Unit 3 - व्यक्तित्व का स्वरूप, प्रकार एवं विकास PDF
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This document provides information on the nature, types, and development of personality. It covers the meaning and nature of personality, along with personality types based on different perspectives. It also discusses the importance of personality assessment and mental health. The document explores the factors that affect a child's mental health. This is an educational text.
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# इकाई (Unit)-3 ## व्यक्तित्व का स्वरूप, प्रकार एवं विकास (Nature, Types and Development of Personality) ## संरचना (Structure) - उद्देश्य (Objectives) - परिचय (Introduction) - व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Nature of Personality) - व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality) - व्यक्तित्...
# इकाई (Unit)-3 ## व्यक्तित्व का स्वरूप, प्रकार एवं विकास (Nature, Types and Development of Personality) ## संरचना (Structure) - उद्देश्य (Objectives) - परिचय (Introduction) - व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Nature of Personality) - व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality) - व्यक्तित्व मूल्यांकन की विधियाँ (Methods of Assessment of Personality) - व्यक्तित्व का सिद्धांत (Theory of Personality) - व्यक्तित्व-परीक्षण का महत्त्व (Importance of Personality Tests) - मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ (Meaning of Mental Health) - मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान का अर्थ (Meaning of Mental Hygiene) - बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने वाले कारक (Factors which Adversely Affect Child's Mental Health) - सारांश (Summary) - अभ्यास-प्रश्न (Review Questions) - संदर्भ (References) ## उद्देश्य (Objectives) इस इकाई का अध्ययन करने के बाद छात्र निम्नलिखित निष्कर्षों की व्याख्या कर पाने में समर्थ हो सकेंगे- - व्यक्तित्व का अर्थ, स्वरूप, प्रकार, सिद्धांत एवं महत्त्व - मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ, बालक के मानसिक स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने वाले कारक ## परिचय (Introduction) साधारणतः व्यक्तित्व का अर्थ किसी व्यक्ति के बाह्य रूप, रंग तथा शारीरिक गठन आदि से लगाया जाता है। दैनिक जीवन में प्रायः हम यह सुना करते हैं कि अमुक व्यक्ति का व्यक्तित्व बड़ा अच्छा है, प्रभावशाली है या खराब है। अच्छे व्यक्तित्व का अभिप्राय यह है कि उस व्यक्ति की शारीरिक रचना सुन्दर है, वह स्वस्थ एवं मृदुभाषी है, उसका स्वभाव व चरित्र अच्छा है और वह दूसरों को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। निःसंदेह ये गुण एक अच्छे व्यक्तित्व के लक्षण हैं किन्तु यह व्यक्तित्व का एक पहलू है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्यक्तित्व का कुछ और अर्थ होता है। व्यक्तित्व सम्पूर्ण व्यवहार का दर्पण है। व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति व्यक्ति के आचार-विचार, व्यवहार क्रियाओं एवं उसकी गतिविधियों द्वारा होती है। व्यक्ति के आचरण-व्यवहार में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक गुणों का मिश्रण होता है, जिसमें कि एकरूपता और व्यवस्था पाई जाती है। इस प्रकार व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार का समग्र गुण है। ## व्यक्तित्व का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Nature of Personality) "व्यक्तित्वं" शब्द के सम्बन्ध में अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं। साधारणतः बोलचाल की भाषा में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप-रंग से ही समझा जाता है. किन्तु विद्वानों ने इसका अर्थ नये दृष्टिकोणों से बताया है। - शाब्दिक अर्थ-व्यक्तित्व अंग्रेजी के 'पर्सनैलिटी' (Personality) का हिंदी रूपान्तर है। यह शब्द लैटिन शब्द 'पर्सोना' (Persona) से लिया गया है जिसका अर्थ है वेशभूषा जिसे नाटक करते समय नाटक के पात्र पहनकर, तरह-तरह के रूप बदला करते थे। आरम्भ में इस शब्द का अर्थ बाह्य आवरण के रूप में लिया जाता था। इस प्रकार व्यक्तित्व शब्द बाह्य गुणों की ओर संकेत करता है। - सामान्य दृष्टिकोण से अर्थ-जनसाधारण व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप. तथा उनं गुणों से लगाते हैं जिनके द्वारा एक व्यक्ति दूसरों को अपनी ओर आकर्षित और प्रभावित करके विजय पाता है। - व्यवहार के दृष्टिकोण से अर्थ- "व्यक्तित्व व्यक्ति के संगठित व्यवहार का सम्पूर्ण चित्र होता है।" "A man's personality is the total picture of his organised behaviour." "किसी व्यक्ति के व्यवहार का सम्पूर्ण गुण व्यक्तित्व है।" - Deshiell - दार्शनिक दृष्टिकोण से अर्थ-दर्शनशास्त्र के अनुसार, व्यक्तित्व आत्मज्ञान का ही दूसरा नाम है, यह पूर्णता का आदर्श है। - सामाजिक दृष्टिकोण से अर्थ-समाजशास्त्र के आधार पर व्यक्तित्व की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है- “व्यक्तित्व उन सब तत्वों का संगठन है जिनके द्वारा व्यक्ति को समाज में कोई स्थान प्राप्त होता है। इसलिए हम व्यक्तित्व को सामाजिक प्रवाह कह सकते हैं।" - मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अर्थ-इस दृष्टिकोणं से व्यक्तित्व की व्याख्या में वंशानुक्रम - और वातावरण दोनों को महत्त्व प्रदान किया गया है। व्यक्तित्व की मनोवैज्ञानिक ढंग से व्याख्या करने पर यह प्रतीत होता है कि व्यक्ति में आन्तरिक और बाह्य जितनी भी विशेषताएँ, योग्यताएँ और विलक्षणताएँ होती हैं, उन सबका समन्वित या संगठित (Integrated) रूप व्यक्तित्व है। व्यक्ति को जन्म से जो गुण, क्षमताएँ या शक्तियाँ प्राप्त होती हैं वे धीरे-धीरे विकसित होती रहती हैं। व्यक्ति अपने विकास काल में अपनी जन्मजात शक्तियों के आधार पर वातावरण के साथ अभियोजन करने के लिए क्रिया-प्रतिक्रिया करता रहता है, जिसके परिणामस्वरूप वह कुछ विशेष योग्यताएँ, कुशलताएँ, आदतें, रुचि और दृष्टिकोण आदि अर्जित कर लेता है। वातावरण से अभियोजन स्थापित करने के प्रयत्न में उसके जन्मजात अर्जित गुणों का परिमार्जन और परिवर्द्धन होता रहता है। इसलिए व्यक्तित्व को 'गत्यात्मक संगठन' (Dynamic Organisation) कहा गया है। - बीसन्ज और बीसन्ज (Biesanj & Biesanj) - "व्यक्तित्व मनुष्य की आदतों, दृष्टिकोण, विशेषताओं का संगठन है। यह जीवशास्त्रीय, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों के संयुक्त कार्य द्वारा उत्पन्न होता है।" (Personality is the organisation of person's habits, attitudes and traits and arises from the inter-play of biological, social and cultural factors.) - मन (Munn) - "व्यक्तित्व एक व्यक्ति के व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोणों, क्षमताओं, योग्यताओं, तथा अभिरुचियों का सबसे विशिष्ट संगठन है।" (Personality may be defined as the most characteristic integration of individual's modes of behaviour, interests, attitudes, capacities, abilities and aptitude.) - ऑलपोर्ट (Allport) - "व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनो-शारीरिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसका अद्वितीय समायोजन निर्धारित करता है।" (Personality is the dynamic organisation within the individual of those