बी. ए. प्रथम सेमेस्टर 2024 आंतरिक मूल्यांकन (Internal Exam) PDF

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This is a past paper for BA first semester 2024 internal assessment in political science (DSC). The paper is likely for an undergraduate level. It contains questions related to concepts in political science and governance.

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बी. ए. प्रथम सेमेस्टर 2024 आंतररक मूल्यंकन (Internal Exam) विष् – रयजनीतत विज्ञयन (DSC) (लघु उत्तरी् प्रश्न 01 अंक) प्रश्न 01. मयनि अधिकयर दििस कब मनय्य जयतय हैं ? उत्तर – 10 दिसंबर। प्रश्न 02. लोकवप्र् संप्रभुतय के जनक कौन हैं ? उ...

बी. ए. प्रथम सेमेस्टर 2024 आंतररक मूल्यंकन (Internal Exam) विष् – रयजनीतत विज्ञयन (DSC) (लघु उत्तरी् प्रश्न 01 अंक) प्रश्न 01. मयनि अधिकयर दििस कब मनय्य जयतय हैं ? उत्तर – 10 दिसंबर। प्रश्न 02. लोकवप्र् संप्रभुतय के जनक कौन हैं ? उत्तर – रूसो। प्रश्न 03. भयरत में कौन सी शयसन प्रणयली हैं ? उत्तर – संसिीय शासन प्रणाली। प्रश्न 04. ललबटी (Liberty) शब्ि की उत्पवत्त ककस भयषय से हुई हैं ? उत्तर - लैदिन भाषा से। प्रश्न 05. कततव््ों कय पयलन कीजजए अधिकयर अपने आप लमल जयएंगे इस कथन को ककसने कहय हैं ? उत्तर – महात्मा गांधी। प्रश्न 06. संप्रभुतय की अिियरण कय प्रततपयिन ककसने कक्य थय ? उत्तर – जीन बोडो (जॉन ऑस्टिन)। प्रश्न 07. शजतत पृथककरण कय लसदियंत ि तन्ंत्रण संतुलन कय लसदियंत को ककसने प्रततपयिन कक्य ? उत्तर – मांण्िे टकयू ने। प्रश्न 08. लोकतंत्र जनतय कय जनतय के ललए जनतय दियरय बनय्य ग्य शयसन हैं इसे ककसने कहय हैं ? उत्तर – अब्राहम ललंकन। प्रश्न 09. एकयत्मक ि संघयत्मक शयसन ियले िे श कय नयम ललखिए ? उत्तर – एकयत्मक शयसन – अमेररका, संघयत्मक शयसन – भारत, पाककटतान, ब्रब्रिे न। प्रश्न 10. एकिली् और बहुिली् व््िस्थय ियले िे श कय नयम ललखिए ? उत्तर – एकिली् िे श – चीन, उत्तर कोररया। बहुिली् िे श – भारत। प्रश्न 11. संसिी् शयसन प्रणयली को ककस िे श से लल्य ग्य है ? उत्तर – ब्रब्रिे न से। प्रश्न 12. Democracy शब्ि की उत्पवत्त ककस भयषय से हुई हैं ? उत्तर – ग्रीक भाषा। (अतत िीघत उत्तरी् प्रश्न 10 अंक) प्रश्न 01. एकयत्मक ि संघयत्मक शयसन के बयरे में विस्तयर से ललखिए ? उत्तर – एकात्मक व संघात्मक शासन के बारे में ननम्नललखित हैं - एकयत्मक शयसन - एकयत्मक शयसन कय अथत - एकात्मक प्रणाली राजनीनतक संगठन की एक प्रणाली है स्जसमें संघीय राज्य के ववपरीत अधधकांश या सभी शासकीय शस्तत केंद्रीकृत सरकार में रहती है। पररभयषय – फयइनर के अनुसयर - एकात्मक शासन वह है स्जसमें समटत शस्ततयों और अधधकार एक केन्द्द्र के पास होते हैं, स्जसकी व स्जसके एजेण्ि वैधाननक रूप से सम्पूणण क्षेत्र में सवणशस्तत सम्पन्द्न होते हैं।“। एकयत्मक शयसन की विशेषतयएं - 1. केन्द्री्कृत शयसन व््िस्थय (Centralised Administration) - एकात्मक शासन में राजकी समटत शस्ततयों संववधान के द्वारा एकमात्र केन्द्द्रीय सरकार को ही िी जाती हैं, केन्द्द्र व इकाइयों (प्राप्तों) में का ववभाजन संववधान द्वारा नहीं होता है। इस प्रकार केन्द्द्र की ही इच्छा सवोच्च होती है। 2. इकयइ्ों (प्रयन्द्तों) के शयसन कय केन्द्र की इच्छयनुसयर संचयलन (Provincial Administrat is Governed by Centre) - प्रशासकीय सुववधा के ललए एकात्मक शासन इकाइयों में बेिे रहते हैं। इन इस को ववभाग, प्रान्द्त, स्जला अथवा कम्यून आदि कहते हैं, परन्द्तु ये केन्द्द्र द्वारा ही बनाये जाते हैं, केन्द्द्र की उ शस्ततयों िे ता है, केन्द्द्र उनके अस्टतत्व को समाप्त भी कर सकता है। संक्षेप में, इन इकाइयों की स्टथनत केन्द्ि बराबर की नहीं होती है, वे तो केन्द्द्र के ही प्रनत उत्तरिायी होती हैं। 3. इकहरी नयगररकतय (Single Citizenship) – एकात्मक शासन में समटत िे श या राज्य की एक है नागररकता होती है । केवल केन्द्द्रीय सरकार ही नागररकता प्रिान करने की शस्तत रिती है। इकाइयों की पृष ् नागररकता नहीं होती है । 