CH-01 (कैसे कब और कहाँ) PDF

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BeneficentSerpentine1928

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history timelines historical events general knowledge

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This document discusses the importance of dates and timelines in history. It explores the various perspectives on how history is recorded and presented, including historical events, rulers, and their policies. The material explains how this understanding of history has evolved over time and the different ways history can be presented and studied.

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कै से, कब और कह ाँ ❖ त रीख़ें ककतनी महत्वपर्ू ण होती हैं ? :- एक वक्त थ जब इकतह सक र त रीख़ों के ज दू म़ें ही खोए रहते थे। कब ककस र ज की त जपोशी हुई, कब कौन स यद्ध ु हुआ – इन्हीं त रीख़ों पर गम णगमण बहस़ें चलती थीं। आम समझ के कहस ब से इकतह स को त रीख़ों क पय णय म न ज त थ । आपने...

कै से, कब और कह ाँ ❖ त रीख़ें ककतनी महत्वपर्ू ण होती हैं ? :- एक वक्त थ जब इकतह सक र त रीख़ों के ज दू म़ें ही खोए रहते थे। कब ककस र ज की त जपोशी हुई, कब कौन स यद्ध ु हुआ – इन्हीं त रीख़ों पर गम णगमण बहस़ें चलती थीं। आम समझ के कहस ब से इकतह स को त रीख़ों क पय णय म न ज त थ । आपने भी लोग़ों को यह कहते हुए सनु होग : "इकतह स तो बहुत उब ऊ है भई। बस त रीख़ें रटते चले ज ओ!" क्य इकतह स के ब रे म़ें यह ध रर् सही है? इसम़ें कोई शक नहीं कक इकतह स अलग-अलग समय पर आने व ले बदल व़ों के ब रे म़ें ही होत है। इसक संबंध इस ब त से है कक अतीत म़ें चीज़ें ककस तरह की थीं और उनम़ें क्य बदल व आए हैं। जैसे ही हम अतीत और वतणम न की तल ु न करते हैं, हम समय क कजक्र करने लगते हैं। हम "पहले" और "ब द म़ें" की ब त करने लगते हैं। रोजमर ण की कजदं गी म़ें हम अपने आसप स की चीज़ों पर हमेश ऐकतह कसक सव ल नहीं उठ ते। हम चीज़ों को स्व भ कवक म नकर चलते हैं। म नो जो कुछ हम़ें कदख रह है वह हमेश से ऐस ही रह हो। लेककन हम सबके स मने कभी-कभी अचभं े के क्षर् आते हैं। कई ब र हम उत्सक ु हो ज ते हैं और ऐसे सव ल पछ ू ते हैं जो व कई ऐकतह कसक होते हैं। ककसी व्यकक्त को सड़क ककन रे च य के घाँटू भरते देखकर आप इस ब त पर हैर न हो सकते हैं कक च य य कॉफी पीने क चलन शरू ु कब से हुआ होग ? रे लग ड़ी की कखड़की से ब हर झ ाँकते हुए आपके जहन म़ें यह सव ल उठ सकत है कक रे लवे क कनम णर् कब हुआ? रे लग ड़ी के आने से पहले लोग दरू -दरू की य त्र ककस तरह कर प ते थे? सबु ह-सबु ह अखब र