Science-A4Ibook PDF
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This document provides an introduction to the nature and scope of science, along with a discussion of its development in India. It also details several teaching methodologies used in science education.
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विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem इकाई 1-विज्ञान की प्रकृति एिं महत्त्ि (Nature and Scope of Science) 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्देश्य 1.3 विज्ञान का अर्थ 1.4 भारत में विज्ञान विक्षण का विकास 1.5 विज्ञान की प्रकृ वत 1.6 विज्ञान का क्षेत्र...
विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem इकाई 1-विज्ञान की प्रकृति एिं महत्त्ि (Nature and Scope of Science) 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्देश्य 1.3 विज्ञान का अर्थ 1.4 भारत में विज्ञान विक्षण का विकास 1.5 विज्ञान की प्रकृ वत 1.6 विज्ञान का क्षेत्र 1.7 दैवनक जीिन में विज्ञान की उपयोविता एिं महत्ि 1.8 विज्ञान विक्षण के मल्ू य 1.9 विज्ञान विक्षण का समववित दृविकोण। 1.10 सारांि 1.11 िब्दािली 1.12 स्िमल्ू यावं कत प्रश्नों के उत्तर 1.13 सवदभथ ग्रवर् सचू ी/उपयोिी पाठ्य सामग्री 1.14 वनबवधात्मक प्रश्न उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 1 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 1.1 प्रस्िािना: आज का यिु विज्ञान एिं तकनीकी का यिु है। िैज्ञावनक आविष्कारों के पररणामस्िरूप हमारा जीिन अपने पिू थजों की अपेक्षा अवधक सवु िधापणू थ होता जा रहा है। मनष्ु य ही एकमात्र ऐसा सामावजक प्राणी है वजसमें सोचने-विचारने की क्षमता पायी जाती है। प्रारम्भ से ही िह इस प्रयास में लिा हुआ है वक प्रकृ वत क्या है? यह कै से विकवसत होती है? मानि ने अपनी इसी अधीरता के कारण आरम्भ से ही प्रकृ वत को पररभावित करने का प्रयास वकया है। अपनी जानने, सोचने ि समझने की प्रकृ वत के कारण उसने प्रकृ वत के विवभवन अनुत्तररत प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास वकया है। प्रकृ वत के प्रश्नों के उत्तर खोजने में मनष्ु य ने एक प्रविया का अनसु रण वकया और उस प्रविया के द्वारा िह प्रकृ वत के अनत्तु ररत प्रश्नों का उत्तर खोजने में सफल हुआ। िह प्रविया र्ी- विज्ञान की प्रविया। यह जानना अत्यवत आिश्यक है वक विज्ञान क्या है? इसकी विक्षा क्यों दी जाय? तर्ा इसकी प्रकृ वत कै सी है? प्रस्ततु इकाई में आप विज्ञान क्या है?, इसका अर्थ, प्रकृ वत, क्षेत्र, महत्ि, मल्ू य तर्ा समववित दृविकोण/एकीकृ त दृविकोण के वििय में अध्ययन करें िे। 1.2 उद्दे श्य प्रस्ततु इकाई के अध्ययन के पश्चात आप- 1. विज्ञान का अर्थ बता पायेंिे। 2. विज्ञान की प्रकृ वत बता पायेंिे। 3. विज्ञान के क्षेत्र का िणथन कर सकें िे। 4. विज्ञान के महत्ि की व्याख्या कर सकें िे। 5. विज्ञान विक्षण के मूल्यों को समझ सकें िे। 6. विज्ञान विक्षण के समववित दृविकोण का अर्थ समझ सकें िे। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 2 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 1.3 विज्ञान का अर्थ (Meaning of Science) - विज्ञान िब्द वि + ज्ञान िब्द से बना है, वजसका अर्थ विविि ज्ञान से है। िास्ति में प्राकृ वतक घटनाओ ं का अध्ययन करना तर्ा उसमें आपस में सम्बवध ज्ञात करना ही विज्ञान कहलाता है। विज्ञान अग्रं ेजी भािा के Science िब्द का पयाथयिाची है। Science िब्द की उत्पवत्त लैवटन भािा के िब्द Scientia साइवं टया से हुई है, इसका अर्थ है- ज्ञान। अतः ज्ञान का दस ू रा नाम ही विज्ञान है। यह िब्द सीवमत अर्थ में ही प्रयक्त ु वकया जाता है। अवधक व्यापक ि व्यिहाररक अर्थ में प्राकृ वतक घटनाओ ं एिं वनयमों का सव्ु यिवस्र्त ि िमबद्ध अध्ययन तर्ा उससे प्राप्त ज्ञान विज्ञान कहलाता है। परिभाषाए-ं एनसाइक्लोपीडिया डिटाडनका- ‘‘डिज्ञान नैसडगिक घटनाओ ं औि उनके बीच सम्बन्धों का सव्ु यिडथित ज्ञान है।’’ आइथं टीन के अनस ु ाि- ‘‘हमािी ज्ञान अनभ ु डू तयों की अथत-व्यथत डिडभन्नता को एक तकि पर् ू ि डिचाि प्रर्ाली डनडमित किने के प्रयास को डिज्ञान कहते हैं।’’ कालि पौपि के अनुसाि- ‘‘डिज्ञान डनिन्ति क्राडन्तकािी परिितिन की डथिडत है औि िैज्ञाडनक डसद्धान्त तब तक िैज्ञाडनक नहीं होते हैं जब तक डक उन्हें आगामी अनुभि तिा प्रमार् द्वािा परििडतित डकया जाना डनडहत नहीं है।’’ प.ं जिाहि लाल नेहरू के अनुसाि- ‘‘डिज्ञान का अिि के िल मात्र पिखनली तिा कुछ बड़ा या छोटा बनाने के डलए इसको औि उसको डमलाना ही नहीं है अडपतु िैज्ञाडनक डिडध के अनुसाि हमािे मडथतष्क को प्रडिक्षर् देना ही डिज्ञान है। 1.4 भारि में विज्ञान शिक्षण का विकास (Groth of Science teaching in India) आवदकाल से ही मानि वजज्ञासु प्रिृवत्त का रहा है। िह प्रकृ वत में घवटत हा रहीेे घटनाओ ं तर्ा पररितथनों के वििय में जानने के प्रवत उत्सक ु रहा है। यही उत्सक ु ता उसे विज्ञान के नजदीक लाती है। विज्ञान की खोज के सार्-सार् इसका मनष्ु य के व्यिहार ि उसकी सोच पर भी प्रभाि पड़ने लिा। विज्ञान विक्षण का आरम्भ 19िीं िताब्दी में इसाई वमिनररयों के द्वारा हुआ। सन् 1854 में अग्रं ेजी िासन ने विज्ञान के व्यिहाररक महत्ि को समझा और सन् 1862 में विश्व विद्यालय की माध्यवमक कक्षाओ ं में विज्ञान को एक वििय के रूप में स्र्ान वदया िया। सन् 1904 में लाडथ कजथन ने विक्षा में तकनीकी विक्षा के प्रयोि पर अवधक बल वदया। सन् 1948 में राधा कृ ष्णन आयोि के अनसु ार उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 3 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem विद्यावर्थयों की वचंतन िवक्त, वनणथय िवक्त, रचनात्मक िवक्त एिं उसमें नेतत्ृ ि के िुणों के विकास के वलए तकनीकी ि व्यिसावयक विक्षा देनी चावहए वजसके वलए स्नातक स्तर पर रसायन विज्ञान, भौवतक विज्ञान, जवतु विज्ञान तर्ा िनस्पवत विज्ञान में से वकवहीं दो विियों का चयन कर उनका अध्ययन करना र्ा। धीरे -धीरे उनको विक्षण पाठ्यिम में उतारा जाने लिा है वजसके पररणामस्िरूप ितथमान में विद्यालयों में विज्ञान विक्षण पर अवधक बल वदया जाने लिा। थिमूलयांडकत प्रश्न-भाग 1 1. विज्ञान अंग्रेजी भािा के....................................