ठोस अवस्था class 12 हिंदी नोट्स PDF

Summary

These notes cover the topic of solid state chemistry for class 12 students. It includes definitions, properties of solids, different types of solids, and crystalline versus amorphous solids.

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# Lesson-01: ठोस अवस्था (Solid State) * ठोस अवस्था "पदार्थ की वह अवस्था जिसमे अवयवी कण जैसे परमाणु, अणु या आयन प्रबल अंतराण्विक आकर्षण बलों द्वारा निकटस्थ संकुलित होते हैं। ठोस अवस्था कहलाती है।" * ठोस के गुण * ठोस दृढ़ होते हैं। * इनकी आकृति तथा आयतन निश्चित होते हैं। * ये संपीडय होत...

# Lesson-01: ठोस अवस्था (Solid State) * ठोस अवस्था "पदार्थ की वह अवस्था जिसमे अवयवी कण जैसे परमाणु, अणु या आयन प्रबल अंतराण्विक आकर्षण बलों द्वारा निकटस्थ संकुलित होते हैं। ठोस अवस्था कहलाती है।" * ठोस के गुण * ठोस दृढ़ होते हैं। * इनकी आकृति तथा आयतन निश्चित होते हैं। * ये संपीडय होते हैं। * पदार्थ ठोस अवस्था में क्रिस्टल बना सकते हैं। * गर्म करने पर ठोस द्रव में बदल जाते हैं। * गलनांक (Melting point) * जिस ताप तथा वायुमंडलीय दाब पर कोई पदार्थ पिघलकर ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं। उस ताप को ठोस पदार्थ का गलनांक कहते हैं। पदार्थों का ठोस अवस्था में घनत्व उनकी द्रव तथा गैस अवस्था से अधिक होता है। पदार्थ की ठोस अवस्था में उनके अवयवी कण के मध्य दूरियां कम होती हैं। जिसके कारण अंतराण्विक बल प्रबल हो जाते हैं। * ठोसों के प्रकार (Types of Solids) * क्रिस्टलीय ठोस (Crystalline Solid) * अक्रिस्टलीय ठोस (Amorphous Solid) * Note: ठोसों को उनके अवयवी कणों की व्यवस्था में उपस्थित क्रम के आधार पर क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोसों में वर्गीकृत किया गया है। ## क्रिस्टलीय ठोस * वे ठोस पदार्थ जिनके अवयवी कण निश्चित व्यवस्था में व्यवस्थित होते हैं अर्थात् जिनमें अवयवी कणों की दीर्घ परास व्यवस्था पाई जाती है क्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं। * वास्तविक (Long range Order) क्रिस्टलीय ठोस ही ठोस होता है. * Example: Nach, Naso4 तथा शक्कर आदि। * इनके गलनांक निश्चित होते हैं। इनकी त्रिविम संरचना बाह्य बलों से विकृत नहीं होती हैं । ये विषमदैशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुण जैसे- उष्मीय चालकता वैद्युत चालकता, कठोरता तथा अपवर्तनांक etc. के मान भाप की विभिन्न दशाओं मे भिन्न-भिन्न होते है। * विषमदशिकता: जिन पदार्थों के भौतिक गुण जैसे - उष्मीय चालकता, वैद्युत चालकता, कठोरता तथा अपवर्तनांक etc के मान, भाप की विभिन्न दशाओ मे भिन्न-भिन्न होते है। विषमदैशिक कहलाते है तथा इस गुण को विषमदैशिकता कहते हो ## अक्रिस्टलीय ठोस: * वे ठोस पदार्थ जिनके अवयवी कणों मे एक अनिश्चित ज्यामिति में व्यवस्थित होते हैं अर्थात, जिनमें अवयवी कणों की लघु परास व्यवस्था (Short range order) पाई जाती है अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं। * Example: कांच , प्लास्टिक, रबड़, रेजिन आदि। * इनके गलनांक निश्चित नहीं होते हैं। इनकी त्रिविम संरचना बाह्य बलों के प्रभाव मे विकृत नहीं होती है। ये विषमदशिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् इनके भौतिक गुण जैसे- उष्मीय चालकता, वैद्युत चालकता, कठोरता तथा अपवर्तनांक etc. के मान भाप की विभिन्न दशाओं मे भिन्न-भिन्न होते है। ## अतिशीतित द्रव (Supercooled liquid) * जिन पदार्थों के कणों की अव्यवस्था द्रव के कणों के समान होती है उन्हें अतिशीतित द्रव कहते हैं। * कांच मे द्रवो की सदर्श प्रवाह की प्रवृत्ति होती है यद्यपि यह बहुत मंद होती है इसी कारण इसे अतिशीतित द्रव कहते हैं। * पुराने मकानों की खिड़कियों पर लगे कांच नीचे से मोटे तथा दूधिया होते हैं जाते है। इसका कारण यह है कि गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में कांच बहुत ही मंद गति से नीचे की ओर बहने लगता है इससे कांच या शीशे नीचे की ओर मोटे हो जाते हैं। * Note: अक्रिस्टलीय ठोस समदैशिक प्रकृति के होते हैं. अर्थात् इनके भौतिक गुणो जैसे उपमीय चालकता वैद्युत चालकता, कठोरता तथा अपवर्तनांक etc के मान भाप की विभिन्न दशाओ मे भिन्न नही होते हैं अर्थात् एकसमान रहते हो। * समदैशिकता: जिन पदार्थों के भौतिक गुण जैसे - उपभीय चालकता, कठोरता तथा वैद्युत चालकता व अपवर्तनांक के भान भाप की विभिन्न दशाओ मे एकसमान रहते है समदशिक कहलाते हैं तया इस गुण को समदशिकता कहते है। * Example: कांच (glass) को प्रवाह एवं अपवर्तनांक के मान वही रहते है भले ही किसी भी दिशा मे मापन किया जाएं अता कांच को समदीरीक कहा जाता है। ## अक्रिस्टलीय ठोसो के प्रमुख गुण * इनके अवयवी कणों की आन्तरिक व्यवस्था में कोई नियमितता नहीं होती है। * अक्रिस्टलीय ठोसो के बाढ्य रूप में भी कोई नियमितता नहीं होती है। * अक्रिस्टलीय ठोसो के गलनांक निश्चित नही होते हैं। * इनको तोडने पर ये अनियमित रूप से टूटते हैं। * जब अक्रिस्टलीय ठोसो को गर्म करके धीरे-धीरे ठण्डा किया जाता है तो वे क्रिस्टलीय ठोस में परिवर्तित हो जाते है। * इस कारण प्राचीन काल की वस्तुए दुधिया दिखाई देती है। ## अक्रिस्टलीय ठोसो के उपयोग: * प्लास्टिक का उपयोग घरेलू उपकरण बनाने में किया जाता ह * रबर भी अक्रिस्टलीय ठोस है जिसका उपयोग टायर, ट्यूब आदि बनाने में किया जाता है। * अक्रिस्टलीय ठोस, अकार्बनिक कांच होते है। इसका उपयोग घरेलू एवं प्रयोगशाला के उपकरण बनाने मे किया जाता हो| * अक्रिस्टलीय ठोस सूर्य के प्रकाश का वैद्युत मे रुपान्तरण करने के लिए उपलब्ध श्रेष्ठतम् प्रकाश वोल्टीय पदार्थ है। ## क्रिस्टलीय vs अक्रिस्टलीय ठोस | क्र० स० | गुण | क्रिस्टलीय | अक्रिस्टलीय | |---|---|---|---| | 1 | ज्यामिति | निश्चित ज्यामिति तथा असंमपीड्य | अनिश्चित ज्यामिति तथा समपीड्य | | 2 | अंतराविक व्यवस्था | निश्चितएवं नियमित | अनिश्चित एवं अनियमित | | 3 | गलनांक | निश्चित | अनिश्चित | | 4 | गलन उपमा | निश्चित | अनिश्चित | | 5 | प्रकृति | वास्तविक ठोस | अतिशतित द्वव (आभासी ठोस) | | 6 | दैशिकता | विषमदशिकता | समदैशिकता | | 7 | अवयती कणो की व्यवस्था | दीर्घ परास व्यवस्था | लघु परास व्यवस्था | | 8 | उदाहरण | सल्फर, फास्फोरस , NaCl, केCl, Na2SO4 तथा धातुएं | कांच (glass), खर, प्लास्टिक, रेजिन तथा Se | # क्रिस्टलीय ठोसो का वर्गीकरण * अन्तराविक बलों की प्रकृति के आधार पर इन्हे चार भागो मे बाटा गया है । * सहसंयोजक या नेटवर्क ठोस * आयनिक ठोस * आििवक ठोस * धात्विक ठोस ## सहसंयोजक या नेटवर्क ठोस या जालक ठोस * इनके अवयवी कण परमाणु होते हैं । ये परमाणु एक -दूसरे से प्रबल सहसंयोजक बन्ध्यों द्वारा जुड़े होते है तथा इस प्रकार एक विशाल जाल बनाते हैं । इन जालो की इकाईयां एक ही तत्व के परमाणु होते हैं। * चूंकि ये प्रबल तया दिशात्मक होते हैं इसलिए ये अत्यधिक कठोर एवं भंगुर होते है। इनके गलनांक तया गलन एन्थैल्पी का मान उच्च होता है। ये गलनांक से पूर्व अपघटित हो जाते है तया सामान्यतः विद्युत के कुचालक होते हैं। * हीरा, ग्रेफाइट, सिलिकाने, सिलिकॉन कार्बइड, काला फास्फोरस आदि इसके उदाहरण हैं। * अपवाद। ग्रेफाइट मुलायम तथा वैद्युत के सुचालक होते है । ग्रेफाइट का यह गुण उसकी परतीय संरचना के कारण होता है। ## आयनिक ठोस * इन ठोसो की संरचनात्मक ईकाईयाँ बनात्मक एवं ग्रहणात्मक आयन होती है । ये आपस मे विपरीत आवेशित आयनो की प्रबल कुलामी आकर्षण बलो के कारण ऐसे ठोसो का निर्माण होता है। इनमे प्रत्येक आयन एक निश्चित संख्या द्वारा घिरा रहता है। यह संख्या ४/४- अनुपात से ज्ञात की जाती है । इनके गलनांक व क्वथनांक उच्च होते हैं । ये कठोर एवं भंगुर प्रकृति के होते हैं । ठोस अवस्था मे इनमे आयन गमन नही करते है जिसके कारण ये विद्युत के कुचालक होते है परन्तु गलित अवस्था या जलीय विलयनो में इनके आयन गमन करते है जिसके कारण ये विद्युत के सुचालक होते हैं । ये जल तथा अन्य ध्रुवीय विलायको मे विलेय व अध्रुवीय विलायको मे अविलेय होते हैं। * Example: Nace मे Nat 6 आयन से घिरा होता है व Cl- 6 Nat से घिरा होता है। | क्र०स० | क्रिस्टल प्रकार | संरचनात्मक इकाई | सहसंजल | उदाहरण | |---|---|---|---|---| | 1 | आििवक क्रिस्टल | अणु | दुर्बल वांडर वाल्स बल | मृद्ध, कम गलनांक मे व्यवस्थित वाष्पशील, उपमा (ठोस ), बर्फ, आयोडीन, तया बिद्युत के कुचालक, कम ठोस मेथेन, गलत उपभा: आर्गन | | 2 | आयनिक क्रिस्टल | धनायन व ऋणायन | प्रबल विद्युत आकर्षण बल | कठोर, भंगुर, उच्च गलनांक Nacl, kel, Cns, Agl AgI, LiF , BaSO4 आदि लवण | | 3 | सहसंयोजी क्रिस्टल | प्रकार के परमाणु | अत्यन्त प्रबल सहसंयोजी बन्ध बल | अत्यन्त कठोर, उच्च गलनांक, डायमण्ड, सिलिकॉन डॉई, उच्च गलन उपमा आक्साइड, विप्युत तथा उपमा क्वार्टष के दुर्बलचालक | | 4 | धात्विक क्रिस्टल | गतिशील विद्युत स्लेक्ट्रॉन के आकर्षण सागर मे स्थित धनात्मक आयन | अत्यन्त मृदु से सभी धातुएं अत्यन्त कटोर जैसे-g.n , Fe व सभी विद्युत मिश्रधातुएं तथा उपमा के सुचालक, अधातवर्धनीय, धात्किचमक युक्त | ## Quis