अनुवाद के सिद्धांत PDF
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This document appears to be an academic paper discussing the principles of translation. It includes various definitions and perspectives of the concept of translation. The text includes discussions on different methods and approaches in translation, and the importance of translation in communication.
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70................................ 1. अनुवाद के िसद्धांत इस संसार म कई भाषा भाषी लोग रहते ह । अलग-अलग देश म कई अलग- अलग भाषाओ ं का प्रयोग होता है । अतः िवचार के आदान-प्रदान के िलए अनवु ाद की आव यकता पड़ती है । एक भाषा म कही गई बात को दसू री भाषा म कहना ही अनवु ाद होता...
70................................ 1. अनुवाद के िसद्धांत इस संसार म कई भाषा भाषी लोग रहते ह । अलग-अलग देश म कई अलग- अलग भाषाओ ं का प्रयोग होता है । अतः िवचार के आदान-प्रदान के िलए अनवु ाद की आव यकता पड़ती है । एक भाषा म कही गई बात को दसू री भाषा म कहना ही अनवु ाद होता है । अनवु ाद के िलए अग्रं ेजी श द ‘ट्रांसलेशन’ का प्रयोग होता है । अनवु ाद वतर्मान म बहुत ही पिरिचत श द है । अनवु ाद एक भािषक प्रिक्रया है । भाषा एक प्रतीका मक यव था है । सप्रं ेषण या िवचार का आदान-प्रदान ही भाषा का उ े य है । अनवु ाद म अनवु ादक को भाषाओ ं की यव था से जझू ना पड़ता है । एक भाषा यव था म यक्त अथर् को दसू री भाषा यव था म पिरवितर्त करता है । अतः हम अनवु ाद के व प को समझने के िलए एक ओर भाषा की संक पना को समझना आव यक है । अनवु ाद दो भाषाओ ं के म य होने वाला भाषांतरण भी है । अनुवाद श द की यु पि अनवु ाद श द का संबंध ‘वद‘् धातु म ‘घञ’् प्र यय लगने से ‘वाद‘ श द बनता है । वद् का अथर् होता है ‘कहना‘ । इस ‘वद‘् श द के आगे ‘अन‘ु उपसगर् जड़ु ने से ‘अनवु ाद‘ श द की यु पि होती है । यु पि मूलक अथर् सं कृ त के ‘वद‘ धातु से अनवु ाद श द का िनमार्ण हुआ है । वद् का अथर् है बोलना । ‘वद‘् धातु म ‘घञ’् प्र यय जोड़ देने पर भाववाचक संज्ञा म इसका पिरवितर्त प है । ‘वाद‘ िजसका अथर् है ‘कहने की प्रिक्रया‘ । ‘अनवु ाद’ श द का यु पि मल ू क अथर् है - ‘पनु ः कथन’ एक बार कही गई बात को दसू री बार कहना ही ‘अनवु ाद’ है । अनुवाद श द का अथर् अनवु ाद श द का मल ू अथर् है “िकसी की कही हुई बात को दबु ारा कहना ।” प्राचीन समय म िलखने पढ़ने की प्रिक्रया बहुत कम होती थी । उस समय गु अनुवाद के िसद्धांत 71 द्वारा कहे गए वचन को िश य द्वारा दोहराया जाता था । इसी दोहराने को ‘अनवु चन’ कहा जाता था । यह भी देखा जाता है िक क्या अनवु ाद और ‘पनु िक्त’ दोन अलग- अलग है । पनु िक्त िनरथर्क होती है और अनवु ाद साथर्क होता है । अनवु ाद प्रयोजन यक्त ु पनु ः कथन होता है । अतः यह कहा जा सकता है िक अनवु ाद का अथर् ‘श द’ को साथर्क प म दहु राना होता है । दसू रे श द म इस प्रकार भी कहा जा सकता है- अनवु ाद श द ‘अन’ु उपसगर् और वाद श द के संयोग से बना है - अनु + वाद = अनवु ाद । ‘अन’ु उपसगर् का अथर् होता है ‘पीछे ’ । ‘वाद’ श द का संबंध है वद् धातु से, िजसका अथर् होता है ‘कहना एवं बोलना’ । इस तरह ‘अनवु ाद’ श द का अथर् है िकसी के कहने के बाद बोलना । वैिदक सं कृ ित के महान आचायर् भतृर्हिर ने भी ‘अनवु ाद’ को ‘दहु राना’ ही कहा है । सं कृ त सािह य म भी ‘अनवु ाद’ श द का प्रयोग ‘गु के कहे जाने के बाद िश य द्वारा दहु राया जाना ही होता है ।’इसे प प से समझने के िलए यह भी कहा जा सकता है िक अनवु ाद का अथर् िकसी एक भाषा म यक्त श द को दसू री भाषा म कहना होगा । िजस भाषा से अनवु ाद िकया जाता है, उसे ‘ ोत भाषा’ कहा जाता है और िजस भाषा म अनवु ाद िकया जाता है, उसे ‘ल य भाषा’ कहा जाता है । अनवु ाद कायर् आसान नहीं होता । के वल उसके अथर् मात्र को जानकर अनवु ाद नहीं िकया जा सकता । इसके िलए ोत और ल य भाषा की संपणू र् जानकारी होना आव यक होता है । अनवु ाद करना दोन भाषाओ ं के म य एक समझौते वाला पल ु बनाना आव यक होता है । संसार की सभी भाषाओ ं के िसद्धांत अलग-अलग होते ह । प्र येक भाषा के श द, पद, वाक्य, महु ावरे , लोकोिक्त आिद अलग-अलग और वतंत्र होते ह । अनुवाद की पिरभाषा मू य ( ोत) भाषा म कहे गए िवचार को दसू री (ल य) भाषा म यक्त करना अनवु ाद कहलाता है । अनवु ाद की सटीक पिरभाषा जानने के पहले हम कुछ मह वपणू र् पहलओ ु ं पर यान देना आव यक है । िकसी भी अनवु ादक का सबसे पहले यही उ े य होता है िक उसकी अनवु ािदत कृ ित या सामग्री ोत या मल ू भाषा के अिधक 72................................ समीप हो । इसीिलए वह सृजनकतार् के सांचे म पणू र् प से बैठने का प्रयास करे गा, क्य िक मल ू सृजनकतार् के िवचार को वह अ छी तरह से समझ ले । ऐसा करने पर ही वह ल य भाषा म उस मल ू कृ ित को यथासंभव समान प प्रदान करने म सफल हो पाएगा । अनिु दत सामग्री म एक प्रकार की सहजता भी िदखनी चािहए । यह सहजता मलू कृ ित के प्रवाह के अनक ु ू ल और प्रासंिगक हो । अनवु ाद को पणू र् प से समझने के िलए कुछ मह वपणू र् पिरभाषाओ ं का उ लेख िकया जा रहा है । मानक कोष के अनसु ार- “पहले कहे गए अथर् को िफर से कहना अनवु ाद है ।” डॉ. कृ ण कुमार गो वामी ः“एक भाषा म यक्त भाव या िवचार को दसू री भाषा म समान और सहज प म यक्त करने का प्रयास अनवु ाद है ।” भोलानाथ ितवारीः िकसी भाषा म प्रा सामग्री को दसू री भाषा म भाषांतरण करना अनवु ाद है । देवद्रनाथ शमार्ः िवचार को एक भाषा से दसू री भाषा म पांतिरत करना अनवु ाद है । रीतारानी पानीवालः ोत भाषा म यक्त प्रतीक यव था को ल य-भाषा की सहज प्रतीक यव था म पांतिरत करने का कायर् अनवु ाद है । कै टफोडर् ने 1995 म कहा था िक -”translation is the replacement of textual material from language by equivalent textual material in an- other language”. (Page number 20, definition of translation/October 2017/Translation Journal) बोच के अनसु ार-”Translation is the communication of the meaning of a source language text by means of an equivalent target language text”. (https:hi.m.wikipedia.org.in) ऊपर दी गई पिरभाषाओ ं के आधार पर यह कहा जा सकता है िक “भाषा व या मक प्रतीक का यवि थत प है । अनवु ाद इ हीं प का पनु ः थापन करता है ।”इसका अथर् यह होगा िक ोत भाषा के प्रतीक की थापना पर ल य भाषा के िनकटतम या उसके समतु य प्रतीक का प्रयोग िकया जाना अनवु ाद है । यह प्रतीक सहज भी होना चािहए । िवषय की प्रासंिगकता बनी रहनी भी आव यक होती है । यह अनुवाद के िसद्धांत 73 कहना उिचत होगा िक “िकसी भी सामग्री को एक थान िबंदु से दसू रे थान िबंदु पर साथर्क प से ले जाने की प्रिक्रया को अनवु ाद कहा जाता है ।” इस प्रकार कहा जा सकता है िक एक भाषा म यक्त िवचार को यथासंभव समान और अिभ यिक्त द्वारा दसू री भाषा म प्र ततु करने का प्रयास अनवु ाद है । अतं म इ ह तीन िबंदओु ं के अतं गर्त पिरभािषत िकया जा सकता है- *अनवु ाद का मल ू उ े य होता है ोत भाषा की सामग्री को ल य भाषा म यथासंभव अपने मल ू प म रखना । *इसकी अिधक से अिधक िनकटतम अिभ यिक्त की खोज ल य भाषा म होनी चािहए । *इस अिभ यिक्त की खोज ल य भाषा म सहज होनी चािहए । वह उसके सहज प्रवाह या प्रयोग के अनक ु ू ल होनी चािहए । वह ोत भाषा की छाया से यक्त ु न हो । यह बात सही कही गई है िक अनवु ाद एक क टम हाउस है िजसके मा यम से ोत भाषा के प्रयोग का िवदेशी माल ल य भाषा म अ य ोत की अपेक्षा अिधक हो जाता है । ऐसा तभी होता है जब अनवु ादक सतकर् न रहे । अनुवाद का मह व अनवु ाद मानव जीवन की अ यिधक आव यक प्रिक्रया है । जीवन के प्र येक क्षेत्र म इसकी आव यकता पड़ती है । इसी कारण अनवु ाद का मह व भी िदन-प्रितिदन बढ़ता जा रहा है । आज ती गित से ससं ार के कायर् बढ़ते चले जा रहे ह । ससं ार बड़ी ही तेज गित से प्रगित करता जा रहा है । यह प्रगित प्र येक देश के आपस म आदान- प्रदान की प्रिक्रया के िबना सभं व नहीं हो सकती । यह आदान-प्रदान अनवु ाद के िबना संभव नहीं । अतः यंू कहा जा सकता है िक वतर्मान समय को अनवु ाद की िनतांत आव यकता है । संसार म यापार, वािण य, िशक्षा, पयर्टन, सं कृ ित, कला, सािह य, अथर्, राजनीित आिद सभी क्षेत्र पर पर आपस म अपनी भागीदारी बढ़ाते चले जा रहे ह । यह भागीदारी तभी संभव और सफल होगी जब हम आपस म एक-दसू रे के िवचार को अ छी तरह से समझ । यह समझना अनवु ाद से ही संभव हो सकता है क्य िक संसार के लोग अनेक भाषाओ ं का प्रयोग करते ह । सभी को सभी भाषाओ ं का ज्ञान होना तो सभं व नहीं । ऐसी ि थित म अनवु ाद की भिू मका और मह व और भी बढ़ 74................................ जाता है । अनवु ाद का मह व हम िन न िबंदओ ु ं के मा यम से समझ सकते ह- *भारत और अ य िवदेशी सािह य का ज्ञान *दसू रे देश म हो रहे िविभ न काय का बोध *काननू ी क्षेत्र म िविभ न जानकािरयां *वािण य, यापार जैसे िविभ न क्षेत्र की सटीक जानकारी *संसार की सभी िवशेष बात का ज्ञान भारत के िविभ न कायार्लय के िवचार के आदान-प्रदान की सचू ना *यात्रा और पयर्टन के क्षेत्र म अनवु ाद की मह वपणू र् आव यकता *संसार के िविभ न भाषाओ ं की महान कृ ितय के प्रचार-प्रसार म सहायक *ससं ार के िविभ न रा ट्रीय और अतं रार् ट्रीय सभाओ ं का यौरा प्रा करना *सभी प्रकार की पत्रकािरता के क्षेत्र म तो जैसे अनवु ाद आ मा की भिू मका िनभाता है *िविभ न देश के अतं गर्त सामािजक, आिथर्क, सां कृ ितक, सािहि यक, राजनीितक आिद सभी क्षेत्र म अनवु ाद अहम भिू मका िनभाता है । अतः अनवु ाद के कारण िकसी भी सािह य का प्रचार-प्रसार का क्षेत्र बढ़ जाता है । इसका सबसे अ छा आधिु नक उदाहरण ‘गोदान’ उप यास है । इसे पढ़ने के िलए िविभ न भाषाओ ं म अनवु ाद िकया गया । इसी प्रकार वेद, परु ाण, उपिनषद आिद का भी भारतीय और िवदेशी भाषाओ ं म अनवु ाद िकया गया है । अनवु ाद म िविभ न भाषा भािषय को एक साथ लाने की शिक्त होती है । यह भावना मक एकता की थापना करवाने का एक शिक्तशाली साधन है । दसू रे शहर या देश जाने पर यिद हम हमारी भाषा प्रयोग करता हुआ कोई िमल जाए तो िकतनी प्रस नता होती है । इसी प्रकार मनु य एक दसू रे की भाषा सीखने म िच रखता है । यही िच अनवु ाद की बढ़ोतरी म सहायक होती है । वतर्मान समय म अनवु ाद ने बहुत बड़ी भिू मका िनभाई है । इसने भारतीय सं कृ ित और सं कार को सारे िव के सामने लाकर रख िदया है । कोई भी देश या अनुवाद के िसद्धांत 75 उसका सािह य जब तक समृिद्ध की वह िशखर प्रा नहीं कर सकता जब तक उसका प्रसार िविभ न देश और उसकी भाषाओ ं तक नहीं पहुचं ाया जाता । सन् 1965 म भारतीय सरकार के कायार्लय म भी िद्वभाषा भाषा योजना का प्रयोग हो रहा है । वैि क तर पर भी अनवु ाद की प्रिक्रया बढ़ती जा रही है । मनु य का जीवन बहुत छोटा है । अनवु ाद उस छोटे जीवन म सब कुछ पा जाने की इ छा को साकार करता है । आज के वैज्ञािनक यगु म अनवु ाद एक सशक्त साधन है जो सारे िव म एकजटु ता लाने का भरसक प्रय न कर रहा है । अनुवाद का व प अनवु ाद का अथर् है ोत भाषा (Source Language) की पाठ्यसामग्री को ल य भाषा (Target Language) म पांतिरत करना । यह पांतरण भाषा के मा यम से होता है और भाषा यहाँ पर मख्ु य भिू मका िनभाती है । इन दोन भाषाओ ं के बीच सेतु िनमार्ण कायर् अनवु ादक की सृजन प्रिक्रया मक आव यकताओ ं की उपज होती है । जब कोई यिक्त अ य भाषा को पढ़ नहीं पाता तब वह उसकी भाषा म उसे समझने का प्रयास करता है । इसी सम या का िनराकरण अनवु ाद के मा यम से होता है । अनवु ाद मख्ु यतः भाषा म यक्त अिभ यिक्तय के मा य से प हो पाती है । अतः दोन भाषाओ ं का संपणू र् ज्ञान प्रा करना अिनवायर् हो जाता है । यह एक भािषक प्रिक्रया है िजसम भाषाई सामग्री की जानकारी होना परम आव यक है । दोन भाषाओ ं म श द, प, वाक्य, भाषा वैज्ञािनक िव े षण से ही संभव है । इसी प्रिक्रया से उसके व प को िनधार्िरत िकया जाता है । इसी कारण अनेक िवद्वान ने अनेक पिरभाषाओ ं से इसे अपने-अपने ढंग से पिरभािषत िकया है । पांतरण की प्रिक्रया म मल ू भाषा के सू म अ ययन, मनन, िचतं न की गहराई को समझकर भावाथर् और श दाथर् के साथ दसू री भाषा म अिभ यक्त करना पड़ता है या उसे दसू री भाषा म पनु जर् म देना होता है । अनवु ाद का व प बड़ा ही यापक है । कभी-कभी मल ू अथर् के साथ मल ू शैली को पकड़ पाना किठन हो जाता है । ऐसी पिरि थित म समकक्ष अथर् व शैली का प्रयोग कर अनवु ाद कायर् संप न िकया जाता है । इसिलए इसे कला भी कहा जाता है । अनवु ाद पणू तर् ः भाषा पर आधािरत होती है और भाषा िकसी भी देश की सां कृ ितक पहचान होती है । िकसी दसू रे देश म रिचत सां कृ ितक, सािहि यक िवरासत 76................................ को अ य भाषा म ले जाने से दोन देश के सां कृ ितक संबंध सु ढ़ बनते ह और यह कायर् अनवु ाद कर रहा है । भाषा आपकी प्रकृ ित म बहते हुए नीर के समान है और इस बहते हुए नीर को एकड़ कर उसे प्रांजल बनाना गागर म सागर भरने के ससमान है । वतर्मान यगु म भाषाओ ं को जीिवत बनाये रखने के िलए देश म एक-दसू रे को संपकर् साधना आव यक है । इसे प्राणव करने के िलए और सािहि यक क्षेत्र म अनवु ाद अहम भिू मका िनभा रही है । दसू री ओर िव के अिधकांश देश बहुभािषक है और आपस म सामजं य थािपत करने के िलए अनवु ाद सेतु का कायर् कर रहा है । अतं ररा ट्रीय तर पर िविभ न रा ट्र के बीच राजनीितक, आिथर्क, वैज्ञािनक और प्रौद्योिगक सािहि यक एवं सां कृ ितक तर पर बढ़ते हुए आपसी सहयोग के कारण अनवु ाद कायर् की अिनवायर्ता और मह ा की नई चेतना िवकिसत हुई । इसे ही वै ीकरण क संज्ञा दी गई, इस वै ीकरण के यगु म संपणू र् िव एक पिरवार की तरह आपस म जड़ु ा हुआ है । पिरवार के सद य म जैसे आ मीयता के भाव होते ह ठीक वैसे ही िव के सपं णू र् देश म आ मीय-भाव उ प न करना भाषा का कायर् है । इस कारण वैि क ज्ञान से जड़ु ना, तकनीकी, प्रौद्योिगक णे ी म प्रयक्त ु भाषा से जड़ु ना अिनवायर् एवं आव यक हो जाता है । जब वे पर पर िमलते ह तो उनम संपकर् भाषा के प म अनवु ाद अपना मह व प्रदिशर्त करती है । अ य देश की नागिरकता को समझने के िलए