4. एकयत्मक शयसन की अन्द्् विशेषतयएँ (Other Characteristics) - ब्रब्रिे न एकात्मक शासन प्राचीन व सवोत्तम उिाहरण है। वहााँ पर उपयुणतत के अलावा ननम्नललखित ववशेषताएाँ भी पायी जाती है – ब्रब्रिे न का संववधान अललखित है, परन्द्तु फ्ांस में एकात्मक व्यवटथा होते हुए भी ललखित संववधान किर भी यह तो ननस्चचत ही है कक संघात्मक शासन ब्रबना ललखित संववधान के नहीं चल सकता, एकात्मक प सकता है। एकयत्मक शयसक के गुण हैं - एकात्मक शासन के प्रमुि गुण इस प्रकार है - 1. ढूंढ ि शजततशयली शयसन (Strong Administration) - एकात्मक शासन का सबसे बडा गुण यह कक इसमें िे श का शासन दृढ व शस्ततशाली होता है। कारण यह है कक संववधान के द्वारा समटत नानतना नाव केन्द्द्र कसे ही प्राप्त रहती हैं। अधधकार और सत्ता के ललए केन्द्द्र व इकाइयों में संघषण नहीं रहता है । िे श की प्रणाली का महत्वपूणण गुण है। संक्षेप में, शासन की िोहरी व्यवटथा न होने से प्रशासन दृढ़ व गनतमाली ता है। 2. प्रशयसकी् एकरूपतय (Administrative Unity) - एकात्मक शासन में िे श भर में एक कोने से इसरे कोने तक कानूनों, नीनतयों और प्रशासन में एकरूपता पायी जाती है। इस समानता या एकरूपता से िे शभर के ललए मुख्यवस्टथत शासन टथावपत करने में सहायता लमलती है । लोगों को प्रशासन व कानूनों को समझने में कोई कदठनाई नहीं होती है । समटत नागररक भी िे श के नागररक होते हैं, इकाइयों के नहीं। 3. लमतव्््ी प्रशयसन (Economic Administration) - यह कम िचीला शासन भी है तयोंकक इसमें समटत िे श के ललए एक ही संसि, एक कायणपाललका और एक ही न्द्यायपाललका होती है। केन्द्द्र व राज्यों की पृथतपृथक् िोहरी शासन व्यवटथा नहीं होती है। समटत राष्ट्र के ललए एक ही बजि होता है । 4. लचीलयपन और शीघ्र तनणत् (Flexibility) - एकात्मक शासन में एक ही सरकार होने के कारण ननणणय लेने में िे री नहीं होती है, तयोंकक ववलभन्द्न इकाइयों से केन्द्द्र को सहमनत लेने की आवचयकता नहीं होती है । अतः युद्ध या आपातकाल के ललए यह सवोत्तम शासन है। इस प्रणाली के लचीलेपन व शीघ्र ननणणय लेने के गुग के सम्बन्द्ध में शुल्ज ने कहा है कक, “इस प्रणाली का प्रमुि लाभ प्रािे लशक आधार पर होने वाली शस्ततयों के ववभाजन और पुनः ववभाजन में लचीलापन है।। 5. रयष्ट्री् एकतय (National Unity) - एकात्मक शासन का एक और गुण यह है कक समटत राष्ट्र के ललए ही प्रशासन नीनत होने के कारण राष्ट्रीय भावनाओं के ववकास के ललए अनुकूल वातावरण लमलता है। राष्ट्रीय दहतों और टथानीय दहतों में िींचातानी नहीं रहती है। भाषा, धमण आदि की ववलभन्द्नतायें होते हुए भी क्षेत्रीयतावाि की भावना उग्र नहीं होती है। 6. सरल संगठन (Simple Organisation) - एकात्मक शासन का संगठन संधात्मक सासन की अपेक्षा सरत होता है। इस सम्बन्द्ध में गैदिल ने कहा है कक, “एकात्मक शासन पद्धनत में सभी शासकीय अधधकार एक ही प्रकार के अधधकाररयों में केस्न्द्द्रत रहते हैं, स्जससे सरकार की समटत शस्तत की सहायता प्रशासकीय समटथानों को सुलझाने के सम्बन्द्ध में ली जा सकती है। इसमें सत्तात्मक इ, उत्तरिानयत्व सम्बन्द्धी भ्रास्न्द्त, कायों का िोहरापन और अधधकार क्षेत्रों का अन्द्तलाणप नहीं हो सकता है ।“ 7. अधिकयरों के संघषत की अनुपजस्थतत (Absence of Struggle for Rights) - तयोंकक समटत गस्ततयों केन्द्द्र के पास रहती है, इकाइयों केन्द्द्र की एजेष्ट्ि मात्र है, अतः ववलभष्ट्ठ अधधकार क्षेत्रों को लेकर केन्द्द्र इकाइयों में संघषण की सम्भावना समाप्त हो जाती है। भारतीय संघात्मक व्यवटथा में केन्द्द्र व राज्यों में अधधकारों के प्रान को लेकर उनमें तनाव बना रहता है, ववशेषकर उन राज्यों में स्जनमें ववपक्ष की सरकारें हैं। 8. इतहरी नयगररकतय (Single Citizenship) - एकात्मक शासन में नागररकों को इकारी नागररकता की प्राप्त रहती है, अतः टथानीय भस्तत वा प्रािे लशकता जैसी भावनाएाँ ववकलसत नहीं हो पाती है। एकयत्मक शयसन (Unitary system) के कुछ प्रमुि िोष तनम्नललखित हैं - 1. केंर की अत््धिक शजतत - एकात्मक शासन व्यवटथा में केंद्र सरकार के पास अत्यधधक शस्तत होती है, जो राज्य या उप-प्रािे लशक इकाइयों को सीलमत कर सकती है । इससे राज्यों या क्षेत्रों को अपने मामलों में टवायत्तता का अभाव होता है। 