भारतीय इतिहास - प्रारंभिक परीक्षा PDF

Summary

यह दस्तावेज़ भारतीय इतिहास की प्रारंभिक परीक्षा के लिए नोट्स प्रदान करता है। इसमें भारत के इतिहास, भारतीय ज्ञान परंपरा, वेद, बोधिसत्व और तीर्थंकरों पर जानकारी शामिल है। यह सामग्री विभिन्न विषयों पर आधारित लगती है।

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भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 1 SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NO...

भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 1 SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 2 भारत का इततहास क्रमांक तिषय पृष्ठ क्रमांक 1. भारत िषष 3-5 2. भारतीय ज्ञाि परंपरा, भारतीय भिक्षा प्रणाली 6-14 3. िेद 15-22 4. ब्राह्मण ग्रंथ 23-26 5. अरण्यक 27-28 6. उपतिषद 29-31 7. िेदांग, ऋत 32-33 8. सभा एिं सतमतत 34-35 9. षड्दिषि 36-41 10. स्मृततयााँ 42-46 11. ऋण, यज्ञ 47-49 12. िणाषश्रम व्यिस्था 50-52 13. पुरुषाथष 53-54 14. िणष 55-57 15. सं स्कार 58-62 16. कमष का भसद्ांत 62-63 17. गणराज्य 64-66 18. बोभिसत्व 66-70 19. प्रमुख तीथंकर 71-76 SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW SHUBHAM XEROX NOTES/TEST SERIES UPSC MPPSC MPSI SAMVIDA SSC BANKING भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 3 01 भारत िषष पररचय पररचय िामकरण भारत के अन्य िाम भारत के भाग भारत के पिषत तथा सरोिर आकार तथा स्वरूप महत्वपूणष तथ्य िामकरण ❖ भारत का िाम ‘भरत िाम’ के तीि राजाओं के िाम पर भभन्न-भभन्न ग्रंथों में भभन्न-भभन्न तमलता है। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 4 भारत के अन्य िाम िाम दे ि/यातियों/तिद्वािों द्वारा िाम दे ि/यातियों/तिद्वािों द्वारा India यूिातियों द्वारा भरििस (भारतिषष) खारिेल के हाथीगुम्फा अभभलेख जम्बूद्वीप पुराण तथा अिोक के अभभलेख आयष दे ि/ब्रह्म राष्ट्र इत्सं ग सप्तद्वीप िासुमतत पतं जभल के महाभाष्य में देितितमषत देि मिुस्मृतत एिं भागित पुराण में तयि तू चीतियों द्वारा कु मारीद्वीप राजिेखर एिं िामिपुराण तहन्दुस्ताि सासािी िासक िाहपुर प्रथम के िक्श- अजिाभिषष आतदपुराण ए-रुस्तम अभभलेख (ईरातियों द्वारा) जम्बूद्वीप अतिपुराण अलतहन्द अरबों द्वारा आयाषितष पाभणिी (अष्ट्ाध्यायी) तहंदि ु बेतहस्तूि भिलालेख पं च भारत ह्वेिसांग ‘ग्यागर’ और ‘फग्युल’ ततब्बत अन्य प्राचीि िाम - तहंदि ु , भारतिषष ब्रह्मितष, अलतहन्द, होडू , ततयांझू मत्स्य पुराण के अिुसार भारतिषष के भाग - 9 तिष्णुपुराण के अिुसार भारतिषष के प्रमुख 7 पिषत इन्द्रद्वीप महेन्द्र कसेरू ऋक्ष ताम्रपणी मलय िागद्वीप आतद, (इसका 9 िााँ भाग भारत है)। तिं ध्य सहि प्राचीि पाभल तथा सं स्कृ त सातहत्य के अिुसार पाररयाि िुतिमत भारत में पिषतों में प्रथम एिं प्रिाि स्थाि सुमेरु पिषत को ही तदया गया है। भागित पुराण के अिुसार भारतिषष के पााँ च प्राचीि सरोिर िारायण सरोिर (गुजरात) कै लाि मािसरोिर (तहमालय के के न्द्र में) ह्वेिसांग द्वारा इन्ीं पााँ च भागों को पं चभारत कहा गया है। तबन्दु सरोिर (भसद्पुर, गुजरात) पम्पा सरोिर (मैसूर) SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 5 पुष्कर सरोिर (अजमेर, राजस्थाि) छकडे की भााँ तत – दीघतिकाय में सगभुजाकार तिभुज - महाभारत भारत का आकार / स्वरूप अद्षचंद्राकार – ह्वे िसांग कू मष की आकृ तत – िृहतसं तहता ❖ भारतीय उपमहाद्वीप िास्ततिक रूप से तिकोणाकार या ििुआकृ तत - पुराणों में ििुषाकृ तत आकार का था। महत्वपूणष तथ्य ❖ पुराणों के भुििकोष अध्याय में भारत के भूगोल का िणषि तमलता है। ❖ पुराणों में पृथ्वी का रूप कमल का है। ❖ भारत प्रित्स्त का उल्लेख पुराणों में तमलता है। ❖ सिषप्रथम इं तडया का प्रयोग 5-6िीं िताब्दी ई.