राज्य और उसके तत्व PDF
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Uploaded by GlisteningMossAgate1437
Kishori Sinha Mahila College, Aurangabad (Bihar)
2020
Dr. Akhilesh Kumar Singh
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Summary
इस दस्तावेज़ में राज्य की अवधारणा, परिभाषा और तत्वों पर विस्तार से चर्चा की गई है। लेखक ने विभिन्न विचारकों के विचारों और मध्ययुगीन परिभाषाओं का विश्लेषण किया है।
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राज्य और उसके तत्व STATE : DEFINITION AND ELEMENTS DATE: 17th April, 2020 DR. AKHILESH KUMAR SINGH Dept. of Pol Sc. K.S.M. COLLEGE, AURANGABAD (BIHAR) राज्य का अर्थ एवं पररभाषा (meaning and definition) प्राचीन...
राज्य और उसके तत्व STATE : DEFINITION AND ELEMENTS DATE: 17th April, 2020 DR. AKHILESH KUMAR SINGH Dept. of Pol Sc. K.S.M. COLLEGE, AURANGABAD (BIHAR) राज्य का अर्थ एवं पररभाषा (meaning and definition) प्राचीन ववचारक ं के अनुसार– प्राचीन ववचारक राज्य के 2 लक्षण मानते हैं। प्रर्म राज्य व्यक्तिय ं का एक समुदाय है और वितीय राज्य व्यक्तिय ं के शुभ और लाभ के वलए वनवमथत एक श्रेष्ठ समुदाय है। इसी ववचारधारा के आधार पर अरस्तु और इसर ने राज्य की पररभाषा इस प्रकार की है : अरस्तु के अनुसार “राज्य पररवार ं और ग्राम ं का एक समुदाय है इसका उद्दे श्य पूणथ और आत्मवनभथर जीवन की प्राक्ति है।” इसी प्रकार से शुरू के शब् ं में ” राज्य उस समुदाय क कहते हैं वजसमें यह भावना ववद्यमान ह वक सब मनुष्य क उस समुदाय के लाभ ं क परस्पर सार् वमलकर उपभ ग करना है।” मध्ययुगीन पररभाषाएं – प्राचीन ववचारक िारा राज्य क एक समुदाय कहा गया है लेवकन आधुवनक ववचारक के अनुसार केवल व्यक्तिय ं से ही राज्य का वनमाथण नहीं ह जाता है , राज्य का रूप प्राि करने के वलए व्यक्ति एक वनवित क्षेत्र पर भली प्रकार बसे हुए ह ने चावहए और इनमें शांवत तर्ा व्यवस्र्ा बनाए रखने के वलए क ई राजनीवतक सत्ता ह नी चावहए। वुडर ववल्सन – “वकसी वनवित प्रदे श के भीतर कानून के वलए संगवित जनता क राज्य कहते हैं।” ब्लंशली – “वकसी वनवित भू प्रदे श में राजनीवतक दृवि से संगवित व्यक्तिय ं क राज्य कहा जाता है।” र् डे समय बाद यह समझा गया वक इस प्रकार के संगिन क भी उस समय तक राज्य नहीं कहा जा सकता है जब तक इस संगिन के पास संप्रभुता या सवोच्च शक्ति ना ह । इस प्रकार राज्य के आवश्यक तत् ं में संप्रभुता क सक्तिवलत वकया गया और इस बात क दृवि में रखते हुए लास्की ने राज्य की पररभाषा करते हुए कहा है वक “राज्य एक ऐसा प्रादे वशक समाज है ज सरकार और प्रजा में ववभावजत है और ज अपने वनवित भौग वलक क्षेत्र में सभी समुदाय ं पर सवोच्च सत्ता रखता है।” वकंतु प्र फेसर लास्की िारा दी गई