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पनु रागमन श्री श्री गरुु -गौराङ्गो जयत : पुनरागमन पुनर्जन्म का विज्ञान...

पनु रागमन श्री श्री गरुु -गौराङ्गो जयत : पुनरागमन पुनर्जन्म का विज्ञान कृ ष्णभावनामृत संघ के संस्थापकाचायय कृ ष्णकृ पामर्ू तय श्री श्रीमद् ए.सी. भवििेदान्त स्िामी प्रभपु ाद की विक्षाओ ं पर आधाररत भवििेदान्त बुक ट्रस्ट कृष्णकृपामूवतिं श्री श्रीमद् ए.सी. भवििेदान्त स्िामी प्रभुपाद द्वारा विरवित िैवदक ग्रंथरत्न : 1 पनु रागमन श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप श्रीमद्भागवतम् (18 भागों में) श्रीचैतन्य-चररतामृत (9 भागों में) लीला परुु षोत्तम भगवान् श्रीकृ ष्ण भर्िरसामृतर्सन्धु भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु का र्िक्षामृत श्रीउपदेिामृत श्रीईिोपर्नषद् अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा भागवत का प्रकाि आत्म-साक्षात्कार का र्वज्ञान कृ ष्णभावनामृत : सवोत्तम योगपद्धर्त पणू य प्रश्न पणू य उत्तर भगवान् कर्पल का र्िक्षामृत महारानी कुन्ती की र्िक्षाएँ राजर्वद्या - ज्ञान का राजा जीवन का स्रोत जीवन जन्म-मृत्यु से परे – पनु जयन्म योगपथ – आधर्ु नक यगु के र्लए योग योग की पणू यता नारद भर्ि-सत्रू गीतासार गीतार गान (बंगला) भगवद्दियन पर्त्रका (सस्ं थापक) अर्धक जानकारी तथा सचू ीपत्र के र्लए र्लखें : 2 पनु रागमन भवििेदान्त बुक ट्रस्ट, हरे कृष्ण धाम, र्ुहू, मुंबई 400 049 ये पस्ु तकें हरे कृ ष्ण के न्रों पर भी उपलब्ध हैं। कृ पया अपने र्नकटस्थ के न्र से सम्पकय द इस ग्रंथ की र्वषयवस्तु में र्जज्ञासु पाठकगण अपने र्नकटस्थ र्कसी भी इस्कॉन के न्र से अथवा र्नम्नर्लर्खत पते पर पत्र-व्यवहार करने के र्लए आमंर्त्रत हैं : भर्िवेदान्त बक ु ट्रस्ट 3 पनु रागमन हरे कृ ष्ण धाम जहु ू, मबंु ई 400041 Web / E-mail www.indiabbt.com admin(a)indiabbt.com Coming Back (Hindi) 1st printing in India: 10,000 copies 2nd to 20th printings: 2.96,000 copies 21th Printing, August 2015:30,000 copies (C) 1983 भर्िवेदान्त बुक ट्रस्ट सवायर्धकार सुरर्क्षत ISBN: 978-93-82.716-94-5 प्रकािक की अनमु र्त के र्बना इस पस्ु तक के र्कसी भी अंि को पनु रुत्पार्दत, प्रर्तर्लर्पत नहीं र्कया जा सकता। र्कसी प्राप्य प्रणाली में संग्रर्हत नहीं र्कया जा सकता अथवा अन्य र्कसी भी प्रकार से चाहे इलेक्ट्ट्रोर्नक, मेकेर्नकल, फोटोकॉपी, ररकार्डिंग से संर्चत नहीं र्कया जा सकता। इस ितय का भंग करने वाले पर उर्चत कानूनी काययवाही की जाएगी। भर्िवेदान्त बक ु ट्रस्ट द्वारा प्रकार्ित एवं मर्ु रत। AL3T “मेरा र्वश्वास है र्क पनु जयन्म एक सत्य है, और यह र्क जीवन का आर्वभायव मृत से होता है और मृत लोगों की आत्माएँ अर्स्तत्व में होती हैं।' -सकु रात “आत्मा मनष्ु य देह में बाहर से आती है, जैसे एक अस्थायी र्नवास में, तथा र्फर से बाहर चली जाती है अन्य स्थानों में, क्ट्योंर्क आत्मा अमर है।' 4 पनु रागमन -राल्फ वाल्डो इमसयन जनयल्स ऑफ राल्फ वाल्डो इमसयन 'मैंने अपना जीवन तब प्रारम्भ नहीं र्कया जब मैंने जन्म र्लया, न ही जब मैंने गभय में प्रवेि र्कया। मैं अनेक, असंख्य यगु ों में बढ़ता और र्वकर्सत होता रहा हूँ मेरी सारी पूवय-आत्माओ ं की ध्वर्नयाँ, प्रर्तध्वर्नयाँ और प्रेरणाएँ मझु में हैं ओह, मैं असंख्य बार पुन: पैदा होऊँगा।' -जेक लंडन र्द स्टार रोवर 'मृत्यु होती ही नहीं। यर्द प्रत्येक वस्तु ईश्वर का ही अंि है, तो मृत्यु हो ही कै से सकती है? आत्मा तो कभी मरता नहीं, और िरीर कभी सचमचु में जीर्वत होता ही नहीं है।' -ईसाक बेिेर्वस र्संगर नोबेल परु स्कार र्वजेता र्बहाइन्ड र्द स्टॉव की कहार्नयों में से V “उसने इन सभी रूपों और चेहरों को सहस्रों सम्बन्धों में परस्पर जडु े हुए देखा नया जन्म लेते हुए देखा। सारे सम्बन्ध मत्र्य थे क्षणभंगरु वस्तओु ं का एक आवेिपूणय, द:ु खदायी उदाहरण। उनमें से कोई नहीं मरा, वे के वल बदल गये, सदा जन्मते रहे; र्नरन्तर उन्हें नया चेहरा र्मलता रहा; के वल काल ही था जो एक चेहरे और दसू रे चेहरे के बीच खडा था।' —हरमन हेस नोबेल परु स्कार र्वजेता, र्सद्धाथय 5 पनु रागमन “पहली बार यह र्वचार करने से पवू य र्क जीवन में खाने, लडने अथवा समहू में धाक जमाने से बढ़कर भी कुछ है, क्ट्या आपने कभी यह सोचा है र्क हम र्कतने जीवनों से गजु र चक ु े होंगे? एक हजार जीवन, जोन, दस हजार!.जो कुछ हम वतयमान जीवन में सीखते हैं, उसी में से हम अगला जीवन चनु ते हैं। र्कन्तु जोन, तमु ने एक ही जीवन में इतना कुछ सीख र्लया है र्क तम्ु हें यहाँ तक पहुचँ ने के र्लए एक हजार जीवनों में से गजु रना नहीं पडा।" —ररचडय बाख जोनाथन र्लवींस्टन सीगल “र्जस प्रकार हम अपने वतयमान जीवन में सहस्त्रों स्वप्नों के बीच जीते हैं, वैसे ही हमारा वतयमान जीवन उन सहस्रों जीवनों में से एक है र्जसमें हम एक अन्य, अर्धक यथाथय जीवन से प्रवेि करते हैं.और तब मृत्यु के बाद वापस लौट जाते हैं। हमारा जीवन उस अर्धक यथाथय जीवन के स्वप्नों में से के वल एक है, और इसर्लए यह अनन्त प्रर्िया उस अन्त तक, उस सत्य जीवन-ईश्वरीय जीवन में पहुचँ ने तक चलती रहती है।" -काउन्ट र्लयो टॉल्सटॉय विषय-सूिी आमख ु – अमरतत्व की खोज.................................................................................. 11 भर्ू मका – चेतना का रहस्य...................................................................................... 14 1. पनु जयनम : सक ु रात से सेर्लगं र तक......................................................................... 18 प्राचीन यनू ान........................................................................................................ 21 6 पनु रागमन यहूदी धमय, ईसाई धमय और इस्लाम........................................................................... 21 मध्य यगु और पनु जायगरण...................................................................................... 23 नव-आलोक का यगु............................................................................................ 