ज्ञान के सिद्धांत - लॉक PDF

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Kolhan University Chaibasa

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philosophy knowledge epistemology ideas

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This document appears to be philosophical notes, potentially lecture notes, discussing the theory of knowledge by Locke. It delves into his ideas on the sources and nature of knowledge, including concepts like sensation, reflection, and the role of ideas in understanding the world, making connections to other philosophers like Plato and Descartes.

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# ज्ञान के सिद्धांत - लॉक लॉक आनेक पाश्चात्य दर्शन के प्रथम विचारक है जिन्होने अपने दर्शन का प्रारंभ ज्ञानमीमांसा से किया है। इनके दर्शन में ज्ञानमीमांसा प्रमुख है। लॉक का मानना है कि तत्वमीमांसा विवेचन से पूर्व ज्ञानमीमांसा का विवेचन आवश्यक है। लॉक की ज्ञानमीमांसा के दो पक्ष हैं- खण्डनात्मक पक्ष औ...

# ज्ञान के सिद्धांत - लॉक लॉक आनेक पाश्चात्य दर्शन के प्रथम विचारक है जिन्होने अपने दर्शन का प्रारंभ ज्ञानमीमांसा से किया है। इनके दर्शन में ज्ञानमीमांसा प्रमुख है। लॉक का मानना है कि तत्वमीमांसा विवेचन से पूर्व ज्ञानमीमांसा का विवेचन आवश्यक है। लॉक की ज्ञानमीमांसा के दो पक्ष हैं- खण्डनात्मक पक्ष और मंडनात्मक पक्ष। खण्डनात्मक पक्ष में लॉक बुद्धिवादियों द्वारा स्वीकृत जन्मजात प्रत्ययों की धारणा का खण्डन करते हैं। जबकी मंडनात्मक पक्ष में वे ज्ञान प्राप्ति की साधन, स्वरूप, सीमा इत्यादि का वर्णन करते हैं। लॉक अनुभववाद की स्थापना के लिए बुद्धिवाद की आधार भूत मान्यता प्रत्यय जन्मजात होते है का सभी संभव तर्को का खण्डन करते हैं। लॉक जन्मजात प्रत्ययों का खण्डन करके यह कहते हैं कि समस्त ज्ञान अनुभव के माध्यम से किया जाता है। अनुभव के पहले मस्तिष्क की स्थिति Tabula Rasa (खाली पट्टी), Empty Pot (खाली घड़ा), clean slate (कोरी स्लेट) के समान होती है जिसे पर अनुभव के माध्यम से ज्ञान अंकित किया जाता है। ## ज्ञान का स्त्रोत लॉक के अनुसार यथार्थ ज्ञान प्राप्ति को एकमात्र स्त्रोत अनुभव है। अनुभव से ज्ञानबप्राप्ति दो रूपों में होती है- 1. संवेदन (Sensation) 2. स्वसंवेदन (Reflection). इसमें संवेदन पहले होता है और स्वसंवेदन उसके बाद होता है। ये दोनों ही हमारे समस्त ज्ञान का निर्माण करते हैं। संवेदन ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त बाह्य ज्ञान है। इसके द्वारा बाह्य जगत की वस्तुओं के प्रत्यय मन को प्राप्त होते हैं। यह ज्ञान का प्राथामिक स्त्रोत है। स्वसंवेदन मन की आंतरिक क्रियाओं का प्रत्यीकरण है। इससे आन्तरिक भावों या संवेगों-संशय, स्मरण आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। हमारा समस्त ज्ञान इन्ही संवेदनाओं, स्वसंवेदनाओं या दोनों के संयोग से होता है। लॉक के अनुसार संवेदन स्वसंवेदन से पहले होता है। ## ज्ञान का स्वरूप लॉक के अनुसार हमारा ज्ञान प्रत्ययों (Ideas) से निर्मित होता है। संवेदन एवं स्वसंवेदन से हमें ज्ञान प्रत्ययों के रूप में प्राप्त होते हैं। प्रत्ययों के अतिरिक्त किसी पदार्थ का साक्षात ज्ञान हमें नहीं होता। किन्तु प्रत्ययों को ही ज्ञान की संज्ञा नहीं दी जा सकती। ज्ञान तो प्रत्ययों के बीच संगति एवं या विसंगति या विरोधिता के सम्बन्ध के प्रत्यक्ष को कहते हैं। इस प्रकार प्रत्यय ज्ञान नहीं है बल्कि ज्ञान के निर्मायक तत्व हैं। ग्रीक दार्शनिक प्लेटो के दर्शन में प्रत्यय न तो आत्मनिष्ठ हैं और न ही वस्तु-विशेषों में निहित । प्रत्यय की सत्ता इनसे पृथक और स्वतंत्र है। डेकार्ट के अनुसार प्रत्यय जन्मजात हैं। लॉक के अनुसार प्रत्यय अनुभव की ईकाई