हिन्दी का शिक्षणास्त्र (भाग I) BED II- CPS 4 PDF

Summary

यह उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित हिंदी शिक्षणास्त्र (भाग I) BED II- CPS 4 पाठ्यक्रम है जिसमें हिंदी भाषा शिक्षण के विविध पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस पाठ्यक्रम में भाषा और समाज, भाषा और जेंडर, भाषा और शांति जैसे विषय शामिल हैं।

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BED II- CPS 4 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) Pedagogy of Hindi (Part I) हिक्षक हिक्षा हिभाग, हिक्षािास्त्र हिद्यािाखा उत्तराखण्ड मुक्त हिश्वहिद्यालय, िल्द्वानी ISBN: 13-978-93-85740-71-8 B ED II- CPS 4 (BAR CODE) BED II- CPS 4 िह#दी का िश)णशा+ (भाग I) िश#...

BED II- CPS 4 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) Pedagogy of Hindi (Part I) हिक्षक हिक्षा हिभाग, हिक्षािास्त्र हिद्यािाखा उत्तराखण्ड मुक्त हिश्वहिद्यालय, िल्द्वानी ISBN: 13-978-93-85740-71-8 B ED II- CPS 4 (BAR CODE) BED II- CPS 4 िह#दी का िश)णशा+ (भाग I) िश#क िश#ा िवभाग, िश#ाशा% िव'ाशाखा उ"राख&ड मु* िव-िव.ालय, ह"#ानी अ"ययन बोड( िवशेष& सिमित !ोफेसर एच० पी० शु#ल (अ"य$- पदेन), िनदेशक, िश(ाशा* िव,ाशाखा, !ोफेसर एच० पी० शु#ल (अ"य$- पदेन), िनदेशक, िश(ाशा* उ"राख&ड म* ु िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु िव/िव#ालय !ोफेसर मुह$मद िमयाँ (बा# िवशेष)- सद#य), पवू $ अिध(ाता, िश#ा संकाय, !ोफेसर सी० बी० शमा$ (बा# िवशेष)- सद#य), अ&य', रा*+ीय जािमया िमि&लया इ)लािमया व पवू - कुलपित, मौलाना आजाद रा*+ीय उद0ू म# ु िव&ालयी िश,ा सं/थान, नोएडा िव#िव$ालय, हैदराबाद !ोफेसर पवन कुमार शमा/ (बा# िवशेष)- सद#य), अिध(ाता, !ोफेसर एन० एन० पा#डेय (बा# िवशेष)- सद#य), िवभागा&य(, िश#ा िवभाग, िश#ा संकाय व सामािजक िव,ान संकाय, अटल िबहारी बाजपेयी िह7दी एम० जे० पी० !हेलख&ड िव*िव+ालय, बरे ली िव#िव$ालय, भोपाल !ोफेसर के ० बी० बुधोरी (बा# िवशेष)- सद#य), पवू ( अिध,ाता, िश0ा संकाय, !ोफेसर जे० के ० जोशी (िवशेष आम)ं ी- सद#य), िश'ाशा) एच० एन० बी० गढ़वाल िव'िव(ालय, *ीनगर, उ/राख1ड िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु िव/िव#ालय !ोफेसर जे० के ० जोशी (िवशेष आम)ं ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, !ोफेसर र'भा जोशी (िवशेष आम)ं ी- सद#य), िश#ाशा% उ"राख&ड म* ु िव-िव.ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म.ु िव/िव#ालय !ोफेसर र'भा जोशी (िवशेष आम)ं ी- सद#य), िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड डॉ० िदनेश कुमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 म# ु िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु िव/िव#ालय डॉ० िदनेश कुमार (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, उ5राख6ड डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 म# ु िव&िव'ालय िव#ाशाखा, उ(राख*ड म. ु िव/िव#ालय डॉ० भावना पलिड़या (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा, स! ु ी ममता कुमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 उ"राख&ड म* ु िव-िव.ालय िव#ाशाखा एवं सह-सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु स#ु ी ममता कुमारी (सद#य), सहायक (ोफे सर, िश/ाशा0 िव2ाशाखा एवं सह- िव#िव$ालय सम#वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु िव1िव2ालय डॉ० !वीण कुमार ितवारी (सद#य एवं सयं ोजक), सहायक -ोफे सर, डॉ० !वीण कुमार ितवारी (सद#य एवं संयोजक), सहायक -ोफे सर, िश3ाशा4 िश#ाशा% िव'ाशाखा एवं सम-वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख!ड िव#ाशाखा एवं सम+वयक बी० एड० काय$%म, उ(राख+ड म. ु िव1िव!ालय म# ु िव&िव'ालय िदशाबोध: (ोफेसर जे० के ० जोशी, पवू $ िनदेशक, िश+ाशा- िव.ाशाखा, उ1राख3ड म7 ु िव8िव.ालय, हालय से िलिखत अनमु ित लेना आव-यक है। इकाई लेखन से सबं ंिधत िकसी भी िववाद के िलए पणू 6 5 पेण लेखक िज8मेदार होगा। िकसी भी िववाद का िनपटारा उ"राख&ड उ(च *यायालय, नैनीताल म2 होगा। िनदेशक, िश'ाशा) िव+ाशाखा, उ.राख0ड म4 ु िव5िव+ालय 8ारा िनदेशक, एम० पी० डी० डी० के मा%यम से उ)राख,ड म/ ु िव2िव3ालय के िलए मिु 6त व 8कािशत। !काशक: उ"राख&ड म* ु िव-िव.ालय; मु#क: उ"राख&ड म* ु िव-िव.ालय। काय$%म का नाम: बी० एड०, काय$%म कोड: BED- 17 पाठ्य&म का नाम: िह#दी का िश#णशा&, पाठ्य&म कोड- BED II- CPS 4 ख"ड इकाई इकाई लेखक स# ं या स# ं या !ोफे सर िनरंजन सहाय 1 1व5 !ोफे सर, िह)दी िवभाग, महा1मा गाँधी काशी िव6ापीठ, वाराणसी, उ;र!देश डॉ० !रंकल शमा) 1 2 सहायक &ोफे सर, िश#ा िव#ापीठ, गलगोिटया िव)िव*ालय, !ेटर नोएडा, उ+र,देश डॉ० तारके &र गु)ा 1 3 सहायक &ोफे सर, बी० एड० िवभाग, महाराणा &ताप राजक+य -नातको0र महािव&ालय, हरदोई, उ०!० स#ु ी िवजेता कुमारी 1 4 सहायक &ोफे सर, िश#ा िवभाग, जमशेदपरु मिहला महािव'ालय, जमशेदपरु , झारख,ड !ी मोिहत राज 2 1व3 कमरा स०ं - 13, मकान स०ं - A/7, फे ज 5, संडे माक( ट, आयानगर, नई िद2ली डॉ० िगरीश कुमार ितवारी 2 2, 4 व अितिथ %या(याता, िश#ा िवभाग, मिहला महािव'ालय, काशी िह,दू िव/िव'ालय, वाराणसी 5 BED II- CPS 4 िह#दी का िश)णशा+ (भाग I) ख"ड 1 इकाई स०ं इकाई का नाम प#ृ स०ं 1 भाषा एवं िविवध सबं ंिधत प- 2-14 2 िहदं ी भाषा िश*ण : एक प/रचय 15-29 3 िहदं ी भाषा िश#ण के कुछ अ*य मह.वपणू 2 आयाम 30-44 4 भारत म" िहदं ी भाषा एवं िहदं ी भाषा िश#ण क" !