Prehistoric History (प्रागैतिहासिक इतिहास) PDF

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prehistoric history history Indus Valley Civilization ancient civilizations

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This document provides a summary of prehistoric history, including the Palaeolithic, Mesolithic, Neolithic, and Chalcolithic periods. It also briefly introduces the Indus Valley Civilization and its key characteristics. This document also provides broader historical context.

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# 01. itxfrgtflw wty ## Prehistoric History ### इतिहास (History) - प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period) - पुरा पाषाण काल (Palaeolithic Period) - मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period) - नवपाषाण काल (Neolithic Period) - ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic Period) - आद्य ऐतिहासिक काल (Protohis...

# 01. itxfrgtflw wty ## Prehistoric History ### इतिहास (History) - प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric Period) - पुरा पाषाण काल (Palaeolithic Period) - मध्य पाषाण काल (Mesolithic Period) - नवपाषाण काल (Neolithic Period) - ताम्र पाषाण काल (Chalcolithic Period) - आद्य ऐतिहासिक काल (Protohistoric Period) - सिंधु सभ्यता (Indus valley civilization) - कांसा (Bronze) - हड़प्पा (Harappan) - ऐतिहासिक काल (Historical Period) - प्राचीन काल (Ancient Period) - मध्यकाल (Medieval Period) - आधुनिक काल (Modern Period) - नेहरू काल (Nehru Period) - विश्व (World) अतीत का अध्ययन इतिहास कहलाता है। इतिहास के जनक हेरोडोटस को कहते हैं। मानवजाति का पालना अफ्रीका महादेश को कहते हैं। जबकि सभ्यता का पालना एशिया महादेश को कहते हैं। इतिहास को 3 खण्डों में बाँटते हैं- 1. प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric History)- इतिहास का वह समय जिसमें मानव लिखना पढ़ना नहीं जानता था। इसकी जानकारी केवल पुरातात्विक साक्ष्य से मिली है। इसके अंतर्गत पाषाण काल को रखते हैं। - पाषाण काल (Stone Age) - वह समय जब मानव पत्थर के औजार एवं हथियार का उपयोग करता था, पाषाण काल कहलाता है। - भारत में सर्वप्रथम 1863 ई० में रार्बट ब्रूस फुट ने पाषाणकालीन सभ्यता की खोज की। - भारतीय पुरातत्व का पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम है। - भारत का पुरातात्विक संग्रहालय इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय (भोपाल) है जो संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। - भिमबेटका के गुफाओं में पुरा पाषाण काल के चित्र देखने को मिलते हैं। जो मध्यप्रदेश के अब्दुलागंज (रायसेन) में स्थित है। 