पुस्तकालय और मीठी वाणी का महत्व PDF
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यह दस्तावेज़ पुस्तकालय और मीठी वाणी के महत्व पर चर्चा करता है। यहाँ बताया गया है कि पुस्तकालय ज्ञान का भंडार होता है और मीठी वाणी मित्रता विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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## पुस्तकालय पुस्तकालय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - पुस्तक + आलय अर्थात् पुस्तकों का घर। पुस्तकालय ज्ञान का भंडार होता है। पाठ्य-पुस्तकों में विषय सीमित होते हैं। पुस्तकालय एक-एक विषय पर अनेक पुस्तकों का अथाह सागर कहलाता है। पुस्तकालय की सहायता से हमारे ज्ञान का क्षितिज विस्तृत होता है। विद्या...
## पुस्तकालय पुस्तकालय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है - पुस्तक + आलय अर्थात् पुस्तकों का घर। पुस्तकालय ज्ञान का भंडार होता है। पाठ्य-पुस्तकों में विषय सीमित होते हैं। पुस्तकालय एक-एक विषय पर अनेक पुस्तकों का अथाह सागर कहलाता है। पुस्तकालय की सहायता से हमारे ज्ञान का क्षितिज विस्तृत होता है। विद्यार्थियों का सामान्य अथवा विशेष ज्ञान बढ़ाने के लिए प्रायः प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय होता है, जहाँ प्रतिवर्ष नई पुस्तकें आती हैं। कुछ सार्वजनिक पुस्तकालय भी होते हैं, जो सभी सोसाइटियों, संस्थानों या सरकार द्वारा चलाए जाते हैं। इनमें आम आदमी जितना चाहे लाभ उठा सकता है। पुस्तकालय से अधिक लाभ उठाकर हम अपने ज्ञान में निरंतर वृद्धि करते रहते हैं। जीवन में प्रगति के चरित्र के विषय के लिए सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए भी पुस्तकालय बहुत सहायक सिद्ध हुए हैं। ## मीठी वाणी का महत्व बात करते समय किसी के मन को मोह लेने की मोहिनी शक्ति का नाम मधुर भाषण है। किसी की बड़ाई करते हुए लोग कहते हैं कि अमुक व्यक्ति बात करता है तो मानो मिसरी घोल देता है। दूसरा व्यक्ति एक अन्य व्यक्ति की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि उसकी वाणी से तो मानो फूल झड़ते हैं। यह मिसरी घोलना और फूल झड़ना मीठी वाणी के ही संकेत हैं। व्यक्ति द्वारा बोले गए मधुर-कोमल शब्द जहाँ मित्रता का विस्तार करते हैं, वहीं कटु-कठोर शब्द शत्रु-भाव बढ़ाते हैं। मनुष्य-मनुष्य का संबंध वस्तुओं के आदान-प्रदान पर उतना निर्भर नहीं करता जितना कि शब्दों के आदान-प्रदान पर करता है। व्यवहार में देखने में आता है कि अपने घर आए व्यक्ति के लिए यदि आप स्वागत के दो शब्द कह देते हैं, तो आपके द्वारा की गई साधारण अतिथि-सेवा भी उसे अच्छी ही लगेगी, किंतु यदि उसके खान-पान तथा रहन-सहन की समुचित व्यवस्था करने पर भी आप कुछ कड़वी-कठोर बात कर जाते हैं तो सारा करा-धरा व्यर्थ हो जाता है और सत्कार के स्थान पर आप उसके द्वेष के पात्र बन जाते हैं। मनुष्य के कटु-कठोर वचन कहीं-कहीं अत्यधिक अनिष्टकारी सिद्ध होते हैं। सयाने लोग कहते हैं कि 'तलवार का घाव समय पर भर जाता है, पर वाणी का घाव कभी नहीं भरता'। इसलिए कबीरदास ने कहा है – "ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करै, आपहुँ शीतल होय ॥"