आदिकालीन राज्यतंत्र-कानून, न्याय तथा सरकार PDF

Summary

This document provides an overview of primitive forms of rule, law, and justice in various societies. It discusses the functions of primitive governance, the relation between law and society, and different kinds of primitive law and customs. It details early forms of socio-political organization.

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# 18 ## आदिकालीन राज्यतंत्र-कानून, न्याय तथा सरकार (PRIMITIVE POLIRNMENT JUSTICE AND GOVERNMENT) समाज एक अखण्ड व्यवस्था नहीं है। इसके अन्तर्गत अनेक भाव तथा उपभाव क्रियाशील रहते हैं। इनमें से प्रत्येक भाग तथा उपभोग के अनेक सदस्य होते हैं जो अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते रहते हैं। अग...

# 18 ## आदिकालीन राज्यतंत्र-कानून, न्याय तथा सरकार (PRIMITIVE POLIRNMENT JUSTICE AND GOVERNMENT) समाज एक अखण्ड व्यवस्था नहीं है। इसके अन्तर्गत अनेक भाव तथा उपभाव क्रियाशील रहते हैं। इनमें से प्रत्येक भाग तथा उपभोग के अनेक सदस्य होते हैं जो अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते रहते हैं। अगर इनमें से प्रत्येक को अपनी इच्छानुसार या मनमाने ढंग से कार्य करने की स्वतन्त्रता दे दी जाए तो समाज की संरचना एक दिन में ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाए। केवल इतना ही नहीं, प्रत्येक समाज को डर होता है कि कहीं बाहर का कोई समूह उस पर आक्रमण करके उसे अपने अधीन न कर ले। इसीलिए बाहरी तथा आन्तरिक दोनों ही प्रकार के आक्रमणों से सामाजिक संरचना में शान्ति एवं सुव्यवस्था की रक्षा के लिए प्रत्येक समाज, चाहे वह आदिकालीन हो या आधुनिक, में कानून, न्याय तथा सरकार की व्यवस्था होती है। सार रूप में, प्रत्येक समाज में कानून अपने समाज के सदस्यों के लिए व्यवहार के कुछ निश्चित नियमों को प्रतिपादित करता है; न्याय इन नियमों (कानूनों) को तोड़ने वाले को दण्ड देता है और सरकार देश के अन्दर शान्ति और सुव्यवस्था बनाए रखने या शासन-प्रबन्ध करने तथा बाहरी आक्रमणों से देश की रक्षा करने का काम करती है। अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक समाज को कानून, न्याय तथा सरकार की आवश्यकता होती है, चाहे इनका स्वरूप कितना ही अस्पष्ट क्यों न हो। इन तीनों को एकसाथ मिलाकर जो संगठन बनता है, उसे राजनीतिक व्यवस्था कहते हैं। आदिम समाज के सन्दर्भ में सर्वश्री बील्स तथा हॉइजर ने राजनीतिक संगठन को तीन श्रेणियों में बांटा है जो निम्नवत् हैं। (1) प्रथम श्रेणी के अन्तर्गत वे राजनीतिक संगठन आते हैं जिनमें कानून, न्याय तथा सरकार का रूप इतना अस्पष्ट है कि उन्हें वास्तव में राजनीतिक संगठन कहना उचित न होगा। इन समाजों में नेताओं का कोई निश्चित स्वरूप नहीं होता, इस कारण इनका स्थानीय समूह या परिवारों पर कोई नियन्त्रण नहीं होता। ऐसे समाजों के अन्तर्गत छोटे-छोटे समूह होते हैं जो अत्यधिक छिटके होते हैं। जनसंख्या भी बहुत कम होती है। इस कारण राजनीतिक व्यवस्था का संगठित रूप भी विकसित नहीं हो पाता है। (2) द्वितीय श्रेणी के अन्तर्गत राजनीतिक आधार पर कुछ संगठित जनजातियाँ झुण्ड (Band) आदि आते हैं। इनमें प्रथम श्रेणी के समूहों की अपेक्षा जनसंख्या और