A Short History of Psychological Theories of Learning PDF
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University of Delhi
Jerome Bruner
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This document presents a summary of a short history of learning theories. It discusses various perspectives on learning, touching on topics like associationism, the cognitive revolution, and the interplay of cultural elements in shaping learning.
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सीखने के मनोवैज्ञाननक ससद्ाांतों का सांक्षिप्त इनतहास जीरोम ब्रूनर सीखना क्या है ? इस विषय पर अंतहीन शोध हो टै क्स का फामथ भरने में ननपुणता प्राप्त कर लेते जाने के बािजद ू इससे जड़...
सीखने के मनोवैज्ञाननक ससद्ाांतों का सांक्षिप्त इनतहास जीरोम ब्रूनर सीखना क्या है ? इस विषय पर अंतहीन शोध हो टै क्स का फामथ भरने में ननपुणता प्राप्त कर लेते जाने के बािजद ू इससे जड़ ु े अनेक भ्रम आज भी हैं। हम पररश्स्र्नतयों को समझना कैसे सीखते हैं? बने हुए हैं। हम सीखने से क्या अर्थ लेते हैं, यह हम अपना ध्यान केंदित करना कैसे सीखते हैं? ननश्चित तौर पर इस बात से तय होता है कक हम इसका अध्ययन ककस तरह करते हैं। इसके अनतररक्त यह प्रचन भी महाविद्यालयों में पढ़ने िाले विद्यार्ी कैसे पूछा जाता है कक सीखना ककतने तरीकों से संभि ननरर्थक शबदांशों को स्मरण कर लेते हैं, इसका होता है ? क्या सभी प्रजानतयां समान रूप से अध्ययन करने के बजाय यदद इस पर अध्ययन सीखती हैं? क्या बुद्धधमान और मंदबुद्धध दोनों ककया जाता है कक बच्िे अपनी मूल भाषा पर समान रूप से सीखते हैं? तर्ा बाहरी तौर पर ददए पकड़ कैसे बनाते हैं; तो आप सीखने से संबधं धत जाने िाले प्रोत्साहन, पुरस्कार ि दं ड के बारे क्या एक अलग अिधारणा पर पहुंिते हैं। क्या कहा जाए? क्या सीखने की सभी पररश्स्र्नतयां हारमोननयम पर उं गललयां िलाना सीखना अर्िा परस्पर रूप से तुलनीय होती हैं? एक भूल-भुलैया िाली पहे ली में उं गलीयों से रास्ता खोजने में एक ही प्रकार की प्रकियाएं शालमल होती मैं अक्सर हाल में संपन्न हुए हैं? क्या सभी तरह से सीखना एक समान होता प्रयोगों में बेहतर प्रदशथन करने िाले िह ू ों को अपनी है , श्जसे कुछ ननयमों के एक समुच्िय तक सीलमत बेटी को दे दे ता र्ा। मैंने पाया कक बेटी द्िारा ककया जा सकता है ? बहुत अच्छी दे खभाल में रहकर उन िूहों में अधधक मुखर श्जज्ञासा विकलसत हो जाती र्ी। क्या िास्ति कोई एक िीज़ सीख कर दस ू रे में में , पशुओं को पालतू बनाना उनकी सीखने की भी ननपण ु ता हालसल कर लेने को तर्ाकधर्त रूप प्रिवृ ि पर असर डालता है ? उदाहरण के तौर पर, से ‘अंतरण की कसौटी’ (transferred criterion) क्या िोल्फगैंग कोहलर के पालतू धिंपांश्जयों ने िो कहते हैं। परं तु ऐसी श्स्र्नत में , सीखी गई ककस अंतर्दथश्टटयां हालसल की र्ीं श्जससे उन्होने अपनी िीज का अंतरण होता है ? ककन प्रनतकियाओं का पहुंि से दरू रखे केलों को पाने के ललए दो छड़ड़यों अंतरण होता है ? ककन ननयमों से अंतरण होता का जोड़कर उन्हें खींिने का तरीका ढूंढ ललया, है ? या महज हम सीखना सीख जाते है । मसलन, अर्िा िह क्षमता केिल इस बात का पररणाम र्ी पयाथप्त अभ्यास करने के बाद हम परीक्षा दे ने या कक उनका पालन पोषण टे नेररफ के जमथन द्िीप पर बड़े इत्मीनान से हुआ र्ा।1 अक्सर मजाक में इस पररणाम के मद्दे नजर, यह बहुत हद यह कहा जाता र्ा कक येल का उद्दीपन-प्रनतकिया- तक स्िाभाविक है कक िैज्ञाननक ककसी भी तरह पुनबथलन सीखने का लसद्धांत कैलीफोरननया के से इस बात का सरलीकरण करना िाहें गे कक संज्ञानात्मक लसद्धान्त से लभन्न र्ा, क्योंकक न्यू ‘सीखने का अध्ययन’ करने से हमारा क्या तात्पयथ है िन में क्लाकथ हल ने अपने विद्याधर्थयों को यह है । ननश्चित तौर पर ऐसा करने का एक मानक लसखाया र्ा कक “िूहों को छूटते से ही कोलशश शुरू मागथ यह है कक ककसी एक प्रनतमान पर सहमनत कर दे नी िादहए,” जबकक बकथले में एडिडथ टोलमैन बने। श्जससे पररणामों की तुलना करना संभि हो ने लसखाया र्ा कक िूहों को भूल-भूलैया में विकल्प सके। ठीक ऐसा ही सीखने से जुड़े अध्ययनों के बबंदओ ु ं पर रुककर सोिने के ललए पयाथप्त समय बबलकुल आरं लभक दौर में हुआ र्ा। परं तु जैसा लमलना िादहए। अक्सर होता है कक एक