcript

6 मेरी माँ “श्री रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ बड़े होनहार नौजवान थे। गज़ब के शायर थे। देखने में भी बहुत सदंु र थे। योग्य बहुत थे। जानने वाले कहते हैं कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष...

6 मेरी माँ “श्री रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ बड़े होनहार नौजवान थे। गज़ब के शायर थे। देखने में भी बहुत सदंु र थे। योग्य बहुत थे। जानने वाले कहते हैं कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष बनते।” यह कहना है हमारे देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का बिस्मिल के बारे में। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म जब हुआ, उस समय भारत पर अग्ं रेज़ों का आधि‍पत्य था। ‘बिस्मिल’ छोटी-सी आयु से ही भारत की स्वतंत्रता के लिए अग्ं रेज़ों से लड़ते रहे। अग्ं रेज़ों ने उन्हें जेल भेज दिया और फ़ाँसी की सज़ा दे दी। जेल में भी उन्होंने अग्ं रेज़ों के अनेक अत्याचार सहे। जेल में रहते-रहते ही उन्होंने चोरी-छिपे अपनी आत्मकथा लिखी और अग्ं रेज़ों से बचते-बचाते जेल से बाहर भेजते रहे। उनके साथियों ने उसे प्रकाशित भी करवा दिया। इसका नाम रखा गया- ‘निज जीवन की एक छटा।’ इस पस्त ु क ने अग्ं रेज़ों के होश उड़ा दिए। लोगों में अग्ं रेज़ों के विरुद्ध क्रोध और बढ़ गया। इस तरह इस आत्मकथा के कारण अग्ं रेज़ बिस्मिल को फ़ाँसी देने के बाद भी उन्हें हरा न सके । इस आत्मकथा के माध्यम से आज भी ‘बिस्मिल’ हमारे मस्तिष्क में जीवित हैं। आज भी यह आत्मकथा लोगों को प्रेरित करती है। क्या आप भी उनकी आत्मकथा को पढ़ना चाहते हैं? क्या कहा? हाँ? तो यहाँ प्रस्तुत है उसी आत्मकथा का एक अश ं । लखनऊ कांग्रेस में जाने के लिए मेरी बड़ी इच्छा थी। दादीजी और पिताजी तो विरोध करते रहे, किंतु माताजी ने मझु े खर्च दे ही दिया। उसी समय शाहजहाँपरु में सेवा-समिति का आरंभ हुआ था। मैं बड़े उत्साह के साथ सेवा समिति में सहयोग देता था। पिताजी और दादीजी को मेरे इस प्रकार के कार्य अच्छे न लगते थे, किंतु Chapter 6.indd 51 10/06/2024 11:19:46 माताजी मेरा उत्साह भगं न होने देती थीं, जिसके कारण उन्हें अक्सर पिताजी की डाँट-फटकार तथा दडं सहन करना पड़ता था। वास्तव में, मेरी माताजी देवी हैं। मझु में जो कुछ जीवन तथा साहस आया, वह मेरी माताजी तथा गरुु देव श्री सोमदेव जी की कृ पाओ ं का ही परिणाम है। दादीजी और पिताजी मेरे विवाह के लिए बहुत अनरु ोध करते, किंतु माताजी यही कहतीं कि शिक्षा पा चक ु ने के बाद ही विवाह करना उचित होगा। माताजी के प्रोत्साहन तथा सदव् ्यवहार ने मेरे जीवन में वह दृढ़ता उत्पन्न की कि किसी आपत्ति तथा संकट के आने पर भी मैंने अपने संकल्प को न त्यागा। एक समय मेरे पिताजी दीवानी मक ु दमे में किसी पर दावा करके वकील से कह गए थे कि जो काम हो वह मझु से करा लें। कुछ आवश्यकता पड़ने पर वकील साहब ने मझु े बल ु ा भेजा और कहा कि मैं पिताजी के हस्ताक्षर वकालतनामे पर कर द।ँू मैंने तरु ं त उत्तर दिया कि यह तो धर्म विरुद्ध होगा, इस प्रकार का पाप मैं कदापि नहीं कर सकता। वकील साहब ने बहुत समझाया कि मक ु दमा खारिज हो जाएगा। किंतु मझु पर कुछ भी प्रभाव न हुआ, न मैंने हस्ताक्षर किए। अपने जीवन में हमेशा सत्य का आचरण करता था, चाहे कुछ हो जाए, सत्य बात कह देता था। ग्यारह वर्ष की उम्र में माताजी विवाह कर शाहजहाँपरु आई थीं। उस समय वह नितांत अशिक्षित एक ग्रामीण कन्या के समान थीं। शाहजहाँपरु आने के थोड़े दिनों बाद दादीजी ने अपनी छोटी बहन को बल ु ा लिया। उन्होंने माताजी को गृहकार्य की मल्हार 52 Chapter 6.indd 