िब्द का पयाथयिाची है। 2.....................के अनसु ार विज्ञान वनरवतर िाववतकारी पररितथन की वस्र्वत है। 3. विज्ञान विक्षण का आरम्भ 19िीं िताब्दी में..........................के द्वारा हुआ। 4. Science िब्द की उत्पवत्त लैवटन भािा के........................... िब्द से हुई है। 1.5 विज्ञान की प्रकृति (Nature of Science) - मनष्ु य प्रारम्भ से ही वजज्ञासु प्रिृवत्त का रहा है वजसके कारण िह प्रकृ वत के पीछे वछपे िढ़ू रहस्यों को जानने की इच्छा रखता है। िह उसे जानना चाहता है वजसका ज्ञान उसे कवठन पररश्रम द्वारा ही हो पाता है। प्रत्येक वििय की अपनी प्रकृ वत होती है वजसके द्वारा उसकी एक पहचान होती है। विज्ञान की प्रकृ वत वनम्नवलवखत है- विज्ञान सत्य पर आधाररत होता है। विज्ञान के द्वारा तथ्यों का विश्ले िण वकया जाता है। विज्ञान में पररकल्पना का प्रमुख स्र्ान होता है। विज्ञान पक्षपात रवहत विचारधारा है। विज्ञान िस्तवु नष्ठ मापकों पर वनभथर होता है। विज्ञान पररमाणिाची वनष्किों की खोज है। विज्ञान समस्या का स्पि हल है। विज्ञान संज्ञा कम, विया अवधक है। विज्ञान िह है जो िैज्ञावनक कहते हैं और िैज्ञावनक क्या कहते हैं यह िैज्ञावनक विवध का अनसु रण है। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 4 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem विज्ञान की अपनी भािा है। इसकी भािा में िैज्ञावनक पद, िैज्ञावनक प्रत्यय, सत्रू , वसद्धावत, वनदान तर्ा संकेत आवद सवम्मवलत होते हैं जो वक वििेि प्रकार के होते हैं तर्ा विज्ञान की भािा को जवम देते हैं। विज्ञान का ज्ञान सव्ु यिवस्र्त, िमबद्ध, तावकथ क तर्ा अवधक स्पि होता है। इसमें सम्पणू थ िातािरण में पायी जाने िाली िस्तओ ु ं के परस्पर सम्बवधों का अध्ययन वकया जाता है तर्ा वनष्किथ वनकाले जाते हैं। विज्ञान के विवभवन वनयमों, वसद्धावतों, सत्रू ों आवद में संदहे की संभािना नहीं रहती है। ये सिथत्र एक समान ही रहते हैं। विज्ञान के अध्ययन से विद्यावर्थयों में आिमन-वनिमन, सामावयीकरण तर्ा अिलोकन की योग्यता का विकास होता है। विज्ञान के अध्ययन से विद्यावर्थयों में अनि ु ासन, आत्मवनभथरता, आत्मविश्वास इत्यावद िणु ों का विकास होता है। विज्ञान के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेवविया होती हैं और ज्ञानेववियों द्वारा सीखा िया ज्ञान अवधक समय तक स्र्ायी रहता है। इस तरह हम विज्ञान की प्रकृ वत को तीन प्रमख ु वसद्धावतों में विभावजत कर सकते हैं- 1. िैज्ञावनक ज्ञान का वपण्ड 2. िैज्ञावनक प्रविया 3. िैज्ञावनक मानवसकता अतः हम कह सकते हैं वक विज्ञान एक चिीय प्रविया है तर्ा िैज्ञावनक ज्ञान सदैि अस्र्ायी होता है। विज्ञान प्रविया भी है और उत्पाद भी है। 1.6 विज्ञान का क्षेत्र ( Scope of Science ½ विज्ञान की िाखायें- सवु िधा की दृवि से विज्ञान को वनम्नवलवखत भािों में विभावजत वकया जा सकता है।- 1. भौवतक विज्ञान 2. रसायन विज्ञान 3. जीि विज्ञान 4. िवणत 5. खिोल विज्ञान 6. भ-ू िभथ विज्ञान उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 5 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 7. आयवु िथज्ञान ितथमान में विज्ञान विियों को भौवतकीय विज्ञान (Physical Science½ तर्ा जीि विज्ञान (Life Science) के अंतिथत रखा िया है। ये दोनों क्षेत्र संयक्त ु रूप से प्राकृ वतक विज्ञान (Natural Science) कहलाते हैं। डिज्ञान (Science) प्राकृडतक डिज्ञान (Natural Science) जीिन डिज्ञान (Life science) भौडतकीय डिज्ञान(physicalscience) प्रार्ी डिज्ञान (Zoology) भौडतकी (Physics) िनथपडत डिज्ञान (Botany) िसायडनकी(Chemistry) आयडु ििज्ञान(Medical science) गडर्त(Mathematics) खगोल डिज्ञान(Astrology) भ-ू डिज्ञान (Geology) जीिन डिज्ञान (Life Science) - जीि विज्ञान के अंतिथत पृथ्िी में पाये जाने िाली सभी सजीि प्रावणयों का अध्ययन वकया जाता है। इसमें विज्ञान के वििय जैसे- प्रावण विज्ञान, िनस्पवत विज्ञान, जैविकी, आयुविथज्ञान, जैि रासायवनकी आवद सवम्मवलत होते हैं। प्रार्ी डिज्ञान (Zoology) – जीि विज्ञान की िाखा है जो जानिरों और उनके जीिन, िरीर, विकास और ििीकरण (classification) से सम्बववधत होती है। िनथपडत डिज्ञान (Botany)- विज्ञान की िाखा वजसमें पादपों का अध्ययन होता है। आयुडििज्ञान(Medical science) विज्ञान की िह िाखा है वजसका संबंध मानि िरीर को वनरोि रखने, रोि हो जाने पर रोि से मक्त ु करने अर्िा उसका िमन करने तर्ा आयु बढ़ाने से है उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 6 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem प्राणी विज्ञान और िनस्पवत विज्ञान को वमलाकर जीि डिज्ञान (Biology) भी कहा जाता है जीि डिज्ञान(Biology) जीि विज्ञान िब्द का प्रयोि सिथप्रर्म सन् 1802 में लेमाकथ (Lamark) एिं ट्रेविरे नस (Traviranus) ने वकया । यनू ान के दािथवनक अरस्तु (Aristotle) को जीि विज्ञान का जनक (Father of Biology) कहा जाता है। जीि विज्ञान के अंतिथत समस्त जीिधाररयों (जंतओ ु ं ि पादपों) का अध्ययन वकया जाता है। जीि विज्ञान िब्द की उत्पवत्त ग्रीक भािा के दो िब्द- Bios तर्ा Logos से हुई है। बायोस ¼Bios ) िब्द का अर्थ है Life (जीिन या जीि) तर्ा लोिोस (Logos) िब्द का अर्थ Discourse (अध्ययन करना) या to know (जानना) होता है। इस प्रकार जीि विज्ञान का अर्थ जीिों के वििय में जानना या जीिों का अध्ययन करना है। जीि विज्ञान को दो मख्ु य िाखाओ ं में विभावजत वकया िया है: जतं ु डिज्ञान (Zoology) – जतं ओ ु ं तर्ा उनके वियाकलापों का अध्ययन । िनथपडत डिज्ञान (Botany)- पेड़-पौंधों तर्ा उसके वियाकलापों का अध्ययन। व्यापकता की दृवि से जीि