23 अध्यात्मवाद...................................................................................................... 24 आधर्ु नक यगु..................................................................................................... 25 भगवद्गीता : पुनजयनम पर कालातीत स्रोत-ग्रन्थ ………………………………............ 28 2. िरीरों का पररवतयन......................................................................................... 33 आत्मा की प्रतीर्त कै से हो ?................................................................................. 34 “मैं ब्रह्म अथायत् आत्मा हू”ँ ……………………………………………………….35 इसी जीवन में पनु जयन्म …………………………………………………………. 36 िरीर स्वप्नवत् है ……………………………………………………………… 37 प्रत्येक व्यर्ि जानता है, “मैं यह िरीर नहीं हू”ँ........................................................... 39 मानव जीवन का ध्येय........................................................................................... 40 पणू यता कै से प्राप्त करें ? ……………………………………………………........... 42 पिओ ु ं से ऊपर उठना …………………………………………………………... 42 अमरतत्व का रहस्य............................................................................................. 44 3. आत्मानसु न्धान ………………………………………………....................... 45 हृदय-िल्यर्चर्कत्सक जानना चाहते हैं र्क आत्मा है क्ट्या? 45 श्रील प्रभुपाद वैर्दक साक्ष्य प्रस्ततु करते हैं …………………………………………. 47 4. पनु जयन्म के तीन इर्तवृत्त..................................................................................... 50 1. दस लाख माताओ ं वाला राजकुमार …………………………………………… 51 2. ममता का र्िकार …………………………………………………………… 57 राजा भरत र्हरन का जन्म लेते हैं ……………………………………………….... 60 जड भरत का जीवन ………………………………………………………......... 61 राजा रहूगण को जड्भरत का उपदेि........................................................................ 63 3. उस पार के आगन्तक ु ………………………................................................... 67 7 पनु रागमन 5. आत्मा की रहस्य-यात्रा................................................. एक जीवन समय की एक कौंध है......................................... तम्ु हें अपना अभीष्ट िरीर प्राप्त होता है................................... मृत्यु का अथय है, अपने र्पछले जीवन की र्वस्मृर्त.................... आत्मा पहले मानव-िरीर ग्रहण करता है............................... आधर्ु नक वैज्ञार्नक पुनजयन्म के र्वज्ञान से अनजान हैं............... पनु जयन्म का अज्ञान भयावह है............................................ और तू र्मट्टी में लौट जायेगा"............................................. ज्योर्तष-र्वज्ञान और पनु जयन्म............................................. आपके र्वचार आपके भावी िरीर का सृजन करते हैं.............. कुछ लोग पनु जयन्म क्ट्यों स्वीकार नहीं कर सकते?..................... राजनेता अपने देिों में पनु जयन्म ग्रहण करते हैं ……………….. पिु हत्या में क्ट्या दोष है? ………………………………... र्वकास : योर्नयों के मागय से आत्मा की यात्रा ………………. माया का भ्रम................................................................. 6. पनु जयन्म का तकय -र्वज्ञान ……………………………… 7. लगभग पनु जयन्म …………………………………….. पनु जयन्म : वास्तर्वक िरीर-बाह्य अनभु व.............................. पनु जयन्म के र्वषय में सम्मोहन से उत्पन्न प्रत्यावतयन हमें पणू य ज्ञान नहीं देते हैं एक बार मानव, सदा मानव ? …………………………… मृत्यु कष्टरर्हत पररवतयन नहीं है.......................................... 8. लौट कर मत आओ …………………………………. कमय और पनु जयन्म से छुटकारा पाने के र्लए व्यावहाररक प्रणार्लयाँ …………………….. श्रील प्रभुपाद के र्वषय में ……………………………………………………….. 8 पनु रागमन 9 पनु रागमन समपजण यह पस्ु तक हम हमारे परम र्प्रय गरुु देव एवं मागयदियक श्री श्रीमद् ए.