बौद्ध धर्म: हीनयान एवं महायान

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15 Questions

सौत्रान्तिक मत की स्थापना किसने की थी?

कुमारलब्ध

सौत्रान्तिक चित्त और ब्रह्म जगत में किसकी सत्ता में विश्वास था?

दोनों की

अभिधम्मकोष किसने लिखी थी?

वसुबंधु

वसुबंधु के जीवन के अंतिम चरण में कौनसा मत अपनाया गया?

योगाचार मत

पाश्चात्य वैभाषिक मत का केंद्र कहाँ था?

गांधार

हीनयान धर्म के अनुयायी किसे महापुरुष मानते थे?

बुद्ध

हीनयान धर्म में कौनसा आदर्श प्राप्त करने की प्रेरणा थी?

अर्हत् पद

हीनयानी व्यक्ति किस हेतु प्रयासरत रहता था?

स्वयं के निर्वाण हेतु

हीनयान किस देशों में फैला हुआ था?

श्रीलंका, बर्मा, जावा

हीनयान को 'श्रावकयान' किस कारण से कहा जाता है?

'श्रावक' शब्द से

सौत्रान्तिक मत के आचार्यों में से कौन वैभाषिक मत पर अभिधम्मकोष लिखने वाले थे?

घोषक

सौत्रान्तिक मत की स्थापना किस शताब्दी में हुई थी?

दूसरी शताब्दी ई.में

किस मूल प्रमाण पर सौत्रान्तिक मत को सौत्रान्तिक कहा जाता है?

सुत्त पिटक

किसने वैभाषिक मत को छोड़कर योगाचार मत (विज्ञानवाद) को अपनाया?

वसुबंधु

किसने सौत्रान्तिक मत में 'सत्ता' में 'सुत्त' पिटक के संरक्षक होने पर विश्वास किया?

यशोमित्र

दोस्तो जैसा कि आप जानते है बौद्ध धर्म दो भागो हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया था हीनयान के अनुयायी बुद्ध को एक महापुरुष मानते हैं, भगवान नहीं ।

हीनयानी निम्नमार्गी एवं रूढ़िवादी थे। यह व्यक्तिवादी धर्म था इसमें व्यक्ति स्वयं के निर्वाण हेतु ही प्रयासरत रहता है,अन्य के कल्याण हेतु प्रयास नहीं करता था।

हीनयान मूर्तिपूजा एवं भक्ति में विश्वास नहीं रखते, हीनयान का आदर्श अर्हत् पद को प्राप्त करना है। हीनयान को श्रावकयान भी कहते हैं हीनयान श्रीलंका, बर्मा एवं जावा में फैला है।

कालान्तर में हीनयान भी दो भागों में बँट गया-

  1. वैभाषिक
  2. सौत्रान्तिक

वैभाषिक मत की उत्पत्ति कश्मीर में हुई जबकि पाश्चात्य वैभाषिक का केन्द्र गांधार था। वैभाषिक मत के आचार्य वसुमित्र, बुद्धदेव, धर्मत्रात, घोषक आदि थे।

सौत्रान्तिक मत की स्थापना कुमारलब्ध ने दूसरी शताब्दी ई. में की। सौत्रान्तिक मत का मुख्य आधार सुत्त पिटक है। अतः इसे सौत्रान्तिक कहा जाता है। श्रीलाभ एवं यशोमित्र इस मत के आचार्य थे। सौत्रान्तिक चित्त एवं ब्रह्म जगत दोनों की सत्ता में विश्वास करते थे। .

वैभाषिक मत पर वसुबंधु ने अभिधम्मकोश लिखी । अभिधम्मकोष को अभी तक बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण विश्वकोष माना जाता है। वसुबंधु ने अपने जीवन के अन्तिम चरण में वैभाषिक मत को छोड़ योगाचार मत (विज्ञानवाद) अपना लिया और महायान का वज्रछेदिका ग्रन्थ लिखा ।

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