प्रनतमान के बरक्स दस ू रा प्रनतद्िंद्िी प्रनतमान उभर कर आता है । ऐसा होते अंततः क्या हम केिल सीखने के ललए ही शीघ्र ही ये शोध भविटय के प्रनतमान (पैराडाइम) सीखते हैं या हमें कोई बाह्य उद्दीपन सीखने के बनने के यद् ु ध में बदल गए। दरअसल उन्नीसिीं ललए मजबूर करता है ? दस ू रे बबंद ु को मानें तो शताबदी के उतराद्थध से लेकर दस ू रे विचियद् ु ध के येकेस-डोडसन लसद्धांत हमें बताता है कक एक दशक बाद तक मनोिैज्ञाननक शोध के मंि अत्यधधक और अत्यंत कम प्रोत्साहन, सीखने में पर सीखने से संबंधधत लसद्धांतों के बीि ऐसा कमी ला दे ता है । मैंने इसे स्ियं आजमाया और युद्ध िलता रहा, श्जसमें विलभन्न ‘स्कूल’ बेहद िौंकाने िाले पररणाम आए। मैंने पाया कक होलशयारी से यह ददखाने के ललए प्रयोग कर रहे दोनों ही प्रकार के िूहों (जो ज्यादा भख ू े र्े या र्े कक उनका प्रनतमान ककस तरह बेहतर र्ा और सामान्य रूप से भूखे र्े) ने दो अलग-अलग प्रनतद्िंद्िी प्रनतमान ककस तरह उनसे कमतर र्े। िमबद्ध दरिाजों में से ननकलने का रास्ता खोज ललया र्ा। सही रास्ता दो तरह से धिश्न्हत ककया आरं भ से अपनी लभन्नताओं के सार् दो गया र्ा। िूहों के पास विकल्प र्े कक िे दाये-बांये प्रनतद्िंद्िी प्रनतमान अश्स्तत्िान र्े। पहले िाला रास्ता िुनें या कफर प्रत्येक विकल्प बबंद ु पर प्रनतमान में , उस समय के बालक के सार् एक गहरे रं ग िाले दरिाजे को िन ु ें। ऐसे िूहे जो अधधक ककस्म की आणविक संबंधता (molecular भख ू े र्े, िो केिल एक ही संकेत पर ध्यान दे पाए associationism) र्ी, जो उन्नीसिीं सदी की जबकक सामान्य रूप से भूखे िूहों ने दोनों विकल्पों भौनतकी के परमाणु (atomism) लसद्धांत का को पहिाना और उनका िुनाि ककया र्ा। मेरी लाक्षणणक विस्तार र्ी (जैसे मज़ाक के तौर पर बेटी के पालतू िूहों की भांनत उनमें भी ज्यादा कहा जाता है कक मनोविज्ञान और भौनतकी के श्जज्ञासा र्ी जो कम भख ू े िूहे र्े। बीि हमेशा से ही ईटयाथ रही है )। अधधगम के परमाणु लसद्धांत में यह धारणा अंतननथदहत र्ी कक 1 िोल्फगैंग कोहलर, द में टैललटी ऑफ एप्स (न्यूयाथक: हारकोटथ प्रेस, 1926) 1917 में यह मूल रूप में जमथनी में प्रकालशत हुई र्ी। सीखने में एक तरह से धारणाओं, स्मनृ तयों, उद्दीपन्न ददए गए, श्जनसे बबलकुल सटीक संिेदनाओं आदद की संबद्धता होती है । बहुत हद गत्यात्मक प्रनतकियाएं प्राप्त हुईं : ककसी एक केन्ि तक, इसके केन्ि में संबध ं ात्मक जुड़ाि की धारणा को उद्दीप्त करने पर बंदर की बांह में मड़ ु ाि आ ननदहत है अर्ाथत एक ऐसा जुड़ाि या कड़ी जो गया, जब दस ू रे केन्ि को उत्प्रेररत ककया तो उसकी ककन्हीं दो संिद े नाओं या वििारों के एक सार् आंखें ऊपर की ओर घम ू गईं। इसी िम में जब घदटत होने अर्िा उनके बीि की स्र्ाननक ककसी अन्य केन्ि को उत्प्रेररत ककया तो िे नीिे ननकटता के कारण विकलसत होता है । यद्यवप की ओर घूम गईं।2 मनोिैज्ञाननकों ने वििार ककया संबद्धतािाद की उत्पवि बहुत पहले हुई र्ी लेककन कक यदद मश्स्तटक को इस तरह के स्र्ाननकों कफर भी इसके हाल के दाशथननक समर्थकों में न (मश्स्तटक में अिश्स्र्त विलशटट केंि) के रूप में केिल अरस्तु है बश्ल्क लॉक, बकथले, ह्ययूम एिं धिश्न्हत ककया जा सकता है तो मन को क्यों लमल्स भी हैं। दरअसल, उन्नीसिीं सदी के मध्य नहीं? यहााँ यह याद रखने की जरूरत है कक इन तक दाशथननक मनोिैज्ञाननक जॉन फेड़िक हरबाटथ विद्िानों के बीि प्रिललत दाशथननक र्दश्टटकोण ने संबंधात्मक जड़ ु ाि को नए मनोविज्ञान में मील मनो-भौनतकी समानान्तरिाद (psychophysical का पत्र्र घोवषत कर ददया र्ा। parallelism) का र्ा, श्जसके अंतगथत मश्स्तटक और मन समानान्तर मागथ पर िलते हैं। इस प्रनतमान को तेजी से विकलसत करने में मश्स्तटक शरीर-किया विज्ञान (brain उनके आलोिकों ने हालांकक कण physiology) विषय से भी समर्थन लमला, हालांकक विन्यासिाद संबंधी मॉडल को आगे बढ़ाया। इस यह समर्थन प्रत्यक्ष नहीं र्ा। उन्नीसिीं सदी ने प्रनतमान का प्रमख ु आधार यह र्ा कक मन और जब अपने अंनतम नतमाही में प्रिेश ककया, गाल ि मश्स्तटक, दोनों ही अपने अंदरूनी दहस्सों की कायथ- स्पज ू ह थ ाइम के समय का परु ाना मश्स्तटक विज्ञान पद्धनत को ननयंबित करते हुए अलभन्न तंिों की (phrenology) नई खोजों ि गए सेरेब्रल कटे क्स तरह काम करते हैं। अपने विरोधी प्रनतमान की ही के केन्िों के रूप में पुनः