उपस्थित अन्तराविक बलो की प्रकृति के आधार पर निम्नलिखि ठोसो को विभिन्न समवर्गो मे वर्गीकृत कीजिए ? * पौटेशियम सल्फेट (K₂SO५)- आयनिक ठोस * एठिटितक (डम) - धात्विक ठोस * आर्गन (Ar) - आण्विक ठोस * जिंक सल्फाइट (Zns) - आयनिक ठोस * सिलिकॉन (Si) - सहसंयोजी ठोस * रुबिडियम (Rb) - धात्विक ठोस * बेन्जीन (CHC) - आण्विक ठोस * पूरिया (NHCONH₂) - आण्विक ठोस * जल (H₂O) - आण्विक ठोस * अमोनिया (NH₃) - आण्विक ठोस # एकक कोष्ठिका की विमा सम्बन्धी गणनाएं * P-Z.M/a.NA * जहां * `P =` एकक कोष्ठिका का घनत्व * `Z =` एकक कोष्ठिकाओ मे परमाणुओं की संख्या * `M =` अण्भार * `NA =` आवोग्रादो संख्या = 6.022x1023 # आयनिक क्रिस्टलो का त्रिज्या अनुपात ``` Ror = धनायन की विज्या (r) / ऋणायन की विध्या (r) ``` * कुछ उपसहसंयोजन संख्याओं के लिए सीमान्त लिज्या अनुपात | उपसहसंयोजन संख्या | आकृति | सीमान्त तिज्या अनुपात (r+/r-) | उदाहरण | |---|---|---|---| | 3 | समतलीय त्रिकोणीय | 0.155-0.225 | 82035BN | | 4 | चतुष्फलकीय | 0.225-0.414 | Zns, zno | | 5 | अष्टफलकीय | 0.414-0.732 | Nace, KBS | | 8 | अन्तः केन्द्रित धनीय | 0.732-1.000 | Csce, Cs8n | ## बिन्दु दोष: * ये दोष एका क्रिस्टलीय पदार्थ मे एक बिन्दु अथवा एक परमाणु के चारो ओर की आदर्श व्यवस्था मे अनियमितताएँ ही बिन्दु दोष होते है। ## रेखीय दोष: * जालक बिन्दुओ की पूर्ण पक्तियो की आदर्श व्यवस्था में अनियमितताएं ही रेखीय दोष होते है । इन अनियमितताओं को क्रिस्टलीय दोष कहते है। जो निम्न प्रकार है। ### इलेक्ट्रानिक दोष * ठोस पर पूर्ण आयनिक या सहसंयोजी यौगिको मे इलेक्ट्रोन न्यूनतम अवस्थाओ मे होते है। जबकि बार से ऊपर यह उच्चतम स्तर मे चले जाते हैं। जिससे ये अपने स्थान पर Hous छोड देते है । ये Hous positive होते है तथा उत्तेजित electron ही इनकी वैद्युत चालकता के लिए उत्तरदायी होते है। * ये तीन प्रकार के होते हैं। ### रससमीकरणमितिय दोष ### अरससमीकरणमितिय दोष ### अशुध्दि दोष ## रससमीकरणमितीय दोष * इनमे उपस्थित धनायनो या ऋणायनो का अनुपात यौगिको के अणुसूत्र के समान ही रहता है। ये दोष दो प्रकार के होते हैं-: * रिक्तियाँ दोष * अन्तराकाशी दोष ## शॉट्र‌की दोष * ये दोष उन यौगिको मे होता है जो बहुत अधिक आयनिक हो। * समन्वयं संख्या उच्च होती है। * इनमे धनायनो व नहणायनो का आकार लगभग समान होता है। * ये दोष भी पदार्थ के घनत्व को घटाते है। * उदाहरण Nald, Kel, AgBr, KBr etc. * शॉट्रकी की दोष मे चालकता धनायन अथवा दोनो आयसो के विपरीत दिशा में अभिगमन चलने) के कारण होती हैं।" ## फ्रेकल दोष * ये दोष उन यौगिको मे होता है जो आयनिक यौगिक मे होता है। * समन्वय संख्या निम्न होती है। * दोनो मे अधिधक अन्तर होता है। * धनायन का आकार नहणायन से छोटा होता है। * धनायन जालक मे अपने निश्चित स्थान को छोडकर के अन्तराकाश में चला जाता है। * फेक्रेल दोष आसानी से होता है। * उदाहरण Agd, zns, AgBr, Agi etc. # अर्द्धचालकों में वैद्युत चालन * ऊर्जा का अन्तर अर्द्धचालको मे संयोजी बैण्ड