पढ़ते हुए आप यह ज नने के कलए उत्सक ु हो सकते हैं कक कजस जम ने म़ें अखब र नहीं छपते थे, उस समय लोग़ों को चीज़ों की ज नक री कै से कमलती थी। ये स रे ऐकतह कसक सव ल हम़ें समय के ब रे म़ें सोचने के कलए प्रेररत कर देते हैं। समय को हमेश स ल य महीऩों के पैम ने पर ही नहीं देख ज सकत । कई ब र ऐसी प्रकक्रय ओ ं के कलए कोई त रीख तय करन व क़ई ग़लत होत है जो एक लंबे समय तक चलती रहती हैं। भ रत म़ें लोग़ों ने अच नक एक कदन सबु ह-सबेरे च य पीन शरू ु नहीं कर कदय थ । इसक स्व द धीरे -धीरे ही उनकी जब न पर चढ़ थ । इस तरह की प्रकक्रय ओ ं के कलए कोई स्पष्ट कतकथ नहीं हो सकती। इसी तरह हम किकटश श सन की स्थ पन के कलए भी कोई एक कतकथ नहीं बत सकते। र ष्ट्रीय आंदोलन ककस कदन शरू ु हुआ य अथणव्यवस्थ य सम ज म़ें ककस कदन बदल व आए, यह बत न भी सभं व नहीं है। ये स री चीज़ें एक लंबे समय म़ें घटती हैं। ऐसे म़ें हम कसर्फण एक अवकध की ही ब त कर सकते हैं, एक लगभग सही अवकध के ब रे म़ें बत सकते हैं जब वे ख स बदल व कदख ई देने शरू ु हुए ह़ोंगे। ❖तो कफर लोग इकतह स को त रीख़ों से जोड़ कर क्य़ों देखते हैं ? :- इस जड़ु व की एक वजह है। एक समय थ जब यद्ध ु और बड़ी-बड़ी घटन ओ ं के ब्योऱों को ही इकतह स म न ज त थ । यह इकतह स र ज -मह र ज ओ ं और उनकी नीकतय़ों के ब रे म़ें होत थ । इकतह सक र यह कलखते थे कक कौन से स ल र ज को त ज पहन य गय , ककस स ल उसक कवव ह हुआ, ककस स ल उसके घर म़ें बच्च पैद हुआ, कौन से स ल उसने कौन सी लड़ ई लड़ी, वह कब मर और उसके ब द कब कौन-स श सक गद्दी पर बैठ । इस तरह की घटन ओ ं के कलए कनकित कतकथ बत ई ज सकती है और इस तरह के इकतह स़ों म़ें कतकथय़ों क महत्व बन रहत है। अब इकतह सक र बहुत स रे दसू रे मद्दु ़ों और दसू रे सव ल़ों के ब रे म़ें भी कलखने लगे हैं। वे इस ब त पर ध्य न देते हैं कक लोग ककस तरह अपनी रोजी-रोटी चल ते थे। वे क्य पैद करते थे और क्य ख ते थे। शहर कै से बने और ब ज र ककस तरह फै ले। ककस तरह ररय सत़ें बनीं, नए कवच र पनपे और संस्कृ कत व सम ज ककस तरह बदले। ❖कौन सी त रीख़ें ? :- कुछ त रीख़ों को महत्वपर्ू ण म नने क पैम न क्य होत है ? हम जो त रीख़ें चनु ते हैं, कजन त रीख़ों के इदण-कगदण हम अतीत की कह नी बनु ते हैं, वे अपने आप म़ें महत्वपर्ू ण नहीं होतीं। वे इसकलए महत्वपर्ू ण हो ज ती हैं क्य़ोंकक हम कुछ ख स घटन ओ ं को महत्वपर्ू ण म नकर चलने लगते हैं। अगर अध्ययन क कवषय बदल ज त है, अगर हम नए मद्दु ़ों पर ध्य न देने लगते हैं तो महत्वपर्ू ण त रीख़ें भी बदल ज ती हैं। एक उद हरर् पर कवच र कीकजए। भ रत म़ें किकटश इकतह सक ऱों ने जो इकतह स कलखे उनम़ें हरे क गवनणर- जनरल क श सनक ल महत्वपर्ू ण है। ये इकतह स