2. मध्यपाषाण काल (Mesolithic Period) (12,000 ई०पू० से 10,000 ई०पू० तक)- - मिलने वाले धातु के आधार पर नामकरण क्रिश्चयन थॉमस ने किया। - लिखावट के आधार पर नामकरण जॉन ब्रूस ने किया। - पाषाण काल को 4 भागों में बाँटा गया है- - पुरापाषाण काल (Palaeolithic Period) (20 लाख ई०पू० से 12,000 ई०पू० - यह इतिहास का सबसे प्रारम्भिक समय था। इस समय के मानव को आदि मानव कहा जाता है। इस समय का मानव खानाबदोश (खाद्य संग्राहक) अर्थात् उसके जीवन का मुख्य उद्देश्य जानवरों की भाँति ही अपना पेट भरना था। इस समय के मानव की सबसे बड़ी उपलब्धी आग की खोज थी। - इस समय मानव पत्थर के बड़े-बड़े औजारों का इस्तेमाल शिकार करने के लिए करते थे। इसी समय मानव ने चित्रकारी करना प्रारंभ किया। - भारत में सर्वप्रथम 1863 ई० में रार्बट ब्रूस फुट ने पाषाणकालीन सभ्यता की खोज की। - भारतीय पुरातत्व का पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम है। - भारत का पुरातात्विक संग्रहालय इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय (भोपाल) है जो संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। - भिमबेटका के गुफाओं में पुरा पाषाण काल के चित्र देखने को मिलते हैं। जो मध्यप्रदेश के अब्दुलागंज (रायसेन) में स्थित है। # 02. vt|-,frgtflw wty ## (Proto Historic History) इस काल में मानव द्वारा लिखी गई लिपि को पढ़ा नहीं जा सकता है, किन्तु लिखित साक्ष्य मिले हैं। इस काल के जानकारी के स्रोत भी पुरातात्विक साक्ष्य ही है। इसमें सिंधु सभ्यता को रखते हैं। ## (Indus Valley Civilization) - समाजिक रूप से रहने वाले व्यक्तियों को सभ्यता कहते हैं। - यह सभ्यता सिंधु नदी के तट पर मिली थी, इसलिए इसे सिंधु सभ्यता कहते हैं। - इसका विकास 2500 ई० पूर्व से 1750 ई० पूर्व तक हुआ। - सिन्धु सभ्यता का आकार त्रिभुजाकार था। - इसका क्षेत्र 13 लाख वर्ग किमी में फैला था। - सिन्धु सभ्यता में कुल 350 स्थल मिले है जिसमें से 200 स्थल केवल गुजरात में है। - सिन्धु सभ्यता विश्व की पहली नगरीय (शहरी) सभ्यता थी जबकि विश्व की पहली सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता थी जो ग्रामीण सभ्यता थी। - सिंधु सभ्यता की जानकारी सबसे पहले चार्ल्स मैशन ने (1826 ई०) दिया था। - सिंधु सभ्यता का सर्वेक्षण जेम्स कनिंघम ने (1853 ई० ) किया। - लॉर्ड कर्जन ने 1904 ई० में पुरातत्व विभाग की स्थापना किया था। जिसके महानिर्देशक सर जॉन मार्शल थे। - सिंधु सभ्यता की पहली खुदाई दयाराम साहनी ने की। - इसका नामकरण जॉन मार्शल ने किया था। - इस सभ्यता को काँस्ययुगीन सभ्यता भी कहते है क्योंकि इसी समय काँसे की खोज हुई थी। ### सिन्धु सभ्यता की सीमाएँ: - इसकी उत्तरी सीमा कश्मीर के मांडा में चिनाब नदी के तट पर थी। इसकी खुदाई जगपति जोशी ने 1982 ई० में किया। - इसकी पूर्वी सीमा उत्तर-प्रदेश के आलमगीरपुर में थी। जो हिन्डन नदी के किनारे थी। यज्ञदत्त शर्मा के नेतृत्व में इसका उत्खनन हुआ। - इसकी दक्षिणी महाराष्ट्र के दैमाबाद में प्रवरा नदी के तट पर थी। यहाँ से धातु का एक रथ (इक्का गाड़ी) का प्रमाण मिला है। - इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान के सुतकांगेडोर में थी, जो दाश्क नदी के तट पर थी। **Trick:-** - सम = AD पर (भारत में नहीं) - स = सुतकांगेडोर ड – दास्क - म = माण्डा च – चिनाव - A – आलमीगीर है – हिण्डन - D – दैमाबाद पर – प्रवरा (1921) - इसकी खुदाई दयाराम साहनी ने की। यह रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के ‘‘माऊण्ट गोमरी” जिला में स्थित है। - पिग्गट ने हड़प्पा और मोहनजोदड़ों को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा। - सहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं- - (ii) कुम्हार का चाक - (iii) श्रमिक आवास - (iv) अन्नागार - मातृदेवी की मूर्ति (1931) - इसकी खुदाई सन् 1931 ई. में गोपाल मजूमदार ने की। - यह पाकिस्तान में सिंधु नदी के तट पर स्थित है। - यह एक मात्र शहर है, जो दुर्ग रहित है। - यह एक औद्योगिक शहर है। - यह एक मात्र पुरास्थल है जहाँ से वक्राकार ईंटें मिली हैं। - यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं- - (i) सौंदर्य सामग्रियाँ - (ii) मनका - (iii) गुड़िया - (iv) सुई-धागा - (v) बिल्ली का पीछा करता हुआ कुत्ता का पद चिह्न - (vi) अलंकृत ईंट **Note :-** - दड़ो या कोट शब्द वाले स्थान पाकिस्तान में पाये गए। - Ex :- चन्हुदड़ों वालाकोट - डावर कोट कोट दीजी - मोहनजोदड़ों जुरिद जोदड़ों (1922) - इसकी खुदाई सन् 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने की। यह पाकिस्तान के लरकाना जिले में स्थित है। यह सिंधु नदी के तट पर है। - यह सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा शहर है। - मोहनजोदड़ों की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी सड़कें थी जो सीधी दिशा में एक-दूसरे को समकोण (ग्रीड पद्धति) पर काटती हुई नगर को वर्गाकार अथवा चतुर्भुजाकार खंडों में विभाजित करती थी। - यहाँ से निम्नलिखित वस्तुएँ मिली हैं- - (i) स्नानागार - (ii) अन्नागार (सबसे बड़ा) - (iii) पुरोहित आवास - (iv) सूती वस्त्र - (v) सबसे चौड़ी सड़क - (vi) सभागार - (vii) पशुपति शिव - (viii) काँसे की नर्तकी - (ix) ताँबे का ढेर - (x) घर में कुआँ। **Note :-** - मोहनजोदड़ों का अर्थ होता है। मृतकों का टीला - किन्तु यहाँ से कब्रिस्तान नहीं मिला है बल्कि एक ही स्थान पर कंकाल का ढेर मिला है। यह कंकाल क्षतिग्रस्त हैं जो बाह्य आक्रमण को दर्शाता है। - Note: मोहनजोदड़ों का विशाल अन्नागार सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा भवन या इमारत है। - Remark :- स्वास्तिक मुहर सर्वाधिक मोहनजोदड़ों से मिला है। जिसका निर्माण शिलखड़ी से हुआ था। (1953) - इसकी खुदाई यज्ञदत्त शर्मा ने 1953 ई. में की । यह पंजाब के सतलज नदी के किनारे स्थित है। - इसका आधुनिक नाम रूपनगर है। - यहाँ मानव के साथ-साथ उसके पालतू जानवरों (कुत्ता) का भी साक्ष्य मिला है। **Note :-** - ऐसा ही शव नव-पाषाण काल में जम्मू-कश्मीर के बुर्जहोम में मिला था। (1927) - इसकी खुदाई आरेण स्टाइन ने किया। यह सबसे पश्चिमी