पू. हेरोडोटस िे तकया था। ❖ मत्स्य पुराण के अिुसार सप्तद्वीपों में - जम्बूद्वीप, िकद्वीप, कु िद्वीप, पुष्कर द्वीप, क्ररंच द्वीप, िालमल द्वीप एिं गोमेद (लक्षद्वीप) सत्िभलत है। ❖ तहंदइू ज्म िब्द का प्रयोग सिषप्रथम - राजा राममोहि राय िे 1816-1817 में तकया। ❖ सोमदे िसूरर के िीततिाक्यामृतम् में भारतिासी के अथष में भारतीयााः िब्द का प्रयोग तकया गया। ❖ आयष आगमि पश्चात् भारत का िाम सप्तसैन्धि पडा। ❖ सरस्वती, ितुद्री, तिपािा, परुष्णी, अत्स्किी, तितस्ता और भसंिु (इि 7 ितदयो से भसंभचत प्रदे ि - सप्तसैंिि)कहलाता है। ❖ मिुस्मृतत अिुसार सरस्वती एिं दृषद्वती के बीच का क्षेि 'ब्रह्माितष। गं गा - यमुिा दोआब क्षेि - 'ब्रह्मतषष देि'। गं गा-यमुिा के बीच का प्रदेि -'अन्तिेदी' ❖ राजिेखर के काव्यमीमांसा के देि तिभाग िामक 17 िे अध्याय में – राजिेखर िे िमषदा िदी को उत्तर एिं दभक्षण के बीच की सीमा रेखा मािा। िमषदा िदी को मैकाल पिषत की, कन्या मैकलसुता कहा ❖ काभलदास िे तहमालय को दे ितात्मा कहा है। ❖ िृहत्तर भारत - (मत्स्य पुराण में सिषप्रथम उल्लेभखत) यह दो भागों में तिभाभजत था मध्य एभिया, ततब्वत, चीि। तहन्द-चीि तथा पूिी द्वीप समूह। ❖ सं स्कृ त चीिी िब्दकोि में द्वीप समूह सतहत भारत को भजपत्तल कहा गया। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 6 02 भारतीय ज्ञाि परं परा पररचय पररचय प्राचीिकालीि भिक्षा का ❖ प्राचीि भारतीय सभ्यता तिश्व की सिाषभिक रोचक तथा महत्वपूणष सभ्यताओं में से एक है। स्वरूप (प्रकार, तिभियााँ , ❖ प्राचीि भारतीयों की दृतष्ट् में भिक्षा मिुष्य के सिांगीण तिकास का उद्दे श्य) सािि थी। भिक्षकों एिं तििाभथषयों के ❖ भिक्षा का उद्दे श्य माि पुस्तकीय ज्ञाि प्राप्त करिा िहीं था, अतपतु प्रकार मािि के स्वास्थ्य का भी तिकास करिा था। भिक्षा के प्रमुख कें द्र ❖ प्राचीि भारतीय भिक्षा का तिकास िैतदक काल से िुरू हुआ था। भिक्षा की प्रमुख िाखाएं प्रमुख भचतकसा िास्त्री प्रमुख तिद्वाि प्राचीि कालीि भिक्षा अपरा तथा लरतकक तिद्या - तिभभन्न तिषयों इततहास, औषभि, रसायि, भरततक िास्त्र सं बं िी भिक्षा। ❖ िैतदक काल में पाठ्यक्रम के प्रकार – प्राथतमक भिक्षा – िैतदक मं िों का उच्चारण करिा भसखाया जाता था तत्पश्चात्, पढ़िे भलखिे की भिक्षा दी जाती थी। ❖ िैतदक काल में भिक्षा का मुख्य उद्दे श्य - आध्याभत्मक उच्च भिक्षा - परा तथा अपरा दोिों तिद्याओं का तथा लरतकक दोिों प्रकार की उन्नतत करिा था। ज्ञाि तदया जाता था। ❖ कठोपतिषद् में दो प्रकार की तिद्याओं का उल्लेख है। इसके अततररि 18 भिल्प, 14 तिद्याओं 16 कलाओं, 4 िेद, परा या आध्याभत्मक तिद्या – िेद, िेदांग, 6 िेदांगो की भिक्षा दी जाती थी। उपतिषद, पुराण, दिषि तथा िीततिास्त्र की भिक्षा। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 7 भिक्षण की तिभियााँ प्राचीि भारतीय भिक्षा के उद्दे श्य तप तिभि - छाि द्वारा स्वयं भचंति मिि तथा उत्तम ❖ तिष्ठा तथा िातमषकता का प्रचार अिुभूतत करके ज्ञाि प्राप्त करता था। ❖ सं स्कृ तत का सं रक्षण एिं प्रचार श्रुतत तिभि – भिक्षकों से सुिकर भिक्षा प्राप्त। ❖ सामाभजक सुख तथा करिल िृतद् ❖ िागररक तथा सामाभजक कतषव्य का ज्ञाि अन्य तीि तिभियााँ - (उपतिषद् अिुसार) श्रिण, मिि, ❖ व्यतित्व का सिांगीण तिकास तितदध्यासि। ❖ चररि का तिमाषण प्राचीिकाल में भिक्षकों एिं तििाभथषयों के प्रकार प्राचीिकाल में भिक्षकों के प्रकार प्राचीिकाल में तििाभथषयों के प्रकार ❖ अंतेिासी - गुरुकु ल में तििास करिे िाले। ❖ िैतष्ठक (िैषभिक) - जो जीिि पयंत छाि रहते है, इन्ें ब्रह्म व्रतिारी भी कहा जाता था। ❖ तीथषकारक – एक आचायष का पररत्याग कर दूसरे आचायष के पास जािे िाले छाि। ❖ उपकु िाषण - जो भिक्षा प्राप्त कर गुरु दभक्षणा देकर घर लरट जाते थे। ❖ प्रिज्या – जब कोई सामान्य व्यति बरद् भभक्षुओ ं में ❖ उपाध्याय - अपिी आजीतिका हेतु भिक्षा प्रदाि करिे िातमल होकर सं न्यासी जीिि को स्वीकार कर घर छोड िाले। देता है। ❖ अध्यापक - तिज्ञाि तथा लोक से सं बं भित ज्ञाि प्रदाि भस्त्रयों भी भिक्षा ग्रहण करती थी, ये दो प्रकार की होती है - करिे िाला। सिोििू - जो मतहलाएाँ तििाह होिे तक ब्रह्मचयष ❖ ऋभत्वक – पूरे तिभि तििाि से सं कत्ल्पत होकर यज्ञ का पालि करती थी। हिि आतद करिािे िाला। ब्रहमिातदिी – जो जीििपयषन्त ब्रह्मचारी रहकर ❖ चरक - जो भिक्षक घूम-घूमकर भिक्षा प्रदाि करते है। ज्ञािाजषि में लगी रहती थी। ❖ प्रििा - प्रोिा (ब्राहमण और श्ररतसूि) का तिद्वाि, सातहत्य की भिक्षा देिे िाला। ❖ श्रोतिय – िेदों को कं ठस्थ कर दीक्षा देिे िाला। ❖ गुरु – ग्रहस्थ रहते हुए भिक्षा प्रदाि करते है। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 8 भिक्षा के प्रमुख के न्द्र तहन्दू भिक्षा के के न्द्र ❖ अित्स्थतत - उ.