Srimad Bhagavat Mahapuran Volume 1 Sanskrit Hindi PDF
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This document is a Sanskrit-Hindi translation of the first volume of Srimad Bhagavat Mahapuran. The book details the stories, teachings and characters from the Bhagavata Purana. It is a comprehensive guide to various Hindu mythological tales, and explores different facets of Hindu spirituality.
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26 ।। ीह रः ।। मह षवेद ास- णीत ीम ागवतमहापुराण [स च , सरल ह द - ा यास हत] ( थम-ख ड) [ क ध १ से ८ तक] व...
26 ।। ीह रः ।। मह षवेद ास- णीत ीम ागवतमहापुराण [स च , सरल ह द - ा यास हत] ( थम-ख ड) [ क ध १ से ८ तक] वमेव माता च पता वमेव वमेव ब धु सखा वमेव । वमेव व ा वणं वमेव वमेव सव मम दे वदे व ।। ******ebook converter DEMO Watermarks******* ******ebook converter DEMO Watermarks******* सं० २०७१ इ यासीवाँ पुनमु ण १०,००० कुल मु ण ६,९२,७५० काशक गीता ेस, गोरखपुर—२७३००५ (गो ब दभवन-कायालय, कोलकाता का सं थान) फोन : (०५५१) २३३४७२१, २३३१२५०; फै स : (०५५१) २३३६९९७ e-mail : [email protected] website : www.gitapress.org ******ebook converter DEMO Watermarks******* ।। ीह रः ।। तीय सं करणका न नवेदन ीमद्भागवत सा ात् भगवान्का व प है। इसीसे भ -भागवतगण भगवद्भावनासे ापूवक इसक पूजा-आराधना कया करते ह। भगवान् ास-सरीखे भगव व प महापु षको जसक रचनासे ही शा त मली; जसम सकाम कम, न काम कम, साधन ान, स ान, साधनभ , सा यभ , वैधी भ , ेमा भ , मयादामाग, अनु हमाग, ै त, अ ै त और ै ता ै त आ द सभीका परम रह य बड़ी ही मधुरताके साथ भरा आ है, जो सारे मतभेद से ऊपर उठा आ अथवा सभी मतभेद का सम वय करनेवाला महान् थ है—उस भागवतक म हमा या कही जाय। इसके येक अंगसे भगवद्भावपूण पारमहं य ान-सुधा-स रताक बाढ़ आ रही है—‘य मन् पारमहं यमेकममलं ानं परं गीयते ।’ भगवान्के मधुरतम ेम-रसका छलकता आ सागर है— ीमद्भागवत। इसीसे भावुक भ गण इसम सदा अवगाहन करते ह। परम मधुर भगवद्रससे भरा आ ‘ वा - वा पदे -पदे ’ ऐसा थ बस, यह एक ही है। इसक कह तुलना नह है। व ाका तो यह भ डार ही है। ‘ व ा भागवताव धः’ स है। इस ‘परमहंससं हता’ का यथाथ आन द तो उ ह सौभा यशाली भ को कसी सीमातक मल सकता है, जो दयक स ची लगनके साथ ा-भ पूवक केवल ‘भगव ेमक ा त’ के लये ही इसका पारायण करते ह। य तो ीमद्भागवत आशीवादा मक थ है, इसके पारायणसे लौ कक-पारलौ कक सभी कारक स याँ ा त होती ह। इसम कई कारके अमोघ योग के उ लेख ह—जैसे ‘नारायण-कवच’ ( क० ६ अ० ८)-से सम त व न का नाश तथा वजय, आरो य और ऐ यक ा त; ‘पुंसवन- त’ ( क० ६ अ० १९)-से सम त कामना क पू त; ‘गजे तवन’ ( क० ८ अ० ३)-से ऋणसे मु , श ुसे छु टकारा और भा यका नाश, ‘पयो त’ ( क० ८ अ० १६)-से मनोवां छत संतानक ा त; ‘स ताह वण’ या पारायणसे ेत वसे मु । इन सब साधन का भगव ेम या भगव ा तके लये न कामभावसे योग कया जाय तो इनसे भगव ा तके पथम बड़ी सहायता मलती है। ीमद्भागवतके सेवनका यथाथ आन द तो भगव ेमी पु ष को ही ा त होता है। जो लोग अपनी व ा- बु का अ भमान छोड़कर और केवल भगव कृपाका आ य लेकर ीमद्भागवतका अ ययन करते ह, वे ही इसके भाव को अपने-अपने अ धकारके अनुसार दयंगम कर सकते ह। गीता ेसके ारा ीमद्भागवतके काशनका वचार लगभग चौबीस-पचीस वष पहलेसे हो रहा था। परंतु कई कारण से उसम दे र होती गयी। फर पाठका आया। खोज आर भ ई, ट का और पुरानी तय को दे खा गया। अ तम पू यपाद गोलोकवासी ीम म वगौडस दायाचाय गो वामी ीदामोदरलालजी शा ी और गवनमे ट सं कृत ******ebook converter DEMO Watermarks******* कॉलेजके भूतपूव सपल परम े य व र डॉ० ीगोपीनाथजी क वराज, एम्० ए० से परामश कया गया। ीक वराज महोदयके परामश, य न और प र मसे काशीके सरकारी ‘सर वती-भवन’ पु तकालयम सुर त ायः आठ सौ वषक पुरानी त दे खी गयी और गीता ेसके व ान् शा य के ारा उससे पाठ मलाया गया। इसके लये हम ेय ीक वराजजीके दयसे कृत ह। इसके पाठ नणयम मथुराके स वै णव व ान् ेय पं० जवाहरलालजी चतुवद से बड़ी सहायता मली थी, एतदथ हम उनके कृत ह । इसी समय ीमद्भागवतके अनुवादक बात भी चली और मेरे अनुरोधसे य ीमु नलालजी (वतमानम े य वामी सनातनदे वजी)-ने अनुवाद करना वीकार कया और भगव कृपासे उ ह ने सं० १९८९ के आषाढ़म उसे पूरा कर दया। उ अनुवादका संशोधन ीव लभस दायके महान् व ान् गोलोकवासी े य दे व ष पं० ीरमानाथजी भ , अपने ही साथी पं० ीरामनारायणद जी शा ी और भाई ह रकृ णदासजी गोय दकाके ारा करवाया गया। तदन तर संवत् १९९७ म ीमद्भागवतका अनुवादस हत पाठभेदक पाद- ट प णय से यु सं करण दो ख ड म का शत कया गया, जसको भावुक पाठक ने ब त ही अपनाया। इसीके साथ-साथ मूल पाठका गुटका-सं करण भी नकाला गया, जसक अबतक १,०८,२५० तयाँ छप चुक ह । इसके अन तर संवत् १९९८ म ‘क याण’ का ‘भागवताङ् क’ का शत कया गया। इसम अनुवादक शैली कुछ बदल द गयी। इस अनुवादका अ धकांश हमारे अपने ही पं० ीशा तनु वहारीजी वेद (वतमानम े य वामी ीअख डान दजी सर वती महाराज)- ने कया। कुछ ीमु नलालजी तथा पं ीरामनारायणद जी शा ीने भी कया। फर तीय महायु के कारण कई तरहक अड़चन आ गय । ीमद्भागवतके ये दोन ख ड और ‘ ीभागवताङ् क’ दोन ही अ ा य हो गये। पुनः काशनक बात बराबर चलती रही, पर कुछ-न-कुछ अड़चन आती ही रह । ‘भागवताङ् क’ वाली नयी शैलीके अनुसार अनुवादम संशोधन करना हमारे पं० ी च मनलालजी गो वामी, एम्० ए०, शा ीने आर भ भी कया। परंतु अ या य काय म अ य धक त रहनेके कारण उनसे वह काय आगे नह बढ़ सका। गत फा गुनम े य वामीजी ीअख डान दजी महाराज गोरखपुर पधारे, य ही संगवश बात चल गयी और उ ह ने कृपापूवक इस कामको करना वीकार कर लया। तदनुसार काय आर भ हो गया और भगव कृपासे अब यह छपकर पाठक के सामने तुत है। ेय ी वामीजी महाराज महीन तक लगातार अथक प र म करके यह काय नह करते तो आज इस पम इसका का शत होना स भव नह था। इस लये हमलोग तो वामीजी महाराजके कृत ह ही, भागवतके ेमी पाठक को भी उनका कृत होना चा हये । इस सं करणम अ धकांश अनुवाद ‘भागवताङ् क’ (मु यतया पं० ीशा तनु वहारीजीके ारा अनुवा दत)-के