प्रथम गवनणर-जनरल वॉरे न हेकस्टंग्स के श सन से शरू ु होते थे और आकखरी व यसरॉय, लॉर्ण म उंटबैटन के स थ खत्म होते थे। अलग-अलग अध्य य़ों म़ें हम दसू रे गवनणर-जनरल़ों - हेकस्टंग्स, वेलेज़्ली, ब़ेंकटंक, र्लहौजी, कै कनंग, लॉऱें स, कलटन, ररपन, कजणन, ह कर्िंग, इरकवन- के ब रे म़ें भी पढ़ते हैं। इस इकतह स म़ें गवनणर-जनरल़ों और व यसरॉय़ों क कभी न खत्म होने व ल कसलकसल ही छ य रहत थ । इकतह स की इन ककत ब़ों म़ें स री त रीख़ों क महत्व इन अकधक ररय़ों, उनकी गकतकवकधय़ों, नीकतय़ों, उपलकब्धय़ों के आध र पर ही तय होत थ । यह ऐसे थ म नो इन लोग़ों के जीवन के ब हर कोई ऐसी चीज नहीं थी कजसे ज नन महत्वपर्ू ण हो। इन लोग़ों के जीवन क क्रम किकटश भ रत के इकतह स म़ें अलग-अलग अध्य य़ों क कवषय बन ज त थ । क्य हम इसी दौर के इकतह स को अलग ढगं से नहीं कलख सकते ? गवनणर-जनरल़ों के इस इकतह स के चौखटे म़ें हम भ रतीय सम ज के कवकभन्न समहू ़ों और वगों की गकतकवकधय़ों पर ककस तरह ध्य न दे सकते हैं? जब हम इकतह स य कोई कह नी कलखते हैं तो उसे टुकड़़ों य अध्य य़ों म़ें ब ाँट देते हैं। हम ऐस क्य़ों करते हैं? ऐस इसकलए ककय ज त है त कक हर अध्य य म़ें कुछ स मंजस्य रहे। इसक मक़सद कह नी को इस तरह स मने ल न होत है कक उसे आस नी से समझ ज सके और य द रख ज सके । इस प्रकक्रय म़ें हम कसर्फण उन घटन ओ ं पर जोर देते हैं जो उस कह नी को पेश करने म़ें मददग र होती हैं। जो इकतह स गवनणर-जनरल़ों के जीवन के इदण-कगदण चलत है उसम़ें भ रतीय़ों की गकतकवकधय ाँ कोई म यने नहीं रखतीं। उनके कलए वह ाँ कोई जगह नहीं होती। तो कफर क्य ककय ज ए? ज कहर है हम़ें अपने इकतह स क एक अलग ख क बन न पड़ेग । इसक मतलब यह है कक अब तक कजन कतकथय़ों को महत्व कदय ज रह थ वे महत्वपर्ू ण नहीं रह़ेंगी। हम रे कलए नयी कतकथय ाँ महत्वपर्ू ण हो ज एाँगी। ❖ हम अवकधय ाँ कै से तय करते हैं ? :- 1817 म़ें स्कॉटलैंर् के अथणश स्त्री और र जनीकतक द शणकनक जेम्स कमल ने तीन कवश ल खर्ं ़ों म़ें A History of British India (किकटश भ रत क इकतह स) न मक एक ककत ब कलखी। इस ककत ब म़ें उन्ह़ोंने भ रत के इकतह स को कहदं ,ू मसु कलम और किकटश, इन तीन क ल खंऱ्ों म़ें ब ाँट थ । क ल खंऱ्ों के इस कनध णरर् को ज़्य द तर लोग़ों ने म न भी कलय । क्य आपको भ रतीय इकतह स को समझने के इस तरीके म़ें कोई समस्य कदख ई देती है? इकतह स को हम अलग-अलग क ल खंऱ्ों म़ें ब ाँटने की कोकशश क्य़ों करते हैं? इसकी भी एक वजह है। हम एक दौर की ख कसयत़ों, उसके क़ें द्रीय तत्व़ों को पकड़ने की कोकशश करते हैं। इसीकलए ऐसे शब्द महत्वपर्ू ण हो ज ते हैं कजनके सह रे हम समय को ब ाँटते हैं। ये शब्द अतीत के ब रे म़ें हम रे कवच ऱों को दश णते