प्र. के िाराणसी में त्स्थत। तक्षभिला तिश्वतिद्यालय कश्मीर ❖ िैि तथा बरद् िमष का प्रमुख के न्द्र। ❖ रत्नाकार (हररतिजय का लेखक), भिि- स्वामी (भििांक का लेखक), क्षेमेन्द्र और उसका पुि सोमेन्द्र, कल्हण, मखं क ि श्रीहषष कश्मीर के ही तििासी थे। िारा - पूिष मध्यकाल में भिक्षा का प्रिाि के न्द्र, परमार िं ि की राजिािी। कन्नोज - 7 िीं से 12 िी िताब्दी तक भिक्षा का के न्द्र ❖ स्थापिा – भरत द्वारा, प्रिासि तक्ष को सरंपा गया। रहा। ❖ प्रमुख तिद्वाि - प्रभसद् िैद्य जीिक, करतटल्य, चन्द्रगुप्त मरयष, करसल िरेि प्रसेिभजत, पाभणिी, पतं जभल अभन्लपाटि आतद। ❖ तहन्दू ि जैि दिषि ि भिक्षा का प्रमुख के न्द्र। ❖ अित्स्थतत - पातकस्ताि (रािलतपं डी) ❖ गुजरात के चरलुक्य िं ि की राजिािी थी। ❖ गांिार जिपद की राजिािी। ❖ प्रमुख तिद्वाि – सोमप्रभाचायष, रामचन्द्र, हेमचन्द्र, ❖ भारत का द्वार। उदयचन्द्र, जयभसंह, यिराज, िसराज, सोढ़ढल, ❖ खोज - अलेक्जेण्डर कतिं घम मेरुतुंग यही से सं बं भित थे। ❖ हूण आक्रमण द्वारा िष्ट्। ❖ भिक्षा के तिषय - औषभि िास्त्र (आयुिेद) िेदों का कांची अध्ययि, राजिीतत िास्त्र, िस्त्र तिद्या, 18 भिल्प कला ❖ दभक्षण भारत में पल्लि िासकों की राजिािी ि भिक्षा अत्स्थ िास्त्र आतद। का प्रमुख के न्द्र था। ❖ अश्वघोष के अिुसार तक्षभिला में िेि भचतकसा होती ❖ दत्ण्ड, िूद्रक, ि भारति िे यहीं अपिे ग्रंथों की रचिा थी। की। कािी ❖ िासयायि, बरद् तकष िास्त्र के जन्मदाता तदङ् िाग, कदम्बिं िी राजकु मार मयूरिमषि द्वारा यहीं से भिक्षा ❖ उपतिषद काल से भिक्षा के प्रमुख के न्द्र। (7 पुररयों में प्राप्त की। से एक) ❖ िैि िमष का प्रमुख के न्द्र। तमभथला - उपतिषद् काल में, भिक्षा के न्द्र, तमभथला में ❖ भाषा - सं स्कृ त गणेि िे िव्यन्याय के ग्रंथ तत्वभचंतामभण की रचिा की। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 9 घतटका – पल्लि में तिद्यालयों का अन्य िाम। ❖ प्रभसद् भिक्षक - आयषदेि, तदङ् िाग, दभक्षण भारत के िमषपाल कााँ ची के , गुणमतत और त्स्थरमतत बल्लभी के अन्य तिद्यालय – ओदंतपुरी (तबहार) बं गाल में जगदल्ला, तििासी थे। सोमपुरी महातिहार त्स्थत है। तिक्रमभिला तिश्वतिद्यालय बरद् भिक्षा के के न्द्र िालन्दा तिश्वतिद्यालय ❖ स्थापिा - पाल िं िीय िासक िमषपाल। ❖ भागलपुर के पास अन्तीचक गााँ ि। ❖ अन्य िाम - भिला सं गम (कािी एिं गं गा के सं गम पर होिे के कारण) ❖ स्थापिा - गुप्त िासक कु मारगुप्त प्रथम ❖ कु ल महातिद्यालय - 6 ❖ अित्स्थतत - पटिा (तबहार) से 40 km दूर राजगीर ❖ भिक्षक - 108 भजला। ❖ प्रभसद् बरद् तिद्वाि - दीपं कर श्री ज्ञाि अततिा। ❖ भिक्षा का तिषय – महायाि बरद् िमष। ❖ पभश्चमी द्वार का पं तडत - िागीश्वर कीततष ❖ कु लपतत - िीलभद्र (ह्वेिसांग के अिुसार) फाह्याि, ❖ स्नातकों को पं तडत तकाषलंकार एिं तकष चक्रिती की इत्सं ग, ह्वे िसांग तीिों चीिी यािी िालं दा में अध्ययि उपाभियााँ दी जाती थी। हेतु आए। ❖ तं ियाि/िज्रयाि भिक्षा का के न्द्र ❖ ह्वेिसांग िे 18 माह तक अध्ययि तकया। ❖ 1203 ई. में बत्ियार भखलजी द्वारा दुगष समझकर जला ❖ िमषगञ्ज िामक तििाल पुस्तकालय जो तीि भििों में तदया गया। तिभाभजत थी। (रत्न- सागर, रत्नोदभि, रत्नरंजक) िल्लभी तिश्वतिद्यालय ❖ खोज - कतिंघम द्वारा ❖ साररपुि की जन्मभूतम। ❖ अित्स्थतत - गुजरात कातठयािाड क्षेि में आिुतिक िल िामक स्थाि पर ❖ स्थापिा - मैिकिं िी िासक भट्टाकष द्वारा SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 10 ❖ प्रमुख भिक्षा का तिषय - हीियाि बरद् िमष। अन्य स्थल - स्तूप - बरद् स्मारक भजसमें आम तरर पर बरद् ❖ अन्य तिषय - न्याय, तिभि, िाताष सातहत्य। सं तों या महात्मा बुद् के पतिि अििेष रखे जाते थे। ❖ प्रभसद् तिद्वाि - गुणमतत एिं त्स्थरमतत। चैत्य - बरद् भभक्षुओ ं और भिों के भलए तितमषत ❖ मैिक िं ि की राजिािी पूजा स्थल। ❖ िल्लभी के स्नातकों को प्रिासतिक पदों पर तियुि मठ - एक िातमषक, सं स्थाि, जहााँ तकसी िमष के तकया जाता था। सं न्यासी या गुरु रहते थे। ❖ िल्लभी तिश्वतिद्यालय के प्रथम तिहार का तिमाषण तिहार - बरद् भभक्षुओ ं के रहिे का स्थाि। मैिक िं िी ध्रुिसेि प्रथम की पुिी छदा िे करिाया था। ❖ अरब आक्रमणकाररयों