अनुसार ही है। कुछ अनुवाद तथा ब त-सी अ य साम ी पूव का शत ीमद्भागवतके दोन ख ड ( ीमु नलालजीके ारा अनुवा दत)-के अनुसार भी है। ‘भागवताङ् क’ के भावानुवादम भी पं० ीशा तनु वहारीजीके साथ-साथ ीमु नलालजी और पं० ीरामनारायणद जी शा ीका कुछ हाथ था। उसी कार इसम भी ******ebook converter DEMO Watermarks******* है। इसीसे अनुवादकके पम क ह एक महानुभावका नाम नह दया गया है। नाम- पके प र यागी पू य य सं यासी महोदय ( े य ीअख डान दजी महाराज और ेय ीसनातनदे वजी महाराज) तो नाम न दे नेसे स ही ह गे। हम तो इसको इन दोन ही महानुभाव का कृपा साद मानते ह और दोन के ही कृत ह। पं० ीरामनारायणद जी शा ी स पादक य वभागके सद य ह। अतः उनके नामक पृथक् आव यकता भी नह । पाठक क जानकारीके लये यह प रचय दया गया है। व तुतः अनुवादक महोदय के लये इसक कोई आव यकता नह थी। उ ह ने जो कुछ कया है, कृपापूवक ही कया है और उनक कृपा तथा सद्भावना हम सदा सहज ही ा त है । इसम ोक का केवल अ रानुवाद नह है, पाठक को ोक का भाव भलीभाँ त समझानेके लये ोक म आये ए येक श दके भावक पूण र ा करते ए छोटे -छोटे वा य म उनक ा या क गयी है, साथ ही ब त व तार न हो, इसका भी यान रखा गया है। इसे अनुवाद न कहकर ‘सरल सं त ा या‘ कहना अ धक उपयु होगा। थान- थानपर, वशेष करके दशम क धम कई जगह ीभगवान्क मधुर लीला के रसा वादनके लये और लीलारह यको समझनेके लये नयी-नयी ट प णयाँ भी दे द गयी ह, जससे इसक उपादे यता और सु दरता वशेष बढ़ गयी है। साथ ही आर भम क दपुराणो एक छोटा माहा य, ीमद्भागवतक पूजन व ध आ द स ताहपारायणक व ध तथा आव यक साम ीक सूची एवं अ तम क दपुराणो भागवतमाहा य और व तृत योग व ध दे द गयी है, इस लये पहले सं करणक अपे ा इसम पृ भी ब त बढ़ गये ह। च भी अ धक दये गये ह। ये कुछ इस सं करणक वशेषताएँ ह । इसके पाठ-संशोधन, अनुवाद, ूफ-संशोधन आ दम गो वामी ी च मनलालजी और पं० ीरामनारायणद जी शा ीने बड़ा काम कया है। सभी बात म सावधानी रखी गयी है, तथा प इतने बड़े थक छपाईम जहाँ-तहाँ भूल अव य रही ह गी। कृपालु पाठक से ाथना है क उ ह पाठ, अनुवाद या छपाईम जहाँ भूल दखलायी दे , कृपया वे ोरेवार लख द, जससे आगामी सं करणम यथायो य संशोधन कर दया जाय। स दय पाठक से ाथना है क असावधानतावश होनेवाली भूल के लये वे मा कर । अ तम नवेदन है क यह सब जो कुछ आ है, इसम भगव कृपा ही कारण है और सब तो न म मा है। म अपना बड़ा सौभा य समझता ँ और अपने त ीभगवान्क बड़ी कृपा मानता ँ, जससे इधर कई महीने ायः ीम ागवतके ही पठन- च तन आ दम लगे । —हनुमान साद पो ार ******ebook converter DEMO Watermarks******* ।। ीह रः ।। वषय-सूची थम ख ड ीमद्भागवतमाहा य १-दे व ष नारदक भ से भट २-भ का ःख र करनेके लये नारदजीका उ ोग ३-भ के क क नवृ ४-गोकण पा यान ार भ ५-धु धुकारीको ेतयो नक ा त और उससे उ ार ६-स ताहय क व ध थम क ध १- ीसूतजीसे शौनका द ऋ षय का २-भगव कथा और भगवद्भ का माहा य ३-भगवान्के अवतार का वणन ४-मह ष ासका असंतोष ५-भगवान्के यश-क तनक म हमा और दे व ष नारदजीका पूवच र ६-नारदजीके पूवच र का शेष भाग ७-अ थामा ारा ौपद के पु का मारा जाना और अजुनके ारा अ थामाका मानमदन ८-गभम परी त्क र ा, कु तीके ारा भगवान्क तु त और यु ध रका शोक ९-यु ध रा दका भी मजीके पास जाना और भगवान् ीकृ णक तु त करते ए भी मजीका ाण याग करना १०- ीकृ णका ारका-गमन ११- ारकाम ीकृ णका राजो चत वागत १२-परी त्का ज म १३- व रजीके उपदे शसे धृतरा और गा धारीका वनम जाना ******ebook converter DEMO Watermarks******* १४-अपशकुन दे खकर महाराज यु ध रका शंका करना और अजुनका ारकासे लौटना १५-कृ ण वरह थत पा डव का परी त्को रा य दे कर वग सधारना १६-परी त्क द वजय तथा धम और पृ वीका संवाद १७-महाराज परी त् ारा क लयुगका दमन १८-राजा परी त्को शृंगी ऋ षका शाप १९-परी त्का अनशन त और शुकदे वजीका आगमन तीय क ध १- यान- व ध और भगवान्के वराट् व पका वणन २-भगवान्के थूल और सू म प क धारणा तथा ममु और स ोमु का वणन ३-कामना के अनुसार व भ दे वता क उपासना तथा भगवद्भ के ाधा यका न पण ४-राजाका सृ वषयक और शुकदे वजीका कथार भ ५-सृ -वणन ६- वराट् व पक वभू तय का वणन ७-भगवान्के लीलावतार क कथा ८-राजा परी त्के व वध ९- ाजीका भगव ामदशन और भगवान्के ारा उ ह चतुः ोक भागवतका उपदे श १०-भागवतके दस ल ण तृतीय क ध १-उ व और व रक भट २-उ वजी ारा भगवान्क बाललीला का वणन ३-भगवान्के अ य लीलाच र का वणन ४-उ वजीसे वदा होकर व रजीका मै ेय ऋ षके पास जाना ५- व रजीका और मै ेयजीका सृ म वणन ६- वराट् शरीरक उ प ७- व रजीके ८- ाजीक उ प ९- ाजी ारा भगवान्क तु त ******ebook converter DEMO Watermarks******* १०-दस कारक सृ का वणन ११-म व तरा द काल वभागका वणन १२-सृ का व तार १३-वाराह-अवतारक कथा १४- द तका गभधारण १५-जय- वजयको सनका दका शाप १६-जय- वजयका वैकु ठसे पतन १७- हर यक शपु और हर या का ज म तथा हर या क द वजय १८- हर या के साथ वराहभगवान्का यु १९- हर या -वध २०- ाजीक रची ई अनेक कारक सृ का वणन २१-कदमजीक तप या और भगवान्का वरदान २२-दे व तके साथ कदम जाप तका ववाह २३-कदम और दे व तका वहार २४- ीक पलदे वजीका ज म २५-दे व तका तथा भगवान् क पल ारा भ योगक म हमाका वणन २६-महदा द भ - भ त व क उ प का वणन २७- कृ त-पु षके ववेकसे मो - ा तका वणन २८-अ ांगयोगक व ध २९-भ का मम और कालक म हमा ३०-दे ह-गेहम आस पु ष क अधोग तका वणन ३१-मनु ययो नको ा त ए जीवक ग तका वणन ३२-धूममाग और अ चरा द मागसे जानेवाल क ग तका और भ योगक उ कृ ताका वणन ३३-दे व तको त व ान एवं मो पदक ा त चतुथ क ध १- वाय भुव-मनुक क या के वंशका वणन २-भगवान् शव और द जाप तका मनोमा ल य ३-सतीका पताके यहाँ य ो सवम जानेके लये आ ह करना ******ebook converter DEMO Watermarks******* ४-सतीका अ न वेश ५-वीरभ कृत द य व वंस और द वध ६- ा द दे वता का कैलास जाकर ीमहादे वजीको मनाना ७-द य क पू त ८- ुवका वन-गमन ९- ुवका वर पाकर घर लौटना १०-उ मका मारा जाना, ुवका य के साथ यु ११- वाय भुव-मनुका ुवजीको यु बंद करनेके लये समझाना १२- ुवजीको कुबेरका वरदान और व णुलोकक ा त १३- ुववंशका वणन, राजा अंगका च र १४-राजा वेनक कथा १५-महाराज पृथुका आ वभाव और रा या भषेक १६-वंद जन ारा महाराज पृथुक तु त १७-महाराज पृथुका पृ वीपर कु पत होना और पृ वीके ारा उनक तु त करना १८-पृ वी-दोहन १९-महाराज पृथुके सौ अ मेध य २०-महाराज पृथुक य शालाम ी व णुभगवान्का ा भाव २१-महाराज पृथुका अपनी जाको उपदे श २२-महाराज पृथुको सनका दका उपदे श २३-राजा पृथुक तप या और परलोकगमन २४-पृथुक वंशपर परा और चेता को भगवान् का उपदे श २५-पुरंजनोपा यानका ार भ २६-राजा पुरंजनका शकार खेलने वनम जाना और रानीका कु पत होना २७-पुरंजनपुरीपर च डवेगक चढ़ाई तथा कालक याका च र २८-पुरंजनको ीयो नक ा त और अ व ातके उपदे शसे उसका मु होना २९-पुरंजनोपा यानका ता पय ३०- चेता को ी व णुभगवान्का वरदान ३१- चेता को ीनारदजीका उपदे श और उनका परमपद-लाभ ******ebook converter DEMO Watermarks******* प चम क ध १- य त-च र २-आ नी -च र ३-राजा ना भका च र ४-ऋषभदे वजीका रा यशासन ५-ऋषभजीका अपने पु को उपदे श दे ना और वयं अवधूतवृ हण करना ६-ऋषभदे वजीका दे ह याग ७-भरत-च र ८-भरतजीका मृगके मोहम फँसकर मृगयो नम ज म लेना ९-भरतजीका ा णकुलम ज म १०-जडभरत और राजा र गणक भट ११-राजा र गणको भरतजीका उपदे श १२-र गणका और भरतजीका समाधान १३-भवाटवीका वणन और र गणका संशयनाश १४-भवाटवीका प ीकरण १५-भरतके वंशका वणन १६-भुवनकोशका वणन १७-गंगाजीका ववरण और भगवान् शंकरकृत संकषणदे वक तु त १८- भ - भ वष का वणन १९- क पु ष और भारतवषका वणन २०-अ य छः प तथा लोकालोक-पवतका वणन २१-सूयके रथ और उसक ग तका वणन २२- भ - भ ह क थ त और ग तका वणन २३- शशुमारच का वणन २४-रा आ दक थ त, अतला द नीचेके लोक का वणन २५- ीसङ् कषणदे वका ववरण और तु त २६-नरक क व भ ग तय का वणन ष कध ******ebook converter DEMO Watermarks******* १-अजा मलोपा यानका ार भ २- व णु त ारा भागवतधम- न पण और अजा मलका परमधामगमन ३-यम और यम त का संवाद ४-द के ारा भगवान्क तु त और भगवान्का ा भाव ५- ीनारदजीके उपदे शसे द पु क वर तथा नारदजीको द का शाप ६-द जाप तक साठ क या के वंशका ववरण ७-बृह प तजीके ारा दे वता का याग और व पका दे वगु के पम वरण ८-नारायणकवचका उपदे श ९- व पका वध, वृ ासुर ारा दे वता क हार और भगवान्क ेरणासे दे वता का दधी च ऋ षके पास जाना १०-दे वता ारा दधी च ऋ षक अ थय से व नमाण और वृ ासुरक सेनापर आ मण ११-वृ ासुरक वीरवाणी और भगव ा त १२-वृ ासुरका वध १३-इ पर ह याका आ मण १४-वृ ासुरका पूवच र १५- च केतुको अं गरा और नारदजीका उपदे श १६- च केतुका वैरा य तथा संकषणदे वके दशन १७- च केतुको पावतीजीका शाप १८-अ द त और द तक स तान क तथा म द्गण क उ प का वणन १९-पुंसवन- तक व ध स तम क ध १-नारद-यु ध र-संवाद और जय- वजयक कथा २- हर या का वध होनेपर हर यक शपुका अपनी माता और कुटु बय को समझाना ३- हर यक शपुक तप या और वर ा त ४- हर यक शपुके अ याचार और ादके गुण का वणन ५- हर यक शपुके ारा ादजीके वधका य न ६- ादजीका असुर-बालक को उपदे श ७- ादजी ारा माताके गभम ा त ए नारदजीके उपदे शका वणन ८-नृ सहभगवान्का ा भाव, हर यक शपुका वध एवं ा द दे वता ारा भगवान्क ******ebook converter DEMO Watermarks******* तु त ९- ादजीके ारा नृ सहभगवान्क तु त १०- ादजीके रा या भषेक और पुरदहनक कथा ११-मानवधम, वणधम और ीधमका न पण १२- चय और वान थआ म के नयम १३-य तधमका न पण और अवधूत- ाद-संवाद १४-गृह थस ब धी सदाचार १५-गृह थ के लये मो धमका वणन अ म कध १-म व तर का वणन २- ाहके ारा गजे का पकड़ा जाना ३-गजे के ारा भगवान्क तु त और उसका संकटसे मु होना ४-गज और ाहका पूवच र तथा उनका उ ार ५-दे वता का ाजीके पास जाना और ाकृत भगवान्क तु त ६-दे वता और दै य का मलकर समु म थनके लये उ ोग करना ७-समु म थनका आर भ और भगवान् शंकरका वषपान ८-समु से अमृतका कट होना और भगवान्का मो हनी-अवतार हण करना ९-मो हनी- पसे भगवान्के ारा अमृत बाँटा जाना १०-दे वासुर-सं ाम ११-दे वासुर-सं ामक समा त १२-मो हनी पको दे खकर महादे वजीका मो हत होना १३-आगामी सात म व तर का वणन १४-मनु आ दके पृथक्-पृथक् कम का न पण १५-राजा ब लक वगपर वजय १६-क यपजीके ारा अ द तको पयो तका उपदे श १७-भगवान्का कट होकर अ द तको वर दे ना १८-वामनभगवान्का कट होकर राजा ब लक य शालाम पधारना १९-भगवान् वामनका ब लसे तीन पग पृ वी माँगना, ब लका वचन दे ना और शु ाचायजीका उ ह रोकना ******ebook converter DEMO Watermarks******* २०-भगवान् वामनजीका वराट् प होकर दो ही पगसे पृ वी और वगको नाप लेना २१-ब लका बाँधा जाना २२-ब लके ारा भगवान्क तु त और भगवान्का उसपर स होना २३-ब लका ब धनसे छू टकर सुतललोकको जाना २४-भगवान्के म यावतारक कथा ******ebook converter DEMO Watermarks******* चतुः ोक भागवत अहमेवासमेवा े ना यद् यत् सदसत् परम् । प ादहं यदे त च योऽव श येत सोऽ यहम् ।।१।। ऋतेऽथ यत् तीयेत न तीयेत चा म न । त ादा मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तमः ।।२।। यथा महा त भूता न भूतेषू चावचे वनु । व ा य व ा न तथा तेषु न ते वहम् ।।३।। एतावदे व ज ा यंत व ज ासुनाऽऽ मनः । अ वय तरेका यां यत् यात् सव सवदा ।।४।। सृ के पूव केवल म-ही-म था। मेरे अ त र न थूल था न सू म और न तो दोन का कारण अ ान। जहाँ यह सृ नह है, वहाँ म-ही-म ँ और इस सृ के पम जो कुछ तीत हो रहा है, वह भी म ँ; और जो कुछ बच रहेगा, वह भी म ही ँ ।।१।। वा तवम न होनेपर भी जो कुछ अ नवचनीय व तु मेरे अ त र मुझ परमा माम दो च मा क तरह म या ही तीत हो रही है, अथवा व मान होनेपर भी आकाश-म डलके न म रा क भाँ त जो मेरी ती त नह होती, इसे मेरी माया समझनी चा हये ।।२।। जैसे ा णय के पंचभूतर चत छोटे -बड़े शरीर म आकाशा द पंचमहाभूत उन शरीर के काय पसे न मत होनेके कारण वेश करते भी ह और पहलेसे ही उन थान और प म कारण पसे व मान रहनेके कारण वेश नह भी करते, वैसे ही उन ा णय के शरीरक से म उनम आ माके पसे वेश कये ए ँ और आ म से अपने अ त र और कोई व तु न होनेके कारण उनम व नह भी ँ ।।३।। यह नह , यह नह —इस कार नषेधक प तसे और यह है, यह है—इस अ वयक प तसे यही स होता है क सवातीत एवं सव व प भगवान् ही सवदा और सव थत ह, वे ही वा त वक त व ह। जो आ मा अथवा परमा माका त व जानना चाहते ह, उ ह केवल इतना ही जाननेक आव यकता है ।।४।। ( ीमद्भा० २।