ि#थित 45-61 5 भारत िहदं ी भाषा िश*ण के कुछ अनछुए पहलू 62-73 ख"ड 2 इकाई स०ं इकाई का नाम प#ृ स०ं 1 िहदं ी भाषा िश*ण क- िविभ/न िविधयाँ 75-93 2 भाषा एवं सािह%य का संबंध तथा भाषा िश#ण म" िहदं ी सािह%य क" भिू मका 94-110 3 िहदं ी भाषा तथा िहदं ी सािह,य के िविभ1न िवधाओ ं का िश6ण 111-133 4 िहदं ी भाषा िश#णाथ' िश#ण-अिधगमसाम(ी एवं पाठ्यसहगामी ि"याएँ 134-149 5 िहदं ी भाषा िश#ण म" सचू ना एवं तकनीक% का उपयोग 152-166 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 खण्ड 1 Block 1 उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 1 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 इकाई 1- भाषा एवं ववववध संबंवधत पक्ष 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्देश्य 1.3 भाषा का अर्थ : समप्रत्यय एिं प्रकायथ 1.4 भाषा एिं समाज 1.5 भाषा एिं जेंडर 1.6 भाषा एिं शांवत 1.7 गृह-भाषा एिं विद्यालय की भाषा 1.8 भाषा का महत्ि एिं पाठ्यक्रम में उसका स्र्ान 1.9 अविगम में भाषा की प्रिानता 1.10 एक विद्यालयी विषय के रुप में वहदं ी भाषा एिं अविगम तर्ा संप्रेषण के माध्यम के रुप में वहदं ी भाषा के मध्य अंतर 1.11 साराश ं 1.12 सन्दभथ ग्रर्ं सचू ी 1.1 प्रस्तावना भाषा वकसी समाज की िह वनवि है , वजसके बल पर एक – दसू रे से सम्िाद वकया जाता है । िह समाज की अनेक उपलवधियों ,जय – पराजय. संघषों और लक्ष्यों को प्रकट करती है । इस अर्थ में िह सामावजक , सांस्कृ वतक और ऐवतहावसक यात्रा की हमसफर है । वशक्षा की दवु नया में भाषा की मौजदू गी के विवभन्न सन्दभथ हैं , वजनपर व्यापक अध्ययन हुए हैं । इस अध्ययन का फै लाि तकनीकी पहलू के सार् ही व्यािहाररक पहलू तक है । भाषा के अध्ययन की परु ानी तरकीबों में कुछ नए पहलओ ु ं का शावमल होना , उसकी पररवि में उन सन्दभों को जोड़ा जो हमारी भाषाई संस्कृ वत का वहस्सा र्े , पर वजनपर हमारी नज़र नहीं जाती र्ी । उदाहरण के वलए हम भाषा और जेंडर , भाषा और शावन्त के फलक को समझ सकते हैं । इस इकाई में हम भाषा और वशक्षा से जड़ु ें कुछ ऐसे ही सन्दभों का अध्ययन करें गे । उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 2 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 1.2 उद्देश्य भाषा और वशक्षा के विविि सन्दभों पर आिाररत इस इकाई में आप अनेक पहलओ ु ं का अध्ययन करें गे / करें गी । इस इकाई के विस्तृत अध्ययन के बाद विद्यार्ी वशक्षक / वशवक्षका समझ पाएँगे / पाएँगी – 1. अलग-अलग सामावजक सन्दभों में भाषाई प्रयोग के रूप भी विविि प्रकार के होते हैं । भाषाई अवस्मता की स्िीकृ वत लोकतंत्र में सबको अवभव्यवक्त का अिसर महु यै ा कराती है । 2. भाषा पद के सम्यक ज्ञान और प्रकायथ को जानकर उसके कारगर उपयोग की समझ बनाई जा सकती है । 3. भाषा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जेंडर सम्बन्िी असमानता का कारण भी बनती है एिं इसकी जानकारी ऐसी असमानताओ ं से हमें बचाती भी है । 4. वशक्षा का मकसद ज्ञान का प्रसार भर नहीं है । हम सभी स्र्ानीय , राष्ट्रीय और भमू डं लीय स्तर पर अभतू पिू थ वहसं ा के दौर से गज़ु र रहे हैं । ऐसे में वशक्षा को शांवत स्र्ापना के वलए , सशक्त माध्यम के रूप में इस्तेमाल करना हमारे समय की ज़रूरत है । इसका वसरा भाषा आिाररत विवभन्न कक्षाई और विद्यालयी पररवस्र्वतयों से भी जड़ु ता है । भाषा की इस समझ को जानना भी ज़रूरी है । 5. घर की भाषा और विद्यालय की भाषा के बीच एक गहरी खाई विद्यमान है । इसका खावमयाजा अविगम की प्रवक्रया को बावित करता है । आिश्यकता इस बात की है वक घर की भाषा और विद्यालय की भाषा के बीच सम्िाद उपवस्र्त हो , तावक अविगम की उत्कृ ष्ट उपलवधियों को प्राप्त करना सम्भि हो । 6. विद्यालय में भाषा का उपयोग माध्यम एिं विषय के रूप में होता है । भाषा विवभन्न विषयों के कें द्र में है , अत: भाषा सीखने – वसखाने के अिसर सभी विषयों की कक्षाओ ं में सृवजत करने होंगे । 7. विद्यालय एिं विद्यालय के बाहर पररिेश में भाषा के अनेक रूप वमलते हैं , वजनका स्कूली प्रवक्रयाओ ं में संसािन के रूप में उपयोग वकया जाना चावहए । आइए इकाई का विस्तार से अध्ययन करें । 1.3 भाषा का अर्थ : समप्रत्यय एवं प्रकायथ भाषा मनष्ट्ु य की िह प्राकृ वतक क्षमता है , वजसके बल पर िह ध्िवन प्रतीकों की रचना करता है । इन्हीं प्रतीकों का उपयोग अवभव्यवक्त हेतु वकया जाता है । भाषा के अवस्तत्ि में आने का पहला कदम ध्िवन प्रतीकों की रचना ही है । यह सही है वक भाषा सम्प्रेषण का माध्यम है । पर क्या भाषा का काम महज इतना ही है ? दरअसल भाषा के सरोकार कहीं अविक विस्तृत हैं । भाषा पर आिाररत , राष्ट्रीय पाठ्यचयाथ की रूपरे खा का आिार पत्र इस सम्बन्ि में बेहद मौजू वटप्पणी करता है , उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 3 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 ‘अहिकाांि लोग भाषा को सम्प्रेषण का माध्यम मानते िैं । यिााँ तक हक हिक्षक , हिक्षकों के रहिक्षक , पाठ्यपुस्तक लेखक , पाठ्यचयाा अहभकल्पक (हडज़ाइनर) व िैक्षहणक योजनाकार तक की यिी िारणा िै । जबहक हिक्षा में भाषा की भूहमका को ठीक से सरािने के हलए िमें समग्रतावादी दृहिकोण अपनाने की ज़रूरत िै । िमें इसके सांरचनागत , साहिहययक , सामाहजक , साांस्कृहतक , मनोवैज्ञाहनक एवां सौन्दयािास्त्रीय पक्षों को मित्त्व देते िुए इसे एक बिुआयामी हस्िहत में रखकर इसकी पड़ताल करनी िोगी । सामान्यत: भाषा को िब्द-कोि व कुछ हनहित वाक्यगत हनयमों के हमश्रण के रूप में देखा जाता िै – जिााँ यि ध्वहनयों , िब्दों व वाक्यों के स्तर पर ख़ास ढगां से हनयांहित िोती िै । यि सच िै , इसे नकारा निीं जा सकता । लेहकन यि तसवीर का एक पिलू िै- भले िी इसका स्वरूप सावाभौहमक िो ।’ (आिार पि, 2009:1, , भारतीय भाषाओ ां का हिक्षण , एन.सी.ई.आर.टी., नई हदल्ली ) इस लम्बे उद्धरण को यहाँ शावमल करने का उद्देश्य यह है वक हम यह बखबू ी समझ सकें वक वशक्षा की दवु नया में भाषा का सन्दभथ सावहत्य और भाषाविज्ञान से कहीं अविक है । आइए भाषा की प्रकृ वत और स्िरूप की कवतपय विशेषताओ ं को समझने का प्रयास वकया जाय । वनम्नांवकत िाक्यों को देखें –  भाषा रतीकों की वाहचक व्यवस्िा िै ।  भाषा हनयम सांचाहलत व्यवस्िा िै । इन दोनों िाक्यों की जब हम व्याख्या करें गे ,तब भाषा की आिारभतू बातों की समझ बनेगी ।  