स्थल है जो दास्क नदी के किनारे है यहाँ से बंदरगाह मिले हैं। (1973) - इसकी खुदाई 1973 ई. में रविन्द्र सिंह ने किया। यह हरियाणा में स्थित है। इसके समीप रंगोई नदी है। यहाँ जल-निकासी की व्यवस्था नहीं थी जिस कारण यहाँ नाली न मिलकर घरों में ही सोख्ता व्यवस्था मिला है। - यहाँ की सड़के टेढ़ी-मेढ़ी थी अर्थात् सड़कें नगर को तारांकित (Star Shaped) भागों में विभाजित करती है। ## कुणाल - यह हरियाणा के फतेहबाद जिला में स्थित है। - यहाँ से चांदी के दो मुकूट मिला है। ## कालीबंगा - इसका अर्थ होता है “काली मिट्टी की चूड़ी"। - यहाँ से अलंकृत ईंट, चूड़ी, जोता हुआ खेत हल एवं हवन कुँड मिले है। - यह राजस्थान में सरस्वती (घग्गर) नदी के किनारे हनुमानगढ़ जिले में स्थित है। - इसकी खोज अलमानंद घोष द्वारा की गई। - कालीबंगा के लोग एक साथ दो फसल उगाते थे। वहाँ पे एक ही खेत में चना और सरसों उपजाने का विवरण मिला है। - इसकी खुदाई B.K. थापड़ तथा B.B. लाल ने की। ## धौलावीरा - यह गुजरात में स्थित है। - यह सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल है। - इसकी खुदाई सर्वप्रथम जे.पी जोशी (1967) ने किया एवं पुनः इसकी खुदाई रविन्द्र सिंह बिस्ट द्वारा (1990-91) किया गया । - यह गुजरात तथा पाकिस्तान दोनों में फैला हुआ है। - भारत में स्थित सबसे बड़ा स्थल राखीगढ़ी था जो हरियाणा में है। ## सुरकोटदा - यह गुजरात में स्थित है। - इसकी खुदाई जगपति जोशी ने करवाया। - यहाँ से कलश शवाधान तथा घोड़ों की हड्डी मिली है। - यहाँ छोटे बंदरगाह भी मिले हैं। ## लोथल - इसकी खुदाई रंगनाथ राव ने भोगवा नदी के किनारे अहमदाबाद (गुजरात) में किया। - यह सिंधु सभ्यता का बंदरगाह स्थल है। - यहाँ से गोदीवाड़ा (Dock-yard) का साक्ष्य मिला है। - यहाँ फारस की मुहर मिली है, जो विदेशी व्यापार का संकेत है। - यहाँ से माप-तौल के समान भी मिले हैं। - यहाँ से छोटा दिशा मापक यंत्र मिला है। - यह एक औद्योगिक शहर था। इस शहर में घर के दरवाजें सड़कों की ओर खुलते थे। - यहाँ से युगल शवाधान (जोड़े में लाश) मिला है, जो सतीप्रथा का साक्ष्य है। ## रंगपुर - यह गुजरात में स्थित है। - यहाँ से धान की भूसी मिली है। ### सिंधु सभ्यता की विशेषताएँ - सिंधु सभ्यता एक नगरीय (शहरी) सभ्यता थी। - यहाँ की सड़क एक-दूसरे को समकोण पर काटती है तथा ये पूरब-पश्चिम दिशा में थी, जिससे हवा द्वारा सड़क स्वतः साफ हो जाती थी। - नगर नियोजन तथा जल निकास इसकी सबसे बड़ी व्यवस्था थी। - इसकी नालियाँ ढकी हुई थी तथा सड़क सीधी थी। - अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। - इसका व्यापार (अतर्राष्ट्रीय) विदेशों से होता था। - इनकी भाषा भावचित्रातमक थी। - इनकी समाज मातृसतात्मक थी। - इनकी लिपी दाएं से बाएं की ओर लिखा जाता था। - हड़प्पा लिपी के प्रमाण से सबसे ज्यादा चित्र मछली का चित्र देखने को मिलता है। - इनके मुहरों पर सर्वाधिक 1 सिंग वाले जानवर का चित्र था। - इनके मुहरों पर गाय तथा सिंह का चित्र नहीं मिला है। - हड़प्पा सभ्यता के