९।३२-३५) ******ebook converter DEMO Watermarks******* ीमद्भागवत-माहा य ( वयं ीभगवान्के ीमुखसे ाजीके त क थत) ीमद्भागवतं नाम पुराणं लोक व ुतम् । शृणुया या यु ो मम स तोषकारणम् ।।१।। लोक व यात ीमद्भागवत नामक पुराणका त दन ायु होकर वण करना चा हये। यही मेरे संतोषका कारण है । न यं भागवतं य तु पुराणं पठते नरः । य रं भवे य क पलादानजं फलम् ।।२।। जो मनु य त दन भागवतपुराणका पाठ करता है, उसे एक-एक अ रके उ चारणके साथ क पला गौ दान दे नेका पु य होता है । ोकाध ोकपादं वा न यं भागवतोद्भवम् । पठते शृणुयाद् य तु गोसह फलं लभेत् ।।३।। जो त दन भागवतके आधे ोक या चौथाई ोकका पाठ अथवा वण करता है, उसे एक हजार गोदानका फल मलता है । यः पठे त् यतो न यं ोकं भागवतं सुत । अ ादशपुराणानां फलमा ो त मानवः ।।४।। पु ! जो त दन प व च होकर भागवतके एक ोकका पाठ करता है, वह मनु य अठारह पुराण के पाठका फल पा लेता है । न यं मम कथा य त त त वै णवाः । क लबा ा नरा ते वै येऽचय त सदा मम ।।५।। जहाँ न य मेरी कथा होती है, वहाँ व णुपाषद ाद आ द व मान रहते ह। जो मनु य सदा मेरे भागवतशा क पूजा करते ह, वे क लके अ धकारसे अलग ह, उनपर क लका वश नह चलता । वै णवानां तु शा ा ण येऽचय त गृहे नराः । सवपाप व नमु ा भव त सुरव दताः ।।६।। जो मानव अपने घरम वै णवशा क पूजा करते ह, वे सब पाप से मु होकर दे वता ारा व दत होते ह । येऽचय त गृहे न यं शा ं भागवतं कलौ । आ फोटय त व ग त तेषां ीतो भवा यहम् ।।७।। ******ebook converter DEMO Watermarks******* जो लोग क लयुगम अपने घरके भीतर त दन भागवतशा क पूजा करते ह, वे [क लसे नडर होकर] ताल ठ कते और उछलते-कूदते ह, म उनपर ब त स रहता ँ । याव ना न हे पु शा ं भागवतं गृहे । तावत् पब त पतरः ीरं स पमधूदकम् ।।८।। पु ! मनु य जतने दन तक अपने घरम भागवतशा रखता है, उतने समयतक उसके पतर ध, घी, मधु और मीठा जल पीते ह । य छ त वै णवे भ या शा ं भागवतं ह ये । क पको टसह ा ण मम लोके वस त ते ।।९।। जो लोग व णुभ पु षको भ पूवक भागवतशा समपण करते ह, वे हजार करोड़ क प तक (अन तकालतक) मेरे वैकु ठधामम वास करते ह । येऽचय त सदा गेहे शा ं भागवतं नराः । ी णता तै वबुधा यावदाभूतसं लवम् ।।१०।। जो लोग सदा अपने घरम भागवतशा का पूजन करते ह, वे मानो एक क पतकके लये स पूण दे वता को तृ त कर दे ते ह । ोकाध ोकपादं वा वरं भागवतं गृहे । शतशोऽथ सह ै कम यैः शा सं हैः ।।११।। य द अपने घरपर भागवतका आधा ोक या चौथाई ोक भी रहे, तो यह ब त उ म बात है, उसे छोड़कर सैकड़ और हजार तरहके अ य थ के सं हसे भी या लाभ है? न य य त ते शा ं गृहे भागवतं कलौ । न त य पुनरावृ या यपाशात् कदाचन ।।१२।। क लयुगम जस मनु यके घरम भागवतशा मौजूद नह है, उसको यमराजके पाशसे कभी छु टकारा नह मलता । कथं स वै णवो ेयः शा ं भागवतं कलौ । गृहे न त ते य य पचाद धको ह सः ।।१३।। इस क लयुगम जसके घर भागवतशा मौजूद नह है, उसे कैसे वै णव समझा जाय? वह तो चा डालसे भी बढ़कर नीच है! सव वेना प लोकेश कत ः शा सं हः । वै णव तु सदा भ या तु ् यथ मम पु क ।।१४।। लोकेश ा! पु ! मनु यको सदा मुझे भ -पूवक संतु करनेके लये अपना सव व दे कर भी वै णवशा का सं ह करना चा हये । य य भवेत् पु यं शा ं भागवतं कलौ । ******ebook converter DEMO Watermarks******* त त सदै वाहं भवा म दशैः सह ।।१५।। क लयुगम जहाँ-जहाँ प व भागवतशा रहता है, वहाँ-वहाँ सदा ही म दे वता के साथ उप थत रहता ँ । त सवा ण तीथा न नद नदसरां स च । य ाः स तपुरी न यं पु याः सव शलो चयाः ।।१६।। यही नह —वहाँ नद , नद और सरोवर पम स सभी तीथ वास करते ह; स पूण य , सात पु रयाँ और सभी पावन पवत वहाँ न य नवास करते ह । ोत ं मम शा ं ह यशोधमजया थना । पाप याथ लोकेश मो ाथ धमबु ना ।।१७।। लोकेश! यश, धम और वजयके लये तथा पाप य एवं मो क ा तके लये धमा मा मनु यको सदा ही मेरे भागवतशा का वण करना चा हये । ीमद्भागवतं पु यमायुरारो यपु दम् । पठना वणाद् वा प सवपापैः मु यते ।।१८।। यह पावन पुराण ीमद्भागवत आयु, आरो य और पु को दे नेवाला है; इसका पाठ अथवा वण करनेसे मनु य सब पाप से मु हो जाता है । न शृ व त न य त ीमद्भागवतं परम् । स यं स यं ह लोकेश तेषां वामी सदा यमः ।।१९।। लोकेश! जो इस परम उ म भागवतको न तो सुनते ह और न सुनकर स ही होते ह, उनके वामी सदा यमराज ही ह—वे सदा यमराजके ही वशम रहते ह—यह म स य-स य कह रहा ँ । न ग छ त यदा म यः ोतुं भागवतं सुत । एकाद यां वशेषेण ना त पापरत ततः ।।२०।। पु ! जो मनु य सदा ही— वशेषतः एकादशीको भागवत सुनने नह जाता, उससे बढ़कर पापी कोई नह है । ोकं भागवतं चा प ोकाध पादमेव वा । ल खतं त ते य य गृहे त य वसा यहम् ।।२१।। जसके घरम एक ोक, आधा ोक अथवा ोकका एक ही चरण लखा रहता है, उसके घरम म नवास करता ँ । सवा मा भगमनं सवतीथावगाहनम् । न तथा पावनं नॄणां ीमद्भागवतं यथा ।।२२।। मनु यके लये स पूण पु य-आ म क या ा या स पूण तीथ म नान करना भी वैसा प व कारक नह है, जैसा ीमद्भागवत है । ******ebook converter DEMO Watermarks******* य य चतुव ीमद्भागवतं भवेत् । ग छा म त त ाहं गौयथा सुतव सला ।।२३।। चतुमुख! जहाँ-जहाँ भागवतक कथा होती है, वहाँ-वहाँ म उसी कार जाता ,ँ जैसे पु व सला गौ अपने बछड़ेके पीछे -पीछे जाती है । म कथावाचकं न यं म कथा वणे रतम् । म कथा ीतमनसं नाहं य या म तं नरम् ।।२४।। जो मेरी कथा कहता है, जो सदा उसे सुननेम लगा रहता है तथा जो मेरी कथासे मन- ही-मन स होता है, उस मनु यका म कभी याग नह करता । ीमद्भागवतं पु यं ् वा नो ते ह यः । सांव सरं त य पु यं वलयं या त पु क ।।२५।। पु ! जो परम पु यमय ीमद्भागवतशा को दे खकर अपने आसनसे उठकर खड़ा नह हो जाता, उसका एक वषका पु य न हो जाता है । ीमद्भागवतं ् वा युथाना भवादनैः । स मानयेत तं ् वा भवेत् ी तममातुला ।।२६।। जो ीमद्भागवतपुराणको दे खकर खड़ा होने और णाम करने आ दके ारा उसका स मान करता है, उस मनु यको दे खकर मुझे अनुपम आन द मलता है । ् वा भागवतं रात् मेत् स मुखं ह यः । पदे पदे ऽ मेध य फलं ा ो यसंशयम् ।।२७।। जो ीमद्भागवतको रसे ही दे खकर उसके स मुख जाता है, वह एक-एक पगपर अ मेध य के पु यको ा त करता है—इसम त नक भी संदेह नह है । उ थाय णमेद ् यो वै ीमद्भागवतं नरः । धनपु ां तथा दारान् भ च ददा यहम् ।।