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प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं प्राचीन भारतीय इततहास का तिभाजन एिं स्‍तरोत प्राचीन भारतीय इततहास का तिभाजन :- ई.प.ू ( B.C.) और ई. (A.D.) में अंतर इततहासक...

प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं प्राचीन भारतीय इततहास का तिभाजन एिं स्‍तरोत प्राचीन भारतीय इततहास का तिभाजन :- ई.प.ू ( B.C.) और ई. (A.D.) में अंतर इततहासकारों ने इततहास के अध्ययन को जीसस क्राइस्‍तट के जन्म से पूवण की घटनाओ िं को सतु वधाजनक बनाने के तिए प्राचीन इततहास को तीन इततहास में ई. प.ू (B.C.: Before Christ ) कहा भागों में बािंटा है, जाता है इसमें समय आगे से पीछे की ओर चिता 1. प्रागैततहातसक काि है। 2. आद्य- ऐततहातसक काि ई. (A.D.: Anno Domini) अथाणत ईसा के जन्म 3. ऐततहातसक काि का वर्ण इसमें समय पीछे से आगे की ओर चिता है। प्रागैततहातसक काल:- इस काि की सिंज्ञा इततहास के उस काि खिंण्ड को दी जाती है तजसमें जानकारी के तिए तितखत साधनों का स्‍तरोत पर्ू णता अभाव था साथ ही तत्कािीन मानव सभ्यता से कोसों दरू था। इस काि के इततहास के बारे में जानकारी के स्‍तरोत पत्थर के उपकरर्, तखिौने एविं तमट्टी के बतणन हैं। आद्य-ऐततहातसक काल:- इस काि की सिंज्ञा इततहास के उसक काि खिंण्ड को दी गई है, तजसकी जानकारी के स्‍तरोत के रूप में तितखत साक्ष्य उपिब्ध है तकिंतु उसकी तितप को पढने में इततहासकार और तितपकार सफि नहीं हो पायें हैं। इस काि खिंड में तसिंधु काि की सभ्यता एविं पुरातात्िक स्‍तरोत वैतदक काि का अध्ययन िातमि है। अतभलेख ऐततहातसक काल:- अतभिेख पत्थर अथवा धातु जैसी अपेक्षाकृ त कठोर इस काि की जानकारी के स्‍तरोत के रूप में तितखत सतहों पर उत्कीर्ण तकये गये पाठन सामग्री को कहते एविं पठनीय स्‍तरोत उपिब्ध हैं, भारतीय सिंदभण में यह है। िासक इसके द्वारा अपने आदेिो को इस तरह कािखिंण्ड छठी िताब्दी पवू ण से िरुु होता है। 1 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं उत्कीर्ण करवाते थे, तातक िोग उन्हे देख सके एविं पढ़  सवणप्रथम तसक्कों पर िेख तिखवाने का कायण सके और पािन कर सकें । तहदिं यवन िासकों ने तकया अतभिेखों के अध्ययन को एपीग्राफी कहते हैं वहीं  स्‍तिर्ण तसक्का:- सवणप्रथम तहन्द यवन िासकों प्राचीन तितपयों का अध्ययन "पेतियोग्राफी" ने स्‍तवर्ण तसक्का जारी तकया सवणप्रथम तहदिं ी यवन कहिाता है। हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त अतभिेख वेसे िासक तमनािंडर था तजसने स्‍तवर्ण तसक्का जारी तो सबसे प्राचीन माने जाते हैं, परिंतु उन्हें अभी तक न तकया था ,कुर्ार् िासकों में सवणप्रथम तवम पढ़पाने के कारर् उनकी प्राचीनता तसद्ध नहीं होती है कै डतफिेसस ने भारतवर्ण में स्‍तवर्ण तसक्का अत: मध्य एतिया के बोगजकोई से प्राप्त 1400 पवू ण चिाया अतधकािंि इततहासकार तवम का अतभिेख सवाणतधक प्राचीन माना जाता है। यह कै डतफिेसस को ही भारत में सवणप्रथम स्‍तवर्ण अतभिेक कीिक तितप में है तजसकी खोज वीकिर तसक्का जारी करने का श्रेय देते हैं जबतक तमनाडिं र महोदय ने 1907 ईस्‍तवी में की थी। दतक्षर् भारत में का स्‍तवर्ण तसक्का कौिािंबी से प्राप्त हो चक ु ा है। मिंतदरों की दीवारों पर चोि कािीन अतभिेख तमिते नोट- उत्तर प्रदेश लोक सेिा आयोग भारत में हैं भारत की प्राचीनतम अतभिेख अिोक के हैं तजसे सिणप्रथम स्‍तिर्ण तसक्का चलाने का श्रेय तिम सवणप्रथम जेम्स तप्रसिं ेप ने पढ़ा था। अतभिेख तसक्कों कै डतिशेसस को देता है। की अपेक्षा ज्यादा प्रमातर्क साक्ष्य के रूप में स्‍तवीकार गप्तु िासकों में सवणप्रथम स्‍तवर्ण तसक्का चिाने का श्रेय तकया जाते हैं क्योंतक यह राजाओ िं की घोर्र्ा होते हैं। चिंद्रगप्तु प्रथम को है। तसक्का(coin) सातहत्यक स्‍तरोत तसक्के अथाणत मद्रु ा भी भारतीय इततहास को जानने का प्रमख ु स्रोत है इससे ना तसफण तत्कािीन िासकों धातमणक ग्रथ ं की आतथणक तस्‍तथतत के बारे में जानकारी तमिती है बतकक इसके साथ-साथ धातुओ िं व राजनीततक तस्‍तथतत की भी जानकारी प्राप्त होती है धातमणक ग्रिंथों में मख्ु यतः तीन तवभाजन है  भारतीय मुद्रा िास्त्र के जनक- जेम्स तप्रिंसेप 1-ब्राह्मर् सातहत्य  तसक्कों का अध्ययन- न्यमू ैसमेतटक्स । 