तुला राशि में नीच सूर्य का फल: ज्योतिषीय विश्लेषण PDF

Summary

यह दस्तावेज ज्योतिष शास्त्र में लग्न की महत्ता और लग्न के प्रकारों के बारे में चर्चा करता है. लेख में बतााया गया है कि लग्न भाव कैसे तय होता है और सूर्य की स्थिति के आधार पर जन्म काल की जानकारी कैसे प्राप्त कर सकते हैं. सभी भाव एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और मिलकर इस शरीर की संपूर्णता को दर्शाते हैं.

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Title: [120-तुला राशि स्थित नीच का सूर्य क्या फ़ल देगा? Part-1] नक्षत्र ज्योतिष ज्ञान भास्कर एस्ट्रोलॉजी क्लासेस में आपका स्वागत है ज्योतिष शास्त्र में लग्न की इतनी महता बताई गई है क्योंकि लग्न एक महत्त्वपूर्ण स्थान है और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे और समझेंगे कि लग्न का इतना महत्व क्यों है लग...

Title: [120-तुला राशि स्थित नीच का सूर्य क्या फ़ल देगा? Part-1] नक्षत्र ज्योतिष ज्ञान भास्कर एस्ट्रोलॉजी क्लासेस में आपका स्वागत है ज्योतिष शास्त्र में लग्न की इतनी महता बताई गई है क्योंकि लग्न एक महत्त्वपूर्ण स्थान है और आज हम इसी के बारे में बात करेंगे और समझेंगे कि लग्न का इतना महत्व क्यों है लग्न क्या है कहा गया है जैसा लगन वैसा शरीर और उपनिषद में तो शरीर को ब्रह्म के समान माना गया है और इसी बात से हम समझ सकते हैं कि लग्न की इतनी महता क्यों है यदि लग्न भाव कमजोर है पीड़ित है तो निश्चित ही शरीर में कमजोरी रहेगी दिक्कतें रहेंगी और लग्न मजबूत है स्वस्थ है तो शरीर भी स्वस्थ रहेगा और सुंदर भी रहेगा और लग्न यदि मजबूत है तो जातक का मान सम्मान भी रहेगा और लग्न यदि पीड़ित है कमजोर है तो उसके मान सम्मान में भी कमी आएगी एक तरह से कहा जाए तो लग्न इस शरीर की धुरी के समान होता है लग्न में ही जन्म होता है और बाकी के सभी भाव इसके सहायक भाव है यानी धुरी लग्न है और बाकी के भाव इसको संपूर्ण बनाते हैं अब यह तो हम जानते ही हैं कि लग्न कैसे तय होता है पूर्वी छिति पर जिस भी राशि का उदय हो रहा होता [संगीत] है वही जातक का लग्न होता है क्योंकि पूर्वी क्षितिज पर ही सूर्य का उदय होता है और इसीलिए पूर्वी क्षितीज पर जन्म के समय उदित हो रही राशि ही इस शरीर का जन्म या लग्न कहलाता है और इसीलिए लग्न को पूर्व दिशा माना गया है क्योंकि सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है और हमारे शरीर का जन्म भी पूर्व दिशा में ही होता है क्योंकि पूर्व दिशा की राशि ही लग्न है और लग्न ही शरीर है इस बात को थोड़ा सा ध्यान में बैठा लेने की आवश्यकता जरूर है और यही कारण है कि कोई भी लग्न हो यदि जातक की कुंडली में सूर्य लग्न में विराजमान हो हो तो यह स्पष्ट होता है कि इसका जन्म सुबह के समय हुआ है और सूर्य यदि दशम भाव में हो तो आप मान लीजिए कि उसका जन्म दोपहर का है चाहे जो भी लग्न हो यह सिर्फ सूर्य की स्थिति से ही पता चल जाएगा और सप्तम भाव में सूर्य हो तो यह संध्या का समय है और चतुर्थ भाव में अर्धरात्रि का तो यह सूर्य की स्थिति से पता चल जाता है हालांकि सभी लग्न की अवधि समान नहीं होती है कुछ लग्न दो घंटे से कुछ कम समय के होते हैं और कुछ लगन दो घंटे से सात आ मिनट ज्यादा के होते हैं लेकिन यहां पर हमारा विषय यह नहीं है इसलिए आप जन्म समय को जातक के कुंडली चक्र से समझने के लिए दो दो घंटे के हिसाब से एक एक भाव में आगे बढ़ते रहिए वाइज जैसे लग्न में सूर्य हो तो सुबह का जन्म है दशम भाव में सूर्य हो तो दोपहर का जन्म है अब मान लीजिए यही सूर्य बवे या 11वें भाव में हो तो सुबह के समय से सूर्योदय के समय से दो दो घंटा एवरेज आप आगे बढ़ते रहिए आपको सही जन्म समय मिल