विज्ञान की अवय प्रमख ु िाखायें- 1- आकाररकी (Morphology) 2- ऊवतकी (Histrology) 3- कोविका विज्ञान (Cytology) 4- भरण ू ् विज्ञान (Embryology) 5- िविथकी (Taxonomy 6- पाररवस्र्वतकी (Ecology) 7- जीिाश्म विज्ञान (Palaentology) 8- आनिु ांविकी (Genetics) 9- सक्ष्म विज्ञान (Micro biology ) 10- जीि रसायन (Bio-Chemistry) 11- िन विज्ञान (Forestry) 12- कृ वि विज्ञान Agriculture Science) 13- वचवकत्सा विज्ञान (Medical Science) 14- एवजाइमोलोजी (Enzymology) 15- आनिु ांविक अवभयंत्रण (Genetic Engineering) 16- प्रवतरोध विज्ञान (Immunology) उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 7 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem भौडतकीय डिज्ञान (Physical Science) - भौवतकीय विज्ञान के अंतिथत प्रकृ वत में पाये जानी िाली सभी वनजीि िस्तओ ु ं का अध्ययन वकया जाता है। इसके कई भािों में विभावजत वकया िया है जैस-े रासायवनकी, भौवतकीय, भिू वभथकी, खिोलीय, िवणत आवद। भौडतक डिज्ञान या भौडतकी (Physics)- भौवतक विज्ञान विज्ञान की िह िाखा है वजसमें िव्य और ऊजाथ में सम्बवध तर्ा परस्पर आदान-प्रदान का अध्ययन वकया जाता है। स्पितः भौवतक विज्ञान से हमारा सम्बवध िव्य तर्ा ऊजाथ से होता है। िव्य िह है वजसका अनभु ि हम अपनी ज्ञानेववियों (आंख, नाक, कान, मंहु तर्ा त्िचा) द्वारा करते हैं। लोहा, सोना, पत्र्र, रूई, जल, िायु आवद सभी िव्य है। ऊजाथ ऐसी भौवतक रावि है वजसमें न तो िव्यमान होता है और न ही िह स्र्ान घेरती है। उष्मा, प्रकाि, भवू म आवद ऊजाथ के विवभवन रूप है। रसायन विज्ञान या रासायवनकी -रसायन विज्ञान या रासायवनकी रसायन विज्ञान की िह िाखा है वजसमें पदार्थ की संरचना इसके प्रकार, िणु तर्ा अवभवियाओ ं का अध्ययन वकया जाता है। रसायन विज्ञान यह बताता है वक पदार्थ कै से वदखायी देते हैं उनकी संरचना क्या है ि अवय पदार्ों के सार् कै सा व्यिहार करता है? रसायन विज्ञान ने खाद्यावन, स्िास्थ्य, कपड़े, पररिहन आवद की समस्याओ ं का वनदान वकया है। रसायन विज्ञान को मख्ु यतः तीन िाखाओ ं में विभावजत वकया िया है जैसे- काबथवनक रसायन अकाबथवनक रसायन भौवतक रसायन उपयोि के आधार पर रसायन विज्ञान को अवय िाखाओ ं जैसे - नावभकीय, जैि रसायन, कृ वि रसायन, विश्लेिणात्मक रसायन, औद्योविक रसायन आवद में विभक्त वकया िया है। िसायन डिज्ञान (Chemistry) – रसायन विज्ञान, विज्ञान की िह िाखा है वजसमें पदार्ों के सघं टन, सरं चना, िणु ों और रासायवनक प्रवतविया के दौरान इनमें हुए पररितथनों का अध्ययन वकया जाता है। गडर्त(Mathematics) : िवणत ऐसी विद्याओ ं का समहू है जो संख्याओ,ं मात्राओ,ं पररमाणों, रूपों और उनके आपसी ररश्तों, िणु , स्िभाि इत्यावद का अध्ययन करती हैं। खगोल डिज्ञान(Astrology) : ऐसा विज्ञान है, वजसके अंतिथत पृथ्िी और उसके िायमु ण्डल के बाहर होने िाली घटनाओ ं का अिलोकन, विश्लेिण तर्ा उसकी व्याख्या (explanation) की जाती है। भू-डिज्ञान (Geology): भवू िज्ञान या भौवमकी (Geology) िह विज्ञान है, वजसमें ठोस पृथ्िी का वनमाथण करने िाली िैलों तर्ा उन प्रवियाओ ं का अध्ययन वकया जाता है, वजनसे िैलों, भपू पथटी और स्र्लरूपों का विकास होता है। इसके अंतिथत पृथ्िी संबंधी अनेकानेक वििय आ जाते हैं जैसे, खवनज िास्त्र, तलछट विज्ञान, भूमापन और खनन इजं ीवनयरी इत्यावद। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 8 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 1.7 दै तनक जीिन में विज्ञान की उपयोगििा एिं महत्ि (Utility and Importance of Science in daily life हमारे दैवनक जीिन में विज्ञान का बहुत ही महत्िपणू थ योिदान है। विज्ञान के वबना जीिन ही असंभि है। दैवनक जीिन में विज्ञान ने हमारी वदनचयाथ को सिु म बना वदया है। विवभवन क्षेत्रों में विज्ञान की उपयोविता का महत्ि इस प्रकार है- 1- कृडष के क्षेत्र में (In Agriculture)- अच्छी फसल उिाने के वलए रासायवनक वियाओ ं द्वारा महत्िपूणथ उिथरकों के प्रयोि से ही संभि हो पाया है। वजससे वक हम बढ़ती आबादी की खाद्यावन आिश्यकताओ ं की पवू तथ कर सके हैं तर्ा खाद्यावन के क्षेत्र में आत्म वनभथर हो पाये हैं। 2- डचडकत्सा एिं थिाथ्य के क्षेत्र में (In Medical and Health)- विज्ञान के द्वारा िैज्ञावनक उपकरणों, यंत्रों, औिवधयों के आविष्कार से रोिों की पहचान, वनराकरण तर्ा बीमाररयों का उवमल ू न आवद संभि हो सका है। वनश्चेतक तर्ा एटं ीसेवटटक दिाओ ं के प्रयोि से आज कवठन से कवठन सवजथकल ऑपरे िन संभि हो सके हैं। 3- औद्योडगक क्षेत्र में (In Industry)- विज्ञान के ज्ञान से औद्योविक विकास ि क्षमता में काफी सहायता वमली है। साबनु , वडटजेंट, सौवदयथ प्रसाधन, रंि, कपड़ा, कािज, औिवध, सीमेंट, पेट्रोवलयम आवद का वनमाथण ि उपयोि विज्ञान के कारण ही संभि है। 4- यातायात के क्षेत्र में (In Transport)- मोटर, िाययु ान, कारें , साइवकल आवद यातायात के साधन विज्ञान की ही देन हैं। वजनकी सहायता से कम से कम समय में अवधक से अवधक दरू ी तय की जा सकती है। 5- मनोिंजन के क्षेत्र में (In Recreation) - वसनेमा, टीिी, टेप ररकाडथर आवद विज्ञान के ही चमत्कार हैं। इवहोंने हमारे जीिन में अवमट छाप लिा दी है। 6- संचाि के क्षेत्र में (In Communication)- मोबाइल, टेलीफोन, रे वडयो, रॉके ट, इटं रनेट, फै क्स मिीन आवद ने सचू ना के क्षेत्र में िांवतकारी पररितथन वकये हैं। इन उपकरणों का प्रयेाि कर कम से कम समय में अवधक से अवधक सचू ना आिश्यकतानसु ार प्राप्त की जा सकती है। इनके उपयोि से परस्पर एक-दसू रे से सपं कथ बना रहता है। 7- खाद्यान्न के क्षेत्र में (In Food Product)- विश्व की वनरवतर बढ़ती आबादी के वलए खाद्यावन की आपवू तथ में विज्ञान ने महत्िपणू थ भवू मका वनभायी है। विवभवन रासायवनक उिथरकों द्वारा अवधक से अवधक खाद्यावनों का उत्पादन वकया जा रहा है तावक आबादी की खाद्यावन सम्बवधी आिश्यकताओ ं की पवू तथ हो सके । 