भाषा रतीकों की वाहचक व्यवस्िा िै भाषा मल ू त: प्रतीकों की िावचक व्यिस्र्ा है । लेवकन जब भी हम भाषा के बारे में बात करते हैं तब उसे मख्ु यत: सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में समझते हैं । जब हम वकसी को वकसी िस्तु के बारे में बताना चाहते हैं , उस समय हम भाषा का इस्तेमाल उसे उस िस्तु के बारे में बताने के वलए करते हैं । इसे एक उदाहरण के द्वारा समझें । मान लीवजए हम अपने वकसी वमत्र को वकसी पेड़ के बारे में बताना चाहें , तब कुछ सम्भावित िाक्य वनम्न प्रकार के हो सकते हैं – मैंने एक मजबूत पेड़ देखा । िहाँ पर अनेक पेड़ हैं । िह पेड़ खबू सरू त है । आइए उवललवखत िाक्यों में आए कुछ शधदों के सहारे भाषा के सन्दभथ में एक महत्त्िपूणथ मद्दु े की तरफ आगे बढ़ें । इन तीनों िाक्यों में आए पेड़ शधद के विविि सन्दभथ हैं । जब पेड़ का उच्चारण वकया जाता है , उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 4 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 तब बताने के पहले भाषा के स्तर पर मवस्तष्ट्क में अनेक वक्रयाएँ चलती हैं । पेड़ उच्चारण करने की वस्र्वत तक पहुचँ ने के वलए पेड़ नामक िस्तु के वलए वकसी ध्िवन-प्रतीक की रचना करनी होती है । यवद ऐसा न हो पाए तो उस िस्तु (अर्ाथत पेड़) से दरू रहकर उसके बारे में बताना बेहद मवु श्कल है । ठीक यही बात अन्य शधदों पर भी लागू होती है । यवद ध्िवन प्रतीक न हों , तब भाषा अवभव्यवक्त का व्यािहाररक सािन नहीं रह पाएगी । सभी भाषाओ ं में व्यिहारकताथ अपने अनभु िों को प्रतीकों में रूपातं ररत कर उनको सरु वक्षत रखता / रखती है । प्रतीकीकरण की सामर्थयथ तर्ा उसके उपयोग के वबना भाषा का अवस्तत्त्ि संभि नहीं है । यही कारण है वक हम यह मानते हैं वक भाषा के विचार को सम्प्रेषण में कै द करना , प्रत्येक व्यवक्त की भाषाई सृजन क्षमता को नज़र अदं ाज़ करना है , क्योंवक सम्प्रेषण तो रती – रटाई बातों का भी हो सकता है । कहना न होगा सम्प्रेषण से पहले भाषा , प्रतीकों का सृजन है । इस सन्दभथ को और अविक विस्तार से समझाने के वलए वनम्नावं कत अितरण को देखें – ‘एडवडा साहपयर (1961) अमरीकी भाषाहवद ने भाषा को सम्प्रेषण का सािन मानने के हवचार का वैकहल्पक हवचार पेि हकया िै । उनका हवचार िै हक - `यि स्वीकार कर लेना सबसे उहचत िोगा की रािहमक रूप से भाषा वास्तहवकताओ ां को रतीकों के रूप में देखने की रवृहि की वाहचका रस्तुहत िै ।....वाहचक अहभव्यहि के रूप में रस्तुहत का अिा िै अनुभव को जाने – पिचाने रूप में ढालकर , न हक रययक्ष रूप से सामना करके , वास्तहवकता पर हनयांिण स्िाहपत करने की रवृहि ।’ हिटेन द्वारा उद्धररत साहपयर के इस हवचार को छोटे -छोटे सवालों में हवभाहजत करने से इसे चेतना में उतारना अपेक्षाकृत सरल िो सकता िै । वाणी का सबसे मित्त्वपण ू ा काया क्या िै ? वाणी का सबसे रािहमक काया वास्तहवकता को रतीकों ढालना िै । िम वास्तहवकता को रतीकों में क्यों ढालते िैं ? ऐसा करने से वास्तहवकता को सम्प्भालना सम्प्भव िो पाता िै । सम्प्भाल पाने की हस्िहत के बाद िी वास्तहवकता पर हियािील िुआ जा सकता िै । क्या िम वास्तहवकता का हनरूपण इसे सम्प्भालने तिा इस पर हियािील िोने माि के हलए करते िैं ? मनुष्य द्वारा रतीक – हनमााण के हवचार को इन गहतहवहियों तक सीहमत करना ग़लती िोगी । वास्तव में यहद िम मनुष्य को अपने सांसार का हनरूपण करने वाले के रूप में देखते िैं , ताहक वि इस हनरूपण पर हियािील िो सके तो अन्य तरि की गहतहवहियों का रास्ता भी उसके हलए खल ु ा िोता िै। वि सीिे तौर पर स्वयां हनरूपण के अनुसार हियािील िोता िै । वि इस बात का चुनाव भी कर सकता िै हक वि हनरूपण पर हियािील िो तिा सांसार के अपने द्वारा हकए गए हनरूपण में सुिार करें । यि काया वि लगातार रतीकों को गढ़कर करता िै । लेंगर ने इस ां ान को तेज़ी से रतीक गढ़ने वाले (Proliferater of symbols) की सांज्ञा दी िै । उनका मानना िै हक इस ां ान का महस्तष्क रतीकों की अहवरल िारा से हनहमात िोता िै ।’ उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 5 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 (रावत , बीरेंद्र हसांि 2005:9,भाषा की बुहनयाद तिा अवबोिन , हदिाबोि , अांक 2 , हसतम्प्बर –अक्टूबर , समाांतर , जयपुर ) इस लम्बे उद्धरण से यहाँ इसवलए गज़ु रा गया तावक हम यह बखबू ी समझ सकें वक भाषा के महत्त्ि को सम्प्रेषण के माध्यम के रूप में समझने के सार् उसे चनु े गए ध्िवन – प्रतीकों के रूप में भी समझ सकें । भाषा का एक और गणु है – यादृवच्छकता का गणु । अर्ाथत , वकसी िस्तु को नाम देने में मनमानेपन का भाि । अन्य शधदों में प्रत्येक भाषा में शधदों के चनु ाि में मनमानेपन का तत्त्ि मौजदू होता है । जैसे हम पेड़ को पेड़ ही कहते हैं या नदी को नदी ही कहते हैं कुछ और नहीं । इसके नामकरण में कोई तकथ नहीं मनमानेपन का भाि वनवहत होता है । अर्ाथत् भाषा में यादृवच्छकता का गणु होता है ।  भाषा हनयम सांचाहलत व्यवस्िा िै विश्व की समस्त भाषाएँ वनयमबद्ध होतीं हैं । यह संभि है वक विवभन्न भाषाओ ं को बरतनेिालों की संख्या असमान हो । वनयमबद्धता की पररवि में प्राय: तीन मानक आिार बनाए जाते हैं –ध्िवन , शधद और िाक्य । प्रत्येक भाषा की ध्िवन में कुछ स्िर तर्ा कुछ व्यजं न होते हैं । इन ध्िवनयों (िणों) के आिार पर ही शधदों की रचना होती है । हर भाषा के अपने विवशष्ट ध्िवन संसार होते हैं । जैसे भारतीय भाषाओ ं में महाप्राण, स्पशथ एिं मिू थन्य िवव्नयों (ख,घ,छ,ष,ऋ) का स्र्ान है , पर यरू ोपीय भाषाओ ं में यी ध्िवनयाँ नहीं वमलतीं । उसी तरह अग्रं ेजी का तालव्य संघषी व्यंजन Z वहन्दी में नहीं है । ध्िवन संयोजन की ही तरह शधद संयोजन की भी अलग -अलग भाषाई विवशष्टताएँ हैं । संसार की विवभन्न भाषाएँ अपने-अपने तरीक़े से पदार्ों तर्ा वक्रयाओ ं आवद का नामांकन करती हैं । जैसे – भाषा - शधद वहन्दी - फूल संस्कृ त - पष्ट्ु पम् अग्रं ेजी - flower आवद । इसके मल ू में यादृवच्छकता की प्रिृवत्त है , वजसकी चचाथ पहले की जा चक ु ी है । उसी तरह शधद वनमाथण की भी प्रवक्रयाएँ अलग – अलग होतीं हैं । जैसे – एकिचन से बहुिचन बनाने के वहदं ी और अग्रं ेजी के वनयम अलग-अलग हैं । जैसे – लड़की – लड़वकयाँ (वहन्दी) , girl-girls (अग्रं ेजी)। संज्ञा से विशेषण बनाने के भी हर भाषा के अलग-अलग वनयम होते हैं । जैसे – सरकार – सरकारी (वहन्दी), rain-rainy (अग्रं ेजी)। उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 6 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 प्रत्येक भाषा में सीवमत शधदों से असीवमत िाक्य सरं चनाओ ं का जन्म होता है । िाक्यों से ही सबं वं ित मसला संिाद संरचनाओ ं का भी है । हर भाषा में अलग – अलग अवभव्यवक्तयों के वलए अलग- अलग तरह की िाक्य संरचनाओ ं का प्रयोग वकया जाता है । भाषा के रकाया का मतलब भाषा का प्रकायाथत्मक अध्ययन प्राग स्कूल की देन है। इस स्कूल की स्र्ापना 1926 ई. में हुई। इसके मल ू संस्र्ापक विलेम मर्ेवसउस (Vilem Mathesius) हुए जो कै रोलाइन विश्वविद्यालय में प्राध्यापक र्े । प्राग स्कूल की सिथप्रमखु विशेषता भाषा का प्रकायथ के आिार पर विश्ले षण करना र्ा। प्रकायथिावदयों के अनसु ार भाषा की संरचना प्रकायथ (सन्दभथ) के अनरू ु प बदल जाती है। इस प्रकार एक ही भाषा प्रकायाथनसु ार वभन्न-वभन्न रूपों में प्रस्ततु होती है। वनम्नांवकत छह रूप भाषा के प्रकायथ के रूप में पहचाने गए i. अवभव्यवक्तक प्रकायथ (Expressive Function) ii. इच्छा परक प्रकायथ (Conative Function) iii. अवभिापरक प्रकायथ (Donative Function) iv. सम्पकथ परक प्रकायथ (Phatic Function) v. आविभावषक प्रकायथ (Codifying Function) vi. काव्यात्मक प्रकायथ (Poetic Function) । 1.4 भाषा एवं समाज वकसी भी भाषा के व्याकरवणक सन्दभों के सार् ही अनेक अन्य सन्दभथ भी होते हैं । भाषा िैज्ञावनकों का मानना है वक बच्चे-बवच्चयाँ जन्मजात भावषक क्षमता के सार् जन्म लेते / लेतीं हैं । बािजदू इसके भाषाओ ं का सीखा जाना विशेष सामावजक – सांस्कृ वतक और राजनीवतक सन्दभथ में होता है । भाषा और इन सन्दभों का ररश्ता उभयवनष्ठ है । उदाहरण के वलए कौन सी बात कब , कहाँ और कै से कहना है यह सामावजक , सांस्कृ वतक और राजनीवतक सन्दभों द्वारा बखबू ी वसखा वदए जाते हैं । संप्रेषण , विचार और ज्ञान के तंत्र भावषक व्यिहार में कौन सी भवू मका अदा करते हैं , इसके बारे में भारतीय भाषाओ ं के वशक्षण पर आिाररत आिार पत्र की राय है – “भाषा का अहस्तत्त्व एवां हवकास समाज के बािर निीं िो सकता । भाषा का हवकास िमारी साांस्कृहतक हवरासत और सामाहजक हवकास की ज़रूरतों से िी उद्दीप्त िोता िै , लेहकन इसके हवपरीत भी उतना िी सच िै अिाात् भाषा भी उद्दीपन करने वाले इन कारकों को उद्दीप्त करती िै । मानव समाज भाषा के हबना निीं चल सकता क्योंहक यि सम्प्रेषण का सबसे ज़्यादा िद्धु और सावाभौहमक ब्माध्यम िै । यि हवचारों के उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 7 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 हनमााण और अहभव्यहि को बनाने और सांचाररत करने में भी ज़रूरी भूहमका हनभाती िै ।” (आिार पि, 2009:4, , भारतीय भाषाओ ां का हिक्षण , एन.सी.ई.आर.टी., नई हदल्ली)। भाषाओ ं और समाज के सन्दभथ में एक बात और बेहद महत्त्िपणू थ है ।भाषा एक सतत पररितथनशील व्यिस्र्ा है । यह इवं गत करना इसवलए ज़रूरी है वक अक्सर लोग भाषाओ ं को वस्र्र तत्त्िों के रूप में ग्रहण करते हैं और उनके बारे में रूढ़ िारणाएँ बना लेते हैं । भाषा और समाज से जड़ु े अन्य अनेक पहलू भी हैं , वजनकी चचाथ अगले उपशीषथकों में की जाएगी । 1.5 भाषा एवं जेंडर भाषा और समाज पर विचार करते समय इससे जड़ु े एक अन्य अहम् मद्दु े की तरफ हमारा ध्यान स्िाभाविक तौर पर चला जाता है , िह है भाषा और जेंडर का ररश्ता । इस मद्दु े की प्रिानता का अदं ाजा हम इस बात से लगा सकते हैं वक इस सन्दभथ में आिार पत्र दजथ करता है , ‘जेंडर का मुद्दा आिी निीं बहल्क पूरी मानवता का मुद्दा िै । समय करे साि भाषा ने अपनी बुनावट में कई तत्त्वों को समाहित कर हलया िै जो जेंडर के रहत रूहढ़यों को लगातार पोहषत करती आ रिी िै ।...न हसर्ा हवद्वानों ने , बहल्क भाषाहवदों ने भी भाषा को `तुच्छ’ व् `मोहतयों के िार’ की उपमा तो दी िै हजससे कोई मित्त्वपण ू ा बात सामने निीं आती , हकन्तु वाक्यगत व कोि के स्तर पर अहभव्यहियों में जेंडर- पूवााग्रि झलक जाते िैं । स्त्री – पुरुष के बीच की बातचीत के सूक्ष्म हवश्ले षण से भी ज्ञात िुआ िै हक कै से परुु ष अपनी बात को लादने के हलए भाहषक खेल खेलते िैं ।’ (आिार पि, 2009:6, , भारतीय भाषाओ ां का हिक्षण , एन.सी.ई.आर.टी., नई हदल्ली)। कहना न होगा भाषा और जेंडर सबं िं ी अध्ययन के अनेक पहलू हो सकते हैं । समाज के प्रचवलत नामों में आसानी से शधदों में पैठे भेदभाि की मौजदू गी नज़र आती है । जैसे – मनचरू नी (मन को चरू करने िाली ), अणछाई बाई(न चाहते हुए भी पैदा होने िाली) , कावमनी , अवन्तमा जैसे नामों में यह बात नज़र आती है । ऐसे नाम परुु षों के नहीं होते , यवद होते भी हैं तब उसके पीछे का भाि नकारात्मकता नहीं होता । जैसे – घरू ा , हजारी आवद । इस तरह के नामों के पीछे अमगं ल को दरू कर मगं ल के भाि की कामना सवक्रय है । अनेक शधदों के स्त्रीवलंग रूप हैं ही नहीं । जैसे – राष्ट्रपवत , प्रिानमन्त्री (वहन्दी), उसी तरह नीचे वलखे अग्रं ेजी शधदों को देखा जा सकता है – उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 8 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4  श्रमशवक्त Manpower  साहस Manfully  मानिता Mankind  श्रम के घटं े Manhour  प्रबंि करना Manage आवद । जावहर है इन शधदों के वहन्दी पयाथय नहीं हैं । भाषा और जेंडर के सन्दभथ में एक और महत्त्िपणू थ सन्दभथ पर ध्यान देने