हिंदी भाषा : संप्रेषण और संचार (हिंदी-क) PDF

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मुक्त शिक्षा विद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय

डॉ. हिमांशी श्रीवास्तव

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communication sanskrit hindi language human interaction

Summary

यह दस्तावेज हिंदी भाषा में संप्रेषण और संचार की अवधारणा, महत्व और प्रक्रियाओं पर चर्चा करता है. यह संप्रेषण के विभिन्न पहलुओं और इसकी परिभाषाओं पर प्रकाश डालता है. विद्यार्थियों के लिए यह एक शैक्षणिक संदर्भ सामग्री है.

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# हिंदी भाषा : संप्रेषण और संचार (हिंदी-क) ## इकाई-1 ### 1. संप्रेषण : सामान्य परिचय #### 1. संप्रेषण की अवधारणा और उसकी प्रक्रिया - डॉ. हिमांशी श्रीवास्तव - गेस्ट टीचर - मुक्त शिक्षा विद्यालय - दिल्ली विश्वविद्यालय - दिल्ली ### रूपरेखा - 1.1 अधिगम का उद्देश्य - 1.2 प्रस्तावना - 1.3 संप्रेषण क...

# हिंदी भाषा : संप्रेषण और संचार (हिंदी-क) ## इकाई-1 ### 1. संप्रेषण : सामान्य परिचय #### 1. संप्रेषण की अवधारणा और उसकी प्रक्रिया - डॉ. हिमांशी श्रीवास्तव - गेस्ट टीचर - मुक्त शिक्षा विद्यालय - दिल्ली विश्वविद्यालय - दिल्ली ### रूपरेखा - 1.1 अधिगम का उद्देश्य - 1.2 प्रस्तावना - 1.3 संप्रेषण की अवधारणा - 1.3.1 बोध-प्रश्न - 1.4 संप्रेषण के तत्त्व - 1.4.1 बोध-प्रश्न - 1.5 संप्रेषण का महत्त्व - 1.5.1 बोध-प्रश्न - 1.6 संप्रेषण की प्रक्रिया - 1.7 निष्कर्ष - 1.8 अभ्यास-प्रश्न - 1.9 संदर्भ-ग्रंथ #### 1.1 अधिगम का उद्देश्य इस पाठ को पढ़कर विद्यार्थी निम्नलिखित बातों को समझने में सक्षम हो सकेंगे- 1. संप्रेषण की अवधारणा-अर्थ, परिभाषा एवं संप्रेषण के तत्त्वों को जान सकेंगे। 2. मानव-जीवन में संप्रेषण के महत्त्व से अवगत हो सकेंगे। 3. संप्रेषण-प्रक्रिया से अवगत हो सकेंगे। 4. संप्रेषण की अवधारणा, महत्त्व एवं संप्रेषण-प्रक्रिया के विषय में अपनी राय दे सकेंगे। #### 1.2 प्रस्तावना व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज से स्वयं को (संबद्ध रखने) के लिए विचारों का आदान-प्रदान करना पड़ता है। मनुष्य एवं समाज के बीच सार्थक ध्वनियों द्वारा विचारों का जो आदान-प्रदान होता है, उसे भाषा कहते हैं और विचारों के इसी आदान-प्रदान के बीच जो भावनाएँ एक-दूसरे तक पहुँचती हैं उसे संप्रेषण कहते हैं। संप्रेषण मूलतः भाषा द्वारा अभिव्यक्त वह भाव या शैली है, जो वक्ता से श्रोता तक सार्थक विचारों को प्रेषित करता है। वास्तव में वही संप्रेषण सार्थक या सफल होता है, जो एक-दूसरे के बीच तादात्म्य स्थापित कर पाने में सक्षम होता है। वक्ता की भाषा कितनी ही सरल, सहज या भावपूर्ण क्यों न हो, अगर वह श्रोता से संबंध स्थापित नहीं कर पाता तो, उसे असफल संप्रेषण ही कहेंगे। संप्रेषण वास्तव में अपने विचारों को किसी अन्य तक पहुँचाने का एक तरीका है, जिसे भाषा का पूरक भी कहा जा सकता है। प्रस्तुत पाठ में हम संप्रेषण को भली-भाँति समझने के लिए उसकी अवधारणा महत्त्व और उसकी प्रक्रिया (जैसे तथ्यों) को ही रेखांकित करेंगे। संप्रेषण के संबद्ध में सहज ही यह जिज्ञासा जगती है कि संप्रेषण क्या है, कैसे या किससे होता है। इन समस्त जिज्ञासाओं के समाधान के लिए संप्रेषण की अवधारणा को जानना आवश्यक है। #### 1.3 संप्रेषण की अवधारणा मानव जीवन संप्रेषण यानी विचारों के आदान-प्रदान से परिपूर्ण है। कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य संप्रेषण में सक्रिय रहता है। सामान्यतः एक व्यक्ति अपने सक्रिय समय में से लगभग दो-तिहाई से अधिक समय प्रत्यक्षतः सुनते, बोलते या फिर पढ़ते-लिखते यानी संप्रेषण में सक्रिय रहते हुए व्यतीत