2. स्थयनी् स्तर पर तनणत् लेने में कदठनयई - केंद्र सरकार द्वारा सभी महत्वपूणण ननणणय लेने के कारण, टथानीय मुद्िों या आवचयकताओं को समझने और हल करने में कदठनाई हो सकती है। इससे टथानीय समुिायों की ववलशष्ट्ि आवचयकताओं का समाधान नहीं हो पाता। 3. केंर और रयज््ों के बीच असंतुलन - एकात्मक प्रणाली में केंद्र का प्रभाव राज्य सरकारों पर अधधक होता है, स्जसके पररणामटवरूप राज्यों को अपनी टवतंत्र नीनत बनाने और कायाणन्द्वयन में परे शानी हो सकती है। यह असंतुलन राज्य-केन्द्द्र ररचतों को तनावपूणण बना सकता है। 4. रयज्् सरकयरों की तनजष्ट्ि्तय - तयोंकक अधधकांश शस्ततयााँ केंद्र के पास होती हैं, राज्य सरकारों को कई मामलों में ननणणय लेने का अवसर नहीं लमल पाता। इससे राज्य सरकारें ननस्ष्ट्िय हो सकती हैं और उनका कायणकुशलता कम हो सकती है । 5. एकरूपतय कय अभयि - ववलभन्द्न क्षेत्रीय या सांटकृनतक ववशेषताओं को ध्यान में नहीं रिा जाता है, स्जससे िे श के ववलभन्द्न दहटसों में असंतोष उत्पन्द्न हो सकता है। एकात्मक शासन में ननणणयों के एक समान होने की संभावना कम होती है, जो िे श के ववववधता वाले पहलुओं को सही तरीके से प्रनतब्रबंब्रबत नहीं कर पाता। 6. प्रभयवित लोकतयंत्रत्रक प्रणयली - तयोंकक केंद्र सरकार द्वारा अधधक ननयंत्रण होता है, इससे लोकतंत्र में भागीिारी कम हो सकती है, और लोगों को केंद्र सरकार से िैसलों के ललए ज्यािा िरू ी महसूस हो सकती है। इन िोषों के कारण, कई िे शों में संघीय शासन व्यवटथा को प्राथलमकता िी जाती है, ताकक ववलभन्द्न क्षेत्रों और समुिायों को अधधक टवायत्तता और आत्मननभणरता लमल सके। संघयत्मक शयसन – संघयत्मक शयसन अथत - संघात्मक शासन वह शासन व्यवटथा है स्जसमें शासकीय शस्तत केंद्र सरकार और उससे जुडे राज्यों या क्षेत्रीय उपववभागों की सरकारों के बीच बंिी होती है संघयत्मक शयसन पररभयषय – फयइनर के अनुसयर - संघीय शासन वह है स्जसमें अधधकार व शस्तत का कुछ भाग टथानीय क्षेत्रों में ननदहत हो व िस ू रा भाग टथानीय क्षेत्रों के समुिाय द्वारा ववचारपूवणक बनाई गई केन्द्द्रीय संटथा को िे दिया जाय। संघयत्मक शयसन की विशेषतयएं – 1. िोहरी सरकार (केंद्र और राज्य की सरकार) - 2. शस्ततयों का ववभाजन – 3. संववधान की सवोच्चता – 4. न्द्यायपाललका का ववशेष टथान – 5. कठोर संववधान – 6. िोहरी नागररकता – 7. िोहरी ववधानयका – संघयत्मक शयसन कय गुण – 1. छोिे -छोिे राज्यों को शस्तत प्रिान करने का साधन - 2. टथानीय टवतन्द्त्रता और राष्ट्रीय एकता का समन्द्वय - 3. बडे राज्यों के ललए उपयुतत – 4. शस्तत के ववतरण के कारण शासन में कुशलता – 5. केंद्रों की ननरं कुशता का अभाव – 6. धन की बचत और आधथणक उन्द्ननत – 7. जनता को राजनीनतक प्रलशक्षण लमलता हैं – 8. राजनीनतक व्यापक का क्षेत्र – संघयत्मक शयसन के िोष – 1. कमजोर शासन – 2. संघ भंग होने का डर – 3. िचीला शासन – 4. उत्तरिानयत्व की ननधाणरण की समटया – 5. संववधान के कठोरता प्रगनत के मागण में बाधक – 6. केंद्र व राज्य के मध्य संघषण में भय – 7. ववलभन्द्न इकाइयों में गुिबंिी – तनष्ट्कषत – एकयत्मक शासन और संघात्मक शासन के बारे ववटतार से वखणणत हैं ! प्रश्न 02. लोकतंत्र (प्रजयतंत्र) के बयरे में दटप्पणी ललखिए ? उत्तर – लोकतंत्र कय अथत – जनता के द्वारा जनता के ललए बनाए गए शासन को लोकतंत्र कहते हैं! लोकतंत्र की पररभयषय – अब्रयहम ललंकन - ‘प्रजातन्द्त्र वह शासन है, जो जनता का है, जनता के ललए है और जनता द्वारा संचाललत हैं। लोकतंत्र के प्रकयर – 1. प्रत््् लोकतंत्र – जनता द्वारा चयननत इन प्रनतननधधयों द्वारा शासन व्यवटथा संचाललत होती है, इसे ही प्रनतननध्यात्मक लोकतंत्र कहते हैं। 2. अप्रत््् लोकतंत – अप्रत्यक्ष लोकतंत्र एक प्रकार की लोकतांब्रत्रक सरकार है स्जसमें मतिाता अपनी ओर से सरकार के कानून बनाने के ललए प्रनतननधधयों को चुनते हैं। प्रत््् लोकतंत्र के गुण – 1. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र में जनता शासन में प्रत्यक्ष या सकिय रूप से भाग लेती है, अप्रत्यक्ष ना में जनता केवल सुप्त भागीिार ही रह पाती है। 2. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्व नागररकों को राजनीनतक प्रलशक्षण प्रिान करता है। 3. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र में सरकार (गा जनसभा) सिै व जनता के प्रनत अपना उत्तरिानयत्व भर करती है। 4. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र में कानूनों को जनता का नैनतक समथणन प्राप्त होता है (तयोंकक टवयं ता ने ही कानूनों को बनाया है। अतः जनता सरलता से उनका पालन करती है । 5. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र शासन में अत्यधधक उथल-पुथल या िास्न्द्त की सम्भावना भी नहीं तयोंकक पहले से ही हाती सब कायण जन-सहमनत से होते हैं। प्रत््् लोकतंत्र के िोष – 1. शासन की समटयाएाँ बहुत ही जदिल व तकनीकी होती है, स्जन्द्हें साधारण बुद्धध वाले भोग नहीं समझ सकते हैं। 2. संवैधाननक प्रचनों पर ननणणय लेने की क्षमता भी आम जनता में नहीं होती है। 3. भारत, चीन, अमेररका जैसे बडे राज्यों के ललए प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र ककसी भी प्रकार यूतत नहीं है। 4. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र में शस्तत, समय व धन की बहुत बबाणिी होती है । 5. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र के ननणणयों को सिै व जनता का ननणणय भी नहीं कहा जा सकता है तयोंकक मतिान में अधधकांश मतिाता भाग ही नहीं लेते हैं। टवाथी लोग व नेता अपने टवाथों की पूनतण सिल हो जाते हैं। 6. प्रत्यक्ष प्रजातन्द्त्र िांनत के ववरुद्ध गारण्िी भी नहीं है, तयोंकक अल्पसंख्यकों में बहुसंख्यकों ननणणयों के प्रनत ननराशा व अराजकता पैिा होती है । लोकतंत्र की विशेषतयएं – 1. लोकतयंत्रत्रक चुनयि (Free and Fair Elections) - लोकतंत्र का सबसे महत्वपूणण तत्व चुनाव होता है। इसमें नागररकों को अपने प्रनतननधधयों को चुनने का अधधकार होता है। चुनाव ननष्ट्पक्ष, टवतंत्र और पारिशी होते हैं, ताकक ककसी भी प्रकार की धांधली या पक्षपात न हो। सभी नागररकों को मतिान का समान अधधकार होता है, और यह सुननस्चचत ककया जाता है कक चुनाव प्रकिया टवतंत्र हो। 2. लोकतयंत्रत्रक अधिकयर (Fundamental Rights) - लोकतंत्र में नागररकों को अपने अधधकारों का संरक्षण होता है। ये अधधकार संववधान द्वारा प्रिान ककए जाते हैं, जैसे- अलभव्यस्तत की टवतंत्रता, धमण की टवतंत्रता, समानता का अधधकार, लशक्षा का अधधकार आदि। इन अधधकारों की रक्षा करना लोकतंत्र की महत्वपूणण ववशेषता है । 3. गणरयज्् (Republic) - लोकतंत्र में सरकार जनता द्वारा चुने गए प्रनतननधधयों के माध्यम से कायण करती है, और इन प्रनतननधधयों का कायणकाल सीलमत होता है। कोई भी व्यस्तत जीवनभर के ललए सत्ता में नहीं रहता, और राजनीनतक पिों पर चुनाव होते रहते हैं। यह सुननस्चचत करता है कक सरकार जनता के प्रनत उत्तरिायी रहे। 4. न्द््यत्क स्ितंत्रतय (Judicial Independence) - लोकतंत्र में न्द्यायपाललका टवतंत्र होती है । इसका उद्िे चय यह है कक न्द्यायपाललका सरकार से टवतंत्र रूप से कायण करें और संववधान व कानून के अनुसार न्द्याय प्रिान करें । यह सुननस्चचत करता है कक सरकार ककसी भी नागररक के अधधकारों का उल्लंघन नहीं कर सके। 5. विविितय कय सम्मयन (Respect for Diversity) - लोकतंत्र में ववलभन्द्न जानतयों, धमों, भाषाओं और संटकृनतयों का सम्मान ककया जाता है। हर नागररक को अपनी पहचान, ववचवास और संटकृनत को व्यतत करने का अधधकार होता है। ववववधता में एकता लोकतंत्र का एक महत्वपूणण लसद्धांत है। 6. समयनतय कय अधिकयर (Equality) - लोकतंत्र में सभी नागररकों को समान अवसर और अधधकार लमलते हैं। जानत, धमण, ललंग या सामास्जक स्टथनत के आधार पर ककसी के साथ भेिभाव नहीं होता। यह सुननस्चचत करता है कक प्रत्येक नागररक को समान उपचार लमले और कोई भी वगण अन्द्य वगों से ऊपर न हो। 7. उत्तरियत्त्ि और पयरिलशततय (Accountability and Transparency) - लोकतंत्र में सरकार को जनता के प्रनत उत्तरिायी होना चादहए। इसमें यह सुननस्चचत ककया जाता है कक सरकार के िैसले और कायण पारिशी हों और जनता जान सके कक उनके चुने हुए प्रनतननधध कैसे कायण कर रहे हैं। यदि सरकार गलत ननणणय लेती है या अपनी स्जम्मेिारी से चूकती है, तो जनता उसे बिल सकती है। 