औपनिवेशिक शासन और देहात
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Questions and Answers

औपनिवेशिक काल में जमींदारों की नीलामी बार-बार क्यों होती थी?

  • किसान जमींदारों से जमीन खरीदना नहीं चाहते थे।
  • ब्रिटिश सरकार जमींदारों को परेशान करना चाहती थी।
  • जमींदार जानबूझकर नीलामी करवाते थे ताकि वे अपनी जमीन बेच सकें।
  • जमींदार के एजेंटों को धन का भुगतान समय पर नहीं किया जाता था, जिसके कारण नीलामी बार-बार होती थी। (correct)

1793 से 1801 के बीच बंगाल की बर्धमान जमींदारी की स्थिति के बारे में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सबसे सटीक है?

  • यह एक बड़ी जमींदारी थी लेकिन लगभग 50% लेनदेन फर्जी थे।
  • यह एक बड़ी जमींदारी थी जिसमें लगभग 15% लेनदेन फर्जी थे। (correct)
  • यह एक छोटी जमींदारी थी जिसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।
  • यह सबसे अमीर जमींदारी थी और इसके सभी लेनदेन वैध थे।

19वीं सदी के शुरुआत में जमींदारों ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए क्या किया?

  • उन्होंने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए और अधिक कठोर नियम और विनियम बनाए। (correct)
  • उन्होंने अपनी जमींदारी को छोटे भागों में विभाजित कर दिया।
  • उन्होंने जमींदारी व्यवस्था को कमजोर करने वाले नियम बनाए।
  • उन्होंने किसानों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया।

महाराजा मेहताब चंद (1820-79) के शासनकाल में बर्धमान की स्थिति के बारे में कौन सा कथन सही है?

<p>बर्धमान समृद्ध था और मेहताब चंद ने 1857 के विद्रोह में ब्रिटिशों का साथ दिया था। (D)</p> Signup and view all the answers

'फिफ्थ रिपोर्ट' किससे संबंधित है, जो 1813 में ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत की गई थी?

<p>यह भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक कामकाज का विस्तृत विवरण देती है। (A)</p> Signup and view all the answers

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फर्जी लेनदेन

ज़मींदारों के एजेंटों को धन का भुगतान न करने के कारण नीलामी बार-बार दोहराई जाती थी।

पुरानी वफादारी

पुराने किरायेदारों ने जमींदारों को अपना स्वामी मानते थे, जो उनकी रक्षा करते थे।

जमींदारों की शक्ति

1790 में सफल जमींदारों ने अपने नियमों और विनियमों को मजबूत किया, और बाद में जमींदारों की शक्ति में वृद्धि को सक्षम किया।

जमींदारों का पतन

दिसंबर 1930 में जमींदारों की स्थिति में गिरावट आने लगी, जिससे गाँवों के किसानों को ग्रामीण इलाकों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

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पांचवी रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक कामकाज का वर्णन किया गया था, जिसमें लगभग 1002 पृष्ठ थे और 800 पृष्ठ परिशिष्ट के रूप में संलग्न थे।

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Study Notes

  • औपनिवेशिक शासन और देहात

  • ज़मींदारों को अपनी भूसंपदा दोबारा बेचनी पड़ती थी क्योंकि उनके ही एजेंट उसे दोबारा खरीद लेते थे।

  • खरीद की रकम अदा न होने पर नीलामी दोहराई जाती थी जिससे बोली लगाने वाले थक जाते थे।

  • नीलामी के समय किसी ने भी बोली नहीं लगाई तो संपत्ति को कम कीमत पर ज़मींदार को बेचना पड़ा।

  • ज़मींदार राजस्व की पूरी मांग नहीं भर पाते थे, इसलिए कंपनी शायद ही कभी बकाया राजस्व वसूल कर पाती थी।

  • 1793 से 1801 के बीच बंगाल की चार बड़ी ज़मींदारियों ने, जिनमें बर्दवान की ज़मींदारी भी शामिल थी, कई बेनामी खरीददारियों कीं, जिनसे 30 लाख रुपये की प्राप्ति हुई।

  • नीलाम की 15% बिक्री नक़ली थी।

  • ज़मींदार कई तरीकों से अपनी ज़मींदारी को छिनने से बचा लेते थे।

  • ज़मीन खरीदने वाले बाहरी व्यक्ति को ज़मीन का कब्ज़ा नही मिलता था।

  • पुराने ज़मींदार के 'लठियाल' नए खरीददार के आदमियों को मार कर भगा देते थे।

  • पुराने रैयत बाहरी लोगों को ज़मीन में नहीं घुसने देते थे।

  • रैयत पुराने ज़मींदार से जुड़े हुए थे, उनके वफ़ादार थे और उनको अन्नदाता मानते थे।

उन्नीसवीं शताब्दी

  • उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में कीमतों में मंदी की स्थिति समाप्त हो गयी।
  • 1790 के दशक में जिन ज़मींदारों ने तकलीफों को झेला, उन्होंने अपनी ताकत को और मजबूत कर लिया।
  • राजस्व के भुगतान के नियमों को लचीला बनाया गया।
  • 1930 के दशक में मंदी में ज़मींदार कमज़ोर पड़ गये और जोतदारों ने देहात में अपने पैर मजबूत कर लिए।

पाँचवीं रिपोर्ट

  • 1813 में ब्रिटिश संसद में एक रिपोर्ट पेश की गई जिसमें कई परिवर्तनों का विस्तृत विवरण दिया गया था।
  • यह रिपोर्ट ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन और क्रियाकलापों पर आधारित थी।
  • इस रिपोर्ट में 1,002 पेज थे और 800 से ज़्यादा परिशिष्ट थे जिनमें ज़मींदारों और रैयतों की अर्जियाँ थीं।

चित्र 9.6 महाराजा मेहताब चंद (1820-79)

  • जब इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया, तब तेजचंद बर्दवान का राजा बना।
  • मेहताब चंद के शासन में बर्दवान की जमींदारी काफी फली-फूली।
  • मेहताब चंद ने संथालों और 1857 के विद्रोह में अंग्रेज़ों का साथ दिया।

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Description

औपनिवेशिक शासन के दौरान जमींदारों को अपनी भूमि बेचनी पड़ती थी, अक्सर उनके एजेंट ही उसे वापस खरीद लेते थे। राजस्व की मांग पूरी न होने पर नीलामी दोहराई जाती थी, जिससे बोली लगाने वाले थक जाते थे। जमींदार अपनी जमींदारी बचाने के लिए कई तरीके अपनाते थे।

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