मुहरों में सेलखरी का प्रयोग मुख्य रूप से किया गया था। - सिंधु घाटी सभ्यता के लोग लोहे से परिचित नहीं थे इसके अन्य धातु जैसे- सोना, चाँदी, ताँबा, टीन, काँसा इत्यादि से परिचित थे। - यहाँ माप-तौल के लिए न्यूनतम बाट 16 kg का था जो दशमलव प्रणाली के सूचक हैं। - सिंधु सभ्यता के लोग युद्ध या तलवार से परिचित नहीं थे। - सिंधु सभ्यता में मिट्टी के बर्तनों में लाल रंग का उपयोग होता था। - सिंधुवासी विश्व में कपास के प्रथम उत्पादक थे। - सिंधु घाटी सभ्यता के लोग कृषि भी करते थे, पशुपालन भी करते थे परंतु उनका मुख्य व्यवसाय व्यापार था। - यहाँ के लोग मनोरंजन के लिए चौपर और पासा खेलते थे। - सबसे प्रिय देवता – शिव - इनका पसंदीदा वृक्ष – पीपल - इनका पसंदीदा जानवर – सांढ़ तथा वृषभ (बसहा बैल) - इनका पंसदीदा पक्षी – बत्तख - इनका आदरणीय नदी – सिन्धु - सिंधु सभ्यता का समाज 4 वर्गों में बँटा हुआ था- - 1. विद्वान - 2. योद्धा - 3. व्यापारी एवं शिल्पकार - 4. श्रमिक # 03. frgtflw wty ## (Historical Period) इसके बारे में लिखित स्रोत उपलब्ध है, और इसे पढ़ा भी जा सका है। इसके अंतर्गत वैदिक काल से लेकर अभी तक का समय आता है। ### इतिहास - पुरातात्विक - विदेशी यात्रा - साहित्य - सिक्का - अभिलेख - धार्मिक - ब्राह्मण - गैर ब्राह्मण - गैर धार्मिक - वेद - उपवेद - वेदांग - पुराण - उपनिषद् - महाकाव्य - जैन - बौद्ध ### (Coins) - सिक्के का अध्ययन न्यूमेसमेटिक्स कहलाता है। - टेराकोटा का सिक्का मिट्टी का बना होता था। यह सिंधु सभ्यता में बना था। - मौर्य काल के समय आहत या पंचमार्क सिक्के का प्रयोग होता था। आहत् सिक्कों पर लिखावट नहीं होती थी। केवल चित्र बने होते थे। यह पहला धातु का सिक्का था। - पर्ण चाँदी के सिक्के थे, जो मौर्य काल में प्रचलित थे। - सीसा का सिक्का सातवाहन काल में प्रचलित थे। - पहली बार सोने का सिक्का यूनानी शासकों द्वारा प्रचलित किया गया। - शुद्ध सोने का सिक्का कुषाण शासको द्वारा प्रचलित किया गया। - सर्वाधिक मात्रा में तथा सबसे अधिक अशुद्ध सोने का सिक्का गुप्त काल में प्रयोग हुआ। इस समय स्कंद गुप्त शासक थे। - चाँदी का सिक्का गुप्त काल में चन्द्रगुप्त_II विक्रमादित्य के समय प्रचलित हुआ। - राजा-रानी का सिक्का गुप्त काल में चन्द्रगुप्त_II विक्रमादित्य के समय प्रचलित हुआ। - मयूर शैली की सिक्का गुप्त काल में समुद्र गुप्त के समय प्रयोग में लाया गया। इस सिक्के का प्रचलन गुप्त काल में सर्वाधिक था। - कौड़ी का प्रयोग भी गुप्त काल में ही हुआ। - चमड़े का सिक्का हुमायूं के शासन काल में शिहाबुद्दीन ने प्रारम्भ करवाया था। - चांदी के रुपये का प्रारंभ शेरशाह शूरी ने किया। - तांबे के दाम का प्रारंभ शेरशाह शूरी ने ही किया। - सोने की अशर्फी का प्रारंभ भी शेरशाह शूरी ने ही किया। ### (Epigraph/Inscriptions) - पत्थरों को खोदकर लिखना अभिलेख कहलाता है। - विश्व में अभिलेख लिखने का प्रारम्भ ईरान के शासक डेरियस ने किया था तथा भारत में अभिलेख का जनक अशोक को कहा जाता है। - पहला