करता है। संप्रेषण के संबंध में सहज ही यह जिज्ञासा जगती है कि संप्रेषण क्या है, कैसे या किससे होता है। इन समस्त जिज्ञासाओं के समाधान के लिए, संप्रेषण की अवधारणा को जानना आवश्यक है। संप्रेषण शब्द की व्युत्पत्ति 'सम' + 'प्रेषण' के योग से हुई है। सम् यानी समान रूप से, पूरी तरह से और प्रेषण यानी आगे भेजना, अग्रसर करना। इन दोनों शब्दों के संयोग से बने 'संप्रेषण' शब्द से आशय है-समान रूप से भेजा गया। यानी बातचीत या भाषा में किसी सूचना या विचार को सम्यक् रूप से सामने वाले व्यक्ति तक भेजना। किसी शब्द के अर्थ को जानने का एक तरीका भाषा में प्रचलित उसके समानार्थी शब्द के अर्थों से भी जानने का है। इस नज़रिए से संप्रेषण के लिए हिंदी में संचार और संवाद शब्द भी प्रचलित है। यहाँ संचार शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की 'चर' धातु से हुई है। चर से आशय है-चलना। यहाँ संचार शब्द का गंभीर अर्थ है-निरंतर आगे बढ़ते रहने वाली प्रक्रिया। यहाँ 'संप्रेषण' और 'संचार' शब्द से आशय निकलता है-समाज में व्यक्तियों का भावों एवं विचारों का परस्पर आदान-प्रदान। संप्रेषण का अंग्रेजी पयार्य 'Communication' है। Communication शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन के Communies (कम्युनिज) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ-to share, to transmit, to exchange यानी भागीदारी, स्थानांतरण और आदान-प्रदान। यदि हम To share, to transmit और to exchange के अर्थ संदर्भ को देखें तो इससे स्पष्ट है To share भागीदारी यानी किसी को अपने भावों एवं विचारों से अवगत कराना। to transmit- स्थानांतरण यानी भावों एवं विचारों को एक स्थान से किसी अन्य स्थान पर पहुँचाना। ऐसे ही To Exchange- आदान-प्रदान से आशय है-भावों एवं विचारों का परस्पर आदान-प्रदान। संप्रेषण के समानार्थी अंग्रेजी शब्द कम्युनिकेशन का अर्थ है-एक तरह की 'कॉमननेस'- साझा, सहभागिता या सामान्यता। इससे संप्रेषण का अर्थ निकलता है-एक तरह की सहभागिता उत्पन्न करना या सर्वसामान्यता लाना। सुस्मिता बाला एवं अंबरीष सक्सेना ने लैटिन के Communis के अर्थ-संदर्भ को स्पष्ट करते हुए लिखा है- To Share- आदान प्रदान करना, बाँटना (ज्ञान, परेशानी, संवेदना, खुशी आदि) केवल विचार ही नहीं भावनाएँ भी। To Impart – प्रदान करना, बताना, उदाहरण के लिए कक्षा में अध्यापक छात्र को सूचनाएँ प्रदान करता है। To Transmit- बताना, पहुँचाना, भेजना, संचारित, प्रसारित, प्रेषित करना। इस काम में उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है। To make Common- संचार में संचार में शामिल लोगों का एक ही धरातल पर जाना।"¹ सूचना एवं तकनीक के क्षेत्र में संप्रेषण एक तकनीकी शब्द है, जिसका अर्थ है-किसी सूचना या जानकारी को दूसरों तक पहुँचाना। संप्रेषण के द्वारा समाज में व्यक्ति के संबंध और अधिक विकसित होते हैं। वस्तुतः "संप्रेषण एक शक्ति है जो समाज की जड़ों को पोषित करती है। संप्रेषण का नेटवर्क ही पारिवारिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सांप्रदायिक, भाषिक, वैश्विक आदि संबंधों की नींव रखता है। भाषा की उत्पत्ति से लेकर आज तक संप्रेषण ने मानव के विकास के अनेक युग देखे हैं। आज का युग संप्रेषण की दृष्टि से विशिष्ट है, क्योंकि यह 'सूचना क्रांति' का युग है, जहाँ अपनी बात को आजादी से कहना मनुष्य का अधिकार है। संप्रेषण, वक्ता और श्रोता की व्यक्तिगत और सामूहिक सीमाओं से आगे निकलकर विश्व स्तर तक पहुँच गया है। बाज़ारी उपनिवेशवाद का हिस्सा बन गया है।"