2-बौद्ध सातहत्य  भारतीय मद्रु ा पररर्द -इिाहाबाद में 1910 में 3-जैन सातहत्य स्‍तथातपत । (नोट- तनम्नतलतखत स्रोत भारतीय इततहास को  भारतीय उपमहाद्वीप के आरिंतभक तसक्के आहत तसक्के हैं। जानने के स्रोत के रूप में जानकारी के तलए रखे 2 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं गए हैं इन का तिस्‍ततृत िर्णन उनसे सबं तं धत चैप्टर  हर वेद का एक या एक से अतधक में तमलेगा।) ब्राह्मर्ग्रन्थ है। आरण्यक 1. ब्राह्मर् सातह्य  आरण्यक तहन्दू धमण के पतवरतम और िेद सवोच्च ग्रन्थ वेदों का गद्य वािा खण्ड है। ये  वेदों को औपौरुर्ेय देव तनतमणत एविं श्रतु त वैतदक वाङ्मय का तीसरा तहस्‍तसा है और वैतदक (सनु ा हुआ)माना जाता है, वेद िब्द तवद से सिंतहताओ िं पर तदये भाष्य का दसू रा स्‍ततर है। तनकिा है तजसका अथण है जानना, सामान्य रूप  इनमें दिणन और ज्ञान की बातें तिखी हुई हैं, से इसका अथण ज्ञान होता है। कमणकाण्ड के बारे में ये चपु हैं। इनकी भार्ा वैतदक  वेदों के सक िं िनकताण कृ ष्र् द्वैपायन वेद व्यास सस्‍तिं कृत है। थे।  इनको रहस्‍तय ग्रिंथ भी कहा जाता है।  वेद चार है ऋग्वेद सामवेद यजवु ेद अथवणवेद उपतनषद इन चारों वेदों को सिंतहता भी कहते हैं।  उपतनर्द का िातब्दक अथण है गरुु के समीप  वेद सस्‍तिं कृत भार्ा पद्य में तिखे गए हैं बैठ कर तिष्य जो ज्ञान प्राप्त करें । अपवाद स्‍तवरूप यजवु ेद गद्य पद्य दोनों में है|  वैतदक सातहत्य का अिंततम भाग उपतनर्द है ब्राह्मर् इसतिए उपतनर्दों को वेदािंत भी कहते हैं  जो यज्ञ की व्याख्या करें वही ब्राह्मर् है,  उपतनर्दों का प्रमख ु तवर्य आत्मतवद्या है ब्राह्मर् ग्रिंथों को वेदों का पररतिष्ट माना जाता है  उपतनर्दों की रचना गिंगा नदी घाटी में हुई है इसमें वेदों की व्याख्या गद्य में की गई हैं ब्राह्मर् । ग्रथिं ों में राजा परीतक्षत के बाद एविं तबम्बसार से नाराशंसी सातह्य पहिे की घटनाओ िं की जानकारी तमिती है।  इसमें राजाओ िं व ऋतर्योोँ के स्‍तततु तपरक गीत है 3 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  नाराििंसी सातहत्य से तवतदत होता है तक  बौद्ध ग्रिंथ दिरथ जातक में इसकी कथा का वैतदक काि में इततहास िेखन की परिंपरा मौजदू प्रारिंतभक उकिेख तमिता है एविं जैन ग्रथिं थी। पउमचररयिं रामायर् का जैन सिंस्‍तकरर् है। िेदांग  1930 के दिक में रामास्‍तवामी पेररयार ने  वेदों को समझने के तिए छह वेदािंगों की सच्ची रामायर् का िेखन भी तकया था। रचना की गई यह वैतदक सातहत्य का भाग नहीं  सवणप्रथम 12 वीं िताब्दी में ततमि में माने गए हैं । रामायर् का अनुवाद कम्बन ने "ईरामावतारम"  प्रमख ु वेदागिं तनम्न है- नाम से तकया।  व्याकरर् (मुख)  मगु ि काि में रामायर् का फारसी अनवु ाद अकबर के समय अब्दि ु कातदर बदायनू ी ने व  ज्योततर् (नेर) िाहजहािं के समय इब्नहरकरर् ने तकया।  तनरुक्त (कान)  बिंगाि में रामायर् का अनवु ाद कृ ततबास ने  तिक्षा (नातसका) तकया इसे बिंगाि की बाइतबि कहा जाता है।  ककपसरू (हाथ)  छिंद (पैर) महाभारत रामायर्  परिंपरा के अनसु ार इस ग्रिंथ के तितपक भगवान  रामायर् वाकमीतक द्वारा तिखा गया आतद श्री गर्ेि थे िेतकन सातहत्य में इसे वेदव्यास की काव्य है इसमें सात कािंड (अध्याय) हैं मि ू रूप कृ तत माना जाता है । से इसमें 6000 श्लोक थे जो बढ़कर 24000 हुए  महाभारत में कुि 18 पवण ( अध्याय) हैं इसतिए इस ग्रिंथ का नाम "चतुनणतविततसाहहस्त्री  भगवद्गीता इसके भीष्म पवण का भाग है िािंतत पवण सिंतहता" पड़ा महाभारत का सबसे बड़ा पवण है 4 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  महाभारत का प्राचीन नाम जय था इसतिए  इसमें तििनु ाग विंि से िेकर गप्तु विंि तक उसको "जयसिंतहता" भी कहते हैं । के इततहास की जानकारी तमिती है।  महाभारत के तवर्य में यह भी कहा जाता है तक  परु ार्ों में ही कृ त ,रेता, द्वापर एविं कियगु इसे परू ा परू ा एक बार में कभी नहीं पढ़ना चातहए नामक चार यगु बताए गए हैं श्रीराम का सबिं धिं क्योंक रोग व्यातधयािं आ जाती हैं। रेता व कृ ष्र् का द्वापर से था। अनुिाद- ततमि में पेरूनदेवनार ने भारतबेडवा  मत्स्‍तय परु ार् सबसे अतधक प्राचीन परु ार् है। नाम से महाभारत का अनवु ाद तकया ,तेिगु ु में  महात्मा ज्योततबा फूिे ने 1876 में महाभारत का अनवु ाद ननैया प्रारिंभ तकया और ‘धमणततृ ीयरत्न (परु ार्ों का भिंडाफोड़)’ नामक ततकन्ना ने पर्ू ण तकया। ननैया महाभारत का अनवु ाद पस्‍तु तक तिखी, जबतक रामास्‍तवामी नायकर ने करते समय पागि हो गए थे। परु ार्ों को पररयों की कथा कहा।  माधव कदािी ने असतमया में महाभारत का  वेदरयी :- ऋग्वेद, सामवेद एविं यजवु ेद को कहते अनवु ाद तकया हैं ।  