सुश्रुत संहिता और टीकाकार
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सुश्रुत संहिता और टीकाकार

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Questions and Answers

गम्भीर रोगों की चिकित्सा में शल्य चिकित्सा किस प्रकार के रोगों के लिए उपयुक्त है?

  • मधुमेह
  • बद्धगुदोदर (correct)
  • धड़कन की समस्या
  • सूजन
  • रचनात्मक चिकित्सा में कौन-सी प्रक्रिया शामिल नहीं है?

  • ओष्ठ संधान
  • मालिश (correct)
  • नसा संधान
  • अंग प्रत्यारोपण
  • यशप्प्रद चिकित्सा का मुख्य लाभ क्या है?

  • सर्जरी का खतरा कम होना
  • रोगी को दीर्घकालिक लाभ
  • शल्य चिकित्सक की प्रतिष्ठा में वृद्धि (correct)
  • औषधियों की सस्ती उपलब्धता
  • निम्नलिखित में से कौन-सी चिकित्सा शल्य तन्त्र की विशेष प्रक्रियाओं द्वारा की जाती है?

    <p>कर्ण संधान</p> Signup and view all the answers

    गम्भीर रोगों के इलाज में किस चिकित्सा का प्रमुख स्थान है?

    <p>शल्य चिकित्सा</p> Signup and view all the answers

    चक्रपाणिदत्त को कौन सी उपाधि दी गई है?

    <p>चरक चतुरानन</p> Signup and view all the answers

    डल्हण का टीका किस ग्रंथ पर लिखा गया है?

    <p>सुश्रुत संहिता</p> Signup and view all the answers

    हारणचन्द्र किस आचार्य के शिष्य थे?

    <p>गंगाधर</p> Signup and view all the answers

    चक्रपाणिदत्त की टीका का नाम क्या है?

    <p>भानुमति टीका</p> Signup and view all the answers

    डल्हण का काल कौन सा है?

    <p>10वीं सदी</p> Signup and view all the answers

    कौन सा टीकाकार 20वीं सदी में हुआ?

    <p>भास्कर गोविन्द घाणेकर</p> Signup and view all the answers

    हालांकि कौन से टीकाकार की टीकाएँ अनुपलब्ध हैं?

    <p>विप्रण्यचार्य</p> Signup and view all the answers

    आचार्य गंगाधर के शिष्य हारणचन्द्र ने कब टीका लिखी?

    <p>1917</p> Signup and view all the answers

    सूत्रस्थान पर चक्रपाणिदत्त की टीका किस ग्रंथ पर उपलब्ध है?

    <p>भानुमति टीका</p> Signup and view all the answers

    डल्हण के पिता का नाम क्या था?

    <p>भरतपाल</p> Signup and view all the answers

    सद्योव्रण चिकित्सा में शल्य चिकित्सक की भूमिका क्या होती है?

    <p>वाह्य एवं अन्तः व्रणों का रोहण करना</p> Signup and view all the answers

    आशुकारी चिकित्सा का प्रमुख लाभ क्या है?

    <p>व्याधियों का शल्य चिकित्सा द्वारा शीघ्र उपचार</p> Signup and view all the answers

    विविध तकनीक चिकित्सा में कौन सी विधि शामिल नहीं होती?

    <p>मानसिक चिकित्सा</p> Signup and view all the answers

    औषधि के विफल होने पर किस प्रकार की चिकित्सा की आवश्यकता होती है?

    <p>शल्य कर्म</p> Signup and view all the answers

    आचार्य सुश्रुत के अनुसार अग्निकर्म चिकित्सा का मुख्य लाभ क्या है?

    <p>रोगों का पुनरूद्भवन नहीं होना</p> Signup and view all the answers

    किस प्रकार के व्रणों को शल्य चिकित्सा द्वारा ही उपचार किया जा सकता है?

    <p>भग्न एवं स्रवण भग्न जैसे व्रण</p> Signup and view all the answers

    रोगों के समूल निवारण के लिए किस प्रकार की चिकित्सा का उपयोग किया जाता है?