द्वारा िल्लभी तिश्वतिद्यालय को िष्ट् कर तदया गया। प्राचीि ज्ञाि परम्परा की िाखाएाँ ❖ रसायि िास्त्र ❖ भरततक िास्त्र ❖ औषभि तिज्ञाि ❖ गभणत ❖ जहाज तिमाषण एिं िर पररिहि रसायि िास्त्र ❖ प्राचीि अििारणाएाँ - परमाणु भसद्ांत (िैिेतषक दिषि), पकु ि कच्चायि द्वारा सिषप्रथम परमाणु ❖ रसायि िास्त्र रस तं ि या रसतिद्या को कहा जाता था, अििारणा स्पष्ट् की गई। भजसका अथष - तरल पदाथष का तिज्ञाि है। (िागाजुषि प्रमुख) औषभि तिज्ञाि ❖ उपयोग – चीिी तिष्कषषण, इि आसिि, रंग' एिं ❖ प्राचीि काल में सिषप्रथम औषभि तिज्ञाि के तिषय में रंजकों का तिमाषण िातुकमष आतद। जािकारी – अथिषिेद में तमलती है, जहााँ मािि रोगों ❖ उदाहरण - कु तुबमीिार त्स्थत लरह स्तम्भ। हेतु औषभियों का उल्लेख तमलता है। भरततक िास्त्र ❖ प्रमुख भिक्षण के न्द्र - तक्षभिला एिं िाराणसी। ❖ पृथ्वी पर उपलब्ध तिभभन्न सामतग्रयों का िगीकरण दो प्रमुख तिद्वाि - पं चमहाभूतों के आिार पर तकया जाता है। ❖ सुश्रुत - सुश्रुत सं तहता (िल्य भचतकसा) ❖ चरक - चरक सं तहता (आयुिेद सं बं िी जािकारी) SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 11 गभणत ❖ आयषभट्ट द्वारा खगोल तिद्या में कई योगदाि तदए गए - गृहों की गतत का अभिचक्रीय भसद्ांत, बेबीलोतियाई ❖ सिषप्रथम गभणत के तिषय में जािकारी हडप्पा सभ्यता तिभि द्वारा ग्रहों की त्स्थतत की गणिा। जहााँ इमारत तिमाषण एिं िगर तिन्यास में ज्यातमतीय ❖ पृथ्वी सूयष की पररक्रमा करती है - आयषभट्ट िे कहा। तथा बीजगभणत का प्रयोग तकया। (सिषप्रथम पृथ्वी की पररभि का िास्ततिक सतन्नकट माि ❖ आयषभट्ट का योगदाि - सूयष भसद्ांत में कोण के ज्या का बताया) भसद्ांत, तिभुज का क्षेिफल, पाई का माि (3.1416), ❖ भास्कराचायष तद्वतीय, उज्जैि की खगोलीय िेििाला के िून्य का अतिष्कार। प्रमुख थे। रचिा – करण-कु तूहल, भसद्ांत भिरोमभण। ❖ बोिायि - अपररमेय सं ख्या का ज्ञाि, रेखागभणतीय ❖ िाराहतमतहर कृ त िृहतसं तहता में भूजन्य तथा इसके भसद्ांत। प्रभािों को बताया गया। ❖ सिषिाभन्दकृ त – लोकतिभं ग -'0' का उल्लेख। ❖ िुल्व सूि – िगष, क्षेिफल, आयत आतद का ज्ञाि प्राप्त। भचतकसा िास्त्र ❖ बक्षाली पाण्डु भलतप - अंकगभणत का िणषि। ❖ ऋग्वेद में अभश्वि देिताओं को कु िल िैद्य कहा गया। ❖ ब्रह्मगुप्त द्वारा – ब्रह्मस्फु ट भसद्ांत, तिकोणतमतत भसद्ांत ❖ सिषप्रथम भचतकसा िास्त्र का उल्लेख अथिषिेद में आतद। तमलता है। ❖ गभणतसार सं ग्रह - महािीराचायष कृ त ❖ भारतीय भचतकसा पद्तत प्राचीि काल में िात्,तपत्त, ❖ भसद्ांत भिरोमभण – भास्कराचायष तद्वतीय कफ के भसद्ांतो पर आिाररत थी। ❖ िून्य का उल्लेख - ग्वाभलयर अभभलेख (गुजषर प्रततहार ❖ ितपथ ब्राहमण अिुसार मािि िरीर में 360 हतियााँ िरेि तमतहर भोज के चतुभुषज मं तदर में त्स्थत) होती है। जहाज तिमाषण एिं िर पररिहि - ❖ प्रथम मतहला भचतकसक - असूरमायारूप ❖ भारतीय भचतकसा का एिसाइक्ोंपीतडया - चरक ❖ उल्लेख सत्य िारायण की कथा में तमलता है। सं तहता खगोल तिज्ञाि एिं ज्योततष ❖ प्लाभिक सजषरी के जिक - सुश्रुत ❖ पिु भचतकसा का जिक - सुश्रुत ❖ छ: िेदांगों में से एक ज्योततष है, भजसकी जािकारी हमें ❖ अश्व िास्त्र / िाभलहोि सं तहता – घोडों की बीमारी तथा प्राप्त होती है। उिका उपचार। ❖ यिि ज्योततष तिद्या के जिक मािे जाते हैं। ❖ चरक, सुश्रुत,िाग्भट्ट – आयुिेदियी दो प्रमुख तिद्वाि – आयषभट्ट एिं िराहतमतहर ❖ चरक सं तहता, सुश्रुत सं तहता, अष्ट्ांग हृदय – िृहदियी ❖ पाश्वक आख्याि - पाश्वक (स्त्री, बाल रोग) ❖ आयषभट्ट – आयषभट्टीयम ❖ पालकाव्य कृ त-हत्यायुिेद (हाथी रोग) ❖ िाराहतमतहर - पं च भसद्ांततका, िृहत् जातक, बृहत् ❖ चक्रपाभणस्त – भािुमतत (टीका) सं तहता। ❖ िन्वं तरर - तिघण्टु SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 12 ❖ िाग्भट्ट – अष्ट्ांग ह्रदय, अष्ट्टांग' सं गृह। प्राचीि भारतीय भचतकसा िास्त्री िाग्भट्ट आयुिेद के तीि महाि कतियों में ये एक मािा जाता है। अष्ट्ांग हृदय, अष्ट्ांग सं ग्रह आयुिेद के महाि ग्रंथ। सुश्रुत प्राचीि भारत के एक महाि िल्य भचतकसक थे, जन्म – िाराणसी िाग्भट्ट िेि रोगों का एक पररष्कृ त िगीकरण प्रस्तुत तकया, पहली एक्स्ट्र ा कै प्सुलर मोततयातबं द सजषरी की थी। पथरी हटािे की तिभियों का िणषि। सुश्रुत सं तहता के