मािधर वसू ने भगवत गीता का बािंग्िा  प्रस्‍तथानरई- उपतनर्द, ब्रह्मसूर एविं गीता को अनवु ाद श्री कृ ष्र् तवजय नाम से तकया। प्रस्‍तथानरई कहा जाता है।  महाभारत का फारसी अनवु ाद अकबर के समय रजनामा नाम से अब्दि ु कातदर बदायिंनू ी ने धमण सरू तकया।  धमणसरू ों में वर्ाणश्रम- धमण, व्यतक्तगत आचरर् राजा एविं प्रजा आतद के कतणव्य का तवधान है। परु ार्  इनकी रचना 600 ई.प.ू से 300 ई.प.ू के मध्य हुई।  परु ार्ों के रचतयता िोमहर्णक व उनके परु  प्रमख ु धमणसरू :- आपस्‍ततिंभ धमणसरू ( दतक्षर् उग्रश्रवा को माना जाता है कहीं-कहीं वेदव्यास भारत में रतचत), गौतम धमणसरू , वतिष्ठ धमणसरू को भी परु ार्ों का कताण माना जाता है। और तवष्र्ु धमणसरू ।  परु ार् भतवष्य िैिी में तिखे गए हैं 5 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  वर्णव्यवस्‍तथा, वर्णसिंकर और तमश्रजातत का का स्‍तपष्ट वर्णन सरू सातहत्य में ही तमिता है। जैन सातह्य  तवष्र्ु धमणसरू में ही सवणप्रथम अस्‍तपश्ृ य िब्द का  जैन सातहत्य को आगम कहा जाता है जो प्रयोग हुआ है। तद्वतीय जैन सगिं ीतत में ही आगम तितपबद्ध हुआ  आपस्‍ततभिं ने दस वर्ण के ब्राह्मर् को 100 वर्ण के था क्षरीय से बड़ा बताया है।  जैतनयों की प्राचीनतम रचना अधणमगधी में है भगवती सरू ,भद्रबाहु चररर ,पररतिष्टपवणन, ककपसरू कुवियमािा इत्यातद प्रमख ु जैन ग्रिंथ है बौद्ध सातह्य तजनसे भारतीय इततहास के बारे में भी तवस्‍तततृ जानकाररयािं तमिती हैं।  प्राचीन भारत के इततहास को जानने का एक प्रमख ु स्रोत बौद्ध ग्रिंथ भी हैं प्रारिंतभक बौद्ध ग्रिंथ मध्य गिंगा नदी घाटी अथाणत तबहार एविं पवू ी उत्तर अन्य सातह्य प्रदेि में तिखे गए प्राचीनतम बौद्ध ग्रिंथ पािी व्याकरर् ग्रथ ं :- भार्ा में तिखे गए तजनमें से प्रमख ु तरतपटक है 1-अष्टाध्याई -पातर्तन  कुछ बौद्ध सातहत्य सिंस्‍तकृत में भी तिखा गया 2-महाभाष्य-पतिंजति तजसमें वसतु मर अश्वघोर् एविं नागाजणनु की 3-वततणका-कात्यायन रचनाएिं प्रमख ु है अवदानितक, तदव्यावदान  पातर्तन, कात्यायन एविं पतजिं ति को 'मतु नरय' ितित तवस्‍ततार इत्यातद पस्‍तु तके सिंस्‍तकृत में ही है। कहा जाता है वसतु मर का तवभार्ा िास्त्र बौद्ध धमण की बाइतबि 4 -तोककातप्पयम- 'तद्वतीय सिंगम' का एक मार िेर् कहा जाता है यह भी सिंस्‍तकृत भार्ा में ही तिखा ग्रिंथ है। अगस्‍तत्य ऋतर् के बारह योग्य तिष्यों में से एक गया है। 'तोककातप्पयर' द्वारा यह ग्रिंथ तिखा गया था। सरू  धम्मपद - इसे बौद्ध धमण की गीता कहते हैं िैिी में रचा गया यह ग्रिंथ ततमि भार्ा का प्राचीनतम व्याकरर् ग्रिंथ है। 6 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं तचतक्सा संबध ं ी पुस्‍ततकें :- तिदेशी यातरयों के तििरर्  रस रत्नाकर- नागाजणनु  चरक सतिं हता- चरक  अष्टािंग हृदय वाग्भट  आयवु ेद दीतपका चक्रपातर् दत्त( यह चरक सतिं हता की टीका है)  िातिहोर- परमार राजा भोज राजनीतत शास्‍तर से संबंतधत पुस्‍ततकें  अथणिास्‍तर:- कौतटकय की इस पस्‍तु तक को 1905 में प्रोफे सर सामिास्‍तरी में मैसरू सिंग्राहािय से प्राप्त कर 1909 में ई. में अनवु ाद कर प्रकातित करवाया।  पच िं तरिं :- तवष्र्ु िमाण  कृ त्यककपतरू:- िक्ष्मीधर (गोतवद चदिं गहड़वाि का मिंरी)  यतु क्तककपतरु:- भोज  िक्र ु नीतत :-िक्र ु ाचायण 7 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं भारत के तितभन्न नाम और उनके स्त्रोत  ईसामी ने अपनी रचनाओें में भारत को कुछ तवदेिी सवणप्रथम तसिंधु तट वातसयों के सिंपकण में तहन्दस्‍तु तान कह कर सिंबोतधत तकया है वहीं अमीर आए इसीतिए उन्होंने भ्रमवि परू े देि को ही तसधिं ु या खसु रों भारत को तहदिं कहता है। इडिं स नाम से पक ु ारा।  वृहत्तर भारत (Greater India) की अवधारर्ा  कुछ इततहासकार भारत नाम को एक परु ाने सवणप्रथम मत्स्‍तयपरु ार् में तमिती है तजसमें भारत प्राचीन राजविंि भरत से स्‍तवीकृ त करते हैं उनका वर्ण के साथ ताम्रपर्ी ( श्रीििंका), समु ारा, जावा, राज्य सरस्‍तवती व यमनु ा नतदयों के बीच में था किंबोतडया, सतहत आठ द्वीप िातमि थे।  जैन धमण के अनसु ार उनके प्रथम तीथंकर  सप्तसैंधव- सरस्‍तवती, तवपािा,परुष्र्ी, तवतस्‍तता, ऋर्भदेव के परु सम्राट भरत के नाम पर देि का अतस्‍तकनी और तसधिं ु इन सात नतदयों द्वारा तसतिं चत नाम भारत पड़ा। क्षेर को आयों द्वारा सप्तसैंधव कहा गया।  