Std. 9 Hindi Second Language: स्वर्ग बना सकते हैं PDF

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Jamnabai Narsee School

रामधारी सिंह 'दिनकर'

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hindi poetry literature swarg bana sakte hain

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This document is a Hindi (second language) lesson plan and includes information on a poem titled "Swarg bana sakte hain" by the poet Ramdhari Singh Dinkar. It introduces the author and covers the poem's theme and key ideas.

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HINDI (Second Language) स्वर्ग बना सकते हैं Std. 9-10 (रामधारी ससिंह 'दिनकर') कवव पररचय रामधारी ससिंह 'दिनकर' दहन्िी के एक प्रमुख लेखक, कवव व सनबन्धकार हैं । वे आधुसनक युर् के श्रेष्ठ वीर रस के कवव...

HINDI (Second Language) स्वर्ग बना सकते हैं Std. 9-10 (रामधारी ससिंह 'दिनकर') कवव पररचय रामधारी ससिंह 'दिनकर' दहन्िी के एक प्रमुख लेखक, कवव व सनबन्धकार हैं । वे आधुसनक युर् के श्रेष्ठ वीर रस के कवव के रूप में प्रससद्ध हैं । वबहार प्रान्त के मुिंर्ेर जिले का ससमररया घाट उनकी िन्मस्थली है । उन्होंने इसतहास, िर्गनर्ास्त्र और रािनीसत ववज्ञान की पढाई पटना ववश्वववद्यालय से की। उन्होंने सिंस्कृ त, बािंग्ला, अिंग्रि े ी और उिग द का र्हन अध्ययन दकया था। 'दिनकर' स्वतन्रता पदवग एक ववद्रोही कवव के रूप में प्रससद्ध हुए और स्वतन्रता के बाि राष्ट्रकवव के नाम से िाने र्ए। एक ओर उनकी कववताओ में ओि, ववद्रोह, आक्रोर् और क्राजन्त की पुकार है तो िस द री ओर कोमल मानवीय भावनाओिं की असभव्यवि है । भारत सरकार ने इन्हें पदम भदषण से सम्मासनत दकया। प्रमुख रचनाएँ - कुरुक्षेर, रे णुका, हुिंकार, रजममरथी, परर्ुराम की प्रतीक्षा आदि। कदिन र्ब्िाथग धमगराि - युसधवष्ठर, ज्येष्ठ पािंडु पुर क्रीत - खरीिी हुई मुि समीरण - खुली हवा आर्िंका - भय ववघ्न - अड़चन, बाधा न्यायोसचत - न्याय के अनुसार सुलभ - आसानी से प्राप्त भव - सिंसार, िर्त सम - समान र्समत - र्ान्त 1 परस्पर - आपस में भोर् सिंचय - भोल ववलास की वस्तुएँ धन-सिंपवि आदि इकटिा करना ववकीणग - फैला हुआ तुष्ट - सिंतुष्ट कववता का मदलभाव प्रस्तुत कववता ‘स्वर्ग बना सकते हैं ’ के माध्यम से कवव ने मानव-िासत को यह समझाने की कोसर्र् की है दक इस ववर्ाल धरती पर सबका िन्म समान रूप से हुआ है ।