Determinants of Curriculum PDF

Summary

This document discusses the determinants of curriculum, encompassing various aspects like ideologies, socio-political factors, and geographical contexts. It explores different educational philosophies, such as idealism and naturalism, and their implications for curriculum development. The document also highlights the significance of considering the child's interests and preferences in curriculum design.

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# पाठ्यचर्या का निर्धारण Determinants of Curriculum ## प्रत्येक समाज अपने विधालयों से यह उम्मीद रखता है कि विधालय उनके बच्चों में ऐसे गुण भरे जो उनके समाज और देश के लिए उपयोगी हो। साथ ही उनके सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान को नई पीढ़ी में हस्तांतरित कर दे। अतः पाठ्यचर्या का निर्धारण करते समय निम्न...

# पाठ्यचर्या का निर्धारण Determinants of Curriculum ## प्रत्येक समाज अपने विधालयों से यह उम्मीद रखता है कि विधालय उनके बच्चों में ऐसे गुण भरे जो उनके समाज और देश के लिए उपयोगी हो। साथ ही उनके सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक ज्ञान को नई पीढ़ी में हस्तांतरित कर दे। अतः पाठ्यचर्या का निर्धारण करते समय निम्न तीन घटक को आवश्यक रूप से सामिल किया जाता हैं - समाज, व्यक्ति और संस्कृतिक विरासत | इन्हें पाठ्यक्रम का आधार भी कहा जाता है | यह तीनों एक दूसरे से इस प्रकार से संबंधित है कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता | फिर भी अध्ययन की सुविधा के लिए इन्हें निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है – ## Every society expects that schools to have such qualities in their children which are useful to their society and country. Also, transfer their cultural and scientific knowledge to the new generation. Therefore, when determining the curriculum, the following three components are necessary included - society, individuals and cultural heritage. They are also called the basis of the syllabus. These three are related to each other in such a way that they cannot be separated. But, for the convenience of study, they can be divided into the following parts – 1. **विचारधारा और शैक्षिक दृष्टि** 2. **सामाजिक-राजनितिक आधार** 3. **भौगोलिक-आर्थिक स्थिति** 4. **राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रर्षीय संदर्भ – बहुसांस्कृतिक, बहुभाषी पहलू** 1. **Ideologies and Educational vision** 2. **Socio-political Basis** 3. **Geographical-economic conditions** 4. **National & International Context- multicultural, multilingual** ### 1. विचारधारा और शैक्षिक दृष्टि – शिक्षा के उद्देश्यों को दर्शन द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं | किसी विषय की उपयोगिता व अनूपयोगिता उस समाज व व्यक्ति के दर्शन पर निर्भर करता है | महान दार्शनिक प्लेटो ने कहानियों को न पढ़ाने की वकालत की थी क्योंकि वह छात्रों को केवल सत्य से परिचित कराना चाहता था | वहीं दूसरी तरफ महान शिक्षा शास्त्री *मैडम मरिया मोंटसरी* ने कहानियों को बहुत उपयोगी बताया है | इसी प्रकार कुछ भारतीय शिक्षा शास्त्री प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन को अनुपयोगी समझते हैं, जबकि आर्य समाजी शिक्षा शास्त्री प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन को अनिवार्य समझते हैं, जबकि व्यक्ति विशेष के सोच में अंतर के कारण दार्शनिक दृष्टिकोण भिन्न हो जाते है | जिसका प्रभाव पाठ्यचर्या निर्माण पर भी पड़ता हैं | दार्शनिक आधार पर निम्न भागों में पाठ्यचर्या को विभक्त कर सकते है – ### 1. Ideologies and Educational vision – The objectives of education can be achieved through philosophy. The usefulness and usefulness of a subject depends on the philosophy of that society and person. The great philosopher *Plato* advocated not teaching stories because he only wanted to introduce students to the truth. On the other hand, the great educationist *Madame Maria Montessori* has told stories is very useful. Similarly, some Indian educationists consider the study of ancient Indian history is unusable, while Arya Samaji educationists consider this study to be compulsory. Due to the difference in thinking of a particular person, philosophical viewpoints are different. Which also has an impact on curriculum construction. On philosophical basis, we can divide the curriculum into the following parts - ### (i) आदर्शवाद – आदर्शवाद विचारधारा मूल्यों एवं आदर्शों पर बल देती है | इसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य आत्मानुभूति की प्राप्ति करना एवं अपने समाज