पररभावषत हो गया। तरह, यह प्रनतमान भी मश्स्तटक शरीरकिया विज्ञान पर आकार दटक गया। जबकक इस बात के इस समझ में मश्स्तटक के ये केन्ि ककसी ललए पहले से ही बहुत सारे प्रमाण ददए जा िुके विलशटट कायथ के ललए ननयत र्े। शायद इस संबंध र्े कक समग्र मश्स्तटक प्रकियाएं स्र्ाननक केन्िों में सबका ध्यान खीिने िाला अिश्स्र्तता को ननयंबित करती हैं। विख्यात वपयरे फ्लोरें स अध्ययन (localization studies) 1870 में द्िारा तंबिका ‘सामदू हक किया’ समग्रता का जमथनी के मनोिैज्ञाननकों किि ि दहटश्जह का र्ा। प्रनतननधधत्ि ककया गया र्ा। उनके अध्ययन में , कटे क्स के मध्य ि वपछले दहस्से में अिश्स्र्त विलभन्न केन्िों को विद्युतीय 2 गुस्ताि किि ि एडिडथ दहट्श्जह का क्लालसक ग्रोलशन्र्स,’’ आधिथि डेर एनाटोमी अंड कफश्ज़ओलोजी आलेख ‘‘यूबेर डाई इलेश्क्िस्िे एररग बरखेत डेस (1870): 300-332 मश्स्तटक की सामूदहक कियाओं को दै ननक आए ननरर्थक शबदांश, आरं भ ि अंत में आए जीिन की घटनाओं के अनरू ु प समझाया जा रहा शबदांशों के बजाय अधधक धीमी गनत से सीखे र्ा कक साधारण अनुभि अपने छोटे -छोटे अंशों से जाते हैं तर्ा मध्य ि अंत में आए शबदांशों के ऊपर उभर पाते हैं। जैसे एक ‘शहरी र्दचय’ टै क्सी बननस्बत आरं भ में आए शबदों को बहुत ही भिनों ि पैदल िलने िालों का समह ू भर नहीं आसानी से पन ु उ थ त्पाददत ककया जा सकता है । 3 होता बश्ल्क उससे कहीं अधधक होता है ; िह अपने उन समग्र गुणों के रूप में आकार लेता है जो उसे ककन्तु संबंधता का बंध, िाहे ननरर्थक एक शहर बनाते है । गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ननसंदेह शबदांशों के बीि का ही हो, िह उस समय की इस र्दश्टटकोण की सबसे प्रत्यक्ष अलभव्यश्क्त र्ी िैज्ञाननक मापदं ड पर, शीघ्र ही अत्याधधक कमजोर तर्ा सीखने संबंधी श्जनका यह मत र्ा कक और मनोित्ृ यात्मक प्रतीत हुआ। अतः सदी का सीखना स्र्ाननक कड़ड़यों के बजाय सम्पण ू थ अंत होते होते, इसका स्र्ान पािलोि की िैज्ञाननक संगठनात्मक व्यिस्र्ा पर ननभथर होता है । रूप से अधधक ठोस ‘प्रनतबंधधत प्रनतकिया’ ने ले ललया। पािलोि के पैराडाइम ने संबंधतािाद को आइए, अब संबंधात्मक प्रनतमान के उदय एक मूतत थ ा प्रदान की। इस दौरान इसकी सामग्री पर बात करते हैं। उन्नीसिीं सदी के अंनतम 25 यानी सीखना कुछ हद तक मापने योग्य हो गया िषो में सीखने संबंधी नए अध्ययन ककए गए। जबकक इसने अपने संबंधतात्मक रूप को बरकरार इन अध्ययनों में ज्यादातर अध्ययन शबदों की रखा। उसके सम्पूणथ पैराडाइम में उत्प्रेरण ि सि ू ी अर्िा शबदों के जोड़े याद कर लेने से प्रनतकिया के बीि के संबध ं को स्र्ावपत करने की संबंधधत र्े। परं तु िह मुख्यतः ननरर्थक शबदांश आिचयकता र्ीः लार टपकने की प्रनतकिया, जो र्े, श्जन्होंने साहियथ संबंध को उनके िैज्ञाननक रं ग पहले भोजन की िजह से शुरू हुई र्ी, िह अब में रं ग ददया। हरमन एबबंगहौस ने ननरर्थक शबदांशों माि खाना आने की सांकेनतक घंटी के कारण हो का उपयोग करके सीखने की व्याख्याओं में से रही र्ी। शरीर-किया विज्ञान में पािलोि को लमला पुराने अनुभिों ि अर्थ ननकालने की क्षमता को नोबेल पुरस्कार एक प्रकार से भौनतकिाद की ननरर्थक साबबत कर ददया र्ा। एबबंगहौस की विजय र्ी ककन्तु पािलोि स्ियं इससे पण ू त थ या 1885 की यूबेर डास गेडेशत्ननस ननरर्थक शबदांशों खुश नहीं र्े। इस संबंध में हम आगे ििाथ करें गे। (अधधकतर प्रयोगो में स्ियं एबबंगहौस सबजेक्ट र्े) को लसखाने िाली उबाऊ सि ू ी है । उदाहरण के ललए, अब विन्यासिाद (configurationism) पर उसके अध्ययनों की यह प्राश्प्तयााँ- कक सूिी के में बात करते हैं, विन्यासिाद का समर्थन करने िाले 3 एबबंगहौस का 1885 का क्लालसक अंग्रज े ी में मोनोग्राफ अपने पूरे अंग्रज े ी अनुिाद के सार् 1913 केिल संक्षक्षप्त में ही उपलबध है ककन्तु मुख्य अंश में कोलंबबया विचिविद्यालय के टीिसथ कॉलेज ने िेनी डेननस की रीड़डंग इन दी दहस्िी ऑफ छापा र्ा। श्जस समय अमेररका की लशक्षा में रटना साइकॉलजी (न्यूयाकथ: एप्पलेटोन-सेंिुरी-िोट्स आधाररत सीखने का ििथस्ि र्ा। इसे आउट ऑफ 1948), 304-313 में खोजे जा सकते हैं। यह वप्रंट हुए अब काफी समय हो िुका है । काफी ददलिस्प है कक एबबंगहौस का मल ू मनोिैज्ञाननकों की भी कमी नहीं र्ी। उनमे से धिंपांजी केिल संबंधता के बारे में सोि-वििार बहुत को संबंधतािाद की अमूतत थ ा एिं सामान्य करके दो छड़ड़यों को लमलकर केलों तक पहुाँिने अनुभिों से उसकी दरू ी को लेकर संदेह र्ा। का औजार नहीं बना सकते र्े, िहााँ लसफथ इतना विन्यासिाद को मश्स्तटक संबंधी शोधों का भी भर नहीं र्ा, दरअसल िह तो अंतर्दथश्टट से ही हो समर्थन हालसल र्ा श्जसमें फ्लारें स का सकता र्ा श्जसमें की परू ी पररश्स्र्नत का विन्यास समग्रतािादी तंबिका विज्ञान (holistic बनता है । neurology) काफी प्रिललत र्ा। सदी के अंनतम िषों में यह रुधि अपने अत्याधधक उफान पर र्ी कोहलर को सम्पूणथ सश्ृ टट में विन्यासिाद की कक भाषा और संस्कृनत कैसे मन को आकार दे ती सिथव्यापकता में गहरा विचिास र्ा। संबंधतािाद हैं। समाजशास्ि जैसे प्रनतिेशी विषय में एमील पर उसने पहला बड़ा आिमण, िाहे अलमिित ही दख ु ाथइम ि मैक्स िैबर जैसे विद्िान इस बात का सही, परं तु सांकेनतक शीषथक से प्रकालशत पस् ु तक आग्रह कर र्े कक केिल भौनतक संसार के अनुभि ऑन कफश्जकल कॉश्न्फागरे शन्स एट रै स्ट एंड इन ही मन को आकार नहीं दे ते हैं बश्ल्क संस्कृनत भी स्टे शनरी स्टे ट्स में ‘परमाणि ु ाद की अपयाथप्तता’ मन को आकार दे ती है । पर तकथ दे ते हुए ददया र्ा। कोहलर ने सिाल उठाया कक अगर परमाणि ु ाद भौनतकी में ही गेस्टाल्ट लसद्धांत विन्यासिाद के उन अपयाथप्त र्ा तो यह मनोविज्ञान में पैराडाइम के आरं लभक िषों में एक सिथश्रेटठ लमसाल र्ा, हालांकक तौर पर कैसे काम आ सकता र्ा? (ब्रूनर: 1971)। इसकी अत्यधधक प्रगनत प्रर्म विचियद् ु ध के बाद 4 उसने अपनी बात को समझने के ललए र्दचय ही हो सकी। इसका मूल मंि र्ा कक शारीररक, बोध से संबंधधत घटना का प्रयोग ककया : जब जैविक ि मानलसक तंि में अन्तननथदहत विशेषताएं, बबलकुल नजदीकी से प्रकाश के दो स्रोत-बबन्दओ ु ं जो उनको रिती है , अपने स्र्ाननक तत्िों को से एक के बाद एक बारी बारी से कुछ समय के ननयंबित करके रखती हैं। भौनतक विज्ञान का क्षेि ललए रोशनी डाली जाती है तो आंखे प्रकाश बबन्दओ ु ं लसद्धांत इसका आदशथ र्ा और उसका उद्घोवषत से हलिल को न दे खकर विशुद्ध रूप से प्रकाश- लसद्धांतिाक्य र्ा, ‘‘समग्र अंशों के योग से बड़ा गनत का अनुभि करती है । इसका अलभप्राय या होता है ’’। इस लसद्धांतिाक्य को गेस्टाल्टिाददयों सार यही है कक समग्र अपने अंशों के जोड़ से ने मानिीय धारणा पर ककए अपने अध्ययनों की ननश्चित ही अलग होता है । ननरं तरता से पुटट ककया। सीखने के संबंध में , टे नेररफ द्िीप पर ककया गया कोहलर का धिंपांजी कफर, ऐसा होते ही पािलोि स्ियं एक प्रयोग दरअसल इसी इरादे से ककया गया र्ा: प्रकार के भाषा-शास्िीय विन्यासिाद (linguistic 4 कोहलर के दाशथननक विमशथ के ललए दे खें मैरी दस्तािेज कुटथ काॅफ्का (ज्यादातर दहटलर की सिा हे नले द्िारा संपाददत, दी सलेक्टे ड पेपसथ ऑफ के उदय से पि ू )थ की वप्रंलसपल ऑफ गैस्टाल्ट िोल्फगैंग कोहलर (न्यूयाकथः ललिराइट,1971)। साइकॉलोज़ी (न्यूयाकथ: हारकोटथ ब्रेस, 1935) है । संभितया गैस्टाल्ट मनोविज्ञान की अनुभििादी उपलश्बधयों का सबसे बेहतर ि सबसे सल ु भ configurationism) की िकालत करने लगे। भाषा भीतर, बाद में आए बदलाि तर्ा नोमेनक्लाटुरा जैसी िलमक घटना के सार् प्रनतबंधधत प्रनतकियाएं के तहत लगे आरोपों को स्िीकारने के बारे में कैसे मेल खाती हैं? क्या भाषा उद्दीपन को बताया तो िे हं सकर बोले, ‘‘नहीं नहीं जेरी! समझने के तरीके को बदल दे ती है ? मनुटयों के साम्यािादी वििारकों की जरूरत नहीं र्ी, पािलोि मामले में अनब ु ंधधत उद्दीपक ककसी अननब ु ंधधत का रूसी होना ही काफी र्ा। और तो और एक उद्दीपक में कैसे बदल जाता है ? अपने जीिन के बाद के िषों में इस तरह के मुद्दों से परे शान रूसी विद्िान होते हुए पािलोि इस वििार के होकर पािलोि ने एक दस ू रा संकेत तंि पेश ककया, सार् नहीं रह सकता र्ा कक भाषा कोई प्रभाि नहीं उसके इस तंि में उद्दीपन अधूरी भौनतक िस्तुएाँ डालती और इंसान कुिों की तरह सीखते हैं!’’ न होकर कूट ि श्रेणणयों से युक्त भाषा र्ी। इस प्रकार भावषक पयाथयिाधिकता ने सामान्य आचियथ नहीं कक पािलोि के बाद अनुबंधन में उद्दीपक प्रनतस्र्ापन को प्रभावित िायगोत्स्की और लोररया एिं सांस्कृनतक लसद्धांत ककया। दे ने िाले विद्िानों ने िह जगह ले ली और पािलोि के बहुत से युिा अनुयानययों ने बाद के कुछ लोग का मानना हैं कक पािलोि के सालों में बललथन के मनोविज्ञान संस्र्ान में धगस्टौलट मनोविज्ञान का अध्ययन ककया।