प्रमुख 5 भाग है - सूिस्थाि, तिदाि, सरररस्थाि भचतकसा- स्थािम्, कल्पस्थािम्। चरक आयुिेद के महाि ज्ञाता एिं भचतकसक - आयुिेद के जिक भी कहा जाता है। सुश्रुत जन्म -कश्मीर, रचिा – चरकसं तहता, चरक सं तहता 8 अध्यायों में तिभाभजत है, जो एक सं स्कृ त ग्रंथ है। जीिि के तीि मुख्य स्तं भ – आहार, तिद्रा एिं ब्रह्मचयष। कु षाण राजाओं के राजिैद्य थे। िििं तरर प्रथम आयुिेद सं बं िी भचतकसा िास्त्री थे। इन्ें भगिाि तिष्णु का अितार मािा जाता है। जन्म - कािी चं द्रगुप्त तद्वतीय के ििरत्न में से एक। पुराणों के अिुसार – भगिाि तिष्णु िे काततषक महीिे के कृ ष्ण पक्ष ियोदिी ततभथ को िििं तरर के रूप में जन्म भलया, इसीभलए िितेरस के रूप में भगिाि िििं तरर का पूजि होता है। कािी में िल्य भचतकसा का प्रथम तिद्यालय स्थातपत तकया। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 13 प्राचीि भारतीय तिद्वाि िराहतमतहर चन्द्रगुप्त तद्वतीय के ििरत्नों में से एक। प्राचीि भारतीय गभणतज्ञ, खगोलज्ञ तथा ज्योततष थे। जन्म - उज्जैि प्रमुख पुस्तकें - पं चभसद्ांततका, िृहत् सं तहता, िृहत् जातक। कायष - फभलत ज्योततष में अहम योगदाि। तिकोणतमतत में साइि टे बल में सुिार कर सटीक माि तदए। िराहतमतहर िे सबसे पहले बताया तक अयिांि का माि 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। ब्रह्मगुप्त- प्रभसद् भारतीय गभणतज्ञ एिं खगोलिास्त्री। जन्म - राजस्थाि (भीिमाल) उज्जैि खगोलीय िेििाला के तिदेिक रहे। प्रमुख ग्रंथ - खण्डखाद्यक, ब्रह्मस्फु ट भसद्ांत, ग्रहाणाकष ज्ञाि योगदाि - िगषमूल तिकालिे का एल्गोररथ्म भी तदया। रैभखक समीकरणों और कु छ िगष समीकरणों को हल करिे के तरीके बताये। सिषसतमका का एिं ब्रह्मगुप्त प्रमेय की खोज की। भास्कराचायष- एक प्रभसद् गभणतज्ञ एिं ज्योततषी ये। सं बं ि - मध्यकालीि भारत से। जन्म - किाषटक के बीजापुर भजले में प्रमुख पुस्तकें - लीलािती, भसद्ांत भिरोमभण, कारण कु तूहल योगदाि - दिमलि पद्तत का सिषप्रथम व्यित्स्थत रूप से इस्तेमाल तकया। गुरुत्वाकषषण तियमों की जािकरी - गोलाध्याय िामक ग्रंथ में दी है। अंकगभणत, बीणगाभणत, ग्रहों की गतत से सं बं भित गभणत सं बं िी भसद्ांत तदये। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 14 आयषभट्ट भारतीय गभणत और खगोल तिज्ञाि के िास्त्रीय युग के पहले प्रमुख गभणतज्ञ एिं खगोलज्ञ थे। ग्रंथ - आयषभट्टीयम, आयषभसद्ांत। योगदाि – खगोल तिज्ञाि में सररमण्डल की गतत िक्षि, काल ग्रहण, सूयषकेन्द्रिाद आतद। भारत सरकार िे अपिे पहले उपग्रह का िाम आयषभट्ट रखा। गभणत में पाई का सतन्नकटि, तिकोणतमतत, स्थािीय माि प्रणाली, िून्य की खोज की। तिभुज और िृत के क्षेिफल की सही गणिा की। परीक्षा उपयोगी महत्वपूणष तथ्य ❖ अग्रहार ग्राम क्या थे - ब्राहमणों की दी जािे िाली पट्टे के अभिकार से मुफ्त भूतम। ❖ प्राचीि कालीि ज्ञाि का क्या आिार था - िमष ❖ भारतीय ज्ञाि परम्परा का आिारभूत तत्व क्या है - तमस ❖ मरयष कालीि न्यायिास्त्र की भिक्षा को क्या कहा जाता था – आन्वीक्षकी ❖ ऋग्वेद का करि सा मण्डल भिक्षा का िणषि करता है - सातिााँ ❖ भारतीय ज्ञाि परम्परा का सार क्या है- उपतिषदों में। ❖ ब्राह्मी भलतप का दभक्षणी रूप क्या है- ततगलरी ❖ ऋग्वेद में तकतिी भिक्षा पद्ततयों का उल्लेख है- दो ❖ प्राचीिकाल में गुरु के पास भिक्षा प्राप्त करिे िाले तिद्याथी क्या कहलाते थे – अंतेिासी ❖ तिश्व का प्रथम ति. ति. करि सा था- तक्षभिला ❖ भीमबैतठका से तकस तिभि के उदाहरण तमलते है – भािभचिात्मक ❖ भस्त्रयों के छािािास क्या कहलाते थे – छािभिलाएाँ ❖ आयुिेद ियी में करि िातमल है- चरक, सुश्रुत, िाग्भट्ट ❖ रसायि िास्त्र की पुस्तक रसरत्न समुच्चय के लेखक करि है - िाग्भट्ट ❖ गभणत की तकस िाखा का िाम प्राचीि काल में बीजगभणत था- एलजेब्रा ❖ तिक्रमभिला महातिहार को तकसिे िष्ट् तकया – बत्ियार भखलजी SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 15 03 िेद पररचय पररचय ❖ िेद िब्द तिद् िातु से बिा है भजसका अथष है – ज्ञाि। ऋग्वेद ❖ प्राचीि भारतीय इततहास की जािकारी हेतु सिाषभिक प्रमाभणक ग्रंथ यजुिेद िेद है। सामिेद ❖ िेदों की भाषा सं स्कृ त, भलतप-ब्राह्मी है। अथिषिेद ❖ िेदों को अपररुषेय, श्रुतत और तिगम कहा जाता है, भजिका अथष क्रमिाः परीक्षा उपयोगी तथ्य (ईश्वर कृ त, सुिा हुआ, सुसंगत तथा सिेाषत्कृष्ठ अथष बतािे िाला) है। ❖ िेदों के 4 अंग है - सं तहता, ब्राम्हण, अरण्यक, उपतिषद् । ❖ िेदो की सं ख्या 4 है – ऋग्वेद, सामिेद, यजुिेद तथा अथिषिेद। ❖ िेदियी - ऋग्वेद, सामिेद, यजुिेद। ❖ िेदों का सं कलि - महतषष कृ ष्ण द्वैपायि द्वारा। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 16 ऋग्वेद ❖ ऐसे मं िों एिं स्रोतों का सं कलि है, भजन्ें यज्ञों के अिसर पर दे िताओं की स्तुतत के भलए उपयोग तकया जाता था। ❖ पाठकताष - होता या होतृ ❖ ऋग्वेद की ततभथ -(1500-1000ईपू) ❖ भलतप – ब्राह्मी ❖ 10 मण्डल, 1028 सूि, 10580 ऋचा ❖ प्राचीि, िं ि, गोि (कु ल), ऋतष मं डल- २-7िें मण्डल तक ❖ परिती काल के मण्डल -1,8,9,10 ❖ 10िााँ मण्डल सबसे बाद में जोडा गया। ❖ ऋग्वेद के तीि पाठ / सं तहता है- साकल - 1017 सूति बालभखल्य -11 सूति (8िें मण्डल का पररभिष्ट्) िाष्कल - 56 सूि ❖ ऋग्वेद की िाखाएं पतं जभल - 21 िरिक के ग्रंथ: चरणव्यूह एिं पुराणों - ✓ 5 िाखाएाँ – िाकल, िाष्कल, िांखायि, माण्डु कायि, आश्वलायि ❖ ितषमाि में के िल 3 िाखाएाँ उपलब्ध है। ❖ िाकल िाखा को ही ऋग्वेद सं तहता कहते है। ❖ आश्वलायि िाखा – श्रोत एिं गृह सूि ही प्राप्त ❖ िांखायि िाखा - के िल ब्राहमण एिं अरण्यक ❖ िाकलायि िाखा - 1017 सूति+ 11 बालभखल्य (8िााँ मण्डल) – 1028 सूति (प्रत्येक सूति कई मं ि/ऋचाओं/श्लोकों से तमलकर बिी है। ❖ मं िों की कु ल सं ख्या -10552 (NCERT-10580) ❖ ऋग्वेद में 21 ऋतषकाओं का उल्लेख तमलता है- जो िैतदक मं िों की दृष्ट्ा थी। ❖ लोपामुद्रा, घोषा, भसकता, अपाला तिश्वपारा, श्रद्ा, पोलोभी, तििािरी, अंतगरसी, िैिस्ती, सातििी आतद। ❖ ऋग्वेद की कई बातें जेंद अिेस्ता (ईरािी ग्रंथ) से तमलती है। ❖ 10 िााँ मण्डल सबसे बडा है, भजसमें पुरुष सूि है। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 17 मण्डल सं बं भित ऋतष िणषि / महत्वपूणष तथ्य प्रथम मिुच्छंदा, दीघषतमा, - इस मण्डल के ऋतषयों को ितभचषि कहा जाता है, 20 राजाओं के एक अगस्त्य, कण्व ऋतष द्वारा युद् का उल्लेख। 50 सूि भलखे गए। - हलिाहें का गीत का िणषि तद्वतीय गृहसमद भागषि ि - तिश्व का प्रथम अभभयं ता उिके िं िज - आयष तथा अिायों का उल्लेख तृतीय तिश्वातमि - प्रथम िमषगुरू (तिश्वातमि), गायिी मं ि का उल्लेख (सूयषदेि सतिता) को समतपषत - तिश्वातमि- िदी सं िाद (तिपािा एिं िुतुदी िदी) चतुथष िामदेि - कृ तष सं बं भित प्रतक्रया - कृ तष यं िों का उल्लेख पं चम अति - घोडों का िणषि - अिुसुइया िणषि पष्ट्म भारद्वाज - िमष तथा समाज का तििरण - हररयुतपया (हडप्पा िहर), - इंद्र पुरंदर का िणषि सप्तम् िभिष्ट् ऋतष - िरूण दे िता को समतपषत - दिराज युद् का िणषि - माण्डू क सूि (ब्राह्मणों की तुलिा मेढकों से की गई) - महामृत्यजय ुं मं ि का िणषि भजसमें भिि को त्र्यंबक कहा है। अष्ट्म मण्डल कण्व, अंतगरस - बालभखल्य सूिों को स्थाि तदया गया। ििम् मण्डल पिमाि, सोम, अंतगरा - इस मण्डल के ऋतषयों को पािमान्या कहा जाता है। - इस मण्डल की 114 सूति सोमदेि को समतपषत है। - प्रभसद् काव्य - मैं कति हूाँ, मेरे तपता िैद्य है, मेरी माता अन्न पीसती है। दसिााँ मण्डल 'तित, तिमद, श्रद्ा - इस मण्डल के ऋतष महासूि कहलाते है। कामायिी, इंन्द्रा, िची, - एकतत्विाद, बहुदे ििाद, सिेश्वरिाद का उल्लेख। क्षुद्रसूति महासूति - तिभभन्न सूिों का िणषि - िासदीय सूति, पुरुष(10िॉ मण्डल चार िणों का िणषि), अक्ष सूि, तििाह सूि आतद - ऋग्वेद का सबसे ििीितम मण्डल - सूयष सूि में तििाह सं स्कार से जुडे अिुष्ठाि का िणषि - पुरुरिा - उिषिी, यम यमी सं िाद, सरमा पाभण सं िाद, इला सं िाद का िणषि। SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 18 ऋग्वेद में िभणषत गांिारी प्रदे ि - भेड के ऊि के भलए प्रभसद् था। िासिीय सूति - तिगुषण ब्रहम + स्वगष का उल्लेख + सिेश्वरिाद पर आिाररत पुरुषसूति - एके श्वरिाद ऋग्वेद के कततपय सूिों की रचिा गरतम राहूगढ़ िे की जो अति प्राथषिा से सं बं भित है। ऋग्वेद के चरथे मण्डल के 3 मं ि 3 राजाओं िे भलखे – िासदस्यु, अजमीढ़, पुरमीढ असतो मा सद्म्य का उल्लेख कृ ष्ण का सिषप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में तमलता है। ऋग्वैतदक पुिरािृतत िब्द