२८।। जो मानव खड़ा होकर ीमद्भागवतको णाम करता है, उसे म धन, ी, पु और अपनी भ दान करता ँ । महाराजोपचारै तु ीमद्भागवतं सुत । शृ व त ये नरा भ या तेषां व यो भवा यहम् ।।२९।। हे पु ! जो लोग महाराजो चत साम य से यु होकर भ पूवक ीमद्भागवतक कथा सुनते ह, म उनके वशीभूत हो जाता ँ । ममो सवेषु सवषु ीमद्भागवतं परम् । शृ व त ये नरा भ या मम ी यै च सु त ।।३०।। व ालङ् करणैः पु पैधूपद पोपहारकैः । ******ebook converter DEMO Watermarks******* वशीकृतो हं तै स या स प तयथा ।।३१।। सु त! जो लोग मेरे पव से स ब ध रखनेवाले सभी उ सव म मेरी स ताके लये व , आभूषण, पु प, धूप और द प आ द उपहार अपण करते ए परम उ म ीमद्भागवतपुराणका भ पूवक वण करते ह, वे मुझे उसी कार अपने वशम कर लेते ह, जैसे प त ता ी अपने साधु वभाववाले प तको वशम कर लेती है । ( क दपुराण, व णुख ड, मागशीषमाहा य अ० १६) ******ebook converter DEMO Watermarks******* ीशुकदे वजीको नम कार यं ज तमनुपेतमपेतकृ यं ै पायनो वरहकातर आजुहाव । पु े त त मयतया तरवोऽ भने - तं सवभूत दयं मु नमानतोऽ म ।। (१।२।२) जस समय ीशुकदे वजीका य ोपवीत-सं कार भी नह आ था, सुतरां लौ कक- वै दक कम के अनु ानका अवसर भी नह आया था, उ ह अकेले ही सं यास लेनेके उ े यसे जाते दे खकर उनके पता ासजी वरहसे कातर होकर पुकारने लगे—‘बेटा! बेटा!’ उस समय त मय होनेके कारण ीशुकदे वजीक ओरसे वृ ने उ र दया। ऐसे, सबके दयम वराजमान ीशुकदे व मु नको म नम कार करता ँ । यः वानुभावम खल ु तसारमेक- म या मद पम त ततीषतां तमोऽ धम् । संसा रणां क णयाऽऽह पुराणगु ं तं ाससूनुमुपया म गु ं मुनीनाम् ।। (१।२।३) यह ीमद्भागवत अ य त गोपनीय-रह या मक पुराण है। यह भगव व पका अनुभव करानेवाला और सम त वेद का सार है। संसारम फँसे ए जो लोग इस घोर अ ाना धकारसे पार जाना चाहते ह, उनके लये आ या मक त व को का शत करनेवाला यह एक अ तीय द पक है। वा तवम उ ह पर क णा करके बड़े-बड़े मु नय के आचाय ीशुकदे वजीने इसका वणन कया है। म उनक शरण हण करता ँ । वसुख नभृतचेता तद् ुद ता यभावो- ऽ य जत चरलीलाकृ सार तद यम् । तनुत कृपया य त वद पं पुराणं तम खलवृ जन नं ाससूनुं नतोऽ म ।। (१२।१२।६८) ीशुकदे वजी महाराज अपने आ मान दम ही नम न थे। इस अख ड अ ै त थ तसे उनक भेद सवथा नवृ हो चुक थी। फर भी मुरलीमनोहर यामसु दरक मधुमयी, मंगलमयी मनोहा रणी लीला ने उनक वृ य को अपनी ओर आक षत कर लया और उ ह ने जगत्के ा णय पर कृपा करके भगव वको का शत करनेवाले इस महापुराणका व तार कया। म उ ह सवपापहारी ासन दन भगवान् ीशुकदे वजीके चरण म नम कार ******ebook converter DEMO Watermarks******* करता ँ । ******ebook converter DEMO Watermarks******* ीमद्भागवतक म हमा ीमद्भागवतक म हमा म या लखू? ँ उसके आ दके तीन ोक म जो म हमा कह द गयी है, उसके बराबर कौन कह सकता है? उन तीन ोक को कतनी ही बार पढ़ चुकनेपर भी जब उनका मरण होता है, मनम अद्भुत भाव उ दत होते ह। कोई अनुवाद उन ोक क ग भीरता और मधुरताको पा नह सकता। उन तीन ोक से मनको नमल करके फर इस कार भगवान्का यान क जये— यायत रणा भोजं भाव न जतचेतसा । औ क ठ् या ुकला य ासी मे शनैह रः ।। ेमा तभर न भ पुलका ोऽ त नवृतः । आन दस लवे लीनो नाप यमुभयं मुने ।। पं भगवतो य मनःका तं शुचापहम् । अप यन् सहसो थे वै ल ाद् मना इव ।। मुझको ीमद्भागवतम अ य त ेम है। मेरा व ास और अनुभव है क इसके पढ़ने और सुननेसे मनु यको ई रका स चा ान ा त होता है और उनके चरणकमल म अचल भ होती है। इसके पढ़नेसे मनु यको ढ़ न य हो जाता है क इस संसारको रचने और पालन करनेवाली कोई सव ापक श है— एक अन त काल सच, चेतन श दखात । सरजत, पालत, हरत, जग, म हमा बर न न जात ।। इसी एक श को लोग ई र, , परमा मा इ या द अनेक नाम से पुकारते ह। भागवतके पहले ही ोकम वेद ासजीने ई रके व पका वणन कया है क जससे इस संसारक सृ , पालन और संहार होते ह, जो कालम स य है—अथात् जो सदा रहा भी, है भी और रहेगा भी—और जो अपने काशसे अ धकारको सदा र रखता है, उस परम स यका हम यान करते ह। उसी थानम ीमद्भागवतका व प भी इस कारसे सं ेपम व णत है क इस भागवतम—जो सर क बढ़ती दे खकर डाह नह करते, ऐसे साधुजन का सब कारके वाथसे र हत परम धम और वह जाननेके यो य ान व णत है जो वा तवम सब क याणका दे नेवाला और आ धभौ तक, आ धदै वक और आ या मक—इन तीन कारके ताप को मटानेवाला है। और थ से या, जन सुकृ तय ने पु यके कम कर रखे ह और जो ासे भागवतको पढ़ते या सुनते ह, वे इसका सेवन करनेके समयसे ही अपनी भ से ई रको अपने दयम अ वचल पसे था पत कर लेते ह। ई रका ान और उनम भ का परम साधन—ये दो पदाथ जब कसी ाणीको ा त हो गये तो कौन-सा पदाथ रह गया, जसके लये मनु य कामना करे और ये दोन पदाथ ीमद्भागवतसे पूरी मा ाम ा त होते ह। इसी लये यह प व थ मनु यमा का उपकारी है। जबतक मनु य भागवतको पढ़े ******ebook converter DEMO Watermarks******* नह और उसक इसम ा न हो, तबतक वह समझ नह सकता क ान-भ -वैरा यका यह कतना वशाल समु है। भागवतके पढ़नेसे उसको यह वमल ान हो जाता है क एक ही परमा मा ाणी- ाणीम बैठा आ है और जब उसको यह ान हो जाता है, तब वह अधम करनेका मन नह करता; य क सर को चोट प ँचाना अपनेको चोट प ँचानेके समान हो जाता है। इसका ान होनेसे मनु य स य धमम थर हो जाता है, वभावहीसे दया-धमका पालन करने लगता है और कसी अ हसक ाणीके ऊपर वार करनेक इ छा नह करता। मनु य म पर पर ेम और ा णमा के त दयाका भाव था पत करनेके लये इससे बढ़कर कोई साधन नह । वतमान समयम, जब संसारके ब त अ धक भाग म भयंकर यु छड़ा आ है, मनु यमा को इस प व धमका उपदे श अ य त क याणकारी होगा। जो भगवद्भ ह और ीमद्भागवतके मह वको जानते ह, उनका यह कत है क मनु यके लोक और परलोक दोन के बनानेवाले इस प व थका सब दे श क भाषा म अनुवाद कर इसका चार कर । —मदन मोहन मालवीय ******ebook converter DEMO Watermarks******* ीमद्भागवतक पूजन- व ध तथा व नयोग, यास एवं यान ातःकाल नानके प ात् अपना न य- नयम समा त करके पहले भगवत्-स ब धी तो एवं पद के ारा मंगलाचरण और व दना करे। इसके बाद आचमन और ाणायाम करके— ॐ भ ं कण भः शृणुयाम दे वा भ ं प येमा भयज ाः । थरैर ै तु ु वा्ँस तनू भ शेम दे व हतं यदायुः ।।