1857 की क्रांति PDF

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1857 की क्रांति भारतीय इतिहास आज़ादी आंदोलन इतिहास

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यह दस्तावेज़ 1857 की क्रांति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और इसमें संक्षेप में मुख्य घटनाओं का विवरण दिया गया है। दस्तावेज में विभिन्न राज्यों और उनके शासकों का उल्लेख किया गया है, जिसने क्रांति में भाग लिया।

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# 1857 की क्रांति ## 1857 की क्रांति - सर्वप्रथम 1776 ई में जयपुर के महाराजा पृथ्वीसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ संधि करने की इच्छा प्रकट की थी लेकिन असफल रहा - द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध (1803-1804 ई) में मराठओं की पराजय के बाद सिंधिया की शक्ति को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने राजपूत राज्यो...

# 1857 की क्रांति ## 1857 की क्रांति - सर्वप्रथम 1776 ई में जयपुर के महाराजा पृथ्वीसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के साथ संधि करने की इच्छा प्रकट की थी लेकिन असफल रहा - द्वितीय आंग्ल - मराठा युद्ध (1803-1804 ई) में मराठओं की पराजय के बाद सिंधिया की शक्ति को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने राजपूत राज्यों से संधियाँ करने में उत्सुकता दिखाई - गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली के आदेशानुसार लॉर्ड लेक ने राजपूत राजाओं के पास संधि का प्रपत्र भेजा जिसमें उल्लेख था कि कम्पनी (सरकार) और राजपूत राजाओं के मध्य मैत्री रहेगी ## मैत्रीपूर्ण संधियाँ | तिथि | स्थान | शासक | |---|---|---| | सितम्बर, 1803 | भरतपुर | रणजीतसिंह | | नवम्बर, 1803 | अलवर | बख्तावर सिंह (1803 के लासवारी युद्ध में अंग्रेजों का सर्मथन) | | दिसम्बर, 1803 | जयपुर | जगत‌सिंह | - 1804 में भरतपुर रियासत द्वारा मैत्री संधि का उल्लंघन किया गया (होल्कर को संरक्षण प्रदान) अतः 1805 में भरतपुर से दुबारा संधि करनी पड़ी - भरतपुर व मालवा में अंग्रेज सेना की विफलता के बाद ईस्ट इंडिया कम्पनी के संचालक मण्डल ने वेलेजली की देशी राज्यों के साथ संधि नीति को अस्वीकार कर दिया इस मुद्‌दे पर मतभेद होने पर वेलेजली ने त्यागपत्र दे दिया। - जुलाई, 1805 को कार्नवालिस जनरल गवर्नर बना। वह देशी राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का पक्षपाती था। - उसके उत्तराधिकारी जॉर्ज बार्ली ने अलवर और भरतपुर से हुई संधियों को छोड़कर शेष राज्यों की संधियों को अयोग्य ठहराया। ## 1817-18 की आधिक्य पार्थक्य की संधियाँ: | कारण | |---|---| | गृह क्लेश । आपसी फूट | | मराठों। पिंडारियों की लूटमार | | कृष्णा कुमारी विवाद | - गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने दिल्ली स्थित रेजीडेन्ट चार्ल्स मेटकॉक को राजपूत राजाओं के साथ संधिया करने का आदेश दिया। ## सहायक संधियाँ: | क्रम | रियासत | वर्ष | शासक | |---|---|---|---| | 1 | करौली | 9 नवम्बर 