5( लेि यह अपररपक्ि नए वििार साम्यिादी वििारक िाईगोत्स्की, 1962) ग्राम्शी के वििारों से प्रभावित होकर विकलसत हुए। ककन्तु उसके दस ू रे संकेत तंि ने नेिरविजनशेट संबंधतािाद तर्ा विन्यासिाद के बीि की की बजाय गेस्टे सविजनशेट के सार् मानिीय प्रनतद्िंद्विता का िरम प्रर्म विचियुद्ध के पहले अध्ययन की यूरोपीय परं परा को बनाए रखा, जो के सालों में अमेररका पहुंिा। कोलंबबया रूसी विद्िानों के बीि काफी सम्माननीय परं परा विचिविद्यालय के टीिसथ कॉलेज के प्रभािशाली थ्रोनडाइक द्िारा पोवषत संबंधतािाद अमेररका में र्ी। पािलोि के समय, अभी तक संरिनािाद फला फूला। थ्रोनडाइक जमथन के संबंधता िाद के दरअसल रूस के जीिंत सादहत्य ि भावषक एक महत्त्िपण ू थ केन्ि में पोस्ट डॉक्टरल स्कॉलर पररर्दचय की पहिान बना हुआ र्ा। ननसंदेह, दस ू रा रहे र्े। अमेररका और टीिसथ कॉलेज लौटकर संकेत तंि बहुत हद तक उस पररर्दचय के प्रनत उन्होंने ‘अभ्यास ि दोहराने’ को सीखने के तरीके एक प्रनतकिया र्ी। मुझे 1960 की एक हिाई यािा के रूप में कुशलतापि ू क थ लोकवप्रय बनाया : इतना की याद आती है श्जसमें मैं प्रनतश्टठत रूसी प्रिासी लोकवप्रय कक अभ्यास ि दोहराना ननरर्थक शबदांशों भाषाशास्िी रोमन जैकोबसन के सार् मास्को से पेररस जा रहा र्ा। जब मैंने उन्हें पािलोि के 5 लेि िाईगोत्स्की, र्ोट एंड लैंग्िेज (कैं बब्रज, ऑफ स्पीि इन दी रै गुलश े न ऑफ नॉमथल एंड मैसािुसेस्ट विचिविद्यालय: एम.आई.टी. प्रेस, एबनॉमथल बबहे विअर (न्यूयॉकथ) 1962); एलेक्ज़ेंडर रोमानोविि लरू रया, दी रोल को याद करने के ललए करते हैं।6( एडिडथ एल. र्ोनथडाइक, 1913-14) व्यिहारिादी खोजों का ननटकषथ सश्म्मललत रूप से यह र्ा कक प्रत्येक कायथ को पूरा करने के ककन्तु पािलोि के प्रभाि में अमेररका में ललए सही पुनबथलन के सार् कायथ को दोहराते रहना संबंधतािादी शोध कायथिम बहुत जल्द ही बदल प्रदशथन को बेहतर करता है । ननसंदेह, इन खोजों गया। अमेररकी व्यिहारिाद के संस्र्ापक िाटसन में बारीकी र्ी - जैसे उनमें अंतराल रखने की ने पािलोि को लोकवप्रय बनाया तर्ा इस बात पर बजाय बड़े स्तर पर परीक्षणों को एकि करके जोर ददया कक सभी तरह का सीखना उत्प्रेरणा ि प्रयोगो के हाननकारक प्रभाि दे खना, और ऐसी ही प्रनतकिया के जररए होता है। ऐसा करके िाटसन परस्पर विरोधी सम्बन्धों में सकारात्मक और ने अपने वििारों को अमेररकी रुख ददया। मैं कई नकारात्मक पुनबथल स्र्ावपत करके हस्तक्षेप बार सोिता हूं कक क्या िह िॉटसन का अत्यधधक सश्ृ जत करना, इत्यादद। परं तु कायथ का समग्र सरलीकरण र्ा जो अंततः अमेररकी संबंधतािाददयों पररणाम को दे खना या सामान्य रूप से प्रनतददन को पािलोि की वििार-धारा में शोध करने को सीखने का संबंध की तलाश करना इत्यादद में मेरा िमोत्साह तक ले गया। यह उनमें शोध की ऊजाथ विचिास िही है , जैसा मैंने पहले कहा र्ा। इस ि र्दढ़संकल्प ही र्ा श्जसने आधी सदी के ललए मुद्दे पर मैं बाद में लौटूंगा। अमेररका को पािलोििाददता का केन्ि बना ददया। इस आधी सदी में श्जनका प्रभुत्ि रहा, िे र्े िाल्टर ककन्तु जैसा पहले यूरोप में र्ा कक विरोधी हं टर, क्लाकथ हल, एडिडथ गर् ु रे , बी. एफ. श्स्कनर विन्यासिाद शीघ्र ही अश्स्तत्ि में आया। कुछ हद एिं केनेर् स्पें स। इन सभी ने खद ु को सीखने तक यह धगस्टौलट वििारकों से प्रभावित र्ा, जो संबंधी उत्प्रेरणा-प्रनतकिया लसद्धांत का प्रनतश्टठत अब अमेररका में र्े और मजबूत विपक्ष र्े, परं तु विद्िान मान ललया र्ा। इनकी जड़ें अमेररका में भी र्ी। यह वििारधारा खासकर एडिडथ टोलमैन से पोवषत र्ी। िह कोहलर बहुत बदढ़या तरीके के रिे गए पशु-प्रयोग के वििारों से सहमनत रखते र्े और लेविन के ही उनका सबसे बड़ा ििथस्ि र्ा। ऐसे प्रयोगों में घननटट लमि र्े, जो बाद मे बललथन धगस्टौलट भूल-भुलैया िाली पहे ली में दौड़ना, अंतर करना समूह के नेता बने। इसके अनतररक्त टोलमैन का सीखना आदद शालमल र्ा या श्स्कनर का बॉक्स भाई एक विख्यात नालभकीय भौनतकविद र्ा और तर्ा इसी तरह के अन्य प्रयोग जो िूहों, कबूतरों उसने टोलमैन को पुराने-प्रिललत आणविक वििारों या बंदरों पर भी ककए गए। स्नातक कर रहे से बिा के रखा र्ा तर्ा िास्ति में भौनतकतािादी विद्याधर्थयों का उपयोग भी ककया गया जो मुख्यतः प्रलोभनों से भी दरू रखा र्ा। टोलमैन शुरू से ही रटं त प्रणाली को लेकर र्ा। हािथडथ में मेरे स्नातक संज्ञानिादी र्े। के ददनों में इसे ‘डस्टबाउल इंपीररलसज्म’ कहते र्े। 