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Devi Ahilya Biography (PDF)

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Summary

This document is a biography of Devi Ahilya, a prominent historical figure. It details her life, accomplishments, and impact on society. The text highlights her leadership, social work, and contributions to the betterment of the community.

Full Transcript

# पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर ## जन्म 31 मई 1725 स्वर्गवास 13 अगस्त 1795 ## व्यक्तित्व एवं कृतित्व सन् 1728 से 1948 तक से 14 होलकर नरेशों ने मालव भूमि की इन्दौर रियासत में 220 वषों तक शासन प्रबंध किया। इन समस्त 14 होलकर नरेशों के अध्ययन द्वारा यही प्रतीत होता है कि इन्होने प्रजा पालन का कार्य अ...

# पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर ## जन्म 31 मई 1725 स्वर्गवास 13 अगस्त 1795 ## व्यक्तित्व एवं कृतित्व सन् 1728 से 1948 तक से 14 होलकर नरेशों ने मालव भूमि की इन्दौर रियासत में 220 वषों तक शासन प्रबंध किया। इन समस्त 14 होलकर नरेशों के अध्ययन द्वारा यही प्रतीत होता है कि इन्होने प्रजा पालन का कार्य अत्यन्त से एवं जनकल्याण की दृष्टि से किया। होलकर राजवंश की शासक प्रातः स्मरणीया, पुण्यश्लोक, लोकमाता, देवी अहिल्याबाई होलकर परम शिवभक्त होकर भी 'विरांगना' अहिल्याबाई होलकर के नाम से भारत के महान नारीरत्नों में विख्यात है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के जामखेड़ तहसील के चौन्ढीग्राम में एक धनगर-गडरिया (Shepherd) जाति में जन्म लेकर आपने अपने वंश, समाज तथा राष्ट्र का नाम देश-विदेश में ऊँचा किया। महारानी होते हुए आपने सादगीपूर्ण जीवनशैली द्वारा जीवनयापन कर संपूर्ण देशभर में आपने लोककल्याणकारी कार्य किये। भारत ही नहीं विश्व में वंदनीय स्थान प्राप्त किया। आपने संपूर्ण देश को अपने कार्यों की विविध भाषाओं के इतिहासों में एवं ग्रंथों में प्रशंसा ही वर्णित की है। उनकी सादगी का महेश्वर का होलकर बाड़ा आज एक आदर्श उदाहरण है। - मालवा (मध्यप्रदेश) में सुभेदार मल्हारराव होलकर के सुपुत्र खंडेराव के साथ 8 वर्ष की आयु में आपका शुभविवाह हुआ। उम्र की 29 वर्ष में ही आप विधवा हुई। आपके कार्यों द्वारा आगे जाकर विधवा की प्रतिमा को प्रातः स्मरणीया के रूप में "दर्शनिया" आपको जनता द्वारा स्थापित किया गया। पुत्र मालेराव भी 22वें वर्ष की उम्र में बिमारी से चल बसा। विवाहित पुत्री मुक्ताबाई भी अपने पति यशवंतराव फणसे की आकस्मिक मृत्यु के कारण युवावस्था में ही सती हो गई। पौत्र नात्थ्याबा भी अल्पायु में चल बसा। सन् 1766 में ससुर मल्हारराव का भी निधन हुआ। आप्तजनों में निकट के ऐसे 23 मृत्युओं का तांडव देवी अहिल्या ने देखा। 1767 में आपने होलकर राज्य के सूत्र हाथ में लिये। प्रथम तुकोजीराव को होलकर राज्य का सेनापति पेशवा द्वारा बनाया गया। सन् 1767 से 1795 तक के कार्यकाल के अन्तर्गत इन्दौर छोडकर महेश्वर होलकर राजवंश की राजधानी बनाई और इन्दौर का महत्व कम नहीं होने दिया। आपने राज्य की संपूर्ण संपत्ति पर तुलसीदल रखकर होलकर राज्य को शिवार्पित किया और भगवान शंकर की आज्ञा से ही राजकारोबार चलाया। आपके राज्य के आदेश हुजूर श्री शंकर ऑर्डर के नाम से ही जारी होते थे। आपने अपनी प्रजा को सदैव पुत्रवत माना। प्रजा के कल्याण द्वारा ही आपको परम संतोष होता था। उनका प्रमुख वचन प्रसिद्ध है। 