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चरक प्रवेशिका (Charak Praveshika) PDF

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डॉ. शंकर लाल बुरडक

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Ayurveda Charaka Samhita Medical Texts Traditional Medicine

Summary

This document is a study guide or commentary on the Charaka Samhita, a foundational text of Ayurveda. It contains an index of topics and sections of the text, facilitating navigation and study. It focuses on traditional medicinal knowledge.

Full Transcript

# चरक-प्रवेशिका (चरकसंहिता का संक्षिप्त अध्ययन) (Essence of Charakasamhita) (संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण) लेखक डॉ. शंकर लाल बुरडक बी.ए.एम.एस., एम.डी. (आयुर्वेद संहिता एवं सिद्धान्त) आयुर्वेद चिकित्साधिकारी (आयुर्वेद विभाग, राजस्थान सरकार) राजकीय आयुर्वेद औषधालय, रामजीपुरा कलॉ, जयपुर (राज)...

# चरक-प्रवेशिका (चरकसंहिता का संक्षिप्त अध्ययन) (Essence of Charakasamhita) (संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण) लेखक डॉ. शंकर लाल बुरडक बी.ए.एम.एस., एम.डी. (आयुर्वेद संहिता एवं सिद्धान्त) आयुर्वेद चिकित्साधिकारी (आयुर्वेद विभाग, राजस्थान सरकार) राजकीय आयुर्वेद औषधालय, रामजीपुरा कलॉ, जयपुर (राज) - प्रकाशक - शंकर लाल बुरडक आयुर्वेद प्री-पी.जी. जयपुर ## विषयानुक्रमणिका (INDEX) चरकसंहिता परिचय 1-7 ## सूत्रस्थान 8-131 1. अध्याय – 1 – दीर्घञ्जीवितीयमध्याय 8-18 2. अध्याय – 2 - अपामार्गतण्डुलीयमध्याय 19-21 3. अध्याय – 3 – आरग्वधीयमध्याय 22 4. अध्याय – 4 – षड्विरेचनशताश्रितीयमध्याय 23-29 5. अध्याय - 5 - मात्राशितीयमध्याय 30-36 6. अध्याय – 6 – तस्याशितीयमध्याय 37-41 7. अध्याय – 7 – नवेगान्धारणीयमध्याय 42-46 8. अध्याय – 8 – इन्द्रियोपक्रमणीयमध्याय 47-49 9. अध्याय – 9 – खुड्डाकचतुष्पादमध्याय 50-51 10. अध्याय – 10 – महाचतुष्पादमध्याय 52-53 11. अध्याय - 11 – तिस्त्रैषणीयमध्याय 54-57 12. अध्याय - 12 - वातकलाकलीयमध्याय 58-59 13. अध्याय – 13 – स्नेहाध्याय 60-66 14. अध्याय – 14 – स्वेदाध्याय 67-70 15. अध्याय - 15 - उपकल्पनीयध्याय 71-72 16. अध्याय – 16 – चिकित्साप्राभृतीयमध्याय 73-75 17. अध्याय – 17 – कियन्तः शिरसीयमध्याय 76-81 18. अध्याय – 18 – त्रिशोथीयमध्याय 82-84 19. अध्याय – 19 – अष्टौदरीयमध्याय 85 20. अध्याय - 20 – महारोगाध्याय 86-88 21. अध्याय – 21 – अष्टौनिन्दतीयमध्याय 89-93 22. अध्याय – 22 – लंघनबृंहणीयमध्याय 94-96 23. अध्याय - 23 – सन्तर्पणीयमध्याय 97 24. अध्याय - 24 - विधिशोणितीयमध्याय 98-100 25. अध्याय – 25 – यज्जः पुरुषीयमध्याय 101-106 26. अध्याय - 26 - आत्रेयभद्रकाप्यीयमध्याय 107-114 27. अध्याय - 27 - अन्नपानविधिमध्याय 115-123 28. अध्याय – 28 – विविधाशितपीतीयाध्याय 124-125 29. अध्याय – 29 – दशप्राणायतनीयाध्याय 126-127 30. अध्याय – 30 – अर्थदशमहामूलीयमध्याय 128-131 ## निदानस्थान 132-149 1. अध्याय – 1 - ज्वरनिदानम् 132-135 2. अध्याय – 2 - रक्तपित्तनिदानम् 136-137 3. अध्याय – 3 - गुल्मनिदानम् 138-139 4. अध्याय – 4 - प्रमेहनिदानम् 140-141 5. अध्याय - 5 - कुष्ठनिदानम् 142-143 6. अध्याय – 6 - शोषनिदानम् 144-145 7. अध्याय – 7 - उन्मादनिदानम् 146-147 8. अध्याय – 8 - अपस्मारनिदानम् 148-149 ## विमानस्थान 150-178 1. अध्याय – 1- रसविमानम् 150-153 2. अध्याय – 2 - त्रिविधकुक्षीयं विमानम् 154-155 3. अध्याय – 3 - जनपदोद्धंसनीयं विमानम् 156-157 4. अध्याय – 4 - त्रिविधरोगविशेषविज्ञानीयं विमानम् 158-159 5. अध्याय - 5 - स्रोतसां विमानम् 160-162 6. अध्याय – 6 - रोगनीकं विमानम् 163-164 7. अध्याय – 7 - व्याधितरूपीयं विमानम् 165-167 8. अध्याय – 8 - रोगभिषग्जितीयं विमानम् 168-178 ## शारीरस्थान 179-208 1. अध्याय – 1 - कतिधापुरुषीयं शारीरम् 179-184 2. अध्याय – 2 - अतुल्यगोत्रीयं शारीरम् 185-186 3. अध्याय – 3 - खुड्डिकां गर्भावक्रान्तिं शारीरम् 187-188 4. अध्याय – 4 - महती गर्भावक्रान्तिं शारीरम् 189-193 5. अध्याय - 5 - पुरुषविचयं शारीरम् 194-195 6. अध्याय - 6- शरीरविचयं शारीरम् 196-197 7. अध्याय – 7 - शरीरसंख्याशारीरम् 198-200 8. अध्याय – 8 - जातिसूत्रीयं शारीरम् 201-208 ## इन्द्रियस्थान 209-222 1. अध्याय – 1 - वर्णस्वरीयमिन्द्रियम् 209 2. अध्याय – 2- पुष्पितकमिन्द्रियम् 210 3. अध्याय – 3 - परिमर्शनमिन्द्रियम् 211 4. अध्याय – 4 - इन्द्रियानीकमन्द्रियम् 212 5. अध्याय – 5 - पूर्वरूपीयेन्द्रियम् 213-214 6. अध्याय – 6 - कतमानिशिरीरीयमिन्द्रियम् 215 7. अध्याय – 7 - पन्नरूपीयमिन्द्रियम् 216 8. अध्याय – 8 - वाक्शिरसीयमिन्द्रियम् 217 9. अध्याय – 9 - यस्यश्यावनिमित्तीयमिन्द्रियम् 218 10. अध्याय – 10 - सद्योमरणीयमिन्द्रियम् 219 11. अध्याय – 11 - अणुज्योतीयमिन्द्रियम् 220 12. अध्याय – 12 - गोमयचूर्णीयमिन्द्रियम् 221 13. अरिष्ट संग्रहण - कालानुसार 222 ## चिकित्सास्थान 223-347 1. अध्याय - 1- रसायनाध्यायः 223-232 - पाद – 1 – अभयामलकीयं रसायनपादम् 223-226 - पाद – 2 – प्राणकामीयं रसायनपादम् 227-228 - पाद - 3 – करप्रचितीयं रसायनपादम् 229-231 - पाद – 4 – आयुर्वेदसमुत्थानीयं रसायनपादम् 232 2. अध्याय – 2- वाजीकरणाध्यायः 233-236 - पाद – 1 – संयोगशरमूलीय वाजीकरणपादम् 233 - पाद – 2 – आसिक्तक्षीरिकं वाजीकरणपादम् 234 - पाद – 3 – माषपर्णभृतीयं वाजीकरणपादम् 235 - पाद – 4 – पुमाञ्जातबलादिकं वाजीकरणपादम् 236 3. अध्याय – 3 - ज्वरचिकित्सितम् 237-247 4. अध्याय – 4 - रक्तपित्तचिकित्सितम् 248-250 5. अध्याय – 5 - गुल्मचिकित्सितम् 251-255 6. अध्याय – 6 - प्रमेहचिकित्सितम् 256-257 7. अध्याय – 7 - कुष्ठचिकित्सितम् 258-261 8. अध्याय – 8 - राजयक्ष्मचिकित्सितम् 262-264 9. अध्याय – 9 - उन्मादचिकित्सितम् 265-267 10. अध्याय - 10 - अपस्मारचिकित्सितम् 268-269 11. अध्याय - 11 - क्षतक्षीणचिकित्सितम् 270-271 12. अध्याय – 12 - श्वयथुचिकित्सितम् 272-275 13. अध्याय - 13 - उदरचिकित्सितम् 276-281 14. अध्याय - 14 - अर्शचिकित्सितम् 282-285 15. अध्याय - 15 - ग्रहणीदोषचिकित्सितम् 286-291 16. अध्याय – 16 - पाण्डुरोगचिकित्सितम् 292-295 17. अध्याय – 17 - हिक्काश्वासचिकित्सितम् 296-299 18. अध्याय - 18 - कासचिकित्सितम् 300-302 19. अध्याय – 19 - अतिसारचिकित्सितम् 303-304 20. अध्याय – 20 - छर्दिचिकित्सितम् 305 21. अध्याय – 21 - विसर्पचिकित्सितम् 306-308 22. अध्याय - 22 - तृष्णाचिकित्सितम् 309-310 23. अध्याय - 23 - विषचिकित्सितम् 311-317 24. अध्याय – 24 - मदात्ययचिकित्सितम् 318-320 25. अध्याय – 25 - द्विव्रणीयचिकित्सितम् 321-323 26. अध्याय – 26 - त्रिमर्मीयचिकित्सितम् 324-329 27. अध्याय – 27 - उरुस्तम्भचिकित्सितम् 330-331 28. अध्याय – 28 - वातव्याधिचिकित्सितम् 332-337 29. अध्याय – 29 - वातशोणितचिकित्सितम् 338-340 30. अध्याय – 30 - योनिव्यापच्चिकित्सितम् 341-347 ## कल्पस्थान 348-362 1. अध्याय - 1 - मदनकल्पम् 348-349 2. अध्याय – 2 - जीमूतककल्पम् 350 3. अध्याय - 3 - इक्ष्वाकुकल्पम् 351 4. अध्याय – 4 - धामार्गवकल्पम् 352 5. अध्याय - 5 - वत्सककल्पम् 353 6. अध्याय – 6 - कृतवेधनकल्पम् 354 7. अध्याय – 7 - श्यामात्रिवृत्कल्पम् 355 8. अध्याय – 8 - चतुरङ्गुलकल्पम् 356 9. अध्याय – 9 - तिल्वककल्पम् 357 10. अध्याय – 10 - सुधाकल्पम् 358 11. अध्याय – 11- सप्तलाशङ्खिनीकल्पम् 359 12. अध्याय – 12 - दन्तीद्रवन्तीकल्पम् 360-362 ## सिद्धिस्थान 363-389 1. अध्याय – 1 - कल्पनासिद्धिम् 363-366 2. अध्याय – 2 - पञ्चकर्मीयां सिद्धिम् 367-368 3. अध्याय – 3 - बस्तिसूत्रीयां सिद्धिम् 369-371 4. अध्याय – 4 - स्नेहव्यापत्सिद्धिम् 372-373 5. अध्याय – 5 - नेत्रबस्तिव्यापत्सिद्धिम् 374 6. अध्याय – 6 - वमनविरेचनव्यापत्सिद्धिम् 375-376 