psychophysical systems that determine his unique adjustments to his environment.) - ड्रेवर "व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग, व्यक्ति के उन शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है, जिसे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन के आदान-प्रदान में प्रदर्शित करता है।" (The word 'Personality' is used to organise such physical, mental, moral and social attributes of an individual which he presents to other individuals to exchange in his social life.) ## व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality) व्यक्तित्व सम्बन्धी विभिन्नताओं को जानने के लिए व्यक्तित्व के प्रकारों को भी जानना आवश्यक है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न आधारों पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया है। साधारणतः निम्नांकित दृष्टिकोण से व्यक्तित्व के प्रकारों को विभाजन किया गया है- - शरीर-रचना का दृष्टिकोण (Constitution Viewpoint) - समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण (Sociological Viewpoint) - मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण (Psychological Viewpoint) ### शरीर-रचना का दृष्टिकोण जर्मन वैज्ञानिक क्रेचमर (Kreshmer) ने शारीरिक रचना के निम्नांकित प्रकार बनाए हैं- - कृशकाय (Asthenic) - इस प्रकार के व्यक्ति दुबले-पतले होते हैं। इनका सिर लम्बा, भुजाएँ पतली, सीना छोटा, हाथ पैर लम्बे, पतले होते हैं। इस प्रकार का व्यक्ति अपनी आलोचना सुनना पसन्द नहीं करता है वरन दूसरों की आलोचना करना पसंद करता है। - सुडौलकाय (Athletic)- इस प्रकार के व्यक्ति हृष्ट-푸ष्ट और स्वस्थ होते हैं। इनका सीना चौड़ा, उभरी हुई मजबूत भुजाएँ मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। ये दूसरों से इच्छानुसार समायोजन कर लेते हैं। - गोलकाय (Pyknic)- इस प्रकार के व्यक्ति कद में नाटे, छोटे, गोल और चर्बी वाले होते हैं। ये आरामतलब और सामाजिक होते हैं। - डायसप्लास्टिक (Dysplastic)- इनमें उपर्युक्त तीनों प्रकार का मिश्रण होता है। इस प्रकार के लोगों के शरीर साधारण होता है। अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक शेल्डन (Sheldon) ने शारीरिक आकृति के आधार पर व्यक्तित्व का निम्नांकित विभाजन किया है- - गोलाकृति (Endomorphic) - इस प्रकार के व्यक्ति अधिक मोटे, गोल, कोमल और स्थूल शरीर के होते हैं। इनके पाचक अंग अधिक विकसित होते हैं, ये कुछ अधिक भोजनप्रिय होते हैं। वे आरामपसन्द, सोने में तेज, स्नेह पार्न के इच्छुक, आमोद प्रिय, सज्जन, विवेकशील, सहिष्णु, जल्दी परेशान होने वाले होते हैं। - आयत आकृति (Mesomorphic) - इस प्रकार के व्यक्ति स्वस्थ सुसंगठित शरीर वाले होते हैं। इनमें शक्ति और स्फूर्ति अधिक होती है। ये साहसी क्रियाशील और उद्योगशील होते हैं। - लम्बाकृति (Ectomorphic) - ऐसे व्यक्ति दुबले-पतले, कोमल, कमजोर शरीर वाले होते हैं। ये संकोची, मंदभाषी तथा एकांतप्रिय, संयमी एवं संवेदनशील होते हैं। मनोवैज्ञानिक वार्नर (Warner) ने शारीरिक स्वास्थ्य और विकास की दृष्टि से व्यक्तियों के कई प्रकार बताए हैं- - स्वस्थ, - अपरिपुष्ट, - अविकसित, - अंग-भंग, - स्नायु रोगी, - पिछड़ा तथा मन्द बुद्धि, - सुस्त, - मिरगी रोग, - चुस्त। मनोवैज्ञानिक कैनन (Cannon) ने अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों के आधार पर व्यक्तित्व के प्रकार बताए हैं। व्यक्ति के विकास पर ग्रन्थियों का बहुत प्रभांव पड़ता है, जिसके कारण व्यक्तिगत भिन्नताएँ पाई जाती हैं- - थायरॉइड ग्रन्थि वाला (Thyroid Gland)-इससे निकले स्राव को थायरॉक्सिन (Thyroxin) कहते हैं। शारीरिक और मानसिक विकास पर इसका बहुत प्रभाव पड़ता है। जिन व्यक्तियों