MODERN HISTORY (हिन्दी) for MAINS PraHaR PDF

Summary

This document is study material for the Mains exam, specifically focusing on Modern Indian History. It likely contains chapter outlines, summaries, and key information. The content suggests a comprehensive approach to the subject, with topics such as the arrival of Europeans in India, peasant and tribal movements, and the 1857 revolt.

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izgkj MAINS WALLAH (STATIC + CURRENT) स वल सेवा मु परी ा-2024 पर अं तम ‘ हार’ आधु नक भारत वशेषताएँ सम एवं सिं नोटस ् ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य गणव ु ू उ र लेखन के िलए मह वपण ापण...

izgkj MAINS WALLAH (STATIC + CURRENT) स वल सेवा मु परी ा-2024 पर अं तम ‘ हार’ आधु नक भारत वशेषताएँ सम एवं सिं नोटस ् ामािणक ोत से अ ितत आकड़ ँ े एवं त य गणव ु ू उ र लेखन के िलए मह वपण ापण ू क -वडस ् िवगत वष म पछेू गए के साथ समायोिजत पारपं रक टॉिप स का समसामियक घटनाओ ं के साथ जोड़कर ततीकरण ु िवषय सूची ‰ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें प्रेस की भूमिका................................ 36 1. 18 वीीं शताब्दी का संक्र मण काल  1-10 ‰ प्रेस के विकास का महत्तत्व......................................................... 36 ‰ यूरोपीय लोगोों का आगमन 1 ‰ भारत मेें सिविल सेवाओं का विकास........................................... 37 ‰ भारत मेें पर्ु ्त गाली शासन 1 ‰ ब्रिटिश शासन के अंतर््गत स््थथानीय निकायोों का विकास.................... 38 ‰ 18वीीं सदी मेें भारत की सामाजिक-आर््थथि क और राजनीतिक स््थथिति 4 ‰ भारतीय राज््योों के प्रति ब्रिटिश नीति.......................................... 38 2. किसान, आदिवासी और अन्य आंदोलन  11-16 ‰ अंग्रेजोों की आर््थथि क नीतियाँ...................................................... 38 ‰ राजस््व नीतियाँ, भारतीय कृ षि और ब्रिटिश शासन 40 ‰ प्रस््ततावना........................................................................... 11 ‰ भू-राजस््व प्रणाली का प्रभाव.................................................... 41 ‰ किसान आंदोलन.................................................................. 12 ‰ पारंपरिक कारीगर उद्योग का पतन और ‰ जनजातीय विद्रोह................................................................. 14 ग्रामीण अर््थव््यवस््थथा का कमजोर होना........................................ 42 ‰ भारत मेें सैन््य विद्रोह.............................................................. 16 ‰ अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य से औपनिवेशिक 3. 1857 का विद्रोह  17-24 भारत मेें अकालोों की संख््यया मेें अचानक वृद्धि................................ 43 ‰ 1857 के विद्रोह के मुख््य कारण 17 ‰ सामाजिक नीतियाँ................................................................. 44 ‰ महात््ममा गांधी और रवीींद्र नाथ टैगोर के मध््य तुलना........................ 46 ‰ विद्रोह मेें क्षेत्रीय विविधताएँ...................................................... 19 ‰ 1857 के विद्रोह की विफलता के प्रमख ु कारण.............................. 20 6. भारतीय राष्टट्र वाद का उदय 49-56 ‰ विद्रोह के परिणाम................................................................. 20 ‰ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना 51 ‰ विद्रोह की प्रकृ ति................................................................... 22 ‰ नरमपंथी चरण के दृष्टिकोण और सीमाएँ (1885 -1905)................. 53 4. सामाजिक-धार््ममिक सुधार आंदोलन 25-32 7. भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन- चरण-I (1905-1917) ‰ परिचय 25 55-66 ‰ हिंदू सधु ार आंदोलन.............................................................. 26 ‰ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स््थथापना 51 ‰ सिख सधु ार आंदोलन............................................................. 29 ‰ बंगाल का विभाजन (1905) और कर््जन की ‰ जाति आधारित शोषण के ख़़िलाफ़ संघर््ष..................................... 29 प्रतिक्रियावादी नीतियाँ (1899-1905)....................................... 55 ‰ सामाजिक-धार््ममिक सधु ार आंदोलनोों की सामान््य विशेषताएँ.............. 31 ‰ गदर पार्टी और कामागाटामारू प्रकरण........................................ 61 5. भ  ारत मेें ब्रिटिश नीतियोों का विश्लेषण (1757 से 8. भ  ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन - 1947 तक )  33-48 द्वितीय चरण (1918-1939)  67-83 ‰ परिचय 25 ‰ गांधीवादी यगु की शरुु आत 67 ‰ प्रशासनिक नीतियाँ................................................................ 