52 10/06/2024 11:19:47 शिक्षा दी। थोड़े दिनों में माताजी ने घर के सब काम-काज को समझ लिया और भोजनादि का ठीक-ठीक प्रबंध करने लगीं। मेरे जन्म होने के पाँच या सात वर्ष बाद उन्होंने हिदं ी पढ़ना आरंभ किया। पढ़ने का शौक उन्हें खदु ही पैदा हुआ था। महु ल्ले की सखी-सहेली जो घर पर आया करती थीं, उन्हीं में जो शिक्षित थीं, माताजी उनसे अक्षर-बोध करतीं। इस प्रकार घर का सब काम कर चक ु ने के बाद जो कुछ समय मिल जाता, उसमें पढ़ना-लिखना करती। परिश्रम के फल से थोड़े दिनों में ही वह देवनागरी पस्तु कों का अध्ययन करने लगीं। मेरी बहनों को छोटी आयु में माताजी ही शिक्षा दिया करती थीं। जब से मैंने आर्यसमाज में प्रवेश किया, माताजी से खबू वार्तालाप होता। उस समय की अपेक्षा अब उनके विचार भी कुछ उदार हो गए हैं। यदि मझु े ऐसी माता न मिलतीं तो मैं भी अति साधारण मनषु ्यों की भाँति संसार-चक्र में फँ सकर जीवन निर्वाह करता। शिक्षादि के अतिरिक्‍त क्रांतिकारी जीवन में भी उन्होंने मेरी वैसी ही सहायता की है, जैसी मेजिनी को उनकी माता ने की थी। माताजी का सबसे बड़ा आदेश मेरे लिए यही था कि किसी की प्राणहानि न हो। उनका कहना था कि अपने शत्रु को भी कभी प्राणदडं न देना। उनके इस आदेश की पर्ति ू करने के लिए मझु े मजबरू न दो-एक बार अपनी प्रतिज्ञा भगं करनी पड़ी थी। जन्मदात्री जननी! इस जीवन में तो तमु ्हारा ॠण उतारने का प्रयत्न करने का भी अवसर न मिला। इस जन्म में तो क्या यदि मैं अनेक जन्मों में भी सारे जीवन प्रयत्न करूँ तो भी तमु से उॠण नहीं हो सकता। जिस प्रेम तथा दृढ़ता के साथ तमु ने इस तचु ्छ जीवन का सधु ार किया है, वह अवर्णनीय है। मझु े जीवन मेरी माँ की प्रत्येक घटना का स्मरण है कि तमु ने जिस प्रकार अपनी देववाणी 53 का उपदेश करके मेरा सधु ार किया है। Chapter 6.indd 53 10/06/2024 11:19:48 तमु ्हारी दया से ही मैं देश-सेवा में संलग्न हो सका। धार्मिक जीवन में भी तमु ्हारे ही प्रोत्साहन ने सहायता दी। जो कुछ शिक्षा मैंने ग्रहण की उसका भी श्रेय तमु ्हीं को है। जिस मनोहर रूप से तमु मझु े उपदेश करती थीं, उसका स्मरण कर तमु ्हारी मगं लमयी मर्ति ू का ध्यान आ जाता है और मस्तक झक ु जाता है। तमु ्हें यदि मझु े ताड़ना भी देनी हुई, तो बड़े स्नेह से हर बात को समझा दिया। यदि मैंने धृष्‍टतापर्णू उत्तर दिया तब तमु ने प्रेम भरे शब्दों में यही कहा कि तमु ्हें जो अच्छा लगे, वह करो, किंतु ऐसा करना ठीक नहीं, इसका परिणाम अच्छा न होगा। जीवनदात्री! तमु ने इस शरीर को जन्म देकर केवल पालन-पोषण ही नहीं किया बल्कि आत्मिक, धार्मिक तथा सामाजिक उन्नति में तमु ्हीं मेरी सदैव सहायक रहीं। जन्म-जन्मांतर परमात्मा ऐसी ही माता दें। महान से महान संकट में भी तमु ने मझु े अधीर नहीं होने दिया। सदैव अपनी प्रेम भरी वाणी को सनु ाते हुए मझु े सांत्वना देती रहीं। तमु ्हारी दया की छाया में मैंने अपने जीवन भर में कोई कष्‍ट अनभु व न किया। इस संसार में मेरी किसी भी भोग-विलास तथा ऐश्‍वर्य की इच्छा नहीं। केवल एक इच्छा है, वह यह कि एक बार श्रद्धापर्वू क तमु ्हारे चरणों की सेवा करके अपने जीवन को सफल बना लेता। किंतु यह इच्छा पर्णू होती नहीं दिखाई देती और तमु ्हें मेरी मृत्यु की दख ु भरी खबर सनु ाई जाएगी। माँ! मझु े विश्‍वास है कि तमु यह समझ कर धैर्य धारण करोगी कि तमु ्हारा पत्रु माताओ ं की माता या भारत माता की सेवा में अपने जीवन को बलि-देवी की भेंट कर गया और उसने तमु ्हारी कोख कलंकित न की, अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहा। जब स्वाधीन भारत का इतिहास लिखा जाएगा तो उसके किसी पृष्‍ठ पर उज्ज्वल अक्षरों में