में इस ग्रन्थि का विकास ठीक से नहीं होता है वे मंद बुद्धि, बौने कद और दुर्बल होते हैं। ये आलसी, चिन्तित, सुस्त तथा सदा उदास दिखाई देते हैं। इस ग्रन्थि के ठीक से कार्य करने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक और चित्त प्रसन्न रहता है। - पिट्यूटरी ग्रन्थि वाला (Pituitary Gland) - इस ग्रन्थि से अधिक स्त्राव होने पर शरीर लम्बा हो जाता है। यदि कम स्राव होता है तो बौनापन आ जाता है या शरीर का विकास ठीक से नहीं होता। यदि यह ग्रन्थि ठीक से कार्य करती है तो व्यक्ति प्रसन्नचित्त, शांत स्वभाव, धैर्यवान, शारीरिक और मानसिक कष्ट सहने वाला होता है। - एड्रिनिल ग्रन्थि वाला (Adrenal Gland) - इस ग्रन्थि का अधिक विकास होने पर व्यक्ति लड़ाकू व झगड़ालू स्वभाव के एवं परिश्रमी होते हैं। इनका विकास समय से पूर्व होता है। इस प्रकार अन्तःस्त्रावी ग्रन्थियों से कम या अधिक स्त्राव होने पर व्यक्तित्व असामान्य हो जाता है। मानव-व्यवहार इन ग्रंथियों की क्रियाशीलता पर निर्भर करता है। अतः हम कह सकते हैं कि ये ग्रन्थियाँ भी व्यक्तित्व को निर्धारित करती हैं। ### भारतीय आयुर्वेदशास्त्र के अनुसार व्यक्ति तीन प्रकार के होते हैं- - कफ़ प्रधान ये लोग मोटे, शांत और काम करने वाले होते हैं। - पित्त प्रधान-ये दुर्बल, शीघ्र काम करने वाले तथा चंचल प्रकृति के होते हैं। - वात प्रधान-ये न दुर्बल न मोटे मध्यम शरीर वाले तथा चिड़चिड़े स्वभाव के होते हैं। यूनान में भी लोगों का विश्वास था कि शरीर में पाये जाने वाले चार प्रकार के रसों के आधार पर व्यक्तियों के चार प्रकार होते हैं- - शान्तचित्त (Phelgmatic) - ये लोग शांत प्रकृति के, निर्बल और निरुत्तेजित होते हैं। - चिन्तित (Melancholic) - ये लोग निराशावादी होते हैं। - उत्तेजनशील (Choleric) - ये लोग शीघ्र क्रोधित हो जाते हैं। - आशामय या गम्भीर (Sanguine)- ये लोग आशावान, उच्च पदाभिलाषी, प्रसन्न और शीघ्र कार्य करने वाले होते हैं। ### समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण सामाजिक भावना और कार्य के आधार पर मनोवैज्ञानिक स्प्रंगर (Sprangar) ने व्यक्तित्व के निम्नलिखित प्रकार बताए हैं- - सैद्धान्तिक (Theoretical) - इस प्रकार के व्यक्ति सिद्धान्तों पर अधिक जोर देते हैं। दार्शनिक, वैज्ञानिक, समाज सुधारक इसी कोटि में आते हैं। - आर्थिक (Economic)- इस प्रकार के व्यक्ति प्रत्येकं वस्तु का मूल्यांकन आर्थिक दृष्टि से करते हैं। व्यापारी इसी श्रेणी में आते हैं। - धार्मिक (Religious)- ये लोग ईश्वर और आध्यात्मिकता में आस्था रखते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति दूसरों पर शासन करने की इच्छा रखते हैं। राजनैतिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं, यथा-नेता लोग। - राजनैतिक (Political)- ये लोग सत्ता और प्रभुत्व दंल में विश्वास करते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति दूसरों पर शासन करने की इच्छा रखते हैं। राजनैतिक कार्यों में बहुत रुचि लेते हैं, यथा-नेता लोग। - सामाजिक (Social)- इस प्रकार के व्यक्ति के सामाजिक गुण अधिक होते हैं और वे समाज-कल्याण में रुचि लेते हैं। - कलात्मक (Aesthetic)- इस प्रकार के लोग कला और सौन्दर्य के पुजारी होते हैं और प्रत्येक वस्तु को कला की दृष्टि से देखते-परखते हैं जैसे-कलाकार, चित्रकार आदि। ### मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक लक्षणों (गुणों) के आधार पर व्यक्तित्व के निम्न प्रकार बताए हैं- - मनोवैज्ञानिक युग (Jung) - ने मानव प्रकृति के आधार पर व्यक्तित्व के दो प्रमुख आधार बताए हैं- - अन्तर्मुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality) - इस प्रकार का व्यक्तित्व उन व्यक्तियों को होता है जिनका स्वभाव, आदतें और गुण बाह्य रूप से प्रकट नहीं