की ज़रूरत है । िह है – पाठ्यपस्ु तकों की संस्कृ वत में मौजदू जेंडर सन्दभथ । पाठयपस्ु तकों में सम्बोिन के स्तर पर लड़वकयाँ ग़ायब हैं । अक्सर यह दलील दी जाती है वक `छात्र’ सम्बोिन में छात्राएँ शावमल हैं । परम्परा ने इस दलील को िैि ठहराने के वलए एक व्याकरवणक वनयम को गढ़ा है `एकशेष’ । अर्ाथत एक में शेष शावमल है । पर सिाल है , िह एक स्त्रीवलगं क्यों नहीं है ? मान लीवजए यवद लड़कों / छात्रों की जगह लड़की / छात्रा सम्बोिन प्रयोग में लाया जाय तो क्या स्त्रीवलंग सम्बोिनों में पवु ललंग सम्बोिन को शावमल मान वलया जाएगा ? यवद नहीं तो छात्र / लडके में छात्रा / लड़वकयाँ शावमल मान लेने की गैर बराबरी की परम्परा को वमटा देना चावहए । प्रश्न यह है वक इसका समािान क्या है ? एक रास्ता यह हो सकता है , वजसे अर्थशास्त्री अमत्यथ सेन ने अपनाया है । िे कहीं पवु ललंग तो कहीं स्त्रीवलंग का प्रयोग करते हैं । दसू रा रास्ता पाउले फ्रेरे का है । उन्होंने आदमी के स्र्ान पर मानि जावत एिं स्त्री और परुु ष प्रयोग करना शरू ु वकया । लोकतावं त्रक समाज को रचाने में भाषा की महत्त्िपणू थ भवू मका होती है ,वलहाजा उस विचार के पक्ष में सवक्रय होना अपररहायथ है , वजसमें सभी के सम्िैिावनक हकों की जगह सवु नवित हो । 1.6 भाषा एवं शांतत राष्ट्रीय पाठयचयाथ की रूपरे खा 2005 ने मौजदू ा दौर की ज़रूरतों के मद्देनज़र अध्ययन की दवु नया में वजस नयी अििारणा को शावमल वकया , िह है , `शावन्त के वलए वशक्षा’ । भाषा और सावहत्य से शावन्त के वलए वशक्षा की अििारणा का क्या सम्बन्ि है , इसे समझने के वलए पहले यह जानना ज़रूरी है वक `शांवत के वलए वशक्षा’ की अििारणा क्या है । राष्ट्रीय फोकस समहू के आिार पत्र की इस संदभथ में की गई वटपण्णी ध्यान देने लायक है, ‘ऐहतिाहसक रूप से नैहतक हिक्षा और मूल्य हिक्षा िाहां त के हलए हिक्षा के पवू ाज िैं । इनमें काफ़ी कुछ एक-सा िै ।.....िाहन्त के हलए हिक्षा में मूल्य हिक्षा भी समाहित िै , लेहकन दोनों एक िी निीं िैं िाहन्त मूल्यों की सांगहत के हलए रासांहगक तौर पर उपयुि और लाभदायक हिक्षािास्त्रीय हबांदु िै । िाांहत मूल्यों के उद्देश्यों को ठोस रूप देती िै उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 9 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 और उनके आन्तरीकरण को रेररत करती िै ।’ (आिार पि, 2010:1, , िाहन्त के हलए हिक्षा , एन.सी.ई.आर.टी., नई हदल्ली)। आिार पत्र वशक्षायी दवु नया की वचंताओ ं को दजथ करते हुए इस वशक्षा की अहवमयत को रोशन करता है , वजस पर एक नज़र डालना मनु ावसब होगा , हिक्षा हनयहत के सािा राष्र की भेंट िै । िम देि का ॠण ऐसी हिक्षा देकर चुका सकते िैं जो भारत की सम्प्पूणाता और स्वास््य के हलए लाभकारी िो । राष्रीय एकता , हवकास एवां तरक्की के हलए िाहन्त पिली आवश्यकता िै । टकराव िमारी सामूहिक ऊजाा का अपव्यय कराते िैं और भौहतक सांसािनों की उपलब्िता के बावजूद जीवन की गुणविा के ताने-बाने को हबखेर देते िैं । िाहन्त के हलए हिक्षा को कायारूप में लाना हसर्ा टकरावों के समािान और उनकी रोकिाम के हलए उपयुि रणनीहत निीं िै, अहपतु यि `िमारे सपनों के भारत’ को वास्तहवकता में उतारने के हलए आगे बढ़कर हकया जानेवाला हनवेि भी िै । िर दौर में िर समाज ने िाहन्त को एक मिान और आवश्यक आदिा माना िै ।..... यि व्यहि हविेष के हलए िाांहत पाने का कोई सन्दभा निीं , बहल्क सारे लोगों के िाहन्त के रहत िमारी रहतबद्धता िै । सभी की िहन्त की अनदेखी करनेवाले जो भी पिलू िैं, उन्िें पिचानाने, उनकी हनांदा करने , उनका रहतरोि करने और उन्िे४ण जड़ से समाप्त करने का िैया भी इसमें िाहमल िै ।’ (आिार पि, 2010:4, , िाहन्त के हलए हिक्षा , एन.सी.ई.आर.टी., नई हदल्ली)। सिाल है वक इसमें भाषा की क्या भवू मका है । दरअसल भाषा वशक्षक / वशवक्षका के वलए कक्षायी और विद्यालयी पररिेश में उन गवतविवियों के सृजन की सम्भािनाएँ अविक हैं , वजनके बल पर शावन्त की वशक्षा के हक़ में प्रयास सम्भि हैं । कुछ संभावित अिसरों का वज़क्र आिार पत्र करता है –  कठपतु वलयों का प्रयोग करते हुए उवचत शधदों एिं मद्रु ाओ ं की सहायता से यह प्रदवशथत करें वक द्वद्वं ों के हल शांवतपणू थ ढंग से कै से होते हैं ।  विरोिाभास को व्याख्यावयत कीवजए : हर कोई शावं तपणू थ ससं ार चाहता है , लेवकन संसार ऐसा नहीं है । क्यों ? उन कारकों/बािाओ ं का उललेख कीवजए जो शावन्त की राह में आते हैं ।  तस्िीर पर आिाररत कहानी,कविता, विचार को चाटथ पर प्रदवशथत करना । िास्तविक होने के अलािा कहानी कोई सामावजक या नैवतक संदेश देने िाली भी हो सकती है ।  दसू रों के प्रवत संिदे नशील , सहनशील होने पर भी कहानी वलखना । विवभन्न विषयों पर अखबारों की वक्लवपगं , पवत्रका , लेख इकट्ठे करना । दीिार पवत्रका बनाना । उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 10 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4  ईमानदारी और कड़ी मेहनत जैसे मलू य दशाथने िाली कविता या गीत का सृजन करना । वहसं ा के वशकार लोगों की ददु थशा में अपने होने की कलपना करना । उदाहरण : आप ररश्वत दे रहे हैं , आपको शमथशार वकया गया , वकसी का जीिन खतरे में है , इस भय में जीना , लाल फीताशाही का वशकार होना इत्यावद । यह बताना वक पीवड़त होने का क्या अर्थ है ? (आिार पत्र, 2010:12-13 , शावन्त के वलए वशक्षा , एन.सी.ई.आर.टी., नई वदलली) । कहना न होगा एक बेहतर अध्यापक/ अध्यावपका के कौशल का यह एक महत्त्िपणू थ भाषायी पक्ष है , वजससे शावन्त के वलए वशक्षा के मलू यों को हावसल करने में सहूवलयत हो सकती है । 