MPPSC Mains: ग्रामीण भारत में गुटबाजी PDF
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Raksha Academy इंदौर
MPPSC
Amit Tiwari Sir
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This document is a past paper for the MPPSC Mains exam, focusing on factionalism in rural India. The paper explores the causes and consequences of these divisions.
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रक्षा अकादमी इंदौर MPPSC MAINS ग्रामीण भारत में गुटबाजी By : Amit Tiwari Sir ग्रामीण भारत में गुटबाजी रक्षा अकादमी इं दौर ग्रामीण भारत में गुटबाजी गुट या स...
रक्षा अकादमी इंदौर MPPSC MAINS ग्रामीण भारत में गुटबाजी By : Amit Tiwari Sir ग्रामीण भारत में गुटबाजी रक्षा अकादमी इं दौर ग्रामीण भारत में गुटबाजी गुट या समूह व्यक्तियों का पारस्पररक सहयोग से कायय करने का एक ऐसा तरीका है जिसमें लोगों के कायय से उस दल या समूह की रचना मालू म हो िाती है। ककसी दल की रचना एवं उसके कायय उस दल के सदस्यों पर ननर्यर है। एक दल दो या दो से अक्तिक सदस्यों से बनता है िो एक दूसरे के सहयोग से कायय करते हैं और दल का लक्ष्य उसके सदस्यों पर ननर्यर रहता है। आि का युग व्यक्तियों का युग न होकर समूह का युग। सामूरहक उद्देश्यों और लक्ष्यों को ले कर रहत समूह के रूप में समूह का ननमायण आि के िरटल समाि की आवश्यकता है। ककिंतु िब यही समूह अपने उद्देश्य की प्राप्ति के नलए उक्तचत और अनुक्तचत सािनों का ध्यान न रखकर ककसी संस्था, शासन या प्रशासन पर अनावश्यक दबाव डालने लगते हैं तो उनकी र्ूनमका समाि में नकारात्मक मूल्यों को प्रोत्साहन देने वाली हो िाती है। अत: िहां तक लक्ष्यों व आवश्यकताओ ं की पूकति के नलए उक्तचत हस्तक्षेप या दबाव का संबंि है, समूह के रूप में गुटों का सामाजिक संरचना पर प्रकतकूल प्रर्ाव नहीं पड़ता बल्कि यह सामाजिक संगठन को बल देते हैं। ककिंतु इनकी अनुक्तचत दबाव या संघर्य की स्थस्थकत अवस्था और कवघटन का कारण बनती है। ग्रामों में ककसी गुट कवशेर् की संगठनात्मक या संघर्ायत्मक र्ूनमका नननित करना अत्यंत करठन होता है । वह अन्य सदस्यों या समूहों के प्रकत समान रुख रख सकता है या आक्रामक ,यह बहुत कुछ कवनर्न्न स्थस्थकतयों और पररस्थस्थकतयों पर ननर्यर करता है। गुट की परिभाषाएं रेमंड फर्थ- गुट समाि के वे र्ाग अथवा समूह है िो एक दूसरे के कवरोिी होते हैं। संपूणय समाि के स्थान पर वह अपने रहतों को प्राथनमकता देते हैं। अपनी कायय कवक्ति में बहुिा वह झगड़ालू होते हैं। वेंकटरायाप्पा -गुट लोगों का एक छोटा समूह है। ककसी रािनीकतक व सामाजिक कारण से अपने को एक सूत्र में बांिता है। प्रत्येक गुट का एक नेता होता है िो अपने अनुयाक्तययों से वफादारी की अपेक्षा करता है। पोकॉक- गुट समग्र के संघर्यरत समूह होते हैं। संघर्य समग्र की आंतररक आवश्यकता नहीं रहती है बल्कि यह उसे कवर्ाजित करती है। गुट स्थाई समूह नहीं होते हैं तथा उनकी सदस्यता जिन पररस्थस्थकतयों में वे संगरठत होते हैं , से ननिायररत होती है। गुटों के प्रकाि स्थानीय गुट- कुटु ं बीय, पड़ोस ,गांव ,समुदाय, व्यापाररक ,क्षेत्रीय आदद। हित के अनुसार गुट- ननयमानुसार और अननयमानुसार ,नमत्रता का गुट,कृर्क समाि ,मरहला समाि ,युवक दल ,ड्रामा कंपनी ,सहकारी सनमकत स्कूल गुट आदद । संस्था के अनुसार गुट- a. पररवार, b.