7. अध्याय – 7 - बस्तिव्यापत्सिद्धिम् 377 8. अध्याय – 8 - प्रासृतयोगीयां सिद्धिम् 378 9. अध्याय – 9 - त्रिमर्मीयां सिद्धिम् 379-383 10. अध्याय – 10 - बस्तिसिद्धिम् 384 11. अध्याय – 11 - फलमात्रासिद्धिम् 385-386 12. अध्याय – 12 - उत्तरबस्तिसिद्धिम् 387-389 ## न्याय सन्दर्भ – चक्रपाणिदत्तोक्त न्याय संग्रहण (ससन्दर्भ) 390 ## मंगलाचरण – सन्दर्भ - 391 ## रोग भेद सारणी 392-395 ## रोगाधिकार योग अनुक्रमणिका 396-405 ## चरकसंहिता – महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ 406-415 ## कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण बिन्दु 416 ## मन्त्रोच्चारण (मन्त्र-प्रयोग) 417 ## चरकसंहिता – पूर्व परीक्षाओं में पूछे गये प्रश्नों का सन्दर्भ संग्रहण 418-553 ## चरकसंहिता - परिचय - महर्षि पुनर्वसु आत्रेयोपदिष्टा श्रीमदग्निवेशप्रणीता चरकदृढबलप्रतिसंस्कर्त्ता। - उपदेष्टा / मूल उपदेष्टा – आत्रेय पुनर्वसु (काल - 1000 ई.पूर्व) - तंत्रकर्ता/संस्कर्ता – अग्निवेश (अग्निवेशतंत्र) (काल – 1000 ई.पू.) - प्रतिसंस्कर्ता / भाष्यकार – चरक (काल – 2 री शती ई.पू.) - द्वितीय प्रतिसंस्कर्ता/सम्पूर्णकर्ता/पूरक/सम्पूरक - दृढबल – 4 थी शती * चक्रपाणि अनुसार - चरक द्वारा लिखित चिकित्सा स्थान के अध्याय – 13 * परन्तु द्विव्रणीय अध्याय (25) की पुष्पिका में इसे दृढबल द्वारा पूरित बताया गया है * तथा विष अध्याय (23) की पुष्पिका में इसे चरक द्वारा पूरित बताया गया है, यथा * (दृढबल द्वारा पूरित अध्याय - 41 अध्याय * स्थान एवं अध्याय – 120 अध्याय 8 स्थानों में निबद्धित है। | स्थान | चरक | सुश्रुत | अ.सं. | अ.हृ. | का.सं. | |-------|-------|--------|-------|-------|--------| | सूत्र | 30 | 46 | 40 | 30 | 30 | | निदान | 8 | 16 | 16 | 16 | 8 | | विमान | 8 | 8 | | | 8 | | शारीर | 8 | 10 | 12 | 6 | 8 | | इन्द्रिय | 12 | | | | 12 | | चिकित्सा | 30 | 40 | 24 | 22 | 30 | | कल्प | 12 | 8 | 8 | 6 | 12 | | सिद्धि | 12 | | | | 12 | | उत्तरतंत्र/उत्तरस्थान | | 66 | 50 | 40 | 80 | | खिलस्थान | | | | | | | कुल अध्याय | 120 | 186 | 150 | 120 | 180 | - सूत्रस्थान - श्लोक / संग्रह /आशय/शिरःशुभम् - निदानस्थान – व्याधिसंग्रह - विमानस्थान – निग्रहस्थान/मानस्थान - शारीरस्थान – आश्रयस्थान/आत्मनिश्चय स्थान (काश्यप) - इन्द्रियस्थान – अरिष्ट स्थान - चिकित्सास्थान – औषधयोगसंग्रह/उत्तमस्थल/उत्तमरहस्यस्थान/सुन्दरस्थान/गुप्तस्थान - कल्पस्थान - दिव्यस्थान/विकल्पस्थान * चरक – मनुस्मृति काल में (2 री शती ई.