आर्थिक उत्पादन की मात्रा कुछ अधिक होती है। एक समूह अपने पास-पड़ोस के समूहों पर कभी-कभी आक्रान भी करता है; परन्तु इन आक्रमणों का उद्देश्य दूसरे समूहों पर शासन करना नहीं होता, वरन् ## राज्यतंत्र-कानून, न्याय तथा सरकार 305 अल कुछ आवश्यक वस्तुओं को प्राप्त करना या दूसरे समूह को हराकर वहाँ से निकाल देना (3) तीसरी श्रेणी के अन्तर्गत वे समाज जाते हैं जो जनसंख्या तथा आर्थिक उत्पादन की दृष्टि से उपरोक्त दो श्रेणियों से कहीं अधिक उन्नत अवस्था में हैं। इन समाजों में राजनीतिक संगठन इतना व्यवस्थित होता है कि ये दूसरे समूहों को पराजित करके या तो उनसे हर्जाना लेते हैं या उन्हें निम्न वर्ग के रूप में अपने में मिला लेते हैं। ऐसे समाजों में शासन की स्वादिम समाजों को राजनीतिक व्यवस्था के सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि इन समाजों में राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप इतना संगठित नहीं होता जितना आधुनिक समाजों में । इनका शासन-प्रबन्ध प्रायः स्थानीय समूहों में बंटकर वंशपरम्परागत मुखिया के द्वारा ही होता है. जो व्यवस्था कायम रखने का प्रयत्न करता है । आदिम समाजों के राजनीतिक संगठन के इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए हम अब इन समाजों में पाए जाने वाले कानून, न्याय तथा सरकार की जाति तथा स्वरूप की विवेचना करेंगे। ## कानून क्या है ? (What is law?) ## आदिम कानून (Primitive Law) प्रत्येक व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार व्यवहार या क्रिया करने नहीं दिया जाता। मानवीय जीवन के दौरान व्यवहार करने के अनेक सामान्य रूप प्रचलित हो जाते हैं जिन्हें समाज के सब या अधिकतर लोग मानते हैं। जनता की इन रीतियों को जनरीति (folk-ways) कहते हैं। यह जनरीति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है। इस हस्तान्तरित के दौरान इसे अधिकाधिक समूहों की अभिमति प्राप्त होती जाती है, क्योंकि प्रत्येक पीढ़ी सफल अनुभव इसे और भी दृढ़ बना देता है। समाज में मान्यताप्राप्त वह जनरीति, जो ढी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है, प्रथा कहलाती है। प्रथा को सामाजिक जीवन में अधिक दत्तापूर्वक लागू किया जाता है और इसकी अवहेलना करने पर निन्दा और पालन करने पर प्रशंसा होती है। परन्तु प्रथा को प्रतिपादित करने, लागू करने तथा उसका उल्लंघन करने पर सामाधी को दण्ड देने के लिए कोई संगठित शक्ति नहीं हुआ करती है। प्रथा तो सामाजिक व्यवहार, अन्तःक्रिया और प्रतिक्रिया के दौरान स्वतः क्रियाशील रहती है। इसके विपरीत जब कोई प्रतिपादित शक्ति मानव-व्यवहार से सम्बन्धित किसी नियम को प्रतिपादित करती है, उसे लागू करती है, तथा उसका उल्लंघन करने वाले को दण्ड देती है, तो उस शक्ति के द्वारा प्रतिपादित नियमों का उल्लंघन करने वाब्दों में , जिस प्रतिपादित करने, लागू करने तथा उसका उल्लंघन करने वाले को दण्ड देने का उत्तरदायित्व संगठित शक्ति पर हो वही कानून की परिभाषा मार नियम है जिसे इस निश्चितता से प्रतिपादित किया जाता है कि अगर भविष्य में उसकी पता को चनौती दी गई तो उसे अदालत के द्वारा लागू किया जाएगा। "ये श्री हॉबल के अनुसार, "विक नियम है जिसका उल्लंघन होने पर धमकी देने या वास्तव में शारीरिक ## सामाजिक मानवशास्त्र की रूपरेखा 306 बल का प्रयोग करने का अधिकार एक ऐसे समूह को होता है जिसे ऐसा करने का समाज मान्य विशेषाधिकार प्राप्त है।"