तमु ्हारा भी नाम लिखा जाएगा। गरुु गोबिंद सिंह जी की धर्मपत्नी ने जब अपने पत्रों ु की मृत्यु की खबर सनु ी तो बहुत प्रसन्न हुई थीं और गरुु के नाम पर धर्म-रक्षार्थ अपने पत्रों ु के बलिदान पर मिठाई बाँटी थी। जन्मदात्री! वर दो कि अति ं म समय भी मेरा हृदय किसी प्रकार विचलित न हो और तमु ्हारे चरण कमलों को प्रणाम कर मैं परमात्मा का स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करूँ। मल्हार — रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ 54 Chapter 6.indd 54 10/06/2024 11:19:48 लेखक से पर‍िचय भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक क्रांतिकारी वीरों ने अपना बलिदान दिया। ‘सरफरोशी की तमन्ना’ जैसा तराना लिखने वाले रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ भी उन्हीं क्रांतिकारियों में से एक थे। मात्र तीस वर्ष की आयु में अग्ं रेज़ सरकार द्वारा उन्हें फ़ाँसी (1897–1927) पर लटका दिया गया। असाधारण प्रतिभा के धनी रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ एक अच्छे कवि और लेखक भी थे। उन्होंने अनेक पस्त ु कें लिखीं जिनमें उनकी आत्मकथा काफ़ी चर्चित रही। ‘मेरी माँ’ उनकी आत्मकथा का ही एक अश ं है। पाठ से मेरी समझ से (क) नीचे दिए गए प्रश्‍नों का सटीक उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा () बनाइए— (1) ‘किंतु यह इच्छा पर्णू होती नहीं दिखाई देती।’ बिस्मिल को अपनी किस इच्छा के पर्णू न होने की आशक ं ा थी? ƒƒ भारत माता के साथ रहने की ƒƒ अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहने की ƒƒ अपनी माँ की जीवनपर्यंत सेवा करने की ƒƒ भोग विलास तथा ऐश्‍वर्य भोगने की (2) रामप्रसाद बिस्मिल की माँ का सबसे बड़ा आदेश क्‍या था? ƒƒ दशे की सेवा करें ƒƒ कभी किसी के प्राण न लेना ƒƒ कभी किसी से छल न करना मेरी माँ ƒƒ सदा सच बोलना (ख) अब अपने मित्रों के साथ तर्कपर्णू चर्चा कीजिए कि आपने ये ही उत्तर क्यों चनु े? 55 Chapter 6.indd 55 10/06/2024 11:19:49 पं क्‍तयों पर चर्चा पाठ में से चनु कर कुछ पंक्‍तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें पढ़कर समझिए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? कक्षा में अपने विचार साझा कीजिए और लिखिए। (क) “यदि मझु े ऐसी माता न मिलतीं, तो मैं भी अति साधारण मनषु ्यों की भाँति ससं ार-चक्र में फँ सकर जीवन निर्वाह करता।” (ख) “उनके इस आदेश की पर्ति ू करने के लिए मझु े मज़बरू न दो-एक बार अपनी प्रतिज्ञा भगं भी करनी पड़ी थी।” मिलकर करें मिलान पाठ में से चनु कर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समहू में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थ या सदं र्भों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इटं रनेट, पस्‍त ु कालय या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं। शब्द अर्थ या सदं र्भ 1. देवनागरी 1. सिखों के दसवें और अति ं म गरुु थे। उन्होंने खालसा पथं की स्थापना की। 2. आर्यसमाज 2. इटली के गप्ु ‍त राष्‍ट्रवादी दल का सेनापति; इटली का मसीहा था जिसने लोगों को एक सत्रू में बाँधा। 3. मेजिनी 3. महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित एक संस्‍था। 4. गोबिंद सिंह 4. भारत की एक भाषा-लिपि जिसमें हिदं ी, संस्कृ त, मराठी आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं। सोच-विचार के लिए मल्हार 56 पाठ को एक बार फिर से पढ़िए और दिए गए प्रश्‍नों के बारे में पता लगाकर अपनी लेखन पसु ्तिका में लिखिए। Chapter 6.indd 56 10/06/2024 11:19:50 1. बिस्मिल की माता जी जब ब्याह कर आई ंतो उनकी आयु काफ़ी कम थी। (क) फिर भी उन्होंने स्वयं को अपने परिवार के अनकु ू ल कै से ढाला? (ख) उन्‍होंने अपनी इच्छाशक्‍ति के बल पर स्वयं को कै से शिक्षित किया? 