राज्य की पररभाषा क भी स्वीकार नहीं वकया जा सकता। इसका कारण यह है वक संप्रभुता के ज द पक्ष ह ते हैं – आं तररक पक्ष और ववपक्ष, उनमें लास्की के िारा संप्रभुता के केवल आं तररक पक्ष का ही वववेचन वकया गया है बाहरी पक्ष का नहीं। वस्तुतः अब तक राज्य की ज पररभाषाएं की गई हैं उनमें वफल्म म र और गवनथर की पररभाषाएं ही सबसे अवधक मान्य है। यह पररभाषाएं इस प्रकार हैं - वफल्म र के शब् ं में, “राज्य मनुष्य ं का वह समुदाय है ज एक वनवित भूभाग पर स्र्ाई रूप से बसा हुआ ह और ज एक सुव्यवक्तस्र्त सरकार िारा उस भूभाग की सीमा के अंतगथत व्यक्तिय ं तर्ा पदार्ों पर पूरा वनयंत्रण तर्ा प्रभुत् रखता ह और वजसे ववश्व के अन्य वकसी भी राज्य से संवध या युद्ध करने अर्वा अन्य वकसी प्रकार से अंतररािरीय संबंध स्र्ावपत करने का अवधकार प्राि ह ।” वफल्म र की इस पररभाषा में राज्य के सभी तत् ं जनसंख्या, वनवित भूभाग , सरकार और आं तररक तर्ा बाहरी संप्रभुता का उल्लेख ह गया है। इसी प्रकार गानथर के अनुसार, “राजनीवत ववज्ञान और सावथजवनक कानून की धारा के रूप में, राज्य संख्या में कम या अवधक व्यक्तिय ं का ऐसा संगिन है ज वकसी प्रदे श के वनवित भूभाग में स्र्ाई रूप से रहता ह , ज बाहरी वनयंत्रण से पूणथ स्वतंत्र या लगभग स्वतंत्र ह और वजसका एक ऐसा संगवित शासन ह वजस के आदे श का पालन नागररक ं का ववशाल समुदाय स्वभावव रूप से करता ह ।” गानथर वक इस पररभाषा में भी राज्य के चार ं तत् ं जनसंख्या भूवम शासन एवं संप्रभुता का उल्लेख ह ता है। राज्य के तत् (elements of state) इन तमाम पररभाषाओं के आधार पर राज्य के आवश्यक तत् ं का वणथन वनम्नवलक्तखत प्रकार से वकया जा सकता है- 1. जनसंख्या (population) – मानव के सामावजकता के गुण के आधार पर राज्य का जन्म हुआ और व्यक्तिय ं से वमलकर ही राज्य का वनमाथण ह ता है। अतः सभी वविान जनसंख्या क राज्य के आवश्यक तत् के रूप में स्वीकार करते हैं , लेवकन एक राज्य के अंतगथत वकतनी जनसंख्या ह नी चावहए इस संबंध में वविान ं के ववचार ं में पयाथि मतभेद हैं और अपनी कल्पना की आदशथ शासन व्यवस्र्ा तर्ा राज्य की शक्ति के संबंध में अपने ववचार ं के आधार पर वववभन्न वविान ं ने अलग-अलग ववचार व्यि वकए हैं। प्लेट , अरस्तु , रूस आवद वविान प्रत्यक्ष प्रजातंत्र शासन क श्रेष्ठ समझते र्े और क् ं वक प्रजातंत्र के इस रूप क र् डी जनसंख्या वाले राज्य में ही अपनाया जा सकता है, अतः प्लेट ने अपनी पुस्तक ररपक्तब्लक में आदशथ राज्य का वचत्रण करते हुए कहा है वक एक आदशथ राज्य में 5040 नागररक ह ने चावहए। इसी प्रकार अरस्तु के अनुसार राज्य की जनसंख्या लगभग 10,000 ह नी चावहए। 