अनवु ाद की उपादेयता को बढ़ाना आव यक है । अनवु ाद की आव यकता ने नये-नये शहर को ज म िदया िजससे दोन भाषाओ ं के सािह य समृद्ध हुए । वैचािरक पृ भिू म के िलए अनवु ाद परम आव यक अगं है । इसके द्वारा ही सभी देश की सचू नाओ ं और संप्रेषण का कायर् संभव हो सका है । इलेक्ट्रॉिनक मा यम म िहदं ी का अनवु ाद करते समय अनेक श द अलग-अलग ढंग से प्र ततु हुए ह उनका सही अथर् लोग तक पहुचँ ाने का कायर् अनवु ाद से सभं व है । सरकारी कायार्लय म िहदं ी के सार अग्रं ेजी दोन म कायर् होता है । इससे रोजगार की सभं ावना बढ़ी है । बहुरा ट्रीय यापािरक कंपिनय ने ग्राहक की भाषा म जो आदान- प्रदान होता है, उसे मह व िदया जाता है । भारत से ऐसे यापािरक संबंध बढ़ाने के िलए यहाँ की भाषा को मह व िमला, क्य िक अतं ररा ट्रीय वगर् हमसे यापार थािपत करने के इ छुक रहे । इसी इ छा ने एक ओर अ य भाषाओ ं के म य अनवु ाद को ज म िदया तो दसू री ओर हमारी राजभाषा समृद्ध हुई और इसका मह व भी बढ़ा । इस प्रकार अनुवाद के िसद्धांत 77 अनवु ाद आज रा ट्र्ीय एकता ही नहीं अतं ररा ट्रीय सामजं य थािपत कर वसदु वै कुटुंभकम् की भावना को पाियत कर रही है । िविभ न िवषय की कृ ितय के अनवु ाद से सािहि यक, सामािजक, सां कृ ितक, यापािरक आिद अनेक िवषय का ज्ञान प्रा कर उनसे सामजं य थािपत कर सके । अतः यह कहना उिचत होगा िक वै ीकरण के इस दौड़ म मानव िवकास के िलए अनवु ाद सहायक िसद्ध हो रहा है । यापारीकरण का मख्ु य ोत अनवु ाद है, और इसकी सफलता-असफलता भाषा पर िनभर्र होती है । भाषा का संबंध ग्राहक से है और ग्राहक का संबंध अनवु ाद से है । अतः वै ीकरण के इस दौड़ म यह एक अहम भिू मका िनभा रही है । इसके बहुमख ु ी िवकास के कारण यह और भी सशक्त प धारण कर यह वतर्मान यगु की मह वपणू र् आव यकता बन गई है । इस प्रकार अनवु ाद के व प को दो भाग म बांटा जा सकता है । 1. अनवु ाद का सीिमत व प 2. अनवु ाद का यापक व प 1. अनुवाद का सीिमत व प जैसा िक पहले कहा जा चक ु ा है िक अनवु ाद एक भाषा के साथर्क अथर् को दसू री भाषा म यक्त िकया जाना होता है । इनम अनवु ाद को दो भाषाओ ं के म य होने वाला भाषांतरण माना जाता है । सीिमत व प म दो पहलू होते ह-1. पाठ धमीर् आयाम, 2. प्रभाव धमीर् आयाम 1. पाठ धमीर् आयाम इसम ोत भाषा पाठ सामग्री के म य थ म रहता है । यह तकनीकी और सचू ना के क्षेत्र म लागू होता है । यही अनवु ाद गंभीर िवषय म अिधक लाभकारी होता है । 2. प्रभाव धमीर् पाठ यह अनवु ाद मल ू संरचना और उसकी बनावट की बजाय उसम िनिहत भाव या प्रभाव पर जोर देता है । यह प्रभाव ोत भाषा के पाठक पर पहले से ही प्रभाव डाल 78................................ चक ु ा होता है । यह अनवु ाद मख्ु य प से किवता के अनवु ाद के समय प्रयोग िकया जाता है । 2. अनुवाद का यापक व प इसम इसे दो िभ न प्रतीक यव थाओ ं के बीच होने वाला अथर् का अतं रण माना जाता है । इसे प्रतीकांतरण भी कहते ह । इ ह तीन भाग म बांटा गया है - 1. अतं ः भािषक अनवु ाद 2. अतं र भािषक अनवु ाद 3. अतं र प्रतीका मक अनवु ाद 1. अतं ः भािषक का अथर् होता है एक ही भाषा के अतं गर्त अनवु ाद करना । इसका अथर् होता है िक एक ही भाषा के म य िविभ न प्रतीको के म य अनवु ाद िकया जाता है । िकसी एक भाषा के पद्य का अनवु ाद गद्य म करना होता है । 2. अतं र-भािषक अनवु ाद म अनवु ादक को कृ ित की संरचना, प्रकृ ित, पिरि थित, िव ास मा यता, िवचारधारा आिद की जानकारी प्रा करना आव यक होता है । ऐसा होने पर ही वह यायसंगत अनवु ाद कर सकता है । 3. अतं र प्रतीका मक अनवु ाद म िकसी भाषा की प्रतीक यव था को अ य भाषा की प्रतीक योजना म ढालना पड़ता है । अनवु ाद का इितहास भारत म प्राचीन समय से चला आ रहा है । अनवु ाद िवशेष प से सं कृ त म होते थे । भारत ने प्राचीन समय से ही आदान-प्रदान की िक्रया को मह व िदया है । यही कारण है िक भारत की सािह य और सं कृ ित इतनी समृद्ध है । भारतीय इितहास म यह देखा गया है िक िवज्ञान, भौितक, वा त,ु योितष, तकनीक आिद िविभ न क्षेत्र म अनवु ाद का कायर् हुआ है । सं कृ त अनवु ाद के प प्राकृ त भाषा म अिधक पाए गए ह । कई प्राचीन नाटक म सं कृ त और प्राकृ त श द का प्रयोग देखा गया है । “अनवु ाद” को सं कृ त म ‘छाया’ के नाम से जाना जाता है । 