धरती पर मौिदि समस्त सिंसधानों पर सम्पदणग मानव-िासत का असध -कार है और उसे अपने ववकास के सलए उनके उपयोर् की स्वतिंरता प्राप्त होनी चादहए दकन्तु कुछ स्वाथी मनुष्यों ने लोभवर् उन पर असधकार िमाना र्ुरू कर दिया है और समाि में भेि-भाव को िन्म दिया है जिससे सिंघषग की सृवष्ट हो रही है । कवव का मानना है दक धरती पर सुख के इतने साधन मौिदि हैं दक उनसे सभी मनुष्यों की आवमयकताएँ पदणग हो सकती हैं । अत: मनुष्यों को अपने लोभ का त्यार् कर समाि में स्वतिंरता, समानता और बिंधुत्व की स्थापना करनी चादहए और धरती को स्वर्ग के समान बनाने की कोसर्र् करनी चादहए। प्र:1 सनम्नसलजखत पद्यािंर् को पढकर उसके नीचे सलखे प्रश्नों के उिर अपने र्ब्िों में सलजखए: प्रभु के दिए हुए सुख इतने हैं ववकीणग धरती पर भोर् सकें िो उन्हें िर्त में, कहाँ अभी इतने नर? सब हो सकते तुष्ट, एक सा सब सुख पा सकते हैं चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं । (i) धरती पर दकसका दिया हुआ क्या फैला हुआ है ? स्पष्ट कीजिए। उिर: धरती पर ईश्वर के दिए हुए असीम सुख के साधन फैले हुए हैं । अन्न उत्पन्न करने वाली उपिाऊ समटटी, वायु, पवगत, झरने, नदियाँ, धदप, चाँिनी, सदरि 2 की िीवनिासयनी दकरण आदि। मानव इनका उपयोर् कर सुख-र्ािंसत से पदणग िीवन व्यतीत कर सकता है । (ii) "कहाँ अभी इतने नर" पिंवि से कवव क्या समझाना चाहते हैं ? उिर: प्रस्तुत पिंवि दवारा कवव यह स्पष्ट करना चाहते हैं दक धरती ने मनुष्य को असीसमत सिंसाधन दिए हैं जिसका उपयोर् मनुष्य अपनी िरूरतों को पदरा करने के सलए कर सकता है । प्रकृ सत में सिंसधानों का इतना भिंडार है दक मनुष्य चाहे भी तो उसका उपयोर् कर उसे समाप्त नहीिं कर सकता है । अत: यदि सबको समान असधकार समले तो सभी व्यवि इन सिंसाधनों का भरपदर प्रयोर् कर सकते हैं और सिंसार से वैमनस्य का भाव भी समट िाएर्ा। (iii) यहाँ दकनके तुष्ट होने की बात की िा रही है ? वे क्यों तुष्ट नहीिं हैं ? वे क्या पाकर सिंतुष्ट हो सकते हैं ? उिर: यहाँ मनुष्यों के उस वर्ग की बात हो रही है जिनके प्रकृ सत दवारा प्रिान दकए र्ए सुख के साधनों पर कुछ स्वाथी और चालाक लोर्ों ने अपना असधकार कर सलया है ।अभाव से ग्रससत मनुष्यों का यह वर्ग सिंतुष्ट नहीिं है क्योंदक असधक पररश्रम के पश्चात भी इन्हें रोटी, कपड़ा और मकान िैसी आवमयक िरूरतों से ववमुख रहना पड़ता है । यदि उन लोर्ों को न्यायोसचत असधकार समले तो वे भी सिंतुष्ट हो िाएँर्।े (iv) पल में धरती को स्वर्ग कैसे बनाया िा सकता है ? उिर: कवव रामधारी ससिंह "दिनकर" प्रर्सतर्ील कवव हैं । उन्होंने सिै व र्ोषक वर्ग का ववरोध दकया है और र्ोवषत वर्ग के दहतों की रक्षा के सलए अपनी कववताओिं का स्वर क्रािंसतमय बनाया है । उनका मानना है दक धरती पर सभी मनुष्य समान रूप से िन्म लेते हैं और िन्म लेते ही धरती के समस्त सिंसाधनों पर उनका असधकार बनता है । यदि सभी मनुष्यों को न्यायोसचत असधकार प्राप्त हो सके तथा समाि में स्वतिंरता, समानता और बिंधुत्व की स्थापना सिंभव हो सके तो धरती को स्वर्ग बनने से कोई नहीिं रोक सकता। --------------------------X ---------------------------------x_------------------------------ 3

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