िमय के अनुसार, c. िाकत के अनुसार, d. आनथि क दल, e. जशक्षण संबंिी , f. सरकार के कायों के अनुसार। प्रततष्ठा के अनुसार गुट- िाकत, कुटु ं ब के इकतहास के अनुसार ,आनथि क स्थस्थकत या आय के अनुसार ,व्यक्तिगत अच्छाइयां , उम्र आदद के अनुसार। 1 By : Amit Tiwari Sir ग्रामीण भारत में गुटबाजी रक्षा अकादमी इं दौर ग्रामीण गुटबाजी के कािण औि परिणाम ग्रामीण गुटबािी के अनेक कारण हो सकते हैं। संक्षेप में ग्रामीण गुटबािी के कारण और उसके कारण घरटत होने वाले पररणामों को ननम्नानुसार स्पष्ट ककया िा सकता है - जातत - ग्रामीण गुटबािी का बहुत बड़ा कारण िाकत व्यवस्था में पररवतयन है। अब कवनर्न्न िाकतयां िातीय उच्चता और िाकतगत रहतों के संरक्षण के नाम पर गुटों में कवर्ाजित हो गई हैं । अपने-अपने रहतों को ले कर बनने वाले गुटों के पररणाम स्वरुप परस्पररक तनाव, वैमनस्य और िातीय संघर्य बढ़ता िा रहा है। इससे आनथि क कवकास तथा सामाजिक सद्भाव पर प्रकतकूल प्रर्ाव पड़ रहा है। धमथ - ग्रामों में कवनर्न्न िमायवलं कबयों के बीच के गुट तथा एक ही िमय, कवशेर् तौर पर रहिं दू िमय से संबंक्तित कवनर्न्न मत- मतांतरों में अंतर के कारण बनने वाले गुट, िानमि क और पूिा स्थलों के कारण बनने वाले गुट पाए िाते हैं। इनसे अनावश्यक कववाद ,परस्पररक मनमुटाव तथा सांप्रदाक्तयक तनाव और संघर्य बढ़ता है। राजनीततक दल - रािनीकतक दल वतयमान में ग्रामीण गुटबािी के सबसे बड़े कारण बनते िा रहे हैं। इसमें अंतदयलीय गुटों के साथ-साथ एक ही दल में संतुष्टों और असंतुष्टों के गुट , ककसी प्रर्ावशील स्थानीय, प्रांतीय और राष्ट्रीय नेता के नाम पर गुट बनते और कबगड़ते रहते हैं । ये रािनीकतक दल अपनी ओर से िाकत और िमय से संबंक्तित गुटबािी को प्रोत्सारहत करने का कायय करते रहते हैं इसका पररणाम यह ननकलता है की संपूणय गांव का वातावरण कवर्ाि हो िाता है। हर व्यक्ति ककसी न ककसी गुट का का सदस्य बन िाता है। वगथगत चेतना - ग्रामों में ककसान, दुकानदार, मिदूर अपने-अपने वगयगत रहतों को ले कर गुटों का ननमायण कर ले ते हैं। वतयमान समय में रािनीकत ने युवा ,मरहला संपन्न-कवपन्न ,छोटे -बड़े ककसानों के रूप में वगयगत चेतना पैदा कर लोगों की अपेक्षाएं और अक्तिक बढ़ा दी हैं। वे अपने वगयगत रहतों को ले कर अशांत और तनावग्रस्त रहते हुए संघर्य करते हैं। पंचायती राज्य और सिकाहरता - ग्रामों में कवकास के नलए पंचायती राि से संबंक्तित कवनर्न्न सहकारी सनमकतयां के पदाक्तिकाररयों के चुनाव और कायय प्रणाली के कारण गुटबािी को बढ़ावा नमला है। उपयुयि कववेचन से स्पष्ट है कक र्ारतीय ग्रामों में गुटबािी के अनेक कारण व आिार है। गुटबािी संगठनात्मक और कवघटनात्मक दोनों प्रकार की र्ूनमका का ननवायह करती है । िहां यह समूह के रहतों और लक्ष्यों की प्राप्ति के नलए सकारात्मक पहल कर सहयोग और संगठन के नलए उपयोगी और आवश्यक है वहीं गुटबािी से ग्रामीण कवकास की प्रकक्रया में बािा पहुंचती है और इसकी र्ूनमका अकायायत्मक और कवघटनात्मक हो िाती है। वतयमान समय में पंचायती राि और सहकारी सनमकतयां के माध्यम से ग्रामीण पुनननि मायण और कवकास को प्रोत्सारहत करने में गुटबािी की र्ूनमका बहुत सहयोगात्मक नहीं रही है। 2 By : Amit Tiwari Sir ग्रामीण भारत में गुटबाजी रक्षा अकादमी इं दौर 3 By : Amit Tiwari Sir