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७. पेड़ होने का अर्थ (आकलन) १. (अ) ललखिए :- पेड़ का बुलंद हौसला सूलित करने वाली दो पंखियााँ :- उत्तर : (१) भेड़िया, बाघ, शेर की दहा़ि पे ़ि डकसी से नहीीं डरता है । (२) पे़ि रात भर तूफान से ल़िा है । (आ) कृलत पूर्थ कीलिए :- पेड़ इन रूपों में दाता है उत्तर :...

७. पेड़ होने का अर्थ (आकलन) १. (अ) ललखिए :- पेड़ का बुलंद हौसला सूलित करने वाली दो पंखियााँ :- उत्तर : (१) भेड़िया, बाघ, शेर की दहा़ि पे ़ि डकसी से नहीीं डरता है । (२) पे़ि रात भर तूफान से ल़िा है । (आ) कृलत पूर्थ कीलिए :- पेड़ इन रूपों में दाता है उत्तर : (अ) पे़ि कडि को कागज दे ता है । (ख)पे ़ि प्रशासन को कुसी दे ता है । (ग)पे़ि िै द्य को दिाई दे ता है । (घ)पे़ि फल-फूल दे ता है । (शब्द संपदा) २. लनम्नललखित लिन्नार्थक शब्दों का अर्थपूर्थ वाक्य में प्रयोग कीलिए : (१) सााँस - सच कहा गया है डक जब तक सााँ स है , तब तक आशा नहीीं छो़िनी चाडहए। सास - अपने गुणोीं के कारण रुडच सास की बहुत ला़िली है । (२) ग्रह - सींपूणण सौर मींडल में शडन सबसे सुींदर ग्रह है । गृह - आलोक ने गृ ह-प्रिे श के अिसर पर ब़िी शानदार पार्टी दी। (३) आाँ िल - अनन्या सात साल की हो गई है पर अभी भी मााँ का आाँ चल पक़िे उसके पीछे - पीछे घूमती रहती है । अाँिल - भाई की पोस्टीं ग चींबल अाँ चल में होने पर घर के सभी लोग बहुत डचींडतत हुए। (४) कुल - रामचींद्र जी सू यण कुल के सू यण थे। कूल - नदी के कूल पर ठीं डी हिा मन को मोह रही थी। (अलिव्यखि) ३ (अ) 'पेड़ मनुष्य का परम लहतैषी', इस लवषय पर अपना मंतव्य ललखिए। उत्तर : पे ़ि मनुष्य का परम डहतैषी है । प्रकृडत की ओर से धरती को डदया गया अनमोल उपहार है पे़ि। सभी प्रकार की िनस्पडतयााँ , फल, फूल, अनाज, लक़िी, खडनज सभी हमें पे ़िोीं से ही डमलते हैं । पे ़ि हमें इमारती लक़िी, ईींधन, पशुओीं के डलए चारा, औषडध, लाख, गोींद, पत्ते आडद दे ते हैं । हम जो डिषै ली िायु बाहर छो़िते हैं , िृ क्ष उसे ग्रहण करके स्वच्छ और स्वास्थ्यिधण क िायु हमें प्रदान करते हैं और हमें जीिन दे ते हैं । पे ़ि िषाण कराने में भी सहायक होते हैं । हमें अपने जीिन में िृक्षोीं के महत्व को समझना चाडहए। (आ) 'िारतीय संस्कृलत में पेड़ का महत्त्व', इस लवषय पर अपने लविार व्यि कीलिए। उत्तर : भारतीय सीं स्कृडत में आडद काल से पे ़िोीं का महत्त्वपूणण स्थान रहा है । पे़िोीं को दे िताओीं का स्थान डदया गया है । पे ़िोीं की पूजा की जाती थी। उनके साथ मनुष्योीं के समान आत्मीयता बरती जाती थी। पीपल के पे़ि की पूजा-अचणना की जाती थी स्ियााँ उपिास करके उसकी पररक्रमा करती थी और जल अपणण करती थी। इसी प्रकार केले के पे ़ि के पूजन की भी प्रथा थी। तुलसी का पौधा तो आज भी अत्यींत पडित्र माना जाता है । बे ल के पे़ि के पत्ते भगिान शींकर के मस्तक पर चढाए जाते हैं । िातािरण की शुद्धता के डलए पे ़ि अत्यीं त आिश्यक हैं क्ोींडक हम जो डिषै ली िायु बाहर छो़िते हैं , पे़ि उसे ग्रहण करके स्वच्छ और स्वास्थ्यिधण क िायु हमें प्रदान करते हैं और हमें जीिन दे ते हैं । (रसास्वादन) ४. 