परु ार्ों व अिोक के अतभिेखों में हमारे देि का ध्यातव्य है तक सप्तसैंधव में अफगातनस्‍ततान तसिंधु नाम जिंबदू ीप तमिता है भारत में जम्बदू ीप नामक पिंजाब भी िातमि थे। वृक्ष बहुतायत में तमिने के कारर् इसको जम्मू  मनु स्‍तमृतत में सस्‍तवती एविं दृर्द्वती के बीच का क्षेर दीप कहा गया। ब्रह्मावतण तथा गगिं ा यमनु ा दोआब क्षेर ब्रह्मतर्ण  यनू ातनयों ने इस देि को 'इतिं डया' कहकर पक ु ारा, नाम से वतर्णत है। सवणप्रथम इतिं डया िब्द का प्रयोग पािंचवी िताब्दी ईसा पवू ण में इततहास के तपता हेरोडोटस ने तकया उसके बाद इतिं डया िब्द का प्रयोग मेगास्‍तथनीज ने तकया  चीतनयों ने भारत को तयन-तू कहा।  भारत वर्ण का सबसे पहिा नाम भारत (भरधवि) खारवेि के हाथी गम्ु फा अतभिेख में आया।  एक प्रदेि के रूप में सबसे पहिे भारत का वर्णन पातर्नी की अष्टाध्याई में है।  भारत का नाम तहदिं स्‍तु तान सवणप्रथम 262 ईसवी में ईरान के ससानी िासक िाहपरु प्रथम के 'नक्िे रुस्‍ततम' अतभिेख में तमिता है 8 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं प्रागैततहातसक काल 2. तपथेकेन्रोपस या होमोइरेक्टस:- सीधे खडे होकर चिने वािा कतप मानव तजनके अविेर् जावा ( एतिया) में तमिे हैं, ये 17 िाख वर्ण परु ाने हैं। 3. तनएन्डरथल मानि:- इनके अविेर् जमणनी की तनएन्डर वैिी में तमिे हैं, ये मानव के ऐसे पहिे पवू णज थे जो तहमाच्छातदत क्षेर से होते हुए समिीतोष्र् क्षेरों में पहुचिं गये तनएन्डरथि ने सवणप्रथम िव तवसणजन तक्रया अपनाई। 4. होमोसेतपयंन्स:- यह आधतु नक मानव है, तजसने पर्ू णत: सीधे खडे होकर चिना, भार्ा मानि तिकास का क्रम:- प्रयोग समहू में रहना, इत्यातद क्षमताएिं  प्रागैततहातसक मानव के जीवश्म मुख्यत: तवतकतसत कीं। प्िीस्‍तटोतसन यगु की चट्टानों से तमिें हैं। क्रोमेगनन मानि :- यह होमोसेतपयन्िं स की  भारत के तिवातिक पहातडयों से उन वानरों के उपजातत थी, वतणमान मानव का अिंततम पवू णज, जीवश्म तमिे हैं, तजनसे मानव और वतणमान पररवार बनाकर गफ ु ाओ िं में तनवास, पत्थर, हाथी वानरों का अन्तत: तवकास हुआ। इन्हें दातिं के हतथयार एविं आभर्ू र्, जानवरों के खाि रामातपथेकस नाम तदया गया है। के वस्‍तर, किा प्रेमी तचरकार, िवाधान की प्रथा,  इसके बाद मानव तवकास का क्रम तनम्न तितखत इसके प्रथम अविेर् फ्ािंस के क्रोममेगनन घाटी है- से मैकग्रीगर महोदय ने सन 1820 में खोजा था। 1. आस्‍तरेलोतपतथकस:- के न्या के ओकदबु ाई गोजण के तकु ाणना झीि में इसका 48 िाख वर्ण प्रागैततहातसक काल:- का जीवाश्म पाया गया, इसतिये इन्हें मानव  प्रागैततहातसक काि या प्रस्‍ततर यगु ीन सिंस्‍तकृ ततयों का पवू णज माना जाता है, इन्हें प्रोटोमानव या को पहिी बार डेनमाकण के तवद्वान सी.जे. आद्य मानव कहा जाता है , ये प्रथम मानव थॉम्पसन ने 1820 में मानव इततहास को थे जो खड़े होकर चिने िगे। कोपेनहेगन सिंग्रहािय की सामग्री के आधार पर तीन वगों में तवभातजत तकया- 9 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  इसको तवभाजन करने का एक आधार यह भी है तक प्रागैततहातसक काि के जो औजार एविं 2. हैण्ड एक्स संस्‍तकृततः- हतथयार प्राप्त हुए वे पत्थर अथाणत पार्ार् के है  सवणप्रथम रावटण ब्रसू फूट ने 1863 ई0 में मद्रास के इसतिए मानव इततहास के प्रारतम्भक काि के पास पकिवरम में प्रथम हैण्ड एक्स (हाथ की पार्ार् काि का नाम तदया गया। कुकहाड़ी) प्राप्त की, इन्हीं रावटण बसू फ्ूट को मानव सभ्यता के इस प्रारतम्भक काि को तीन भारतीय प्रागैततहातसक परु ातत्व का जनक मानते भागों में बाटतें हैं- हैं। 1. पुरापाषार् काल ( तनम्न परु ापार्ार्, मध्य  हैण्ड एक्स सिंस्‍तकृतत के उपकरर् मद्रास के परु ापार्ार्, उच्च परु ापार्ार्) बादमदरु ाई व अततरमपक्कम से प्राप्त हुए। 2. मध्य पाषार् काल 3. नि पाषार् काल 1. (b) मध्यपुरापाषार् कालः- इसको फिक सिंस्‍तकृतत भी कहते है, फिक 1. पुरापाषार् कालः- अथाणत पत्थरों को तोड़कर बनाया औजार। इस काि में मनष्ु य पर्ू ण रूप से तिकार पर तनभणर था, 1. (C) उच्च पुरापाषार् कालः- मनष्ु य को अतग्न का ज्ञान था पर अतग्न के प्रयोग से  मनष्ु य ने ब्िेड सरीखे नक ु ीिे पत्थरों का प्रयोग अनजान था। इस काि में तकया। प्रमख ु स्‍तथलः-  आधतु नक मानव होमोसेतपयिंस का तवकास इसी  भीमवेटका (M.P.) तचतरत गफ ु ाएिं व िैिाश्रय काि में हुआ। प्राप्त हुए।  