हैं। वे हम़ें बत ते हैं कक एक अवकध से दसू री अवकध के बीच आए बदल व़ों क क्य महत्व होत है। कमल को लगत थ कक स रे एकशय ई सम ज सभ्यत के म मले म़ें यरू ोप से पीछे हैं। इकतह स की उनकी समझद री ये थी कक भ रत म़ें अंग्रेज़ों के आने से पहले यह ाँ कहदं ू और मसु लम न त न श ह़ों क ही र ज चलत थ । यह ाँ च ऱों ओर के वल ध कमणक बैर, ज कतगत बधं ऩों और अधं कवश्व स़ों क ही बोलब ल थ । कमल की र य म़ें किकटश श सन भ रत को सभ्यत की र ह पर ले ज सकत थ । इस क म के कलए जरूरी थ कक भ रत म़ें यरू ोपीय कशष्ट च र, कल , संस्थ ऩों और क ननू ़ों को ल गू ककय ज ए। कमल ने तो यह ाँ तक सझु व कदय थ कक अंग्रेज़ों को भ रत के स रे भभू ग पर कब्ज कर लेन च कहए त कक भ रतीय जनत को ज्ञ न और सख ु ी जीवन प्रद न ककय ज सके । उनक म नन थ कक अंग्रेज़ों की मदद के कबन कहदं स्ु त न प्रगकत नहीं कर सकत । इकतह स की इस ध रर् म़ें अंग्रेजी श सन प्रगकत और सभ्यत क प्रतीक थ । अग्रं ेजी श सन से पहले स र अधं क र क दौर थ । क्य इस तरह की ध रर् को स्वीक र ककय ज सकत है? क्य इकतह स के ककसी दौर को "कहदं "ू य "मसु लम न" दौर कह ज सकत है? क्य इन स रे दौऱों म़ें कई तरह के धमण एक स थ नहीं चलते थे? ककसी यगु को के वल उस समय के श सक़ों के धमण के कहस ब से तय करने की जरूरत क्य है? अगर हम ऐस करते हैं तो इसक मतलब यह कहन च हते हैं कक औऱों के जीवन और तौर-तरीक़ों क कोई महत्व नहीं होत । हम़ें य द रखन च कहए कक प्र चीन भ रत म़ें स रे श सक़ों क भी एक धमण नहीं होत थ । अंग्रेज़ों द्व र सझु ए गए वगीकरर् से अलग हटकर इकतह सक र भ रतीय इकतह स को आमतौर पर 'प्र चीन', 'मध्यक लीन', तथ 'आधकु नक' क ल म़ें ब ाँटकर देखते हैं। इस कवभ जन की भी अपनी समस्य एाँ हैं। इकतह स को इन खंऱ्ों म़ें ब ाँटने की यह समझ भी पकिम से आई है। पकिम म़ें आधकु नक क ल को कवज्ञ न, तकण , लोकतंत्र, मकु क्त और सम नत जैसी आधकु नकत की त कत़ों के कवक स क यगु म न ज त है। उनके कलए मध्यक लीन सम ज वे सम ज थे जह ाँ आधकु नक सम ज की ये कवशेषत एाँ नहीं थीं। अंग्रेज़ों के श सन म़ें लोग़ों के प स सम नत , स्वतंत्रत य मकु क्त नहीं थी। न ही यह आकथणक कवक स और प्रगकत क दौर थ । बहुत स रे इकतह सक र इस यगु को 'औपकनवेकशक' यगु कहते हैं। ❖औपकनवेकशक क्य होत है ? :- अंग्रेज़ों ने हम रे देश को जीत और स्थ नीय नव ब़ों और र ज ओ ं को दब कर अपन श सन स्थ कपत ककय । उन्ह़ोंने अथणव्यवस्थ व सम ज पर कनयंत्रर् स्थ कपत ककय , अपने स रे खचों को कनपट ने के कलए र जस्व वसल ू ककय , अपनी जरूरत की चीज़ों को सस्ती कीमत पर खरीद , कनय णत के कलए महत्वपर्ू ण र्फसल़ों की खेती कर यी और इन स री कोकशश़ों के क रर् बहुत से बदल व आए। किकटश श सन