33 ‰ स््वराज पार्टी (1923)............................................................. 73 ‰ ब्रिटिश सर्वोच््चता का विस््ततार................................................... 33 ‰ सांप्रदायिक पंचाट (1932) और पूना समझौता (1933).................. 79 ‰ भारत मेें ब्रिटिश विदेश नीति..................................................... 34 ‰ भारत सरकार अधिनियम, 1935.............................................. 81 ‰ राष्टट्रवाद और भारतीय प्रेस...................................................... 35 ‰ 1937 का चनु ाव................................................................... 82 I 9. भ  ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन 10. भ  ारतीय राष्ट्रीय आंदोलन मेें तृतीय चरण (1939-1947)  84-92 विभिन्न वर्गगों की भूमिका  93-101 ‰ द्वितीय विश्व यद्ध ु और भारत: प्रभाव............................................ 84 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं द्वारा निभाई गई भूमिका 93 ‰ अगस््त प्रस््तताव (1940).......................................................... 84 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन मेें महिलाओं के योगदान की सीमाएँ.................... 94 ‰ क्रिप््स मिशन (1942): महत्तत्व और परिणाम.................................. 85 ‰ भारतीय संविधान के निर््ममाण मेें योगदान देने वाली प्रमख ु महिलाएँ...... 95 ‰ भारत छोड़़ो आंदोलन (1942) या अगस््त क््राांति............................ 86 ‰ राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उद्योगपतियोों का योगदान..................... 97 ‰ सी. आर. फार््ममूला या राजाजी फार््ममूला और गांधी-जिन््नना वार््तता (1944) ‰ स््वतंत्रता संग्राम मेें रियासतोों की भूमिका...................................... 98  86 ‰ शिमला सम््ममेलन और वेवेल योजना (1945)................................ 87 राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख ‰ इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज और आईएनए व्यक्तित्व और उनका योगदान 102-110 मुकदमे: महत्तत्व..................................................................... 87 ‰ बाल गंगाधर तिलक – द लॉयन ऑफ महाराष्टट्र...........................102 ‰ आरआईएन रेटिंग विद्रोह (रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह) (1946).......... 88 ‰ सरदार वल््लभ भाई पटेल की विचारधारा - भारत के लौह परुु ष........103 ‰ द्वितीय विश्व यद्ध ु और उसके बाद............................................... 89 ‰ जवाहरलाल नेहरू का योगदान - आधनि ु क भारत के निर््ममाता...........103 ‰ 1945 के चनु ाव.................................................................... 89 ‰ सभु ाष चंद्र बोस का योगदान - नेताजी.......................................104 ‰ कै बिनेट मिशन (1946): महत्तत्व और परिणाम................................ 90 ‰ विचारधाराओं की तल ु ना: जवाहरलाल नेहरू और सभु ाष चंद्र बोस.....105 ‰ माउंटबेटन योजना (1947) या 3 जून योजना और विभिन््न हितधारकोों की ‰ विचारधाराओं की तुलना: जवाहरलाल नेहरू और महात््ममा गांधी.......105 प्रतिक्रियाएँ.......................................................................... 91 ‰ विचारधाराओं की तुलना : सभु ाष चंद्र बोस और महात््ममा गांधी..........106 ‰ 1940 के दशक मेें सत्ता हस््तताांतरण की प्रक्रिया को जटिल बनाने मेें ब्रिटिश ‰ भारतीय स््वतंत्रता संग्राम मेें डॉ. बी.आर. अंबेडकर का योगदान........106 साम्राज््यवादी शक्ति की भूमिका................................................. 91  II 1 18 वीीं शताब्दी का संक्रमण काल यूरोपीय लोगोों का आगमन भारत मेें पुर्ग ्त ाली शासन अंग्रेजोों द्वारा भारत मेें औपचारिक प्रभत्ु ्व स््थथापित करने से पहले भी भारत और आरंभिक आगमन (1498-1509): यूरोपीय देशोों के मध््य व््ययापार एक सामान््य बात थी। भारत और यूरोप के बीच z वास््कको-डी-गामा (1498): पहला कदम, व््ययापार प्रभुत््व- एकाधिकार सीरिया, मिस्र और ऑक््सस घाटी के माध््यम से आर््थथिक संबंध थे। यूरोप मेें नियंत्रण के उद्देश््य से स््थथापित व््ययापारिक पोस््ट। 