Summary

इस दस्तावेज़ में फड़ चित्रण के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है, जिसमें फड़ चित्रण की प्रक्रिया, प्रमुख फड़ें, और प्रसिद्ध फड़ चित्रकार शामिल हैं।

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# लोक कला ## फड़ चित्रण - हाथ से बुने हुए रेजी अथवा खादी के कपड़े पर लोक देवताओं की जीवन गाथाएँ, धार्मिक व पौराणिक कथाएँ व ऐतिहासिक गाथाओं के चित्रित स्वरूप को ही फड़ कहा जाता है। - शाहपुरा फड़ चित्रण का मुख्य केन्द्र है। - फड़ चित्रित करने का सर्वाधिक कार्य शाहपुरा के जोशी गोत्र के छीपे करते हैं...

# लोक कला ## फड़ चित्रण - हाथ से बुने हुए रेजी अथवा खादी के कपड़े पर लोक देवताओं की जीवन गाथाएँ, धार्मिक व पौराणिक कथाएँ व ऐतिहासिक गाथाओं के चित्रित स्वरूप को ही फड़ कहा जाता है। - शाहपुरा फड़ चित्रण का मुख्य केन्द्र है। - फड़ चित्रित करने का सर्वाधिक कार्य शाहपुरा के जोशी गोत्र के छीपे करते हैं, जिन्हें चितेरा कहा जाता है। ## प्रमुख फड़ें | फड़ | फड़ वाचक | वाद्य यंत्र | विशेश विवरण | |---|---|---|---| | पाबूजी की फड़ | 'नायक' या 'आयड़ी' भोपे | रावणहत्था | 1. यह सबसे लोकप्रिय फड़ है। यह पूरे पश्चिमी राजस्थान में प्रचलित है। 2. इस फड़ में मुख के सामने 'भाले' का चित्र होता है तथा पाबूजी की घोड़ी 'केसर कालमी' को काले रंग से चित्रित किया जाता है। 3. इस फड़ को नायक जाति के भोपे व भोपिन द्वारा रात में रावणहत्था वाद्य के साथ बाँचा जाता है। इसे खींचियों के गाँवों में नहीं बाँचा जाता। बाड़मेर जिले में भील लोग पाबूजी के भोपे होते हैं, जो 'गूजरी' वाद्य के साथ इसका वाचन करते हैं। | | देवनारायणजी की फड़ | गूजर भोपे | जंतर | 1. देवनारायणजी की फड़ चित्रांकन में 'सर्प' का चित्र होता है तथा इनकी घोड़ी 'लीलागर' को हरे रंग से चित्रित किया जाता है। यह सबसे पुरानी, सबसे अधिक चित्रांकन व सबसे लम्बी गाथा वाली फड़ है। 2. इसका वाचन दो या तीन भोपों द्वारा रात में जन्तर लोक वाद्य के साथ किया जाता है। देवनारायणजी की फड़ का वाचन देवउठनी एकादशी के बाद से प्रारंभ होता है एवं देवशयनी एकादशी तक चलता है। | | रामदेवजी की फड़ | 'कामड़' जाति के भोपे | रावणहत्था | 1. रामदेवजी की जीवनगाथा का चित्रण करने वाली फड़ का चित्रांकन सर्वप्रथम चौथमल चितेरे ने किया। इसका वाचन भी रात्रि में पाबूजी के भोपे, भोपी द्वारा किया जाता है। | | रामदला व कृष्ण दला की फड़ | भाट जाति के भोपे | बिना किसी वाद्य के | 2. यह फड़ मेघवाल, कोली, रैगर तथा बलाइयों आदि में अधिक प्रचलित है, जो रामदेवजी के भक्त होते हैं। 1. इन फड़ों में किसी एक व्यक्तित्व की संपूर्ण गाथा का चित्रण न होकर समस्त चराचर जगत के लेखे-जोखे के चित्रण के साथ-साथ राम अथवा कृष्ण के जीवन की प्रमुख घटनाओं का चित्रण किया जाता है। 2. इसके वाचक हाड़ौती क्षेत्र में अधिक हैं। रामदला की फड़ का सर्वप्रथम चित्रांकन शाहपुरा के धूलजी चितेरे ने किया। इनका वाचन दिन में किया जाता है। रामदला की फड़ में रामायण की कथा का वाचन करते हैं, जो अलवर-भरतपुर-डीग क्षेत्र में सर्वाधिक प्रचलित है। | ## प्रसिद्ध फड़ चितेरे/चित्रकार: - श्रीलाल जोशी (शाहपुरा) - अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चितेरे। - प्रदीप मुखर्जी (जयपुर) - श्रीलाल जोशी के शिष्य। - श्री शांतिलाल जोशी (शाहपुरा) - राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित। - नन्दकिशोर जोशी (शाहपुरा) - प्रसिद्ध चित्रकार। ## श्रीलाल जोशी: - संबंध - फड़ चित्रण - पुरस्कार- - राष्ट्रीय पुरस्कार (1984 ई.) - पद्मश्री सम्मान (2006) - शिल्पगुरु पुरस्कार (2007) - पद्मश्री श्रीलाल जोशी ने देवनारायणजी की फड़ की रचना की है, जिस पर भारतीय डाक विभाग ने 2 सितम्बर, 1992 ई. को देवनारायण जयंती के अवसर पर 5 रु. का डाक टिकट जारी किया। - अन्य चित्रांकन- हल्दीघाटी युद्ध, पद्मिनी जौहर, गोरा-बादल की शौर्यकथा, हाड़ी रानी, अमरसिंह राठौड़, महावीर का पंचकल्याण आदि। - फड़ निर्माण के लिए सर्वप्रथम मोटे हाथ के दो सूती कपड़ों पर गेहूँ या चावल के मांड में गोंद मिलाकर कलफ लगाया जाता है। तत्पश्चात् सतह को समतल कर इस पर पाँच या सात रंगों से चित्रण किया जाता है। फड़ चित्रण में लाल व हरे रंग का विशेष रूप से प्रयोग होता है। ## फड़ चित्रण में देवियाँ- नीली, देव-लाल, राक्षस-काले, साधु-सफेद पीले होते हैं और सिन्दूरी व लाल रंग शौर्य व वीरता के प्रतीक हैं। ## महत्त्वपूर्ण: - सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ - पाबूजी की फड़ - सबसे लंबी फड़ - देवनारायणजी की सवारी फड़ - सबसे छोटी फड़ - देवनारायणजी (2×2 सेमी) - देश की प्रथम महिला फड़ चितेरी - श्रीमती पार्वती जोशी (कन्हैयालाल जोशी की पत्नी) - श्रीमती गौतली देवी- अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फड़ कलाकार बन चुकी हैं। - भैंसासुर की फड़ का वाचन नहीं किया जाता है। - फड़ फट जाने पर पुष्करजी में विसर्जित कर दी जाती है, जिसे फड़ ठंडी करना कहते हैं। 340 राजस्थान सामान्य ज्ञान

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