सी. भर्िवेदान्त स्वामी प्रभपु ाद को अर्पयत करते हैं, र्जन्होंने पनु जयन्म के प्रामार्णक र्वज्ञान के साथ-साथ भगवान् श्रीकृ ष्ण की र्दव्य र्िक्षाएँ पाश्चात्य जगत् को प्रदान कीं। -प्रकािक 10 पनु रागमन आमुख अमरत्ि की खोर् हम ऐसा व्यवहार कर रहे थे जैसे हमें सदैव जीर्वत रहना हैं; बीटल्स के र्दनों में प्रत्येक व्यर्ि यही सोचता था, ठीक है ? मेरा मतलब है, हम में से कौन सोचता था र्क हमें मरना है ? &HkwriwoZ chVy ikWy eSDdkVZus यर्द आप अपनी र्नयर्त को सचमचु अपने वि में लाना चाहते हैं, तो आपको पनु जयन्म और उसकी र्वर्ध को समझना होगा। इतना सरल है यह। कोई मरना नहीं चाहता। हममें से अर्धकतर चाहेंगे र्क वे र्बना झरु रय यों के या गर्ठया रोग या सफे द बाल हुए र्बना, अपनी पूरी िर्ि के साथ, सदा जीर्वत रहें। यह स्वाभार्वक है क्ट्योंर्क जीवन का सवयप्रथम और आधारभतू र्सद्धान्त है सख ु का भोग। काि! हम सदा के र्लए जीवन के सुखों का भोग कर पाते। अमरत्व के र्लए मनष्ु य की सनातन खोज इतनी मौर्लक है र्क मरने की बात सोचना भी उसके र्लए लगभग असम्भव है। पर्ु लट्जर परु स्कार-र्वजेता (द ह्यमू न कॉमेडी के लेखक) र्वर्लयम सरोयन ने अपनी मृत्यु के कुछ र्दवस पवू य समाचार पत्रों के समक्ष यह घोषणा की, 'हममें से प्रत्येक को मरना है; परन्तु मैं हमेिा र्वश्वास करता रहा र्क मेरे र्वषय में अपवाद बन जायेगा। लेर्कन अब क्ट्या?' यह घोषणा अर्धकतर लोगों की र्वचारधारा की प्रर्तध्वर्न थी। हममें से िायद ही कभी कोई मृत्यु अथवा मृत्यु के बाद क्ट्या होता है इन के र्वषय में सोचता होगा। कुछ लोग कहते हैं र्क मृत्यु प्रत्येक वस्तु का अन्त है। कुछ स्वगय और नकय में र्वश्वास रखते हैं। अन्य कुछ लोगों का मत है र्क उनका यह जीवन अनेक बीते हुए जीवनों में से एक है और भर्वष्य में भी हम जीर्वत रहेंगे। र्वश्व की एक-र्तहाई से भी अर्धक जनता-1.5 अरब से अर्धक-पनु जयन्म को जीवन के अटल तथ्य के रूप में स्वीकार करती है। पनु जयन्म कोई 'र्वश्वास-व्यवस्था' नहीं है, न ही कोई मनोवैज्ञार्नक उपाय है, र्जसके द्वारा मृत्यु की 'भयंकर अर्न्तमता' से बचा जा सके , बर्ल्क यह एक सर्ु नर्श्चत र्वज्ञान है, जो हमारे अतीत और आगामी जीवनों की व्याख्या करता है। इस र्वषय पर अनेक र्कताबें र्लखी गयी हैं जो सामान्यता सम्मोहन-जर्नत भतू काल की Le`fr (hypnotic regression), आसन्न-मृत्यु के अनुभव, िरीरबाह्य-र्स्थर्त की अनभु ूर्तयाँ अथवा देजा वू अथायत् 'मैंने कहीं, कभी, पहले भी यह देखा है” जैसे अनभु वों पर आधाररत होती हैं। र्कन्तु पनु जयन्म पर र्लखा गया अर्धकांि सार्हत्य अपूणय ज्ञान पर आधाररत है, बहुत कुछ अनमु ार्नत, र्दखावटी व अर्नणाययक है। कुछ पस्ु तकें मनष्ु यों के उन अनभु वों को प्रस्ततु करती हैं, जो सम्मोहन के प्रभाव से पवू य-जन्मों की स्मृर्तयों तक पहुचँ ाए जाते हैं। वे उन घरों का र्वस्तृत वणयन देते हैं र्जनमें वे रहते थे, उन सडकों का र्जन पर वे चले थे, उन 11 पनु रागमन बाग-बगीचों का र्जनमें वे बच्चों के रूप में जाया करते थे, तथा अपने पूवय-जन्म के माता-र्पता, र्मत्रों और सम्बर्न्धयों का नाम बताते हैं। यह सब पढ़ने के र्लए रोचक है और जहाँ इन सब पुस्तकों ने र्नर्श्चत रूप से पूवयजन्म के प्रर्त बढ़ती हुई लोक-रुर्च और र्वश्वास को उत्तेर्जत र्कया है, वहाँ दसू री ओर ध्यानपूवयक जाँच-पडताल करने से पता लगा है र्क इन तथाकर्थत पवू य-जन्म प्रत्यावतयनों में से बहुत से वणयन काल्पर्नक उडानें हैं, त्रर्ु टपूणय हैं और यहाँ तक र्क धोखाधडी भी हैं। परन्तु सवायर्धक महत्वपणू य बात यह है र्क इन सब लोकर्प्रय पस्ु तकों में से कोई भी पनु जयन्म से सम्बर्न्धत आधारभतू तथ्यों की व्याख्या नहीं करतीं, जैसे र्क वह सरल प्रर्िया क्ट्या है र्जससे आत्मा सनातन रूप से एक भौर्तक िरीर से दसू रे में देहान्तरण करता है। ऐसे र्वरले ही उदाहरण हैं र्जनमें आधारभतू र्सद्धान्तों की र्ववेचना की गई हो और उनमें भी सामान्यत: लेखक अपनी पररकल्पनाओ ं को प्रस्ततु करते हैं र्क कै से और र्कन सर्ु नर्श्चत मामलों में पनु जयन्म घर्टत होता है, मानो कुछ र्वर्िष्ट अथवा प्रर्तभा-सम्पन्न प्राणी ही पनु जयन्म लेते हों, अन्य नहीं। इस प्रकार का प्रस्ततु ीकरण पनु यजन्म के र्वज्ञान को व्याख्यार्यत नहीं करता, बर्ल्क अनेक भ्रामक कपोल-कल्पनाओ ं और र्वरोधाभासों को पैदा कर देता है, र्जसके फलस्वरूप पाठक के मन में दजयनों अनत्तु ररत प्रश्न घर कर जाते हैं। उदाहरण के र्लए, क्ट्या कोई व्यर्ि तत्काल ही पनु यजन्म ग्रहण करता है, अथवा धीरे -धीरे , बहुत लम्बी समयावर्ध में? क्ट्या दसू रे जीवधारी जैसे पि,ु मानव-िरीरों में पनु जयन्म ले सकते हैं? क्ट्या मनष्ु य पिु के रूप में प्रकट हो सकता है? यर्द ऐसा है, तो कै से और क्ट्यों? क्ट्या हम सदैव पनु जयन्म लेते रहते हैं, अथवा यह कहीं समाप्त हो जाता है? क्ट्या आत्मा सदैव नरक में द:ु ख भोग सकता है, अथवा स्वगय में सदा के र्लए सख ु भोग सकता है? क्ट्या हम अपने भावी पनु जयन्मों को र्नयर्न्त्रत कर सकते हैं? कै से? क्ट्या हमारा पनु जयन्म दसू रे ग्रहों अथवा दसू रे ब्रह्माण्डों में सम्भव है? क्ट्या हमारे सत्कमय और दष्ु कमय आगे र्मलने वाले िरीर के र्नधायरण में कोई भर्ू मका र्नभाते हैं? कमय और पनु जयन्म का क्ट्या सम्बन्ध है ? पनु रागमन इन प्रश्नों का पूरा-परू ा उत्तर देती है क्ट्योंर्क यह पनु जयन्म के वास्तर्वक स्वरूप की वैज्ञार्नक रूप से व्याख्या करती है। अन्त में, यह पस्ु तक पाठक को वे व्यावहाररक र्नदेि देती है, र्जनसे वह रहस्यमय और सामान्यतया गलत समझे गये पनु जयन्म के प्रत्यक्ष तथ्य को पणू यता से समझ सके और इससे ऊपर उठ सके । पनु जयन्म एक ऐसी वास्तर्वकता है, जो मानव-र्नयर्त के र्नधायरण में महत्वपणू य भर्ू मका र्नभाती है। भवू मका िेतना का रहस्य 12 पनु रागमन मृत्यु मनष्ु य की अत्यन्त रहस्यमयी, र्नष्ठु र और अपररहायय ित्रु है। क्ट्या मृत्यु का अथय है जीवन का अन्त, अथवा क्ट्या यह एक अन्य जीवन के र्लए, अन्य आयाम के र्लए अथवा दसू रे संसार के र्लए द्वार खोलती है? यर्द मृत्यु के अनभु व के पश्चात् मनष्ु य की चेतना जीर्वत रहती है, तब वह क्ट्या है जो नतू न अर्स्तत्वों की ओर इसके अवस्था-पररवतयन का र्नधायरण करता है ? इन रहस्यों की स्पष्ट जानकारी पाने के र्लए, परम्परागत रूप से मनष्ु य प्रबद्ध ु दाियर्नकों की ओर रुख करता रहा है और उच्चतर सत्य के प्रर्तर्नर्ध रूप में उनके उपदेिों को स्वीकार करता आया है। उच्चतर अर्धकारी से ज्ञान प्राप्त करने की इस र्वर्ध की कुछ लोग आलोचना करते हैं। अन्वेषक भले ही र्कतनी भी सावधानी से उसका र्वश्लेषण करे । समाज दाियर्नक के र्वज्ञ ई.