8- अंतरिक्ष के क्षेत्र में (In Space)- आज मनष्ु य ने विज्ञान के कारण ही चविमा तर्ा अवय ग्रहों में पहुचं ने तर्ा अंतररक्ष में भ्रमण करने में सफलता प्राप्त की है। वबना विज्ञान के इसकी कल्पना भी उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 9 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem नहीं की जा सकती र्ी। ितथमान में विवभवन क्षेत्रों में भौवतक िास्त्री, रसायन िास्त्री, जैि विज्ञानी आवद सभी अंतररक्ष में जाकर विवभवन अनसु ंधानों में जटु े हैं। उपरोक्त क्षेत्रों के अवतररक्त हमारे जीिन के प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञान के ज्ञान का उपयोि हो रहा है। विज्ञान के वनत नई खोजों के फलस्िरूप ही आज संपणू थ संसार को ‘ग्लोबल विलेज’ की संज्ञा दी ियी है। अतः कहा जा सकता है वक विज्ञान का हमारे दैवनक जीिन तर्ा अर्थव्यिस्र्ा में महत्िपणू थ योिदान है। 1.8 विज्ञान शिक्षण के मल् ू य (Value of Science Teaching) 1- बौडद्धक मलू य (Intellectual Values)- विज्ञान का ज्ञान व्यवक्त के मवस्तष्क को वियािील बनाता है। यह एक िमबद्ध ि सव्ु यिवस्र्त ज्ञान है। इसमें प्रविया उतनी ही महत्िपूणथ होती है वजतनी वक उत्पाद। विज्ञान का ज्ञान छात्रों में तावकथ क क्षमता का विकास करता है। विज्ञान की प्रत्येक समस्या रचनात्मकता तर्ा सृजनात्मकता से होकर िजु रती है। छात्रों को विवभवन मानवसक वियाओ ं का प्रविक्षण वमलता है। िे अंधविश्वासों के आधार पर, देख कर, सनु कर अर्िा पढ़कर वकसी भी बात को नहीं मानते बवल्क चयन, परीक्षण करके वनरीक्षण के आधार पर वनष्किथ वनकालते हैं। कहा भी है वक -Science is a way to settle in the mind a habit of reasoning’- Locke 2- इस प्रकार हम कह सकते हैं वक बालक के सम्पणू थ मानवसक ि वियात्मक विकास के वलए विज्ञान अत्यवत आिश्यक है। वकसी भी समस्या के समाधान करने की क्षमता का विकास विज्ञान की सहायता से ही संभि है। महान विक्षा िास्त्री हव्ि ने विज्ञान के वििय में वलखा है वक ‘‘विज्ञान मवस्तष्क का तीक्ष्ण एिं तीव्र बनाने में उसी प्रकार कायथ करता है जैसे औजार को तीक्ष्ण बनाने में काम आने िाला पत्र्र।’’ 3- नैडतक मलू य (Moral Values)- नैवतकता ऐसा प्रत्यय है जो स्र्ान, समय, व्यवक्त र्ा पररवस्र्वत से सिाथवधक प्रभावित होता है यही कारण है वक समाज में नैवतक मूल्यों का स्िरूप समय-समय पर पररवस्र्वतिि बदलता रहता है परवतु कुछ मावयतायें ऐसी होती जो िाश्वत प्रकृ वत की होती हैं। सत्य की प्रकृ वत पर आधाररत नैवतक मावयतायें सिथर्ा खरी उतरती हैं। विज्ञान ही हमें तकथ सम्मत विचार तर्ा सत्य बोलने की क्षमता प्रदान करते हैं। और सत्य ही विज्ञान की आत्मा है। विज्ञान के विद्यार्ी वकसी प्रकार के आडम्बर करने को पसदं नहीं करते हैं। विज्ञान के द्वारा ही छात्रों को विवभवन मानवसक वियाओ ं का प्रविक्षण वमलता है तर्ा िे वकसी भी बात को पढ़कर, सुनकर तर्ा अंधविश्वासों के आधार पर नहीं मानते हैं बवल्क परीक्षण तर्ा वनरीक्षण के आधार पर वनष्किथ वनकालते हैं। 4- व्यिहारिक मूलय (Practical Values) - विज्ञान का ज्ञान व्यिहाररक संदभथ में भी अत्यवत उपयोिी है। मनष्ु य को प्रवतवदन अपने सामावजक तर्ा व्यिहाररक जीिन में विवभवन उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 10 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem प्रकार की समस्याओ ं का सामना करना पड़ता है वजसका समाधान करने के वलए हमें वकसी न वकसी रूप में विज्ञान का उपयोि करना पड़ता है। संचार व्यिस्र्ा, रोजिार, मनोरंजन, सवु िधाजनक िस्त्र, हमारी भोजन सामग्री का उत्पादन, उनका संग्रह ि रखरखाि, स्िास्थ्य वचवकत्सा प्रणाली आवद सभी में विज्ञान की देन है। ितथमान में हमें कुिल िैज्ञावनकों की आिश्यकता है न वक भीम जैसे योद्धाओ ं की। कुिल िैज्ञावनक ररमोट कंट्रोल के माध्यम से दरू से ही यद्धु का पैिाम बदल सकते हैं। वजन िस्तओ ु ं का उपयोि हम अपने दैवनक जीिन में कर रहे हैं िह सब विज्ञान की ही देन हैं। 5- मनोिैज्ञाडनक मूलय (Psychological Values)- विज्ञान विक्षण की प्रविया मनोविज्ञान के वसद्धावत पर आधाररत है। करके सीखना, कोच तर्ा सजीि नमनू ों के वनरीक्षण द्वारा सीखना, विया प्रणाली आवद मनोविज्ञान के मल ू भतू वसद्धावत हैं। मनोविज्ञान विक्षक को वसखाती है वक िह विद्यार्ी के सम्मान के ा ठे स न लिने दे, उनकी महत्िाकांक्षाओ ं को न रोकें । उसे महत्िाकांक्षाओ ं को परू ा करने के वलए वनदेिन दें, स्नेह दें तावक उनकी वजज्ञासा, रचनात्मक प्रिृवत्तयां आत्मतवु ि, आत्म प्रकािन आवद भािनाओ ं की तृवप्त हो सके । 6- सांथकृडतक मूलय (Cultural Values) -एक राष्ट्र या समाज की संस्कृ वत की अपनी वििेिता होती है जो उसे अवय राष्ट्रों या समाज से अलि करती है। विवभवन राष्ट्रों की संस्कृ वत का िणथन विज्ञान के इवतहास द्वारा समझा जा सकता है। विज्ञान हमें के िल वकसी भी राष्ट्र की सभ्यता ि संस्कृ वत से ही पररवचत नहीं कराता है िरन सांस्कृ वतक मूल्यों को सरु वक्षत ि उवनत रखते हुए भविष्य में आने िाली पीवढ़यों को हस्तातं ररत करने में भी सहायता प्रदान करताहै। विज्ञान वििय के कुछ महत्िपूणथ सांस्कृ वतक मल्ू य- नृत्य, वचत्रकला, हस्तकला पर विज्ञान का प्रभाि भािा, छंद, अलक ं ारों तर्ा रस पर विज्ञान का प्रभाि उद्योिों पर विज्ञान का प्रभाि जीिन के प्रवत दृविकोण पर विज्ञान का प्रभाि जीिन पद्धवत पर विज्ञान का प्रभाि 7- सौन्दयाित्मक मूलय (Aesthatic Values)- ‘सत्य ही संदु र है संदु र ही सत्य है।’’- कीट्स (Truth is beauty and beauty is truth’&Keats) इस पररप्रेक्ष्य में प्रत्येक िैज्ञावनक को प्रकृ वत की हर िस्तु सवु दर लिती है तर्ा इसी में वछपे हुए रहस्यों की जानकारी प्राप्त करना उनके जीिन का लक्ष्य बन जाता है। अिर िह इन वछपे हुए रहस्यों को खोलने मे सफल हो जाता है तो उसे प्रसवनता ि आत्म संतवु ि की प्रावप्त होती है, वक उसने कुछ नया कायथ वकया है जो वक समाजोपयोिी हो सकता है। विज्ञान एक कला उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 11 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem भी है। एक कलाकार जानबझू कर सौवदयथ पर के ववित रहता है जबवक िैज्ञावनक सत्यता तर्ा तकथ के द्वारा अंत में सवु दरता तक पहुचं ने का प्रयास करता है। 8- व्यिसाडयक मूलय (Vocational Values)- वकसी भी वििय का मल्ू यांकन तभी वकया जा सकता है जब िह वििय व्यिसावयक दृविकोण से भी महत्िपणू थ हो। िांधी जी ने अपनी बेवसक विक्षा योजना में स्पि वकया है विक्षा एक प्रकार से बेरोजिारी के प्रवत बीमा के रूप में होनी चावहए। विज्ञान को अवधकांि विियों की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। विज्ञान के व्यिसावयक मूल्यों का िणथन, उसकी उपयोविता से लिाया जा सकता है। वजस वििय की वजतनी अवधक उपयोविता होती है उसका उतना ही अवधक व्यिसावयक मूल्य होता है। विज्ञान की व्यिसावयक मल्ू य सम्बवधी उपयोविता वनम्नानसु ार व्यक्त की जा सकती है- जैसे - अवभयावं त्रकी के क्षेत्र में अिसर, सचू ना प्रौद्योविकी के क्षेत्र में अिसर, ऊजाथ उत्पादन के क्षेत्र में अिसर, तकनीकी क्षेत्र में अिसर, अनसु ंधान, स्िास्थ्य, रक्षा आवद के क्षेत्र में अिसर। 9- िैज्ञाडनक दृडिकोर् से सम्बडन्धत मलू य (Values Related to Scientific Development ) - विज्ञान अपनी समस्या के समाधान के वलए एक िमबद्ध, सव्ु यिवस्र्त प्रविया अपनाता है वजसे िैज्ञावनक प्रविया कहते हैं। िैज्ञावनक प्रविया कई चरणों से होकर िजु रती हुई समस्या का समाधान प्रस्ततु करती है। छात्रों को अिर इस प्रविया में प्रविवक्षत वकया जाय तो िैज्ञावनक दृविकोण का विकास हो जाता है। यह एक वनरवतर चलने िाली प्रविया होती है। अिर छात्रों को समवु चत प्रविक्षण वदया जाय तो यह छात्रों के मवस्तष्क में वनरवतर चलना प्रारम्भ हो जाती है और छात्र समस्या का समाधान करने में सक्षम हो जाता है। इस प्रकार सारांि में कह सकते हैं वक हमारे जीिन का कोई भी पहलू विज्ञान के ज्ञान से अछूता नहीं है। राष्ट्रीय विक्षा नीवत (National Education Policy) 1986 में विज्ञान के राष्ट्रीय विकास ि दैवनक जीिन में महत्ि को स्िीकार करते हुए स्पि वकया िया है वक- यह िास्तविकता है वक विज्ञान को अवधकांि बच्चे कवठन वििय समझते हैं। विद्यालय ि अध्यापकों द्वारा ऐसे ठोस कदम उठाये जाने चावहए वजससे बच्चों के िैज्ञावनक ज्ञान के स्तर को उवनत वकया जा सके । 1.8 विज्ञान शिक्षण का समन्विि दृन्टिकोण (Teaching of Science of Integrated Approach ½ वपछले अनेक ििों तक विज्ञान विक्षण के क्षेत्र में समववित या एकीकृ त दृविकोण की मावयता रही है। इसवलए विद्यालयों में विज्ञान को उसके विवभवन अिं ों जैसे- भौवतक िास्त्र, रसायन िास्त्र, जैविक िास्त्र आवद के रूप् में अलि-अलि न पढ़ाकर साधारण विज्ञान के रूप में पढ़ाया जाता रहा। समववित उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 12 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem दृविकोण में यह धारणा वनवहत है वक सामावय व्यवक्त के वलए सामावय जीिन यापन के दृविकोण से विज्ञान वििय के सक्ष्ू म और िंभीर अध्ययन की आिश्यकता नहीं होती है। उसकी वजज्ञासा और आिश्यकता वकसी िंभीर िैज्ञावनक की तरह नहीं होती है। उसे तो के िल सामावय ज्ञान की आिश्यकता होती है जो वक उसके दैवनक जीिन की की आिश्यकता की पवू तथ भली प्रकार से करने में उसकी सहायता कर सके । इसी दृविकोण को ध्यान में रखते हुए विज्ञान का विक्षण सामावय विज्ञान वििय के रूप में कराया जाता है। इसके वलए विज्ञान के विवभवन उप विियों से अध्ययन सामाग्री लेकर सामावय विज्ञान वििय का संिठन वकया जाता है। विद्यालयों में विज्ञान वििय को इसके विवभवन िाखाओ ं जैसे जीि विज्ञान, भौवतकी तर्ा रसायन विज्ञान के रूप में पृर्क-पृर्क न पढ़ाकर साधारण विज्ञान के रूप में समववित प्रकार से पढ़ाया जाता रहा है, क्योंवक सामावय व्यवक्त के वलए सक्ष्ू म एिं िंभीर अध्ययन की आिश्यकता नहीं होती है उसे तो के िल सामावय ज्ञान की आिश्यकता होती है वजससे उसका दैवनक जीिन भली प्रकार से व्यतीत हो सके । परवतु ितथमान में प्रिवत की दौड़ में आिे रहने के वलए एकीकृ त या समववित दृविकोण न अपनाकर अनि ु ावसत दृविकोण ( क्पेबपचसपदतं ल ।चचतिबं ी ) अपनाया जा रहा है वजससे विद्यालयों में विज्ञान को उसकी विवभवन िाखाओ ं में विभक्त कर अध्ययन के वलए प्रयत्न वकये जा रहे हैं। थिमलू यांडकत प्रश्न:भाग 2 1- विज्ञान के ज्ञान का आधार हमारी......................है। 2- विज्ञान की प्रकृ वत.....................है। 3- यह कर्न वकसका है-”Science is a way to settle in the mind a habit of reasoning.” 4- यह कर्न वकसका है- ‘‘सत्य ही सवु दर है सवु दर ही सत्य है।’’ 5- जीि विज्ञान का जनक....................... को कहा जाता है। 6- जीि विज्ञान की उत्पवत्त ग्रीक भािा के िब्द............................ तर्ा.......................से हुई है। 7- भौवतक विज्ञान तर्ा जीि विज्ञान सयं क्त ु रूप से.....................कहलाते हैं। 1.10 सारांि (Summary) - विज्ञान िब्द वि + ज्ञान से बना है वजसका तात्पयथ विविि ज्ञान से है। िास्ति में प्राकृ वतक घटनाओ ं का अध्ययन करना तर्ा उनमें आपस में सम्बवध ज्ञात करना ही विज्ञान कहलाता है। विज्ञान अग्रं ेजी भािा के Science िब्द का पयाथचिाची है। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 13 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem विज्ञान विक्षण का आरम्भ 19िीं िताब्दी में ईसाई वमिनररयों द्वारा वकया िया। विज्ञान सत्य पर आधाररत होता है। इसके द्वारा तथ्यों का विश्ले िण वकया जाता है। इसका ज्ञान सव्ु यिवस्र्त, िमबद्ध, तावकथ क तर्ा अवधक स्पि होता है। ितथमान में विज्ञान विियों को भौवतक विज्ञान तर्ा जीि विज्ञान के अंतिथत रखा िया है। ये दोनों क्षेत्र संयक्त ु रूप से प्राकृ वतक विज्ञान कहलाते हैं। हमारे दैवनक जीिन में विज्ञान का बहुत ही महत्िपणू थ योिदान है। विज्ञान के वबना जीिन ही असंभि है। कृ वि, वचवकत्सा, स्िास्थ्य, औद्योविक, यातायात, मनोरंजन, संचार ि अंतररक्ष आवद क्षेत्रों में विज्ञान की महत्िपूणथ भवू मका है। विज्ञान वििय के विक्षण द्वारा अनेक महत्िपूणथ लक्ष्यों की प्रावप्त की जा सकती है। इसके अध्ययन से छात्रों को विवभवन लाभ होते हैं वजवहें विज्ञान विक्षण के मूल्य कहते हैं जैसे अनुिासन की प्रावप्त, बौवद्धक मल्ू यों की प्रावप्त, ज्ञान-कुिलता, नैवतक ि सौवदयाथत्मक आवद मल्ू यों की प्रावप्त होती है। विित अनेक ििों में विज्ञान को उसकी अलि-अलि िाखाओ ं में न पढ़ाकर सयं क्त ु रूप से सामावय विज्ञान के रूप में पढ़ाया जाता रहा, परवतु ितथमान समय में प्रिवत की दौड़ में रहने के वलए विज्ञान में अनि ु ावसत दृविकोण अपनाया जा रहा है वजसमें विद्यालयों में विज्ञान को उसकी विवभवन िाखाओ ं में अध्ययन के वलए प्रयत्न वकये जा रहे हैं। इस प्रकार प्रस्ततु इकाई में विज्ञान का अर्थ, प्रकृ वत, क्षेत्र, उसका महत्ि, मूल्यों तर्ा समववित दृविकोण के वििय में अध्ययन वकया। 1.11 िब्दािली (Glossary) डिज्ञान- प्राकृ वतक घटनाओ ं एिं वनयमों का सव्ु यिवस्र्त ि िमबद्ध अध्ययन तर्ा उसे प्राप्त ज्ञान विज्ञान है। प्राकृडतक डिज्ञान- प्राकृ वतक विज्ञान भौवतक विज्ञान तर्ा जीि विज्ञान का संयक्त ु क्षेत्र है। मूलय- मल्ू य िह है वजसके द्वारा लक्ष्यों की प्रावप्त की जा सके । िैज्ञाडनक प्रडक्रया- िैज्ञावनक प्रविया िह है वजसमें विज्ञान अपनी समस्या के समाधान के वलए एक िमबद्ध तर्ा सव्ु यिवस्र्त प्रविया अपनाता है। समडन्ित दृडिकोर्/एकीकृत दृडिकोर्- एकीकृ त दृविकोण से तात्पयथ- वििय को उसकी अलि- अलि िाखाओ ं में न बाटं कर उसके वमले-जुले अर्ाथत सम्पूणथ अध्ययन से है। 1.12 स्ि मल् ू यांककि प्रश्नों के उत्तर- भाग 1 उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 14 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 1- Science 2- कालथ पौपर 3- ईसाई वमिनररयों 4- Scientia भाग 2 1- ज्ञानेववियां 2- तावकथ क 3- लॉक 4- कीट्स 5- अरस्तू 6- बायोस, लोिस 7- प्राकृ वतक विज्ञान 1.13 संदभथ ग्रंर् सच ू ी/उपयोिी पाठ्य सामाग्री- 1- सदू , जे.के. (2003): विज्ञान विक्षण, 21िीं िताब्दी के वलए, आिरा, विनोद पस्ु तक मंवदर। 2- माहेश्वरी, िी.के. एिं माहेश्वरी सधु ा: (2005): विज्ञान विक्षण, मेरठ, सयू ाथ पवब्लके िन। 3- भटनािर, ए.बी. (2005): विज्ञान विक्षण, मेरठ, विनय रखेजा, आर. लाल बक ु वडपो। 4- विश्नोई, उवनवत: विज्ञान विक्षण, मेरठ, विनय रखेजा, आर. लाल बक ु वडपो। 5- कुलश्रेष्ठ, ए.के. एिं कुलश्रेष्ठ, एन.के.: विज्ञान विक्षण, मेरठ, विनय रखेजा, आर. लाल बक ु 6- वडपो। 7- विश्नोई, उवनवत (2016): जैविक विज्ञान विक्षण, मेरठ, विनय रखेजा, आर. लाल बक ु वडपो। 1.14 तनबवधात्मक प्रश्न- 1. विज्ञान के अर्थ एिं प्रकृ वत की व्याख्या कीवजए। 2. विज्ञान की उपयोविता एिं महत्ि की व्याख्या कीवजए। 3. विज्ञान विक्षण के मल्ू यों का िणथन कीवजए। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 15 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem इकाई-2 विज्ञान एिं आधतु नक भारिीय समाज (Science and Morden Indian Society) 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्देश्य 2.3 विज्ञान एिं आधवनक भारतीय समाज के मध्य सबं धं 2.3.1 कृ वि के क्षेत्र में 2.3.2 स्िास्थ्य के क्षेत्र में 2.3.3 अवतररक्ष के क्षेत्र में 2.3.4 रक्षा एिं परमाणु ऊजाथ के क्षेत्र में 2.3.5 जैि-प्रौद्योविकी के क्षेत्र में 2.3.6 व्यापार तर्ा उद्योि के क्षेत्र में 2.3.7 भिन वनमाथण, पररिहन, संखर ि जल संसाधन के क्षेत्र में 2.3.8 अवतविथियी उद्यािम 2.3.9 विक्षा के क्षेत्र में 2.3.10 अनसु धं ान के क्षेत्र में 2.4 संपोिणीय विकास हेतु विज्ञान की भवू मका 2.5 सारांि 2.6 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर 2.7 संदभथ ग्रवर् सचू ी एिं सहायक उपयोिी पाठ्य सामग्री उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 16 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 2.8 वनबवधात्मक प्रश्न 2.1 प्रस्िािना आज का यिु विज्ञान और तकनीकी (Science and Technology) का यिु है। वपछले कई दिकों में विज्ञान-विक्षण के क्षेत्र में अत्यवत महत्िपणू थ पररितथन हुए हैं। इसमें कोई सदं हे नहीं है वक विज्ञान का महत्ि उसकी सामावजक उपादेयता के कारण बढ़ा है। आज विज्ञान अपनी ऊँ चाइयों के विखर पर है। आज वजस आधवु नक सभ्यता में जीने का हम ििथ अनभु ि करते हैं, आकाि को छूने एिं चाँद-तारों पर पहुचँ ने की सख ु द अनभु वू त करते हैं, परमाणु पर विजय की कल्पना मात्र से ही वसहर उठते हैं, इन सब उपलवब्धयों का श्रेय विज्ञान को ही है। आज विज्ञान के क्षेत्र में उर्ल-पर्ु ल मची हुई तर्ा आधवु नक विज्ञान का विकास अत्यवत िुतिवत से हो रहा है। विज्ञान और समाज की व्यापक धारणा विज्ञान की उपलवब्धयाँ को मानि की भलाई तर्ा मानिीय मल्ू यों से सम्बद्ध करती है। आम आदमी विज्ञान को इसके प्रयोिात्मक पक्ष के कारण अवधक महत्ि देता है न वक इसके सैद्धाववतक पक्ष की िजह से। विज्ञान के अवतिथत होने िाली तकनीकी खोजें वकसी भी समाज या सस्ं कृ वत की पहचान बनती है अर्ाथत,् इनके चररत्र को स्िरूप प्रदान करती है। तकनीकी, प्रत्यक्ष अर्िा अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीिन के प्रवत दृविकोण को प्रभावित करती है, हमारी आिश्यकताओ ं के दायरें को बढ़ाती है, हमारे आवर्थक एिं राजनीवतक पररितथनों को प्रोत्सावहत करती है तर्ा प्रत्येक को तीव्रतर िवत से दौड़ने के वलये बाध्य करती है तावक हम सभ्यता की दौड़ में वपछड़ न जायें। इस इकाई में आप विज्ञान एिं आधवु नक भारतीय समाज के मध्य सबं धं ों का अध्ययन करें िे। 2.2 उद्दे श्य इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप : 1. कृ वि के क्षेत्र में विज्ञान के महत्ि को पहचान सकें िे । 2. अवतररक्ष के क्षेत्र में विज्ञान की उपयोविता को पहचान सकें िें। 3. सपं ोिणीय विकास हेतु विज्ञान की भवू मकाको पहचान सकें िे। 