जाएगा और इसे क्लॉक वाइज ही चलना है कुंडली में हम जब सूर्य या अन्य ग्रहों की राहु केतु को छोड़कर उनकी गति देखते हैं तो एंटी क्लॉक वाइज देखते हैं लेकिन यहां पर जन्म समय का पता लगाने के लिए हमको सूर्य को क्लॉक वाइज ही देखना होगा इस बात का ध्यान रहे और इस बात का ध्यान रहे कि पूर्वी क्षितिज पर जो भी राशि उदय हो रही होगी जन्म काल के समय जातक का लग्न वही होगा तो अभी तक हमने बात की लग्न की यानी शरीर की और इस शरीर को ही ब्रह्म माना गया है तो यही शरीर यही लग्न ब्रह्मवर्त बार सुना होगा कि काल पुरुष की कुंडली या मेष लग्न की कुंडली तो केवल मेष लग्न की कुंडली ही नहीं हर कुंडली अपने आप में ब्रह्मवर्त काल पुरुष की कुंडली है यहां पर कन्फ्यूजन में नहीं पड़े जो लग्न है वो हमेशा प्रथम भाव ही होगा जबकि काल पुरुष की कुंडली या मेष लगन की कुंडली में अंक यानी राशियां और भाव वही होते हैं जबकि अन्य लग्न में बदल जाती हैं अभी थोड़ी देर पहले ही हमने बात की थी कि लग्न शरीर है और बाकी के भाव उसके सहयोगी भाव हैं तो आइए अब समझते हैं कि सभी बा भाव मिलकर किस तरह से इस शरीर को संपूर्णता देते हैं या किस तरह से इस संपूर्ण शरीर की रचना करते हैं यदि हम प्रसूति के समय का ध्यान रखें यानी प्रसूति के समय सबसे पहले कपाल या ललाट दिखाई देता है तो जब भी हमको कपाल या ललाट इसके विषय में विचार करना हो कोई भी रोगी हो या कोई भी दुख सुख हो और इससे संबंधित हो तो इस 12 भावों वाले शरीर के प्रथम भाव से उसका विचार करना होगा और इसी तरह जिस क्रम में गर्भ से जातक बाहर आता है उसी क्रम में भावों का आधिपत्य बनता चला जाता है जैसे कपाल बाहर आने के बाद आंख नाक कान मुंह यह बाहर आते हैं तो इस पर द्वितीय भाव का अधिपत्य हो गया और इसी क्रम में कंधे यह तीसरे भाव के अधिपत्य में आ जाएंगे इसके बाद छाती यह चतुर्थ भाव के अधिपत्य में आएंगे छाती के बाद पेट यह पंचम भाव के अधिपत्य में आ जाएगा और उसके बाद कमर भार आती है तो यह जो कटी प्रदेश है यह छठ भाव हो गया और उसके बाद जननांग दिखाई देते हैं तो यह जनांग सप्तम भाव का आधिपत्य हो गया और इसके बाद मलद्वार तो यह मलद्वार अष्टम भाव का कार कत्व होगा यानी उसके आधिपत्य में रहेगा अष्टम भाव के और इसके बाद जांगे बाहर आती हैं तो इस पर नवम भाव का अधिपत्य होगा फिर घुटने तो घुटने दशम भाव के अधिपत्य में है फिर टांगे यह एकादश भाव के अधिपत्य में है और अंत में बाहर आता है पैर का पंजा तो यह द्वादश भाव का आधिपत्य होगा अब यहां पर ध्यान दीजिए कि पैर का पंजा बाहर आते-आते जातक अपनी माता के गर्भ से मुक्त होगी और इसीलिए बव भाव को मोक्ष का भाव कहा गया है तो हमने अभी समझा कि लग्न क्या है और किस तरह से सभी भाव इस लग्न या कहले शरीर के सहयोगी भाव है इन 12 भावों से मिलकर ही यह शरीर बना है या कह सकते हैं कि अपनी संपूर्णता को प्राप्त करता है और जब भी कोई दशा या अंतर दशा में कोई भी भाव एक्टिव या डीएक्टिवेट होता है तो उसी भाव से संबंधित अंग में दुख सुख आएगा इसका प्रैक्टिकल उपयोग यह है मतलब रटे लगा के हम किसी चीज को रट ले तो वह समय पर याद नहीं आती है हमने आपको जो प्रक्रिया समझाई इस प्रक्रिया को आप ध्यान में रखेंगे तो आपको तुरंत ध्यान में आ जाएगा कि किस भाव की बात हो रही है और आपको कोई परेशानी नहीं होगी कुंडली में अंतर दशा का विचार करते समय जो भी भाव एक्टिव या डीएक्टिव हो रहा हो तो आप आराम से कह सकते हैं कि इस अंग से संबंधित पीड़ा होगी या नहीं होगी और आपके फल कथन में भी इससे सटीकता आएगी अब आज के चैप्टर को यही विराम देते हैं और अगली बार आपसे मिलते हैं नए विषय के साथ तब तक के लिए जय जय सियाराम

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