8. 9. विविि िलों कय अजस्तत्ि (Multiparty System) - लोकतंत्र में ववलभन्द्न राजनीनतक िलों का अस्टतत्व होता है, और प्रत्येक िल को अपनी नीनतयों को जनता के सामने रिने का अवसर लमलता है। इससे चुनाव में प्रनतटपधाण बनी रहती है, और नागररकों को ववलभन्द्न ववचारधाराओं में से चुनाव करने का अवसर लमलता है। 10. नयगररक समयज (Civil Society) - लोकतंत्र में एक सकिय नागररक समाज होता है, स्जसमें एनजीओ, मीडडया, और अन्द्य संगठन समाज की समटयाओं पर ध्यान केंदद्रत करते हैं और सरकार से जवाबिे ही की मांग करते हैं। इससे नागररकों को अपनी आवाज उठाने का अवसर लमलता है । 11. विियत्कय कय स्ितंत्र होनय (Separation of Powers) - लोकतंत्र में ववधानयका, कायणपाललका और न्द्यायपाललका तीनों की शस्ततयों का पृथतकरण होता है। यह सुननस्चचत करता है कक ककसी एक संटथा को अत्यधधक शस्तत न लमल जाए, और हर एक संटथा अपने-अपने िानयत्वों का ननवाणह करती है। इससे शासन में संतुलन बना रहता है। 12. लोकतयंत्रत्रक तन्ंत्रण (Democratic Control) - लोकतंत्र में सरकार का ननयंत्रण जनता के हाथ में होता है। यदि सरकार अपनी स्जम्मेिारी ठीक से नहीं ननभाती या उसका कायण िराब होता है, तो चुनावों के माध्यम से उसे बिलने का अधधकार जनता को होता है । यह लोकतंत्र की आत्मरक्षा का एक तरीका है। लोकतंत्र के गुण - 1. स्ितंत्रतय (Freedom) - लोकतंत्र में नागररकों को अपने ववचार व्यतत करने, ववचारों का आिान- प्रिान करने, और अपने ववचवासों और धमों का पालन करने की टवतंत्रता होती है। यह टवतंत्रता लोकतंत्र के सबसे बडे गुणों में से एक है। व्यस्तत को न केवल राजनीनतक, बस्ल्क व्यस्ततगत टवतंत्रता भी प्राप्त होती है। 2. समयनतय (Equality) - लोकतंत्र में सभी नागररकों को समान अधधकार और अवसर प्राप्त होते हैं, चाहे उनकी जानत, धमण, ललंग, या सामास्जक स्टथनत कुछ भी हो। इसमें भेिभाव को नकारा जाता है और हर नागररक को समान िजाण लमलता है, स्जससे समाज में सामास्जक न्द्याय की भावना बनी रहती है। 3. उत्तरियत्त्ि (Accountability) - लोकतंत्र में सरकार और उसके प्रनतननधधयों को जनता के प्रनत उत्तरिायी होना पडता है। यदि वे अपने कतणव्यों का सही तरीके से पालन नहीं करते हैं, तो जनता उन्द्हें चुनावों के माध्यम से बिलने का अधधकार रिती है । यह गुण सुननस्चचत करता है कक शासन प्रणाली ननरं तर सुधार और जांच के तहत रहे। 4. पयरिलशततय (Transparency) - लोकतंत्र में सरकारी कायों और ननणणयों में पारिलशणता होती है । सरकारी कायों, नीनतयों, और योजनाओं का िुलासा होता है, स्जससे नागररकों को यह जानने का अधधकार लमलता है कक उनके िै तस और अन्द्य संसाधनों का उपयोग कैसे ककया जा रहा है। पारिलशणता से भ्रष्ट्िाचार और अननयलमतताओं को रोकने में मिि लमलती है। 5. विविितय कय सम्मयन (Respect for Diversity) - लोकतंत्र ववलभन्द्न धालमणक, सांटकृनतक और सामास्जक समूहों की ववववधता का सम्मान करता है। यह सुननस्चचत करता है कक सभी वगों और समुिायों को अपनी पहचान व्यतत करने का समान अवसर लमले और उनकी आवाज सुनी जाए। ववववधता में एकता लोकतंत्र का महत्वपूणण गुण है। लोकतंत्र के िोष (कमजोरर्यं) – 1. िीमी तनणत् प्रकि्य (Slow Decision-Making) - लोकतंत्र में ववलभन्द्न ववचारों और दहतों का सम्मान ककया जाता है, लेककन इसका एक पररणाम यह होता है कक ननणणय लेने की प्रकिया बहुत धीमी हो सकती है। ववलभन्द्न िलों, समूहों और व्यस्ततयों के बीच ववचार-ववमशण और सहमनत बनने में समय लगता है, स्जससे तत्काल ननणणय लेना कदठन हो सकता है। 2. बहुमत की तयनयशयही (Tyranny of the Majority) - लोकतंत्र में कभी-कभी बहुमत के वोिों के आधार पर ननणणय ललए जाते हैं, जो समाज के कुछ छोिे या कमजोर वगों के अधधकारों की अनिे िी कर सकते हैं। इसे “बहुमत की तानाशाही” कहा जाता है, जहााँ बहुसंख्यक लोगों के ननणणय अल्पसंख्यकों के अधधकारों पर िबाव बना सकते हैं। 