15वीीं शताब््ददी भमि z फ््राांसिस््कको डी अल््ममेडा (1505-1509): भारत मेें पहला पुर््तगाली ू और समद्ु री मार्गगों की भौगोलिक खोजोों का समय था। एक वायसराय: नौसैनिक प्रभत्ु ्व सनिश् ु चित करने के लिए ‘ब््ललू वाटर’ नीति लागू की। इतालवी खोजकर््तता क्रिस््टटोफर कोलंबस ने 1492 ई. मेें अमेरिका की खोज की, जबकि एक पुर््तगाली खोजकर््तता वास््कको-डी-गामा ने 1498 ई. मेें यूरोप से भारत अल्फफांसो डी अल्बुकर््क (1509-1515): तक एक नया समद्ु री मार््ग खोजा। वह मालाबार तट पर कालीकट पहुचँ ा। यह z पुर््तगाली वर््चस््व के वास््ततुकार: रणनीतिक नियंत्रण, प्रमुख क्षेत्र और स््थथानीय एकीकरण- हिदं महासागर का रणनीतिक नियंत्रण हासिल किया, अवधि, जिसे प्रायः ‘अन््ववेषण का युग’ कहा जाता है, 15वीीं शताब््ददी के अंत गोवा और भटकल पर कब््जजा किया, स््थथानीय स््तर पर निवास करने और शादी मेें शरू ु हुई और 19वीीं शताब््ददी तक विस््ततारित हुई। इसकी विशेषता मख्ु ्य रूप करने जैसी नीतियाँ लागू कीीं। से यूरोपीय शक्तियाँ थीीं, जिनमेें पुर््तगाली, डच, अंग्रेज और फ््राांसीसी आदि थे, z साम्राज््यवाद की नीति: व््ययापारिक मार््ग और मसाले- व््ययापार मार्गगों को जो भारत सहित एशिया के विभिन््न हिस््सोों मेें व््ययापार मार््ग और प्रभत्ु ्व स््थथापित नियंत्रित करने और मसाला स्रोतोों को सरु क्षित करने पर ध््ययान केें द्रित किया गया। करने की कोशिश कर रहे थे। इन खोजोों ने भारतीय उपमहाद्वीप पर महत्तत्वपूर््ण z सपं ूर््ण भारत मेें विस््ततार: विभिन््न स््थथानोों पर पर््तगा ु ली बस््ततियाँ स््थथापित कीीं। सांस््ककृ तिक, आर््थथिक और राजनीतिक परिवर््तनोों के लिए मंच तैयार किया। नीनो डी कु न्हा के तहत एकीकरण (1529-1538): यूरोपीय लोग भारत क्ययों आए: खोज के लिए उत्प्रेरक कारक z नीनो डी कुन््हहा (1529-1538): राजधानी का स््थथानांतरण और पूर््व की भारत मेें यूरोपीय लोगोों का आगमन कोई आकस््ममिक घटना नहीीं थी। नए समद्ु री ओर विस््ततार- राजधानी को गोवा ले जाया गया तथा पश्चिमी तट से परे पर््तगा ु ली क्षेत्र के विस््ततार को पर्ू वी तटोों तक विस््ततृत किया गया। मार्गगों की खोज के लिए कई प्रमख ु कारक थे: z अवरुद्ध व््ययापार मार््ग : एशिया के लिए भमि ू मार्गगों को नियंत्रित करने वाले भारत मेें पुर््तगालियोों का योगदान: ओटोमन््स ने यरू ोपीय लोगोों को सस््तते सामान और भारत सहित आकर््षक z चिकित््ससा: गार््ससिया दा ओर््टटा जैसे पर््तगा ु ली विद्वानोों ने 1563 ई. मेें औषधीय बाजारोों तक पहुचँ के लिए समद्ु री मार््ग खोजने के लिए मजबरू किया। जड़़ी-बटियोू ों पर पहला ग्रंथ लिखकर भारत के चिकित््ससा ज्ञान को समृद्ध किया। z तंबाकू की खेती: भारत मेें तंबाकू की खेती शरू ु की गई, जिससे कृषि z समुद्री मार््ग की खोज: डियाज और वास््कको-डी-गामा जैसे खोजकर््तताओ ं ने पद्धतियोों मेें विविधता आई। अरब प्रभत्ु ्व को दरकिनार करते हुए भारत के लिए समद्ु री मार््ग खोजा। z प््रििंटिंग प्रेस: ​​साक्षरता और संचार को आगे बढ़़ाते हुए 1556 ई. मेें गोवा मेें z शाही समर््थन: सशक्त शासकोों ने नई खोजोों को धन और प्रशस््तति के मार््ग के पहला प््रििंटिंग प्रेस स््थथापित किया गया। रूप मेें देखा और अभियानोों को समर््थन दिया। z वास््ततुकला: दक््कन क्षेत्र मेें चर््च संबंधी वास््ततुकला को प्रभावित किया, जिसका z तकनीक ने खोजोों को बढ़़ावा दिया: कंपास और एस्ट्रोलैब जैसे नेविगेशन उदाहरण पश्चिमी तट के साथ विस््ततृत मैनएु लाइन इमारतेें हैैं। उपकरणोों मेें प्रगति ने लंबी यात्राओ ं को संभव बना दिया। भारत मेें डच शासन z लाभ और धर््म: एशियाई धन के सपने और ईसाई धर््म के प्रसार ने खोजकर््तताओ ं z शुरुआत: व््ययावसायिक हितोों से प्रेरित होकर डचोों ने पर््वू की ओर कदम बढ़़ाया, और निवेशकोों को प्रेरित किया। 1596 ई. मेें कॉर्नेलिस डी हाउटमैन की समात्रा ु और बैैंटम की यात्रा ने उनके प्रारंभिक कारोबारी प्रयासोों को चिह्नित किया। z सयं ुक्त स््टटॉक कंपनियोों का उदय: इस नए व््यवसाय मॉडल ने जोखिम साझा z डच सस ं द का चार््टर (1602): मार््च, 1602 मेें डच संसद के चार््टर ने नीदरलैैंड किया और बड़़े पैमाने के व््ययापार उद्यमोों को वित्त पोषित किया। की ‘यनू ाइटेड ईस््ट इडिं या कंपनी’ की स््थथापना को औपचारिक रूप दिया, z इन कारकोों ने यरू ोप मेें अन््ववेषण के यगु की शरुु आत की, जिसकी परिणति जिससे उसे यद्ध ु की घोषणा करने, संधियोों पर हस््तताक्षर करने और किले स््थथापित भारत मेें उनके आगमन के साथ नए व््ययापारिक मार्गगों की खोज के रूप मेें हुई। करने के अधिकार सहित व््ययापक शक्तियाँ प्रदान की गई।ं z भारत मेें डच फैक््टरियाँ: मसल ु ीपट्टनम (1605) से कोचीन (1663) तक, 1632 कंपनी को गोलकंु डा के सल्ु ्ततान से सनु हरा फरमान मिला, डचोों ने पलि ु कट, सरू त और नागपट्टनम सहित भारत के पर्ू वी और पश्चिमी दोनोों जिससे उनके व््ययापार की सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित हुई। तटोों पर कई फै क््टरियाँ स््थथापित कीीं। z पतन: 1633 कंपनी ने पूर्वी भारत मेें अपना पहला कारखाना हरिहरपुर,  इड ं ोनेशिया पर ध््ययान: इडं ोनेशिया के मसाला द्वीप समहोू ों मेें केें द्रित अपने बालासोर (ओडिशा) मेें स््थथापित किया। प्राथमिक व््ययावसायिक हितोों के साथ डचोों ने भारत मेें साम्राज््य विस््ततार 1639 कंपनी को एक स््थथानीय राजा से मद्रास का पट्टा मिला। पर व््ययापार को प्राथमिकता दी। 1651 कंपनी को हुगली (बंगाल) मेें व््ययापार करने की अनुमति दी गई।  