की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाना हैं | अर्थात् आदर्शवाद के अनुसार पाठ्यचर्या का निर्धारण करते समय उसमे मूल्यों एवं आदर्शों की बाते आवश्यक रूप से होना चाहिए | आदर्शवाद पाठ्यचर्या में साहित्य, कला, संगीत | भाषाएं, भूगोल, इतिहास, विज्ञान तथा गणित विषयों को सामिल करने पर जोर देते है | ### (i) Idealism – Idealism ideology emphasizes values and ideals. According to this, the aim of education is to attain self-realization and to carry forward the cultural heritage of our society. That is, while determining the curriculum according to idealism, it should necessarily contain the values and ideals. The idealism curriculum emphasizes the inclusion of literature, art, music languages, geography, history, science and mathematics. ### (ii) प्रकृतिवाद – प्रकृतिवाद विचारधारा में बालक के व्यक्तित्व विकास पर बल दिया जाता है | प्रकृतिवादियों के अनुसार बालक में व्यक्तित्व विकास के लिए उसे प्रकृति में स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए | ताकि बालक स्वयं ही प्रकृति के साथ अंतःक्रिया करके अपना आत्म प्रकाशन कर सके | प्रकृतिवादीयों के अनुसार पाठ्यचर्या में व्यायाम, खेलकूद, तैराकी, भूगोल, भ्रमण, प्राकृतिक विज्ञान आदि विषयों को शामिल करना चाहिए | ### (ii) Naturalism – In the naturalism ideology, the personality development of the child is emphasized. According to naturalists, for the development of personality in a child, he should be left independent in nature. So that the child can interact with nature itself and self-publish. According to naturalists, the curriculum should include subjects like exercise, sports, swimming, geography, excursion, natural science etc. ### (iii) प्रयोजनवाद या प्रयोगवाद - प्रयोजनावादी विचारधारा में बालक को शिक्षा का केंद्र बिंदु माना जाता है | इसलिए पाठ्यचर्या का निर्धारण करते समय बालक की अभिरुचियों एवं पसंद को ध्यान में रखना चाहिए | साथ ही पाठ्यचर्या की उपयोगिता को ध्यान में रखना चाहिए | | जिससे उनका जीवन सफल हो सके || प्रयोजनवादी पाठ्यचर्या में कला, भाषा, गणित, हस्त कला, कटाई-बुनाई, दुकानदारी, समाजिक क्रियाओं, व्यवसाय आदि को शामिल करने की सलाह देते हैं | ### (iii) Pragmatism – In the pragmatism ideology, the child is considered as the focus point of education. Therefore, while determining the curriculum, the interests and likes of the child should be kept in mind. Also, the usefulness of the curriculum should be kept in mind. So that their life can be successful. Pragmatism recommend to include language, arts, mathematics, hand art, cutting-weaving, shopkeeping, social activities, business etc. in the curriculum. ### (iv) यथार्थवाद – शिक्षा में यथार्थवादी विचारधारा का उदय संकुचित, काल्पनिक एवं साहित्यिक शिक्षा के विरोध में हुआ | यह विचारधारा पाठ्यचार्य में विज्ञानी अध्ययन वाले विषयों जैसे की प्रकृति विज्ञान को शामिल करने पर जोर देता है | जिससे बालक में वास्तविक जीवन को सामने की क्षमता का विकास हो सके | यथार्थवादी पाठ्यचर्या में इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि विषयों को शामिल करने की सलाह देते है | ### (iv) Realism – The rise of realist ideology in education was against narrow, imaginary and literary education. This ideology emphasizes the inclusion of scientific study subjects such as natural science in the curriculum. So that the child can develop the potential of real life in front. It is recommended to include subjects like geography, history, science etc. in the realistic curriculum. ### (v) अस्तित्ववाद – व्यक्तित्ववाद अस्तित्ववाद का प्रबल समर्थक है | इसके अनुसार बालक स्वयं का स्वामी होता है | जिसके कारण ये अपनी क्रियाओं तथा सफलताओं को स्वयं ही दिशा दे सकते हैं | | अतः अस्तित्ववाद में पाठ्यचर्या का चयन छात्र द्वारा स्वयं अपनी आवश्यकता, योग्यता एवं परिस्थितियों के अनुसार करता हैं | इसीकारण पाठ्यचर्या में कला, संगीत, साहित्य, धर्म , नैतिक सिद्धांत, व्यक्तित्व चयन, चिंतन आदि विषयों को शामिल करने पर जोर दिया जाता हैं | ### (v) Existentialism – Existentialism is a strong supporter of individualism. According to this, the child is his own master. Due to which they can give direction to their actions and successes themselves. Therefore, in Existentialism, the curriculum is chosen by the student according to his own need, ability and circumstances. Due to this, emphasis is laid on including topics like art, music, literature, religion, moral principles, personality selection, ## 2. सामाजिक-राजनितिक आधार - वर्तमान समय में जनतंत्र (Democracy) प्रणाली का प्रचलन हैं जिसके कारण पाठ्यचर्या में सामाजिक ज्ञान को महत्व दिया गया हैं | इस दृष्टि से पाठ्यचर्या में भाषा, इतिहास, साहित्य, समाजशास्त्र, भूगोल व नीतिशास्त्र जैसे विषयों पर जोर दिया जाता है | सामाजिक आधार पर तैयार पाठ्यचर्या में निम्न बातों का होना चाहिए – ## 2. Socio-political Basis - At present, there is a trend of Democracy system, due to which social knowledge has been given importance in the curriculum. From this point of view, the curriculum emphasizes subjects like language, history, literature, sociology, geography and ethics. Curriculum prepare on the social basis should include the following points : (i) The curriculum should be determined according to the changing society, time and circumstances. (ii) The curriculum should include elements that develop the sense of civilization - culture and sociality. (iii) Curriculum should be designed in such a way that the state's disparity in children can be eliminated and the feeling of national unity can be developed. (iv) Curriculum should be based on social reform so that the evils prevailing in the society can be removed. ### (i) पाठ्यचर्या का निर्धारण बदलते समाज, समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप करना चाहिए | ### (ii) पाठ्यचर्या के अंतर्गत सभ्यता- संस्कृति और सामाजिकता की भावना को विकसित करने वाले तत्वों को शामिल किया जाना चाहिए | ### (iii) पाठ्यचर्या को इस प्रकार निर्मित किया जाना चाहिए जिससे बच्चों में होकर राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास हो सके | ### (iv) पाठ्यचर्या सामाजिक सुधार पर आधारित हो ताकि समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया जा सके | ### (v) पाठ्यक्रम ऐसा हो जो बच्चों में नैतिक मूल्यों का विकास करता हो | इस प्रकार सामाजिक आधार पर संगठित पाठ्यक्रम द्वारा छात्रों में सामाजिक गुणवत्ता का विकास किया जा सकता है | राजनीतिक आधार पर पाठ्यचर्या का निर्धारण निम्न भागों में किया जाता है – ### (i) राजशाही शासन (Monarchy rule) - इस तरह के शासन व्यवस्था में शासक वर्ग अपने लिए उत्तम शिक्षा व्यवस्था का प्रबंध करते है ताकि वे अपनी प्रजा का सही से देखभाल कर सके और सफलता पूर्ण शासन कर सके | जबकि प्रजा के अध्ययन करने हेतु पाठ्यचर्या में कर्तव्य पालन, आज्ञा पालन, अनुशासन एवं देश के प्रति प्रेम जैसे तत्वों को सम्मिलित किया जाता है | ### (i) Monarchy rule – In such system of governance, the ruling class arranges for themselves a good education system so that they can take proper care of their subjects and can rule successfully. While the curriculum for the study of subjects includes elements such as duty, obedience, discipline and love for the country. ### (ii) फासिस्ट समाज - इस समाज में राज्य के हित को सर्वोपरि माना जाता है अतः पाठ्यचर्या का निर्धारण करते समय राष्ट्रीय भावना एवं सैनिक शिक्षा के महत्व पर जोर दिया जाता है | ऐसे समाज में सबको शिक्षा प्राप्ति का अधिकार प्राप्त नहीं होता है | ### (ii) Fascist Society – In this society, the interest of the state is considered to be paramount, hence the importance of national spirit and military education is emphasized while determining the curriculum. In such a society, not everyone gets the right to education. ### (iii) समाज - साम्यवादी इस तरह के राजनीतिक समाज में पाठ्यचर्या के निर्धारण में समाजवादी विचारधारा तथा श्रमिक दर्शन को महत्व दिया जाता है | पाठ्यचर्या के द्वारा श्रम का महत्व, मार्क्सवादी दर्शन आदि का ज्ञान बालकों को दिया जाता है | ### (iii) Communist Society – Socialist ideology and labor philosophy are given importance in determining the curriculum in such a political society. The importance of labor, knowledge of Marxist philosophy etc. is given to the children through the curriculum. ### (iv) लोकतंत्रीय समाज - इस प्रकार के राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था में बच्चों को पाठ्यचर्या के माध्यम से स्वतंत्रता, समानता, धर्म निरपेक्षता, भाई-चारा, मौलिक अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य के बारे में पढाया जाता हैं | ताकि बच्चे एक-दुसरे का सम्मान करते हुए एक अच्छा नागरिक बन सके और अपने देश के उत्थान में सहायता करें | ### (iv) Democratic Society – In this type of political social system, children are taught about freedom, equality, secularism, brotherhood, fundamental rights and fundamental duty through curriculum. So that children can become a good citizen by respecting each other and help in the upliftment of their country.

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