2. वनवित क्षेत्र या भूभाग (territory) – वडक्तिट और शीले, आवद कुछ वविान ं ने त वनवित क्षेत्र क राज्य के आवश्यक तत् के रूप में स्वीकार नहीं वकया है , वकंतु एक वनवित क्षेत्र के अभाव में व्यक्तिय ं िारा व्यवक्तस्र्त जीवन व्यतीत नहीं वकया जा सकता है , इसवलए वतथमान समय में सभी वविान वनवित क्षेत्र क राज्य के एक आवश्यक तत् के रूप में स्वीकार करते हैं। ब्लंसली के शब् ं में कहा गया है वक “जैसे राज्य का व्यक्तिक आधार जनता है , उसी प्रकार उसका भौवतक आधार प्रदे श है। जनता उस समय तक राज्य का रूप धारण नहीं कर सकती जब तक उसका क ई वनवित प्रदे श न ह ।” इस संबंध में यह स्मरणीय है वक राज्य के आवश्यक तत् के रूप में भूवम का अवभप्राय केवल क्षेत्र से ही नहीं है अवपतु इसके अंतगथत वे सभी प्राकृवतक साधन भी सक्तिवलत ह ते हैं ज वकसी दे श क स्र्ल , जल और वायु में प्राि ह अर्ाथत् वकसी राज्य में ववद्यमान नवदयां , सर वर झीलें ,खवनज पदार्थ राज्य से 12 मील तक का समुद्र और वायुमंडल सभी भूवम के अंतगथत आते हैं। 3. सरकार (government) – मानव समूह एक वनवित क्षेत्र में वजस उद्दे श्य की प्राक्ति के वलए संगवित ह ता है , वह उद्दे श्य उस समय तक पूणथ नहीं ह सकता , जब तक इन व्यक्तिय ं का जीवन कुछ वनयम ं िारा वनयवमत ना ह और सरकार ही वह संस्र्ा या साधन है ज उि उद्दे श्य ं क पूणथ कर सकती है। इसके अवतररि सरकार ही राज्य में बसे हुए जन समुदाय की इच्छा क कायथ रूप में पररववतथत कर सकती है। सरकार के अभाव में सभी ल ग अपने-अपने वहत ं की भाषा में अलग-अलग स्वर से ब लेंगे और क ई भी वनवित मत पर नहीं पहुंच सकेगा। इस प्रकार सरकार राज्य का अत्यंत महत्पूणथ तत् है। सरकार का क ई ऐसा वनवित रूप नहीं है ज सभी राज्य ं क मान्य ह । सरकार राज तंत्र आत्मक कुलीन तंत्र आत्मक या प्रजातंत्र आत्मक वकसी भी प्रकार की ह सकती है यद्यवप वतथमान समय में प्रजातंत्रात्मक सरकार दू सरे प्रकार की सरकार ं की अपेक्षा अवधक ल कवप्रय है। 4. संप्रभुता (sovereignity) – एक वनवित क्षेत्र में रहने वाले तर्ा सरकार से संपन्न ल ग भी उस समय तक राज्य का वनमाथण नहीं कर सकते जब तक वक इनके हार् में संप्रभुता न ह । उदाहरण , 15 अगस्त 1947 के पूवथ भारत की अपनी जनसंख्या , क्षेत्र और सरकार र्ी वकंतु भारत रािर प्रभुसत्ता संपन्न न ह ने के कारण राज्य नहीं र्ा। स्वतंत्रता प्राक्ति के बाद भारत क संप्रभुता प्राि हुई और तभी भारत एक स्वतंत्र राज्य हुआ। राज्य की संप्रभुता से तात्पयथ है वक राज्य आं तररक रुप से उत्तम ह अर्ाथत अपने क्षेत्र में क्तस्र्त सभी व्यक्तिय ं और समुदाय ं क आज्ञा प्रदान कर सके और वह बाहरी वनयंत्रण से मुि ह , अर्ाथत दू सरे राज्य ं के सार् अपनी इच्छा अनुसार संबंध स्र्ावपत कर सके , वकंतु यवद क ई राज्य स्वेच्छा से अपने ऊपर वकसी प्रकार का प्रवतबंध स्वीकार कर लेता है , त इससे राज्य की संप्रभुता समाि नहीं ह जाती है। उदाहरण के वलए, संयुि रािर संघ के सदस्यता से वववभन्न राज्य ं की संप्रभुता सीवमत नहीं हुई है।