एग्ं ्ललो-डच युद्ध: एग्ं ्ललो-डच संघर््ष मेें अपनी हार के बाद डचोों ने भारत 1662 ब्रिटिश राजा चार््ल््स द्वितीय को एक पुर््तगाली राजकुमारी मेें अपनी स््थथिति से हटकर अपना ध््ययान मलय द्वीप समहू की ओर केें द्रित कर दिया। (कै थरीन ऑफ ब्रैगेेंजा) से शादी करने के लिए दहेज के रूप मेें बॉम््बबे दिया गया था।  बेदरा युद्ध (1759): एक लंबे संघर््ष के बाद बेदरा यद्ध ु मेें डचोों को अग्ं रेजोों के हाथोों हार का सामना करना पड़़ा, जिससे भारत मेें उनके पतन 1667 औरंगजेब ने अंग्रेजोों को बंगाल मेें व््ययापार के लिए एक फरमान मेें और योगदान हुआ। दिया। भारत मेें ब्रिटिश शासन 1691 कंपनी को प्रति वर््ष 3,000 रुपये के भगु तान के बदले बंगाल मेें ‘द कंपनी ऑफ मर्चं ट्स ऑफ लंदन ट्रेडिंग इनटू द ईस््ट इडं ीज’ संयुक्त अपना व््ययापार जारी रखने का शाही आदेश मिला। स््टटॉक कंपनी का नाम था, जो बाद मेें ‘ब्रिटिश ईस््ट इडिया ं कंपनी’ बन गई। 1717 मगु ल बादशाह फर्रु खसियर ने कंपनी का मैग््ननाकार््टटा नामक एक इसकी स््थथापना 1600 ई. मेें हुई थी। 1612 ई. मेें मगु ल सम्राट जहाँगीर ने इग्ं ्लैैंड फरमान जारी किया, जिसमेें कंपनी को बड़़ी संख््यया मेें व््ययापार की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के प्रतिनिधि राजनयिक सर थॉमस रो को सूरत मेें से संबंधित रियायतेें दी गई।ं एक फै क्ट्री (एक व््ययापार स््टटेशन) खोलने की अनुमति दी, जिससे ब्रिटिश कंपनी का आगमन भारत मेें पहली बार हुआ। फ्ररेंच ईस््ट इडिया ं कंपनी के प्रारंभिक वर््ष फ््राांसीसी ईस््ट इडि ं या कंपनी की स््थथापना 1664 ई. मेें लुईस XIV के मंत्री कोलबर््ट ने की थी, जिन््होोंने इसे भारतीय और प्रशांत महासागरोों मेें फ््राांसीसी 1600 ईस््ट इडि ं या कंपनी की स््थथापना हुई। व््ययापार पर 50 साल का एकाधिकार भी दिया था। 1609 विलियम हॉकिन््स, जहाँगीर के दरबार मेें पहुचँ ा। भारत मेें बस्तियााँ 1611 कै प््टन मिडलटन ने सूरत के मगु ल गवर््नर से वहाँ व््ययापार करने की अनुमति प्राप्त की। 1667: फ्ररें कोइस कै रन ने सूरत मेें पहली फ््राांसीसी फै क्ट्री की स््थथापना की। 1669: गोलकंु डा के सुल््ततान से मर््क रा, मसूलीपट्टनम की अनुमति प्राप्त की। 1613 सूरत मेें ईस््ट इडि ं या कंपनी का एक स््थथायी कारखाना स््थथापित 1673: कलकत्ता के पास चंद्रनगर, बंगाल के मगु ल सुभद्रा शाइस््तता खान किया गया। से अनुमति प्राप्त की। 1615 राजा जेम््स प्रथम के राजदतू सर थॉमस रो, जहाँगीर के दरबार डेनिश मेें पहुचँ े। 1618 ई. तक राजदतू अंतर्देशीय टोल से छूट के साथ मक्त ु व््ययापार की पष्ु टि करने वाले दो फ़रमान (सम्राट और 1616 ई. मेें गठित डेनिश ईस््ट इडि ं या कंपनी ने 1620 ई. मेें ट्ररेंक््ययूबार मेें एक राजकुमार खर््रम ु से एक-एक) प्राप्त करने मेें सफल रहे। कारखाना और सेरामपुर मेें एक मख्ु ्य बस््तती स््थथापित की। डेनिश द्वारा स््थथापित भारतीय उद्यम महत्तत्वपूर््ण नहीीं थे और 1845 ई. मेें उन््होोंने अपने कारखाने अंग्रेजोों 1616 कंपनी ने दक्षिण मेें अपना पहला कारखाना मसूलीपट्टनम मेें को बेच दिए। डेनिश भारत मेें व््ययापार की तुलना मेें अपने मिशनरी कार्ययों के स््थथापित किया। लिए अधिक प्रसिद्ध हैैं। विभिन्न साम्राज्यवादियोों के अधीन शासन की तुलना पहलू भारत मेें पुर््तगाली शासन भारत मेें ब्रिटिश शासन भारत मेें फ््राांसीसी शासन भारत मेें डच शासन समयावधि 1498-1961 1600-1947 1664-1954 1605-1824 भौगोलिक दायरा मख्ु ्य रूप से गोवा मेें केें द्रित भारतीय उपमहाद्वीप मेें विस््ततृत पांडिचेरी और चंद्रनगर सहित कोरोमंडल तट, मालाबार तट विभिन््न क्षेत्ररों मेें और बंगाल मेें उपस््थथिति शासन का फोकस व््ययापार, मिशनरी आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, प्रशासनिक आर््थथिक शोषण, व््ययापार प्रभत्ु ्व, गतिविधियाँ, सैन््य नियंत्रण सुधार, बागवानी अर््थव््यवस््थथा सुधार व््ययापारिक पोस््ट की स््थथापना सांस््ककृतिक प्रभाव पुर््तगाली भाषा, संस््ककृ ति अंग्रेजी भाषा, कानूनी प्रणाली, फ्ररें च भाषा, कानूनी प्रणाली, डच भाषा, कानूनी प्रणाली, और धर््म का प्रभाव शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय शिक्षा का परिचय 2  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास विरोध आंदोलन सत्तावादी शासन के कारण स््वतंत्रता और प्रतिरोध के लिए स््वतंत्रता और प्रतिरोध के स््थथानीय शासकोों और यूरोपीय सीमित प्रतिरोध महत्तत्वपूर््ण आंदोलन लिए आंदोलन प्रतिस््पर्द्धियोों से प्रतिरोध शासन का अंत 1961 मेें भारतीय सैन््य 1947 मेें भारतीय स््वतंत्रता के 1 नवंबर, 1954 को समाप्त ब्रिटिश प्रभत्ु ्व के कारण कम कार््रवाई के साथ समाप्त साथ समाप्त हुआ। हुआ। हुआ, औपचारिक रूप से हुआ। 