3. रयजनीततक अजस्थरतय (Political Instability) – लोकतंत्र में अतसर चुनावों, राजनीनतक ववरोधों और सत्ता पररवतणन के कारण अस्टथरता हो सकती है। ववलभन्द्न राजनीनतक िलों और नेताओं के बीच संघषण और सत्ता के ललए प्रनतटपधाण िे श में राजनीनतक अस्टथरता उत्पन्द्न कर सकती है, स्जससे शासन की ननरं तरता और ववकास प्रभाववत हो सकता है। 4. भ्रष्ट्टयचयर (Corruption) - लोकतंत्र में कई बार राजनीनतक िल और प्रनतननधध सत्ता में रहते हुए भ्रष्ट्िाचार का लशकार हो सकते हैं। चुनावी िचों, राजनीनतक िलों के बीच गठबंधन और सत्ता के िरु ु पयोग से भ्रष्ट्िाचार बढ़ सकता है, जो लोकतंत्र के मूल्यों को कमजोर करता है। 5. अलशक्षय और अप्रयमयखणक मतियन (Illiteracy and Informed Voting) - लोकतंत्र में हर नागररक को मतिान का अधधकार होता है, लेककन कई बार नागररकों में चुनावी प्रकिया और नीनतयों के बारे में जानकारी की कमी हो सकती है । अलशक्षा और अज्ञानता के कारण वे गलत उम्मीिवारों को चुन सकते हैं या राजनीनतक िैसलों को समझने में असमथण हो सकते हैं । 6. सत्तय कय केंरीकरण (Centralization of Power) - लोकतंत्र में बेशक सत्ता का ववतरण होना चादहए, लेककन कभी-कभी राजनीनतक िल और नेता सत्ता का केंद्रीकरण करने का प्रयास करते हैं। यह लोकतंत्र की आत्मा के खिलाि होता है, तयोंकक यह सत्ता के संतुलन को ब्रबगाडता है और एक पक्षीय शासन की ओर ले जाता है। तनष्ट्कषत – उपयुतत ऊपर लोकतंत का अथण, पररभाषा, प्रकार ववशेषताएं, गुण, िोष, वणणन ककया गया हैं। प्रश्न 03. रयजनीततक िल अथत, पररभयषय, प्रकयर, विशेषतयएं, गुण, िोष, िणतन कीजजए ? उत्तर – रयजनीततक िल कय अथत - राजनीनतक िल एक ऐसा संगठन है जो ककसी ववशेष िे श के चुनावों में प्रनतटपधाण करने के ललए उम्मीिवारों का समन्द्वय करता है। रयजनीततक िल की पररभयषय – एडमंड बकत के अनुसयर - राजनीनतक िल मनुष्ट्यों के उस संगठन को कहते हैं जो ककसी एक लसद्धान्द्त पर सहमत हों, स्जसके राष्ट्रीय दहत सम्पन्द्न ककया जा सके। रयजनीततक िलों को विस्तृत रूप में हम चयर भयगों में बयँट सकते है - 1. अनुियरियिी (Conservative) - वे राजनीनतक िल इस श्रेणी में आते हैं, जो पररवतणन में अधधक िे वास नहीं करते हैं। इनको प्राचीन राजनीनतक संटथाओं व परम्पराओं से अगाध प्रेम होता है। 2. उियरियिी (Liberal) - उिारवािी वे िल है जो मौजूिा राजनीनतक, आधथणक व सामास्जक संख्याओं और सुधारों की आवचयकता अनुभव करते हैं, परन्द्तु किर भी ये िल बहुत अधधक प्रगनतशील नहीं होते हैं। 3. प्रततकि्यियिी (Reactionary) - िक्षक्षणपंथी और अनुधारवािी िल इस श्रेणी में जाते हैं। ये प्राचीन टथाओं और सभ्यता के अन्द्धे भतत होते हैं। भारत में दहन्द्िू महासभा और मुस्टलम लीग को इस श्रेणी में रिा हा सकता है। 4. प्रगततियिी (Progressive) - वे बल प्रगनतवािी कहलाते हैं जो वतणमान आधथणक, सामास्जक, राजनीनतक संटथाओं में आमूल-चूल पररवतणन के दहमायती है। साम्यवािी िल इसी श्रेणी में आता है। रयजनीततक िल की विशेषतयएं तनम्नललखित हैं - 1. रयजनीततक शजतत की प्रयजप्त - राजनीनतक िल का मुख्य उद्िे चय राजनीनतक शस्तत की प्रास्प्त करना होता है¹। 2. सयमयजजक एिं आधथतक उदिे श्् - राजनीनतक िल के सिटय एक सामान्द्य ववचारधारा और उद्िे चय को लेकर एकजुि होते हैं। 3. अलपतन्द्त्र - राजनीनतक िल में एक अल्पतन्द्त्र होता है, जो िल के ननणणयों को लेने में महत्वपूणण भूलमका ननभाता है। 4. सिस््तय - राजनीनतक िल में सिटयता ननरन्द्तर बनी रहती है, और नए सिटयों के ललए िल में सिटयता के द्वार हमेशा िुले रहते हैं। 5. केन्द्रीकृत संगठन - राजनीनतक िल में एक केन्द्द्रीकृत संगठन होता है, जो िल के ननणणयों को लेने में महत्वपूणण भूलमका ननभाता है। 6. चुनयि में भयगीियरी - राजनीनतक िल चुनाव में भाग लेते हैं और अपने उम्मीिवारों को स्जताने के ललए प्रयास करते हैं। 