छप्पय (नाभादास) PDF
Document Details
Uploaded by AccessibleBambooFlute
Tags
Summary
This document is a Hindi text about the poet Nabhadas and his work. The text focuses on the poetry of Kabir and Surdas, offering insight into their religious and social perspectives. The text details the significant aspects of their works.
Full Transcript
छप्पय (नाभादास) महत्वपूर्ण ब िंदु नाभादास का जन्म दबिर् भारत में हुआ था । नाभादास के शैशवास्था में उनके बपता की मृत्यु और अकाल के कारर् माता के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास हुआ । नाभादास का दूसरा नाम नाभाअली भी था । नाभादास रामभक्त कबव थे । ...
छप्पय (नाभादास) महत्वपूर्ण ब िंदु नाभादास का जन्म दबिर् भारत में हुआ था । नाभादास के शैशवास्था में उनके बपता की मृत्यु और अकाल के कारर् माता के साथ जयपुर (राजस्थान) में प्रवास हुआ । नाभादास का दूसरा नाम नाभाअली भी था । नाभादास रामभक्त कबव थे । नाभादास गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे । नाभादास के दीिा गुरु स्वामी अग्रदास (अग्रअली) थे । नाभादास की महत्वपूर्ण कृबत भक्तमाल तथा अष्टयाम है । भक्तमाल‘भक्त चररत्रों की माला’है।इसमें नाभादास के पूवणवती और समवती वैष्र्व भक्तों कें चररत्र कावर्णन है । नाभादास का स्थाई बनवास विंदृ ावन था। छप्पय एक छिंद है जो 6 पिंबक्तयों का गेय पद होता है। प्रस्तुत पाठ में क ीर और सूर पर बलखा गया छप्पय भक्तमाल से सिंकबलत हैं । क ीर भगबत बवमुख जे धमण सो स अधमण करर गाए । योग यज्ञ व्रत दान भजन ब नु तुच्छ बदखाए ।। प्रस्तुत पिंबक्तयािं नाभादास के छप्पय से बलया गया है जो उनकी एक महत्वपूर्ण कृबत भक्तमाल से उद्धत है । प्रथम छप्पय में नाभादास ने क ीर के व्यबक्तगत धाबमणक और सामाबजक बवशेषताओ िं का वर्णन बकया है। प्रस्तुत अवतरर् के माध्यम से क ीर दास जी ताते हैं बक भबक्त से बवमुख(मुख मोड़कर) होकर बकया गया धमण भी अधमण के समान होता है ।भबक्त के ब ना बकया गया योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन सभी तुच्छ होते हैंअथाणत सभी अथणहीन होते हैं । बहिंदू तुरक प्रमान रमैनी स दी साखी। पिपात नबहिं वचन स बहके बहतकी भाषी ।। प्रस्तुत पिंबक्तयािं नाभादास के ‘छप्पय’ से बलया गया है जो उनकी एक महत्वपूर्ण कृबत ‘भक्तमाल’ से उद्धत है । प्रथम छप्पयमें नाभादास जी ने सिंत बशरोमबर् क ीर दास की व्यबक्तगत धाबमणक और सामाबजक बवशेषताओ िं का उल्लेख बकया है। प्रस्तुत अवतरर् के माध्यम से नाभादास कहते हैं बक क ीर ने बहदिं ू और मुसलमान दोनों धमण के लोगों के बलए तीन पुस्तके बलखी बजसका नाम रमैनी , स दी, साखी है बजसमें भक्तों के नए स्वरूप की चचाण है। यह तीन कृबतयािं बहिंदू और मुसलमानों के बलए प्रमार् स्वरूप है बजसमें धमण और मजह को लेकर पिपात नहीं बकया गया और सभी के बहत की ात कही गई है। आरूढ़ दशा ह्वै जगत पै , मुख देखी नाहीं भनी । क ीर काबन राखी नहीं, वर्ाणश्रम षट दशणनी ।। प्रस्तुत पिंबक्तयािं नाभादास के ‘छप्पय’से बलया गया है जो उनकी एक महत्वपूर्ण कृबत ‘भक्तमाल’ से उद्धत है । प्रथम छप्पय में नाभादास जी ने क ीर के व्यबक्तगत धाबमणक और सामाबजक बवशेषताओ िं का वर्णन बकया है। इस अवतरर् के माध्यम से नाभादास ताते हैं बक क ीर का मानना था बक इस दुबनया और सिंसार की ऐसी दशा हो गई है बक लोग सािंप्रदाबयक और जाबतगत भेदभाव में इतना उलझ गए हैं बक धमण अ मात्र बदखावा न गया है और इसके आड़ में मनुष्य के वल और के वल अपना बहत साधने का प्रयास करता है। क ीर मुिंह देखकर अथाणत सुनी सुनाई ात पर बवश्वास नहीं करते हैं। बहिंदू धमण में चार वर्ण -शूद्र, वैश्य, िबत्रय और ब्राह्मर् और महत्वपूर्णछः दशणन( सािंख्य , योग , न्याय, वैशेबषक, मीमािंसा और वेदािंत) का वर्णन बमलता है बजस पर क ीर दास जी ने कभी ध्यान नहीं बदया अथाणत इसे महत्वहीन माना। सरू दास उबक्त चौज अनुप्रास वर्ण अबस्थबत अबतभारी । वचन प्रीबत बनवणबह अथण अद्भुत तुकधारी ।। प्रस्तुत पिंबक्तयािं नाभादास के छप्पय से बलया गया है जो उनकी एक महत्वपूर्ण कृबत भक्तमाल से उद्धत है । दूसरे छप्पय में नाभादास ने सूरदास की काव्य की काव्यगत बवशेषताओ िं के आधार पर उनके सपिं ूर्ण व्यबक्तगत बवशेषताओ िं का उल्लेख बकया है। इस अवतरर् के माध्यम से नाभादास ताते हैं बक सरू दास का काव्य चमत्कार और अलिंकारों की एक सदुिं र माला है। इनकी काव्य रचना भाषा की सदुिं रता से इतनी सुसबजजत होती है की एक कबव के रूप में इनकी बस्थबत दूसरे कबवयों पर भारी है। सूर के वचन में प्रेम का बनवाणह अथाणत वर्णन में एक अद्भुत तुक (लय)देखने कोप्राप्त होता है। प्रबतब िंब त बदबव दृबष्ट ह्रदय हरर लीला भासी । जन्म कमण गुन रूप स बह रसना परकासी ।। प्रस्तुत पिंबक्तयािं नाभादास के ‘छप्पय’से बलया गया है जो उनकी एक महत्वपूर्ण कृबत ‘भक्तमाल’ से उद्धतहै । दूसरे छप्पय में नाभादास ने सरू दास की काव्य की काव्यगत बवशेषताओ िं के आधार पर उनके सिंपूर्ण व्यबक्तगत बवशेषताओ िं का उल्लेख बकया है। इस अवतरर् के माध्यम से नाभादास ने सूर के ारे में ताते है की उनकी बदव्य दृबष्ट से ही रृदय में हरी लीला का आभास होने लग जाता है क्योंबक उन्होंने अपनी बजह्वा(सुिंदर शब्दों) से ही कृष्र् की जन्म, कमण, गुर्एविं रूप सभी चीजों का वर्णन कर बदया है। बवमल ुबद्ध हो तासक ु ी ,जो यह गुन श्रवनबन धरै । सरू कबवत सबु न कौन कबव, जो नबहिं बशरचालन करै ।।