एफ. िमू ेकर, स्मॉल इज ब्यटू ीफुल के रचर्यता कहते हैं र्क हमारे आधर्ु नक समाज में जब लोग प्रकृ र्त और परम्परागत ज्ञान से कट जाते हैं, वे 'हसं ी उडाना फै िन की बात समझते हैं और के वल उसी पर र्वश्वास करते हैं र्जसे वे देख, छू और मापतौल सकें " अथवा, जैसी र्क कहावत है, 'ऑखों देखा सो सत्य।' परन्तु जब मनष्ु य भौर्तक इर्न्रयों की पहुचँ से परे , माप के उपकरणों से परे और मीमांसा के भी परे र्कसी तत्व को समझने का प्रयास करता है, तब उसके पास ज्ञान के उच्चतर स्रोत के पास जाने के अर्तररि अन्य कोई र्वकल्प नहीं रह जाता। कोई भी वैज्ञार्नक प्रयोगिाला के अनसु न्धानों के माध्यम से चेतना के रहस्य अथवा भौर्तक िरीर के र्वनष्ट हो जाने के पश्चात् इसके गन्तव्य की सफल व्याख्या नहीं कर सका है। इस क्षेत्र में िोध ने र्वर्भन्न पररकल्पनाओ ं को जन्म र्दया है, र्कन्तु इनकी सीमाओ ं को पहचानना आवश्यक है। दसू री ओर, पुनजयन्म के व्यवर्स्थत र्सद्धान्त हमारे अतीत, वतयमान और भर्वष्य के जीवनों से सम्बर्न्धत सक्ष्ू म र्वधानों की र्वस्तृत व्याख्या करते हैं। यर्द र्कसी को पुनजयन्म के र्सद्धान्त को सही से समझना है, तो उसे चेतना की आधारभतू धारणा को भौर्तक िरीर की रचना करने वाले भौर्तक पदाथय से र्भन्न और एक उत्कृ ष्ट िर्ि के रूप में स्वीकार करना होगा। सोचने, अनुभव करने और संकल्प करने की अर्द्वतीय मानव-क्षमताओ ं के परीक्षण से इस र्सद्धान्त की पर्ु ष्ट होती है। क्ट्या डी.एन.ए. के सत्रू अथवा आनवु ांर्िक कोर्िकाएँ मानव की परस्पर प्रेम और सम्मान की भावनाओ ं को उत्प्रेररत कर सकते हैं? कौन- सा परमाणु अथवा कण िेक्ट्सपीयर के हैमलट तथा बाख के मास इन बी माइनर में सक्ष्ू म कलात्मक भेदों को पैदा करने के र्लए उत्तरदायी है? मानव और उसकी अनन्त क्षमताओ ं की व्याख्या के वल परमाणओ ु ं और कणों से ही नहीं की जा सकती। आधर्ु नक भौर्तकी के जनक आईन्स्टाइन ने स्वीकार र्कया था र्क चेतना का यथेष्ट स्वरूप का र्ववेचन भौर्तक घटनाओ ं के सन्दभय में नहीं र्कया जा सकता। इस महान् वैज्ञार्नक ने एक बार कहा था, 'मेरा र्वश्वास है र्क र्वज्ञान के 13 पनु रागमन स्वय-ं र्सद्ध र्वधानों को मानव-जीवन पर लागू करने का वतयमान फै िन न के वल परू ी तरह गलत है, अर्पतु कुछ हद तक र्नन्दा के योग्य भी है।" सचमचु , वैज्ञार्नक उन भौर्तक र्नयमों के माध्यम से चेतना की व्याख्या करने में असफल रहे हैं, जो उनके दृर्ष्ट क्षेत्र के भीतर अन्य सभी वस्तओ ु ं पर लागू होती है। उस असफलता से र्नराि होकर िरीर-र्वज्ञान और औषर्ध-र्वज्ञान में नोबेल-परु स्कार र्वजेता अल्बटय सेन्ट जॉजय (Albert Szent-Gyorgyi) ने दुःु ख प्रकट करते हुए हाल ही में कहा था, 'जीवन के रहस्य की मेरी खोज में अन्त में मेरे हाथ परमाणु और इलेक्ट्ट्रॉन्स ही लगे, र्जनमें कोई जीवन नहीं है। इस राह में, कहीं न कहीं, जीवन मेरी अंगर्ु लयों के बीच से ररस कर र्नकल गया। अत: अपने बढ़ु ापे में अब मैं अपने पूवयकृत कायों पर पनु : र्वचार कर रहा हू।ँ " कणों की परस्पर अन्त:र्िया से चेतना का आर्वभायव होता है, इस अवधारणा को स्वीकार करने के र्लए हमें बहुत र्वश्वास रखना होता है-उससे भी बडा र्जसकी आवश्यकता आध्यार्त्मक व्याख्या के र्लए होती है। जैसा र्क र्वख्यात जीव-र्वज्ञानी, थॉमस हक्ट्सले ने कहा था, 'मझु े यह बहुत स्पष्ट र्दखाई देता है र्क र्वश्व में एक तीसरी चीज है, अथायत् चैतन्य, र्जसे....मैं न तो भौर्तक तत्व अथवा िर्ि, अथवा इनमें से र्कसी का भी र्वचार-योग्य सि ं ोर्धत रूप मान सकंू ।" इसके अर्तररि चेतना के अर्द्वतीय गणु -लक्षणों की स्वीकृ र्त भौर्तकी नोबेल परु स्कार र्वजेता नील्स बोर ने दी थी, र्जसने कहा था, 'हमें स्वीकार करना होगा र्क भौर्तकी अथवा रसायन र्वज्ञान में हम ऐसा कुछ नहीं पा सकते, र्जसका चेतना के साथ दरू का भी कोई सम्बन्ध हो। तथार्प हम सभी जानते हैं र्क चेतना जैसी भी कोई चीज है, क्ट्योंर्क यह हम सभी में ही र्वद्यमान है। अतएव चेतना को प्रकृ र्त का अंग मानना होगा, अथवा अर्धक सामान्य रूप से, यथाथयता का अंग, र्जसका तात्पयय यह है र्क भौर्तकी और रसायन र्वज्ञान के र्वधानों के र्बल्कुल र्भन, जैसा र्क 'क्ट्वांटम पररकल्पना' के अन्तगयत उर्ल्लर्खत है, हमें र्बलकुल र्भन्न प्रकार के र्वधानों पर भी र्वचार करना होगा।" ऐसे र्सद्धान्तो में पनु जयन्म के र्सद्धान्तों का भी समावेि हो सकता है, जो एक भौर्तक िरीर से दसू रे में होने वाले चेतना के आवागमन का र्नयमन करते हैं। इन र्नयमों को जानने की िरू ु आत करने के र्लए हम यह जान लें र्क पुनजयन्म कोई अनैसर्गयक अथवा र्वरोधाभासी घटना नहीं है, बर्ल्क एक ऐसी घटना है जो हमारे इसी जीवन-काल में, हमारे अपने िरीरों में र्नरन्तर घर्टत होते रहती है। प्रोफे सर जॉन फाईफर अपने ग्रन्थ र्द ह्यमू न ब्रेन में र्लखते हैं, "तम्ु हारे िरीर में उन अणओ ु ं में से एक भी वह अणु नहीं है, जो सात वषय पहले थे।" प्रत्येक सात वषों में मनष्ु य का परु ाना िरीर परू ी तरह नया हो जाता है। परन्तु हमारी मल ू पहचान, हमारा आत्मा, नहीं बदलता। हमारे िरीर बचपन से युवावस्था हैं, तथार्प िरीरस्थ व्यर्ि, 'मैं" सदैव वैसे का वैसा बना रहता है। 