2.3 विज्ञान एिं आधतनक भारिीय समाज के मध्य संबंध वपछले कुछ ििों में विज्ञान ने हमारे सम्पणू थ अवस्तत्ि में ही पररितथन ला वदया है। इसने स्िास्थ्य, पररिहन तर्ा िवक्त को वनयववत्रत वकया है, िैज्ञावनक आज भी हमारे सख ु ों में बढ़ोत्तरी के वलये वदन- रात प्रयासरत् हैं। कुछ चीजें जैसे-एवटीबायोवटक्स, परमाणु ऊजाथ, र्मथल पािर, वमसाइलें, नायलोन, कृ वत्रम अिं तर्ा दसू री अवय बहुत-सी िस्तयु ें आने िाले वदनों में भविष्य में होने िाली खोजों की िाववत के पररप्रेक्ष्य में धवू मल हो जायेिी। हर आने िाला दिक एक नई िाववत के सार् हमारे समक्ष उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 17 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem उपवस्र्त हो रहा है। आज की तकनीक कल परु ानी वसद्ध हो जाती है। िैज्ञावनक उपलवब्धयाँ प्रिवत के पर् पर पंख लिाकर दौड़ लिा रही है। विज्ञान ने हर क्षेत्र में उर्ल-पर्ु ल मचा दी है चाहे िह Genetic Code gks] Molecular Neurology gks, चविमा या उपग्रहों की बातें हो, सेटेलाइट्स की बातें हों, या विक्षा के वकसी भी क्षेत्र में से जड़ु ी बातें हो । प्रमाणस्िरूप Energy Generation, Cybermatics, AutomationrFkk Computer इसके प्रत्यक्ष प्रमाण माने जा सकते हैं। सक्ष ं ेप में, विज्ञान के क्षेत्र में होने िाली प्रिवत एिं विकास ने आज के अत्याधवु नक समाजों तर्ा समदु ायों को वजस रूप में प्रभावित वकया है, उसका वििरण नीचे प्रस्ततु वकया जा रहा है - 2.3.1 कृडष के क्षेत्र में (In the Filed of Agriculature). कृ वि के क्षेत्र में आत्मवनभथर बनने में विज्ञान ने महत्िपणू थ योिदान वदया है। आजादी से पिू थ हमारे देि की सम्पणू थ जनता को जहाँ भरपेट अनाज उपलब्ध नहीं हो पाता र्ा िहीं आज एक अरब जनसंख्या के भरण-पोिण के बाद भी हम अनाज का वनयाथत करने की वस्र्वत में हैं। भारतीय विक्षा आयोिने वलखा है-”विज्ञान पर आधाररत नई कृ वि प्रौद्योविकी का विकास सिाथवधक महत्िपणू थ है। वपछले सौ ििों में विश्व के अनेक भािों में कृ वि में िाववत आई है, जैस-े रासायवनक इजं ीवनयररंि तर्ा यावं त्रकीकरण का विकास तर्ा मनष्ु य की जैि-िैज्ञावनक सोच में िाववत आना। मनष्ु य के रहने के ढ़िं के िैज्ञावनक दृविकोण से कृ वि प्रौद्योविकी मंेे अत्यवधक सधु ार हुआ है।“ इस सब का श्रेय डॉ0 िी0पी0 पाल, डॉ0 स्िामीनार्न ि डॉ0 बोरलॉि के अर्क प्रयासों को है वजससे कृ वि के क्षेत्र में हररत िाववत का उद्भि हुआ, पररणामस्िरूप हमारे खाद्यावन उत्पादन में कई िनु ा िृवद्ध सम्भि हुई। भारतीय कृ वि में िाववत विज्ञान की देन है। भारत के लिभि 70 प्रवतित वकसानों ने हररत िाववत को अपनाया है। सार् ही, उिथरकों, कीटनािकों, कृ वि की िैज्ञावनकों को फसलों तर्ा फलों की वकस्मों सधु ार के प्रवत प्रेररत वकया है। आज रे वडयो प्रसारण तर्ा मौसल की पिू थ जानकारी के कारण वकसान फसलों की बिु ाई तर्ा कटाई के प्रवत सािधान रहने लिे है। कीट वनयवत्रण, पिु रोिों की जानकारी तर्ा खाद के प्रयोि आवद से वकसानों को अपनी फसलों को उवनत बनाने के अिसर वमलते हैं। टेलीविजन भी वकसानों को िैज्ञावनक जानकारी प्रदान करने का सिक्त माध्यम है। 2.3.2 थिाथ्य के क्षेत्र में (In the Field of Health)- स्िास्थ्य रखा के वलये विज्ञान एिं तकनीकी अपनाने पर अवधक से अवधक प्रयास वकये जा रहे है। आज संचार माध्यम की सवु िधा से िाँिों तक स्िास्थ्य सम्बवधी सचू नायें समय से पहुचँ ती है तर्ा लोि यह मान रहे है वक विज्ञान वकस प्रकार उनके जीिन को उवनत बनाने में सहायक वसद्ध हो रही हे। विज्ञान के द्वारा ही सि ं ामक रोिों, जैस-चेचक, हैजा, कुष्ठ रोि आवद का काफी हद तक काबू पा वलया िया है। कभी असाध्य लिने िाले ये लोि आज िैज्ञावनकों द्वारा खोजी िई दिाईयों के प्रयोि से असाध्य नहीं रह िये हैं। प्रवतििथ चलाये जाने िाले पोवलयों अवभयान के द्वारा पोवलयो जैसी खतरनाक बीमारी भारत से लिभि समाप्त हो िई है तर्ा आने िाले कुछ ििों में यह बीमारी जड़ से समाप्त हो जायेिी। उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 18 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem वपछले 20 ििों में भारत में अस्पतालों की संख्या लिभि दिु नु ी हो िई है। िैज्ञावनक प्रिवत एिं विकास ने आधवु नक समाज को बेहतर ढ़ंि से िह सब कुछ उपलब्ध कराने का प्रयास वकया है तावक सभी के स्िास्थ्य की बेहतर देखभाल की जा सके तर् बीमाररयों से बचा जा सके । आज असाध्य से असाध्य बीमारी के वनदान एिं उपचार हेतु विज्ञान द्वारा उपलब्ध उपकरण, संसाधन, तकनीकंेे, दिाइयाँ आवद इस बात के स्पि सक ं े त है वक विज्ञान आधवु नक समाज का वकस सीमा तक वहत सम्पादन कर रही है। कहना न होिा वक आधवु नक जीिन िैली को अपनाने के बािजदू भी विज्ञान हमारे जीिन को सख ु मय बनाने के वलए सार्थक भवू मका वनभा रही है। िारीररक स्िास्थ्य के सार्-सार् विज्ञान हमारे मानवसक स्िास्थ्य को भी बनाये रखने में एक महत्िपूणथ भवू मका वनभाती है तावक हमारा व्यिहार सतं ुवलत बना रहे तर्ा हम अनेक प्रकार की व्यावधयों से स्ियं ही बचे रहें। 2.3.3 अन्तरिक्ष के क्षेत्र में (In the Field of Space)-. आज हमारा देि अवतररक्ष के क्षेत्र में उन सात देिों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है जो उपग्रह छोड़ने की क्षमता रखते है। इसके द्वारा दरू स्र् विक्षा के क्षेत्र में िाववत हुई है। घर बैठे ही विक्षा को महत्िपणू थ कायथिमों की जानकारी हमें उपलब्ध हो जाती है। इसके अवतररक्त पृथ्िी के िातािरण ि महासािर पर वनिरानी रखने िाली तकनीकी की सहायता से हमें मौसम की पल-पल जानकारी उपलब्ध हो जाती है। अवतररक्ष में वस्र्त उपग्रहों की सहायता से उपज की सम्भािना, वमट्टी की िणु ित्ता, जलससं ाधन ि पयाथयिरण विकास की सचू ना प्राप्त होती रहती है। इसी के द्वारा दरू सच ं ार के क्षेत्र में व्यापक विकास सम्भि हो सका है वजसे हमारे देि की महत्िपणू थ उपलवब्धयों में विना जा सकता है। आज की िैज्ञावनक प्रिवत की अंधाधंधु दौड़ में यह अपररहायथ हो िया है वक हम इस दौड़ में स्ियं को सविय भािीदार बनाये तावक विश्व िैज्ञावनक प्रिवत में हम कदम से कदम वमला कर चल सके तर्ा स्िावभमान के सार् अपने देि का नाम ऊँ चा कर सके । इसमें कोई िक नहीं है वक िैज्ञावनक प्रिवत एिं विकास के क्षेत्र में असीम सम्भािनाएं समय के आिोि में वछपी पड़ी है वजवहें मात्र तलािने एिं संिारने की आिश्यकता है। 