बेिन घाटी (U.P.) — इिाहाबाद, तमजाणपरु 2. मध्य पाषार् कालः-  इस काि में प्रयोग होने वािे पत्थर बहुत छोटे 1. (a) तनम्न पुरापाषार् कालः- होते थे इसीतिए इसे ‘माइक्रोतिथ’ कहते हैं। तनम्न परु ापार्ार् काि में मख्ु यतः 2 प्रकार के पत्थरों  मानव के अतस्‍तथपजिं र अथाणत मानव के अविेर् के प्रकार तमिे तजसे सिंस्‍तकृतत कह कर इसे पार्ार् मध्य पार्ार् काि से ही तमिने प्रारम्भ हुए। काि से जोड़ा गया। प्रमुख स्‍तथलः- 1. चापर — चातपंग पेबुल सस्‍तकृतत  बागोर — भीिवाड़ा (राजस्‍तथान) भारत का 2. हैण्ड — एक्स संस्‍तकृतत सबसे बड़ा मध्यपार्ातर्क आवास स्‍तथि 1. चापर — चांतपग पेबुल संस्‍तकृततः-  सराह नहर राय — उत्तर प्रदेि इस काि के उपकरर् पिंजाव के सोहन नदी घाटी से प्राप्त हुए इसीतिए इसे सोहन सिंस्‍तकृतत भी कहते हैं। 10 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  महदहा — प्रतापगढ़ (उ0प्र0) हड्डी व सींग के ताम्र पाषार् कालः- उपकरर् तमिे।  मनष्ु य ने सवणप्रथम तजस धातु का प्रयोग तकया  आदमगढ़ — होिगािंबाद(म0प्र0) से पिपु ािन वहा तािंबा थी। के प्राचीनतम साक्ष्य तमिे।  इस काि का नामकरर् भी इसी धातु के नाम पर  लघं नाज — गजु रात हुआ।  िीरभानपरु — प0 बगिं ाि  ताम्र पार्ार् काि, हड़प्पा की कास्‍तिं य यगु ीन सिंस्‍तकृतत से ठीक पहिे की है। अतः ताबािं तफर 3. नि पाषार् कालः- कािंसा का प्रयोग हुआ। परन्तु कािाक्रमानसु ार  नव पार्ार् काि के स्‍तथिों की खोज का श्रेय अथाणत समय से कई ताम्र सस्‍तिं कृततया,िं हड़प्पा भारत में डॉ0 प्राइमरोज को जाता है। अथाणत कािंस्‍तययगु ीन सभ्यता के बाद भी आती है।  स्‍तथिों के अततररक्त ओजारों की सवणप्रथम खोज कुछ ताम्रपाषार् सस्‍तं कृततयाः- इस काि में, उ0प्र0 के टोंस नदी घाटी में 1860में िेमेन्सरु ीयर ने खोजे।  आहार सस्‍तं कृतत — 2800-1500 ई. प.ू , उदयपरु  नवपार्ातर्क स्‍तथि ‘मेहरगढ़’ (ब्ितू चस्‍ततान) से ही कृ तर् का साक्ष्य प्राप्त हुआ  कायथा संस्‍तकृतत — 2400-1700 ई. प.ू , चिंबि नदी  जबतक कृ तर् का प्राचीनतम साक्ष्य िहुरादेव से तमिे है।  मालिा संस्‍तकृतत — 1900-1400 ई. प,ू ् नमणदा क्षेर प्रमख ु स्‍तथलः-  रंगपुर संस्‍तकृतत — 1700-1400 ई. प.ू ,  तचरांद — तबहार के छपरा तजिे में तस्‍तथत। यहाोँ गजु रात से प्रचरु मारा में हड्डी के उपकरर् प्राप्त हुए।  जोिे सस्‍तं कृतत — 1500-900 ई. प.ू ,  बुजणहोम — श्रीनगर, से प्राप्त कब्रों से कुत्तों को महाराष्र (दैमाबाद व इनामगाोँव) मातिक के साथ दफनाया गया।  प्रभास संस्‍तकृतत:- 2000- 14000  कोतडडहिा — इिाहाबाद (उ0प्र0) यहाोँ से ई.प.ू , चावि का प्रचीनतम साक्ष्य (6000 ई0पवू ण) प्राप्त  सािलदा संस्‍तकृतत:- 2300- 2000 हुआ। ई.प.ू , धतु िया, महाराष्र  चौपानी माडों — इिाहाबाद, हाथ से तनतमणत मृदभािंड (तमट्टी के बतणन) प्राप्त हुए। उ्तर प्रदेश से जुडे ताम्र पाषार् कालीन स्‍तथल:- 1. खैराडीह 2. नहरन 3. सोहगौरा ( गोरखपरु ) 11 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं तसन्धु घाटी सभ्यता  1921 में सवणप्रथम इस सभ्यता के अविेर्  चतिंु क पतिमी पजिं ाब के तनकट हड़प्पा स्‍तथि पातकस्‍ततान के िाहीवाि तजिे के हड़प्पा नामक सबसे पहिे खोजा गया इसतिए इसे तसन्धु घाटी स्‍तथान से तमिे इसतिये इसे हड़प्पा सभ्यता कहा सभ्यता कहते हैं। गया।  हड़प्पा सभ्यता के प्रारतम्भक स्‍तथि तसन्धु नदी के  हड़प्पा सभ्यता तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में आस पास के तन्द्रत थे इस कारर् तसन्धु नदी घाटी से एक है, तसिंधु नदी व उसकी सहायक नतदयों के या सैन्धव सभ्यता कहते हैं। प्रदेिों में इस सभ्यता का तवकास हुआ था । कुछ  तसन्धु के तनवातसयों ने प्रथम बार कािंस्‍तय धातु का तवद्वान तो इसका समय 1000 वर्ण ई.प.ू बताते हैं प्रयोग तकया इसतिए इसे कािंस्‍तय यगु ीन सभ्यता और कुछ तवद्वान तो इसका समय 2500 ई.प.ू भी कहते हैं। मानते हैं।  हड़प्पा सभ्यता के उदय को प्रथम नगरीय क्रातन्त  डॉ.राजबिी पाण्डे ने इस सभ्यता का काि भी कहते हैं। 5000 ई.प.ू मना है। डॉ.सी.ऐि. फ्े बी ने इस सभ्यता का समय 2800 से 2500 ई.प.ू माना है। सभ्यता तिस्‍ततार:- डॉ.फ्ें कफटण ने इसका काि 2800 ई.प.ू माना है  इस सभ्यता का मुख्य तवस्‍ततार भारत एविं तथा डॉ.धमणपाि अग्रवाि ने रे तडयोकाबणन-14 पातकस्‍ततान देिों में था िेतकन अकप रूप में तसिंन्धु परीक्षर् प्रर्ािी के आधार पर इस सभ्यता का सभ्यता का तवस्‍ततार अफगातनस्‍ततान में भी था। समय 2300 ई.प.ू से 1750 ई.पू.