² संप्रेषण मानव जीवन की वन एक अनिवार्य आवश्यकता है। इस आवश्यकता को देखते हुए विभिन्न सामाजशास्त्रियों, मनोवैज्ञानिकों ने संप्रेषण को शब्दबद्ध कर प्रस्तुत किया। इस विषय में डॉ. देवेंद्र इस्सर ने सिरेनो और मौर्टसेन के हवाले से लिखा है- “हाल के वर्षों में गवेषणा-कार्य की गति संप्रेषण-क्षेत्र के विशिष्ट प्रकरण और उसे अधिक स्पष्ट करने की दिशा में बहुत धीमी रही है। हाल की एक समीक्षा के अनुसार प्रचलित गवेषणा साहित्य में संप्रेषण शब्द की 25 विभिन्न संकल्पनाओं का प्रयोग देखा गया है। अनुसंधानकर्ताओं को अभी संप्रेषण की एक पूर्णतः स्वीकार्य व्याख्या स्थापित करनी है। वे इस पर भी सहमत नहीं हैं कि मानव-संप्रेषण प्रक्रिया में कौन-सी बात सामान्य है। संप्रेषण-प्रक्रिया के 50 से अधिक विभिन्न विवरण प्रकाशित हुए हैं। इस प्रकार की संकल्पना संबंधी समस्याएँ एक सामान्य मॉडल तैयार करने की दिशा में किये गये अनेक प्रयासों को सीमित कर देती हैं। सन् 1949 में शेनान और वीवर द्वारा संप्रेषण का एक गणितीय मॉडल प्रकाशित किये जाने के बाद संप्रेषण साहित्य में 15 से भी अधिक मॉडलों का विवरण जुड़ गया है। ' 13 इससे संप्रेषण की परिभाषा में वैविध्य के साथ-साथ विरोधाभास भी देखने को मिलता है क्योंकि यह वैयक्तिक रूप से आत्मगत भी हो सकता है और अन्यों के साथ सामूहिक रूप में भी हो सकता है। मुख्य बात यह है कि संप्रेषण आत्मगत हो या फिर दूसरे दूसरों के साथ यह एक ऐसी विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसमें एक या एकाधिक व्यक्ति अपने भावों, विचारों एवं तथ्यों का इस प्रकार आदान-प्रदान करते हैं, जिससे प्रत्येक को संदेश का अर्थ, आशय और उसके उपभोग की समझ का लाभ सभी उठा सकें। निष्कर्षतः संप्रेषण किसी विशिष्ट संदेश के लिए संप्रेषण संदेश और संदेश प्राप्तकर्ता को समानुभूति के साथ जोड़ने का काम है। लुइस ए. ऐलन संप्रेषण को बड़ा महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उनके अनुसार-"Communication is the sum of the things one person does when he want to create understanding in the mind of another. It is a bridge of meaning. It involves a systematic and continuous process of telling, listening and understanding." अर्थात् “संचार से आशय उन समस्त साधनों से है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपनी विचारधारा को दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में डालने के लिए अथवा उसे समझाने के लिए अपनाता है। यह वास्तव में दो व्यक्तियों के मस्तिष्क के बीच की खाई को पाटने वाला सेतु है। इसके अंतर्गत कहने, सुनने तथा समझने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया सदैव चालू रहती है।" चार्ल्स ई. रेडफील्ड के अनुसार- "Communication is the broad field of human interchange of facts and opinions and not the technologies of telegraph, radio and the like." अर्थात् “संप्रेषण से तात्पर्य उस व्यापक क्षेत्र से है जिसके माध्यम से मानव तथ्यों एवं सम्मतियों का आदान-प्रदान करते हैं। टेलीफोन, तार, रेडियो अथवा इसी प्रकार के अन्य तकनीकी साधान संप्रेषण नहीं है।" यहाँ रेडफील्ड का आशय यह है कि यद्यपि तार, टेलीफोन, रेडियो आदि का संप्रेषण के साधनों का प्रतीक समझा जाता है किंतु संप्रेषण का वास्तविक अर्थ संप्रेषक की विचारधारा एवं अभिव्यक्तियों को समझना है। तकनीकी साधन तो सिर्फ माध्यम भर होते हैं। ई.