एवं चालकता बैण्ड के मध्य कम होता है ताप बढ़ने से अर्द्धचालको मे चालकता बढ़ती है क्योकि ताप वृद्धि से अधिक इलेक्ट्रॉन और जर जैसे पदार्थ चले जाते है। Si है इसलिए इन्हे نैज चालकता बैण्ड मे करते है। इसी तरह व्यवहार प्रकट अर्द्धचालक कहते है। ## Quers अपमिश्रण या डोंपिग से आप क्या समझते है? * Si और जद जैसे अर्द्धचालको की चालकता उचित मात्ता मे अशुद्धि मिलाने पर बढ़ायी जा सकती है चालकता बढ़ाने की यह प्रक्रिया ही अपमिक्षण या डोंपिग कहलाती है तया यह बाहरी पदार्थ र अशुद्धियां) बाह‌य अर्द्धचालक कहलाते हैं। * इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धियाँ वैणुरोधी या कुचालको मे मूल परमाणु से अधिक संयोजी इलेक्ट्रॉन वाले परमाणु की अशुद्धि डालकर भ-प्रकार के अर्द्धचालक बनाये जाते है । इन्हे इलेक्ट्रॉन धनी अशुद्धि कहते हैं।, युक्त इलेक्ट्रॉन चालकता बैड दाता स्तर ऊर्जा अन्तर सयाजी बैण्ड Si Se दाता या भ-प्रकार के अध्र्दचालक मे इलेक्ट्रॉन द्वारा चालकता भ-प्रकार के अर्द्धचधिक। * इलेक्ट्रान तहणी अशुध्दियौ वैद्युतरोधी या कुचालको मे मूल परमाणु मे कम संयोजी इलेक्ट्रॉ वाले परमाणु की अशुद्धियों डालकर ए- प्रकार के मर्द्धचालक बनाये जाते है । इन्हे इलेक्ट्रॉन महणी अशुद्धियां कहते हैं। बाइक चालकता बैण्ड Alo Si ऊर्जा अन्तर ग्राही स्तर संयोजी बैन्ड (परित बैन्ड), २-प्रकार के अदर्दचालक ग्राही - प्रारूपी अर्दचालक में बने हिंदी द्वारा चालकता चलिकता चालकता बैन्ड Eg >3 ev Eg अतिष्यपिने (a) चालक 1 संयोजी बैन्ड संयोजी लेड अध्र्दचालक (e) कुचलिक Si ## ठोसो के चुम्बकीय गुण * कुम्बकीय आर्धन * आपण इलेक्ट्रॉन परमाठिवक + इलेक्ट्रॉने चक्रण की दिशा * प्रतिचुम्बकीय पदार्थ * न वे पदार्थ जो बाह्या चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा दुर्बल रूप में प्रतिकर्षित होते है प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते है तथा उनका यह गुण प्रति चुम्बकत्व कहलाता है। * उदाहरण Nad, Gu₂O, V२०३१ TiO3, Zn2+ यौगिक आदि। ## अनुचुम्बकीय पदार्थ * वे पदार्थ जो चुम्बकीय क्षेत्र मे रखने पर, दुर्बल रूप से आकार्षित होते हैं, अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलातेह हो तथा उनका यह गुण अनुचुम्बकत्व कहलाता ही * उदाहरण चे पदार्थ बाह्मा चुम्बकीय क्षेत्र मे आकर्षित होतेहैं, परन्त चुम्बकीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में ये अपना चुम्बकत्व बो देते है। * उदाहरण → TiO2 ## लौहचुम्बकीय पदार्थ * वे पदार्थ जो बाह्मा चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा प्रबलता से आकर्षित होते हैं और बाह्या चुम्बकीय क्षेत्र हटा लेने पर भी स्पायी चुम्बकत्व प्रदर्शित करते हैं। * लौहचुम्बकीय पदार्थ कहलाते है, तथा उनका यह गुण लौह चुम्बकत्व कहलाता है। आयरन, कोबाल्ट और निकिल ऐसे तीन तत्वह जो सामान्य ताप पर लौहचुम्बकत्व प्रदर्शित करते हैं। * उदाहरणार्थ + Fe, Cro₂, Mn, Sn, EuO, Fe3O4 आदित

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