बताया है। क्योंतक अफगातनस्‍ततान से सोतणघई और  यद्दतप तसिंधु सभ्यता के उदय काि के तवर्य में मतु ण्डगाक सैन्धव स्‍तथि तमिे हैं। तवद्वानों में मतभेद हैं परिंतु इसमें कोई सिंदहे नहीं तसन्धु सभ्यता का तिस्‍ततारः (अतन्तम छोर) की यह तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में से एक है।  इस काि खण्ड के 3 नाम प्रचतित है और तीनों का अतभप्राय एक है। 1. तसन्धु घाटी सभ्यता 2. हडप्पा सभ्यता 3. कांस्‍तय युगीन सभ्यता 12 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं Note:- सैन्धि सभ्यता का आकार तरभज ु ाकार है। 4. राजस्‍तथान:- कािीबिंगा, बािाथि एविं स्‍तथल उ्खननकताण तस्‍तथतत तरखानवािाडेरा । हड़प्पा दयाराम पजिं ाब साहनी (पातकस्‍ततान) 5. उ्तर प्रदेश:- आिमगीरपरु ( मेरठ),अम्बाखेड़ी, मोहनजोदड़ो आर डी तसन्ध बड़गािंव, हुिास (सहारनपरु ), माण्डी (मुजफ्फरनगर) बनजी (पातकस्‍ततान) सनौिी (बागपत)। सत्ु कागेडोर अिणस्‍तटाइन बितू चस्‍ततान  सनौिी (बागपत) से 100 से अतधक मानव (पातकस्‍ततान) िवाधान, एक साथ 3 िवों वािा कब्र तमिे हैं, चन्हूदाड़ो मैके तसन्ध यह उत्तर हड़प्पा स्‍तथि है। पातकस्‍ततान  मािंण्डी (मजु फ्फरनगर) से टकसाि गृह का साक्ष्य रोपड़ यज्ञदत्त िमाण पजिं ाब (भारत) तमिा है। कािीबिंगा बी.बी.िाि गगिं ानगर 6. गुजरात:- सवाणतधक सैन्धव स्‍तथि यहीं से प्राप्त (राजस्‍तथान) हुए हैं। आिमगीरपरु यज्ञदत्त िमाण मेरठ (उ0प्र0) (A) कच्छ का रर्:- सुरकोटडा, धौलािीरा, धौिावीरा आर.एस. तवष्ट कच्छ का रर् देसलपरु िोथि एस.आर. राव अहमदाबाद (B) खम्भात की खाडी:- िोथि, रिंगपरु , (कातठयावाड़ा) कुनतु ासी, रोजतद, प्रभासपाटन, नागेश्वर, तिकारपरु , तेिोद, भोगन्नार। प्रदेश के आधार पर ितणमान भारत में तस्‍तथत  रोजतद और रिंगपरु हड़प्पोत्तर स्‍तथि ( हड़प्पा सैन्धि स्‍तथल:- सभ्यता के बाद) हैं। 1. जम्मू कश्मीर:- मािंडा 7. महाराष्‍टर:- दैमाबाद 2. पजं ाब:- रोपड़ ( रूपनगर), सघिं ोि, ढेर- माजरा,  ऐसे स्‍तथि जो प्राक् हड़प्पा, हडप्पाकािीन एविं सिंघोि, बाड़ा, चक 86, कोटिातनहगिं खान। हडप्पोत्तर, तीनों काि का प्रतततनतधत्व करते हैं- सरु कोटडा, धौिावीरा, राखीगढ़ी और मािंडा। 3. हररयार्ा:- राखीगढ़ी कुर्ाि, तमताथि, बर्ाविी, बाि,ू तससवि 13 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं सैन्धि सभ्यता के तनमाणता रायबहादरु दयाराम साहनी ने पतिमी पजिं ाब  मख्ु य रूप से चार प्रजाततयों के अविेर् प्राप्त (वतणमान-पातकस्‍ततान) के मोण्टगोमरी तजिे में हुए।– रावी नदी के तट पर हडप्पा को खोजा इसतिये हड़प्पा की खोज का श्रेय उन्हीं को जाता है। 1. प्रोटोऑस्‍तरे लायड:- यह सैन्धव क्षेर में आने  जान मािणि ने सवणप्रथम इसे तसन्धु सभ्यता नाम वािी पहिी प्रजातत थी। इततहासकारों के तदया। अनसु ार वतणमान में यह मध्य भारत में अनसु तू चत  उसके बाद बड़े पैमाने पर उत्खनन कायण प्रारम्भ जातत एविं जनजातत के रूप में तवद्यमान है। तकए गए और एक परू ी नगरीय सभ्यता तवश्व के सामने प्रगट हुई। 2. भ-ू मध्य सागरीय ( मेतडटेररयन):- सैन्धव सभ्यता के मख्ु य तनमाणता इसी प्रजातत को माना प्रमुख स्‍तथलों से सम्बतन्धत मह्िपूर्ण तथ्य जाता है। जो तक वतणमान में दतक्षर् भारत में बसी हुई है। हडप्पाः- खोजकताण:- दयाराम साहनी ( 1921) 3. अडपाइन:- यह प्रजातत गजु रात, महाराष्र, उत्खनन:- दयाराम साहनी, माधवस्‍तवरूप वत्स, सर तसन्धु प्रदेि एविं गिंगा के मैदानों में पाये जाती हैं। मातटणन व्हीिर। तिशेषताये:- 1. मंगोलायड:- यह प्रजातत तहमाियी प्रदेि  12 कमरों का अन्नागार यहाोँ की तविेर्ता है। एविं पवू ी भारत में पायी जाती है।  हड़प्पा के आवास क्षेर के दतक्षर् में एक क्रतबस्‍ततान तस्‍तथत है तजसे R-37 समातध नाम कै से प्रकाि में आयी सैन्धव सभ्यताः- तदया गया।  चाकसण मैसन ऐसे पहिे व्यतक्त थे तजन्होनें 1826  इसे सैन्धव सभ्यता का अधणऔद्योतगक नगर भी में सातहवाि तजिे में तस्‍तथत एक हड़प्पा टीिे का कहा जाता है। उकिेख तकया था, िेतकन उनकी इस बात पर  एक स्त्री के गभण के पौधा तनकिता हुआ तदखाया तकसी ने ध्यान नहीं तदया। गया है जो उवणरता का प्रतीक है।  1853 में कतनघिंम को हड़प्पा से प्राप्त वृर्भ की  यहािं पर दो टीिे तमिे हैं तजसमें से एक Mound- आकृ तत वािी एक महु र तमिी तजसे गिती से AB एविं Mound - F हैं। कतनघमिं ने तवदेिी महु र मान तिया।  हड़प्पा को तोरर् द्वार का नगर कहा जाता है।  वर्ण 1921 में भारतीय परु ातत्व सवेक्षर् तवभाग के महातनदेिक सर जान मािणि के तनदेिन में 14 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  हड़प्पा एविं मोहनजोदडो के बीच की दरू ी 642  इस स्‍तथान से कोई भी कतब्रस्‍ततान नहीं तमिा है। तक.