1817 | हरबक्शपाल | | 2 | टोंक | 15 नवम्बर 1817 | अमीर खाँ पिंडारी | | 3 | कोटा | 17 नवम्बर, 1817 | उम्मेद सिंह (शासक) जालिम सिंह (प्रधानमंत्री) | | 4 | जोधपुर | जनवरी, 1818 | मानसिंह | | 5 | मेवाड़ (उदयपुर) | जनवरी, 1818 | भूपालसिंह | - मालवा के रेजीडेन्ट मेलकाम ने डूंगरपुर, बांसवाडा और प्रतापगढ़ के साथ संधियाँ करके इन्हें कम्पनी का संरक्षण प्रदान किया। - करौली, टोंक, कोटा ने 1817 में तथा अन्य शेष सभी रियासतों ने 1818 में सहायक संधि की (जैसलमेर (1819) व सिरोही (1823) को छोड़‌कर) ## रियासतों के शासक :- | रियासत | शासक | |---|---| | करौली | हरबक्शपाल सिंह | | टोंक | अमीर खाँ पिंडारी | | कोटा | उम्मेद सिंह (शासक) जालिम सिंह (प्रधानमंत्री) | | जोधपुर | मानसिंह | | मेवाङ् (उदयपुर) | भूपालसिंह | | बीकानेर | सूरतसिंह | | जयपुर | जगतसिंह - 11 | जैसलमेर | मूलराज -II | | सिरोही | शिवसिंह | - सिंधिया के साथ हुई संधि के अनुसार जुलाई, 1818 में अजमेर पर भी अंग्रेजों का अधिकार हो गया। - लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1817 में राजपूताना एजेन्सी का गठन आगरा में किया [प्रथम अंग्रेज रेजीडेन्ट - आक्टरलोनी - 1832 में 'राजपूताना रेजीडेन्सी' नाम से कार्यालय अजमेर स्थानान्तरित । - प्रथम A.ज.ज.- जॉर्ज लॉकेट (क्रांति के समय भी) - 1845 में ग्रीष्मकालीन कार्यालय (मुख्यालय) - माः आबू - पद क्रम :- गवर्नर जनरल ↓ A.G.G. ↓ P.A. ↓ A.A. ## राज. में अंग्रेजों की प्रमुख सैन्य बटालियन :- ### 1. मेरे बटा‌लियन - - इसका गठन 1822-23 में हुआ था। - इसका मुख्यालय ब्यावर था। - इस बटालियन ने 1857 की क्रांति में भाग नहीं लिया था। ### 2. शेखावाटी ब्रिगेड - - इसका गठन 1834 में तथा मुख्यालय झुन्झुनू था। - डूंगरजी व जवाहर जी का सम्बध शेखावाटी ब्रिगेड से था। - ये दोनों सीकर के बठीठ-पाटोदा गाँव के निवासी इन्होंने क्रांति से पूर्व नसीराबाद छावनी को लूटा था। ### 3. जोधपुर लीजियन - - इसका गठन 1835 में तथा मुख्यालय एरिनपुरा था ### 4. कोटा कंटिनजेन्ट - - इतका गठन-1838 में - इसके तीन मुख्यालय देवली, नीमच व आगरा थे। ### 5. मेवाड़ भील कोर - - इसका गठन 1841 में हुआ। - मुख्यालय - खैखाड़ा (उदयपुर) - 1857 की क्रांति में भाग नहीं लिया था। - 1837 में जेम्स आउट्रम के सुझाव पर गठन। - माहीकांठा का पो. एंजेट सरदार सिंह के समय - क्रांति के समय राज में 6 सैनिक छावनी थी। ### 1. नसीराबाद छावनी - अजमेर - यहां 15 वीं बंगाल नेटिव इफेन्ट्री के सैनिकों ने विद्रोह किया था। ### 2. नीमच छावनी (MP) - कोटा कटिनजेन्ट ### 3. देवली (टोंक) - कोटा कंटिजेन्ट बटालियन ### 4. एरिनपुरा (सिरोही, पाली) - जोधपुर लीजियन ### 5. व्यावर (अजमेर) - मेर बटालियन ### 6. खैखाड़ा (उद‌यपुर) - मेवाडू भील कोर ## क्रांति के समय रियासतों के शासक व पो० एजेंट - | रियासत | शासक | पो० एजेंट | |---|---|---| | मेवाड | स्वरूप सिंह | कैप्टन शावर्स | | मारवाड़ | तख्तसिंह | मैकमोसन | | जयपुर | रामसिह-11 | कर्नल ईडन | | कोटा | रामसिह-Ⅱ | मेजर बर्तन | | भरतपुर | जसवंत सिंह | मॉरिशन | | सिरोही | शिवसिंह | J.D. हाल | | बूंदी | रामसिंह | | शाहपुरा | लक्ष्‌मणसिंह | | बांसवाडा | लक्ष्मणसिंह | | रियासत | शासक | |---|---| | झालावाड़ | डूंगरसिंह | | टोंक | नवाब वजीरूद्दौला | | बीकानेर | सरदार सिंह | | धौलपुर | भगवंत सिंह | | करौली | मदनपाल | | अलवर | विनयसिंह | | डूंगरसिंह | उदयसिंह | | जैसलमेर | रणजीत सिंह | ## नसीराबाद में विद्रोह :- - राजस्थान में क्रांति का प्रारंभ 28 मई 1857 को नसीराबाद की छावनी से हुआ था। - यहाँ विद्रोह का प्रारम्भ 15 वीं बंगाल NI बटालियन ने किया था। - यहाँ क्रांति का नेतृत्व बख्तावर सिंह ने किया था। - क्रांतिकारियों ने दो अंग्रेज अधिकारियों स्पोटिश वुड़ व न्यूबैरी को मार दिया तथा हार्डी व लॉक घायल हुए। - इस छावनी के क्रांतिकारी 18 जून 1857 को दिल्ली चले गये और बहादुर शाह जफर का सहयोग किया ## नीमच में विद्रोह :- - यहाँ क्रांति का प्रारम्भ 3 जून 1857 को हुआ । - यहाँ क्रांति का नेतृत्व हीरासिंह और मोहम्मद अली बेग ने किया। - मोहम्मद अली बेग ने अंग्रेज अधिकारी एबाट के सम्मुख वफादारी। राजभक्ति की शपथ लेने से इन्कार कर दिया था। - नीमच में कुछ अंग्रेज परिवार भी थे, जिन्होंने क्रांति के दौरान चित्तौड़‌गढ़ के डूंगला नामक गाँव में रूगाराम नामक किसान के घर में शरण ली थी, बाद में महाराणा ने। महाराणा स्वरूपसिंह इन परिवारों को पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी। - मैक डोनाल्ड नामक अंग्रेज अधिकारी का सम्बध नीमच से है। - शाहपुरा के लक्ष्मणसिंह ने नीमच के विद्रोही सैनिकों की सहायता की थी। ## एरिनपुरा में विद्रोह : - यह क्रांति का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र था। - यहाँ क्रांति का प्रारम्भ 21 अगस्त 1857 को हुआ तथा यहाँ क्रांति का प्रारम्भ में नेतृत्व शीतल प्रसाद तिलकराम और मोती खाँ ने किया था। लेकिन बाद में खैखा नामक स्थान पर क्रांतिकारी सैनिक कुशाल सिंह से मिले और क्रांति का नेतृत्व कुशाल सिंह को सौंप दिया। - कुशाल सिंह जोधपुर राज्य के आऊवा ठिकाने का जागीरदार था। - एरिनपुरा छावनी के सैनिकों का मुख्य नारा - 'चलो दिल्ली, मारो फिरंगी' - कुशालसिंह ने सुगाली माता मंदिर और कामेश्वर महादेव मंदिर को क्रांति का केन्द्र बनाया था। ## प्रमुख संघर्ष ९ ### 1. वियौड़ा का युद्ध - - यह युद्ध 8 सितम्बर 1857 को क्रांतिकारियों व जोधपुर राज्य की सेना के मध्य हुआ था। - इस युद्ध में क्रांतिकारियों की सेना का नेतृत्व ठा. कुशालसिंह ने तथा जोधपुर राज्य की सेना का नेतृत्व ओनाड़ सिंह, कुशलराज सिंघवी ने किया था। - इस युद्ध में ओनाडु सिंह पराजित हुआ और मारा गया। - इस युद्ध में हीथकोट नामक अंग्रेज सैन्य अधिकारी भी मारा गया था। ### 2. चेलावास युद्ध ९- 185cp. 1857 - यह युद्ध क्रांतिकारियों ओर जोधपुर राज्य व अंग्रेजों की संयुक्त सेना के मध्य हुआ था। - इस युद्ध में क्रांतिकारी सेना का नेतृत्व ठा. कुशाल सिंह ने तथा अंग्रेज या संयुक्त सेना का नेतृत्व स्वयं AGG पेट्रिक लॉरेन्स ने किया था। - इस युद्ध में मारवाड़ का पो० एंजेट मैकमोसन मारा