14 पनु रागमन पनु जयन्म, जो भौर्तक िरीर से स्वतंत्र चेतन आत्मा के र्सद्धान्त पर आधाररत है-उस उच्चस्तरीय व्यवस्था का अंग है जो प्रार्णयों के एक भौर्तक रूप से दसू रे भौर्तक रूप में देहान्तरण का र्नयंत्रण करती है। चँर्ू क पनु जयन्म का सम्बन्ध आत्मा से है, जो हमारे र्लए सवायर्धक महत्वपणू य है, अतएव हममें से प्रत्येक व्यर्ि के र्लए इसकी प्रासंर्गकता सबसे बढ़कर है। पनु रागमन कालातीत वैर्दक सार्हत्य, भगवद्गीता में प्रर्तपार्दत पनु जयन्म के आधारभतू र्सद्धान्तों की स्पष्ट व्याख्या करती है। 'डयेड सी स्िॉल्स''' (र्हब्रू सार्हत्य के प्राचीन ग्रन्थ) से भी सहस्रों वषय परु ानी गीता, कहीं भी उपलब्ध पनु जयन्म की व्याख्या की अपेक्षा पणू यतम व्याख्या प्रस्ततु करती है। यगु ों तक र्वश्व के अनेक महानतम र्चन्तक इसका अध्ययन करते आए हैं। चँर्ू क आध्यार्त्मक ज्ञान सनातन सत्य है और यह प्रत्येक नई वैज्ञार्नक पररकल्पना के साथ नहीं बदलता, अत: यह आज भी प्रासंर्गक है। हावयडय के जीव-भौर्तकी के वैज्ञार्नक डी.पी. डयपू े र्लखते हैं, 'यर्द हम हठवाद के कारण उस मान्यता से र्चपके रहें, र्जसके अनसु ार जीवन की सम्पणू य व्याख्या उन प्राकृ र्तक र्नयमों के द्वारा की जा सकती है र्जन्हें हम जानते हैं, तो हम अपने आप को एक अर्ं धयारी गली में ले जायेंगे। भारत की वैर्दक परम्पराओ ं में सजं ोए गये र्वचारों के र्वषय में अपने आप को मि ु रखकर, आधर्ु नक वैज्ञार्नक अपने कायय को नये पररप्रेक्ष्य में देख सकते हैं तथा सभी वैज्ञार्नक प्रयासों के लक्ष्य अथायत् सत्य की खोज-को आगे बढ़ा सकते हैं।” र्वश्वव्यापी अर्नर्श्चतता के इस यगु में यह अर्नवायय है र्क हम अपने चेतन स्वरूप के वास्तर्वक उद्गम को समझे। हम र्कस तरह अपने आपको र्वर्भन्न िरीरों और जीवन की अवस्थाओ ं में पाते हैं, और मृत्यु की घडी में हमारा गन्तव्य क्ट्या होगा? यह महत्वपणू य ज्ञान पनु रागमन में र्वस्तारपूवयक समझाया गया है। पहले अध्याय में सुकरात से लेकर सेर्लंगर तक, र्वश्व के अनेक महानतम दाियर्नकों, कर्वयों और कलाकारों को पनु जयन्म ने र्कस प्रकार गहराई से प्रभार्वत र्कया है, इसका वणयन र्कया गया है। इसके बाद भगवद्गीता में प्रर्तपार्दत पनु जयन्म की प्रर्िया को व्याख्यार्यत र्कया गया है, जो देहान्तरण के र्वषय पर सबसे प्राचीन व सवायर्धक सम्मार्नत मौर्लक ग्रन्थ है। अध्याय दो में कृ ष्णकृ पामर्ू तिं श्री श्रीमद् ए.सी. भर्िवेदान्त स्वामी प्रभुपाद और र्वख्यात धमय-मनोवैज्ञार्नक प्रोफे सर कालफ्रीड ग्राफ वॉन डयक ु य हाइम के बीच एक रोचक संवाद का उल्लेख है, जो यह स्पष्ट करता है र्क र्कस प्रकार पदाथयमय िरीर और प्रर्तपदाथयमय कण अथायत् आत्मा, एक समान नहीं हो सकते। अध्याय तीन में एक प्रर्सद्ध हृदय िल्य-र्चर्कत्सक आत्मतत्व के क्षेत्र में र्वर्धवत् िोध र्कए जाने पर जोर देते हैं एवं श्रील प्रभपु ाद सहस्रों वषय प्राचीन और आधर्ु नक औषर्ध-र्वज्ञान की अपेक्षा अर्धक प्रभावी सचू नाओ ं से पष्टु वैर्दक संस्करण को उद्धतृ करते हैं। वैर्दक ग्रन्थ 15 पनु रागमन श्रीमद्भागवतम् के तीन रोचक प्रसंगों से चौथा अध्याय बना है। ये र्ववेचन वे उत्कृ ष्ट उदाहरण हैं, जो यह बताते हैं र्क प्रकृ र्त एवं कमय के सुर्नर्श्चत र्वधानों के अन्तगयत र्वर्भन्न िरीरों में आत्मा र्कस प्रकार देहान्तरण करता है। पाँचवें अध्याय में श्रील प्रभपु ाद के लेखों से उद्धरण हैं, जो स्पष्ट रूप से प्रदर्ियत करते हैं र्क पनु जयन्म के र्सद्धान्त र्कस प्रकार हमारे दैर्नक जीवन में र्नरंतर घटने वाली सामान्य घटनाओ ं और साधारण अनभु वों के माध्यम से आसानी से समझे जा सकते हैं। अगला अध्याय वणयन करता है र्क र्कस प्रकार पनु जयन्म सावयभौम एवं अच्यतु न्याय-व्यवस्था को सर्ु नर्श्चत रूप से प्रस्ततु करता है, र्जसमें आत्मा को कभी भी िाश्वत रूप से अर्भिार्पत नहीं र्कया जाता बर्ल्क वैधार्नक रूप से उसे स्थायी अवसर र्दया जाता है, र्जससे र्क वह र्नरन्तर चलने वाले जन्म-मृत्यु के चि से छुटकारा पा सके । पनु जयन्म के र्वषय में सामान्य भ्रान्त धारणाएँ और 'फै िनेबल' र्वचार सातवें अध्याय का र्वषयवस्तु है, और अर्न्तम अध्याय 'लौट कर मत आओ' उस प्रर्िया का प्रस्ततु ीकरण है, र्जसके द्वारा आत्मा पनु जयन्म से मि ु हो सकता है और उन लोकों में प्रवेि कर सकता है, जहाँ अन्तत: उसे भौर्तक िरीर की कारागार से मर्ु ि प्राप्त हो जाती है। एक बार उस र्स्थर्त को प्राप्त करके आत्मा जन्म, मृत्य,ु जरा और व्यार्ध से ग्रस्त इस अन्तहीन पररवतयनिील जगत् में कभी वापस लौट कर नहीं आता। 16 पनु रागमन 1 पुनर्जन्म : सुकरात से सेव गं र तक आत्मा के र्लए कभी भी न तो जन्म हैं, न मृत्य/ु वह कभी उत्पन्न नहीं हुआ था, ण होता है और न ही होगा । वह अजन्मा है, सनातन है, सदा रहने वाला और परु ातन है । वह िरीर के मरे जाने पर मारा नहीं जाता । -भगवद्गीता 1.10 क्ट्या जीवन जन्म से प्रारम्भ होता है, और मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है? क्ट्या हम इसके पहले भी थे? इस प्रकार के प्रश्न सामान्यत: पूवय के देिों के धमों के साथ जोडे जाते हैं, जहाँ मनष्ु य के जीवन का अर्स्तत्व न के वल जन्म से मृत्यपु ययन्त बर्ल्क लाखों युगों पययन्त माना जाता रहा है और जहाँ पुनजयन्म की धारणा की स्वीकृ र्त लगभग सवयमान्य है। जैसा र्क 19 वीं सदी के महान् जमयन दाियर्नक आथयर िोपेनहॉवर ने एक बार कहा था, 'यर्द कोई एर्ियाई व्यर्ि मझु से यरु ोप की पररभाषा पछ ू े , तो मझु े यह उत्तर देने के र्लए र्ववि होना पडेगा: "यह र्वश्व का वह खंड है, जो इस अर्वश्वसनीय भ्रार्न्त से ग्रस्त है र्क मानव िन्ू य से सृर्जत हुआ, और यह र्क उसका वतयमान जन्म जीवन में उसका प्रथम