    <p>अग्निकर्म चिकित्सा</p> Signup and view all the answers

    कौन सी तकनीक चिकित्सा का चुनाव करते समय चिकित्सक को किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

    <p>रोग का प्रकार और अवस्थिति</p> Signup and view all the answers

    चंदन की लकड़ी को वहन करने वाले गधे का ज्ञान किस प्रकार का है?

    <p>भार का</p> Signup and view all the answers

    आचार्य सुश्रुत ने शस्त्रकर्म को कितनी अवस्थाओं में वर्णित किया है?

    <p>तीन</p> Signup and view all the answers

    पूर्वकर्म में क्या विचार किया जाता है?

    <p>आवश्यक सामग्री का एकत्रण</p> Signup and view all the answers

    प्रधान कर्म में किसका विस्तृत वर्णन किया गया है?

    <p>विभिन्न व्याधियों में शल्य कर्म</p> Signup and view all the answers

    पश्चात्कर्म में किसका विवेचन किया जाता है?

    <p>भोजन, निद्रा, और व्रण बंधन</p> Signup and view all the answers

    अनुसंधान कर्म का उद्देश्य क्या है?

    <p>अन्य शास्त्रों का अध्ययन</p> Signup and view all the answers

    एकं शास्त्रमधीयानो न विद्याच्छास्त्रनिश्चयम् का क्या अर्थ है?

    <p>सिर्फ ज्ञान से चिकित्सा नहीं होती</p> Signup and view all the answers

    चिकित्सक को किस प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता है?

    <p>बहुश्रुतता और विज्ञान का ज्ञान</p> Signup and view all the answers

    शस्त्र कर्माभ्यास में कितनी स्थरें होती हैं?

    <p>तीन</p> Signup and view all the answers

    शस्त्रकर्म का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

    <p>सर्जरी में कुशलता</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    <p>शरीर में वाधा या पोड़ा निकालना</p> Signup and view all the answers

    शल्य चिकित्सक के गुणों में से कौन सा गुण नहीं है?

    <p>हाथ का काँपना</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र में किस प्रकार के शल्य का वर्णन किया गया है?

    <p>दुष्ट व्रण</p> Signup and view all the answers

    आघात के कारण शरीर में प्रवेश करने वाले तृण को क्या कहा जाता है?

    <p>शल्य</p> Signup and view all the answers

    शल्य चिकित्सक में 'Eagle's eye' से क्या तात्पर्य है?

    <p>सतर्कता</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र में व्रण की क्या अवस्थाएँ होती हैं?

    <p>आम, पच्यमान, और पक्वावस्था</p> Signup and view all the answers

    एक शल्य चिकित्सक के लिए अत्यधिक रक्तादि को देखकर मूर्च्छित नहीं होने की क्षमता किस गुण का हिस्सा है?

    <p>असम्मोह</p> Signup and view all the answers

    आधुनिक जीर्ण चिकित्सा में 'Camel's belly' का क्या अर्थ है?

    <p>धैर्य और संयम</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र में निम्नलिखित में से क्या शामिल नहीं है?

    <p>औषधि</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र का ज्ञान किस प्रकार के शल्य के निकासी में सहायक होता है?

    <p>दुष्ट व्रण</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र में किस प्रकार का ज्ञान चिरकारी कष्ट का कारण बन सकता है?

    <p>स्राव का ज्ञान</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र के अंतर्गत आघात द्वारा शरीर में जो वाधाएँ उत्पन्न होती हैं, उनका क्या किया जाता है?

    <p>उनका उपचार किया जाता है</p> Signup and view all the answers

    शल्य तन्त्र में अग्निकर्म का उपयोग किस स्थिति में किया जाता है?