'पेड़ हौसला है, पेड़ दाता है', इस कर्न के आधार पर संपूर्थ कलवता का रसास्वादन की लिए। उत्तर : पे ़ि होने का अथण कडिता में कडि डॉ. मु केश गौतम पे ़ि के माध्यम से मनुष्य को मानिता, परोपकार आडद मानिोडचत गुणोीं की प्रेरणा दे रहा है । मनुष्य जरा-सी प्रडतकूल पररस्स्थडत आने पर या डकसी कायण में मनचाही सफलता न डमलने पर हौसला खो बै ठता है । पे़ि भयीं कर आाँ धी-तूफान का सामना करता है , घायल होकर र्टे ढा हो जाता है , परीं तु िह अपना हौसला नहीीं छो़िता। पे ़ि के हौसले के कारण शाखोीं में स्स्थत घोींसले में डचड़िया के चहचहाते छोर्टे -छोर्टे बच्चे सारी रात भयीं कर तूफान चलते रहने के बाद भी सुरडक्षत रहते हैं । सचमुच पे ़ि का घोींसला बहुत ब़िा है । पे़ि बहुत ब़िा दाता है । पे़ि की ज़ि, तना, शाखाएाँ , पत्ते, फूल, फल और बीज अथाण त पे़ि का कोई भी भाग अनुपयोगी नहीीं होता। अपने स्वाथण के डलए पे ़ि पर कुल्हा़िी चलाने िालोीं, उसे कार्टने िालोीं के डकसी भी दु र्व्णिहार ि अत्याचार का पे ़ि कभी बदला लेने का नहीीं सोचता। िह तो जीिन भर दे ता ही रहता है । हम श्वासोच्छ्वास के माध्यम से जो डिषैली िायु बाहर छो़िते हैं , पे़ि उसे स्वच्छ करके हमें स्वास्थ्यिधणक िायु प्रदान करता है । पे़ि रोगोीं के डलए डिडभन्न प्रकार की औषडधयााँ दे ता है । मनुष्य समाज में डकसी की शियात्रा हो या कोई शुभ कायण, या डफर डकसी की बारात, पे ़ि सभी को पुष्ोीं की सौगात दे ता है । पे़ि कडि को कागज, कलम तथा स्याही, पे ़ि िैद्य और हकीम को डिडभन्न रोगोीं के डलए दिाएाँ तथा शासन और प्रशासन के लोगोीं को कुरसी, मेज और आसन दे ता है । िास्ति में दे खा जाए तो पे़ि की ऐसी कोई भी िस्तु नहीीं है , जो मनुष्य के काम न आती हो। पे ़ि सींत के समान है , जो दू सरोीं को दे ते ही हैं , डकसी से कुछ भी अपे क्षा नहीीं रखते। िास्तडिकता तो यह है डक पे ़ि दधीडच है । डजस प्रकार दधीडच ने दे िताओीं की रक्षा के डलए िज्राि बनाने के डलए जीते-जी अपनी अस्स्थयााँ भी दान कर दी थीीं, उसी प्रकार पे़ि डबना डकसी स्वाथण के जीिन भर दे ता ही रहता है । (सालहत्य संबंधी सामान्य ज्ञान) ५. (अ) नयी कलवता का पररिय - उत्तर : नयी कडिता में कार्व् क्षेत्र में नए भाि बोध को र्व्क्त करने के डलए डशल्प पक्ष और भाि पक्ष के स्तर पर नए प्रयोग डकए गए। नए प्रतीकोीं, उपमानोीं और प्रडतमानोीं को ढू ाँ ढा गया। पररणामस्वरूप नयी कडिता आज के मनु ष्य के र्व्स्त जीिन का दपण ण और आस-पास की सच्चाई की तस्वीर बनकर उभरी। (आ) डॉ. मुकेश गौतम िी की रिनाएाँ - उत्तर : (१) अपनोीं के बीच (२) सतह और डशखर (३) सच्चाइयोीं के रू-ब-रू (४) िृक्षोीं के हक में (५) लगातार कडिता (६) प्रेम समथणक हैं पे ़ि (७) इसकी क्ा जरूरत थी (कडिता सीं ग्रह)

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