1825 मेें समाप्त हुआ। विरासत पुर््तगाली भाषा, वास््ततुकला अंग्रेजी भाषा, कानूनी प्रणाली फ््राांसीसी भाषा, वास््ततुकला डच वास््ततुकला, जगहोों के नाम और ईसाई धर््म की विरासत और संस््थथानोों की विरासत और संस््ककृ ति की विरासत और स््थथानीय रीति-रिवाजोों पर प्रभाव की विरासत धार््ममिक प्रेरणा कै थोलिकवाद और शासन प्रोटेस््टेेंटवाद से प्रभावित शासन कै थोलिक धर््म और शासन प्रोटेस््टेेंटवाद और रूढ़़िवादी ईसाई धर््म से धर््मनिरपेक्ष प्रबोधन आदर्शशों व््ययावसायिक हितोों से प्रेरित प्रेरित से प्रभावित समुद्री बनाम समद्ु री ताकत के कारण राजनयिक और सैन््य व््ययापारिक चौकियोों पर व््ययापार प्रभत्ु ्व पर जोर देने के मुख््यभूमि तटीय क्षेत्ररों के आसपास सफलताओ ं के आधार पर फोकस के साथ तटीय साथ तटीय उपस््थथिति केें द्रित भारत की मख्ु ्य भमि ू को उपस््थथिति उपनिवेश बनाने पर ध््ययान केें द्रित ब्रिटेन भारत मेें प्रमुख यूरोपीय शक्ति क्ययों बन गया?  नेतृत््व: रॉबर््ट क््ललाइव, वॉरे न हेस््टटििंग््स, एलफिंस््टन, मनु रो और अन््य ने उत््ककृ ष्ट नेतत्ृ ्व क्षमताओ ं का प्रदर््शन किया। सर आयर कूट, लॉर््ड लेक, 1. ब्रिटिश ईस््ट इडिया ं कंपनी को लाभ: आर््थर वेलेजली और अन््य जैसे दसू री पंक्ति के नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं से भी  सरं चना और ने तृत््व: अन््य यरू ोपीय शक्तियोों की राज््य-नियंत्रित कंपनियोों अग्ं रेजोों को लाभ हुआ। के विपरीत ‘इग््ललिशं ईस््ट इडि ं या’ कंपनी की सरं चना अधिक गतिशील थी।  वित्तीय सस ं ाधन: कंपनी से मजबतू वित्तीय समर््थन और बढ़़ी हुई शेयरधारकोों से प्रभावित निर््ववाचित निदेशकोों ने बेहतर निर््णय लेने और व््ययापारिक सपं त्ति ने अग्ं रेजोों को भारत मेें अपने सैन््य अभियानोों को जारी लाभप्रदता पर ध््ययान केें द्रित करना सनिश् ु चित किया। रखने की अनमति ु दी।  नौसेना शक्ति: ब्रिटेन की रॉयल नेवी, जो अपने समय मेें सबसे बड़़ी और 4. भारतीय शासकोों की कमजोरियाँ: उन््नत थी, ने उन््हेें भारत मेें अन््य यरू ोपीय शक्तियोों के साथ व््ययापार मार्गगों  आंतरिक विभाजन: अग् ं रेजोों ने भारतीय शासकोों के बीच राष्ट्रीय एकता और सैन््य सघं र्षषों मेें महत्तत्वपर््णू लाभ दिया। की कमी का कुशलतापर््वू क लाभ उठाया, जिससे अक््सर आतं रिक संघर््ष 2. व््ययापक सामाजिक और तकनीकी कारक: होते थे।  औद्योगिक क््राांति: ब्रिटेन की औद्योगिक क््राांति से कपड़़ा उत््पपादन, धातु  सैन््य हीनता: यरू ोपीय हथियारोों और कर््ममियोों को नियोजित करने के विज्ञान और भाप ऊर््जजा मेें प्रगति हुई। इस आर््थथिक और तकनीकी बढ़त ने बावजदू भारतीय शासकोों के पास अग्ं रेजोों की तल ु ना मेें प्रभावी सैन््य उन््हेें अन््य यरू ोपीय देशोों से आगे निकलने की अनमति ु दी। रणनीतियोों का अभाव था।  कूटनीति: अग् ं रेजोों ने भारतीय क्षेत्ररों पर अपना नियंत्रण बढ़़ाने के लिए बड़़ी  सैन््य शक्ति: अच््छछी तरह से प्रशिक्षित और अनशासि ु त ब्रिटिश सैनिकोों ने तकनीकी प्रगति के साथ मिलकर अपनी सेना को एक दर्जेु य शक्ति चतरु ाई से डाक्ट्रिन ऑफ लैप््स (व््यपगत सिद््धाांत) और सहायक सधि ं जैसी कूटनीतिक रणनीति का इस््ततेमाल किया। बना दिया। 5. सांस््ककृतिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध:  स््थथिर सरकार: क््राांति और नेपोलियन के साथ यद्ध ु धों के दौरान फ््राांस जैसी  पश्चिमी शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा: अग् ं रेजोों ने पश्चिमी अन््य यरू ोपीय शक्तियोों द्वारा सामना की गई राजनीतिक अस््थथिरता की तल ु ना शिक्षा और प्रबोधन आदर्शशों को बढ़़ावा दिया, जिससे धीरे -धीरे भारत मेें ब्रिटेन ने शासन की सापेक्ष स््थथिरता की अवधि का आनंद लिया, जिससे का बौद्धिक और सांस््ककृ तिक परिवेश बदल गया। यह सांस््ककृ तिक प्रभत्ु ्व बेहतर रणनीतिक योजना की अनमति ु मिली। स््थथापित करने और ऐसे लोगोों का एक वर््ग बनाने की एक व््ययापक रणनीति  वित्तीय शक्ति: बैैंक ऑफ इग्ं ्लैैंड के माध््यम से ऋण बाजारोों मेें ब्रिटेन का हिस््ससा था, जो “रक्त और रंग मेें भारतीय थे, लेकिन पसंद, राय, के अभिनव प्रयोग ने उन््हेें सैन््य अभियानोों पर प्रतिस््पर्द्धियोों को मात देने नैतिकता और बद्धि ु से अग्ं रेज थे”, जिससे आसान शासन और प्रशासन की अनमति ु दी। की सवि ु धा मिली। 3. भारत मेें परिस््थथिति का दोहन:  प्रचार का उपयोग: ब्रिटिश प्रचार ने अग् ं रेजोों को सभ््यता और आधनि ु कता  शक्ति शून््यता: मग ु ल साम्राज््य के पतन और क्षेत्रीय शासकोों के बीच के वाहक के रूप मेें चित्रित किया, जिससे भारतीयोों और यरू ोपीय दोनोों की संघर्षषों ने अग्ं रेजोों के लिए भारत मेें खदु को स््थथापित करने का अवसर नजर मेें उनके शासन को वैध बनाने मेें मदद मिली, जिससे उनके विस््ततार दिया। का विरोध कम हो गया। 18 वीं शताब्दी का संक्रम 3 6. कानूनी और प्रशासनिक सुधार: z ऋणग्रस््तता मेें वृद्धि: अशिन दास गप्ता ु के अनसु ार, कंपनी का कॉर्पोरे ट  ब्रिटिश कानूनोों की पुरःस््थथापना: ब्रिटिश कानन ू ी प्रथाओ ं और स््थथायी व््ययापारिक संस््थथागतकरण राजनीतिक सीमाओ ं को पार कर गया और ऋण निपटान जैसे प्रशासनिक सधु ारोों की परु ःस््थथापना, जिसने प्रायः स््थथानीय की प्रचरु ता के कारण अतं र्देशीय और निर््ययात व््ययापार दोनोों मेें ऋण की दर कृषि समदु ाय की कीमत पर, ब्रिटिश आर््थथिक हितोों के पक्ष मेें भमि ू राजस््व मेें वृद्धि हुई। प्रणालियोों का पनु र््गठन किया। z कंपनी पर निर््भरता: उत्तर भारत मेें कंपनी पर व््ययावसायिक निर््भरता के अपने  सिविल सेवा: ब्रिटिश क्राउन के प्रति वफादार सिविल सेवा की स््थथापना, चित्रण मेें, बी.