होते। ये आत्मकेन्द्रित होते हैं और सदा अपने में ही खोये रहते हैं। इन्हें बाहरी जगत की चिन्ता नहीं होती। इनकी अन्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं। - ये लोग कम बोलते हैं। - ये शीघ्र घबरा जाते हैं। - संकोची होने के कारण अपने विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। - चिन्तन बहुत करते हैं और अपने विचारों को अपने तक ही सीमित रखते हैं। - ये चिन्ताग्रस्त रहते हैं, सन्देही तथा सावधान रहते हैं। - ये अपने कर्तव्यों के प्रति सत्यनिष्ठ होते हैं। - प्रत्येक कार्य को सोच-विचारकर करते हैं। - ये अच्छे लेखक होते हैं किन्तु अच्छे वक्ता नहीं होते। - ये अध्ययनशील और मननशील होते हैं। प्रायः ऐसे व्यक्ति किताबी कीड़ा होते हैं और आगे चलकर वैज्ञानिक, दार्शनिक और अन्वेषक बनते हैं। - ये हँसी-मजाक, निन्दा और बेकार बातचीत पसन्द नहीं करते हैं। - बहिर्मुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality) - इस प्रकार के व्यक्तित्व के लोगों की रुचि बाह्य जगत में होती है। इनकी विशेषताएँ निम्न हैं- - ये सामाजिक जीवन में अधिक रुचि लेते हैं और समाज में सामंजस्य (Adjust) करने के लिए सदा सचेत रहते हैं। ये आशावादी होते हैं और परिस्थितियों एवं आवश्यकता के अनुकूल अपने को व्यवस्थित कर लेते हैं। - ये व्यावहारिक जीवन में कुशल होते हैं, अवसरवादी प्रकृति के होते हैं और शीघ्र ही लोकप्रिय बन जाते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अधिकतर सामाजिक, राजनैतिक या व्यापारिक नेता, अभिनेता, खिलाड़ी आदि बनते हैं। - ये सदा दूसरों को प्रभावित करके अपना काम निकाल लेते हैं। - ये चिन्तामुक्त होते हैं। इनका ध्येय आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करना है। ये वर्तमान में प्रसन्न रहते हैं। इन्हें भविष्य की चिन्ता नहीं व्यापती। - ये अहंवादी तथा अनियंत्रित भी होते हैं। - इनमें आत्म प्रदर्शन की भावना अधिक होती है। ये प्रायः अपनी चाल-ढाल, वेशभूषा तथा योग्यता से दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। - उभयमुखी व्यक्तित्व (Ambivert Personality) - इस प्रकार का व्यक्ति अन्तर्मुखी गुणों को विचार में ला सकता है और बहिर्मुखी गुणों को कार्य रूप में स्थान दे सकता है। उदाहरणार्थ-एक व्यक्ति अच्छा लेखक और वक्ता दोनों हो सकता है, एक व्यक्ति सामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करता है किन्तु वह कोई कार्य अकेले ही करना पसन्द करता है। उभयमुखी व्यक्ति अपना तथा समाज दोनों का लाभ देखता है। - Фрайд जो कि एक प्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी था, ने व्यक्तित्व के निम्नलिखित तीन प्रकार बताए हैं- - मौखिक कामुक (Oral erotic) - फ्रायड के अनुसार शिशु अपने मुँह से काम सुख प्राप्त करना चाहता है अर्थात काम का निवास बचपन में मुँह में होता है जिससे काम सुख प्राप्त करने के लिए वह चूसता, काटता, चाटता है और वस्तुओं को अपने मुख की ओर ले जाता है। आगे चलकर यह सुख प्राप्त करने की क्रियाओं में व्यक्तित्व दो प्रकारों में विभाजित दिखाई देता है। - मौखिक निष्क्रिय (Oral Passive) - जिन बच्चों में मौखिक निष्क्रिय प्रकार के व्यक्तित्व का विकास होता है वे आशावादी, अपरिपक्व तथा आश्रित एवं अपनी क्रियाओं और विचारों में रत रहने वाले होते हैं। - मौखिक निर्दयी (Oral Sadistic) - जिन बच्चों में मौखिक निर्दयी प्रकार के व्यक्तित्व का विकास होता है, वे निराशावादी, आक्रामक, दूसरों के प्रति अश्लील व्यवहार करने वाले तथा शंकालु स्वभाव के होते हैं। - गुदा सम्बन्धी (Anal) - काम सुख प्राप्त करने का दूसरा आधार और चरण बच्चे की गुदा होती है। इस स्तर पर बच्चे गुदा सम्बन्धी क्रियाशीलता में रत रहते हैं। इस अवस्था में वह टट्टी कर माम सुख प्राप्त करता है। इस तरह ही क्रियाशीलता