एम. रोजर एवं शूमेकर के अनुसार “संप्रेषण वह प्रक्रिया है जिसमें स्रोत एवं श्रोता के मध्य सूचनाओं का संप्रेषण होता है। इस प्रकार संप्रेषण विचारों के आदान-प्रदान से संबद्ध है।'' चार्ल्स ई. आसगुड संप्रेषण को शब्दबद्ध करते हुए कहते हैं–"In the most general sense we have communication whenever one system a source influence, another the destination by manipulation of alternative, signals which can be transmitted over the channels connecting them." अर्थात् “आम तौर पर संचार तब होता है जब कोई ढाँचा या स्रोत किसी अन्य को प्रभावित करे, कुशलतापूर्वक विभिन्न संकेतों का प्रयोग करके उन साधनों के द्वारा जो उन्हें जोड़ते हो।" जे. पॉल लोगन्स संप्रेषण को शब्दबद्ध करते हुए कहते हैं- "यह एक प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक ऐसे रूप में विचारों, तथ्यों, अनुभवों अथवा प्रभावों का विनिमय (Exchange) करते हैं, जिससे प्रत्येक व्यक्ति संदेश का सामान्य ज्ञान प्राप्त कर लेता है।” वास्तव में, संप्रेषक और संग्राहक के बीच किसी संदेश अथवा संदेशों की श्रृंखला को प्राप्त करने की सम्मिलित प्रक्रिया संप्रेषण कहलाती है। L. Ron Hubbard has described Communication in terms of ARC triangle. A stands for affinity, R for reality and C for Communication. Communication in ARC Triangle has been stated to be the most important in understanding the composition of human relations and thus human life. अर्थात् एल.रान. हबर्ड ने संचार को ARC त्रिकोण के माध्यम से समझाने की कोशिश की। का प्रयोग लगाव के लिए, R का प्रयोग वास्तविकता के लिए तथा C का प्रयोग संचार के लिए किया गया है। मानवीय संबंधों के स्वरूप और इस प्रकार मानव जीवन को समझने के लिए ARC त्रिकोण को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लुंडवर्ग के अनुसार- संचार वह पारस्परिक क्रिया क्रिया है जो प्रतीकों के माध्यम से घटित होती है। ये प्रतीक चित्र, मौखिक या अन्य किसी रूप में हो सकते हैं। प्रतीकों के माधयम से होने वाला संचार उसके संप्रेषण में आने वाले अवरोधों को रोक लेता है। इस प्रकार प्रतीक-युक्त संचार संदेशों को कम कर देते हैं। संप्रेषण में यदि प्रतीकों का कुशलता के साथ प्रयोग किया जाए तो जटिल विचार तथा तकनीकी ज्ञान में साझेदारी भली-भाँति की जा सकती है। उपयुक्त प्रतीकों का प्रयोग कर स्वाभाविक कुशलता से परे हटकर संप्रेषण किया जा सकता है। Trenhalin "In the main, communication has its central interest those behavioral situations in which a source transmits a message to receiver (s) with conscious intent to alter the latter's behavior. Here, the dimension of intentionality underlying communication is the key lecture involved in the delineation." इन सभी परिभाषाओं का निष्कर्ष है- 'To make common' अर्थात 'सबका बन जाना', सामान्यीकृत हो जाना। भारतीय रस सिद्धांत के 'साधारणीकरण' का अर्थ इस 'सामान्यीकृत' शब्द के बहुत नज़दीक है, जहाँ एक व्यक्ति के भाव, विचार दूसरे व्यक्ति के- हृदय तक पहुँच जाते हैं, साधारणीकृत हो जाते हैं। संक्षेप में, संप्रेषण के विषय में उपर्युक्त परिभाषाओं पर अध्ययन-मनन करने के पश्चात् कहा जा सकता है कि संप्रेषण एक व्यवस्थित, सोद्देश्य एवं सतत् गतिशील रहने वाली प्रक्रिया है, जिसे सामान्यतः दो या दो से अधिक व्यक्ति परस्पर भावों, विचारों तथ्यों एवं सूचनाओं, सम्मितियों आदि का आदान-प्रदान करते हैं। जिससे एक सामान्य समझ विकसित हो सके। आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संप्रेषण का महत्त्व स्वीकार किया जा रहा है। वस्तुतः यह कहना उचित होगा कि इस परस्पर भाषिक व्यवहार का माध्यम जो भी हो (पत्र लेखन, रेडियो प्रसारण, समाचार पत्र, टेलीफोन पर बात-चीत, संकेत या हाव-भाव) इन सबके मूल में कोई संदेश होता है। अतः संप्रेषण का केंद्र-बिंदु संदेश ही है। #### 1.3.1 बोध-प्रश्न प्रश्न (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 'हाँ' या 'नहीं' में दीजिए- 1. संप्रेषण मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। (हाँ/नहीं) 2. संप्रेषण में परस्पर साझेदारी की प्रक्रिया विद्यमान होती है। (हाँ/नहीं) प्रश्न (ख) कोष्ठक में दिए गए शब्दों में से सही शब्द चुनकर रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए- 1. संप्रेषण का महत्त्व एवं ..................... हर युग एवं कालखंड में रही है। (भाव, स्वरूप, उपयोगिता, आवश्यकता) 2. वैयक्तिक संप्रेषण में व्यक्ति अपने किन भावों का रूप ..................... स्पष्ट करता है। (आत्मगत, व्यवहारगत, अनुभवगत, भावगत) #### 1.4 संप्रेषण के तत्त्व संप्रेषण की अवधारणा को समझने के लिए संप्रेषण के तत्त्वों का बात करना भी जरूरी है। संप्रेषण के तत्त्व से आशय है संप्रेषण के रूप-आकार प्रदान करने वाले घटक। संप्रेषण प्रक्रिया में वक्ता, संदेश और श्रोता की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। ये ही इसके प्रमुख तत्त्व हैं। लेकिन विद्वानों ने माध्यम और फीडबैक को भी संप्रेषण के महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना है। इस प्रकार संप्रेषण के पाँच प्रमुख तत्त्व ठहरते हैं- (i) संप्रेषक/स्रोत, (ii) संदेश, (iii) माध्यम, (iv) ग्राही/लक्ष्य, (v) फीडबैक । संक्षेप में, संप्रेषण के तत्त्वों का विवरण इस प्रकार है- (i) स्रोत/संप्रेषक - संप्रेषण-प्रक्रिया में संप्रेषण का आरंभ संप्रेषक ही है। संप्रेषक में संप्रेषण हेतु संप्रेषण की प्रवीणता, प्रवृत्ति और सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार का ज्ञान होना चाहिए। इसमें संप्रेषण प्रवीणता हेतु-बोलना, लिखना, पढ़ना, सुनना एवं तर्क-वितर्क करना आता है। इनके अतिरिक्त भाषायी ज्ञान, संकेत करना एवं चित्र बनाना आदि भी संप्रेषण-प्रवीणता में वृद्धि करते हैं। प्रवृत्ति से आशय है पहला संप्रेषक का संदेश ग्रहीता के प्रति दृष्टिकोण एवं उसके साथ व्यवहार, दूसरा संदेश की विषय वस्तु के प्रति संप्रेषक की धारणा और तीसरा संप्रेषक का संप्रेषण के समय रवैया आदि। ऐसे संप्रेषक को संप्रेषण करते समय समाज के वर्गों-अमीर-गरीब, शिक्षित-अशिक्षित, युवा-वृद्ध एवं बाल वर्ग आदि का ध्यान रखना चाहिए। समाज एवं संस्कृति के ज्ञान के अभाव में संप्रेषक की संप्रेषण प्रक्रिया बाधित हो सकती है। (ii) संदेश- संप्रेषण प्रक्रिया में संप्रेषक जो कुछ भी कहना चाहता है श्रोता के समक्ष वह सब उसका संदेश है। संदेश की रचना के वक्त संप्रेषक को कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना चाहिए जैसे- 1. संदेश की विषय वस्तु, 2. संदेश का विवेचन किस प्रकार करना हैं? 3. संदेश किस माध्यम द्वारा पोषित करना है? 4. संदेश ग्रहणकर्ता कौन है? संप्रेषण में संदेश की रचना करना सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है। कई बार हम देखते हैं कि एक खूब पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी अपनी बात सामने वाले को ठीक से नहीं समझा पाता जबकि एक सामान्य व्यक्ति अपनी बात को बड़े प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त कर देता है। यह सब वक्ता के संदेश रचना कौशल के कारण ही सीख पाता है। (iii) माध्यम- संप्रेषण-प्रक्रिया में वक्ता और श्रोता के मध्य सेतु का कार्य माध्यम करता है। माध्यम से यहाँ आशय है कि संप्रेषक किस प्रकार अपने संप्रेष्य संदेश को सामने वाले तक भेजता है- बोलकर, लिखकर, ईमेल, वेबसाइट आदि। संप्रेषक अपने संदेश को प्रेषित करने के लिए किसी भी माध्यम का चयन कर सकता है। परंतु उसे यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके लक्ष्य यानी संदेश ग्राही के लिए कौन-सा माध्यम उपयुक्त रहेगा। संप्रेषण प्रक्रिया के सभी माध्यम उपयोगी होते हैं परंतु उपयोगिता संप्रेषक, संदेश और संदेश ग्राही की विशिष्ट स्थिति पर निर्भर करती है। (iv) ग्राही या लक्ष्य- संप्रेषण प्रक्रिया में संप्रेषक जिसे अपना संदेश संप्रेषित करता है, वह संदेश ग्राही या लक्ष्य कहलाता