7. रयजनीततक विचयरियरय - राजनीनतक िल एक ववलशष्ट्ि राजनीनतक ववचारधारा को लेकर चलते हैं, जो उनके ननणणयों और कायों को प्रभाववत करती है। रयजनीततक िल के गुण - 1. राजनीनतक प्रलशक्षण - 2. जनता और सरकार कडी के कडी – 3. राष्ट्रीय एकता में प्रतीक – 4. िांनत की संभावना कम हो जाती है – 5. लोकमत का ननमाणण – 6. राष्ट्रीय नीनतयों का ननमाणण – 7. चुनावों में उम्मीिवारों का चयन करना – 8. ननरं कुशता से रक्षा – रयजनीततक िल के िोष – 1. िलीय व्यवटथा अटवभाववक है – 2. राष्ट्रीय दहतों की हानन – 3. लोकमत को ब्रबगडना – 4. पक्षपात प्रथा और लुि प्रथा – 5. िे श ने योग्य व्यस्तत सेवाओं से वंधचत रह जाता हैं – 6. सरकार का अटथानयत्व – 7. साम्प्रिानयकता को बढ़ावा – 8. धन का अपव्यय – तनष्ट्कषत – राजनीनतक िल के बारे में ववटतार से वणणन ककया गया हैं। प्रश्न 04. समयनतय और स्ितंत्रतय के मध्् संबंिों की व््यख््य कीजजए ? उत्तर – समयनतय कय अथत - समानता से तात्पयण सभी को समान अवसर प्रिान करना और लोगों को भेिभाव से बचाना है । समयनतय के प्रकयर – 1. प्राकृनतक समानता – 2. सामास्जक समानता – 3. नागररक समानता – 4. राजनीनतक समानता – 5. धालमणक समानता – 6. अवसर की समानता – 7. आधथणक समानता – 8. अंतरराष्ट्रीय समानता – स्ितंत्रतय कय अथत – ककसी बाहरी शस्तत के ननयंत्रण से मुस्तत होना ही टवतंत्रता हैं। स्ितंत्रतय की पररभयषय – हॉब्स के अनुसयर – टवतंत्रता का अथण बंधनों के अभाव से है। स्ितंत्रतय के प्रकयर – 1. प्राकृनतक टवतंत्रता – 2. नागररक टवतंत्रता – 3. राजनीनतक टवतंत्रता – 4. आधथणक टवतंत्रता – 5. व्यस्ततगत टवतंत्रता – 6. राष्ट्रीय टवतंत्रता – 7. धालमणक टवतन्द्त्रता – 8. नैनतक टवतंत्रता – स्ितंत्रतय और समयनतय में संबंि - 1. स्ितंत्रतय और समयनतय परस्पर विरोिी हैं (Liberty and Equality are Opposed to each other) – इस ववचारधारा के प्रमुि समथणक डी. िॉकववल, लॉडण एतिन, िोचे, मोटका, परे िो हैं। ये ववचारक टवतंत्रता और समानता को परटपर ववरोधी मानते हैं। व्यस्ततवादियों का भी यही मत है कक, “समानता के साथ टवतंत्रता नहीं चल सकती है।“ लाडण एतिन का कथन है कक “समानता की अलभलाषा के कारण टवतंत्रता की आशा समाप्त हो गयी है।“टवतंत्रता और समानता को परटपर ववरोधी मानने वाले ववचारकों द्वारा अपने मत की पुस्ष्ट्ि में ननम्नललखित तकण दिये गये हैं- 1.1 व्यस्तत को टवतंत्रता तभी प्राप्त हो सकती है, जबकक उसके ऊपर ककसी भी प्रकार के प्रनतबंध न हो, परन्द्तु इसके ववपरीत समानता टथावपत करने के ललए प्रनतबंधों (बन्द्धनों) का होना ही आवचयक है ऐसी स्टथनत में हम टवतंत्रता या समानता, िोनों में से ककसी एक को ही प्राप्त कर सकते हैं। 1.2 ककसी व्यस्तत की आधथणक स्टथनत योग्यता पर ननभणर करती है, न कक समानता पर। व्यस्ततयों को व्यस्ततगत सम्पवत्त की टवतंत्रता प्राकृनतक रूप से प्राप्त हुई है, परन्द्तु समानता का लसद्धान्द्त व्यस्तत की सम्पवत्त की टवतंत्रता को बाधधत करती है । 2. स्ितंत्रतय और समयनतय परस्पर विरोिी नहीं अवपतु सह्ोगी हैं (Liberty and Equality are not Incompatible but Complementary) – बहुत से ववचारकों ने स्जनमें समाजवािी भी शालमल है, टवतंत्रता और समानता को एक िस ू रे का पूरक माना है। रूसो, लॉटकी, मैकाइवर, िॉनी और प्रो. पोलाडण आदि ववचारकों का मत इसी प्रकार का है। पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा था, “जब तक आप समानता और टवतंत्रता के महत्वपूणण ववचारों में संतुलन टथावपत नहीं करते और जब तक िोनों पर सन्द्तुलन टथावपत करने के ललए उधचत मयाणिाएाँ नहीं लगाते, आज की समटयाओं का समाधान नहीं होगा।“ िॉनी के अनुसार, “समानता की प्रचुर मात्रा टवतंत्रता का ववरोधी नहीं बस्ल्क उसकी अत्यंत आवचयक िशा है।“ इस ववचारधारा को समानता और टवतंत्रता के पारटपररक सम्बन्द्धों का सकारात्मक या प्रगनतवािी दृस्ष्ट्िकोण भी कहा जाता है। टवतंत्रता और समानता को परटपर सहयोगी अथवा पूरक मानने वाले ववचारकों द्वारा अपने मत की पुस्ष्ट्ि में ननम्नललखित तकण दिये गये हैं- 2.1 आधुननक प्रजातंत्र के युग में टवतंत्रता और समानता िोनों ही लोकतंत्र के आधार टतंभ हैं अथाणत ् िोनों ही एक- िस ू रे के सहयोगी है। फ्ांस के िास्न्द्तकाररयों की घोषणा और भारतीय संववधान की प्रटतावना आदि में टवतंत्रता और समानता िोनों का एक साथ ही उल्लेि ककया गया है। डा. आशीवाणिम ् ने ठीक ललिा है, “फ्ांस के िास्न्द्तकारी न तो पागल थे और न ही मूिण जब उन्द्होंने टवतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व की िास्न्द्तकारी घोषणा की थी। 