है। प्रत्यय प्रत्यक्ष, चिंतन और बोध के साक्षात् विषय हैं। लॉक के अनुसार प्रत्यय के दो प्रकार है- सरल प्रत्यय और मिश्र या जटिल प्रत्यय । सरल प्रत्यय वे है जो संवेदन से या स्वसंवेदन से या फिर दोनों से आते हैं। सरल प्रत्यय से जटिल प्रत्ययों का निर्माण होता है। निष्क्रय रूप से सरल प्रत्ययों को ग्रहण करने समय के पश्चात् मन सक्रिय होकर उनके मिश्रण से जटिल प्रत्ययों का निर्माण करते है। ये प्रत्यय ही हमारे समस्त ज्ञान की सामाग्री है। ## ज्ञान की परिभाषा लॉक ज्ञान को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ज्ञान हमारे प्रत्ययों के पारस्परिक सम्बन्ध का, उनकी संगति या असंगति का प्रत्यक्ष मात्र है। प्रत्ययों के बीच संगति या असंगति चार प्रकार की होती है - 1. अभेद या भेद 2. अमूर्त सम्बन्ध 3. सह अस्तित्व 4. यथार्थ अस्तित्व ## ज्ञान के प्रकार लॉक की ज्ञानमीमांसा में तीन प्रकार के ज्ञानों की विवेचना की गई है- 1. इन्द्रिय-ज्ञान : इन्द्रिय ज्ञान या संवेदना ज्ञान द्वारा वाध्य वस्तुओं का ज्ञान होता है । यह अन्य की की अपेक्षा कम प्रमाणिक जान है। 2. प्रातिभ ज्ञान या अन्तः प्रज्ञात्मक ज्ञान : यह सबसे अधिक असंदिग्ध जान है। कुछ ऐसे ज्ञान हैं जिनकी सत्यता में किसी प्रकार का संदेह नहीं होता। जैसे-दिन रात नहीं हैं, काला सफेद नहीं है। यह निश्चयात्मक एवं स्वयंसिद्ध ज्ञान है। इसमें हम दो प्रत्ययों की संगति या असंगति साक्षात् रीति से अन्तः प्रजा द्वारा जानते हैं। आत्मा का ज्ञान अपरोक्ष ज्ञान, प्रातिम जान है। डेकार्ट के दर्शन में जहाँ 'प्रतिभान' इन्द्रियातीत एवं बौद्धिक है वहीं यहाँ इसे आनुभविक माना गया है। 3. निदर्शनात्मक ज्ञान : जब दो विज्ञानों की संगति या असंगति का जान तीसरे विज्ञान के माध्यम से होता है तो उसे निदर्शनात्मक ज्ञान कहते हैं। ईश्वर का ज्ञान इसी श्रेणी में आता है। ज्ञान-प्रत्ययों तक ही सीमित है जिन पदार्थों का प्रत्यय नहीं हो सकता उनका ज्ञान भी संभव नहीं हो सकता । ## ज्ञान की सीमा एवं प्रामाणिकता लॉक के अनुसार चूँकि अनुभव में प्रत्यय मिलते हैं, अतः प्रत्यय ही हमारे जान की सीमा है। हम ऐसे किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते जिसका हमें कोई प्रत्यय न मिलता हो। अभात उसी की सत्ता यहाँ स्वीकार्य है जो अनुभव से संबंधित हो। ज्ञान की प्रामाणिकता के निर्धारण के संदर्भ में लॉक संवादिता सिद्धांत को स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार प्रत्यय के अनुरूप वस्तु के रहने पर ज्ञान सत्य होता है, प्रत्यय के अनुरूप वस्तु के नहीं रहने पर ज्ञान असत्य होता है। ## ज्ञान-ज्ञेय-संबंध : प्रतिनिधिमूलक वस्तुवाद अनुभववादी लॉक ज्ञानमीमांसीय दृष्टिकोण से वस्तुवाद का समर्थन करते हैं। वस्तुवाद एक ऐसा सिद्धांत है जो वस्तु की सता को जाता से पृथक एवं स्वतंत्र मानता है। लॉक के अनुसार वस्तुओं का ज्ञान हमें वस्तुओं में निहित प्राथमिक गुणों के माध्यम से होता है। लॉक के अनुसार प्रत्यय हमारे ज्ञान के साक्षात् विषय हैं। प्रत्ययों से हमें वस्तुओं के गुणों का ज्ञान प्राप्त होता है। लॉक के अनुसार जब इन्द्रिय का किसी वस्तु से संपर्क होता है तो वस्तु अपने मूल गुण की छाप उस इन्द्रिय के माध्यम से चेतन मन में डाल देती है। यही छाप या प्रत्यय वस्तु का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार लॉक प्रत्यक्षीत गुणों के आधार रूप में बाह्य वस्तु की सत्ता को स्वीकार कर लेते हैं। स्पष्ट है कि हम उव्य को साक्षात् रूप से नहीं जानते बाल्क मूल गुणों के अधिष्ठान के रूप में द्रव्य की सत्ता को स्वीकार करते हैं। चूंकि यहाँ प्रत्यक्ष रूपी प्रतिनिधि के प्रत्यक्ष ज्ञान के आधार पर इसके अधिष्ठान स्वरूप दुव्य की सत्ता को स्वीकार किया गया है। इसीलिए इसे प्रतिनिधिमूलक वस्तुवाद कहा जाता है।

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