१।। —इ या द म से शा तपाठ करे। इसके प ात् भगवान् ीकृ ण, ी ासजी, शुकदे वजी तथा ीमद्भागवत- थक षोडशोपचारसे पूजा करनी चा हये। यहाँ ीमद्भागवत-पु तकके षोडशोपचार पूजनक म स हत व ध द जा रही है, इसीके अनुसार ीकृ ण आ दक भी पूजा करनी चा हये। न नां कत वा य पढ़कर पूजनके लये संक प करना चा हये। संक पके समय दा हने हाथक अना मका अंगु लम कुशक प व ी पहने और हाथम जल लये रहे। संक पवा य इस कार है— ॐ त सत्। ॐ व णु व णु व णुः ओ३म ैत य णो तीयपराध ी ेतवाराहक पे ज बू पे भरतख डे आयावतकदे शा तगते पु य थाने क लयुगे क ल थमचरणे अमुकसंव सरे अमुकमासे अमुकप े अमुकयोगवारांशकल नमु तकरणा वतायां शुभपु य तथौ अमुकवासरे अमुकगो ो प य अमुकशमणः (वमणः गु त य वा) मम सकुटु ब य सप रवार य ीगोवधनधरणचरणार व द सादात् सवसमृ ा यथ भगवदनु हपूवकभगवद य ेमोपल धये च ीभगव ामा मकभगव व प ीभागवत य पाठे ऽ धकार सद् यथ ीमद्भागवत य त ां पूजनं चाहं क र ये । इस कार संक प करके— तद तु म ाव णा तद ने शं योऽ म य मदम तु श तम् । अशीम ह गाधमुत त ां नमो दवे बृहते सादनाय ।।२।। —यह म पढ़कर ीमद्भागवतक सहासन या अ य कसी आसनपर थापना करे। त प ात् पु षसू के एक-एक म ारा मशः षोडश-उपचार अपण करते ए पूजन करे । १—दे वताओ! हम अपने कान से ऐसे ही वचन सुननेको मल, जो प रणामम क याणकारी ह । हम य कमम समथ होकर अपनी इन आँख से सदा शुभ-ही-शुभ दे ख— ******ebook converter DEMO Watermarks******* अशुभका कभी दशन न हो। हमारा शरीर और उसके अवयव थर ह —पु ह और उनसे परमा माक तु त—भगवान्क सेवा करते ए हम ऐसी आयुका उपभोग कर, ऐसा जीवन बताय जो दे वता के लये हतकर हो, जसका दे वकायम उपयोग हो सके । २—परमा मन्! आप सबके म — हतकारी होनेके कारण म नामसे पुकारे जाते ह, सबसे वर— े होनेसे आप व ण ह, सबको हण करनेवाले होनेके कारण अ न ह। हम आपको इन ‘ म ’, ‘व ण’ एवं ‘अ न’ नाम से स बो धत करके ाथना करते ह क यह सू (आपके सुयशसे पूण यह ीमद्भागवत प सु दर उ ) अ य त श त हो—सव म होनेके साथ ही इसक या त एवं सार हो तथा यह सू हमलोग के लये ऐसा सुख, ऐसी शा त दान करे, जसम ःख या अशा तका मेल न हो, अथात् इससे न य सुख, न य शा त ा त हो। हम चाहते ह अ वचल थ त, हम चाहते ह शा त त ा, इसे इस सू के ारा हम ा त कर सक। दे वदे व! यह जो आपका अ य त काशमान परम महान् सम त लोक का आ यभूत ‘सूय’ नामक व प है, इसे हम सदा ही नम कार करते ह । ******ebook converter DEMO Watermarks******* पूजन-म ॐ सह शीषा पु षः सह ा ः सह पात् । स भू म सवत पृ वा य त द्दशा लम् ।।१।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । आवाहया म । —इस म से भगवान्के नाम व प भागवतको नम कार करके आवाहन करे । ॐ पु ष एवेदं सव यद् भूतं य च भा म् । उतामृत व येशानो यद ेना तरोह त ।।२।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । आसनं समपया म । —इस म से आसन सम पत करे । ॐ एतावान य म हमातो यायाँ पू षः । पादोऽ य व ा भूता न पाद यामृतं द व ।।३।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । पा ं समपया म । —इस म से पैर पखारनेके लये गंगाजल सम पत करे । ॐ पा व उदै त् पु षः पादोऽ येहाभवत् पुनः । ततो व वङ् ामत् साशनानशने अ भ ।।४।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । अ य समपया म । —इस म से अ य (ग ध-पु पा दस हत गंगाजल) नवे दत करे । ॐ ततो वराडजायत वराजो अ ध पू षः । स जातो अ य र यत प ाद् भू ममथो पुरः ।।५।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । आचमनं समपया म । —इस म से आचमनके लये गंगाजल अ पत करे । ॐ त मा ा सव तः संभृतं पृषदा यम् । पशून् ताँ े वाय ानार यान् ा या ये ।।६।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । नानं समपया म । —इस म से नानके लये गंगाजल अथवा शु जल अ पत करे । ॐ त मा ा सव त ऋचः सामा न ज रे । छ दां स ज रे त माद् यजु तमादजायत ।।७।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । व ं समपया म । ******ebook converter DEMO Watermarks******* —इस म से व सम पत करे । ॐ त माद ा अजाय त ये के चोभयादतः । गावो ह ज रे त मा मा जाता अजावयः ।।८।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । य ोपवीतं समपया म । —इस म से य ोपवीत अ पत करे । ॐ तं य ं ब ह ष ौ न् पु षं जातम तः । तेन दे वा अयज त सा या ऋषय ये ।।९।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । ग धं समपया म । —इस म से ग ध-च दना द चढ़ाये । ॐ यत् पु षं दधुः क तधा क पयन् । मुखं कम यासीत् क बा कमू पादा उ येते ।।१०।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । तुलसीदलं च पु पा ण समपया म । —इस म से तुलसीदल एवं पु प चढ़ावे । ॐ ा णोऽ य मुखमासीद्बा राज यः कृतः । ऊ तद य य ै यः पद् यां शू ो अजायत ।।११।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । धूपमा ापया म । —इस म से धूप सुँघाये । ॐ च मा मनसो जात ोः सूय अजायत । ो ा ायु ाण मुखाद नरजायत ।।१२।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । द पं दशया म। —इस म से घीका द प जलाकर दखाये। (उसके बाद हाथ धो ले।) ॐ ना या आसीद त र ्ँशी ण ौः समवतत । पद् यां भू म दशः ो ा था लोकाँ अक पयन् ।।१३।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । नैवे ं नवेदया म । —इस म से नैवे अ पत करे। नैवे के बाद “म ये पानीयं समपया म” एवम् ‘उ रापोशनं समपया म’ कहकर तीन-तीन बार जल छोड़े ( साद) । ॐ य पु षेण ह वषा दे वा य मत वत । वस तोऽ यासीदा यं ी म इ मः शर वः ।।१४।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । एलालव पूगीफलकपूरस हतं ता बूलं समपया म । —इस म से ता बूल समपण करे । ******ebook converter DEMO Watermarks******* ॐ स ता यासन् प रधय ःस त स मधः कृताः । दे वा यद्य ं त वाना अव नन् पु षं पशुम् ।।१५।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । द णां समपया म । —इस म से द णा सम पत करे । ॐ वेदाहमेतं पु षं महा तम् आ द यवण तमस तु पारे । सवा ण भूता न व च य धीरः नामा न कृ वा भवदन् यदा ते ।।१६।