प्रवेि है।' दरअसल भौर्तक र्वज्ञान ने, जो पर्श्चम की प्रमख ु र्वचारधारा है, चेतना के पवू य-अर्स्तत्व और र्वद्यमान िरीर के पश्चात् उसकी र्स्थर्त के र्वषय में र्कसी भी गम्भीर अथवा व्यापक रुर्च का सर्दयों से दम घोटे रखा है। परन्तु पाश्चात्य इर्तहास में सदैव ऐसे र्चन्तक रहे हैं, र्जन्होंने आत्मा के देहान्तरण और चेतना की अमरता को समझा और स्वीकार र्कया है तथा अनेक दाियर्नकों, लेखकों, कलाकारों, वैज्ञार्नकों एवं राजनेताओ ं ने इस पररकल्पना पर गम्भीरतापवू यक र्चन्तन र्कया है। प्रािीन यनू ान प्राचीन यनू ार्नयों में सक ु रात (Socrates), पाइथेगोरस और प्लेटो की गणना उनमें की जा सकती है, र्जन्होंने पनु जयन्म को अपनी र्िक्षाओ ं का अर्भन्न अंग बनाया। जीवन की अर्न्तम घडी में सक ु रात ने कहा था, 'मझु े र्वश्वास है र्क पनु जयन्म एक सत्य है, और यह र्क जीवन का आर्वभायव मृत से होता है।" पाइथेगोरस ने दावा र्कया था र्क उसे अपने पवू य-जन्म अभी तक याद हैं, और प्लेटो ने अपनी प्रमुख रचनाओ ं में पनु जयन्म के र्वषय में र्वस्तृत वणयन प्रस्ततु र्कये हैं। संक्षेप में, उसका मत था र्क र्विद्ध ु आत्मा र्नरपेक्ष सत्य के धरातल से र्वषयी इच्छा के कारण र्गरता है, और तब भौर्तक देह धारण करता है। पहले पर्तत आत्माएँ मानव-रूपों में पैदा होती हैं, र्जनमें से दाियर्नक का रूप सवयश्रेष्ठ है, जो उच्चतर ज्ञान के र्लए प्रयास करता है। यर्द उसका ज्ञान पणू य हो जाता है, तो दाियर्नक सनातन अर्स्तत्व को लौट सकता 17 पनु रागमन है। परन्तु यर्द वह भौर्तक र्वषय-वासनाओ ं में बरु ी तरह फँ स जाता है, तो वह पि-ु योर्नयों में चला जाता है। प्लेटो का र्वश्वास था र्क अर्तभोजी पेटू और िराबी मनष्ु य भावी जीवनों में गधे बन सकते हैं; र्हसं क और अन्यायी लोग भेर्डयों और र्गद्धों के रूप में जन्म ले सकते हैं और सामार्जक मान्यताओ ं के अन्धानगु ामी मधमु क्ट्खी या चींटी बन सकते हैं। कुछ समय के पश्चात् आत्मा र्फर मानव-रूप धारण करता है, और मर्ु ि के र्लए एक दसू रा अवसर पाता है। कुछ र्वद्वानों का र्वश्वास है र्क प्लेटो एवं अन्य प्राचीन यूनानी दाियर्नकों ने पनु जयन्म का अपना ज्ञान ओरर्फज्म (Orphism) जैसे रहस्यात्मक धमों अथवा भारत से प्राप्त र्कया था। यहूदी धमज, ईसाई धमज और इस् ाम यहूदी धमय और ईसाई धमय के प्रारर्म्भक इर्तहास में भी सामान्य रूप से पनु जयन्म के संकेत र्मलते हैं। सम्पणू य कबाला (यहूर्दयों की मौर्खक परम्परा) में अतीत और आगामी जीवनों के सम्बन्ध में सचू ना र्मलती है, जो अनेक र्हब्रू र्वद्वानों के मतानसु ार िास्त्रों में र्छपा गप्तु ज्ञान है। जोहर में, जो कबाली के प्रमख ु ग्रथं ों में से एक है, कहा गया है, 'आत्मा को परम तत्व में पनु : प्रवेि करना होगा, जहाँ से उसका आर्वभायव हुआ है। परन्तु ऐसा कर पाने के र्लए उसे सभी पणू यताओ ं का र्वकास करना होगा, र्जनके बीज उनके भीतर बोए हुए हैं; और यर्द उन्होंने यह अवस्था एक जीवन में प्राप्त न की, तो उन्हें दसू रा जीवन प्रारम्भ करना होगा, और तब तीसरा, और इसी तरह आगे भी तब तक, जब तक र्क वे वह र्स्थर्त प्राप्त न कर लें जो उन्हें ईश्वर के साथ पनु र्मयलन के योग्य बना दे।" वैर्श्वक यहूदी ज्ञानकोि के अनसु ार 'हसीदी" यहूर्दयों का भी इसी प्रकार का र्वश्वास है। दरअसल भौर्तक र्वज्ञान ने, जो पर्श्चम की प्रमख ु र्वचारधारा है, चेतना के पवू य-अर्स्तत्व और र्वद्यमान िरीर के पश्चात् उसकी र्स्थर्त के र्वषय में र्कसी भी गम्भीर अथवा व्यापक रुर्च का सर्दयों से दम घोटे रखा है। परन्तु पाश्चात्य इर्तहास में सदैव ऐसे र्चन्तक रहे हैं, र्जन्होंने आत्मा के देहान्तरण और चेतना की अमरता को समझा और स्वीकार र्कया है तथा अनेक दाियर्नकों, लेखकों, कलाकारों, वैज्ञार्नकों एवं राजनेताओ ं ने इस पररकल्पना पर गम्भीरतापवू यक र्चन्तन र्कया है। प्रािीन यूनान प्राचीन यनू ार्नयों में सक ु रात (Socrates), पाइथेगोरस और प्लेटो की गणना उनमें की जा सकती है, र्जन्होंने पनु जयन्म को अपनी र्िक्षाओ ं का अर्भन्न अंग बनाया। जीवन की अर्न्तम घडी में सक ु रात ने कहा था, 'मझु े र्वश्वास है र्क पनु जयन्म एक सत्य है, और यह र्क जीवन का आर्वभायव मृत से होता है।" पाइथेगोरस ने दावा र्कया था र्क उसे अपने पवू य-जन्म अभी तक याद हैं, और प्लेटो ने अपनी प्रमुख रचनाओ ं में पनु जयन्म के र्वषय में र्वस्तृत वणयन प्रस्ततु र्कये हैं। संक्षेप में, उसका मत था र्क र्विद्ध ु आत्मा र्नरपेक्ष सत्य के धरातल से र्वषयी इच्छा के कारण र्गरता है, और तब भौर्तक देह धारण करता है। पहले पर्तत आत्माएँ मानव-रूपों में पैदा होती हैं, र्जनमें से दाियर्नक का रूप सवयश्रेष्ठ है, जो 18 पनु रागमन उच्चतर ज्ञान के र्लए प्रयास करता है। यर्द उसका ज्ञान पणू य हो जाता है, तो दाियर्नक सनातन अर्स्तत्व को लौट सकता है। परन्तु यर्द वह भौर्तक र्वषय-वासनाओ ं में बरु ी तरह फँ स जाता है, तो वह पि-ु योर्नयों में चला जाता है। प्लेटो का र्वश्वास था र्क अर्तभोजी पेटू और िराबी मनष्ु य भावी जीवनों में गधे बन सकते हैं; र्हसं क और अन्यायी लोग भेर्डयों और र्गद्धों के रूप में जन्म ले सकते हैं और सामार्जक मान्यताओ ं के अन्धानगु ामी मधमु क्ट्खी या चींटी बन सकते हैं। कुछ समय के पश्चात् आत्मा र्फर मानव-रूप धारण करता है, और मर्ु ि के र्लए एक दसू रा अवसर पाता है। कुछ र्वद्वानों का र्वश्वास है र्क प्लेटो एवं अन्य प्राचीन यूनानी दाियर्नकों ने पनु जयन्म का अपना ज्ञान ओरर्फज्म (Orphism) जैसे रहस्यात्मक धमों अथवा भारत से प्राप्त र्कया था। यहूदी धमज, ईसाई धमज