अभिलेख बोगजगोई से मिला जो तुर्की या एशिया माइनर में है। - अभिलेखों का अध्ययन एपिग्राफी कहलाता है। ### अभिलेख के प्रकार - अभिलेख - स्तंभलेख - शिलालेख - छोटे पत्थरों पर लिखना शिलालेख कहलाता था। - भित्तीलेख - गुफालेख - सर्वाधिक प्रचलन शिलालेख का था। - स्तंभलेख दूर से आकर्षित दिखते थे। - स्तम्भ के समान ऊँचे पत्थरों पर लिखना स्तम्भ लेख कहलाता है। ### प्रमुख अभिलेख - हाथीगुफा अभिलेख (उड़ीसा)- इसे कलिंग राजा खारवेल द्वारा लिखवाया गया था। इसमें कलिंग युद्ध की चर्चा है। युद्ध के समय कलिंग का राजा नंदराज था। (गंगवंश) - ऐहोल अभिलेख (राजस्थान)- इनमें पुलकेशिन-II के हर्षवर्धन पर विजय की चर्चा की गई है। इसकी रचना रविकीर्ति ने की है। - जुनागढ़ अभिलेख (गुजरात)- इसमें रूद्रदामन ने सुदर्शन झील की चर्चा की है। उस झील को चन्द्रगुप्त मौर्य ने बनवाया था। - प्रयाग अभिलेख (इलाहाबाद)- इसमें समुद्रगुप्त ने अपने विजय अभियान की चर्चा की है। - नासिक अभिलेख (महाराष्ट्र)- यह अभिलेख गौतमी बलश्री द्वारा लिखवाया गया था। इसमें सातवाहन कालीन घटनाओं का विवरण मिलता है। - ग्वालियर अभिलेख (मध्यप्रदेश) – यह अभिलेख राजा भोज प्रतिहार के समय में बालादित्य द्वारा लिखा गया था। इसमें गुर्जर प्रतिहार शासकों के विषय में जानकारी मिलती है। - मंदसौर अभिलेख (मध्यप्रदेश) – यह अभिलेख मालवा नरेश यशोवर्मन के समय में वासुल द्वारा लिखा गया था। इसमें सैनिक उपलब्धियों का वर्णन मिलाता है। - देवपाड़ा अभिलेख (पं. बंगाल)- यह अभिलेख बंगाल शासक विजय सेन द्वारा लिखवाया गया था। इसमें सेन राजवंश के शासन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन मिलता है। ### (Pillar / Edicts) - यह स्तम्भ के समान ऊँचे होते हैं। - हेलियोडोटस/गरुड़ध्वज स्तम्भलेख (M.P.)- इसमें भागभ्रद ने भागवत् धर्म की जानकारी दी है। - चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का महरौली (दिल्ली) में स्थित स्तंभलेख लोहे का है। जिसमें अभी तक जंग नहीं लगा है। ### विदेशी यात्रियों द्वारा भारत का वर्णन - हेरोडोटस - हिस्टोरिका - मेगास्थनीज - इण्डिका - Periplus of the Erythraean Sea - अज्ञात - टॉलमी - ज्योग्राफिका - प्लिनी - नेचुरल हिस्ट्री - अलबेरूनी - किताबुल-हिन्द/तहकीक -ए-हिन्द - मार्कोपोलो – द बुक ऑफ सर मारकोपोलो (काकतिय वंश) - फाह्यान - फो-क्यु-की (चन्द्रगुप्त II) - ह्वेवेनसांग - सी-यू-की (हर्षवर्धन) - तारानाथ - कंग्युर, तंग्युर - फाह्यान (399 ई.)- "फो-क्यु-की" (पुस्तक) यह चन्द्रगुप्त-II (विक्रमादित्य) के दरबार में आया था। इसमें उस समय के भवन तथा कौड़ी की चर्चा है। - संयुगन (518 ई.)