सीखना: परिभाषा, प्रक्रिया और विधियाँ PDF
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Kolhan University Chaibasa
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यह दस्तावेज़ सीखने की परिभाषा, प्रक्रिया और विधियों पर चर्चा करता है। यह एक शिक्षा मनोविज्ञान पाठ्यक्रम का हिस्सा हो सकता है।
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## सीखना : परिभाषा, प्रक्रिया व विधियाँ ### DEFINITION, PROCESS AND METHODS OF LEARNING "Learning is a process of improvement.” -Gates and Others (p. 309) ### सीखने की प्रक्रिया (PROCESS OF LEARNING) प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति...
## सीखना : परिभाषा, प्रक्रिया व विधियाँ ### DEFINITION, PROCESS AND METHODS OF LEARNING "Learning is a process of improvement.” -Gates and Others (p. 309) ### सीखने की प्रक्रिया (PROCESS OF LEARNING) प्रत्येक व्यक्ति नित्यप्रति अपने जीवन में नये अनुभव एकत्र करता रहता है। ये नवीन अनुभव, व्यक्ति के व्यवहार में वृद्धि तथा संशोधन करते हैं। इसलिये ये अनुभव तथा इनका उपयोग ही सीखना या अधिगम करना कहलाता है। मनोवैज्ञानिकों ने सीखने को मानसिक प्रक्रिया माना है। यह क्रिया जीवनभर निरन्तर चलती रहती है। सीखने की प्रक्रिया की दो मुख्य विशेषताएँ हैं—निरन्तरता और सार्वभौमिकता। यह प्रक्रिया सदैव और सर्वत्र चलती रहती है। इसलिए, मानव अपने जन्म से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। उसकी सीखने की प्रक्रिया में विराम और अस्थिरता की अवस्था कभी नहीं आती है। हाँ, इतना अवश्य है कि उसकी गति कभी तीव्र और कभी मंद हो जाती है। इसके अतिरिक्त, मानव के सीखने का कोई निश्चित स्थान और समय नहीं होता है। वह हर घड़ी और हर जगह कुछ-न-कुछ सीख सकता है। वह न केवल शिक्षा-संस्था में, वरन् परिवार, समाज, संस्कृति, सिनेमा, सड़क, पड़ोसियों, संगी-साथियों, अपरिचित व्यक्तियों, वस्तुओं, स्थानों - सभी से थोड़ी या अधिक शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार, वह आजीवन सीखता हुआ और इसके फलस्वरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन करता हुआ, जीवन में आगे बढ़ता चला जाता है। इसलिए, वुडवर्थ ने कहा है-“सीखना, विकास की प्रक्रिया है।" "Learning is a process of development." -Woodworth (p. 281) ### सीखने का अर्थ व परिभाषा (MEANING AND DEFINITION OF LEARNING) 'सीखना' किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिए चले जा रहे हैं। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को हमारे हाथ से छीन कर ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं। इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नहीं है, वरन् हाथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं, सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप, उसे एक नया अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है, तब उसके प्रति उसकी प्रतिक्रिया भिन्न होती है। अनुभव ने उसे आग को न छूना सिखा दिया है। अतः वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, "सीखना-अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।" हम 'सीखने' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, यथा- 1. स्किनर-"सीखना, व्यवहार में उत्तरोत्तर सामंजस्य की प्रक्रिया है।" "Learning is a process of progressive behaviour adaptation." -Skinner (A-p. 199) 2. वुडवर्थ-"नवीन ज्ञान और नवीन प्रतिक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखने की प्रक्रिया है।" "The process of acquiring new knowledge and new responses is the process of learning." -Woodworth (pp. 281-282) 3. क्रो व क्रो-"सीखना-आदतों, ज्ञान और अभिवृत्तियों का अर्जन है।" "Learning is the acquisition of habits, knowledge and attitudes." -Crow and Crow (p.225) 4. गेट्स व अन्य-"सीखना, अनुभव और प्रशिक्षण