के क रर् यह ाँ की मल्ू य-म न्यत ओ ं और पसदं -न पसदं , रीकत-ररव ज व तौर-तरीक़ों म़ें बदल व आए। जब एक देश पर दसू रे देश के दबदबे से इस तरह के र जनीकतक, आकथणक, स म कजक और स ंस्कृ कतक बदल व आते हैं तो इस प्रकक्रय को औपकनवेशीकरर् कह ज त है। लेककन, जल्दी ही आप ये समझ ज एाँगे कक स रे वगण और समहू इन बदल व़ों को एक ही ढंग से अनभु व नहीं कर रहे थे। इसीकलए, इस ककत ब को हम रे अतीत (य नी कई अतीत़ों पर क़ें कद्रत) न म कदय गय है। ❖ हम ककस तरह ज नते हैं ? भ रतीय इकतह स के कपछले 250 स ल क इकतह स कलखने के कलए इकतह सक र कौन से स्रोत़ों क इस्तेम ल करते हैं? प्रश सन अकभलेख तैय र करत है :- अंग्रेजी श सन द्व र तैय र ककए गए सरक री ररकॉर्ण इकतह सक ऱों क एक महत्वपर्ू ण स धन होते हैं। अंग्रेज़ों की म न्यत थी कक चीज़ों को कलखन बहुत महत्वपर्ू ण होत है। उनके कलए हर कनदेश, हर योजन , नीकतगत फै सले, सहमकत, ज ाँच को स र्फ-स र्फ कलखन जरूरी थ । ऐस करने के ब द चीज़ों क अच्छी तरह अध्ययन ककय ज सकत थ और उन पर व द-कवव द ककय ज सकत है। इस समझद री के चलते ज्ञ पन, कटप्पर्ी और प्रकतवेदन पर आध ररत श सन की संस्कृ कत पैद हुई। अंग्रेज़ों को यह भी लगत थ कक तम म अहम दस्त वेज़ों और पत्ऱों को साँभ लकर रखन जरूरी है। कलह ज , उन्ह़ोंने सभी श सकीय संस्थ ऩों म़ें अकभलेख कक्ष भी बनव कदए। तहसील के दफ़्तर, कलेक्टरे ट, ककमश्नर के दफ़्तर, प्र ंतीय सकचव लय, कचहरी-सबके अपने ररकॉर्ण रूम होते थे। महत्वपर्ू ण दस्त वेज़ों को बच कर रखने के कलए अकभलेख ग र (आक णइव) और संग्रह लय जैसे सस्ं थ न भी बन ए गए। उन्नीसवीं सदी की शरुु आत म़ें प्रश सन की एक श ख से दसू री श ख के प स भेजे गए पत्ऱों और ज्ञ पऩों को आप आज भी अकभलेख ग ऱों म़ें देख सकते हैं। वह ाँ आप कजल अकधक ररय़ों द्व र तैय र ककए गए नोट्स और ररपोटण पढ़ सकते हैं य ऊपर बैठे अर्फसऱों द्व र प्र ंतीय अकधक ररय़ों को भेजे गए कनदेश और सझु व देख सकते हैं। उन्नीसवीं सदी के शरुु आती स ल़ों म़ें इन दस्त वेज़ों की स वध नीपवू णक नक़ल़ें बन ई ज ती थीं। उन्ह़ें खश ु नवीसी के म कहर कलखते थे। खश ु नवीसी य सल ु ेखनवीस ऐसे लोग होते हैं जो बहुत संदु र ढंग से चीज़ें कलखते हैं। उन्नीसवीं सदी के मध्य तक छप ई जब नयी कदल्ली क कनम णर् हुआ तो र ष्ट्रीय संग्रह लय और र ष्ट्रीय अकभलेख ग र, दोऩों ही व यसरॉय के कनव स के नजदीक बन ए गए थे। इससे पत चलत है कक अंग्रेज़ों की सोच म़ें इन संस्थ ऩों क ककतन भ री महत्व थ । तकनीक भी फै लने लगी थी। इस तकनीक के सह रे अब प्रत्येक सरक री कवभ ग की क रण व इय़ों के दस्त वेज़ों की कई-कई प्रकतय ाँ बन ई ज ने लगीं। ❖सवेक्षर् क बढ़त महत्व :- औपकनवेकशक श सन के दौर न