आर. ग्रोवर का दावा है कि उतार-चढ़़ाव के कारण विदेशी व््ययापार और कपास उद्योग मेें तेजी आई। जिसने भारत जैसे विशाल और विविधतापर््णू देश के कुशल और प्रभावी z जमीींदारोों द्वारा धन सचय ं : जमीींदारोों की एकत्रित संपत्ति और किसानोों के साथ प्रशासन मेें मदद की। उच््च राजस््व बंदोबस््त को मगु ल साम्राज््य की परिधि मेें आर््थथिक समृद्धि का निष््कर््ष तः कारकोों के संयोजन जैसे- ईस््ट इडि ं या कंपनी की कुशल संरचना, कारण माना जा सकता है। औद्योगिक क््राांति के दौरान प्रगति, एक मजबूत और स््थथिर सरकार और भारत विलासिता की वस््ततुओ ं की माँग मेें वृद्धि: ईस््ट इडि z ं या कंपनी की स््थथापना, के भीतर आंतरिक विभाजन का लाभ उठाने की क्षमता आदि ने ब्रिटेन को भारत महँगी और विलासिता से संबंधित वस््ततुओ ं की बढ़ती माँग और श्रमिकोों पर मेें प्रमख ु यूरोपीय शक्ति के रूप मेें उभरने की अनुमति दी। स््थथानीय जमीींदारोों और सरदारोों के दबाव का परिणाम थी। 18वीीं सदी मेें भारत की सामाजिक-आर््थथिक और विद्वानोों का दृष्टिकोण राजनीतिक स्थिति सतीश चंद्रा का मानना ​​था कि सत्रहवीीं शताब््ददी के उत्तरार्दद्ध का राजकोषीय सामाजिक स्थितियााँ संकट जागीर और मनसब से संबंधित मगु ल संस््थथानोों के कामकाज मेें संरचनात््मक समस््ययाओ ं के कारण हुआ था। z विरोधाभास की भूमि: अत््यधिक धन और वैभव अत््यधिक गरीबी के साथ- साथ मौजदू थे। एक ओर समृद्ध और शक्तिशाली कुलीन वर््ग, जो विलासिता राजनीतिक स्थितियााँ और आराम मेें रहते थे और दसू री ओर पिछड़़े, दलित और गरीब किसान थे। z पष्ठृ भूमि: z जाति व््यवस््थथा: हिदं ू जन््म के आधार पर चार वर्णणों के अलावा कई जातियोों  सत्रहवीीं शताब््ददी के पहले दशक मेें मग ु ल साम्राज््य का पतन शरू ु हो गया। (Castes) मेें विभाजित थे। जातियाँ सख््तती से स््थथापित की गई ं थी और प्रत््ययेक  हमारे अध््ययन काल की शरु ु आत अर््थथात 1739 मेें नादिर शाह के आक्रमण व््यक्ति की जीवन भर के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा निर््धधारित की गई थी। से दिल््लली पहले ही तबाह हो चक ु ी थी। z महिलाओ ं की स््थथिति: उस समय महिलाओ ं मेें वैयक्तिकता का अभाव  1761 मेें मराठे ना कि मग ु ल, अब््ददाली के साथ यद्ध ु मेें उतरे और मगु ल था। हालाँकि, अहिल््यया बाई जैसे अपवादोों ने 1766 से 1796 तक इदं ौर पर सम्राट 1783 तक ब्रिटिश पेेंशनभोगी रहे। सफलतापर््वू क शासन किया और कई अन््य हिदं ू और मस््ललिम ु महिलाओ ं ने z निरंतर राजनीतिक प्रवाह: 1764 मेें बक््सर के यद्ध ु के बाद धमकी भरी ब्रिटिश 18वीीं सदी की राजनीति मेें महत्तत्वपर््णू भमि ू काएँ निभाई।ं उपस््थथिति वास््तव मेें साकार हो गई। अवध के नवाब शजा ु -उद-दौला के पतन z शिक्षा: के कारण अग्ं रेज उत्तर भारत मेें आगे बढ़ सके ।  उच््च शिक्षा सस् z क्षेत्रीय पहचान का दावा: मगु ल साम्राज््य का लगातार विरोध क्षेत्रीय पहचान ं ्थथान: उच््च शिक्षा संस््थथान संपर््णू देश मेें पाए जाते थे की अभिव््यक्ति के माध््यम से दिखाया गया था, खासकर दक््कन भारत मेें। लेकिन उन््हेें प्रायः समृद्ध जमीींदारोों, नवाबोों और राजाओ ं का समर््थन प्राप्त गोलकंु डा और बीजापरु के क्षेत्ररों मेें सल््तनतोों के दावे से इस विरोध को बल था। मिला।  प्रारंभिक शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा काफी व््ययापक थी। मौलवी इसे z उत्तरी शक्तियोों का उदय: अफगानोों, सिखोों और महत्त्वाकांक्षी मराठोों जैसी मसु लमानोों को मस््जजिदोों के मकतबोों मेें और हिदं ु अपने बच््चोों को कस््बोों प्रतिद्द्वं वी उत्तरी शक्तियोों के कारण मगलो ु ों ने दिल््लली पर अपनी पकड़ खो दी। और गाँव के स््ककूलोों मेें पढ़़ाते थे। z शक्तिशाली सम्राट का अभाव: विलियम इरविन के अनसु ार, यह साम्राज््य-  साक्षरता स््तर: अप्रत््ययाशित रूप से, साक्षरता दर अग् ं रेजोों के अधीन केें द्रित रणनीति एक शक्तिशाली सम्राट पर निर््भर करती थी और जब सम्राट होने वाली साक्षरता दर की तल ु ना मेें कम नहीीं थी। आज के मानकोों के की शक्ति कम हो गयी, तो परू ी व््यवस््थथा ने भारत के राजनीतिक मानचित्र को अनसु ार अपर््ययाप्त होने के बावजदू बनि ु यादी शिक्षा उस समय की विशिष्ट कमजोर कर दिया। आवश््यकताओ ं के लिए पर््ययाप्त थी। z व््ययापारियोों के साथ राजनीतिक साँठगाँठ: क्रमशः बंगाल और गजु रात की जाँच करते समय, एम.