3/ उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि कानून का आधार समाज की शक्ति है ना कि कुछ नियमों को बनाती है और ये नियम उस क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों या संघों के लिए एक समान रूप से लागू होते हैं। इन नियमों का निर्माण राजनीतिक सामाजिक संगठन या सुव्यवस्था तथा प्रत्येक के अधिकारों की रक्षा के लिए होता है। दूसरी ओर सरकार, इन नियमों अर्थात कानूनी परम्पराओं का चालन हो रहा है या नहीं, यह देखने के लिए तथा इनका उल्लंघन करने वालों को दण्ड देने के लिए पुलिस, कोर्ट आदि को नियुक्त करती है। इस प्रकार कानून बनाने और उसे लागू करने तथा दण्ड देने के सम्बन्ध में आदिम समाजों में कानून बनाने उसे लागू करने तथा दण्ड देने के सम्बन्ध में उतना सुव्यवस्थित और स्पष्ट संगठन नहीं मिलता जितना आधुनिक समाजों में। इस कारण आदिम समाजों में कानून की वास्तविक प्रकृति क्या होती है, यह जान लेना आवश्यकता है। ## आदिकालीन कानून की प्रकृति (Nature of Primitive Law) आधुनिक दृष्टिकोण से जब हम कानून की परिभाषा को आदिम समाजों पर प्रयुक्त करते हैं तो हम यह पाते हैं कि वह परिभाषा आदिम समाजों में ठीक-ठीक नहीं बैठती है। दुनिया में अनेक आदिम समाजों में हम यह पाते हैं कि इन समाजों में न कोई अदालत है और न पुलिस-संगठन। अनेक आदिम समाजों में तो कानून का उल्लंघन होने पर उसका विचार या नातेदारों द्वारा ही हो जाता है। दण्ड का स्वरूप भी आधुनिक समाज से काफी भिन्न होता है। 'जैसे को तैसा' का सिद्धान्त लागू किया जाता है और उसे उसी कार्य के अनुरूप सजा दी जाती है, या मार डाला जाता है या मार-पीटकर छोड़ दिया जाता है। परन्तु इस अन्तर के अलावा भी आदिम समाजों तथा आधुनिक समाजों के कानून में तीन और प्रमुख अन्तरों का उल्लेख श्री लोई (Lowie) ने किया है - (1) नातेदारी (Kinship) – अगर हम आधुनिक समाजों का विश्लेषण करें तो यह पाते है कि यहाँ कानून का विस्तार एक क्षेत्र के अन्तर्गत होता है। भारतवर्ष में क्षेत्र (territory) आधार दो हैं-एक तो राज्य-सरकार और दूसरा केन्द्रीय सरकार। बहुत से कानून है जो राज्य-सरकार पास करती है और ये कानून उस राज्य के क्षेत्र के अन्दर ही लागू होते हैं। इस विपरीत केन्द्र ऐसे कानून को भी पास कर सकता है जो सारे देश में लागू होता है। दोनों के कानूनों का ही एक निश्चित क्षेत्र होता है और ये कानून उस क्षेत्र में रहने वालों पर लागू हैं। परन्तु आदिकालीन कानूनों का यह पक्ष अत्यन्त ही दुर्बल प्रतीत होता है। आदिम समाजों में कानूनों का प्रतिपादन किसी क्षेत्र के आधार पर नहीं होता, बल्कि नातेदारी के आधार पर होता है । नातेदारी या रक्त-सम्बन्ध का नातेदारी के महत्त्व की एक सामान्य अभिव्यक्ति यह है कि इन समाजों में मुखिया, शासक या राजा प्राय : वंशानुगत होता है और पिता की मृत्यु के बाद उसका लड़का स्वतः ही शासक या मुखिया माना जाता है । रक्त-सम्बन्ध के आधार पर समाज में संगठन और सुव्यवस्था कायम रखना इन समाजों में काफी सरल भी होता है। क्योंकि इससे ## आदिकालीन राज्यतंत्र-कानून, न्याय तथा सरकार 307 दढ़ अन्य किसी भी बन्धन का आविष्कार आदिम लोग कर नहीं पाए हैं । रक्त-सम्बन्ध को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता, इस कारण रक्त-सम्बन्धियों के द्वारा जो कानून बनाया जाता है वह अपने गोत्र के लिए कानून बनाता है और उसका पालन करवाता है। प्रायः यह देखा जाता है कि कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य होते हैं। एक गोत्र का मुखिया दूसरी प्रमुख विशेषता यह है कि इन कानूनों की Public opinion) - आदिकालीन कानून की विवेचना आचार के सामान्य नियमों का कानून की साथ इतना अधिक धुला-मिला होता है कि इनको एक-दूसरे से अलग अस्तित्व नहीं है। वास्तव में प्रथा, आचार, धर्म आदि से पृथक् आदिकालीन कानूनों का कोई अलग अस्तित्व नहीं है। श्री मैलिनोवस्की ने आदिकालीन कानून के इस पक्ष पर बल देते हुए लिखा है कि जनजातीय समाजों में कानून मुख्यतः कर्त्तव्यों और अधिकारों का एक योग है जिसे परस्पर आदान-प्रदान द्वारा तथा प्रचार के आधार पर क्रियाशील रखा जाता है। आदिम समाजों में कानूनी पर प्रथा, आचार और धर्म का ही केवल प्रभाव नहीं होता बल्कि जनमत का भी बहुत प्रभाव हुआ करता है। इसका कारण भी स्पष्ट है। आदिम समाजों का आकार आधुनिक समाजों की भाँति विशाल नहीं होता। सरल तथा छोटा होने के कारण इन समाजों में सामाजिक अन्तःक्रिया का क्षेत्र बहुत ही कम होता है जिसके फलस्वरूप प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप जानता और पहचानता है और साथ ही अनेक आर्थिक तथा सामाजिक विषयों में वे एक-दूसरे पर निर्भर भी होते हैं। इन आदिम समाजों के विषय में एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि एक समाज के सदस्यों की प्रमुख समस्याएँ प्राय : एक समान होती हैं क्योंकि प्रत्येक समाज में आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिस्थितियाँ प्रायः सबके लिए एक समान ही होती हैं। समस्याएँ प्रायः एक-सी होने के कारण जनमत के विभिन्न रूप भी विकसित नहीं हो पाते। एक-सा होने पर भी यह जनमत बहुत प्रभावशाली होता है। आदिम समाज के सदस्यों की पारस्परिक अन्योन्याश्रितता के कारण जनमत का यह प्रभाव और भी अधिक होता है। इसी कारण आदिम समाजों के जनमत में वह सत्ता निहित होती है जो व्यक्ति के व्यवहारों पर नियन्त्रण और शासन करती है। इस जनमत का डर प्रत्येक सदस्य को होता है । जनमत जो व्यवहार उचित मान ले उसे उसी रूप में स्वीकार कर लेना ही ठीक है अन्यथा समूह से बहिष्कृत हो जाने का डर सदैव रहता है। प्रत्येक सदस्य इस विषय में सचेत है और यह देखता है कि दूसरे लोग जनमत के निर्देश के अनुसार कार्य कर रहे हैं या नहीं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति एक 'पुलिसमैन' के रूप में इस अर्थ में कार्य करता रहता है कि वह अन्य लोगों के व्यवहार पर कड़ी निगरानी रखता है। इस कारण इन 'पुलिसमैनों' की निगाह बचाकर कुछ भी करना असंभव है और किसी भी रूप में किसी नियम को तोड़ने पर उस अपराध से रक्षा पाने की सम्भावना भी उतनी ही कम है। इन समाजों में एक व्यक्ति समूह की परवाह किए बिना जीवित रहने का सपना नहीं देख सकता, इसलिए जनमत के सामने उसे झुकना पड़ता है; और जहाँ प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे को अनिष्ठ रूप से जानता-पहचानता है वहाँ सामाजिक नियम को तोड़कर व्यक्ति कैसे बचकर छिपकर रह सकता है। एक समान जनमत, एक समान नियमों