- (चीन) इसने अपने तीन वर्ष की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्रतियाँ एकत्रित की। - ह्वेनसांग (629 ई.) – सी-यू-की यह हर्षवर्धन के दरबार में आया। इसने नालंदा विश्व विद्यालय में अध्ययन तथा अध्यापन दोनों किया। इसे यात्रियों का राजकुमार कहते हैं। - इत्सिंग (673 ई.) – यह चीनी यात्री था। यह त्रिपिटक की 400 प्रतियाँ (Photocopy) अपने साथ चीन लेकर गया था। - इब्नबतूता – यह मोरक्को का रहने वाला था। यह 7000 किमी. की यात्रा करके मुहम्मद-बिन-तुगलक के दरबार में आया। इसकी पुस्तक “रेहला” थी। - अब्दुल रज्जाक - यह फारस का रहने वाला था। यह विजयनगर साम्राज्य में आया था। इसकी पुस्तक मतला-ए-साहिन यह कृष्णदेव राय के दरबार में आया था। ### साहित्यिक स्त्रोत - लिखित स्रोत को साहित्यिक स्रोत कहते हैं। प्राचीन इतिहास की जानकारी का यह सबसे बड़ा स्रोत है। - गैर धार्मिक स्त्रोत – इसका संबंध किसी भी धर्म से नहीं रहता है। - 1. मनुस्मृति - इसकी रचना मनु ने किया। यह राजनीति से संबंधित पहली पुस्तक है। इसमें महिला एवं दलितों को नीचे दिखाया गया है। - 2. अर्थशास्त्र- इसका संबंध राजनीति से है। इसकी रचना चाणक्य ने किया। अर्थशास्त्र मैक्यिावेली की रचना The Prince के समान है। चाणक्य को भारत का मैकियावेली कहते है। अर्थशास्त्र का प्रकाशन समाशास्त्री द्वारा किया गया। इसमें 15 अधिकरण है। - 3. पंचतंत्र - विष्णुशर्मा की पुस्तक पंचतंत्र को 15 भारतीय तथा 40 विदेशी भाषा में अनुवादित किया गया है। - 4. मृक्षकटिकम् - शूद्रक ने मृक्षकटिकम पुस्तक लिखी। जिसका अर्थ है मिट्टी का खिलौना। - 5. राजतरंगीणी- कल्हण की पुस्तक राजतरंगीणी में काश्मीर का इतिहास है। - 6. कादम्बिरी तथा हर्षचरित- बाणभट्ट - धार्मिक स्त्रोत - वैसी पुस्तक जिसका संबंध किसी-न-किसी धर्म से रहता है उसे धार्मिक स्रोत कहते है। - गैर-ब्राह्मण - वैसे स्त्रोत जिसका संबंध हिन्दु धर्म से नहीं रहता, उसे गैर-ब्राह्मण कहते हैं। - जैन-साहित्य - यह प्राकृत भाषा में मिले हैं, इन्हें आगम कहते हैं। - उदाहरण – 12 अंग, 12 उपांग, अचरांग सूत्र, भगवति सूत्र, कल्पसूत्र, आदि-पुराण। - अचरांग सूत्र - इनमें जैन भिक्षुओं के आचार नियम व विधि निषेधों का विवरण। - भगवति सूत्र - इसमें महावीर के जीवन की चर्चा है। - न्यायधम्मकहा सूत्र - महावीर के शिक्षाओं का संग्रह। - बौद्ध साहित्य – इन ग्रंथों का संबंध बौद्ध धर्म से है। बौद्ध साहित्य पाली भाषा में मिले हैं। जातक ग्रन्थ में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्म की 200 कहानियाँ हैं। - ललित विस्तार में महात्मा बुद्ध की पूरी जीवनी है। - अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपद की चर्चा है। - बौद्ध धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक त्रिपिटक है, जो 3 पुस्तकों का समूह है। - 1. सूत पिटक - यह सबसे बड़ा पिटक है। इसे बौद्ध धर्म का इंसाइक्लोपिडिया कहते हैं। - 2. विनय पिटक - यह सबसे छोटा पिटक है। इसमें बौद्ध धर्म के प्रवेश की चर्चा है। - 3. अभिधम्म पिटक - इसमें महात्मा बुद्ध के दार्शनिक विचारों की चर्चा है। - ब्राह्मण ग्रंथ – वैसा ग्रंथ जिसका संबंध हिंदु धर्म से है उसे ब्राह्मण ग्रंथ कहते है। - सभी ब्राह्मण ग्रंथों में सबसे विशाल शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ है। **Note :-** वैदिक काल में जौ को यव, गेहूँ को गोधून तथा चावल को ब्रीही