मी. थी, यद्यतप भी तपगट महोदय ने हड़प्पा  इसका नगर कच्ची ईटोंिं के चबूतरे पर तनतमणत था। एविं मोहनजोदड़ो को तसन्धु सभ्यता की जड़ु वा  कािंसे की नारी मतू तण (पर्ू णतः नग्न), सतू ी कपड़ा राजधानी कहा है। मद्रु ा पर अिंतकत पिपु तत नाथ की महु र, पजु ारी की मतू तण इत्यातद सामग्री मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई। मोहनजोदडोः-  मोहनजोदड़ो से तमिी एक महु र पर समु ेररयन नाव खोजकताण:- राखि दास बनजी ( 1922) का अिंकन है। उत्खनन:- प्रारिंभ में राखि दास बनजी, मािणि एविं  चािंदी के किि के रूप में चादिं ी का प्राचीनतम उनके सातथयों द्वारा और बाद में जे.एच. मैके और साक्ष्य यहीं से तमिा है। आजाद भारत में जे. एफ. डेकस ने तकया।  तिशेषताये:- अन्य नाम:- स्‍ततपू ों का िहर, रे तगस्‍ततान का बगीचा, कालीबंगाः- मृतकों का टीिा, तसिंध का बाग  खोजकताण:- अमिानदिं घोर्  मोहनजोदड़ो का सबसे प्रतसद्ध उपनाम मृतकों का  उत्खनन:- बी.बी.िाि एविं थापर टीिा है जो तसन्धी भार्ा का िब्द है।  ितब्दक अथण — कािे रिंग की चतू ड़या  मोहनजोदड़ो बाढ़ के कारर् सात बार उजड़ा और  तिशेषताये:- बसा, इसकी पतु ष्ट मािणि ने उत्खनन के दौरान  यहािं से एक यग्ु म िवाधान का साक्ष्य तमिा है सात परतों के तमिने से की। और यहीं से िवों के अत्योंतष्ट सस्‍तिं कार की तीन  इसकी सवणतधक महत्पर्ू ण स्‍तथि है तविाि तवतधयों का पता चिता है। स्‍तनानागार, मािणि ने इसे तत्कािीन तवश्व का एक  जतु े हुए खेत के साक्ष्य तमिे आियणजनक तनमाणर् कहा है परन्तु तविाि  कािीबिंगा से ऊिंट की हतड्डयािं प्राप्त हुई हैं। अन्नागार यहाोँ की सबसे बड़ी इमारत है।  हवनकुण्ड के साक्ष्य, हाथी दािंत की किंघी, कािंसे  मोहनजोदड़ो क्षेरफि की दृतष्ट से सबसे बड़ा नगर का दपणर्, अिंिकृ त ईट,िं बािक की खोपड़ी में छ: है। छे द ( सम्भवत: िकयतचतकत्सा का प्रमार्) प्राप्त  मिेररया बीमारी का प्राचीनतम साक्ष्य यहीं से हुआ है। प्राप्त हुआ है।  कािीबिंगा में हड़प्पा कािीन सािंस्‍तकृततक यिंगु के  बनु े कपड़ों का प्राचीनतम साक्ष्य मोहनजोदड़ो से पाोँच स्‍ततरों का पता चिता है। प्राप्त हुआ है। 15 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  कुछ तवद्वान इसे सैन्धव सभ्यता की तीसरी  यह सैन्धव सिंस्‍तकृतत के अततररक्त प्राक् हड़प्पा राजधानी मानते हैं। सस्‍तिं कृतत तजसे झक ू र सस्‍तिं कृतत एविं झागिं र सस्‍तिं कृतत कहते है, के अविेर् तमिे हैं। लोथलः-  चन्हूदाड़ों में तकसी भी दगु ण का प्रमार् नहीं तमिा  खोजकताण:- एस.आर.राव 1954-55 है।  उ्खनन:- एस.आर.राव  चन्हूदाड़ों से वक्राकार ईटेिं प्राप्त हुई है।  उपनाम :- िघु हडप्पा, िघु मोहनजोदड़ो  यहाोँ मनके व सीप उत्पादन का के न्द्र था।  तिशेषतायें:-  यहािं से मतहिाओ िं के सौंदयण प्रसाधान जैसे  भारत का पतिम एतिया से व्यापार का प्रमख ु तितपतस्‍तटक, पॉउडर इत्यातद तमिे हैं। बन्दरगाह स्‍तथि।  चन्हूदाडो एकमार एसा स्‍तथि है जहािं से तमट्टी की  जहाजों का गोदी बाडा (डाक-याडण) प्राप्त हुआ। पक्की हुई पाइपनमु ा नातियों का प्रयोग तकया  फारस की महु र, घोड़े की मतू तण, तीन यगु ि गया है। समातधयाोँ प्राप्त हुई। धौलािीरा –  िोथि की सिंम्पर्ू ण बस्‍तती एक ही रक्षा प्राचीर से तघरी थी।  खोजकताण:- जे.पी.जोिी  यहािं पर भी कािीबिंगा की भािंतत एक तछद्र यक्ु त  उ्खनन:- आर.एस.तवष्ट 1967 बािक की खोपड़ी प्राप्त हुई है जो तक  उपनाम :- सफे द किंु आ िकयतचतकत्सा का प्रमार् हो सकता है।  तिशेषताये:-  यहािं से वृत्ताकार एविं चतणजु ाकार अतग्नवेदी पायी  गजु रात के कच्छ में तस्‍तथत गई है।  भारत में खोजे गए दो तविाि नगरों में से एक —  िोथि से हाथी दािंत का बना हुआ एक पैमाना 1. धौिावीरा, 2. राखीगढ़ी (Scale) भी प्राप्त हुआ है।  अन्य हड़प्पा सिंस्‍तकृतत के नगर दो भागों (1- तकिा/दगु ण, 2-तनचिे नगर) में तवभातजत थे तकन्तु चन्हुदाडोः- इनसे अिग धौिावीरा तीन प्रमख ु भागों में  खोजकताण:- एन.जी. मजमू दार 1931 तवभातजत था।  उ्खनन:- मैके  यहािं से नेविे की, पत्थर की मतू ी पायी गई है।  उपनाम :- सैन्धव सभ्यता का ओद्यौतगक नगर  तिशेषताय:- 16 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं  धौिावीरा की जि सिंरक्षर् तकनीक बहुत तफर आवास क्षेर के साक्ष्य तमिते हैं। पतिम के तवतिष्ट थी, उन्होंने बाधिं बनाये और जिाियों टीिे पर गढ़ी अथवा दगु ण के साक्ष्य तमिे हैं। में पानी सिंग्रह तकया।  