सवेक्षर् क चलन भी महत्वपर्ू ण होत गय । अंग्रेज़ों क कवश्व स थ कक ककसी देश पर अच्छी तरह श सन चल ने के कलए उसको सही ढंग से ज नन जरूरी होत है। उन्नीसवीं सदी की शरुु आत तक परू े देश क नक्श तैय र करने के कलए बड़े-बड़े सवेक्षर् ककए ज ने लगे। ग वं ़ों म़ें र जस्व सवेक्षर् ककए गए। इन सवेक्षऱ्ों म़ें धरती की सतह, कमट्टी की गर्ु वत्त , वह ाँ कमलने व ले पेड़-पौध़ों और जीव-जंतओ ु ं तथ स्थ नीय इकतह स़ों व र्फसल़ों क पत लग य ज त थ । अग्रं ेज़ों की र य म़ें ककसी इल के क श सन चल ने के कलए इन स री ब त़ों को ज नन जरूरी थ । उन्नीसवीं सदी के आकखर से हर दस स ल म़ें जनगर्न भी की ज ने लगी। जनगर्न के जररए भ रत के सभी प्र ंत़ों म़ें रहने व ले लोग़ों की संख्य , उनकी ज कत, इल के और व्यवस य के ब रे म़ें ज नक ररय ाँ इकट्ठ की ज ती थीं। इसके अल व व नस्पकतक सवेक्षर्, प्र कर् वैज्ञ कनक सवेक्षर्, परु त त्वीय सवेक्षर्, म नवश स्त्रीय सवेक्षर्, वन सवेक्षर् आकद कई दसू रे सवेक्षर् भी ककए ज ते थे। ❖अकधकृत ररकॉर््णस से क्य पत नहीं चलत :- ररकॉर्ड््णस के इस कवश ल भर्ं र से हम बहुत कुछ पत लग सकते हैं। कफर भी, इस ब त को नजरअदं ज नहीं ककय ज सकत कक ये स रे सरक री ररकॉर्ण हैं। इनसे हम़ें यही पत चलत है कक सरक री अर्फसर क्य सोचते थे, उनकी कदलचस्पी ककन चीज़ों म़ें थी और ब द के कलए वे ककन चीज़ों को बच ए रखन च हते थे। इन ररकॉर््णस से हम़ें ये समझने म़ें हमेश मदद नहीं कमलती कक देश के दसू रे लोग क्य महससू करते थे और उनकी क रण व इय़ों की क्य वजह थी। इन ब त़ों को ज नने के कलए हम़ें कहीं और देखन होग । जब हम ऐसे दसू रे स्रोत़ों की तल श म़ें कनकलते हैं तो उनकी भी कोई कमी नहीं रहती। लेककन, सरक री ररकॉर््णस के मक ु बले उन्ह़ें ढूाँढ़न जर मकु ककल स कबत होत है। इस कलह ज से लोग़ों की र् यररय ाँ, तीथण य त्र ओ ं और य कत्रय़ों के संस्मरर्, महत्वपर्ू ण लोग़ों की आत्मकथ एाँ और स्थ नीय ब ज ऱों म़ें कबकने व ली लोककप्रय पस्ु तक-पकु स्तक एाँ महत्वपर्ू ण हो ज ती हैं। जैस-े जैसे छप ई की तकनीक फै ली, अखब र छपने लगे और कवकभन्न मद्दु ़ों पर जनत म़ें बहस भी होने लगी। नेत ओ ं और सधु रक़ों ने अपने कवच ऱों को फै ल ने के कलए कलख , ककवय़ों और उपन्य सक ऱों ने अपनी भ वन ओ ं को व्यक्त करने के कलए कलख । लेककन ये स रे स्रोत उन लोग़ों ने रचे हैं जो पढ़न -कलखन ज नते थे। इनसे हम यह पत नहीं लग सकते कक आकदव सी और ककस न, खद ऩों म़ें क म करने व ले मजदरू य सड़क़ों पर कजदं गी गजु रने व ले गरीब ककस तरह के अनभु व़ों से गजु र रहे थे। अगर हम थोड़ी और कोकशश कऱें तो हम इस ब रे म़ें भी ज न सकते हैं।

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