और इस् ाम यहूदी धमय और ईसाई धमय के प्रारर्म्भक इर्तहास में भी सामान्य रूप से पनु जयन्म के संकेत र्मलते हैं। सम्पणू य कबाला (यहूर्दयों की मौर्खक परम्परा) में अतीत और आगामी जीवनों के सम्बन्ध में सचू ना र्मलती है, जो अनेक र्हब्रू र्वद्वानों के मतानसु ार िास्त्रों में र्छपा गप्तु ज्ञान है। जोहर में, जो कबाली के प्रमख ु ग्रथं ों में से एक है, कहा गया है, 'आत्मा को परम तत्व में पनु : प्रवेि करना होगा, जहाँ से उसका आर्वभायव हुआ है। परन्तु ऐसा कर पाने के र्लए उसे सभी पणू यताओ ं का र्वकास करना होगा, र्जनके बीज उनके भीतर बोए हुए हैं; और यर्द उन्होंने यह अवस्था एक जीवन में प्राप्त न की, तो उन्हें दसू रा जीवन प्रारम्भ करना होगा, और तब तीसरा, और इसी तरह आगे भी तब तक, जब तक र्क वे वह र्स्थर्त प्राप्त ण कर लें जो उन्हें ईश्वर के साथ पनु र्मयलन के योग्य बना दे।’’ वैर्श्वक यहूदी ज्ञानकोि के अनसु ार ‘ह्सीदी’ यहूर्दयों का भी इसी प्रकार का र्वश्वास हैं। ईसवी की तीसरी सदी में ओररजेन नामक धमयिास्त्री ने, जो प्रारर्म्भक ईसाई-र्गरजाघर के आचायों में से एक थे और बाइबल के अत्यन्त र्नष्णात र्वद्वान् थे, र्लखा है, 'र्कसी पाप-प्रवृर्त्त से प्रेररत होकर कुछ र्विेष आत्माएँ िरीरों में प्रवेि करती हैं-पहले, मानव िरीरों में, और तब र्ववेकहीन वासनाओ ं के सम्पकय के कारण मानव जीवन के र्लए र्नयत अवर्ध के पश्चात् वे पिओ ु ं में बदल जाती हैं, जहाँ से वे वनस्पर्तयों के स्तर पर र्गर जाती हैं। इस र्स्थर्त से वे र्फर उन्हीं िर्मक स्तरों में से होती हुई उबरती हैं और अपने स्वगीय स्थान को पनु : प्राप्त होती हैं।" बाइबल में ही ऐसे अनेक उद्धरण हैं, जो बताते हैं र्क ईसा मसीह और उनके अनयु ायी पनु जयन्म के र्सद्धान्त से पररर्चत थे। एक बार ईसा के र्िष्यों ने ओल्ड टेस्टामेन्ट की इस भर्वष्यवाणी के र्वषय में पछ ू ा र्क एर्लयास पृथ्वी पर पनु : प्रकट होंगे? सन्त मैथ्यु के धमोपदेि में हम पढ़ते हैं, 'और ईसा ने उनको उत्तर र्दया, एर्लयास सचमचु पहले आएँगे, और सभी वस्तओ ु ं को पुन: प्रर्तष्ठार्पत करें गे। परन्तु मैं तमु को बताता हूँ र्क एर्लयास पहले ही आ चक ु े हैं, और तमु उसे नहीं जानते हो तब र्िष्यों की समझ में आया र्क वे उनको बेर्प्तस्त जॉन का वणयन कर रहे हैं।" दसू रे िब्दों में, ईसा ने घोषणा की र्क बेर्तस्त जॉन, र्जसका र्सर हैरड ने काट र्लया था, पैगम्बर एर्लयास का ही पुनरावतार था। एक अन्य 19 पनु रागमन उदाहरण में ईसा तथा उनके र्िष्यों ने एक ऐसे आदमी को देखा, जो जन्म से ही अंधा था। र्िष्यों ने ईसा को पछ ू ा, 'पापी कौन है, यह आदमी या उसके मातार्पता, र्जससे वह अंधा जन्मा? ईसा ने उत्तर र्दया, पाप भले र्कसी ने भी र्कया हो, यह भगवान् के कायय को र्दखाने का अवसर है। उसके बाद ईसा ने उस आदमी को अच्छा कर र्दया। अब यर्द वह आदमी अपने स्वयं के पाप के कारण अंधा जन्मा होता, तो वह पाप उसने अपने जन्म से पहले, अथायत् अपने पूवयजन्म में र्कया होगा और इस र्वचार के प्रर्त ईसा ने कोई र्वरोध प्रदर्ियत नहीं र्कया। कुरान का कथन है, 'और तमु मृत थे, तथा वे (ईश्वर) तम्ु हें जीवन में वापस ले आए, और वे तम्ु हें मृत्यु देंगे, और पनु : जीर्वत करें गे, और अन्त में तम्ु हें अपने में समेट लेंगे।' इस्लाम के अनयु ार्ययों में सफ ू ी लोग र्विेष रूप से र्वश्वास करते हैं र्क मृत्यु कई क्षर्त नहीं होती, क्ट्योंर्क अमर आत्मा र्वर्वध िरीरों से र्नरंतर जाता रहता है। प्रर्सद्ध सफ ू ी कर्व, जलालद्दु ीन रूमी ने र्लखा है : मैं खर्नज के रूप में मरा, और पोधा बन गया, मैं पोधे के रूप में मरा, और पिु के रूप में आया, मैं पिु के रूप में मरा, और आदमी बन गया मैं क्ट्यों डरु ? मृत्यु से मझु े घाटा ही कब हुआ ? भारतवषय का कालातीत वेद-वाङ्मय पुर्ष्ट करता है र्क भौर्तक के साथ तादात्म्य स्थार्पत करने के अनसु ार आत्मा 84,00,000 रूपों में से एक को ग्रहण करता है और एक बार र्कसी र्विेष योन में प्रकट होने पर नीचे से ऊपर की और िर्मक जीव रूप में स्वयं र्वकर्सत होता रहता है और अन्त में मानव-योर्न प्राप्त करता है। इस प्रकार, पर्श्चम के सभी प्रमख ु धमों-यहूदी, ईसाई और इस्लाम-के उपदेिों के ताने-बाने में पनु जयन्म के र्नर्श्चत सत्रू हैं, यद्यर्प इन मतवादों के आर्धकाररक संरक्षक इनकी अनदेखी या इनसे इनकार करते हैं। मध्ययगु और पनु र्ाजगरण ऐसी पररर्स्थर्तयों में, जो आज भी रहस्य से र्घरी हुई हैं, बैजन्टाइन सम्राट् जस्टीर्नयन ने 553 ई. में रोमन कै थोर्लक चचय में आत्मा के पवू य-अर्स्तत्व सम्बंधी उपदेिों पर रोक लगा दी थी। उस यगु में चचय के अनेक लेख नष्ट कर र्दये गये, और आज अनेक र्वद्वानों का र्वश्वास है र्क िास्त्रों से पनु जयन्म के सन्दभय र्नकाल र्दये गये। यद्यर्प चचय ने नॉर्स्टक पन्थों (Gnostic Sects)को कठोरता से दर्ण्डत र्कया, तथार्प इन्होंने पर्श्चम में पनु जयन्म के र्सद्धान्त को र्कसी न र्कसी तरह जीर्वत रखा। (Gnostic - यह िब्द यनू ानी भाषा के िब्द Gnosis से र्नकला है, र्जसका अथय है, 'ज्ञान') पनु जायगरण के युग में पनु जयन्म के प्रर्त लोक-रुर्च एक नये प्रकार से पल्लर्वत हुई। इस पनु रुज्जीवन के र्लए नामवर लोगों में से एक था जीओरदानो ब्रनो, जो इटली का एक प्रमख ु दाियर्नक और कर्व था और र्जसको उसके पनु जयन्म र्वषयक उपदेिों के कारण अंतत: धार्मयक अदालत द्वारा र्चता पर जीर्वत जला कर मार देने का दण्ड दे र्दया 20 पनु रागमन गया। अपने ऊपर लगाये गये आरोपों के अर्न्तम उत्तरों में उसने वह एक | हो सकता है या दसू रे िरीर में, और एक िरीर