िोथि एविं सरु कोटता के दगु ण और नगर क्षेर दोनों  यहािं से दस खािंचे वािा एक िेख ( साइनबोडण) एक ही रक्षा प्रचीर से तघरे हैं। प्राप्त हुआ है।  हड़प्पा सभ्यता के तकसी तकसी भी परु ास्‍तथि से तकसी भी मिंतदर के अविेर् नहीं तमिे हैं के वि बनािली – मोहनजोदड़ों की एक मार ऐसा स्‍तथान है जहाोँ से  उ्खनन: आर.एस. तवष्ट एक स्‍ततपू का अविेर् तमिा है। यद्यतप इसे कुर्ार् कािीन माना गया है।  तिशेषतायें:-  सडकें :- सड़कें गतियाोँ एक तनधाणररत योजना के  यहािं से तमट्टी का हि, रसोईघर अतग्नकिंु ड के अनसु ार तनतमणत की गई हैं। मख्ु य मागण उत्तर से साक्ष्य तमिे हैं। दतक्षर् तदिा की ओर जाते हैं तथा सड़कें एक  बनाविी सैंन्धव सिंस्‍तकृ तत के तीनों स्‍ततरों ( प्राक्, दसू रे को समकोर् पर काटती हुई जाि सी प्रतीत तवकतसत और उत्तर) का प्रतततनतधत्व करता है। होती थीं।  नातलयााँ :- जि तनकास प्रर्ािी तसन्धु सभ्यता रोपड:- की अतद्वतीय तविेर्ता थी जो हमें अन्य तकसी  खोजकताण : बी.बी.िाि 1950 भी समकािीन सभ्यता में नहीं प्राप्त होती।  उ्खननकताण: यज्ञदत्त िमाण  कािीबिंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएोँ थे।  तिशेषतायें:-  ईटें :- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और अन्य प्रमख ु  यहािं से मातिक के साथ कुत्ते को दफनाने के नगर पकाई गई ईटोंिं से पर्ू णतः बने थे, जबतक साक्ष्य तमिे हैं। कािीबगिं ा व रिंगपरु नगर कच्ची ईटोंिं के बने थे।  आजादी के बाद सवणप्रथम इसी स्‍तथान का  सभी प्रकार के ईटोंिं की एक तविेर्ता थी। वे एक उत्खनन प्रारिंभ हुआ। तनतित अनपु ात में बने थे और अतधकािंितः आयताकार थे, तजनकी िम्बाई उनकी चौड़ाई नगर तनयोजनः- की दनु ी तथा उिंचाई या मोटाई चौड़ाई की आधी  हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रभाविािी तविेर्ता थी अथाणत् िम्बाई चौड़ाई तथा मौटाई का उसकी नगर योजना एविं जि तनकास प्रर्ािी है। अनपु ात 4:2:1 था।  प्राप्त नगरों के अविेर्ों से पवू ण एविं पतिम तदिा में दो टीिे हैं। पवू ण तदिा में तस्‍तथत टीिे पर नगर या 17 नोट्स हेतु प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं सामातजक व्यिस्‍तथाः- मातृदवे ी, परुु र्देवता (पिपु ततनाथ), तिगिं -योतन,  समाज की इकाई परम्परागत तौर पर पररवार थी। वृक्ष प्रतीक, पिु जि आतद की पजू ा की जाती मातृदवे ी की पजू ा तथा महु रों पर अिंतकत तचर से थी। यह पररितक्षत होता है हड़प्पा समाज सम्भवतः  मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक सीि पर तीन मख ु मातृसत्तात्मक था। वािा एक परुु र् ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है।  नगर तनयोजन दगु ,ण मकानों के आकार व रूपरे खा उसके तसर पर तीन सींग है उसके बायिं ी ओर एक तथा िवों के दफनाने के ढिंग को देखकर ऐसा गैंडा और भैंसा तथा दायीं ओर एक हाथी एक प्रतीत होता है तक सैन्धव समाज अनेक वगों जैसे व्याघ्र एविं तहरर् है। इसे पिपु तत तिव का रूप परु ोतहत, व्यापारी, अतधकारी, तिकपी, जुिाहे माना गया है। मािणि ने इन्हें ‘आद्यतिव’ बताया। एविं श्रतमकों में तवभातजत रहा होगा।  हड़प्पा सभ्यता से स्‍तवातस्‍ततक, चक्र और क्रास के  तसन्धु सभ्यता के तनवासी िाकाहारी एविं भी साक्ष्य तमिते हैं। स्‍तवातस्‍ततक और चक्र सयू ण मासिं ाहारी दोनों थे। भोज्य पदाथों में गेहू,ोँ जौं, पजू ा का प्रतीक था। मटर, तति, सरसों, खजरू , तरबजू ा, गाय, सअ ु र,  मतू तणपजू ा का आरम्भ सम्भवतः सैन्धव सभ्यता से बकरी का मािंस, मछिी, घतड़याि, कछुआ होता है। आतद का मािंस प्रमख ु रूप में खायें जाते थे। आतथणक जीिनः-  िवों की अन्त्योतष्ट सिंस्‍तकार में तीन प्रकार के  सैन्धव सभ्यता में कोई फावड़ा या फाि नहीं अन्िं त्योतष्ट के प्रमार् तमिे हैं- तमिा है परन्तु कािीबगिं ा में हड़प्पा-पवू ण अवस्‍तथा 1.पर्ू ण समातधकरर् — इसमें सम्पर्ू ण िव को में कूड़ो (हि रे खा) से ज्ञात होता है तक हड़प्पा भतू म में दफना तदया जाता था। काि में राजस्‍तथान के खेतों में हि जोते जाते थे। 2. आतिं िक समातधकरर् — इसमें पिु पतक्षयों  नौ प्रकार के फसिों की पहचान की गई है — के खाने के बाद बचे िेर् भाग को भतू म में दफना चावि (गजु रात एविं राजस्‍तथान) गेह,ूोँ जौ, खजरू , तदया जाता था। तरबजू , मटर, राई, तति आतद । तकन्तु सैन्धव सभ्यता के मुख्य खाद्यन्न गेहूोँ ए?

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