'मैं जो कुछ भी सत्ता और सामर्थ्य के बल पर कर रही हूँ, उसका जवाब मुझे परमेश्वर को देना होगा।" - वीरांगना अहिल्याबाई का आदर्श प्रशासन, आदर्श न्याय व्यवस्था, आदर्श सैनिक संगठन, आदर्श लोक कल्याणकारी योजनाऐं थी। उन्होंने गरीब, दलित एवं पिछड़े वर्ग एवं समाज की उपेक्षित लोगों की सेवा को ईश्वर सेवा माना। अपने राज्य में ही नहीं संपूर्ण देशभर के तीर्थस्थलों पर, चारों धामों, बाहर ज्योर्तिलिंगों एवं सात प्रमुख नगरों में अन्नक्षेत्र प्रारंभ किये, नदियों पर घाट बांधे, धर्मशालाओं का निर्माण किया। पर्यावरण को शुद्ध बनाये रखने के लिये वृक्ष लगाये, सड़कों का निर्माण किया। पेयजल हेतु उन्होने कुऐं, बावड़ियों और तालाबों का निर्माण किया। पशु-पक्षियों के चरणोई के लिए खुले खेत छोड़ दिये। महेश्वरी साड़ी उद्योग, सूती वस्त्रोंद्योग, पर्यटक उद्योगों को उन्होने देशभर में प्रोत्साहित किया। ऐसे सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आर्थिक उन्नति के कार्य मानव प्राणी से लेकर पशु-पक्षि जीव-जन्तुओं के कल्याण के लिये जो कार्य उन्होंने किये वह उन्हें अपने ससुर से प्राप्त खासगी की 16 करोड़ की संपत्ति में से ही किये। इस कार्य हेतू राज्य के खजाने का दुरूपयोग उन्होने नहीं किया। उन्होंने बारह ज्योर्तिलिंगों के मंदिरों का जीर्णोद्वार किया। कई मस्जिदों तथा पीर की दरगाहों को भी दान दिया। अहिल्याबाई परम शिवभक्त होकर भी सर्वधर्म समभाव उनमें था। - चन्द्रावतों के विरूद्ध उन्होंने सन् 1771 में रामपुरा में युद्ध का नेतृत्व कर संचालन किया। महान योद्धा सूबेदार मल्हारराव एवं पति खंडेराव के साथ युद्ध के कैम्प में जाकर अहिल्याबाई ने भी सैनिकी संस्कार प्राप्त किये थे इसीलिये वीरांगना स्वरूप वे चन्द्रवतों के साथ युद्ध कर उन्होंने विजय प्राप्त की तथा चन्द्रावतों के सेनापति सोभागसिंह को तोप से उडाने का आपने कठोरता से हुकूम दिया। मराठा साम्राज्य के कालखंड में इस शिवभक्त अहिल्याबाई को वीरांगना का भी सम्मान पुणे दरबार में पेशवा द्वारा दिया गया। कठोरता से डाकुओं तथा भीलों के उपद्रवों को भी शांत कर उन्हें खेती करने की प्रेरणा दी और कई योजनाओं द्वारा उनका कल्याण किया। - उनकी अन्तरात्मा हमेशा उन्हें कहती रही "अहिल्ये, जनता के धन का उपयोग जनता के कल्याण में ही खर्च करना चाहिये"। इसीलिए उन्होंने अपनी प्रजा को पुत्रवत मानकर लोककल्याणकारी कार्य किये इसीलिये वे राजमाता ही नहीं उससे बढ़कर पुण्यश्लोक लोकमाता के रूप में सुविख्यात है। - ऐसा गंगाजल निर्मल जीवन चरित्र हैं, ऐसी आदर्श कन्या, आदर्श पत्नी, आदर्श पुत्रवधु, आदर्श माता, आदर्श प्रशासक, आदर्श न्यायदायिनी, आदर्श प्रजाहितकारिणी, सादगीपूर्ण धर्म जीवन व्यातीत करने वाली तथा एक शिवभक्त होते हुए वीरांगना के रूप में अहिल्याबाई होलकर का नाम संपूर्ण देश-विदेश में श्रद्धा के साथ सम्मानपूर्वक लिया जाता है। 13 अगस्त सन् 1795 में वे शिवलोकवासी हुई। अपने 70 वर्ष की उम्र में तथा 30 वर्ष के शासनकाल में वीरांगना अहिल्याबाई का शासन रामराज्य के रूप में इतिहासकार स्वीकार करते है। धन्य है, इस कलयुग की पुण्यश्लोक अहिल्या, धन्य है विरांगना अहिल्याबाई होलकर !

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