पू.) (शुङ्गकाल/मौर्य-शुङ्गकाल) * सुश्रुत – याज्ञवल्क्य स्मृति काल में हुये थे। * चरकसंहिता पर - 41 टीका (अन्य जगह 44 भी उल्लेखित है), इनमें से 17 संस्कृत टीकाओं का उल्लेख प्राप्त होता है जिनमें से भी 6 उपलब्ध तथा 2 सम्पूर्ण उपलब्ध । ## मुख्य टीकाएं - | क्र.सं. | टीका | टीकाकार | काल | |-------|---------|-----------------|------------------------------------------------| | 1 | चरकन्यास | भट्टार हरिचन्द्र | 6 शदी (Udaipur 2006, BHU 2006, JAM-07) | | 2 | चरक पञ्जिका | स्वामिकुमार (पञ्जिकाकार) | 9 वीं शदी (MH-2011) | | 3 | निरन्तरपदव्याख्या | जेज्जट | 9-10 वीं शदी (KLE-2013) | | 4 | बृहत्तन्त्रप्रदीप | नरदत्त (चक्रपाणिदत्त के गुरु) | 10-11वीं शदी (MH-2013) | | 5 | आयुर्वेददीपिका (चरकतात्पर्य) | चक्रपाणिदत्त | 11वीं शदी (Jam-11, BHU & KLE-13) | | 6 | चरकभाष्य | श्रीकृष्ण वैद्य | 11वीं शदी | | 7 | चरकतत्वप्रकाशकौस्तुभ | नरसिंह कविराज | 11वीं शदी | | 8 | चरकतत्त्वप्रदीपिका | शिवदास सेन | 16वीं शदी | | 9 | जल्पकल्पतरु | कविराज गंगाधर राय | 18वीं शदी (BHU-06, 07, Jam-07) | | 10 | चरकोपस्कार | योगिन्द्रनाथ सेन | 20वीं शदी (BHU-06, 2013, AIAPGET 2019, UKPSC AMO 2022) | | 11 | चरक प्रदीपिका | ज्योतिष चन्द्र सरस्वती | 20वीं शदी (BHU-86, 87, 90, 91) | | 12 | सर्वाङ्गसुन्दरी | लालचन्द्र वैद्य | 20वीं शदी (अप्रकाशित) | अरबी अनुवाद – 8 वीं शती – 'शरक इण्डियानस' नाम से प्रमुख-हिन्दी टीकाकार – रामप्रसाद शर्मा, श्रीकृष्ण लाल, जयदेव विद्यालंकार, अत्रिदेव विद्यालंकार, काशीनाथ पाण्डेय व गोरखनाथ चतुर्वेदी – विद्योतिनी - ब्रह्मानन्द त्रिपाठी – चरक-चन्द्रिका - विद्याधर शुक्ल व रविदत्त त्रिपाठी – वैद्य मनोरमा व्याख्या - बनवारी लाल गौड – (आयुर्वेददीपिका का हिन्दी अनुवाद – एषणा) - अंग्रेजी अनुवाद – अविनाशचन्द्र कविरत्न – अपूर्ण प्रकाशित (कलकत्ता से) – 1891-1899 - चरक संहिता मूल व चक्रपाणिटीका का अंग्रेजी अनुवाद - डॉ. आर. के. शर्मा व वैद्य भगवानदास द्वारा – 1976-1977 - चरक क्लब – न्युयार्क स्थित – 1898 में प्रो. आसलर द्वारा स्थापित ## सम्भाषा परिषद् – 7 (NIA+Jam-2012) | परिषद् | अध्याय | स्थान/आयोजक | विषय | |--------|--------------------------------|---------------------------------|-------------------------------------------| | च.सू. 1 | दीर्घञ्जीवितीयमध्याय | पार्श्वे हिमवतः शुभे | आयुर्वेदावतरण / रोगोत्पत्ति | | च.सू. 12 | वातकलाकलीयाध्याय | (53 ऋषि) | त्रिदोष गुणधर्म विवेचन | | च.सू. 25 | यज्जपुरुषीयाध्याय | (8 ऋषि, 8 प्रश्न) | राशिपुरुष एवं व्याधि | | च.सू. 