    <p>संक्रामक व्रण</p> Signup and view all the answers

    Study Notes

    सुश्रुत संहिता के टीकाकार

    • चक्रपाणिदत्त ने चरक संहिता और सुश्रुत संहिता दोनों पर टीका लिखी, जिन्हें क्रमशः चरक चतुरानन और सुश्रुत सहस्रनयन का नाम दिया गया। उनकी टीका सुश्रुत संहिता पर केवल सूत्रस्थान में उपलब्ध है।
    • डल्हण ने सुश्रुत संहिता पर "निबंध संग्रह" नामक टीका लिखी, जो आजकल व्यावहारिक दृष्टि से मुख्य मानी जाती है और पूरी तरह से उपलब्ध है,
    • डल्हण 10वीं सदी में मधुरा के निकट भादानक प्रदेश के रहने वाले थे।

    अन्य टीकाकार

    • कुछ अन्य टीकाकारों की टीकाएं जैसे विप्रण्यचार्य, श्री माधव, ब्रह्मदेव, भास्करभट्ट, माधवकार, कार्तिक कुण्ड, सुधीर, सुबीर, सुकीर, नन्दि, वराह, वंगदत्त, गदाधर वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं.
    • हरिणचंद्र, जो गंगादर के शिष्य थे, ने वर्ष 1917 में “सुश्रुतार्थ संदीपन” नामक टीका लिखी।

    हिंदी टीकाकार

    • भास्कर गोविन्द घाणेकर ने "आयुर्वेद रहस्य दीपिका" नामक हिंदी टीका 20वीं सदी में लिखी।
    • अंबिका दत्त शास्त्रो ने "आयुर्वेद तत्व सन्दीपिका" नामक हिंदी टीका 20वीं सदी में लिखी।

    सुश्रुत संहिता में प्रशिक्षण विधि

    • योग्यता (Practical training) और विशिखानुप्रवेश (Medical profession) का वर्णन सुश्रुत संहिता में किया गया है।
    • सुश्रुत शस्त्र कर्म को तीन चरणों में विभाजित करते हैं: पूर्वकर्म, प्रधान कर्म, पश्चात् कर्म
    • पूर्वकर्म (Pre operative): शस्त्र कर्म की तैयारी, यन्त्र, शस्त्र, एवं भेषज को एकत्र करना, शुभ दिन, समय एवं प्रकाश का विचार, रोगी को भोजन एवं उपवास का विचार
    • प्रधान कर्म (Operative): विभिन्न व्याधियों में शल्य कर्मों का विस्तृत वर्णन जैसे अष्टविध शस्त्रकर्म
    • पश्चात् कर्म: रोगी के भोजन, निद्रा, व्रण बंधन आदि विधियों का विवेचन
    • अनुसंधान कर्म: अन्य विभिन्न शास्त्रों का अध्ययन

    शल्य तन्त्र का परिचय

    • "एकं शास्त्रमधीयानो न विद्याच्छास्त्रनिश्चयम् । तस्मा‌द्बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयाच्चिकित्सकः । (सु.सृ. 26/4)** - बहुत सारे शास्त्रों के ज्ञान से ही चिकित्सक शास्त्र को समझ सकता है।
    • शल्य वह है जो शरीर में वाधा या पीड़ा उत्पन्न करता है।
    • "तत्र शल्यं नाम विविधतृणकाष्ठपाषाणपांशुलोहलोष्टा-स्थि बालनखपूयास्रावदुष्टव्रणान्तगर्भ शल्योद्धरणार्थ, यन्त्रशस्त्रक्षाराग्निप्रणिधानव्रणविनिश्चयार्थञ्च । (सु.सू. 1/9)**
    • शल्य तन्त्र में तृण, काष्ठ, पत्थर, धूलि के कण, लौह, मिट्टी, अस्थि, केश, नाखून, पूय, स्राव, दूषित व्रण, अन्तः शल्य, मृतगर्भ शल्य को निकालने, यन्त्र, शस्त्र, क्षार, अग्निकर्म करने, व्रण की अवस्था का निश्चय करने का वर्णन
    • आघात (Trauma) के कारण शरीर में प्रवेशित तृण, काष्ठ, पत्थर, लौह आदि को शल्य कहा जाता है।