2.3.4 िक्षा एिं पिमार्ु ऊजाि के क्षेत्र में (In the Field of Defence and AtomicEnergy) रक्षा क्षेत्र के सदृु ढ़ होने पर ही हमारी तर्ा हमारे देि की सरु क्षा वनभथर करती है। िैज्ञावनक प्रिवत एिं विकास के द्वारा ही हमारी सैवय िवक्त एिं संिठन मजबतू हुआ है। आज हमारे पास विश्व स्तर के प्रमावणक एिं विश्वसनीय सैनय उपकरण उपलब्ध है जो हमें वकसी भी विपरीत पररवस्र्वत में चनु ौवतयों का सामना करने मंेे सक्षम बनाते हैं तर्ा देि की सरु क्षा करने मंेे समर्थ बनाते हैं। इस संदभथ में पृथ्िी, आकाि, वत्रिल ू , नाि ि अवग्न जैसी वमसाइलों के सफल प्रक्षेपण से लेकर अजथनु टैंक के वनमाथण तक रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में आिातीत विकास हुआ है। सार् ही, परमाणु ऊजाथ के क्षेत्र में भी हमने महत्िपणू थ सफलता प्राप्त की है। पररणामस्िरूप, खवनज अनसु ंधान हेतु ईधन वनमाथण एिं ऊजाथ उत्पादन के द्वारा कृ वि, वचवकत्सा आवद क्षेत्रों में हमारी उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 19 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem आत्म वनभथरता बढ़ी हे। बीजों के जैविक सधु ार के वलए विवकरण का उपयोि करके नई-नई वकस्मों का विकास हुआ है वजससे फसल उत्पादन में अभतू पिू थ िृवद्ध हुई है। इसके अवतररक्त कई अवय क्षेत्रों में भी हमने महत्िपूणथ सफलता प्राप्त की है जो परमाणु ऊजाथ पर आधाररत है। संक्षेप में, िैज्ञावनक प्रिवत के इस दौर में हमने इन दो उपरोक्त िवणथत क्षेत्रों में संतोिजनक कायथ वकया है। 2.3.5 जैि-प्रौद्योडगकी के क्षेत्र में (In the Field of Bio-Technology)- िैज्ञावनक दृविकोण से जैि-प्रौद्योविकी एक नया वििय है। इसके द्वारा हमने कृ वि क्षेत्र में पयाथप्त पररितथन वकये हैं। फसलों की नई-नई उवनतिील वकस्मों की जैि प्रौद्योविकी तकनीक के द्वारा विकवसत वकया िया है। इसे हम प्रवतवियािादी दृविकोण भी कह सकते है, अर्ाथत् रासायवनक उिथरकों की वनभथरता को कम करने के वलए ही जैविक उिथरकों का विकास वकया िया है। जैि तकनीकी द्वारा नये आनिु ांविक िुणों िाले जीिों का उद्गम, वफंिर वप्रवट्स द्वारा वपतृत्ि ि अपराध समस्याओ ं को सल ु झाना, नई औिवधयों का विकास तर्ा दैवनक उपयोि में आने िाली चीजों का विकास जैि- प्रौद्योविकी द्वारा ही सम्भि हो सका है। िैज्ञावनक विकास ने आज खाद्य उत्पादन के स्रोतों में भी काफी िाववत ला दी है। आज हमारे पास कृ वि, पिपु ालन, मिु ीपालन, मछली, मधमु क्खी पालन इत्यावद क्षेत्रों में काफी विकवसत तकनीकी ज्ञान उपलब्ध है। इसने जहाँ एक ओर खाद्यों के उत्पादन में िृवद्ध की है िहीं दसू रीं ओर उत्पादन में व्यय मानि श्रम की जवटलताओ ं को भी कम कर वदया है। सार् ही, आज उत्पावदत खाद्य सामग्री को जैि-तकनीकी की सहायता से काफी लम्बे समय तक सरु वक्षत भी रख सकते हैं। 2.3.6 व्यापाि तिा उद्योग के क्षेत्र में (In the Field of Business and Industry)- िैज्ञावनक देन को व्यापार तर्ा उद्योि जित में भी महत्ि के सार् स्िीकार वकया जाता है। व्यापार तर्ा उद्योिों ने िैज्ञावनक विवधयों तर्ा तकनीकों के द्वारा आिातीत सफलता अपार सफलता प्राप्त की है िे इस प्रकार है- टैक्सटाइल, उद्योि, उिथरक, उद्योि, इस्पात उद्योि, विद्यतु उपकरण, इलेक्ट्रोवनक्स, दिाईयों, कृ वि संयंत्र तर्ा िास्त्रािार आवद। अवय क्षेत्र वजनमें तकनीकी कौिल की आिश्यकता पड़ती है, िे हैं- पोवलयो क्लीवनक, औद्योविक तर्ा इवजीवनयररंि। िैज्ञावनक प्रिवत और विकास ने आज कामकाज के तरीकों मे ं े बहुत सधु ार लाकर कम पररश्रम से अवधक और अच्छा कायथ करने या उत्पादन करने की तकनीकें हमंेे प्रदान की हैं। चाहे घर की रसोई हो या खेत-खवलहान, फै क्ट्री, दफ्तर, दक ु ान या वकसी भी प्रकार का औद्योवबक प्रवतष्ठान, सभी के काम करने या श्रम करने के तरीकों का परू ी तरह आधवु नकीकरण करने में इस प्रकार के िैज्ञावनक एिं तकनीकी ज्ञान ने महत्िपूणथ भवू मका वनभाई है। कोठारी आयोि के अनसु ार- ”वकसी देि की धन सम्पदा तर्ा िैाीि में िृवद्ध उद्योिों द्वारा मानि िवकत तर्ा ससं ाधनों के उवचत उपयोि से होती हैं औद्योिीकरण के वलये प्राणी जन का प्रयोि उसकी िैज्ञावनक तर्ा तकनीकी विक्षा में प्रविक्षण पर वनभथर करता है। उद्योि वकसी भी व्यवक्त की अवधकतम क्षमताओ ं के सम्पादन की सम्भािनाओ ं के द्वार खोलते हैं।“ उत्तराखंड मक्त ु विश्वविद्यालय 20 विज्ञान विक्षण (A4 I) B.Ed.Spl.Ed. II Sem 2.3.7 भिन डनमािर्, परििहन, संखि ि जल सस ं ाधन के क्षेत्र में (In the Field of Building Construction, Transportation, Communication and Water Resource )- आज भिन वनमाथण के क्षेत्र में वजन अनठू ी कलाकृ वतयों को देखने के अिसर हमें उपलब्ध होते हैं िह सब िैज्ञावनक चमत्कार ही है। अिर सच कहें तो आज की दवु नया को अवत आधसवु नक बनाने में विज्ञान का बहुत बड़ा हार् है। वनमाथण कला में आधवु नकता इसी की देन है। आज भिन वनमाथण के वलये वजस प्रकार के यंत्र ि उपकरण हमें उपलब्ध हैं उनका विकास िैज्ञावनक प्रिवत से ही सम्भि हुआ है। आधवु नक समाज को अत्यवधक और अवत विकवसतपररिहन एिं संचार प्रणावलयों को उपलब्ध करोन में भी िैज्ञावनक प्रिवत एिं विकास का बहुत बड़ा योिदार है। आज हमें कोई भी दरू ी, दरू ी नहीं लिती चाहे हम विश्व के वकसी भी कोने में आना जाना चाहें या वकसी से कहीं भी बात करना चाहें और ेेयह सब िैज्ञावनक प्रिवत से ही सम्भि हो सका है। सार् ही, िैज्ञावनक प्रिवत एिं विकास ने आधवु नक समाज को प्रकृ त प्रदत्त जल संसाधनों के बीच रखरखाि एिं प्रबवधन हेतु पयाथप्त विकवसत तकनीकी ज्ञान भी उपलब्ध कराया है। इसी तकनीकी ज्ञानके पररणामस्िरूप हम बड़े-बड़े बाँधों का वनमाथण आसानी से कर लेते हैं, विकवसत जल प्रणाली को अपनाकर कृ वत्रम वसच ं ाई एिं पीने की समवु ?