है। ग्राही केवल एक व्यक्ति वर्ग या फिर संपूर्ण समाज भी हो सकता है। ग्राही संप्रेषक के जितना समरूप होगा, उसी मात्रा में संप्रेषण के प्रभावी होने की संभावना बढ़ जाती है। ग्राही का संदेश ग्रहण करना इस तथ्य पर निर्भर करता है कि-संप्रेषक का संदेश किस प्रकार का है? उसके लिए संप्रेषक का क्या महत्त्व है इसके अतिरिक्त ग्राही की भाषा, सभ्यता, संस्कृति, रुचि आदि भी ग्राही के संदेश ग्रहण करने को प्रभावित करती है। (v) फीडबैक यानी प्रतिपुष्टि- संप्रेषण-प्रक्रिया में फीडबैक यानी प्रतिपुष्टि का बड़ा महत्त्व होता है। फीडबैक से आशय है संप्रेषण में संप्रेषक का संदेश ग्रहण करने के पश्चात् कोई प्रतिक्रिया करना या न करना फीडबैक कहलाता है। फीडबैक के माध्यम से संप्रेषण की गति में कुछ संशोधन किया जा सकता है। यह संप्रेषक को यह अवसर मुहैय्या कराती है कि वह संप्रेषण की अगली कड़ी में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर अपने संप्रेषण को आगे बढ़ाए। फीडबैक के अभाव में संप्रेषण प्रक्रिया निरर्थक हो जाती है। फीडबैक से यह मालूम हो जाता है कि संप्रेषण में संदेश की व्याख्या किस प्रकार की गई है। यहाँ एक तथ्य यह भी महत्त्वपूर्ण है कि एक से अधिक संदेशग्राही होने की स्थिति में संप्रेषक को अलग-अलग प्रतिक्रिया मिल सकती है। क्योंकि सामान्यतः प्रत्येक ग्राही की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भिन्न होती है। खैर! संप्रेषण में परस्पर साझेदारी की प्रक्रिया विद्यमान रहती है। अतः फीडबैक भी मिलीजुली हो सकती है। डॉ. सुशील त्रिवेदी ने संप्रेषण के तीन बुनियादी तत्त्वों-स्रोत, संदेश और लक्ष्य को इस प्रकार प्रस्तुत किया है- 1. संचारक, प्रेषक या स्रोत - जहाँ से संदेश का उद्भव होता है, चाहे वह व्यक्ति हो, पक्षी हो, वस्तु हो, वह तत्त्व संचारक, प्रेषक या स्रोत कहलाता है। 2. संदेश- जिस बात, भावना, विचार को संप्रेषित किया जाता है या किया जाना है वह संदेश कहलाता है। 3. संदेश प्राप्तकर्ता, ग्राही या लक्ष्य - जो व्यक्ति संदेश प्राप्त करता है, वह संदेश प्राप्तकर्ता, ग्राही या लक्ष्य कहलाता है। इन तीनों के समन्वय से संचार प्रक्रिया पूर्ण होती है। प्रक्रिया इस प्रकार है: संचारक, प्रेषक या स्रोत संदेश संदेश प्राप्तकर्ता, ग्राही या लक्ष्य संचार या संप्रेषण की पूर्णता के लिए संदेश को भेजने के लिए उचित मार्ग या माध्यम का होना आवश्यक है। इस प्रकार के संचार से किसी प्रतिक्रिया या प्रभाव का उत्पन्न होना संभव है। संचार प्रक्रिया इस प्रकार है: संचारक, प्रेषक या स्रोत संदेश चैनल या माध्यम संदेश प्राप्तकर्ता, ग्राही या लक्ष्य प्रभाव संचारक, प्रेषक या स्रोत विचार माध्यम संदेश प्राप्तकर्ता, ग्राही या लक्ष्य प्रतिक्रिया हमने ऊपर के चित्र में दो स्थितियाँ बतायी हैं, पहली स्थिति एक संदेश के रूप में और दूसरी स्थिति विचार के रूप में। दोनों ही स्थितियों में संचार प्रक्रिया एक समान हैं। प्रोफेसर हेराल्ड डी लॉसवेल ने संप्रेषण प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए बतलाया है कि “संचार में यह महत्त्वपूर्ण है कि कौन कहता है, क्या कहता है, किस माध्यम में कहता है, किससे कहता है और किस भाव के साथ कहता है।" #### 1.4.1 बोध-प्रश्न प्रश्न (क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 'हाँ' या 'नहीं' में दीजिए- 1. मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य सूचना संग्रहण होता है। (हाँ/नहीं) 2. मनुष्य-जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरत संप्रेषण करना होता है। (हाँ/नहीं) 3. व्यक्तिगत संप्रेषण व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं होता है। (हाँ/नहीं) प्रश्न (ख) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए। 