6 एडिडथ एल. र्ोनथडाइक की क्लालसक रिना एज्युकेशनल साइकॉलोज़ी, तीन िॉल्यूम में है , यह 1913-1914 में आई। टोलमैन की पहली प्रमुख पुस्तक 1932 टोलमैन के शोध को एक उदाहरण के रूप में आई और यह जल्द ही असंतुटट लोगों के बीि में लेते हैं। उन्होंने यह लसखाया कक सीखना एक प्रलसद्ध हो गई और िे इनके अनुयायी बन गए तरह से नक्शा बनाने जैसा है और यह कक सीखना, िहााँ उनके अनुयानययों की संख्या बेहद र्ी। उनके लक्ष्यों की प्राश्प्त हे तु िीजों को उनकी उपयोधगता विद्याधर्थयों ने विशेष रूप से डेविड िेश ने ि के आलोक में व्यिश्स्र्त करना है । अन्यों ने भी संबंधतािाद के विरुद्ध इस जंग में उनका सार् ददया। दरअसल द्वितीय विचियुद्ध 1947 में बकथले संकाय को ददए अब तक तक अमेररका में विन्यासिादी तर्ा संबंधतािादी के प्रलसद्ध शोध व्याख्यान “िूहों ि मनुटयों में अधधगम लसद्धांतिाददयों के बीि खुला टकराि हो संज्ञानात्मक ढांिे” में टोलमैन ने यह दािा ककया िुका र्ा। पहले समूह का मानना र्ा कक सीखना कक प्रयत्न-िुदट विधध प्रभािी समाधानों की खोज मुख्यतः ज्ञान को ऊपर से नीिे की ओर के ललय आदतों के अनुसार कायथ करना नहीं है (अधोगामी) व्यिश्स्र्त करने का कायथ है जबकक अवपतु एक समाधान तैयार करने की ददशा में दस ू रे समह ू का जोर इस बात पर र्ा कक सीखना श्स्र्नत का जायजा लेने ले ललए आगे-पीछे दे खना या ज्ञान का संिधथन करना नीिे से ऊपर की ओर है । इसललय उन्होंने अपने विद्याधर्थयों से आग्रह (ऊध्िथगामी) होता है । विन्यासिादी, यद्यवप संख्या ककया की िे भल ू -भुलैया में िूहों को तेजी से न में काफी कम र्े, लेककन जब िे यूरोप (जहां दौड़ाएं।7 उनका मानना र्ा कक हमारे संज्ञानात्मक दहटलर का बोलबाला र्ा) से भागे तो उन्हें मानधिि हमारे दनु नया से सामना करने के संयोग अमेररकी पररर्दचय में आधधकाररक तौर पर अच्छी का आईना भर नहीं होते। बश्ल्क हमारे उन प्रयत्नों तरह से अपनाया गया। कोहलर को हािथडथ में के ररकॉडथ होते हैं जो प्रयत्न पररणाम तक पंहुिने विललयम जेम्स व्याख्यान दे ने के ललए आमंबित में लसद्ध हो िुके होते हैं। इस र्दश्टट से उनका ककया गया र्ा और कटथ लेविन तो सामाश्जक वििार मल ू तः प्रयोजनिादी र्ा, शायद इसललए मनोविज्ञान में लगभग पर्प्रदशथक ही बन गए। क्योंकक मनोविज्ञान का विद्यार्ी रहते हुए उनको धगस्टौलट समूह के विस्र्ावपत सदस्य शीघ्र ही हािथडथ के प्रयोजनिादी दाशथननकों, विशेषकर सी. अमेररका के प्रमख ु विचिविद्यालयों में स्र्ावपत हो आई. लेविस का सार् लमला र्ा। टोलमैन लेविस गए। उन्होंने अनुभिजननत घटना-किया-विज्ञान को के बड़े प्रशंसक र्े। टोलमैन का अनुसरण करते बजाय रहस्यमयी होने के सहज-बद् ु धध बना ददया, हुए डेविड िेश ने तो यहां तक प्रस्तावित कर ददया जो व्यिहारिादी अमेररकी मनोविज्ञान की पकड़ र्ा कक सीखना केिल ननश्टिय पंजीकरण नहीं के िलते अपने आप में एक उपलश्बध है । सीखने अवपतु पररकल्पना प्रेररत होता है । िेश ने यह को छोटे -छोटे टुकड़ों में समझने की बजाय िीजों को संदभथ से जोड़कर समझा जाने लगा । 7 टोलमैन की सबसे प्रभािशाली पुस्तक पपथश्ज़ि उन्होंने बाद में इंटरनेशनल कांग्रेस के संबोधन में बबहे विअर इन एननमल्स एंड मैन (न्यूयॉकथ : और विस्तार ददया। सेंिरु ी, 1932) है । अपने बकथले व्याख्यान को ददखाने का प्रयास ककया कक िूहे भी पररकल्पना पैदा करता है । हालांकक श्स्कनर इस तरह के करते हैं। ( िेंि,1932) 8 सातत्य की व्याख्या करने को उम्मीद पैदा करने िाली योजना कहकर मजाक उड़ाते र्े। श्स्कनर के टोलमैन की तुलना उनके समय के ही सीधे-साधे शबदों में सीखना पूरी तरह पुनबथलन प्रमख ु , संभित: अत्याधधक उग्र संबद्धतािादी दे ने की अनस ु ि ू ी के ननयंिण में होता है । पन ु बथलन व्यिहारिादी बीएफ़ श्स्कनर से करें तो बहुत कुछ केिल सकारात्मक हो सकता है और दं ड सीखने सामने आता है । ननसंदेह, श्स्कनर कियाप्रसूत को प्रभावित नहीं करता है । हालांकक श्स्कनर कभी- अनुबंधन की िकालत श्जतने जोरदार ढं ग से कर कभी कुछ व्यंग्यात्मक लहजे में कहते र्े कक रहे र्े, उतने ही जोरदार ढं ग से टोलमैन सीखने को शायद ही ककसी लसद्धांत की संज्ञानात्मक ढांिे के लसद्धांत का समर्थन कर रहे 9 आिचयकता है । ( बी.