को जन्म देता है जो समान रूप से लागू हो सकता है। एक समान जनमत, पाक धर्म, परम्परा तथा आचार पर आधारित होते हैं। आधुनिक अर्थ में कानून कहा जा सकता है या नहीं यह दूसरी बात है, परन्तु यदि कानून को ## सामाजिक मानवशास्त्र की रूपरेखा 308 इसलिए मान्यता प्राप्त समूह के सदस्यों के व्यवहारों नियन्त्रक के रूप में मान लिया जाए तो आदिम समाज के ये नियम भी कानून ही हैं, विशेषकर इस अर्थ में कि इनके पीछे समूह की अभिमति है. ये समूह के प्रत्येक सदस्य द्वारा लागू किए जाते हैं तथा इनको तोड़ने पर व्यक्ति के हित के लिए घातक है। राज्य या समुदाय अपने हितों की रक्षा के लिए ## अपराध और टार्ट (Crime and Tort) - सामान्यतः अपराध वह कार्य है जो समूह प्रतिपादित करता है. इन नियमों को तोड़ना या इनके विपरीत एक व्यक्ति के व्यक्तिगत हितों के विरुद्ध काम करने को 'टॉर्ट' (tort) कहते हैं। इसते जो उस व्यक्ति के विरुद्ध टॉर्ट किया गया है वह व्यक्ति (न कि राज्य) समूह के विरुद्ध कार्यवाही करता है और उसे सजा देता है; परन्तु टॉर्ट के मामले में राज्य से दे कोई मतलब नहीं होता। आदिम समाजों में अपराध और टॉर्ट के पीछे विशेष अन्तर नहीं माना जाता। अते हैं उर आदिम समाज में अधिकतर व्यक्ति. नातेदारों या गोत्र के विरुद्ध अपरध होता है। अगर कोई एक व्यक्ति को सामान्य हानि पहुँचाता है तो वह व्यक्ति या उसके रिश्तेदार हानि पहुँचाने वाले व्यक्ति या उसके रिश्तेदारों से बदला लेने हैं। उसी प्रकार अगर एक गोत्र के किसी सदस्य को दूसरे गोत्र के किसी सदस्य ने हानि पहुँचाई है तो, दूसरा गोत्र पहले गोत्र से बदला लेता है। दोनों ही क्षेत्र में अपरध करने वाला और उसे सजा देने वाला या वाले दो व्यक्ति या उनके नाते-रिश्तेदार ही होते हैं। समाज को समग्र रूप में अपरध के मामले में सामान्यतः दखल नहीं देता है। परन्तु इसका यह अर्थ नही है कि आदिम समाजों में अपरध के विरुद्ध समाज की कोई प्रतिक्रिया होती ही नहीं है। ऐसे अनेक अवसर होते हैं जब किसी सामाजिक नियम को तोड़ने पर समग्र समाज उसका विरोध करता है। परन्तु यह तभी किया जाता है जब समाज को यह डर होता है कि उस अपरधी-कार्य-विशेष से पूरे समाज को नुकसान पहुँच सकता है। उदाहरणार्थ, एस्कीमो समाज में किसी व्यक्ति को अन् मार डालना एक व्यक्तिगत अपरध या 'टॉर्ट' मात्र है, इसलिए इस विषय में समग्र समाज कोई कार्यवाही नहीं करता है। मरन्तु यदि यह शक हो जाय कि कोई जादू-टोना कर रहा है, अथवा कोई व्यक्ति -de भूत-प्रेत या डााइन के प्रभाव से प्रभावित होकर कार्य कर रहा है तो उसके विरुद्ध सारा समाज तुरन्त जाग उठता है और आवश्यक कार्यवाही करके उसे दबा देता है या सजा देता है। श्री लोई (Lowie) का कथन है कि क्रो इण्डियन (Crow Indian) इन नियम का भी पालन नहीं करते। वहाँ यदि कोई व्यक्ति अन्य किसी व्यक्ति पर जादू-टोना करता है तो इस विषय में समग्र समूह कुछ भी हस्तक्षेप नहीं करता। जिस पर जादू किया जाता है वह स्वयं ही उसका उत्तर देता है अर्थात् उसके विरोध में जादुई प्रतिक्रिया करता है। जैसा पहले ही बताया जा चुका है, आदिम समाजों में कानून का आधार आचार, धुर्म आदि होता है जिसके फलस्वरूप अधिकतर अपरध को 'पाप' कहकर ही परिभाषित किया जाता है। 