1. संप्रेषण का सबसे सशक्त माध्यम ................. है। (भाषा/तकनीक) 2. संप्रेषण को सफल बनाने के लिए ..................... चाहिए। (शब्दावली/विषयवस्तु) 3. संप्रेषण में वक्ता से ज्यादा ..................... का प्रयोग होना चाहिए। (विषयानुरूप / अविषयानुरूप) 4. संप्रेषण को पूर्ण करने में ..................... इत्यादि का चुनाव सावधानीपूर्वक करना चाहिए। (श्रोता, गुण, वक्ता/विचार) #### 1.5 संप्रेषण का महत्त्व मानव जीवन संप्रेषण के बिना संभव नहीं है। जन्म से मृत्यु तक मनुष्य अपने जीवन में सूचनाओं के आदान-प्रदान का कार्य करता है। कभी किसी प्रश्न का उत्तर देता है, कभी किसी से प्रश्न पूछता है या कभी कोई सूचना दूसरों तक पहुँचाता है और यह कार्य संप्रेषण के बिना संभव नही है। संप्रेषण के महत्त्व को समझने के लिए संप्रेषण के प्रयोजन को जानना आवश्यक है। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और हम सब अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु एक दूसरे पर निर्भर रहते हैं। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें एक दूसरे के साथ संप्रेषण (communication)करना पड़ता है। और इसलिए संप्रेषण मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है। 1. व्यक्तिगत जरूरत – हम सब की कुछ व्यक्तिगत जरूरतें होती हैं और उनको पूरा करने के लिए हम संप्रेषण करते हैं। दैनिक दिनचर्या, खाना-पीना, प्रेम, सेवा इत्यादि से संबंधित हमारी बहुत सी जरूरतें होती हैं जो बिना संप्रेषण के पूरी नहीं हो सकती हैं। 2. व्यक्तिगत संबंध- व्यक्तिगत संबंध बनाने के लिए भी संप्रेषण नितांत जरूरी है। बिना बात-चीत के हम यह व्यक्तिगत संबंध बना ही नहीं सकते। जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि हमारे व्यक्तिगत संबंध ही होते हैं जो बातचीत के द्वारा ही पोषित होते हैं। उदाहरण के लिए एक माँ का अपने बच्चे को प्यार के साथ सही और गलत की पहचान कराना या बच्चों का अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करना। और ये सारे संबंध संप्रेषण से ही संचालित होते हैं। 3. सूचना- मनुष्य के जीवन का मुख्य कार्य सूचना संग्रहण का होता है और यह कार्य बाल्यावस्था से आरंभ हो जाता है जैसे-जब बच्चा पहली बार पूछता है कि यह क्या है? ऐसा क्यों है? जिज्ञासा की यह प्रवृत्ति मानव स्वभाव का अभिन्न हिस्सा है जो संप्रेषण से ही संभव है। 4. आपस में बातचीत - जब वक्ता श्रोता तक अपने संदेश भेजता है तभी संप्रेषण संपन्न होता है। 'गप्प' संप्रेषण का एक मजेदार और मनोरंजक उदाहरण है। 'गप्प' के द्वारा हम एक दूसरे के विचारों, भावनाओं को दृष्टिकोणों को समझने का प्रयास करते हैं। और यह सब संप्रेषण के बिना संभव नहीं है। 5. आग्रह- इस प्रकार का संप्रेषण विज्ञापनों में देखने को मिलता है। विज्ञापनों को इस प्रकार बनाया ही जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को पसंद आये और विज्ञापन में इस प्रकार ग्राहकों से आग्रह किया जाता है कि ग्राहक उस वस्तु को लेने का मन बना लेता है। 6. मनोरंजन – मानव-जीवन की यह सबसे महत्त्वपूर्ण जरूरत है। जीवन में स्फूर्ति और उत्साह के लिए मनोरंजन अति आवश्यक है। जब एक ढर्रे पर जीवन चलता है तो उसमें नीरसता आ जाती है, उस नीरसता को दूर करने के लिए मनोरंजन जरूरी है। मनोरंजन के माध्यम से शिक्षा देना भी सुगम एवं सरल होता है। और इस कारण से भी संप्रेषण जरूरी है। इस प्रकार हम देखें तो मानव-जीवन की जरूरतें संप्रेषण से ही पूरी होती हैं। इस प्रकार संप्रेषण का बहुत ही महत्त्व है। संप्रेषण प्रक्रिया में पाँच बातों का होना आवश्यक है- 1. वक्ता - बोलने वाला। 2. श्रोता - सुनने वाला। 3. माध्यम - संदेश भेजने का माध्यम। 4. संदेश - जो सूचना श्रोता को देनी है। 