द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है।" "Learning is the modification of behaviour through experience and training." -Gates and Others (p. 288) 5. क्रानबेक-“सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन द्वारा व्यक्त होता है।” "Learning is shown by a change in behaviour as a result of experience." -Cronback (Educational Psychology, p. 47) 6. मार्गन एवं गिलीलैण्ड-"सीखना, अनुभव के परिणामस्वरूप प्राणी के व्यवहार में परिमार्जन है जो प्राणी द्वारा कुछ समय के लिये धारण किया जाता है।” "Learning is some modification in the behaviour of the organism as a result of experience which is retained for atleast a certain period of time." -Morgan and Gilliland 7. कुप्पूस्वामी - "अधिगम वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव, एक परिस्थिति में उसके अन्तःक्रिया के परिणाम के रूप में व्यवहार का एक नवीन प्रतिरूप अर्जित करता है, जो कुछ अंश तक स्थिरोन्मुख रहता है तथा जीव के सामान्य व्यवहार प्रतिमान को प्रभावित करता है।" "Learning is the process by which an organism, as a result of its interaction in a situation acquires a new mode of behaviour pattern of the organism to same degree:" -Kuppuswami 8. थार्नडाइक-"उपयुक्त अनुक्रिया के चयन तथा उसे उत्तेजना से जोड़ने को अधिगम कहते हैं। "Learning is selecting the appropriate response and connecting it with the stimulus." -Thorndike E. L. 9. उदय परीक-"अधिगम ज्ञानात्मक, गामक अथवा व्यवहारगत निवेशों की आवश्यकता पड़ने पर उनके प्रभावात्मक एवं विभिन्न प्रयोग हेतु अधिग्रहण, आत्मीकरण व आन्तरीकरण करने तथा आगामी स्वचालित अधिगम की बढ़ी हुई क्षमता की ओर ले जाने वाली प्रक्रिया है।" इन परिभाषाओं का विश्लेषण करके हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि सीखना, क्रिया द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है, व्यवहार में हुआ यह परिवर्तन कुछ समय तक बना रहता है, यह परिवर्तन व्यक्ति के पूर्ण अनुभवों पर आधारित होता है। ### सीखने की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF LEARNING) योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson) के अनुसार-सीखने की सामान्य विशेषताएँ निम्नांकित हैं- 1. सीखना : सम्पूर्ण जीवन चलता है (All Living is Learning)- सीखने की प्रक्रिया आजीवन चलती है। व्यक्ति अपने जन्म के समय से मृत्यु तक कुछ-न-कुछ सीखता रहता है। 2. सीखना : परिवर्तन है (Learning is Change) - व्यक्ति अपने और दूसरों के अनुभवों से सीखकर अपने व्यवहार, विचारों, इच्छाओं, भावनाओं आदि में परिवर्तन करता है। गिलफोर्ड (Guilford, General Psychology, p. 343) के अनुसार- "सीखना, व्यवहार के परिणामस्वरूप व्यवहार में कोई परिवर्तन है।" 3. सीखना सार्वभौमिक है (Learning is Universal) - सीखने का गुण केवल मनुष्य में ही नहीं पाया जाता है। वस्तुतः संसार के सभी जीवधारी पशु-पक्षी और कीड़े-मकोड़े भी सीखते हैं। 4. सीखना : विकास है (Learning is Growth) – व्यक्ति अपनी दैनिक क्रियाओं और अनुभवों द्वारा कुछ-न-कुछ सीखता है। फलस्वरूप, उसका शारीरिक और मानसिक विकास होता है। सीखने की इस विशेषता को पेस्टालॉजी (Pestalozzi) ने वृक्ष और फ्रोबेल (Frobel) ने उपवन का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। 5. सीखना : अनुकूलन है (Learning is Adjustment) — सीखना, वातावरण से अनुकूलन करने के लिए आवश्यक है। सीखकर ही व्यक्ति, नई परिस्थितियों से अपना अनुकूलन कर सकता है। जब वह अपने व्यवहार को इनके अनुकूल बना लेता है, तभी वह कुछ सीख पाता है। गेट्स एवं अन्य (Gates and Others) (p. 299) का मत है- “सीखने का सम्बन्ध स्थिति के क्रमिक परिचय से है।" 6. सीखना : नया कार्य करना है (Learning is Doing Something New)—वुडवर्थ (Woodworth) (p. 532) के अनुसार-सीखना कोई नया कार्य करना है। पर उसने उसमें एक शर्त लगा दी है। उसका कहना है कि सीखना, नया कार्य करना तभी है, जबकि यह कार्य फिर किया जाय और दूसरे कार्यों में प्रकट हो। 