1.7 गृह-भाषा एवं तवद्यालय की भाषा भाषा के बारे में हमारी प्रचवलत समझ यह है वक घर की भाषा और विद्यालय की भाषा में पयाथप्त दरू ी होनी चावहए । यह भी वक घरे लू भाषाओ ं से मानक भाषा की प्रिीणता पर बरु ा असर पड़ता है घर की भाषा में व्याकरवणक वनयमों की अिहेलना होती है । जाने – अनजाने घर की भाषा और विद्यालय की भाषा के बीच एक दीिार खड़ी कर दी जाती है । जबवक सच ठीक इसके उलट है । दरअसल बच्चे – बच्ची विद्यालय में आने के पहले वजस भाषा के बल पर विकास प्रवक्रया से संबद्ध होते हैं , उनका बेहतर कक्षायी उपयोग सम्भि है । बहुभावषकता का संबंि ऐसी ही पररवस्र्वतयों से है । घरे लू भाषा और विद्यालय की भाषा में आिाजाही की सहूवलयत हो , तब विद्यावर्थयों के सीखने की क्षमता में आियथजनक िृवद्ध होती है । विद्यावर्थयों के स्कूल छोड़ने के बहुत सारे कारणों में एक कारण यह भी होता है वक घर की भाषा और स्कूल की भाषा में उसे गहरी खाई नज़र आती है । घर की भाषा में अपने विचार प्रकट करने की आज़ादी से उसकी वझझक खत्म होती है । घर की भाषा और स्कूल की भाषा में संिाद का यह अर्थ कतई नहीं है वक व्याकरण के वनयमों की अिहेलना की जाय । इसका मतलब वसफथ इतना है वक व्याकरण के समान तत्त्िों का रचनात्मक उपयोग वकया जाय । राष्ट्रीय पाठ्यचयाथ की रूपरे खा 2005 इस सन्दभथ में हमारा मागथदशथन करते हुए बताती है वक घर की भाषा और विद्यालय की भाषा का सिं ाद अनेक शैवक्षक उपलावधियों का कारक बन सकता है । 1.8 भाषा का महत्व एवं पाठ्यक्रम में उसका स्र्ान भाषा एक माध्यम है , वजसका उपयोग हम वज़न्दगी को समझने , उससे जड़ु ने और जीिन जगत को प्रकट करने के वलए करते हैं । पर सिाल यह है वक इनके वलए वकन भाषाई योग्यताओ ं की ज़रूरत होती है । इनमें से कुछ की पहचान हम जांच – पड़ताल , तकथ , संप्रेषण जैसे कौशलों के रूप में कर सकते हैं । सार् ही बहुभावषकता हमारी पहचान है और हमारी सभ्यता , सस्कृ वत का वहस्सा भी । आज वहदं ी की जो उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 11 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 सस्ं कृ वत फली – फूली है , उसके पीछे अनेक भाषाओ ं की भवू मका रही है । वलहाजा यह ज़रूरी है वक वहदं ी वशक्षण का दायरा इतना विस्तृत होना चावहए वक भाषा के इन उपयोगों से उसका ररश्ता न टूटे । समाज में भाषा के अनेक रूप प्रचवलत हैं । रे वडयो , टेलीविजन , अखबार , पोस्टर , विज्ञापन , इटं रनेट की वहदं ी के सार् ही सावहवत्यक वहदं ी भी भाषा के अनेक रूपों में शावमल है । उसी तरह भाषा की वनयमबद्ध व्यिस्र्ा के आलोक में भी भाषा वशक्षण की पररवि को समझना ज़रूरी है । वहदं ी के इन व्यापक और विविि रूपों की गहरी समझ का विकास भाषा वशक्षण के विविि पहलू हैं । इसी तरह भाषा की ताकत से पररवचत होना भी इस स्तर के विद्यार्ी के वलए अपेवक्षत है । सन्दभथ और ज़रूरतों के मतु ावबक़ औपचाररक / अनौपचाररक भाषा के विवभन्न रूपों से पररवचत होना , विवभन्न वकस्म की भाषा शैवलयों से पररवचत होना , िे जो सोचते / सोचती हैं उन्हें सन्ु दर , प्रभािशाली और व्यंजनात्मक तरीके से अवभव्यक्त करना भी भाषा वशक्षण के उललेखनीय पहलू हैं । वनम्नांवकत अितरण भाषा के महत्ि एिं पाठ्यक्रम में उसके स्र्ान को बखबू ी प्रकट करता हैं- हवद्यािी का भाषा – बोि और साहिहययक – बोि इस सीमा तक हवकहसत िो जाए हक उसमें हकसी रचना के बारे में स्वतांि राय बनाने का आयमहवश्वास पैदा िो सके । वि पाठ्यपस्ु तकों की पररहि के बािर भी हकसी रचना से जुड़कर उस पर भावनायमक और बौहद्धक रहतिया कर सके । वि तरि – तरि के औपचाररक व अनौपचाररक हवषयक्षेिों में रयुि िोने वाली भाषा के रूपों से पररहचत िो और उसका रयोग कर सके । वि सन्दभा और आवश्यकता के अनुसार हवहभन्न हकस्म की िैहलयों से पररहचत िो सके । हवद्याहिायों को भाषा की ताकत का अिसास िो । वि इस बात को समझे हक भाषा के माध्यम से िम के वल सरां ेषण िी निीं करते िैं , उसे सुन्दर, रभाविाली , व्यांजनायमक और पैने ढांग से अहभव्यि करने के हलए भाषा एक सिि सािन िै । - 9.2005 , पाठ्यिम - भाषा हिदां ी , राष्रीय िैहक्षक अनुसन्िान और रहिक्षण पररषद् इस प्रकार पाठ्यक्रमों का विकास अनेक भाषाई दक्षताओ ं को अपने भीतर समेटे हुए है । 1.9 अतिगम में भाषा की प्रिानता भाषा महज सम्प्रेषण का सािन नहीं है । दरअसल िह एक ऐसा माध्यम भी है , वजसके आिार पर हम जीिन – जगत की अविकाँश जानकारी प्राप्त करते हैं । भाषा की पहचान हम एक ऐसी व्यिस्र्ा के रूप में कर सकते हैं जो बहुत हद तक हमारे आस-पास की िास्तविकताओ ं और घटनाओ ं को हमारे वदमाग में व्यिवस्र्त करती है । इससे न के िल हमारी पहचान बनती है , यह समाज , सत्ता और ताक़त से हमारे ररश्ते के स्िरूप को भी प्रकट करती है । हम के िल दसू रों से बात करने के वलए ही नहीं , बवलक खदु से बात करने के वलए भी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं । विवभन्न विषयों की समझ भाषा में ही बनती है । उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 12 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 इस तरह अविगम का के न्द्रीय तत्त्ि भाषा ही है । सभी विषयों का अध्यापक भाषा का अध्यापक होता है । अििारणाएँ , संकलपनाएँ भाषा से मतू थ होती हैं । अविगम में भाषा की महत्ता वकतनी है , इसे और बेहतर ढंग से समझने के वलए वनम्नांवकत अितरण को देखना मौजू होगा – ‘रारहम्प्भक हिक्षा की पूरी पाठ्यचयाा में भाषा का परररेक्ष्य हविेष मित्त्व रखता िै । हवहभन्न अिापण ू ा सन्दभों के जररए िी भाषा सबसे अच्छे तरीक़े से सीखी जा सकती िै , इसीहलए िर हवषय का हिक्षण एक अिा में भाषा हिक्षण िी िै । यि परररेक्ष्य माध्यहमक हिक्षा के अमूता हवचारों के सन्दभा में भाषा की के न्द्रीयता को रेखाांहकत करता िै ।जिााँ िुरुआती स्तर पर सदां भागत अिा भाषा रयोग को बढ़ावा देते िैं विीं बाद के स्तरों पर भाषा के जररए अिा को पाया जा सकता िै । भाषा हिक्षा के कें द्र में िै और िर अध्यापक पिले भाषा का िै हर्र हवषय का ।’- 27:2010, समझ का माध्यम , राष्रीय िैहक्षक अनस ु न्िान और रहिक्षण पररषद् । सच तो यह है वक अविगम के वकसी भी पहलू के वलए भाषा अवनिायथ तत्त्ि है । 