26 | आत्रेयभद्रकापीयाध्याय | काशी/काशीपति वामक | सम्यक् आहाररस विनिश्यार्थ | | च.शा. 3 | खुड्डिकां गर्भावक्रान्तिं शारीरम् | चैत्ररथवन (10) ऋषि) | गर्भोत्पत्ति विचार | | च.शा. 6 | शरीरविचयशारीरम् | (8 ऋषि, गर्भविषयक 9 प्रश्न) | गर्भ में प्रथम अङ्गोत्पत्ति | | च.सि. 11 | फलमात्रासिद्धिम् | दृढबल द्वारा (10 ऋषि) | निरुह बस्ति हेतु सर्वोत्तम फल विनिश्चयार्थ | ## चरकसंहिता पर दर्शनों का प्रभाव – - चरकसंहिता का सैद्धान्तिक पक्ष सांख्य व योग दर्शन से सामञ्जस्य रखता है तथा व्यवहारिक पक्ष न्याय व वैशेषिक दर्शन से सामञ्जस्य रखता है। | दर्शन | चरक-संहिता | |-------------------------|----------------------------------------------------------------------| | वैशेषिकदर्शन | षट् पदार्थ (च.सू. 1) (व्यवहारिक एवं चिकित्सीय दृष्टिकोण को महत्व दिया गया है) | | न्यायदर्शन | प्रमाण (च.सू. 11), वादमार्ग (च.वि. 8) | | सांख्यदर्शन | च.शा. 1, च.सू. 13 | | योगदर्शन | योग एवं मोक्ष का वर्णन (च.शा. 1) | | वेदान्त दर्शन | आत्मा, एक धातुज पुरुष का वर्णन (च.शा. 1) | | मींमासादर्शन | सद्धृत (च.सू. 8)/ आयुर्वेद मंत्रादि से चिकित्सा / | ## आचार्यों का परिचय - - प्रमाण के लिये 'परीक्षा' शब्द का प्रयोग किया गया है। - निदान एवं चिकित्सा में 'देहमानस' की संश्लिष्ट धारणा स्वीकृत की गई है। - 'पुरुषं पुरुषं वीक्ष्य' सामान्य और विशेष की का यह समन्वय चरक की विशेषता है। - दशविध परीक्षा व दशविध परीक्ष्य भाव रोग विज्ञान के क्षेत्र में चरक की मौलिक देन है। - चरक की मौलिक देन 'स्वभावोपरमवाद' प्राकृतिक चिकित्सा का मूल है। - रसायन के विषय का विशद व विशिष्ट वर्णन चरक की मौलिक देन है। - द्रव्यों का रचनानुसार व कर्मानुसार वर्गीकरण सर्वप्रथम चरकसंहिता में मिलता है। - 50 महाकषायों का कर्मानुसार निर्धारण चरक की मौलिक देन है। - त्रिस्कन्ध वर्णन व निदान पञ्चक का वर्णन चरक की मौलिक देन है। - चरक संहिता में इतिहास शब्द '2 बार' एवं सांख्य शब्द '5बार' आया है। - चरक ने केवल वात के पांच भेदों का नामोल्लेख किया है। - ओज को मधु कहा है। (ओजोमेह- मधुमेह ओज का रस – मधु-कषाय) - चरक ने पुरुष एवं चिकित्सा को षोडशकला युक्त माना है। - चरकसंहिता में सर्वप्रथम 'अयस्कृति' शब्द का उल्लेख हुआ है (सर्वप्रथम वर्णन – सुश्रुतसंहिता में) - आतुरालय, सूतिकागार व कुमारागार का वर्णन आया है। - चरक संहिता में कुल – 68 आचार्यों एवं 14 देशों का नामोल्लेख मिलता है। - सूत्रस्थान का वर्णन कुल 7 चतुष्कों व 2 संग्रहाध्यायों किया गया है। - चतुष्क – भैषज, स्वस्थ, निर्देश, कल्पना, रोग, योजना, अन्नपान - चरकसंहिता में कुल 12000 श्लोक थे, वर्तमान में इनमें से 9498 श्लोक तथा 9295 सूत्र उपलब्ध है। - चरक संहिता में कुल 1950 औषध योगों का वर्णन किया गया है। ## विभिन्न ऋषि/चिकित्सक एवं उनके देश – (च.