मेरे गाँव में लड़कियों की कमी नहीं, किन्तु न उनकी यह वेश-भूषा, न यह रंग-रूप? मेरे गाँव की लड़कियाँ कानों में बालियाँ कहाँ डालतीं और भर-बाँह की कमीन भी उन्हें कभी नहीं पहने देखा और,... मेरे गाँव में लड़कियों की कमी नहीं, किन्तु न उनकी यह वेश-भूषा, न यह रंग-रूप? मेरे गाँव की लड़कियाँ कानों में बालियाँ कहाँ डालतीं और भर-बाँह की कमीन भी उन्हें कभी नहीं पहने देखा और, गोरे चेहरे तो मिले हैं, किन्तु इसकी आँखों में जो एक अजीब किस्म का नीलापन दीखता, वह कहाँ? और समूचे चेहरे की काट भी कुछ निराली जरूर-तभी तो मैं उसे एकटक घूरने लगा। मैं पढ़ते-पढ़ते बढ़ता गया। बढ़ने पर पढ़ने के लिए शहरों में जाना पड़ा। छुट्टियों में जब-तब आता। इधर रजिया पढ़ तो नहीं सकी, हाँ, बढ़ने में मुझसे पीछे नहीं रही। कुछ दिनों तक अपनी माँ के पीछे-पीछे घूमती फिरी। अभी उसके सिर पर चूड़ियों की खँचिया तो नहीं पड़ी, किन्तु खरीदारिनों के हाथों चूड़ियाँ पिन्हाने की कला वह जान गयी थी। उसके हाथ मुलायम थे, बहुत मुलायम, नयी बहुओं की यही राय थी। वे इसी के हाथ से चूड़ियाँ पहनना पसन्द करतीं। उसकी माँ इससे प्रसन्न ही हुई-जब तब रजिया चूड़ियाँ पिन्हाती, वह नयी-नयी खरीदारिनें फँसाती। हाँ, रजिया अपने पेशे में भी निपुण होती जाती थी। चूड़िहारिन के पेशे के लिए सिर्फ यही नहीं चाहिए कि उसके पास रंग-बिरंग की चूड़ियाँ हों-सस्ती, टिकाऊ, टटके से टटके फैशन की। बल्कि यह पेशा चूड़ियों के साथ चूड़िहारिनों के बनाव-शृंगार, रूप-रंग, नाजोअदा भी खोजता है। जो चूड़ी पहनने वालियों को ही नहीं, उनको भी मोह सके, जिनकी जेब से चूड़ियों के लिए पैसे निकलते हैं, सफल चूड़िहारिन वह! यह रजिया की माँ भी किसी जमाने में क्या कुछ कम रही होगी-खंडहर कहता है, इमारत शानदार थी। ज्यों-ज्यों शहर में रहना बढ़ता गया, रजिया से भेंट भी दुर्लभ होती गयी। और एक दिन वह भी आया, जब बहुत दिनों पर उसे अपने गाँव में देखा, पाया उसके पीछे एक नौजवान चूड़ियों की खाँची सिर पर लिये है। मुझे देखते ही वह सहमी, सिकुड़ी और मैंने मान लिया, यह उसका पति है। किन्तु तो भी अनजान सा पूछ ही दिया- “इस मजदूरे को कहाँ से उठा लायी है रे?” “इसी से पूछिए, साथ लग गया, तो क्या करूँ।” नवजवान मुस्कराया, रजिया विहँसी, बोली ‘यही मेरी खाविन्द है मालिक। मैं भौचक्का, कुछ सूझ नहीं रहा, कुछ समझ में नहीं आ रहा। लोग मुस्करा रहे हैं। नेताजी, आज आपकी कलई खुल कर रही है। नहीं। यह सपना है कि कानों में सुनायी पड़ा, एक कह रहा है-कैसी शोख लड़की! और दूसरा बोलता है ठीक अपनी दादी जैसी। और तीसरे ने मेरे होश की दवा दी-यह रजिया की पोती है बाबू! बेचारी बीमार पड़ी है। आपकी चर्चा अक्सर किया करती है। बड़ी तारीफ करती है! फर्सत हो तो जरा देख लीजिए, न जाने बेचारी जीती है या
Understand the Problem
यह प्रश्न गाँव की लड़कियों, उनकी वेश-भूषा और पारिवारिक जीवन के संदर्भ में एक व्यक्तित्व का अनुभव साझा कर रहा है। इसमें पात्र रजिया के विकास, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि तथा उसके पति के साथ संबंध का जिक्र है। यह कहानी न केवल व्यक्तिगत जीवन की झलक प्रदान करती है, बल्कि गाँव की संस्कृति और महिलाओं की संभावनाओं पर भी प्रश्न उठाती है।
Answer
गाँव की लड़कियों की विशेषताएँ और रजिया के साथ बदलाव।
यह कथन एक व्यक्ति के गाँव और उसकी यादों के बारे में है, जहाँ वह गाँव की लड़कियों की विशेषताएँ बताता है और समय के साथ आए बदलावों का वर्णन करता है। साथ ही, वह एक विशेष लड़की रजिया के बारे में भी बात करता है, जो उसके लिए खास थी, लेकिन समय के साथ उनसे मुलाकात कम हो गई। उसकी बरसों बाद उसे देखने की घटना भी वर्णित है।
Answer for screen readers
यह कथन एक व्यक्ति के गाँव और उसकी यादों के बारे में है, जहाँ वह गाँव की लड़कियों की विशेषताएँ बताता है और समय के साथ आए बदलावों का वर्णन करता है। साथ ही, वह एक विशेष लड़की रजिया के बारे में भी बात करता है, जो उसके लिए खास थी, लेकिन समय के साथ उनसे मुलाकात कम हो गई। उसकी बरसों बाद उसे देखने की घटना भी वर्णित है।
More Information
यह टेक्स्ट ग्रामीण जीवन के बदलाव और सामाजिक संरचना को चित्रित करता है। यह दिखाता है कि समय के साथ पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के बीच संघर्ष कैसे हो सकता है।
Tips
कहानी में वर्णित धार्मिक और सामाजिक संदर्भों को ध्यान न देना, पाठ के गहरे अर्थ को समझने में बाधा बन सकता है।