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । नम कारं समपया म । ॐ धाता पुर ता मुदाजहार श ः व ान् रश त ः । तमेवं व ानमृत इह भव त ना यः प था अयनाय व ते ।।१७।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । द णां समपया म । —इस म से द णा समपण करे । ॐ य ेन य मयज त दे वा- ता न धमा ण थमा यासन् । ते ह नाकं म हमानः सच त य पूव सा याः स त दे वाः ।।१८।। ीभगव ाम व पणे भागवताय नमः । म पु पं समपया म । —इस म से पु पांज ल सम पत करे । १—सवा तयामी परमा मा इस सम त ा डक भू मको सब ओरसे ा त करके थत ह और इससे दस अंगुल ऊपर भी ह। अथात् ा डम ापक होते ए वे इससे परे भी ह। उन परमा माके म तक, ने आ द ाने याँ और चरण आ द कम याँ हजार ह— असं य ह । २—यह जो कुछ इस समय वतमान है, सब परमा माका ही व प है, भूत और भ व य जगत् भी परमा मा ही है। इतना ही नह , वह परमा मा मु का वामी है, तथा प ये जो अ से उ प होनेवाले जीव ह, उन सबका भी शासन—सबको नयमके अंदर रखनेवाला वह परमा मा ही है । ३—भूत, भ व य और वतमान कालसे स ब ध रखनेवाला जतना भी जगत् है—यह ******ebook converter DEMO Watermarks******* सब इस पु षक म हमा है, इस परमा माका वभू त- व तार है। उसका पारमा थक व प इतना ही नह है, वह पु ष इस ा डमय वराट् व पसे भी ब त बड़ा है। यह सारा व (ये तीन लोक) तो उसके एक पादम है, उसक एक चौथाईम समा त हो जाते ह। अभी उसके तीन पाद और शेष ह। यह पाद व प अमृत है—अ वनाशी है और परम काशमय ुलोक अथात् अपने व पम ही थत है । ४—यह पाद पु ष ऊपर उठा आ है अथात् वह परमा मा अ ानके कायभूत इस संसारसे पृथक् तथा यहाँके गुण-दोष से अछू ता रहकर ऊँची थ तम वराजमान है। उसका एक अंशमा मायाके स पकम आकर यहाँ जगत्के पम उ प आ, फर वह मायावश जड-चेतनमयी नाना कारक सृ के पम वयं ही फैलकर सब ओर ा त हो गया । ५—उस आ दपु ष परमा मासे वराट् क उ प ई—यह ा ड उ प आ। इस ा डके ऊपर इसका अ भमानी एक पु ष कट आ। ता पय यह क परमा माने अपनी मायासे वराट् ा डक रचना कर वयं ही उसम जीव पसे वेश कया। वे ही जीव ा डका अ भमानी दे वता ( हर यगभ) आ। इस कार उ प होकर वह वराट् पु ष पुनः दे व, तयक् और मनु य आ द अनेक प म कट आ। इसके बाद उसने भू मको उ प कया, फर जीव के शरीर क रचना क । ६— जसम सब कुछ हवन कया गया, उस पु ष प य से दही-घी आ द साम ी उ प ई। पु षने वनम उ प होनेवाले हरन आ द और गाँव म होनेवाले गाय, घोड़े आ द, वायु-दे वता-स बधी स पशु को भी उ प कया । ७— जसम सब कुछ हवन कया गया है उस य पु षसे ऋ वेद और सामवेद कट ए, उसीसे गाय ी आ द छ द क उ प ई तथा उसीसे यजुवदका भी ा भाव आ । ८—उस य पु षसे घोड़े उ प ए, इनके अ त र भी जो नीचे-ऊपर दोन ओर दाँत रखनेवाले ख चर, गदहे आ द ाणी ह, ये भी उ प ए। उसीसे गौएँ उ प और उसीसे भेड़ तथा बकर क उ प ई। ९—सबसे पहले उ प आ वह पु ष ही उस समय य का साधन था, दे वता ने उसे संक प ारा यूपम बँधा आ पशु माना और उस मान सक य म उस संक पत पशुका भावना ारा ही ो ण आ द सं कार भी कया। इस कार सं कार कये ए उस पु ष पी पशुके ारा दे वता , सा य और ऋ षय ने उस मान सक य को पूण कया । १०—जब ाणमय दे वता ने उस य पु ष ( जाप त)-को कट कया, उस समय उसके अवयव के पम कतने वभाग कये। इस पु षका मुख या था, दोन बाह या थ । दोन जाँघ और दोन पैर कौन थे । ११— ा ण इसका मुख था अथात् मुखसे ा णक उ प ई। दोन भुजाएँ य जा त बन , अथात् उनसे य का ाकट् य आ। इस पु षक दोन जंघाएँ वै य — जंघा से वै य जा तक उ प ई और दोन पैर से शू जा त कट ई । १२—इसके मनसे च मा उ प ए, ने से सूयक उ प ई। ो (कान)-से वायु ******ebook converter DEMO Watermarks******* और ाणक उ प ई और मुखसे अ नका ा भाव आ। १३—ना भसे अ त र -लोकक उ प ई, म तकसे वगलोक कट आ, पैर से पृ थवी ई और कानसे दशाएँ कट । इस कार उ ह ने सम त लोक क क पना क । १४—उस समय दे वता ने य करना चाहा, पर तु य क कोई साम ी उपल ध न ई, तब उ ह ने पु ष व पम ही ह व यक भावना क । जब पु ष प ह व यसे ही दे वता ने य का व तार कया, उस समय उनके संक पानुसार वस त ऋतु घी ई, ी म ऋतुने स मधाका काम दया और शरद्-ऋतुसे वशेष कारके च -पुरोडाशा द ह व यक आव यकता पूण ई । १५— जाप तके ाण पी दे वता ने जब मान सक य का अनु ान करते समय संक प ारा पु ष पी पशुका ब धन कया था, उस समय सात समु इस य क प र ध थे और इ क स कारके छ द क स मधा ई। (गाय ी आ द ७, ु त जगती आ द ७ और कृ त आ द ७—ये ही २१ छ द ह।) १६—धीर पु ष सम प को परमा माके ही व प वचारकर, उनके भ - भ नाम रखकर जस एक त वका ही उ चारण और अ भव दन करता है, उसको ानी पु ष इस कार जानते ह—अ व ा पी अ धकारसे परे आ द यके समान व काश इस महान् पु षको म अपने ‘आ मा’ पसे जानता ँ । १७— ाजीने पूवकालम जसका तवन कया था, इ ने सब दशा- व दशा म जसे ा त जाना था, उस परमा माको जो इस कार जानता है, वह इस जीवनम ही अमृत (मु ) हो जाता है। मो अथवा भगव ा तके लये इसके सवा सरा माग नह है । १८—दे वता ने पूव मान सक य ारा य व प पु ष- जाप तक आराधना क । इस आराधनासे सम त जगत्को धारण करनेवाले वे पृ वी आ द मु य भूत कट ए। इस य क उपासना करनेवाले महा मालोग उस वगलोकको ा त होते ह, जहाँ ाचीन सा यदे वता नवास करते ह। ******ebook converter DEMO Watermarks******* ाथना व दे ीकृ णदे वं मुरनरक भदं वेदवेदा तवे ं लोके भ स ं य कुलजलधौ ा रासीदपारे । य यासीद् पमेवं भुवनतरणे भ व च वत ं शा ं पं च लोके कटय त मुदा यः स नो भू तहेतुः ।। जो इस जगत्म भ से ही ा त होते ह, जनका त व वेद और वेदा तके ारा ही जाननेयो य है, जो अपार यादव पी समु म कट ए थे, मुर और नरकासुरको मारनेवाले उन भगवान् ीकृ णको म सादर स ेम णाम करता ँ। जो इस संसारम अपने व प तथा शा को स तापूवक कट कया करते ह तथा सचमुच ही जनका व प इस भुवनको तारनेके लये भ के समान वत नौका प है, वे भगवान् ीकृ ण हमलोग का क याण कर । नमः कृ णपदा जाय भ ाभी दा यने । आर ं रोचये छ मामके दया बुजे ।। कुछ-कुछ ला लमा लये ए ीकृ णका जो चरणकमल मेरे दयकमलम सदा द काश फैलाता रहता है और भ जन क मनोवां छत कामनाएँ पूण कया करता है, उसे म बार बार नम कार करता ँ । ीभागवत पं तत् पूजयेद ् भ पूवकम् । अचकाया खलान् कामान् य छ त न संशयः ।। ीमद्भागवत भगवान्का व प है, इसका भ पूवक पूजन करना चा हये। यह पूजन करनेवालेक सारी कामनाएँ पूण करता है, इसम त नक भी संदेह नह है । व नयोग दा हने हाथक अना मकाम कुशक प व ी पहन ले। फर हाथम जल लेकर नीचे लखे वा यको पढ़कर भू मपर गरा दे — ॐ अ य ीमद्भागवता य तो म य नारद ऋ षः । बृहती छ दः । ीकृ णः परमा मा दे वता । बीजम् । भ ः श ः । ानवैरा ये क लकम् । मम ीमद्भगव साद सद् यथ पाठे व नयोगः । ‘इस ीमद्भागवत तो -म के दे व ष नारदजी ऋ ष ह, बृहती छ द है, परमा मा ीकृ णच दे वता ह, बीज है, भ श है, ान और वैरा य क लक है। अपने ऊपर भगवान्क स ता हो, उनक कृपा बराबर बनी रहे—इस उ े यक स के लये पाठ करनेम इस भागवतका व नयोग (उपयोग) कया जाता है।’ ******ebook converter DEMO Watermarks******* यास व नयोगम आये ए ऋ ष आ दका तथा धान दे वताके म ा र का अपने शरीरके व भ अंग म जो थापन कया जाता है, उसे ‘ यास’ कहते ह। म का एक-एक अ र च मय होता है, उसे मू तमान् दे वताके पम दे खना चा हये। इन अ र के थापनसे साधव वयं म मय हो जाता है, उसके दयम द चेतनाका काश फैलता है, म के दे वता उसके व प होकर उसक सवथा र ा करते ह। इस कार वह ‘दे वो भू वा दे वं यजेत्’ इस ु तके अनुसार वयं दे व व प होकर दे वता का पूजन करता है। ऋ ष आ दका यास सर आ द क तपय अंग म होता है। म पद अथवा अ र का यास ायः हाथक अँगु लय और दया द अंग म होता है। इ ह मशः ‘कर यास’ और ‘अंग यास’ कहते ह। क ह - क ह म का यास सवागम होता है। याससे बाहर-भीतरक शु , द बलक ा त और साधनाक न व न पू त होती है। यहाँ मशः ऋ या द यास, कर यास और अंग यास दये जा रहे ह— ऋ या द यास नारदषये नमः शर स ।।१।। बृहती छ दसे नमो मुखे ।।२।। ीकृ णपरमा मदे वतायै नमो दये ।।३।। बीजाय नमो गु े ।।४।। भ श ये नमः पादयोः ।।५।। ानवैरा यक लका यां नमो नाभौ ।।६।। व नयोगाय नमः सवा े ।।७।। ऊपर यासके सात वा य उद्धृत कये गये ह। इनम पहला वा य पढ़कर दा हने हाथक अँगु लय से सरका पश करे, सरा वा य पढ़कर मुखका, तीसरे वा यसे दयका, चौथेसे गुदाका, पाँचवसे दोन पैर का, छठे से ना भका और सातव वा यसे स पूण अंग का पश करना चा हये । कर यास इसम ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस ादशा रम के एक-एक अ रको णवसे स पु टत करके दोन हाथ क अंगु लय म था पत करना है। म नीचे दये जा रहे ह— ‘ॐ ॐ ॐ नमो द णतज याम्’ ऐसा उ चारण करके दा हने हाथके अँगूठेसे दा हने हाथक तजनीका पश करे। ‘ॐ नं ॐ नमो द णम यमायाम्’—यह उ चारण कर दा हने हाथके अँगूठेसे दा हने हाथक म यमा अंगु लका पश करे। ‘ॐ म ॐ नमो द णाना मकायाम्’—यह पढ़कर दा हने हाथके अँगूठेसे दा हने हाथक अना मका अंगु लका पश करे। ‘ॐ भं ॐ नमो द णक न कायाम्’—इससे दा हने हाथके अँगूठेसे दा हने हाथक क न का अंगु लका पश करे। ‘ॐ गं ॐ नमो वामक न कायाम्’—इससे बाय हाथके अँगूठेसे बाय हाथक क न का अंगु लका पश क रे । ‘ॐ वं ॐ नमो वामाना मकायाम्’—इससे बाय हाथके अँगूठेसे बाय हाथक ******ebook converter DEMO Watermarks******* अना मका अंगु लका पश करे। ‘ॐ त ॐ नमो वामम यमायाम्’—इससे बाय हाथके अँगूठेसे बाय हाथक म यमा अंगु लका पश करे। ‘ॐ वां ॐ नमो वामतज याम्’—इससे बाय हाथके अँगूठेसे बाय हाथक तजनी अंगु लका पश करे। ‘ॐ सुं ॐ नमः ॐ द ॐ नमो द णा पवणोः’—इसको पढ़कर दा हने हाथक तजनी अंगु लसे दा हने हाथके अँगूठेक दोन गाँठ का पश करे। ‘ॐ वां ॐ नमः ॐ यं ॐ नमो वामा पवणोः’— इसका उ चारण करके बाय हाथक तजनी अंगु लसे बाय हाथके अँगूठेक दोन गाँठ का पश करे । अ यास यहाँ ादशा रम के पद का दया द अंग म यास करना है— ‘ॐ नमो नमो दयाय नमः’—इसको पढ़कर दा हने हाथक पाँच अंगु लय से दयका पश करे । ‘ॐ भगवते नमः शरसे वाहा’—इसका उ चारण करके दा हने हाथक सभी अंगु लय से सरका पश करे। ‘ॐ वासुदेवाय नमः शखायै वषट् ’—इसके ारा दा हने हाथसे शखाका पश करे। ‘ॐ नमो नमः कवचाय म्’—इसको पढ़कर दाय हाथक अंगु लय से बाय कंधेका और बाय हाथक अंगु लय से दाय कंधेका पश करे। ‘ॐ भगवते नमः ने याय वौषट् ’—इसको पढ़कर दा हने हाथक अंगु लय के अ भागसे दोन ने का तथा ललाटके म यभागम गु त पसे थत तृतीय ने ( ानच ु)-का पश करे। ‘ॐ वासुदेवाय नमः अ ाय फट् ’—इसका उ चारण करके दा हने हाथको सरके ऊपरसे उलटा अथात् बाय ओरसे पीछे क ओर ले जाकर दा हनी ओरसे आगेक ओर ले जाये और तजनी तथा म यमा अंगु लय से बाय हाथक हथेलीपर ताली बजाये । अंग यासम आये ए ‘ वाहा’, ‘वषट् ’, ‘ म्’, ‘वौषट् ’ और ‘फट् ’—ये पाँच श द दे वता के उ े यसे कये जानेवाले हवनसे स ब ध रखनेवाले ह। यहाँ इनका आ मशु के लये ही उ चारण कया जाता है । यान इस कार यास करके बाहर-भीतरसे शु हो मनको सब ओरसे हटाकर एका भावसे भगवान्का यान करे— करीटकेयूरमहाह न कै- म यु मालङ् कृतसवगा म् । पीता बरं का चन च न - मालाधरं केशवम युपै म ।। ‘ जनके म तकपर करीट, बा म भुजब ध और गलेम ब मू य हार शोभा पा रहे ह, म णय के सु दर गहन से सारे अंग सुशो भत हो रहे ह और शरीरपर पीता बर फहरा रहा है— ******ebook converter DEMO Watermarks******* सोनेके तार ारा व च री तसे बँधी ई वनमाला धारण कये, उन भगवान् ीकृ णच का म मन-ही-मन च तन करता ँ।’ ******ebook converter DEMO Watermarks******* ीमद्भागवत-स ताहक आव यक व ध पुराण म ीमद्भागवतके स ताहपारायण तथा वणक बड़ी भारी म हमा बतलायी गयी है, अतः यहाँ ीमद्भागवत- े मय के लये सं ेपसे स ताह-य क आव यक व धका द दशन कराया जाता है । मु त वचार—पहले व ान् यो तषीको बुलाकर उनके ारा कथा- ार भके लये शुभ मु तका वचार करा लेना चा हये। न म ह त, च ा, वाती, वशाखा, अनुराधा, पुनवसु, पु य, रेवती, अ नी, मृग शरा, वण, ध न ा तथा पूवाभा पदा उ म ह। त थय म तीया, तृतीया, प चमी, ष ी, दशमी, एकादशी तथा ादशीको इस कायके लये े बतलाया गया है। सोम, बुध, गु एवं शु —ये वार सव म ह। त थ, वार और न का वचार करनेके साथ ही यह भी दे ख लेना चा हये क शु या गु अ त, बाल अथवा वृ तो नह ह। कथार भका मु त भ ा द दोष से र हत होना चा हये। उस दन पृ वी जागती हो, व ा और ोताका च बल ठ क हो। ल नम शुभ ह का योग अथवा उनक हो। शुभ ह क थ त के या कोणम हो तो उ म है। आषाढ़, ावण, भा प