5. रुचि - वक्ता और श्रोता को बोलने और सुनने में रुचि होना। इन सभी बातों में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका श्रोता की होती है। और श्रोता के बाद 'माध्यम' की जिसके जरिये संदेश को वक्ता-श्रोता तक भेजता है। उदाहरण के लिए यदि आपने अपने मित्र को मोबाइल से संदेश भेजा कि 'रमेश' कल तुम्हारी उपस्थिति ऑफिस में अनिवार्य है, तुम समय से आ जाना। ऐसे में अगर आपका मित्र अपने 'इनबॉक्स' को यदि महीनों खोलता ही नहीं है तो आपका संदेश भेजना व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि आपने जिस माध्यम का चुनाव किया था वह आपके संदेश को पहुँचाने में सफल नहीं हुआ। वक्ता और श्रोता दोनों मे संदेश के आदान-प्रदान की सक्रिय सहभागिता जरूरी है, और यह तभी संभव है जब श्रोता सुनने के साथ-साथ समझता भी हो। वक्ता का संदेश श्रोता तक जब वैसे ही पहुँचेगा जैसे वक्ता कहना चाहता हो, तभी संप्रेषण सफल होगा। संप्रेषण की यह सफलता पूरी तरह माध्यम पर निर्भर करती है। 'माध्यम' के बाद 'भाषा' की भूमिका आती है क्योंकि संदेश किसी न किसी भाषा में ही होता है। अतः सफल संप्रेषण के लिए वक्ता और श्रोता की भाषा एक होनी चाहिए। इसके अलावा सफल संप्रेषण में भाषाई दक्षता सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वक्ता को काल, परिवेश और परिस्थितियों के अनुसार उचित भाषा का उपयोग करना चाहिए। विचारों को क्रम के अनुसार व्यक्त करना चाहिए, उचित शब्दों, भाव-भंगिमा के साथ बलाघात यानी उचित लहज़ा भी होना चाहिए, क्योंकि जब हम किसी की बात सुन रहे होते हैं तो दो तरह से संदेश को ग्रहण करते हैं। 1. एक तो जो प्रत्यक्ष रूप से हम सुनते, देखते और पढते हैं। 2. दूसरे जो अप्रत्यक्ष रूप से सामने वाला हमें संदेश भेज रहा होता है जैसे बोलने वाले का लहज़ा, उसके शब्द, उसके चेहरे के भाव इत्यादि। और अप्रत्यक्ष संदेश प्रत्यक्ष-संदेश पर हमेशा भारी होता है। क्योंकि सूचना को ग्रहण करने के बाद श्रोता अप्रत्यक्ष-संदेश के अनुसार प्रतिक्रिया देता है। उदाहरण के लिए यदि "आप किसी के घर गये हैं तो मेज़बान बिना आपकी तरफ देखे, बिना मुस्कुराये, भावहीन चेहरा लेकर यदि आपसे भोजन करने को कहता है तो आप समझ जायेंगे कि मेज़बान भोजन कराना नहीं चाहता औपचारिकतावश पूछ रहा है।' इस प्रकार वक्ता को अभीष्ट परिणाम के लिए शब्द, वाक्य, हाव-भाव, के साथ अपने लहज़े पर नियंत्रण रखना आना चाहिए। इसके अलावा संप्रेषण को सफल बनाने के लिए मुहावरों एवं कहावतों का भी यथोचित प्रयोग करना चाहिए। इस तरह से जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए व्यक्ति को संप्रेषण को समझते हुए उसका प्रयोग करना आना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो सफल जीवन का आधार ही सफल संप्रेषण है। यह संसार बातों से ही चलता है। इंसान की सुंदरता उसके बातों से ही झलकती है, पैसों से हम अपनी जरूरत पूरी कर सकते हैं लेकिन बातों से प्रेम, सम्मान, यश और कीर्ति कमा सकते हैं। वक्ता की वाणी में वह जादू होता है जो चाहे तो महाभारत करा दे और चाहे तो किसी के क्रोध को पानी-पानी कर दे। उदाहरण के लिए-हम सब जानते हैं कि महाभारत क्यों हुआ था? फिर भी अधिकांश लोग महाभारत के होने के कारण के लिए द्रौपदी को जिम्मेदार ठहराते हैं। दुर्योधान बाल्यावस्था से क्रोध और आक्रोश से भरा हुआ था पर उसके इस क्रोध रूपी ज्वाला में द्रौपदी के संवाद ने घी का काम किया। द्रौपदी का यह कथन - "अंधे पिता का पुत्र अंधा।" और उसके साथ ही साथ द्रौपदी का उपहास करते हुए हँसना। यही कारण है कि महाभारत के लिए द्रौपदी को महाभारत का कारण यह संसार समझता है। इसलिए कबीरदास ने कहा भी है- “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल हो

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