द्वारा बच्चों में हठीपन, कृपणता तथा नियम या व्यवस्थाप्रियता के गुणों का विकास होता है। - लिंग सम्बन्धी (Phallic) - यह व्यक्तित्व के निर्माण का तीसरा स्तर है जिसे मनोलैंगिक विकास का स्तर कहा जाता है। इस स्तर पर बच्चे अपने जननांग को छेड़ते रहते हैं। इस प्रकार की क्रियाएँ अधिकांशतः किशोरावस्था में होती हैं। इन क्रियाओं की प्रवृत्ति से आगे चलकर व्यक्तित्व के विशिष्ट गुणों का विकास होता है जिससे किशोर दूसरों का ध्यान आकृष्ट करने तथा आत्मप्रेम प्रदर्शित करने का व्यवहार करते हैं। - आलपोर्ट ने व्यक्तित्व को व्यक्ति के गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है। उसके अनुसार गुणों का वास्तविक तथा सशक्त अस्तित्व है। आलपोर्ट ने गुणों को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है- "गुण कार्यात्मक रूप के समान अनेक उद्दीपकों को अधीन करने की क्षमतायुक्त एक सामान्यीकृत मनोस्नायविक प्रणाली है जो अनुकूलित एवं अभिव्यक्त व्यवहारं के स्थायी रूपों का अनुकरण तथा निर्देशन भी करती है।" (A trait is a generalized and focalized neuropathtic system with the capacity to render many stimuli functionally equivalent and to initiate guide consistent forms of adaptive and expressive behaviour.) आलपोर्ट के अनुसार गुणों की प्रकृति सामान्य तथा स्थायी होती है। समस्त मानवीय गुणों को उन्होंने तीन श्रेणियों में विभाजित किया है- - प्रधान गुण (Cardinal Trait) - ऐसे गुण जो व्यक्ति के व्यवहार में अधिकाधिक पाए जाते हैं वे प्रधान गुण कहलाते हैं, जैसे उपलब्धि के प्रति निष्ठा गुण। यदि व्यक्ति में यह प्रधान गुण के रूप में है तो यह उस व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन में व्याप्त रहेगा। - केन्द्रीय गुण (Central Trait) - केन्द्रीय गुण प्रधान गुण की तुलना में कम प्रधान होते हैं फिर भी पर्याप्त मात्रा में सामान्यीकृत होते हैं अर्थात उनकी केन्द्रीय प्रवृत्ति प्रायः स्थिर रहती है। - गौड़ गुण (Secondary dispositions)-व्यक्ति के गौड़ गुण विशेष रूप से संकुचित गुण होते हैं और अभिवृत्तियों (Attitudes) के रूप में होते हैं। अभिवृत्तियाँ मात्रात्मक रूप में सकारात्मक या नकारात्मक ध्रुव की ओर झुकी होती है तथा अधिगम से इनका सम्बन्ध हो सकता है। - थॉर्नडाइक (Thorndike) -ने चिन्तन और कल्पना के आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण किया हैं- - सूक्ष्म विचारक इस प्रकार के व्यक्ति काम करने के पहले उसके पक्ष और विपक्ष पर भली-भाँति चिन्तन कर लेते हैं। इन्हें गणित, विज्ञान, दर्शन-शास्त्र और तर्कशास्त्र में अधिक रुचि होती है। - प्रत्यय विचारक इस प्रकार के व्यक्तियों को विचार करने के लिए शब्द, संख्या तथा संकेत या चिह्नों से सहायता लेनी पड़ती है। जैसे-गणितज्ञ, भौतिक, विज्ञानी आदि। - स्थूल विचारक-ये क्रियाशीलता पर अधिक जोर देते हैं और इनके अनुसार स्थूल वस्तुओं के माध्यम से सोचने-विचारने में सफलता मिलती है। - टरमैन ने बुद्धिलब्धि के आधार पर वैयक्तिक भिन्नता की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया है। बुद्धिलब्धि के अनुसार व्यक्तियों का वर्गीकरण इस प्रकार है- - प्रतिभाशाली, - प्रखर बुद्धि, - उत्कृष्ट बुद्धि, - सामान्य बुद्धि, - मन्द बुद्धि, - मूर्ख, - मूढ़, - जड़ बुद्धि। - कैटल ने निम्नलिखित दो प्रकार का व्यक्तित्व बताया है- - लहरी (Surgent)- इस प्रकार के व्यक्ति बहिर्मुखी, खुशमिजाज, मिलनसार, विनोदप्रिय और अवसरवादी होते हैं। इनमें प्रदर्शन की भावना अधिक होती है तथा समाज के अगुवा बनने की भावना अधिक होती है। - अलहरी (Desurgent) - ये अन्तर्मुखी प्रकृति के होते हैं। इस प्रकार के व्यक्तियों में अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के गुण पाये जाते