1.10 एक तवद्यालयी तवषय के रुप में हहदी भाषा एवं अतिगम तर्ा संप्रेषण के माध्यम के रुप में हहदी भाषा के मध्य अंतर भाषा परू ी पाठ्यचयाथ में विद्यमान रहती है । वशक्षा की दवु नया में मख्ु य रूप से भाषा के दो रूप मौजदू हैं । एक विषय के रूप में दसू रे अन्य विषयों के सम्प्रेषण माध्यम के रूप में । जब भाषा के रूप में वहन्दी की बात होती है , तब उसका अर्थ है वहन्दी के व्याकरवणक , सौन्दयाथत्मक और सृजनात्मक रूप को समझना। इसके अतं गथत सनु ना , बोलना , पढ़ना और वलखना जैसे विवभन्न भाषायी कौशलों के अजथन के सार् ही , विवभन्न सावहवत्यक वििाओ ं का अध्ययन – अध्यापन शावमल हो जाता है । जैसे ही हम अविगम और सम्प्रेषण माध्यम के रूप में वहन्दी भाषा कहते हैं तब उसकी भवू मका अििारणाओ ं को स्पष्ट करने , सकं लपनाओ ं को मतू थ करने िाले माध्यम के रूप में स्पष्ट होती है । तकनीकी शधद , िैज्ञावनक शधद , पाररभावषक शधद आवद इसी दवु नया के वहस्से हैं । 1.11 सारांश इस इकाई के अध्ययन के बाद भाषा की विस्तृत दवु नया से आपका पररचय हुआ । आपने समझा भाषा अवभव्यवक्त का माध्यम भर नहीं है । यह रचनात्मकता को सम्भि करने का सबसे महत्त्िपूणथ औजार है । इस इकाई के विस्तृत अध्ययन के बाद आपने बखबू ी समझा –  भाषा सृजन की वजस प्रवक्रया को जन्म देती है , उसमें ध्िवन-प्रतीकों को रचने की क्षमता होती है।  भाषा अवस्मता वनमाथण का माध्यम होती है । उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 13 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4  भाषा और जेंडर की समझ एक सहभागी अविगम ससं ार को रचने में सहायक है ।  बहुभावषकता के प्रवत संिदे नशील नज़ररया वशक्षक / वशक्षका को विद्यावर्थयों से संिाद में सहूवलयत प्रदान करता है ।  भाषा में वनयमबद्धता होती है ।  एक विषय के रूप में भाषा ( वहदं ी ) और अन्य विषयों के माध्यम (वहदं ी माध्यम ) के रूप में भाषा के विविि सन्दभथ हैं । 1.12 सन्दभथ ग्रंर् सूची 1. भारतीय भाषाओ ं का वशक्षण , एन.सी.ई.आर.टी., नई वदलली ,2009 2. भाषा की बवु नयाद तर्ा अिबोिन , वदशाबोि , अक ं 2 , वसतम्बर –अक्टूबर , 2005 समांतर , जयपरु 3. आिार पत्र , भारतीय भाषाओ ं का वशक्षण , एन.सी.ई.आर.टी., नई वदलली),2009 4. आिार पत्र, शावन्त के वलए वशक्षा , एन.सी.ई.आर.टी., नई वदलली) 2009 5. पाठ्यक्रम - भाषा वहदं ी , राष्ट्रीय शैवक्षक अनसु न्िान और प्रवशक्षण पररषद् 2005 6.समझ का माध्यम , राष्ट्रीय शैवक्षक अनसु न्िान और प्रवशक्षण पररषद् 2010 । रयास उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 14 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 इकाई 2 - हिंदी भाषा विक्षण : एक पविचय 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्देश्य 2.3 वहदं ी वशक्षण: एक पररचय 2.4 वहदं ी भाषा वशक्षण के उद्देश्य 2.5 भाषा विज्ञान तर्ा वहदं ी वशक्षण 2.5.1 ध्िवन विज्ञान एिं वहदं ी वशक्षण 2.5.2 रुप विज्ञान एिं वहदं ी वशक्षण 2.5.3 िाक्य विज्ञान एिं वहदं ी वशक्षण 2.5.4 अर्थ विज्ञान एिं वहदं ी वशक्षण 2.6 वहदं ी वशक्षण की समस्याएँ एिं चनु ौवतयाँ 2.7 सारांश 2.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.9 सदं भथ ग्रर्ं सचू ी एिं सहयोगी ग्रर्ं 2.10 वनबिं ात्मक प्रश्न 2.1 प्रस्तावना इस खंड के इकाई एक में आपने वहदं ी भाषा एिं उसके विविि पक्षों का अध्ययन वकया। प्रस्ततु इकाई वहदं ी वशक्षण के सैद्धांवतक पक्षों से संबंवित है। ज्ञान की वकसी भी शाखा के दो पक्ष होते हैं - सैद्धांवतक एिं व्यािहाररक । ये दोनों पक्ष एक-दसू रे के परू क हैं। एक के वबना दसू रे की वशक्षा परू ी नहीं हो सकती । वहदं ी वशक्षण को प्रभािी बनाने के वलए प्रवशक्षु वशक्षकों को वहदं ी वशक्षण के सैद्धावं तक पक्ष का ज्ञान कराना आिश्यक है। वहदं ी वशक्षण के सैद्धांवतक पक्षों का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। एक अध्याय में समस्त पक्षों का िणथन संभि नहीं है। प्रस्तुत इकाई की रचना का उद्देश्य प्रवशक्षु-वशक्षकों को वहदं ी वशक्षण का संवक्षप्त पररचय देना, ितथमान वहदं ी वशक्षण के उद्देश्यों से पररवचत कराना, स्ियं के वहदं ी वशक्षण कायथ के वलए उद्देश्यों को वनिाथररत करने के योग्य बनाना, भाषा विज्ञान के विवभन्न अगों यर्ा ध्िवन विज्ञान, रुप विज्ञान, िाक्य विज्ञान, अर्थ विज्ञान आवद की वहदं ी वशक्षण में भवू मका की जानाकारी प्रदान करना तर्ा वहदं ी उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 15 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 वशक्षण की समस्याओ ं एिं चनु ौवतयों से अिगत कराना है। शेष तर्थयों को अन्य इकाइयों में प्रस्ततु वकया गया है। इस इकाई की रचना इसी उद्देश्य से की गई है। 2.2 उद्देश्य इस इकाई के अध्ययन के पिात आप - 1. वहदं ी वशक्षण का पररचय दे सकें गे। 2. वहदं ी भाषा वशक्षण के उद्देश्यों की चचाथ कर सकें गे । 3. भाषा विज्ञान तर्ा वहदं ी वशक्षण के मध्य सबं वं ित कर सकें गे । 4. वहदं ी वशक्षण की समस्याओ ं एिं चनु ौवतयों का िणथन कर सकें ।गे। 2.3 हहदी तशक्षण: एक पतरचय वहदं ी भारत की राजभाषा एिं राष्ट्रभाषा है। राष्ट्रभाषा से आशय उस भाषा से होता है जो वकसी राष्ट्र के एक बड़े भ-ू भाग में या जनसंख्या के एक बड़े भाग द्वारा बोली जाती है। भारतीय पररदृश्य में यह सम्मान वहदं ी को प्राप्त है। भारत के लगभग सभी राज्यों एिं संघशावसत प्रदेशों में वहदं ी कम य अविक मात्रा में बोली जाती है। उत्तर प्रदेश, वबहार, मध्य प्रदेश, राजस्र्ान, हररयाणा, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, वदलली, उत्तराखडं , वहमाचल प्रदेश, चण्डीगढ़ आवद को वहदं ी भाषी क्षेत्र के रुप में जाना जाता है। वनम्नवलवखत मानवचत्र का अिलोकन भारत में वहदं ी भाषी क्षेत्र को और स्पष्ट करता है। मानवचत्र में जो वहस्सा लाल रंग से वदखाया गया है उस वहस्से में वहदं ी भाषा या उसके विवभन्न रुप का प्रयोग वकया जाता है। उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 