2. बिस्मिल को साहसी बनाने में उनकी माता जी ने कै से सहयोग दिया? 3. आज से कई दशक पहले बिस्मिल की माँ शिक्षा के महत्‍व को समझती थीं, बताइए कै से? 4. हम कै से कह सकते हैं कि बिस्मिल की माँ स्वतंत्र और उदार विचारों वाली थीं? आत्मकथा की रचना यह पाठ रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा का एक अश ं है। आत्मकथा यानी अपनी कथा। दनि ु या में अनेक लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं, कभी अपने लिए, तो कभी दसू रों के पढ़ने के लिए। (क) इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए और अपने-अपने समहू में मिलकर इस पाठ की ऐसी पंक्‍तियों की सचू ी बनाइए जिनसे पता लगे कि लेखक अपने बारे में कह रहा है। (ख) अपने समहू की सचू ी को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए। शब्द-प्रयोग तरह-तरह के (क ) “माता जी उनसे अक्षर-बोध करतीं।” इस वाक्य में अक्षर-बोध का अर्थ है— अक्षर का बोध या ज्ञान। एक अन्य वाक्य देखिए— “जो कुछ समय मिल जाता, उसमें पढ़ना-लिखना करतीं।” इस वाक्य में पढ़ना-लिखना अर्थात पढ़ना और लिखना। हम लेखन में शब्दों को मिलाकर छोटा बना लेते हैं जिससे समय, स्याही, कागज़ आदि की बचत होती है। सक्षेप ं ीकरण मानव का स्वभाव भी हैं। इस पाठ से ऐसे शब्द खोजकर सचू ी बनाइए। मेरी माँ 57 Chapter 6.indd 57 10/06/2024 11:19:50 पाठ से आगे आपकी बात (क) रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ के मित्रों के नाम खोजिए और स्वतंत्रता आदं ोलन में उनकी भागीदारी पर कक्षा में चर्चा कीजिए। (ख) नीचे लिखे बिंदओ ु ं को आधार बनाते हुए अपनी माँ या अपने अभिभावक से बातचीत कीजिए और उनके बारे में गहराई से जानिए कि उनका प्रिय रंग, भोज्य पदार्थ, गीत, बचपन की यादें, प्रिय स्थान आदि कौन-कौन से थे? उदाहरण के लिए— ƒƒ आपका जन्‍म कहाँ हुआ था? ƒƒ आपकी प्रिय पस्‍त ु क का नाम क्‍या है? पुस्तकालय या इटं रनेट से आप पस्त ु कालय से रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की आत्मकथा खोजकर पढ़िए। देशभक्‍तों से संबंधित अन्य पस्त ु कें , जैसे— उनके पत्र, आत्मकथा, जीवनी आदि पढ़िए और अपने मित्रों से साझा कीजिए। शब्दों की बात आप अपनी माँ को क्या कहकर संबोधित करते हैं? अन्य भाषाओ ं में माँ के लिए प्रयक्‍त ु संबोधन और माँ के लिए शब्द ढूँढ़िए। क्या उनमें कुछ समानता दिखती है? हाँ, तो क्या? आज की पहेली मल्हार यहाँ दी गई वर्ग पहेली में पाठ से बारह विशेषण दिए गए हैं। उन्हें छाँटकर पाठ में रे खांकित 58 कीजिए। Chapter 6.indd 58 10/06/2024 11:19:51 मं ग ल म यी ल प्र त्ये क नो छो टी धा ग्या र ह खू ब र्मि सा धा र ण ड़ा क दु ख भ री प म हा न स्वा धी न झरोखे से ऐ मातृभूमि! ऐ मातृभमि ू ! तेरी जय हो, सदा विजय हो। प्रत्येक भक्‍त तेरा, सखु -शांत‍ि-कांतिमय हो। अज्ञान की निशा में, दख ु से भरी दिशा में; ससं ार के हृदय में, तेरी प्रभा उदय हो। तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो। तेरी प्रसन्नता ही आनंद का विषय हो। वह भक्‍ति दे कि ‘बिस्मिल’ सख ु में तझु े न भल ू े, वह शक्‍ति दे कि दख ु में कायर न यह हृदय हो। — रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ मेरी माँ खोजबीन के लिए माँ से संबंध‍ित पाँच रचनाएँ पस्त ु कालय से खोजें और अपनी पत्रिका बनाएँ। 59 Chapter 6.indd 59 10/06/2024 11:19:52

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