15 वी शता दी म अनेक िवषय के सं कृ त ग्रंथ के िहदं ी आिद भाषाओ ं म भाषांतरण िमलते ह । िजसे ‘भाषा टीका’ कहा जाता था । इस प्रकार ‘टीका’ का अथर् हुआ अनवु ाद । आगे चलकर फारसी के श द ‘तजर्मु ा’ का भी अनवु ाद के िलए प्रयोग होने अनुवाद के िसद्धांत 79 लगा । भारतदु हिर द्रं ने अनिु दत रचना ‘र नावली’ की भिू मका म इस श द का प्रयोग िकया था । सन 1950 के आसपास अनवु ाद श द का प्रचलन प्रारंभ हो गया । वैसे देखा गया है िक गजु राती, मराठी, असिमया, ओिडया, पंजाबी, तेलगु ू आिद भाषाओ ं म भी अनवु ाद श द का प्रयोग िकया जाने लगा । इस तरह परंपरागत प से कालक्रम के साथ छाया, टीका, भाषानवु ाद, तजर्मु ा श द अपने यहाँ चल रतहे थे । अनुवाद के प्रकार अनवु ाद एक बहुत बड़ी प्रिक्रया है । इसे अ छी तरह समझने के िलए इसका वगीर्करण करना आव यक हो जाता है । िजस प्रकार िकसी भी िव तृत िवषय का अ ययन िबना िवभाजन के करना किठन हो जाता है । उसी प्रकार अनवु ाद को भी िवद्वान ने कई भाग म बांटने का प्रयास िकया है । यहां पर हम अनवु ाद के मह वपणू र् प्रकार को समझने का प्रयास करगे । 1. का यानुवाद िकसी किवता का अनवु ाद करना का यानवु ाद कहलाता है । यह िकसी एक पद्य भाग का भी हो सकता है । दसू रे श द म हम यह कह सकते ह िक का यानवु ाद को पद्यानवु ाद कहा जाता है । का य का अनवु ाद करना बहुत ही किठन कायर् है । किवता को िकसी और शैली म बदल कर िलखना सरल नहीं है । 2. नाटकानुवाद का यानवु ाद के समान ही नाटकानवु ाद म कई किठनाइयां आती ह । सािह य की सभी िवधाओ ं जैसे किवता, कहानी, उप यास, एकांकी आिद का नाटक के प म अनवु ाद करना आसान कायर् नहीं है । इसी प्रकार से नाटक को दसू री िवधाओ ं म पांतरण करके िलखना भी किठन है । इस अनवु ाद म िवशेष प से रंगमचं के कारण िवशेष परे शानी होती है । 3. श दानुवाद श द के आधार पर अनवु ाद करना ही श दानवु ाद कहलाता है । यह अनवु ाद 80................................ प्राचीन काल म िकया जाता था । यह अनवु ाद त्रिु टपणू र् हो सकता है परंतु यह तकनीक और पािरभािषक श दावली म काफी कायर्रत िसद्ध होता है । उदाहरण के िलए िवज्ञान, रक्षा, रसायन, बक, िविध आिद । 4. भावानुवाद ोत सामग्री म ि थत श द पद वाक्य अनु छे द आिद के परे उस सामग्री म यक्त भाव को समझकर अनवु ाद करना भावानवु ाद कहलाता है । इस अनवु ाद म सृजना मकता की प्रितभा का प्रभाव िदखाई देता है । इसम के वल दो भाषाओ ं की जानकारी नहीं बि क मल ू सामग्री और ल य भाषा म अिभ यिक्त की क्षमता का मह व बढ़ जाता है । 5. छायानुवाद इसे समझने के िलए पहले इसके अथर् को समझ लेना ज री है । “छाया” का अथर् है धधंु ला । इसे हम फीका या अपारदशीर् भी कह सकते ह । अतः “छायानवु ाद” म के वल मल ू कृ ित के भाव को या श द के मह व को अ छी तरह से समझने का प्रयास िकया जाता है । इस प्रकार के अनवु ाद मल ू के िनकट नहीं होते । 6. याख्यानुवाद अनवु ाद के िविभ न प्रकार म यह अनवु ाद सवर् े कहा जा सकता है । याख्या श द से ही इस बात की गभं ीरता का पता चल जाता है । याख्या का अथर् है िदए गए िवषय को सफाई के साथ वाक्य-दर-वाक्य को समझाना । मल ू सामग्री का संपणू र् िव े षण करना और उदाहरण देते हुए समझाना । 7. पांतरण पांतरण का अथर् है मल ू कृ ित के पिरवेश, वातावरण, िविभ न पिरि थितय , व प आिद को समकालीन समय अथवा आव यकतानसु ार बदल देना । यिद मल ू सामग्री का पिरवेश वतर्मान समय से मेल नहीं खाता है तो पांतरण करना आव यक हो जाता है । अनुवाद के िसद्धांत 81 8. आशु अनुवाद इसे अग्रं ेजी म “shorthand” कहते ह । यह अनवु ाद गंभीर काय के िलए प्रयोग म लाया जाता है । रा ट्र , राजनेताओ,ं वैज्ञािनक , याख्याकार , अथर्शाि य , िखलािड़य आिद के मह वपणू र् भाषण को त काल प्रसार करने के िलए इस प्रकार के अनवु ाद िवशेष लाभकारी िसद्ध होते ह । 9. आदशर् अनुवाद आदशर् अनवु ाद भी कुछ-कुछ याख्यानवु ाद के समान होता है । यह मल ू सामग्री के िनकट होता है । यहां पर अनवु ाद अपने मन से मल ू सामग्री म न कुछ जोड़ने का प्रयास करता है । 10. यांित्रक अनुवाद आज के यगु म यांित्रक अनवु ाद की मांग बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है । तकनीकी, िवज्ञान, औद्योिगकी आिद क्षेत्र म यह कायर् तेजी पकड़ता जा रहा है । यांित्रक अनवु ाद सािह य के क्षेत्र म उतना उपयोगी नहीं होता । इस अनवु ाद म मनु य की भावनाएं प्रमखु नहीं होती ह । इस तरह समझा जा सकता है अनवु ाद के कौनसे प्रकार िकन-िकन क्षेत्र म काम आते ह । अनवु ाद का क्षेत्र यापक है । अनवु ाद सभी भाषाओ ं के म य एक सेतु का कायर् करता है । अनवु ाद के कारण ही संसार के सारे देश एक दसू रे के िनकट आते जा रहे ह । इसी के कारण िव म आदान-प्रदान की प्रिक्रया मजबतू होती जा रही है । अनुवादक के गुण वतर्मान समय म अनवु ाद की सीमाएं बहुत िव तृत हो गई ह । अनवु ाद का कायर् यापक हो गया है । यह िकसी एक सं था या देश से संबंिधत नहीं होता बि क सारे िव को आपस म बांधकर रखने का एक शिक्तशाली साधन है । एक अनवु ादक तभी सफल हो सकता है जब वह चहुमख ु ी प्रितभा सपं न हो । उसम एक आलोचक, यायाधीश, िव े षक, दरू ि गामी, सवर्ज्ञाता आिद सभी प्रकार की क्षमता होनी 82................................ चािहए । अतः अनवु ादक के गणु को हम िन न िबंदओ ु ं के अतं गर्त जान सकते ह,- 1. मूलिन ता का िनवार्ह एक अनवु ादक के िलए सबसे अिनवायर् है िक वह अनवु ाद सामग्री की मल ू िन ता को बनाए रखे । उसके अथर्, भाव और उ े य से तिनक भी िवचिलत न हो । ऐसा करने पर ही वह सफल अनवु ादक की भिू मका िनभा सकता है । कभी-कभी छोटे से छोटे मलू श द की अनदेखी अथर् का अनथर् कर डालती है । जैसे गोदान उप यास म िसंदरू श द का प्रयोग हुआ है । चिँू क यह श द िकसी प्रांत िवशेष और बोली का मलू श द है अतः इसकी मल ू िन ता के साथ छे ड़छाड़ नहीं करना चािहए । कई बार देखा गया है िक कुछ अनवु ादक इसी श द के िलए अग्रं ेजी म रे ड िच ली पाउडर श द का प्रयोग करते हुए पाए गए ह । इस तरह के प्रयोग अथर् का अनथर् कर सकते ह । 2. ोत भाषा एवं ल य भाषा म िनपुणता ोत भाषा का अथर् ऐसी भाषा से है िजसका हम अनवु ाद करना है । ल य भाषा का अथर् ऐसी भाषा है िजसम हम अनवु ाद करना है । यिद आप िहदं ी से तेलगु ु म अनवु ाद करते ह तो ऐसे सदं भर् म िहदं ी ोत भाषा और तेलगु ु ल यभाषा कहलाएगी । इसिलए िकसी भी अनवु ादक को चािहए िक उसे ोतभाषा और ल यभषा का समान और पिरपक्व ज्ञान हो । यिद वह िकसी भी एक भाषा म कमजोर पाया जाता है तो अनिू दत सामग्री प्रभािवत होती है । 3. बोधग यता एवं सप्रं ेषणीयता एक अनवु ादक म बोधग यता एवं संप्रेषणीयता का गणु उ च कोिट का होना चािहए । यहाँ बोधग यता का अथर् अनिू दत सामग्री को समझाने का तर । जबिक सप्रं ेषणीयता का अथर् है अनिू दत सामग्री का सरल व सगु म ढंग से आदान-प्रदान करना । उदाहरण के िलए वा मीिक रामायण ग्रथं का कई भाषाओ ं म अनवु ाद हुआ िकंतु सभी अनवु ाद बोधग यता एवं सप्रं ेषणीयत के तर पर एक समान नहीं था । कोई कम तो कोई अिधक था । बोधग यता एवं संप्रेषणीयता का पैमाना उसकी सरलता, सहजता तथा सगु मता से होती है । अनुवाद के िसद्धांत 83 4. िवषय का िविश ज्ञान अनवु ाद करने के िलए मात्र ोतभाषा और ल यभाषा का ज्ञान होना पयार् नहीं होता । उदाहरण के िलए यिद कोई अनवु ादक अथर्शा की श दावली पर परू ी पकड़ रखता है तो उसका अथर्शा ी अनवु ाद िकसी अ य िवषय की अपेक्षा उ च कोिट होगा । यही कारण है िक अलग-अलग िवषय के िलए िभ न-िभ न अनवु ादक की आव यकता पड़ती है । खेल िवशेषज्ञ अनवु ादक से िवज्ञान िवषयक अनवु ाद करवायगे तो उसका अनवु ाद तरहीन ही होगा । इसका कारण अनवु ादक के पास िवज्ञान िवषयक श दावली का िविश ज्ञान न होना है । 5. िविभ न िवषय का ज्ञान अनवु ादक म िविभ न िवषय का सामा य ज्ञान अिनवायर् प से होना चािहए । उदाहरण के िलए यिद कोई िहदं ी भाषी अनवु ादक िकसी अ य भाषा की खेल संबंधी कहानी का अनवु ाद कर रहा है तो उसे खेल से संबंिधत श दावली का औसत ज्ञान होना चािहए । अ यथा वह अनवु ाद करते समय भारी चक ू कर सकता है । जैसे अग्रं ेजी म िक्रके ट श दावली के अतं गर्त लेग िबफोर द िवके ट कहा जाता है तो उसका िहदं ी अनवु ाद िवके ट के सामने पैर नहीं करना चािहए । वहाँ उसे पगबाधा श द का इ तेमाल करना चािहए । इसके िलए अनवु ादक से खेल सबं धी िवषय की औसत जानकारी की अपेक्षा की जाती है । 6. िवषय के अनु प भाषा िवधान मान लीिजए महा मा गांधी के बारे म कोई जानकारी गजु राती से िहदं ी म अनवु ाद कर रहे ह तो वहाँ संयत भाषा का प्रयोग करना चािहए । चिंू क हम जानते ह िक महा मा गांधी अ यंत शांितिप्रय यिक्त व के थे, इसीिलए उनके बारे म उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चािहए । जबिक सभु ाष चद्रं बोस या भगत िसंह संबंधी िवषय के बारे म अनवु ाद कर रहे ह तो उनके यिक्त व के अनु प ओज वी भाषा का उपयोग करना चािहए । इसीिलए अनवु ादक िवषय के अनु प भाषा िवधान आना चािहए । 84................................ 7. अिभ यिक्त पर पूणर् िनयंत्रण अनवु ादक को चािहए िक वह अिभ यिक्त पर पणू र् िनयंत्रण रखे । वह चाहे िजतना बड़ा िवद्वान हो िकंतु अपनी िवद्व ा का प्रयोग अनवु ाद के समय िदखावे के प म नहीं करना चािहए । ऐसा करने से उसे बचना चािहए । अनवु ाद की सीमा होती है । इसम अपनी इ छानसु ार कुछ भी कहने की छूट नहीं होती । ोतभाषा म जो पछू ा जाता है उसे ही ल य भाषा म अिभ यक्त करना पड़ता है । ऐसी ि थित म अनवु ादक को चािहए िक वह अपनी अिभ यिक्त पर पणू र् िनयंतत्रण रखे । कभी-कभी िकसी नेता के आक्रामक भाषण का अनवु ाद करना पड़ता है, ऐसी ि थित म अनवु ादक को चािहए िक वह वयं की अिभ यिक्त पर िनयंत्रण बरते और नेता के भाषण का ही अनवु ाद करे । उसम वह अपनी ओर कुछ भी जोड़ने से बचना चािहए । यिद वह ऐसा करने म िवफल होता है तो उसकी अिभ यिक्त अिनयंत्रित होने की परू ी संभावना बनी रहती है । 