    शल्य चिकित्सक के गुण

    • "शौर्यमाशुक्रिया शस्त्रतक्ष्ण्यमस्वेदवेपथु । असम्मोहश्च वैद्यस्य शस्त्रकर्मणि शस्यते । (सु.सू. 5/10)"
    • शूरता, शस्त्र कर्मादि में शीघ्रता, शस्त्र की धार का तीक्ष्ण होना, शस्त्र कर्म करते समय पसीना न आना, हाथ न काँपना, मूर्च्छित न होना
    • आधुनिक दृष्टिकोण से- शल्य चिकित्सक में कोमलता, साहस, तेज दृष्टि, सहनशक्ति, और भूख प्यास से परे रहने की क्षमता होनी चाहिए।

    अष्टांग आयुर्वेद में शल्य तन्त्र का महत्व

    • "अप्टास्वपि चायुर्वेदतन्त्रप्वेतदेवाधिकमभिमतम्, आशुक्रिया-करणात्, यन्त्रशस्त्रक्षाराग्निप्रणिधानात्, सर्वतन्त्रसामान्याच्च । (सु.सू. 1/26)"
    • शल्य तन्त्र अन्य सभी आयुर्वेद तंत्रों से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें शीघ्र चिकित्सा, यन्त्र, शस्त्र, क्षार, अग्नि का प्रयोग, और सभी तंत्रों से सामंजस्य
    • "तदिदं शाश्वतं पुण्यं स्वर्यं यशस्यमायुष्यं वृत्तिकरञ्चेति । (सु.सू. 1/27)"
    • यह चिकित्सा शाश्वत पुण्य, स्वर्य, यश, आयुष्य और आय प्रदान करती है।

    सद्योव्रण चिकित्सा

    • युद्ध में व्रणोत्पति होने पर शल्य चिकित्सक बाह्य और आंतरिक व्रणों के रोहण में सक्षम होते हैं।
    • भग्न एवं स्रवण भग्न, रक्तस्राव, कोप्ठ स्थित व्रण- जैसे छिद्रोदर, वस्तिगत व्रण इत्यादि
    • शल्य चिकित्सा व्याधियों का शीघ्र उपचार प्रदान करती है।
    • विभिन्न प्रकार की चिकित्सा विधियों जैसे- यन्त्र, शस्त्र, क्षार, अग्नि, रक्तावसेचन के द्वारा चिकित्सक रोगी और रोग की अवस्था के अनुसार सही चिकित्सा चुन सकता है।

    औषधि की विफलता में शल्य कर्म

    • जब औषधि का उपचार कामयाब न हो तो शल्य क्रिया की आवश्यकता होती है।
    • चरक संहिता में भी शल्य चिकित्सक की सहायता लेने का निर्देश है।
    • शल्य क्रिया से रोगों का पुनरुद्भवन (recurrence) नहीं होता।
    • "तद्दग्धानां रोगाणामपुनर्भावाद् (सु.सू. 12/3)"

    गम्भीर रोगों की चिकित्सा

    • गंभीर बीमारियों को ठीक करने में शल्य क्रिया प्रभावी होती है, जैसे मूत्र जठर (Retention of Urine), बद्धगुदोदर (Acute intestinal obstruction)
    • शल्य तन्त्र का प्रयोग नासा, कर्ण, ओष्ठ संधान, अंग प्रत्यारोपण आदि रचनात्मक चिकित्सा में किया जाता है।

    यशप्प्रद चिकित्सा

    • शल्य चिकित्सा रोगी को शीघ्र लाभ देकर चिकित्सक को यश और धन प्रदान करती है.

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    Quiz Team

    Description

    इस.quiz में सुश्रुत संहिता पर विभिन्न टीकाकारों की जानकारी दी गई है। चक्रपाणिदत्त, डल्हण और अन्य हिंदी टीकाकारों की टीकाएं पर विचार किया जाएगा। इसका उद्देश्य छात्रों को आयुर्वेदिक ग्रंथों और उनके टीकाकारों के महत्व को समझाना है।

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