एफ. श्स्कनर, 1950) र्े। उनकी केंिीय संकल्पना कियाप्रसूत अनुकिया की र्ी - ऐसी किया जो आरं भ में समीपस्र् ननश्चित ही सारे व्यिहारिादी संबंधतिादी िातािरण के ककन्हीं विलशटट लक्षणों के प्रत्यक्ष श्स्कनर द्िारा प्रनतपाददत लसद्धांत की आलोिना ननयंिण में नहीं होती। कियाप्रसूत अनुकिया का से सहमत नहीं र्े बश्ल्क येल में तो क्लाकथ हल उदाहरण श्स्कनर को प्रारश्म्भक कबूतर द्िारा ने अपने लसद्धांत को पररटकृत एिं स्ियंलसद्ध उपलबध हुआ है जो बॉक्स की दीिार पर लगे मान्यता के रूप में प्रस्तुत ककया र्ा कक बटन पर िोंि मारता है इससे या तो िह प्रबलन सकारात्मक ि नकारात्मक पुनबथलन कैसे ननलमथत (जैसे एक प्रकार का अनाज का दाना) का उत्पादन होते हैं। ककसी अनक ु ू ललत उत्प्रेरण को क्या कोई करता है या कफर प्रबलन उत्पादन करने में फेल खास बदलाि व्यापक बनाता है और कैसे कोई हो जाता है । जीिधारी पुनबथलन दे ने िाले का पूिाथनुमान करता है । उनकी शरू ु आती पस् ु तकें 1943 की वप्रंलसपल्स कोई भी प्रबलन कियाप्रसूत अनुकिया की ऑफ बबहे वियर तर्ा 1952 की श्रेटठताबोधक संभािना को बढ़ा दे ता है । संभािना का स्तर इस शीषथक िाली ए बबहे वियर लसस्टम पस् ु तक पर ननभथर करता है कक क्या पुनबथलन के बाद ताललकाओं से सीखने, संबंधधत आदशथ ििों से एिं सतत प्रनतकिया होती है या अलग-अलग। और उनकी खोजों से, मुख्य स्ियंलसद्ध मान्यताओं से, यह कक यह ननयलमत (आिधधक) होता है या कफर जोड़ने िाले अमतू थ सिू ों से भरी हुई र्ीं। ननश्चित अननयलमत (अनािधधक) होता है । उदाहरण के ललए ही िह सीखने के बारे में गणणतीय मॉडल विकलसत आिधधक पुनबथलन उम्मीद से ज्यादा प्रनतकिया करने का एक अद्भुत प्रयास र्ा, श्जसने एक पीढ़ी 8 िेंि का महत्त्िपूणथ अध्ययन आई. िेंिेिस्की (अपने मूल नाम से ललखा गया) है , ‘‘हाइपोधर्लसस’ 9 बी.एफ. श्स्कनर, ‘‘आर थ्योरीज़ ऑफ लननिंग िसेज़ ‘िान्स’ इन दी वप्रसोल्यश ू न पीररयड इन नेसेसरी?’’ कफलोसोकफकल ररव्यू 57 (1950): ड़डश्स्िलमनेशन लननिंग’’, यूननिलसथटी ऑफ 193-216। केलीफोननथया पश्बलकेशन इन साइकोलोजी 6 (1932): 27-44। बाद तक अलभकलनात्मक मनोिैज्ञाननकों को संबंधी लसद्धांत। लमलर, ग्लान्टर और वप्रबरे म का व्यस्त रखा। 10 ननयोजन संबंधी लसद्धांत।12 हल ि श्स्कनर के बीि की टकराहटें तर्ा 1960 के दशक के अंत तक सीखने को इन दोनों ि टोलमैन के बीि की टकराहटें सीखने सि ू ना प्रसंस्करण की अिधारणा के रूप में संबंधी लसद्धांतों के बीि आणखरी लड़ाई र्ी। अपने रूपांतररत ककया जाना शरू ु हो गया र्ा और इसमें शास्िीय रूप में सीखने संबध ं ी लसद्धांत 1960 के यह ननदहत र्ा कक एक िीज सीखने के मूल लक्षण आसपास खत्म से हो गए। हालांकक अभी भी दस ू री िीज सीखने के मूल लक्षणों से अलग नहीं श्स्कनर के अनुयायी हैं जो पूरी ननटठा के सार् है । हर िीज एक ही तरह से सीखी जाती है । और एक-दस ू रे के ललए कियाप्रसूत खोजों को ननश्चित ही पुराना संघषथ खत्म हो िुका र्ा और प्रकालशत करते रहते हैं। ककन्तु मैं टोलमैन या हल उतने ही ददलिस्प तरीके से िूहों की पुरानी के ककसी अनुयायी को नहीं जानता। 11 (आर. प्रयोगशालाएं और उनकी अक्सर ददखने िाली भूल- दहलगाडथ, 1956) भल ु ैया पहे ललयां गायब हो गईं। संज्ञानात्मक िांनत के कारण या शायद जब मैं पररितथन के इस दौर पर मंर्न ध्यान कहीं और केंदित हो जाने के कारण सीखने करता हूं तो मुझे लगता है कक यह भाषा का संबंधी लसद्धांतों का महत्त्ि खत्म हो गया। 1960 अध्ययन र्ा खासकर भाषा अजथन का जो सीखने के बाद सीखने संबंधी उत्प्रेरण-प्रनतकिया लसद्धांत संबंधी लसद्धांतों के पतन का कारण बना। भाषा रुक गया और िह लसद्धांत अपने प्रनत नकारात्मक का प्रयोग और इसका अजथन सीखने संबंधी खंड- वििारों से ही मानों नघर गया। सीखने संबंधी अन्य खंड-उत्प्रेरण-प्रनतकिया लसद्धांत की पहुंि से दरू कणिादी वििार पन ु भाथवषत होकर सामान्य की िीज र्े। भाषा को इस लसद्धांत की सीमा में संज्ञानात्मक लसद्धांतों में समादहत हो गए जैसे लाने के प्रयास शीघ्र ही ननरर्थक साबबत हो गए न्यूिैल ि लसमोन का समस्या समाधान संबध ं ी और ज्यादातर भाषाविदों ने इन लसद्धांतों को लसद्धांत या ब्रूनर, गुडनाउ ि ऑश्स्टन का धिंतन नकार ददया। 10 कालथ एल. हल, वप्रंसीपल ऑफ बबहे विअर 12 ऐलेन न्यूिैल ि हबथटथ ए. लसमोन ह्यूमन प्रोबलम (न्यूयॉकथ : एप्लेटोन-सेंिुरी-िोट्स, 1942) एंड ऐ सोश्ल्िंग (एंगलिुड, एन.