'पाप' ईश्वरीय नियमों का उल्लंघन है, इसलिए यह विश्वास किया जाता है कि अगर कोई सामाजिक नियम को तोड़ता है तो उसे ईश्वर ही यह विश्वास अपरध को रोकने या अपरधी को दण्ड देने के विषय में समूह या समाज के उत्तरदायित्व को घटा देता है. अधिक उत्तरदायित्व अलौकिक शक्ति (supernatural power) का होता है।) ## कानून के पीछे अभिमति (Sanctions behind the Law) समाजों में पाए वाले कानून के अध्ययन से यह पता चलता है कि इन समाजों में कानून के पीछे दो प्रकार की अभिमति होती है पहली तो सकारात्मक अभिमति (Positive sanction) और दूसरी नकारात्मक अभिमति (negative sanction) । इन दोनों प्रकार की अभिमतियों के नाम से स्पष्ट है कि प्रथम श्रेणी के अन्तर्गत वे अभिमति जो कुछ कार्यों को करने का आदेश देती हैं इसे समूह की दृष्टि में अच्छे कार्य हैं। उस समूह के हितों की रक्षा होगी और इस कारण ये कल्याणकारी हैं। अतः जो इनसे सम्बन्धित नियमों का पालन करते हैं, समाज उनकी प्रशंसा करता है या अन्य रूप में उनको पुरस्कार देता है। इसके विपरीत नकारात्मक अभिमति के अन्तर्गत वे नियम आते हैं जो कुछ कार्यों को करने का निषेध करते हैं। समूह द्वारा इन कार्यों को करने से रता है ना जाता है जो समूह के हितों के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इस कारण जो ऐसे कार्यों को करते हैं उनकी समाज द्वारा निन्दा की जाती है या अन्य प्रकार से उनको दण्ड मिलता है। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि आदिम समाजों में कानून के पीछे वास्तविक परिमिति जनमत (public-opinion) है जिसका महत्त्व इन समाजों में अत्यधिक है । आदिम समाज छोटा सरल तथा एक आमने-सामने का (face to face) समाज होता है और प्रत्येक व्यक्ति अन्य सबको व्यक्तिगत रूप से जानता-पहचानता है। इसका परिणाम यह होता है कि प्रत्येक को अन्य सबकी परवाह करनी पड़ती है। एक कार्य के विषय में दूसरे क्या सोचते हैं इसका अर्थ उस कार्य को करने पर दूसरे सोचेंगे, इस सम्बन्ध में एक प्रकार की जागरूकता आदिम लोगों में सदैव होती है। जनमत का भय आदिम मानव पर सदा ही छाया होता है, क्योंकि समाज व का बहिष्कार उसके लिए भयंकर सिद्ध हो सकता है, यह बात वह जानता है। श्री मैलिनोवस्की ने इसका एक अति उत्तम तथा स्पष्ट कारण बताया है। आपके मतानुसार आदिवासी, कानूनों का अन्तिर पालन अन्धों की भाँति या गुलामों की भाँति नहीं करते और न ही बिना किसी कारण के आप-से-आप नियमों का पालन किया जाता है। आदिम समाजों में पारस्परिक अन्योन्याश्रितता (inter-dependence) तथा एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्य-बोध ऐसे तत्त्व हैं जो कानून का पालन अवाते हैं। श्री मैलिनोवस्की ने यह प्रमाणित किया है कि आदिम समाजों में प्रत्येक व्यक्ति या परिवार, समग्र समूह पर आश्रित है। समूह के बिना परिवार अथवा व्यक्ति अपने में अपूर्ण अपने अस्तित्व के लिए व्यक्ति या परिवार को समूह की सहायता लेनी पड़ती है। यदि कोई व्यक्ति समूह के नियमों का पालन नहीं करता तो समूह के अन्य सदस्य उसके लिए कोई कार्य नहीं करेंगे। आदिवासी के जीवन में यह एक भयंकर परिस्थिति है कि उसे सब-कुछ स्वयं करना पड़े। एक व्यक्ति या परिवार के लिए दूसरे व्यक्ति या परिवार की सहायता के बिना बवित रहना असंभव है। इस कारण, श्री मैलिनोवस्की के अनुसार, कानूनों

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