8. जीवन का यापक और गहरा अनुभव कोई भी अनवु ादक रात रात सफल अनवु ादक नहीं बन सकता । अनवु ाद एक कला है । यह जीवन भर के पिर म के बाद प्रा होता है । िकसी भी अनवु ादक के प्रारंिभक अनवु ाद उसके प्रौढ़ जीवन के अनवु ाद से िभ न होते ह । इसका प कारण है जीवन का यापक और गहरा अनभु व । इसीिलए कहा जाता है िक जो अनवु ादक जीवन का यापक और गहरा अनभु व रखता है उसका अनवु ाद कायर् अिधक स मान पाता है । 9. िन ा एवं अ यास की आव यकता करत-करत अ यास के जड़मित होत सजु ान इसका अथर् है िक बार-बार के अ यास से मख ू र् भी िवद्वान बन सकता है । ठीक उसी तरह बार-बार के अनवु ाद कायर् के अ यास और उसके प्रित िन ा से आप कमतर या औसतन अनवु ादक से उ च कोिट के अनवु ादक बन सकते ह । इसीिलए िकसी भी अनवु ादक को चािहए िक वह िनरंतर अ यास कर तथा उसके प्रित स ची िन ा का प्रदशर्न करे । अनुवाद के िसद्धांत 85 10. शुद्ध तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग अनवु ादक को चािहए िक वह अनवु ाद करते समय शद्ध ु तथा प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग करे । मान लीिजए िवज्ञान िवषय म पानी श द का प्रयोग करना है तो वहाँ पानी कहने के बजाए जल कहना चािहए । देखा गया है िक पानी श द का उपयोग जनसामा य के प्रयोग को दशार्ता है । अतः िवज्ञान म जल श द का प्रयोग शद्ध ु कहलाएगा । प्रवाहमयी का अथर् है िक िबना िकसी गितरोध के सरल, सगु म और सबु ोध श द का प्रयोग करना । ऐसा करने से अनिू दत सामग्री का पठन-पाठन प्रवाहमयी बनता है । अनवु ादक को एक मागर्दशर्क की भी िज मेदारी उठानी पड़ती है । इस प्रकार एक अनवु ादक को कई कसौिटय से गजु रना होता है । उपयर्क्त ु सारे गणु होने पर ही एक अ छा और स चा अनवु ादक उ प न होता है । यावहािरक अनुवाद और अ यास के कुछ नमनू े िदए गए ह- एक अ छा अनवु ादक बनने के िलए अ यास करना अित आव यक होता है । जब तक अनवु ाद की प्रिक्रया को यवहार म लाया नहीं जाता तब तक यह कायर् संभव नहीं । इसीिलए हम ऐसे िहदं ी और अग्रं ेजी अनु छे द दे रहे ह िजसका अनवु ाद करने का प्रयास बहुत मह वपणू र् हो जाएगा । 1. िकसी भी उ े य की प्राि के िलए िकए गए प्रय न का नाम ही पिर म है । पिर म वह गणु है िजससे मनु य सफलता की ऊँची चोटी तक पहुचँ सकता है । पिर म का दामन थाम कर ही वह अपना ल य प्रा कर सकता है । िबना पिर म और पु षाथर् के जीवन म सफलता एवं घोर िनराशा का मख ु देखना पड़ता है । पिर म दो प्रकार का होता है । एक शारीिरक पिर म और दसू रा मानिसक । समाज के उ थान के िलए दोन प्रकार के पिर म का मह व है । शारीिरक पिर म से उ पादन म सहायता िमलती है तो मानिसक पिर म से ज्ञान िवज्ञान तथा कला कौशल को आगे बढ़ाने म सहायता होती है । मानव जीवन म इसकी बहुत अिधक आव यकता है । यह वह शिक्त है जो दबु र्ल को सबल और राजा को रंक बना सकती है । पिर म के लगातार अ यास से मनु य िकसी भी क्षेत्र म सफलता प्रा कर सकता है । “ई र 86................................ उसकी सहायता करता है जो अपनी सहायता आप करते ह ।” 1** The name of the efforts made for achieving any objec- tive is diligence. The man who can reach the highest peak of success he can achieve his goal by his hard work. Without efforts he has to face great disappointment. He has see the face of failure. There are two kinds of hard work. One is physical labour and the other is mental. Importance of both kinds of labour for the up- liftment of society. Mental exortion knowledge helps in advancing knowledge science and art skills. Production helps in physical work. It is very much needed in human life. It is the power that strengthens the weak and weakens the powerful. On the strength of continuous of hard work human beings can achieve success in any field through practice “God helps those who help themselves”. 2. छात्र म अनश ु ासनहीनता का भाव बढ़ता ही जा रहा है । हड़ताल, तोड़- फोड़, िहसं क उपद्रव, सावर्जिनक सपं ि का नाश, पढ़ाई का नाश, मू यवान समय की हािन जैसी बात छात्र और सामा य मनु य पर भी असर करने लगी है । छात्र िवद्या प्राि के ल य से दरू होते जा रहे ह । उ ह के वल प्रमाणपत्र जैसे पेपर के टुकड़े से ही मतलब रह गया है । समाज तथा रा ट्र की हािन अक्ष य अपराध है । आज के छात्र कल के नेता ह । छात्र समाज के िनमार्ता ह । रा ट्र का िनमार्ण तो अनश ु ासन म रहकर ही िकया जा सकता है । यौवनाव था म उमगं और उ साह का होना वभािवक है । इस अव था म नेतृ व का चाव होना भी सहज है । परंतु यवु ाओ ं को जोश म होश रखना भी आव यक है । इसके िलए भगत िसंह, चद्रं शेखर आज़ाद, सभु ाष चद्रं बोस, वामी िववेकानंद आिद को यान म रखना आव यक हो जाता है । िवद्याथीर् का प्रथम ल य यह है िक अ ययन करके एक अ छे भिव य का अनुवाद के िसद्धांत 87 िनमार्ण करना होना चािहए । यिक्त व का िवकास समाज और रा ट्र के प्रित कतर् य पालन से होता है । इसम माता-िपता और गु जन के अनभु व का स मान अ यिधक आव यक है । 