जे.: प्रें दटस हाल, 1972); बबहे विअर लसस्टम: एन इंिोडक्शन टू बबहे वियर जेरोम ब्रूनर, जैकलीन गुडनाउ ि जोजथ ए. थ्योरी कन्सननिंग दी इंड़डविज्यअ ु ल आगेननज़्म आश्स्टन, ए स्टडी ऑफ धर्ंककं ग (न्यय ू ॉकथ : विले, (न्यूयॉकथ है िन,: येल यूननिलसथटी प्रेस, 1952)। 1956); जोजथ ए लमलर, यूज़ेन गलेंटर ि कालथ प्राइबैम, प्लाॅन्स एंड दी स्िक्िर ऑफ बबहे विअर 11 क्लालसकल लननिंग लसद्धांतों पर सबसे विस्तत ृ (न्यय ू ॉकथ : होल्ट, ररनहटथ , ि विन्सटन 1960)। ि प्रामाणणक िोल्यूम अनेस्ट आर. दहलगाडथ की थ्योरीज़ ऑफ लननिंग, द्वितीय संस्करण है (न्यूयॉकथ : एप्लेटोन-सेंिरु ी- िाट्स, 1956) है । बच्िे अपनी मूल भाषा के ढांिे से इतनी जल्दी समकालीन भाषाविदों ने सीखने संबंधी सामंजस्य बना लेते हैं कक िे इसके ध्िनन संबंधी संबंधतािादी लसद्धांत की जो आलोिना की उसकी भेदों को माता-वपता की बातिीत में पकड़ने लगते शुरुआत िोमस्की द्िारा श्स्कनर की िबथल हैं जबकक िे भाषा को ठीक तरह से बोलना सीख बबहे वियर ककताब पर ललखी आिामक समीक्षा से नहीं पाए होते हैं। यह एक ऐसी पि ू ाथनम ु ान है जो हुई।13 ककन्तु इसने बौद्धधकतािादी समस्या भाषा विज्ञान एिं विकास संबंधी लसद्धांतों से समाधान पर जोर दे ने िाला जो मॉडल खोजा र्ा विकलसत हुई है । आप इसे अपने संदभथ में सीधे िह अब भाषा के सरोकार से परे जा िुका र्ा। जांि सकते हैं इस बात को ध्यान में रखकर कक अब लोग पूछने लगे र्े कक क्या सांस्कृनतक कोड क्या बच्िे के तुतलाने में पराई भाषा की ध्िननयां भी भाषा की तरह ही सीखे जाते हैं। सीखने-संबंधी ज्यादा हैं या मूल भाषा की। इसीललए िांसीसी पुराने लसद्धांतों के संदभथ अब न मनोभाषाविद् बच्िे िांसीसी में तुतलाते हैं और जापानी बच्िे और न ही सांस्कृनतक-मनोिैज्ञाननक कुछ सोिते जापानी में । ऐसे प्रयोग ककसी संदभथ विशेष में ककए हैं। जाने िादहएं न कक ककसी भल ू -भल ु ैया में । बबना ककसी ताम-झाम के पता िलना िादहए कक प्रयोग मुझे लगता है कक यह कहना सही होगा के नतीजे सिमि ु के लोगो द्िारा िास्तविक कक इस ररहाई के दौर में वपछली ककसी भी सदी जीिन में सीखने से कोई संबंध रखते हैं या नहीं। की अपेक्षा हाल के इन तीन दशकों के दौरान भाषा अजथन के बारे में सबसे ज्यादा जाना गया है । तो क्या हम यह नतीजा ननकाल लें कक सीखने दरअसल तीनों दशकों को जोड़कर दे खे तो भी यहीं संबंधी संबंधतािादी ि विन्यासिादी लसद्धांतों के ननकल कर आता है । यह याद रखना भी जरूरी है बीि के द्िंद्ि से तीन िौर्ाई सदी में सीखने की कक शोधों की श्जस बाढ़ ने इसे संभि बनाया उसे िास्तविक प्रिवृ ि के बारे में बहुत कम या कुछ भी भाषाविद् िोमस्की ने जन्म ददया न कक ककसी नहीं लसखाया। ऐसा मानना बहुत बड़ी भूल होगी। सीखने संबंधी वििारक ने। पिलोि के कुिे ि कोहलर के धिंपांजी दोनों ने ही बहुत कुछ सीखा लेककन लभन्न तरीकों से ि लभन्न यही नहीं, भाषा की तरफ हुए इस रुख ने सीखने पररश्स्र्नतयों में । इस दािे के हमारे पास पयाथप्त संबंधी शोध को बहुत से परु ाने कृबिम प्रयोग िाले कारण हैं कक उनमें से ककसी की भी पद्धनत को पेराडाईम – भूलभुलैया, समह ू -संबद्धता शबद सि ू ी, दस ू रे की पद्धनत में नहीं बदला जा सकता। शायद ननरर्थक शबदों आदद से दरू कर ददया। मैं एक अगले िरण में हम यह जानेंगे कक उन्हें सार्- उदाहरण लेता हूं। यह पूिाथनुमान कक बहुत छोटे सार् कैसे रखा जा सकता है । परं तु मैं एक िीज 13 बी.एफ. श्स्कनर, िबथल विहे विअर (कैं बब्रज पहला सीधा हमला िबथल विहे विअर (इन लैंग्िेज मैसािस ु ेस्ट: हािथडथ यनू निलसथटी प्रेस, 1947)। 35 (1959): 26-34) दो साल बाद हालांकक एक िोम्स्की की स्िक्िरललस्ट-मैंटेललस्ट व्यू सबसे अिधारणात्मक आचियथ के रूप में ककन्तु बड़े पहले उनकी लसंटेश्क्टक स्िक्िर में प्रकालशत हुई अप्रत्यालशत ढं ग से आई। र्ी (दी ह्यज़ ू : माउटन, 1957), श्स्कनर पर उनका के बारे में आचिस्त हूं कक आप सीखने की प्रकिया को सीखी जा रही विषयिस्तु से अलग नहीं कर सकते और न ही तटस्र् संदभथ में उसका अध्ययन कर सकते हैं। सीखना हमेशा ही पररश्स्र्नतजन्य होता है और हो रहे कायों में अिश्स्र्त होता है । संभित: ‘सामान्य रूप सीखने’ जैसी कोई िीज नहीं होती और शायद यही है जो हम पािलोि के कुिे, कोहलर के धिंपांश्जयों से एिं सीखने के मतभेद श्जन्हे इन्होने धिश्न्हत ककया, से सीख सकते हैं।