2.2 समानता और टवतंत्रता िोनों का उद्िे चय व्यस्तत के व्यस्ततत्व का सवाांगीण ववकास करना है, अतः “टवतंत्रता का तात्पयण केवल यह है कक अनुधचत प्रनतबन्द्धों के टथान पर उधचत प्रनतबन्द्धों की व्यवटथा की जानी चादहए और अधधकतम सुववधाएाँ िी जानी चादहए, स्जससे व्यस्तत उनके द्वारा अपने व्यस्ततत्व का ववकास कर सकें। इसी प्रकार समानता का अथण आवचयक और पयाणप्त सुववधाएाँ िे ने से है, स्जससे सभी व्यस्तत अपने व्यस्ततत्व का ववकास कर सकें और असमानता का व्यस्ततत्व के ववकास हेतु आवचयक हैं। तनष्ट्कषत – टवतंत्रता और समानता में संबंध को टपष्ट्ि ककया गया है! प्रश्न 05. संप्रभुतय कर अथत, विशेषतयएं के बयरे में प्रकयश डयललए ? उत्तर – संप्रभुतय कय अथत – िे श का वह व्यस्तत जो ककसी के आिे श को मानने के ललए बाध्य नहीं हैं और उसके बात को सभी लोग मानने के ललए बाध्य है वहीं संप्रभुता हैं। संप्रभुतय की विशेषतयएं तनम्नललखित हैं - आंतररक संप्रभुतय - 1. आंतररक शजतत - संप्रभुता का अथण है कक राज्य के पास अपने आंतररक मामलों में ननणणय लेने की शस्तत होती है। 2. कयनून बनयने की शजतत - संप्रभुता के तहत, राज्य के पास कानून बनाने की शस्तत होती है। 3. न्द््य्पयललकय की शजतत - संप्रभुता के तहत, राज्य के पास न्द्यायपाललका की शस्तत होती है, जो कानूनों की व्याख्या करती है और उनका पालन सुननस्चचत करती है। बयहरी संप्रभुतय - 1. अंतररयष्ट्री् मयन्द््तय - संप्रभुता के तहत, राज्य को अंतरराष्ट्रीय समुिाय द्वारा मान्द्यता प्राप्त होती है। 2. अंतररयष्ट्री् संबंि - संप्रभुता के तहत, राज्य के पास अन्द्य राज्यों के साथ अंतरराष्ट्रीय संबंध टथावपत करने की शस्तत होती है। 3. अंतररयष्ट्री् समझौतों पर हस्तयक्षर करने की शजतत - संप्रभुता के तहत, राज्य के पास अंतरराष्ट्रीय समझौतों पर हटताक्षर करने की शस्तत होती है । संप्रभुतय की अन्द्् विशेषतयएं - 1. अनन्द्् - संप्रभुता एक अनन्द्य अधधकार है, जो केवल राज्य के पास होता है । 2. अविभयज्् - संप्रभुता एक अववभाज्य अधधकार है, जो ककसी भी हालत में ववभास्जत नहीं ककया जा सकता है । 3. अनंतकयलीन - संप्रभुता एक अनंतकालीन अधधकार है, जो राज्य के अस्टतत्व तक बना रहता है । प्रश्न 06. शजतत पृथककरण कय लसदियंत ि तन्ंत्रण संतुलन कय लसदियंत पर मयंण्टे स्क्ू के विचयर को ललखिए ? उत्तर – पृथतकरण कय लसदियन्द्त एक मूल्ोंकन - मॉण्िे टवगू अपने उतत लसद्धान्द्त द्वारा चाहता था कक ‘एक शस्तत िस ू री शस्तत को ननयस्न्द्त्रत करे इसके ललए आवचयक है कक सरकार के प्रत्येक नंग के कायण यह- पृथक और सीलमत रहे । सरकार का कोई अंग अपनी सस्ततयों व सीमानों का अनतिमण करता है तो ननरे अंगों का कतणव्य है कक ऐसा करने से उसे रोके। मॉण्िे टतयू के ऐसे ववचारों के कारण उसके लसद्धान्द्त के समथणक और आलोचक िोनों ही रहे हैं। शजतत पृथतकरण लसदियन्द्त के गुण – 1. शयसन की तनरं कुशतय पर रोक - मॉण्िे टयू के लसद्धान्द्त में यह सच्चाई है कक इस लसद्धान्द्त के पालन से शासक ननरं कुश नहीं होगा। मैडीसन ने भी टवीकार ककया था कक अबटथावपका कायणपाललका और न्द्यायपाललका की सभी शस्ततयों का एक ही हाथों में केन्द्द्रीकरण होना अत्याचार की पररभाषा है चाहे वह एक व्यस्तत हो, कुछ व्यस्तत हो चाहे पैतृक हो या टवत ननयुतत अथवा ननवाणधचत हो। 2. कय्त-विशेषीकरण कय उप्ोग - कायणववशेषीकरण के सही उपयोग की दृस्ष्ट्ि से भी तीनों बंगों में पृथतकरण आवचयक है। तयोकक यह आवचयक नहीं कक एक अथा कानून-ननयांला योग्य पालक और योग्य-न्द्यायाधीश भी हो। 3. न्द््य्पयललकय की स्ितन्द्त्रतय के ललए आिश््क - टवतन्द्त्र न्द्यायपाललकाको टथापना के ललए शासन के तीनों अंगों का पृथक् पृथक रहना आवचयक है। शजतत-पृथतकरण लसदियन्द्त के िोष ्य आलोचनय – 1. ऐनतहालसक दृस्ष्ट्िकोण से िोषपूणण – 2. शस्ततयों का पूणण पृथतकरण व्यावहाररक नहीं है – 3. शासन के तीनों अंग समान टतर के नहीं हैं – ननष्ट्कषण – शस्तत पृथककरण का लसद्धांत ननयंत्रण संतुलन का लसद्धांत पर मांण्िे टकयू के ववचार टपष्ट्ि है। Designed By :- Mo. 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