गया तथा AGG पैट्रिक लॉरेन्स को जान बचाकर भागना पड़ा। - इस युद्ध को मारवाड़ के गीतों में गोरा - काला का युद्ध भी कहा गया है। - इस युद्ध को आऊवा युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। *Note - मारवाड की रेबारी जाति मैकमोसन को वर्तमान में लोकदेवता के रूप में पूजती है* - अंग्रेज सेनापति होम्स ने आऊवा क्रांति का दमन किया था। - 25 जनवरी 1858 को होम्स ने आहुवा। आऊवा पर अधिकार कर लिया था। - 8 अगस्त 1860 को कुशालसिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया था। - टेलर आयोग ने सबूतों के अभाव के आधार पर ठाः कुशाल सिंह को क्रांति सम्बंधी सभी अभियोगों से मुक्त कर दिया था। - कुशाल सिंह के बाद आऊवा क्रांति का नेतृत्व आसोप के जागीरदार शिवनाथ सिंह ने तथा लाम्बिया जागीरदार पृथ्वीसिंह ने किया था। - कुशालसिंह की मृत्यु 1864 ई. में उदयपुर में हुई थी। ## कोटा में विद्रोह :- - कोटा जन विद्रोह का सबसे बड़ा केन्द्र था। - यहा क्रांति का दौर सबसे लम्बे समय तक चला था। - यहा क्रांति का प्रारम्भ 15 अक्टूम्बर 1857 को हुआ। - यहाँ क्रांति को नेतृत्व जयद‌‌याल भटनागर (मथुरा) ओर मेहराब खाँ (करौली) ने किया था। - क्रांतिकारियों ने कोटा के शासक रामसिंह को बंदी बना लिया ओर कोटा के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्तन व उसके पुत्रों व फैमिली डॉक्टर सैडलर, कोटम को मौत के घाट उतार दिया। - मेजर बर्टन की हत्या की जाँच हेतु लॉर्ड राबर्ट्स के नेतृत्व में आयोग का गठन किया गया। - करौली के शासक मदनपाल सिंह ने कोटा के शासक रामसिंह को क्रांतिकारियों की कैद से मुक्त करवाया। - 30 मार्च 1858 को अंग्रेज सेनापति रॉब‌र्ट्स ने मदनपाल सिंह के सहयोग से कोटा की क्रांति का दमन करके कोटा पर अधिकार कर लिया था। - क्रांति के बाद अंग्रेज सरकार ने कोटा राज्य को समान स्वरूप दी जाने वाली तोपों की सलामी को 17 से घटाकर 13 कर दिया था। - करौली राज्य की तोपों की सलामी में वृद्धि की गई थी (13 से बढ़ाकर 17 कर दी) ## जयपुर में विद्रोह :- - जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वारा क्रांति के दौरान अग्रेजों का सहयोग करने के कारण अंग्रेजों ने सवाई रामसिंह को कोटपूतली का परगना व सितारे-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की थी। ## सामोद - शिवसिंह - विलायत खाँ, उस्मान खाँ, सादुल्ला खाँ आदि। ## बीकानेर - - बीकानेर नरेश सरदार सिंह राजस्थान का एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने राज से बाहर जाकर क्रांति के दमन में अंग्रेजों का सहयोग किया था और क्रांति के दमन के लिए स्वंय सेना का नेतृत्व किया था परिणामतः अंग्रेजों ने सरदार सिंह को हनुमानगढ का टिब्बी क्षेत्र । पा गाँव) की जागीर प्रदान की थी। - धौलपुर - धौलपुर में क्रांतिकारियों ने राव रामचंद्र और हीरालाल के नेतृत्व में विद्रोह करके धौलपुर के राजा भगवत सिंह को बंदी बना लिया, लेकिन भगवंत सिंह ने पटियाला राज्य की सिक्ख सेना की सहायता से धौलपुर में विद्रोह का द‌मन कर दिया। - टोंक - टोंक का नवाब वजीरुद्दौला