एन. पियर््सन और फिलिप कै ल््ककििं स व््ययापार क्षेत्र, विशेष आर््थथिक स्थितियााँ रूप से बंगाल के ओमीचदं (अमीरचदं ) और जगत सेठ जैसे सेठोों के बढ़ते z पष्ठृ भूमि: पर््वू -औपनिवेशिक राज््य की आर््थथिक सरं चना ने इसे औपनिवेशिक राजनीतिक महत्तत्व की ओर ध््ययान दिलाते हैैं। राज््य से अलग करने की अनमति ु दी। z जागीरदारी सक ं ट: औरंगजेब के शासनकाल के अतं मेें जागीरदारोों की सख्ं ्यया z बर््टन स््टटीन ने 18वीीं सदी के वित्तीय सक ं टोों के लिए कई सभं ावित कारण सामने मेें वृद्धि के साथ मनसबदारी प्रणाली का अतं तः पतन हो गया, जो एक व््यक्ति रखे, जिनमेें मद्ु रा और सिक््कोों मेें धातु की मात्रा के संदर््भ मेें विनिमय के साधनोों की वफादारी, सेवा और जागीरदारी की स््थथिति (भमि ू राजस््व स््ववामित््व) पर का मानकीकरण शामिल है। आधारित थी। 4  प्रहार 2024: आधुनिक भारत का इितहास z यूरोपीय औपनिवेशिक प्रभाव: 18वीीं सदी: एक अंधकार युग  खडि ं त राजनीति का उपयोग ब्रिटिश, फ््राांसीसी और पर््तगाु ली जैसी यरू ोपीय z अव््यवस््थथा और अस््थथिरता: 18वीीं शताब््ददी को कभी अधं कार यगु माना औपनिवेशिक शक्तियोों द्वारा अपना प्रभत्ु ्व बढ़़ाने के लिए किया गया था। जाता था, जिसके दौरान अव््यवस््थथा और अस््थथिरता का बोलबाला था।  उन््होोंने क्षेत्रीय शक्तियोों के बीच तनाव को भन ु ाया और विभिन््न क्षेत्ररों पर z क्षेत्रीय राष्टट्ररों की विफलता: मगु ल साम्राज््य के पतन के बाद वे साम्राज््य धीरे -धीरे कब््जजा करने के लिए उन््हेें अपने लाभ के लिए इस््ततेमाल किया। बनाने मेें विफल रहे और स््थथिरता केवल 18 वीीं शताब््ददी के अतं मेें ब्रिटिश  ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति को लागू करके औपनिवेशिक नियंत्रण के विस््ततार के साथ बहाल हुई। शक्तियोों ने राजनीतिक व््यवस््थथा को और अधिक छिन््न-भिन््न कर दिया।  मग ु ल साम्राज््य का प्रभाव उतना व््ययापक या गहरा नहीीं था, जितना निष््कर््षतः यह स््पष्ट है कि अठारहवीीं शताब््ददी एक उल््ललेखनीय ऐतिहासिक युग अक््सर सोचा जाता था। था, जिसे इतिहासकारोों ने दो अलग-अलग दृष्टिकोणोों से देखा। इतिहासकारोों  भारत के कई सामाजिक समह ू और बड़़े हिस््ससे, विशेषकर उत्तर-पर््वू के एक वर््ग के अनुसार, मगु ल साम्राज््य के द:ु खद पतन से ‘अराजकता और और दक्षिण, इससे बाहर रहे। अव््यवस््थथा’ फै ल गई। इतिहासकारोों के एक वर््ग ने क्षेत्रीयवादी परिप्रेक्षष्य का वर््णन किया, जिसमेें इस बात पर ध््ययान केें द्रित किया गया कि कै से आस-पास  इसलिए, मगलो ु ों के पतन को परू े भारत मेें हो रहे परिवर््तनोों को दर््शशाने के समदु ाय सामाजिक-आर््थथिक गतिविधि के जीवंत केें द्ररों मेें विकसित हुए। के लिए पर््ययाप्त विषय के रूप मेें इस््ततेमाल नहीीं किया जा सकता है। भारत मेें मुगल साम्राज्य का पतन z विद्वानोों का दृष्टिकोण: इतिहासकार जदनु ाथ सरकार के अनसु ार, 23 जनू , 1757 को प््ललासी के यद्ध ु के बाद भारत का मध््य यगु समाप्त हो गया और उसका आधनि ु क यगु शरू ु हुआ। वारे न हेस््टटििंग््स के बाद के बीस वर्षषों मेें, हर किसी ने पश्चिमी प्रेरणा के ऊर््जजावान प्रभाव का अनभु व किया। 18वीीं सदी मेें खंडित राजनीति इस समयावधि मेें जिन कठिनाइयोों का सामना करना पड़़ा, उन््होोंने विखंडित स््वराज््य के खतरे को बढ़़ा दिया, जिससे एक जटिल और अस््थथिर राजनीतिक वातावरण तैयार हो गया। औरंगजेब की मृत््ययु (1707) के बाद मगु ल धीरे -धीरे अपने युग के अंत की z मुगल साम्राज््य का पतन: अठारहवीीं शताब््ददी के मध््य मेें प्रभत्ु ्वशाली ओर आ गए, जो लगभग 50 वर्षषों तक चला। मगु ल साम्राज््य के पतन के मख्ु ्य मगु ल साम्राज््य धीरे -धीरे ढहने लगा। कमजोर नेतत्ृ ्व, उत्तराधिकार संघर्षषों कारण निम््नलिखित हैैं:- और आर््थथिक कठिनाइयोों के कारण साम्राज््य कमजोर हो गया, जिसके कारण z कमजोर उत्तराधिकारी और विदेशी आक्रमण: औरंगजेब के उत्तराधिकारी केें द्रीकृ त सत्ता का नुकसान हुआ। मगु ल साम्राज््य के पतन से सत्ता मेें शन्ू ्यता साम्राज््य के पतन को रोकने मेें शक्तिहीन थे। बाद के मगलो ु ों ने किसी भी आ गई, जिससे क्षेत्रीय शक्तियोों के उत््थथान को अनुमति मिली। उत्तराधिकार काननू का पालन नहीीं किया और जब भी किसी सम्राट की मृत््ययु z क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय: होती थी, तब एक नई लड़़ाई शरू ु हो जाती थी।  इस समय के दौरान मराठोों, सिखोों, राजपतो ू ों और विभिन््न प््राांतोों मेें कई मुगल साम्राज्य का पतन क्षेत्रीय शक्तियोों का उदय हुआ। 1700 ई. तक मगु ल साम्राज््य कमजोर हो गया क््योोंकि राजाओ ं ने महलोों  इन क्षेत्रीय शासकोों द्वारा अपने नियंत्रण को मजबतू करने और अपने प्रभाव और युद्ध पर बहुत अधिक पैसा खर््च किया। क्षेत्र का विस््ततार करने के प्रयासोों के परिणामस््वरूप सघं र््ष हुआ और राज््य इसके अलावा भारत मेें हिदं ओ ु ं की बड़़ी आबादी अपने मस््ललिम ु शासकोों के व््यवस््थथा का विघटन हुआ। खिलाफ विद्रोह करने लगी।  