इततहासकारों िे िैतदक ग्रंथों को दो भागो में बांटा है - पूिष और उत्तर तपता - 335 तिि - 170 िैतदक ग्रंथ तिदथ - 122 व्रज (गरिाला) 45 सप्तम मण्डल की ऋचाएाँ सबसे पुरािी मािी जाती है। माता - 234 िरुण - 30 सभा - 8 िणष - 23 सबसे बडा मण्डल - प्रथम एिं दसिााँ मण्डल सतमतत - 9 आयष - 36 उपिेद - आयुिेद अश्व - 215 तिष्णु - 100 तिश्व का प्रथम उपलब्ध व्यित्स्थत ग्रंथ क्षतिय - 9 कृ तष - 33 ऋग्वेद के देिता – इन्द्र - 250 राजा, िुद्र, िैश्य, - प्रमुख - इन्द्र और अति देिता पृथ्वी, गं गा - 1 - अन्य - सतिता, रुद्र, तमि, िरूण, सूयष, मरुत, उषा देिी, मन्यु राष्ट्र - 10 रुद्र - 3 (अमूतष रूप में क्रोि के देिता) अति - 200 जमुिा - 3 स्तूप िब्द एिं रूद्रमहाभभषेक का तििरण सोमदेि - 144 गण - 46 राजिीततक सं स्थायें – सभा, सतमतत, तिदथ, गण गाय - 176 जि – 275 आत्मा के आगमि का भसद्ांत(ॐ), सूयषग्रहण, चन्द्रग्रहण, िल्य भचतकसा, 4 समुद्र (अपर, पूि,ष सरस्वत एिम् ियषणाित), पाप पुण्य का िणषि, स्वगष, िकष आतद का उल्लेख दो जैि तीथषकरों ऋषभदेि और अररष्ठ- िेतम का उल्लेख। आयों और दासों की पयाषप्त जािकारी ईश्वर को पुरुष एिं तहरण्यगभष भी कहा है। ऋग्वैतदक में उल्लेभखत प्रमुख िब्द ▪ पजषन्य - बादल ▪ पिष – कटी फसल के गट्ठे ▪ त्स्थि - िाप (लगभग 32 ▪ अित – कू प (बोझ) ली.) ▪ ऊस्दर - िापिे िाला पाि ▪ खतितिमा - भसंचाई के भलए ▪ िन्व - मरुस्थल ▪ सृभण / दाि - हाभसया जलािय ▪ पुरप - दुगषपतत SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 19 ▪ दूरी - गियुतत ▪ सीर / लांगल - हल ▪ करीष - सूखा गोबर ▪ भखल्य - पिुचारण योग्य ▪ स्पिष - गुप्तचर ▪ उग्र – अपराभियों को भूतम ▪ गतिष्ट् - मिेभियों के भलए पकडिे िाला ▪ उिषरा - जुता हुआ खेत युद् ▪ गोिूभल - सूयोदय से पहले ▪ सीता – हल से बिी ▪ अघन्या - गाय (भजसकी और बाद का समय िाभलयााँ अतहंसा िा जाये) ▪ गियतु - दूरी माप हेतू ▪ बृक - बैल ▪ गारहन्ता - अततभथ ▪ कु ल्या - बडी िाली या िहर ▪ दुतहता - बेटी / कन्या यजुिेद ❖ यजुष का अथष - यज्ञ, (यज्ञ तिभि- तिद्यािों, कमषकाण्डों का तििरण) ❖ कमषकाण्ड प्रिाि िेद ❖ इसमें यज्ञों को सम्पन्न करािे हेतु उपयोगी मं िों का सं कलि है। ❖ उच्चारण - अध्वयुष पुरोतहत, िाखायें – 101, (अध्वयुषिेद की सं ज्ञा) ❖ गद्य + पद्य दोिों िैभलयों में भलभखत ❖ गद्य भाग का प्रत्येक अंग - यजुष कहलाता हैं। ❖ िाजसिेयी पुि याज्ञिल्क्य ही िाजसिेयी (माध्यभन्दि) के दृष्ट्ा थे। ❖ िाजसिेयी सं तहता में पुरुष मेघ यज्ञ में बभल कर से पीतडतों की सूची दी गई है, भजसमें भिल्प ि व्यिसायों की लम्बी ताभलका का उल्लेख है। ❖ िुक् यजुिेद पद्य में है क्योतक के िल मं िों का सं कलि है। ❖ कृ ष्ण यजुिेद में यज्ञ की तिभि के साथ-साथ आभथषक एिं न्यातयक प्रतक्रयाओं का भी तििरण प्राप्त है। ❖ इस िेद का अंततम - भाग - ईिोपतिषद् है (तिषय - दािषतिक एिं आध्यात्म) ❖ उपिेद – ििुिेद SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 20 सामिेद ❖ दो भाग है - पूिाषभचक, उत्तराभचषक ❖ ऋग्वेद से अभभन्न िेद है। ❖ यज्ञों के अिसरों पर पाये जािे िाले मं िों का सं ग्रह है। ❖ मं िों का उच्चारणकताष - उद् गाता ❖ मुख्यताः सूयष स्तुतत के मं ि है। ❖ िाखायें 3 (मूलताः 1000) 1. राणायिीय सं तहता (महाराष्ट््) 2. करथुम सं तहता (सिाषभिक प्रचलि में - गुजरात) ❖ अथष - सं गीत / गािा 3. जैतमिीय (तलिकार सं तहता) (किाषटक) ❖ सं गीत िास्त्र का मूल ❖ श्री कृ ष्ण िे स्वयं को सामिेद कहा। ❖ पद्य िैली में तितमषत ❖ पूिाषभचक (इन्द्र, अति और सोम (पिमाि)) ❖ सामिेद के प्रथम दृष्ठा जैतमिीय ऋतष थे, जबतक ❖ उत्तराभचषक - (दिराि, सं िसर, एकाह आतद तिषय) सुकमाष िे इसका तिस्तार तकया। ❖ उपिेद – गं ििषिेद ❖ मं ि - 1875 है, इसमें के िल 75 मं ि ििीि है, िेष ऋग्वेद से भलए गये। अथिषिेद ❖ चारों िेदों में सिाषभिक लोकतप्रय िेद है। ❖ २० कांड (अध्याय), 731 सूति 5967 मं ि ❖ उपिाम - मतहिेद, अथिाष अंतगरस श्रोष्ट्िेद, क्षििेद, भैषज्यिेद। ❖ लरतकक जीिि से सं बं भित मं िों का सं ग्रह ❖ यज्ञ में बािा होिे पर उसका तििारण अथिषिेद में है। ❖ िेद मं िों का उच्चारणकताष- ब्रह्म (तिरीक्षक) पुरोतहत ❖ अन्य िाम – ब्रह्मिेद ❖ दो मुख्य िाखाएाँ - तपप्पलाद ि िरिक ❖ इस िेद के