अंग्रेजों के पक्ष में था, लेकिन नबाब के मामा मीर आलम खाँ ने टोंक में क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया था। - नासिर मुहम्मद खाँ के सहयोग से टोंक पर तात्या टोपे का अधिकार हुआ था। - आजमाइस (मोहम्मद मुजिब का नाटक) के अनुसार टोंक में महिलाओं ने भी क्रांति में भाग लिया था। - शाहपुरा नरेश लक्ष्मणसिंह । उम्मेद सिंह राजस्थान का एकमात्र ऐसा शासक था, जिसने अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांतिकारियों का सहयोग किया था। - बूंदी - बूंदी नरेश रामसिंह क्रांति के दौरान तटस्थ रहा, लेकिन उसकी सहानुभूति क्रांतिकारियों की तरफ थी। अतः उसने क्रांतिकारियों को बूंदी राज्य का खजाना लूटने दिया था। - अजमेर - 9 अगस्त 1857 को अजमेर के केन्द्रीय कारागार में कैदियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करते हुए क्रांति में भाग लिया था। - मेवाड़ रियासत के कोठारिया ठिकाने के जागीरदार जोधसिंह और सलूम्बर के जागीरदार केसरीसिंह ने कुशालसिंह व तात्या टोपे का सहयोग किया था। ## तांत्या टोपे # - इनका वास्तविक नाम - रामचंद्र पाण्डुरंग - यह मूलतः ग्वालियर का निवासी था, जो कानपुर के नाना साहब का सेनापति था। - इसने कानपुर, झांसी, ग्वालियर और राजस्थान में क्रांति में भाग लिया था। - राजस्थान में इनका अंग्रेजों से प्रथम संघर्ष 9 Aug. 1858 के भीलवाड़ा के कुआड़ा नामक स्थान पर हुआ। - इस कुआड़ा के युद्ध में अंग्रेज सेनापति राबर्ट्‌स ने तात्या टोपे को पराजित किया था। - ॥ दिसम्बर 1858 को तात्या टोपे ने बांसवाड़ा राज्य की सेना को पराजित करके बांसवाडा पर अधिकार कर लिया था। – तात्या टोपे का अंतिम संघर्ष जनवरी 1859 में सीकर में हुआ था, जहाँ अंग्रेज सेनापति होम्स ने सीकर के युद्ध में तात्या टोपे को पराजित किया था। – सीकर के सांगत भैरोसिंह द्वारा तात्या टोपे की सहायता किये जाने के कारण अंग्रेजों ने भैरोसिंह को फांसी की सजा सुनाई थी। - तात्या टोपे ने जैसलमेर को छोड़‌कर राजस्थान की सभी रियासतों का दौरा किया था। - नरवर (शाहपुरा, MP) के जमींदार मानसिंह नरूका के विश्वासघात के कारण पैरोन के जंगलों से तात्या टोपे को पकड़ा गया और 18 April 1859 को MP के शिपरी (शिवपुरी) नामक स्थान पर फांसी दे दी गई। ## अमरचंद बांठिया :- - यह मूलतः बीकानेर का निवासी था, जो ग्वालियर राजघराने में सिंधिया परिवार का दीवान था। - इसने क्रांति के दौरान लक्ष्मीबाई ओर तात्या टोपे की आर्थिक सहायता की थी, परिणामतः अंग्रेजों ने इसे फांसी की सजा दी थी। - क्रांति के दौरान फांसी की सजा दिये जाने वाला प्रथम राजस्थानी था। - इसे क्रांति का भामाशाह व राजस्थान का मंगल पांडे भी कहा जाता है। ## 1857 की प्रमुख | शीर्षक | शोधकर्ता | |---|---| | राजस्थान रोल इन द स्ट्रगल ऑफ 1857 | नाथूलाल खड़‌गावत | | द म्यूटनी इन राजपूताना | प्रिचार्ड | | आयो अंगरेज मुल्क र ऊपर | बांकीदास | | इला द देणी आपणी | सूर्यमल्ल मीसण | | मुल्क रा मीठा ठग | शंकरदान सामोर | | | ( अंग्रेजों के संदर्भ में) |

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