हैं। - स्टीफेन्सन (Stephenson) - इन्होंने युग के वर्गीकरण को आधार बनाकर व्यक्तित्व का विभाजन दो वर्गों में किया है- - प्रसारक (Perseverator) - किसी कार्य के समाप्त हो जाने के बाद भी, यदि वह मस्तिष्क में चक्कर लगाता रहता है या उसका प्रभाव देर तक रहता है तो इस क्रिया को प्रसक्ति (perseveration) कहते हैं। जिन व्यक्तियों के मस्तिष्क में यह क्रिया बहुत देर तक बनी रहती है उन्हें प्रसारक कहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अन्तर्मुखी होते हैं। - अप्रसारक (Non-perseverator) - जिन लोगों के मस्तिष्क में किसी कार्य या बात के समाप्त हो जाने पर उसका प्रभाव देर तक नहीं रहता, उन्हें अप्रसारक कहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति बहिर्मुखी होते हैं। - इसी प्रकार भारतीय आचार्यों एवं मनोवैज्ञानिकों ने भी तीन प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख किया है। - राजसी-इनमें रजोगुण की प्रधानता होती है। इनमें चंचलता, उत्तेजना और क्रियाशीलता अधिक पाई जाती है। ये वीर, युद्धप्रेमी व साहसी होते हैं। - सात्विकी ये सौम्य, शान्त और धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। - तामसी इनमें तमोगुण का प्राधान्य होता है। ये क्रोधी, लड़ाई झगड़ा करने वाले, आलसी तथा धर्म में अविश्वास करने वाले होते हैं। ## व्यक्तित्व मूल्यांकन की विधियाँ (Methods of Assessment of Personality) व्यक्तित्व मूल्यांकन के लिए जिन विधियों या परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है, वे निम्नलिखित हैं- - आत्मनिष्ठ विधि (Subjective Method) - इस विधि में व्यक्तित्व-जाँच स्वयं परीक्षक द्वारा या उसके परिचितों की सहायता से की जाती हैं इसमें निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है- - जीवन इतिहास विधि (Case History Method) - प्रश्नावली विधि (Questionnaire Method) - साक्षात्कार विधि (Interview Method) - आत्मकथा लेखन विधि (Autobiography or self-History Method) - वस्तुनिष्ठ विधि (Objective Method)- इस विधि में व्यक्ति के बाह्य आचरण का अध्ययन किया जाता है। ये निम्नलिखित हैं- - नियंत्रित निरीक्षण विधि (Controlled Observation Method) - मापन रेखाविधि (Rating Scale Method) - समाजमिति विधि (Sociometric Method) - शारीरिक परीक्षण (Physiological Test) - प्रक्षेपी विधि (Projective Method) - प्रक्षेपण का तात्पर्य उस विधि से है जिसमें परीक्षार्थी के सामने ऐसी उत्तेजक परिस्थिति प्रस्तुत की जाती है जिसमें वह अपने विचारों, भावनाओं और मनोवृत्तियों और संवेगों को दूसरों में देखता है और अपने अचेतन मन में एकत्र हुई बातों को प्रकट करता है। जैसे अचेतन मन की झुंझलाहट को दूसरों को डाँटने या लड़ने के द्वारा व्यक्त करना है। प्रक्षेपी विधि में विषयी को किसी बाह्य वस्तुओं के सहारे अपने अन्दर उठे हुए विचारों को प्रक्षेप करने के लिए कहते हैं। प्रक्षेपी विधि द्वारा व्यक्तित्व सम्बन्धी उन पहलुओं का पता चल जाता है जिनसे कि व्यक्ति स्वयं अनभिज्ञ होता है। प्रमुख प्रक्षेपी विधियाँ निम्नलिखित हैं- - प्रासंगिक अंतर्बोध परीक्षण (Thematic Apperception Test or T.A.T.) - बाल सम्प्रत्यक्ष परीक्षण (Childern Apperception Test or C.A.T.) - रोर्शाक परीक्षण (Rorchach Ink Blot Test) - वाक्य-पूर्ति तथा कहानी पूर्ति परीक्षण (Sentence and Story Completion Test) - मनोविश्लेषण विधि (Psycho-Analytic-Method)- इसमें निम्न दो विधियाँ आती हैं- - स्वतंत्र शब्द साहचर्य परीक्षण (Free Word Association Test) - स्वप्न विश्लेषण (Dream Analysis) ## व्यक्तित्व मूल्यांकन की विधियों का संक्षिप्त परिचय - जीवन-इतिहास विधि-इस विधि में व्यक्ति से सम्बन्धित उसके शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक विशेषताएँ, उसकी व्यक्तिगत विभिन्नताएँ, उसके सामाजिक सम्बन्ध, उसके परिवार के इतिहास आदि का अध्ययन करके सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। ये सूचनाएँ व्यक्ति के भूतकालीन विवरण, वर्तमान काल के विवरण तथा आगे आने वाली सम्भावनाओं से सम्बन्धित होती हैं। इस विधि में अध्ययनकर्ता विभिन्न स्रोतों से व्यक्ति के माता-पिता, सगे सम्बन्धी, मित्र, पड़ोसी, डॉक्टर आदि की सहायता से सूचनाएँ प्राप्त करता है। इस विधि का प्रयोग प्रायः मनोवैज्ञानिक रोगों के उपचार के लिए किया जाता है तथा इसे विशेष रूप से मानसिक चिकित्सक अपनाते हैं। - प्रश्नावली विधि-इस विधि में व्यक्तित्व के विभिन्न गुणों से सम्बन्धित प्रश्नों की एक सूची तैयार की जाती है जिसमें व्यक्ति को लिखित 'हाँ', या नहीं में उत्तर देना पड़ता है। इस विधि को 'कागज पेंसिल परीक्षण' (Paper Pencil Test) भी कहते हैं। इन प्रश्नावलियों की सहायता से. व्यक्तित्व की विशेषताओं और गुण जैसे-रुचि, अरुचि, आत्मविश्वास, सामाजिकता, अन्तर्मुखी प्रवृत्ति तथा अधीनता की प्रवृत्ति आदि की परीक्षा की जाती है। इन प्रश्नावलियों के मुख्य चार प्रकार निम्नलिखित हैं- - बन्द प्रश्नावली (Closed Questionnaire)- इसमें प्रत्येक प्रश्न के सामने 'हाँ' या 'नहीं' लिखा रहता है। परीक्षार्थियों को हाँ या नहीं में से एक को काटकर उत्तर देना पड़ता है, जैसे- - क्या आप जरा-सी बात पर परेशान हो जाते हैं? - क्या आप लोगों से मिलना-जुलना पसन्द करते हैं? - क्या आप सामाजिक अवसरों पर पीछे रहना चाहते हैं? - खुली प्रश्नावली (Open Questionnaire) - इस प्रश्नावली में प्रश्नों का पूरा उत्तर लिखना पड़ता है जैसे- - लोकतंत्रीय भारत में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? - सचित्र प्रश्नावली (Pictorial Questionnaire)-इस प्रश्नावली में कुछ चित्र दिये हुए रहते हैं। परीक्षार्थी को दिये हुए विभिन्न चित्रों पर निशान लगाकर प्रश्नों का उत्तर देना पड़ता है। - मिश्रित प्रश्नावली (Mixed Questionnaire) - इस प्रश्नावली में उपर्युक्त प्रश्नावलियों के प्रश्नों का मिश्रण होता है। - साक्षात्कार विधि-इस विधि में साक्षात्कार करने वाला (परीक्षक) परीक्षार्थी से कुछ प्रश्नों द्वारा आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त करता है जो कि व्यक्ति की व्यक्तित्व-सम्बन्धी विशेषताओं को समझने में सहायक होती है। इस विधि का प्रयोग सबसे अधिक सरकारी नौकरियों के चुनाव में किया जाता है। - आत्मकथा लेखन विधि-इस विधि में परीक्षा लेने वाला परीक्षार्थी को व्यक्तित्व से सम्बन्धित एक शीर्षक देता है और उसी से सम्बन्धित अपना व्यक्तिगत इतिहास लिखने को कहता है। परीक्षक उसे पढ़कर उस व्यक्ति के सम्बन्ध में विचार प्रकट करता है। - नियंत्रित निरीक्षण विधि-इस विधि का प्रयोग मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की नियंत्रित परिस्थितियों में किया जा सकता है। इसमें परीक्षक व्यक्ति की विभिन्न क्रियाओं तथा आचरण-व्यवहार का अध्ययन करता है। इन्हीं के आधार पर व्यक्तित्व की विशेषताएँ मालूम की जाती हैं। - मापन रेखा विधि-इस विधि में व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों का मूल्यांकन स्वयं व्यक्ति से या उसके सम्पर्क में रहने वाले व्यक्तियों से करवाया जाता है कि वे अमुक व्यक्ति के गुणों पर अपने विचार प्रकट करें। जिस गुण की परीक्षा करनी होती है। उस गुण का श्रेणी या वर्ग-विभाजन करने के लिए एक रेखा को 3.5 या 7 बराबर भागों में बाँट दिया जाता है। जिस वर्ग या श्रेणी को सबसे अधिक मत या अंक मिलते हैं व्यक्ति को उसी प्रकार का समझा जाता है जैसे- - क्या वह बालक ईमानदार है? - बिल्कुल ईमानदार - ईमानदार - औसत - बेईमान - बिल्कुल बेईमान - क्या आपको छोटी-छोटी बातें परेशान कर देती हैं? - सदा - बहुत बार -