सू. 1/8-14) - कांकायन – बाह्रीकभिषक् (युनानी चिकित्सक) - हिरण्याक्ष (कुशिक) – युरोपीय चिकित्सक - पैङ्गि - चीनी चिकित्सक - अगस्त्य – दक्षिण भारतीय चिकित्सक - वैखानस – वानप्रस्थानश्रमसेवी - बालखिल्य – शिशुऋषि ## चतुर्विध सूत्र – गुरुसूत्र, शिष्यसूत्र, प्रतिसंस्कर्तृसूत्र, एकीयसूत्र (UK 2013) - गुरुसूत्र – (गुरु द्वारा उपदेश – शिष्य के प्रश्न का उत्तर) - शिष्यसूत्र – (गुरु से प्रश्न) - प्रतिसंस्कर्तृसूत्र - (किसी आचार्य को संबोधित करता हुआ) - एकीयसूत्र – (किसी आचार्य का मत) ## अनुबन्ध चतुष्ट्य – अभिधेय, प्रयोजन, संबंध, अधिकारी (च.वि. 8) - अभिधेय – स्कन्धत्रय (हेतु दोष द्रव्य) – रोगों की उत्पत्ति करना - प्रयोजन – धातुसाम्य क्रियाश्चोक्ता तन्त्रास्यस्य प्रयोजनम्। - संबंध – वाच्य-वाचक लक्षण - अधिकारी – शास्त्र अध्ययन योग्य (चरक-3, क्षुद्र नही) (सुश्रुत - 4 – क्षुद्र भी - कुलगुणसम्पन्न) ## अन्य-विशिष्ट-बिन्दु - - हेतु चतुष्ट्य – अयोग, अतियोग, मिथ्यायोग, समयोग (च.सू. 8) - त्रिविध हेतु संग्रह/हेतु सूत्र – अयोग (हीनयोग – अ.सं.), अतियोग, मिथ्यायोग - त्रिविध ज्ञानोपाय अध्ययन, अध्यापन, तद्विधसम्भाषा (च.वि. 8) - त्रिविध रोग ज्ञानोपाय (त्रिविध ज्ञान संग्रह) – आप्तोपदेश, प्रत्यक्ष, अनुमान (च.वि. 4) - त्रिविध बोध्य संग्रह – प्रकृति, अधिष्ठान, समुत्थान (च.सू. 18) - अर्थद्वय – आरोग्यं इन्द्रियविजयं च। (च.सू. 8 – सद्वृत्त परिपालन से प्राप्ति) - त्रिसूत्र/त्रिस्कन्ध - हेतु, लिङ्ग, औषध (च.सू. 1) (KLE 2013, HR DSC - 2013) - स्कन्धत्रय – हेतु, दोष, द्रव्य - त्रिविध आश्रय/वेदनाधिष्ठान – शरीर, सत्त्व, इन्द्रिय (च.शा. 1) - व्याधि एवं सुख के आश्रय – शरीर एवं मन - त्रिदण्ड – सत्त्व, आत्मा, शरीर (BHU 2004, 1992 APPSC 1989, Hydrabad 1990) - त्रिस्तम्भ/त्रिस्थूण (सुश्रुत, काश्यप) – वात, पित्त, कफ - त्रयोपस्तम्भ – आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य (वाग्भट्ट – अब्रह्मचर्य) ## चरकसंहितोक्त स्थान-विशेष - - दीर्घञ्जीवितीय – पार्श्वे हिमवतः शुभे - जनपदोध्वंस विमान – पञ्चालक्षेत्रे काम्पिलयराजधान्याम्, गंगातीरे घर्ममास - रक्तपित्त चिकित्सा – पञ्चगङ्गे - उदर चिकित्सा – कैलासे नन्दनोपमे - अतिसार चिकित्सा – हिमवतः पार्श्वे - विसर्प चिकित्सा – कैलासे किन्नराकीर्णे - योनिव्यापद् चिकित्सा –

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