16 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 हचि 1: भारत के हिदां ी भाषी क्षेि (स्रोत: गगू ल मानहचि) राजभाषा वकसी राष्ट्र या राज्य के प्रशासवनक कायों की भाषा को कहते हैं। भारतीय संवििान के अन०ु 343 ‘त’ में वहदं ी को भारत के राजभाषा के रुप में प्रवतवष्ठत वकया गया है। इस प्रकार, भारत की राजभाषा एिं राष्ट्र भाषा दोनों ही वहदं ी है। िैश्वीकरण के कारण विश्व के सभी देश एक-दसू रे के सम्पकथ में आए और सार् ही उन देशों की भाषाएँ भी एक-दसू रे के सम्पकथ में आयीं। पररणामस्िरुप विवभन्न भाषाओ ं के क्षेत्र में विस्तार हुआ। वहदं ी भी भारत से बाहर वनकली और विश्व के विवभन्न देशों में फै ल गई। इस प्रकार वहदं ी ितथमान पररदृश्य में एक महत्िपूणथ भाषा है। जनमानस का इससे बड़ा ही गहरा लगाि है। अतः, इसका अध्ययन-अध्यापन प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। प्राचीन काल से यहाँ आशय िैवदक काल से नहीं है। उन्नीसिीं शताधदी से वहदं ी भाषा उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 17 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 का अध्ययन-अध्यापन माना जा सकता है। आज भारत में वहदं ी भाषा का वशक्षण मख्ु यतः तीन रुपों में होता है -  मख्ु य भाषा के रुप में  गैर वहदं ी भाषी राज्यों तर्ा सघं शावसत प्रदेशों में वद्वत्तीय भाषा के रुप में; तर्ा  विदेवशयों के वलए विदेशी भाषा के रुप में । वहदं ी भाषा का वशक्षण तो अिश्य हो रहा है लेवकन उसे रुवचकर नहीं बनाया जा रहा है। ितथमान पररिेश में भारत के वकसी भी वशक्षण संस्र्ान में वहदं ी के अध्ययन-अध्यापन को लेकर विद्यावर्थयों एिं वशक्षकों में दो तरह की प्रवतवक्रयाएँ देखने को वमलती हैं। प्रर्म, ‘वहदं ी ही है’ और दसू री, ‘वहदं ी! क्या बकिास है यार’। अब इन दोनों प्रवतवक्रयाओ ं पर यवद दृवष्टपात वकया जाय तो इनसे वहदं ी भाषा के प्रवत गभं ीरता का अभाि एिं नीरसता तर्ा उपेक्षा पररलवक्षत होती है। हाँ विदेशी भाषा के रुप में इसके वशक्षण-अविगम कायथ में शावमल व्यवक्तयों में रुवच अिश्य वदखती है। वकसी भी विषय के वशक्षण के तीन अगं होते हैं - वशक्षार्ी, वशक्षक एिं वशक्षण-सामग्री। अतः, वहदं ी वशक्षण के भी उपरोक्त तीन अंग है। वशक्षण को रुवचकर बनाने में अन्य पक्षों के सार् इन तीनों अगं ों की भी भवू मका होती है। वशक्षार्ी जो वशक्षण-प्रवक्रया के कें द्र में होते हैं िो वहदं ी भाषा को रोजगारोत्पादक नहीं मानते हैं और इस विषय के अविगम में रुवच नहीं वदखाते हैं। उनकी इस अरुवच के और भी कारण है। यर्ा वशक्षकों की अरुवच, पारंपररक वशक्षण विवियों एिं वशक्षण-सामवग्रयों का प्रयोग आवद। वशक्षावर्थयों में अरुवच वशक्षकों में अरुवच की मात्रा को और बढ़ा देता है। अतः, वहदं ी भाषा वशक्षण भाषा की ितथमान प्रवस्र्वत जो वक शैक्षवणक संस्र्ानों की समय साररणी की शोभा बनकर रह गई है को निीन वशक्षण विवियों तर्ा सचू ना एिं संचार तकनीकी के प्रयोग द्वारा इसे पनु जीवित करना होगा तावक इसकी प्रवस्र्वत को सशक्त वकया जा सके । अभ्यास रश्न 1. भारत की राजभाषा क्या है? 2. भारतीय संवििान के वकस अनुच्छे द में भारत की राजभाषा का िणथन है? 3. भारत के वहदं ी भाषी कहे जानेिाले राज्यों के नाम बताएँ। 4. भारत में वहदं ी भाषा वशक्षण वकतने रुपों में होता है? 5. वकसी भी वशक्षण के मख्ु यतः वकतने अगं होते हैं? उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 18 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 2.4 हहदी भाषा तशक्षण के उद्देश्य एक भाषा एक राष्ट्र के सिाांगीण प्रगवत, उसके अवस्मता का द्योतक होती है। यह वसफथ ज्ञान की एक शाखा ही नहीं िरन राष्ट्र के मान-सम्मान का सचू क, राष्ट्रीय एकता एिं अखडं ता का िाहक एिं ज्ञान की अन्य शाखाओ ं के अजथन का माध्यम है। अतः, भाषा वशक्षण के उद्देश्य का वनिाथरण बहुत ही साििानी के सार् होना चावहए। वहदं ी भाषा वशक्षण के सार् तो यह बात और भी महत्िपणू थ हो जाती है क्योंवक वहदं ी भाषा अपने ही घर में संकट के दौर से गजु र रही है। अतः, जब भी वहन्दी वशक्षण के उद्देश्यों की बात की जाती है तो दो महत्िपणू थ प्रश्न सामने आते हैं:  वहदं ी वशक्षण के ितथमान उद्देश्य क्या है?  वहदं ी वशक्षण के उद्देश्य क्या होने चावहए? आइए बारी-बारी से इन प्रश्नों के उत्तर पर चचाथ करें । पहले वहदं ी वशक्षण के ितथमान उद्देश्यों की चचाथ करते हैं। ये उद्देश्य वनम्नवलवखत हैं: i. विद्यावर्थयों को वहदं ी भाषा के विवभन्न ध्िवन रुपों के शद्ध ु उच्चारण को समझने एिं उनका शद्ध ु उच्चारण करने के योग्य बनाना; ii. शधदों के शद्ध ु उच्चारण को समझने एिं उनका शद्ध ु उच्चारण करने के योग्य बनाना; iii. िणथ एिं शधद पढ़ने की क्षमता का विकास करना; iv. िणों और शधदों को वलखने की क्षमता का विकास करना ; v. िाक्य पढ़ने एिं वलखने की क्षमता का विकास करना; vi. विराम वचन्हों के सही प्रयोग को समझना एिं लेखन कायथ में उनका प्रयोग करने की क्षमता का विकास करना; vii. व्याकरण का समवु चत ज्ञान प्रदान करना; तर्ा viii. नैवतक मलू यों का विकास करना। इस प्रकार, हम संक्षेप में कह सकते हैं वक वहदं ी वशक्षण के सामान्य उद्देश्य श्रिण, िाक, पठन एिं लेखन कौशलों का विकास है। इन उद्देश्यों को हम तीन िगों में िगीकृ त कर सकते हैं। ये तीन िगथ वनम्नवलवखत है: i. ग्रह्यात्मक उद्देश्य - बालक का भाषा विशेष के प्रवत सम्यक समझ का विकास करना ग्रह्यात्मक उद्देश्य कहलाता है। ii. अवभव्यंजनात्मक उद्देश्य - भाषा को अपने शधदों में व्यक्त करने की क्षमता के विकास को भाषा का अवभव्यंजनात्मक उद्देश्य कहते हैं। iii. सृजनात्मक उद्देश्य - वहदं ी में रचनात्मक कायथ करने की दक्षता का विकास करना वहदं ी वशक्षण का सृजनात्मक उद्देश्य माना जाता है। उत्तराखण्ड मक्त ु विश्वविद्यालय 19 हिन्दी का हिक्षणिास्त्र (भाग I) CPS 4 वहद?

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