से दसू रे िरीर में देहान्तरण कर सकता है।" चचय के द्वारा र्कये गये इस प्रकार के दमन के कारण पनु जयन्म सम्बधं ी उपदेि तब गहरे रूप में भर्ू मगत हो गये, र्कन्तु वे यरू ोप के गह्यु समाजों को जैसे रोर्सिूर्ियनों, फ्रीमेसनों, के बार्लस्टों और अन्यों में बचे रहे। नि-आ ोक का युग नव-आलोक के यगु में यरू ोप के बर्ु द्धजीवी वगय चचय द्वारा लादी गई पाबंर्दयों से अपने आपको मि ु करने लगे। महान् दाियर्नक वाल्टैरने र्लखा र्क ‘पनु जयन्म का र्सद्धान्त ण तो बेहूदा हैं और उ ही व्यथय, “ और एक बार जन्म लेने की अपेक्षा दो बार जन्म लेना अर्धक आश्चययजनक नहीं है।' र्कसी को भी यह जानकर आश्चयय हो सकता है र्क जब इस र्वषय पर लोक-रूर्च एटलार्ं टक को पर करके अमरीका पहुचँ ी तब अमेररका के अनेक प्रर्तष्ठापक नेता पनु जयन्म के र्वचार से मग्ु ध हो उठे और अन्तत: उन्होंने उसे स्वीकार कर र्लया। अपना दृढ़ र्वश्वास प्रकट करते हुए बेंजार्मन फ्रेंकर्लन ने र्लखा, 'इस संसार में अपना अर्स्तत्व पाकर, मैं र्वश्वास करता हूँ र्क मैं र्कसी न र्कसी रूप में सदा रहूगँ ा।' सन् 1814 में, भतू पवू य अमरीकी राष्ट्रपर्त जॉन एडेम्स ने, जो र्हन्द-ू धार्मयक र्कताबों का अध्ययन र्कया करते थे, एक अन्य भतू पवू य राष्ट्रपर्त, 'मॉन्टीसेलो के सन्त,' थॉमस जेफरसन को पनु जयन्म के र्सद्धान्त के र्वषय में र्लखा था। एडम्स ने र्लखा, 'परम प्रभु के र्वरुद्ध र्वरोह करने पर कुछ आत्माएँ घोर अन्धकार के गतय में डाल दी गई थीं। इसके बाद उनको कारागार से मि ु र्कया गया, और उन्हें पृथ्वी पर आने की और अपने-अपने पद और चररत्र के अनरू ु प र्वर्भन्न प्रकार के पिओ ु ,ं सरीसृपों, पर्क्षयों, र्हसं क प्रार्णयों और मनष्ु यों के रूप में, यहाँ तक र्क वनस्पर्तयों और खर्नजों में भी अपनी परीवेक्षण अवर्ध परू ी करने के र्लए देहान्तरण की अनमु र्त दे दी गई। यर्द वे अपने को दर्ू षत र्कये र्बना सभी परीक्षाएँ उत्तीणय कर सकें , तो उन्हें गाय और आदमी होने की अनमु र्त दे दी गई। यर्द मनष्ु य के रूप में उनका व्यवहार अच्छा रहा.तो उन्हें स्वगय में उनके मल ू पद और सख ु को वापस लौटा र्दया गया।' यरू ोप में नेपोर्लयन अपने सेनापर्तयों से यह कहने में बहुत रुर्च लेता था र्क पूवयजन्म में वह महान् सम्राट् चाल्सय था। जमयनी के महानतम कर्वयों में से एक, जोहान वोल्फगंग वॉन गोइथे का भी पुनजयन्म में र्वश्वास था, और सम्भव है र्क यह र्वचार उसे भारतीय दियन के अध्ययन से र्मला हो। नाटककार और वैज्ञार्नक के रूप में र्वख्यात गोइथे ने भी एक बार कहा था, 'मझु े र्वश्वास है र्क मैं सहस्रों बार यहाँ पहले रह चुका हूँ जैसा र्क इस समय हू,ँ और मैं सहस्रों बार यहाँ लौटने की आिा करता हू।ँ " अध्यात्मिाद 21 पनु रागमन इमसयन, र्व्हटमन और थोरो सर्हत अमरीकी अध्यात्मवार्दयों को भी भारतीय दियन एवं पनु जयन्म में तीव्र रुर्च थी। इमसयन ने र्लखा है र्वश्व का यह एक रहस्य है र्क यहाँ सभी वस्तएु ँ र्स्थर रहती हैं और मरती नहीं, परन्तु कुछ समय के र्लए आँखों से ओझल हो जाती हैं और बाद में र्फर से लौट आती हैं. मरता कुछ भी नहीं। मनष्ु य मरने का बहाना करते हैं, बनावटी अन्त्येर्ष्ट और िोकपणू य मरण-समाचारों को सह लेते हैं, और वे भले-चंगे, र्कसी नये र्वर्चत्र छद्म-वेि में खडे अपनी र्खडकी से बाहर झाँकते हैं।" इमसयन ने अपने पस्ु तकालय की अनेक प्राचीन भारतीय दियन की पुस्तकों में से एक, कठोपर्नषद् से उद्धतृ र्कया है, 'आत्मा जन्म नहीं लेता, यह मरता भी नहीं है, न यह र्कसी से उत्पन्न हुआ अजन्मा है, सनातन है, यह मारा नहीं जाता है, यद्यर्प िरीर मारा जाता है।" वाल्डैन पौंड के दाियर्नक थोरो ने र्लखा है,'मैं जहाँ तक पीछे याद कर सकता हू,ँ मैंने र्कसी पवू य-अर्स्तत्व के अनभु वों को अनजाने ही सन्दर्भयत र्कया है।” 1926 ई. में खोजी गई “The Transmigration of the Seven Brahmans” (सात ब्राह्मणों का पनु जयन्म), नामक एक पांडुर्लर्प से पुनजयन्म में थोरो की गहरी रुर्च का पता चलता है। यह छोटी पस्ु तक प्राचीन संस्कृ त इर्तहास से पनु जयन्म की एक कहानी का अंग्रेजी अनवु ाद है। देहान्तरण की घटना का सम्बंध उन सात ऋर्षयों के जीवन से है र्जन्होंने र्िकाररयों, राजकुमारों और पिुओ ं के रूप में उत्तरोतर ग्रहण र्कया था। और वॉल्ट र्व्हटमन अपनी कर्वता "Song of Myself (सोंग ऑफ़ मायसल्फ) में र्लखते हैं : मैं जानता हू,ँ मैं अमत्यय हूँ... हमने अभी तक र्बतायी हैं खराबों िीत और ग्रीष्म ऋतएु ँ, खरबों अभी आगे आने को हैं, और खरबों उनके भी आगे आने को हैं, और खरबों उनके भी आगे आने को हैं । फ्रांस के प्रर्सद्ध लेखक ओनोरे बालजैक ने पनु जयन्म के र्वषय पर एक पूरा उपन्यास 'Seraphita' (सेरर्फता) र्लखा है, र्जसमें बालजैक कहता है, 'सभी मनष्ु य एक पवू य-जीवन से गजु रते हैं कौन जानता है र्क स्वगय के उत्तरार्धकारी को र्कतने मांसल रूपों को धारण करने पडें र्क इसके पहले वह िार्न्त एवं एकान्त के उस मल्ू य को समझ सके , र्जसके तारों से आलोर्कत मैदान आध्यार्त्मक र्वश्वों के झरोखे मात्र हैं।' डेर्वड कॉपरफील्ड में, चाल्सय र्डके न्स ने पवू य-जन्मों ('पहले कहीं देखा है'-deja-Vu) की स्मृर्तयों पर आधाररत एक अनभु व की छानबीन की, 'हम सभी को एक अनुभव का एहसास होता है, जो समय-समय पर हम सभी को अर्भभतू करता है, र्क हम जो कुछ कह रहे और कर रहे हैं, वह र्कसी दरू अतीत में पहले कहा और र्कया जा चुका है-र्क हम सभी, यगु ों पवू ,य उन्हीं चेहरों, वस्तओ ु ं और पररर्स्थर्तयों से र्घरे रह चक

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