सिषप्रथम दृष्ट्ा - अथिाष ऋतष, तद्वतीय – अंतगरस (अथिाष ऋतष के भिष्य) SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 21 अथिषिेद में िभणषत महत्वपूणष तथ्य इस िेद का प्रतततिभि सूि पृथ्वी सूि, आयुिेद (जीिि का तिज्ञाि) का सिषप्रथम उल्लेख मगि एिं अंग का दूरस्थ प्रदेि के रूप में उल्लेख। इततहास िब्द का सिषप्रथम उल्लेख मगि के लोगों को व्रात्य कहा जाता है। बहुत से तिद्वाि इसे अिाषचीि मािते है। कु रु राजा परीभक्षत का उल्लेख (मृत्युलोक के दे िता की िमष, दिषि, राजिीतत, रस, अलं कार, छं द, अथषिास्त्र, सं ज्ञा) तत्व मीमांसा - अथष, काम, भािात्मक प्रेरणा, सभा, सतमतत को प्रजापतत को दो पुतियााँ कहा है। कतषव्योपदेि और िीतत भिक्षा का िणषि तमलता है। अयोध्या का प्रथम बार उल्लेख 10 िें मण्डल में तकया गया है। िेद उपिेद रचिाकार तिषय ऋग्वेद आयुिेद िन्वं तरर भचतकसा यजुिेद ििुिेद तिश्वातमि युद् सामिेद गं ििष िेद भरतमुति कला एिं सं गीत अथिषिेद भिल्पिेद तिश्वकमाष स्थापत्य कला परीक्षा उपयोगी महत्वपूणष तथ्य ❖ करि सा मण्डल ऋग्वेद का सबसे पुरािा भाग मािा जाता है - दूसरे से सातिें मण्डल तक ❖ तहन्दू दिषि में आमतरर पर तकतिे चक्रों को मान्यता दी गई है - सात ❖ ऋग्वैतदक युग में गव्यूतत का तात्पयष है- दूरी ❖ िैतदक काल में अक्षिाप करि थे- लेखा अभिकारी ❖ ऋग्वेद की पाण्डु भलतपयों में तकस भलतप के प्रयोग का उल्लेख िहीं है - बं गाली ❖ बाल गं गािर ततलक िे िैतदक काल को तकतिे भागों में तिभाभजत तकया- 4 (चार) ❖ गायिी मं ि का उल्लेख ऋग्वेद के करि से मण्डल में है- तीसरा ❖ करि सा िेद जादू और ििीकरण से सं बं भित है- अथिषिेद ❖ ऋग्वेद में तकतिे सूि है - 1028 ❖ ऋग्वेद में तकस दे िता की व्यिस्था की गई है जो ब्रह्माण्डीय व्यिस्था और िातमषकता का प्रतीक है -अति ❖ ऋग्वेद में बार - बार उल्लेभखत िदी – सरस्वती ❖ ब्रह्मिेद तकस िेद का अन्य िाम – अथिषिेद ❖ यजुिेद की करि सी िाखा के िल छं द रूप में है - िुक् यजुिेद ❖ ियी तकसका िाम है- तीि िेद का SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 22 ❖ सामिेद के पाठ है की तकतिी पुिरािृततयां है - तीि ❖ करि सामिेद का पाठ िहीं है. सरिातकया ❖ सामिेद के दो भाग करि से है- भाग 1 - गण, भाग 2- अभचषका ❖ श्रुतत सातहत्य तकसे कहते हैं- िेद, ब्राह्मण, उपतिषद्, अरण्यक ❖ ऋग्वेद की तकस िाखा का ितषमाि में अध्ययि तकया जाता है- िाकल िाखा ❖ िासदीय सूि में क्या उल्लेख है- ब्रह्माण्ड की उत्पतत ❖ ऋग्वेद के तकस सूि में देिताओं के देिता का उल्लेख है- तहरण्य गभष सूि ❖ ऋग्वैतदक कालीि में तपतृसतात्मक पररिारों में सबसे बडी सामाभजक इकाई करि सी थी - जि ❖ ऋग्वैतदक कालीि िमष का प्रकार क्या था- बहुदेििादी ❖ ऋग्वैतदक कालीि अघन्या िब्द का क्या अथष है- गाय ❖ ऋग्वैतदक पभण तकस िगष के िागररक थे - व्यापारी ❖ ऋग्वैतदक कालीि होतृ ऋतष का सं बं ि तकस िेद से है - ऋग्वेद ❖ ऋग्वैतदक कालीि राजा या राजि की क्या भूतमका थी - जिजातत मेिेभियों के रक्षक और युद् में योद्ा ❖ ऋग्वेद की मूल भलतप – ब्राह्मी ❖ ऋग्वेद मूलत: है - स्त्रोतों का सं कलि ❖ सबसे प्राचीि िेद करि सा है - ऋग्वेद ❖ ऋग्वेद का सबसे ििीि मं डल - प्रथम एिं दसिााँ ❖ िैतदक कालीि पं चजि - यदु, द्रुहयु, पुरु अिु, तुिषस ❖ ऋग्वेद के तकसी मण्डल का प्रथम सूि तकस दे िता से प्रारंभ होता है - अति से ❖ ऋग्वेद में यजुर का क्या अथष है- बभलदाि ❖ सामिेद का िणषि तकस िेद पर आिाररत है - ऋग्वेद ❖ औषभि ििस्पततयों के तिषय में सूचिा तकस िेद से तमलती है- अथिषिेद ❖ अथिषिेद में िभणषत प्रथम कृ तष िैज्ञातिक - पृथुिैन्य ❖ युद् का प्रारंभ मिुष्य के मत्स्तष्क में होता है – अथिषिेद SARANSH ICS AN INSTITUTE FOR MPPSC LALIT BAIRAGI SIR (DSP-2019 & NT-2020) DOWNLOAD THE APP NOW CONTACT NO. - 7489648880 “जब भी तिकलेंगे, अभिकारी बिकर तिकलेंगे” JOIN & SUBSCRIBE NOW भारतीय इततहास – प्रारंभभक परीक्षा 23 04 ब्राह्मण ग्रंथ पररचय पररचय ❖ िेदों की सरल व्याख्या हेतु ब्राह्मण ग्रंथों की रचिा गद्य में की गई। ऋग्वेद सं बं िी ब्राह्मण ❖ ब्रह्म का अथष यज्ञ है, अताः यज्ञ के तिषयों का प्रततपादि करिे िाले ग्रंथ ब्राह्मण यजुिेद सं बं िी ब्राह्म

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