प्रत््ययेक शक्ति ने अपने स््वयं के हितोों के अनरुु प कार््य किया, जिसके ग्रेट ब्रिटेन ने इस कमजोरी का फायदा उठाया, भारत पर विजय प्राप्त की और 1858 मेें अंतिम मगु ल सम्राट को सत्ता से हटा दिया, परिणामस््वरूप एक खडि ं त राजनीतिक व््यवस््थथा उत््पन््न हुई। z वित्तीय मुद्दे: इस समय विभिन््न शक्तियोों को देने के लिए पर््ययाप्त धन या z स््थथानीय अर््थव््यवस््थथाओ ं और शिल््पोों का पुनरुत््थथान: जागीरेें नहीीं थीीं।  यद्ध ु और राजनीतिक अस््थथिरता के कारण उत््पन््न समग्र आर््थथिक कठिनाइयोों z कमजोर सैन््य प्रशासन: मगु ल सेना मेें बहुत अधिक सख्ं ्यया मेें उच््च पदस््थ के बावजदू , कुछ क्षेत्ररों मेें स््थथानीय शिल््प और व््ययापार मेें पनु रुत््थथान का अधिकारी थे। इसके अतिरिक्त सेना की प्रभावशीलता को बरकरार नहीीं रखा अनभु व हुआ। उदाहरण के लिए, अवध और बंगाल जैसे क्षेत्ररों मेें कपड़़ा गया था। उत््पपादन और व््ययापार मेें पनु रुद्धार देखा गया, विकेें द्रीकृ त नियंत्रण और z आर््थथिक विफलता: विलासितापर््णू जीवन मगु ल भारत का एक और पहलू स््थथानीय संरक्षण से लाभ हुआ, जिससे उन््हेें केें द्रीय सत्ता से अपेक्षाकृ त था, जिसने भमि ू और व््ययापार से होने वाली आय का अधिकांश भाग खपा स््वतंत्र आर््थथिक नेटवर््क विकसित करने की अनमति ु मिली। लिया, जिससे किसानोों और कारीगरोों को कठिन जीवन जीना पड़़ा। 18 वीं शताब्दी का संक्रम 5 z साम्राज््य का आकार और क्षेत्रीय शक्तियोों से ख़तरा: जैस-े जैसे मगु ल नेतत्व ृ एवं प्रशासन साम्राज््य बढ़ता गया, वैस-े वैसे दिल््लली मगु ल साम्राज््य की राजधानी के रूप मेें z प्रभावशाली नेता: मराठोों के शिवाजी, मैसरू के हैदर अली और टीपू सल्ु ्ततान प्रभावी नियंत्रण रखने मेें सक्षम नहीीं रही। जैसे प्रभावशाली नेताओ ं के मार््गदर््शन मेें कई राज््य प्रमख ु ता से उभरे । इन z उत्तर-पश्चिम सीमा की उपेक्षा: बाद के मगु ल सम्राटोों ने उत्तर-पश्चिमी सीमा नेतत्ृ ्वकर््तताओ ं की दरू दर््शशिता, सैन््य कौशल और प्रशासनिक कौशल राज््य की उपेक्षा की, जिससे नादिर शाह और अहमद शाह अब््ददाली के लिए दिल््लली को बार-बार लटू ना संभव हो गया। गठन के लिए महत्तत्वपर््णू थे। z नवाचार की कमी: विज्ञान या प्रौद्योगिकी मेें कोई ठोस नवप्रवर््तन न होने से z विविध प्रशासनिक प्रणालियाँ: संरचनाएँ भिन््न-भिन््न थीीं। मराठोों के पास समस््यया और बदतर हो गई। अर्दद्ध-स््ववायत्त प्रमखो ु ों के साथ अपेक्षाकृ त विकेें द्रीकृ त प्रणाली थी, जबकि हैदर अली और टीपू सल्ु ्ततान के अधीन मैसरू मेें एक मजबतू केें द्रीकृ त प्रशासन था। क्षेत्रीय राज्ययों का उदय इन प्रणालियोों की प्रभावशीलता नेतत्ृ ्व और क्षेत्रीय सदं र््भ पर निर््भर करती थी। 18वीीं शताब््ददी मेें मगु ल साम्राज््य के पतन ने भारत मेें शक्ति शन्ू ्यता पैदा कर दी, जिससे कई क्षेत्रीय राज््योों का उदय हुआ। इन राज््योों ने कई प्रकार की विशेषताओ ं वित्तीय नीतियााँ का प्रदर््शन किया जिन््होोंने उनके उद्भव मेें योगदान दिया और उनके विस््ततार को z राजस््व सज ृ न पर ध््ययान: अधिकांश राज््योों ने भमि ू कर और व््ययापार मार्गगों आकार दिया। यहाँ कुछ प्रमख ु विशेषताओ ं का आलोचनात््मक मल्ू ्ययाांकन दिया के नियंत्रण के माध््यम से राजस््व संग्रह को अधिकतम करने पर ध््ययान केें द्रित गया है: किया। उदाहरण के लिए, मैसरू ने व््ययावसायिक फसल की खेती को बढ़़ावा सैन्य शक्ति दिया। राजस््व संग्रहण की दक्षता राज््य की प्रशासनिक संरचना के आधार पर z गनपाउडर (बारूद) प्रौद्योगिकी को अपनाना: अधिकांश राज््योों ने अपनी भिन््न-भिन््न होती थी। सैन््य रणनीतियोों मेें मगु ल शैली के बारूद वाले हथियार और किले को शामिल z व््ययापार और वाणिज््य: मराठोों और गजु रात सल््तनत जैसे कुछ राज््योों ने किया। अपनी भौगोलिक स््थथिति का लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय और अतं रराष्ट्रीय व््ययापार z घुड़सवार सेना पर जोर: अधिकांश क्षेत्रीय राज््य मगलो ु ों की विरासत, घड़ु सवार मेें सक्रिय रूप से भाग लिया। इस व््ययापार ने उन््हेें विस््ततार के लिए धन और सेना पर बहुत अधिक निर््भर थे। हालाँकि, मराठोों जैसी कुछ शक्तियाँ, अपनी संसाधन उपलब््ध कराए। गरु िल््लला रणनीति और अनक ु ू लनशीलता के कारण, बड़़ी व कम गतिशील ताकतोों के खिलाफ अधिक सफल साबित हुए। सामाजिक और धार््ममिक परिदृश्य: z आग््ननेयास्त्र और यूरोपीय प्रभाव: पर््तगा ु ली और ओटोमन््स जैसी यरू ोपीय z धार््ममिक सहिष््णणुता: जबकि हैदर अली के अधीन मैसरू जैसे कुछ राज््य धार््ममिक शक्तियोों से आग््ननेयास्त््रों को अपनाने ने यद्ध ु मेें महत्तत्वपर््णू भमि ू का निभाई। सिखोों सहिष््णणुता के लिए जाने जाते थे, वहीीं रणजीत सिंह के अधीन सिख साम्राज््य और मैसरू जैसे राज््योों ने सक्रिय रूप से इन प्रौद्योगिकियोों को शामिल किया। जैसे अन््य राज््योों की अधिक विशिष्ट धार््ममिक पहचान थी। z सामाजिक सध ु ार: मैसरू के टीपू सल्ु ्ततान जैसे कुछ शासकोों ने सती (विधवा को जलाने) और कन््यया भ्णरू हत््यया जैसे मद्ददोंु के समाधान के लिए सामाजिक

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