कहा जाता था। ### वेद - वद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' हाता है। यह सबस प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ है। - वेदों की रचना ईश्वर ने की है। अतः वेद को अपौरूषेय कहा जाता है। - गुप्तकाल में कृष्ण द्वैवायन व्यास ने वेदों का संकलन (Collection) किया। - प्रारम्भ में वेदों की संख्या- 3 (ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्ववेद) थी, अतः वेद को त्रयी कहा जाता है। - अथर्ववेद को बाद में शामिल किया गया इसलिए इसे वेदत्रैयी में नहीं रखते हैं। - ऋग्वेद- इसका शाब्दिक अर्थ मंत्रों/ऋचाओं का संग्रह होता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सुक्त तथा 10,580 ऋचाएँ हैं। ऋचाओं की अधिकता के कारण ही इसे ऋग्वेद कहते हैं। यह सबसे प्राचीन एवं सबसे बड़ा वेद है। इसमें गायत्री मंत्र की चर्चा है, जो सूर्य भगवान को समर्पित है। - पहली बार शूद्र का प्रयोग ऋग्वेद में हुआ। - ऋग्वेद का पहला तथा 10वां मंडल बाद में लिखा गया है जबकि सबसे पहले 7वाँ मंडल लिखा गया है। - 9 वें मंडल में सोम देवता की चर्चा है। यह जंगल के देवता थे। - ऋग्वेद के ज्ञानी को होतृ कहते हैं। - ऋग्वेद का उपवेद 'आयुर्वेद' है। जिसमें चिकित्सा की चर्चा है। इसके ज्ञानी को प्रजापति कहते हैं। - इसमें दंसराज्ञ युद्ध की चर्चा है। - सामवेद- साम का शाब्दिक अर्थ 'गान' होता है। इसमें 1549 मंत्र हैं। किन्तु वास्तव में 75 मंत्र ही सामवेद के हैं। बाकी मंत्रों को ऋग्वेद से ग्रहण कर लिया है। - सामवेद में भारतीय संगीत के सात स्वर सा, रे, गा, मा, पा, धा, नी की चर्चा है। - ये संगीत यज्ञ के समय गाये जाते हैं। - सामवेद के ज्ञानी को 'उद्‌गाता' कहते हैं। - सामवेद का उपवेद 'गंधर्ववेद' है। - गंधर्ववेद के ज्ञानी को 'नारद' कहते हैं। - भारतीय संगीत का जन्म 'सामवेद' से हुआ है। - यजुर्वेद - इसमें 1990 मंत्र हैं। इसमें युद्ध एवं कर्म-कांड की चर्चा है। - यह एकमात्र वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में है। - इसे 2 भाग में बाँटते हैं- - (i) कृष्ण यजुर्वेद (गद्य) - (ii) शुक्ल यजुर्वेद (पद्य) - इसके ज्ञानी को अध्वर्यु कहते हैं। यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है। धनुर्वेद के ज्ञानी को विश्वामित्र कहते हैं। - अथर्ववेद- इसकी रचना सबसे बाद में उत्तर वैदिक काल में हुई। इसमें 5849 मंत्र तथा 731 सूक्त हैं। - इसमें जादू-टोना, वशीकरण, रोग-निवारक औषधि, इत्यादि की चर्चा है। - अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद है। - अथर्ववेद के ज्ञानी को ब्रह्मा कहा जाता है। - अथर्वा ऋषि ने इस वेद को लिखा है। - अथर्ववेद में ही सर्वप्रथम मगध, अंग और राजा परिक्षित के बारे में उल्लेख किया गया है। ### उपवेद - वेदों को अच्छी तरह से समझने के लिए उपवेद की रचना किया गया। सभी वेद के अपने-अपने उपवेद है। - 1. आयुर्वेद ऋग्वेद का उपवेद है। - 2. गंधर्ववेद- सामवेद का उप

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