3. 19 नवंबर 1835 को वाराणसी म झांसी ल मी बाई का ज म हुआ । इनके िपता का नाम मोरोपंत और माता का नाम भागीरथी बाई था । ये पिरवार ब्रा ण कुल का था । ल मी बाई का ज म का नाम मिणकिणर्का था । इसीिलए इ ह मनु बाई के नाम से भी पक ु ारा जाता था । नाना जी के पत्रु ध डूपतं और भाई राव साहब के साथ ल मी बाई की िशक्षा प्राि हुई । ये यद्धु िवद्या म भी कुशल हो गई । इनका िववाह महाराज गगं ाधर राव से हुआ । िववाह के बाद ही मनु बाई से इनका नाम ल मी बाई पड़ा । ल मीबाई और गंगाधर का एक पत्रु था । परंतु बहुत ज दी इसकी मृ यु हो गई । इसके बाद ल मीबाई ने एक पत्रु को गोद िलया । परंतु अग्रं ेज ने इस बात को नहीं माना । जैसे ही गंगाधर राव की मृ यु हुई अग्रं ेज ने ल मीबाई से झांसी छीन ली । परंतु रानी ल मीबाई ने कभी अग्रं ेज के सामने हार नहीं मानी और 1857 के वतंत्रता संग्राम म वीरता के साथ लड़ी । इस प्रकार उ ह ने अपना रा य वापस अग्रं ेज से छीन िलया । परंतु सर मू रोज की िवशाल सेना ने झांसी पर पनु ः अिधकार कर िलया । इसके बाद झांसी की रानी ने साहस, फूतीर् और चालाकी िदखाते हुए ग्वािलयर के िकले पर अपना अिधकार कर िलया । इस पर अग्रं ेज ने िफर उन पर हमला िकया परंतु रानी ने कभी हार नहीं मानी और लड़ते-लड़ते अमर हो गई । 2. In modern society people are facing serious problems that have impacted negatively on their lives. These problems are social, economic and political problems. This problems have led to the de- teriorating development in many countries of the world. The situa- tion is severe in 3rd world countries. The problems have caused immense suffering to the people living in countries and huge amounts of money is being used in ad- dressing the problems. The outcome has been vicious circle of pov- erty among the several countries. The societal problems encoun- tered today may be either natural or artificial. The most serious ones 88................................ include poverty disease [Corona, cancer, HIV Aids diabetes malar- ial etc.] child abuse and molestation, drug abuse, corruption and racial discrimination, inequality, economic problems such as unem- ployment, rapid population growth and infant mortality among oth- ers. 3. Leo Tolstoy was a Russian author whose classic novels include “War and Peace” and “Anna Karenina”. He was born on August 28 1828 at Yasnya Polyona, in Tula Province. His parents died when he was a child and he was brought up by relatives. In 1844 Tolstoy started his studies of law and Oriental language at Kazan university. But he never took a degree. Dissatisfied with the standard of education he returned in the middle of his studies back to Yasnya Polyona and then spent much of his time in Moscow and Saint Petersburg. Tolstoy was treated for venereal disease in 1847 and for most of the rest of his life was troubled by his tendency to the debauch himself on a grand scale after contacting heavy gam- bling debts. Tolstoy complain his elder brother to the Caucasus in 1851. In 1850’s he begin his literacy career, publishing the auto or biographical tribgy Childhood. Boyhood and Youth. In 1857 Tolstoy visited France, Switzerland and Germany to learn more about soci- ety and how to reform it. He believed that the secret of changing the world lay in education. बोध प्र लघु उ रीय प्र 1. अनवु ाद श द का अथर् बताते हुए इसकी पिरभाषा िलिखए । 2. अनवु ाद के व प को समझाइए । अनुवाद के िसद्धांत 89 3. आदशर् अनवु ाद िकसे कहते ह? 4. अनवु ादक के प्रमख ु उ रदािय व पर संक्षेप म िलिखए । 5. यावहािरक अनवु ाद िकसे कहते ह? दीघर् उ रीय प्र 1. अनवु ाद की यु पि के बारे म िव तार से िलिखए । 2. अनवु ाद के मह व को प प से समझाइए । 3. अनवु ाद के िविभ न प्रकार के बारे म समझाइए । 4. सफल अनवु ादक के गणु की चचार् कीिजए । 5. िदए गए गद्यांश का िहदं ी, अग्रं ेजी अथवा तेलगु ु म अनवु ाद कीिजए ।