7. सीखना : अनुभवों का संगठन है (Learning is Organization of Experiences)—सीखना न तो नये अनुभव की प्राप्ति है और न पुराने अनुभवों का योग, वरन् नये और पुराने अनुभवों का संगठन है। जैसे-जैसे व्यक्ति नये अनुभवों द्वारा नई बातें सीखता जाता है, वैसे-वैसे वह अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपने अनुभवों को संगठित करता चला जाता है। 8. सीखना : उद्देश्यपूर्ण है (Learning is Purposive) - सीखना, उद्देश्यपूर्ण होता है। उद्देश्य जितना ही अधिक प्रबल होता है, सीखने की क्रिया उतनी ही अधिक तीव्र होती है। उद्देश्य के अभाव में सीखना असफल होता है। मर्सेल (Mursell, Successful Teaching, p. 56) के अनुसार-"सीखने के लिए उत्तेजित और निर्देशित उद्देश्य की अति आवश्यकता है और ऐसे उद्देश्य के बिना सीखने में असफलता निश्चित है।" 9. सीखना : विवेकपूर्ण है (Learning is Intelligent) - मर्सेल (Mursell) का कथन है कि सीखना, यांत्रिक कार्य के बजाय विवेकपूर्ण कार्य है। उसी बात को शीघ्रता और सरलता से सीखा जा सकता है, जिसमें बुद्धि या विवेक का प्रयोग किया जाता है। बिना सोचे-समझे, किसी बात को सीखने में सफलता नहीं मिलती है। मर्सेल के शब्दों में- "सीखने की असफलताओं का कारण समझने की असफलताएँ हैं।" "Failures in learning are failure in understanding." -Mursell (p. 158) 10. सीखना : सक्रिय है, (Learning is Active) - सक्रिय सीखना ही वास्तविक सीखना है। बालक तभी कुछ सीख सकता है, जब वह स्वयं सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। यही कारण है कि डाल्टन प्लान, प्रोजेक्ट मेथड आदि शिक्षण की प्रगतिशील विधियाँ, बालक की क्रियाशीलता पर बल देती हैं। 11. सीखना : व्यक्तिगत व सामाजिक, दोनों हैं (Learning is both Individual and Social)- सीखना व्यक्तिगत कार्य तो है ही, पर इससे भी अधिक सामाजिक कार्य है। योकम एवं सिम्पसन (Yoakam and Simpson, p. 60) के अनुसार- "सीखना सामाजिक है, क्योंकि किसी प्रकार के सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।" 12. सीखना : वातावरण की उपज है (Learning is a Product of Environment)- सीखना रिक्तता में न होकर, सदैव उस वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में होता है, जिसमें व्यक्ति रहता है। बालक का सम्बन्ध जैसे वातावरण से होता है, वैसी ही बातें वह सीखता है। यही कारण है कि आजकल इस बात पर बल दिया जाता है कि विद्यालय इतना उपयुक्त और प्रभावशाली वातावरण उपस्थित करे कि बालक अधिक-से-अधिक अच्छी बातों को सीख सके। 13. सीखना : खोज करना है (Learning is Discovery) - वास्तविक सीखना किसी बात की खोज करना है। इस प्रकार के सीखने में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के प्रयास करके स्वयं एक परिणाम पर पहुँचता है। मर्सेल का कथन है- "सीखना उस बात को खोजने और जानने का कार्य है, जिसे एक व्यक्ति खोजता और जानना चाहता है।" and see." "Learning is a affair of discovering and seeing the point that one wants to discover -Mursell : Successful Teaching, p. 61 अधिगम की ये विशेषतायें, उनके प्रकार तथा उसकी परिभाषाओं की उपज हैं। अधिगम में व्यवहार परिवर्तन होता है, यह परिवर्तन स्थायित्व लिये होता है। अनुभव, इन परिवर्तनों में योग देते हैं। होने वाले परिवर्तन अनुभव किये जाते हैं तथा उन्हें देखा भी जाता है। अधिगम में सम्बन्ध मूलकता पाई जाती है। यह व्यवहार का परिमार्जन कर ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा मनोगत्यात्मक क्षेत्रों में वृद्धि करता है। यों व्यवहार विकास के महत्त्वपूर्ण सोपान के रूप में अधिगम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। ### अधिगम के प्रकार/आयाम (TYPES OR DIMENSIONS OF LEARNING) गेने (Gagne) शैक्षिक उद्देश्यों की स्पष्ट एवं प्रकट शब्दावली में परिभाषित करने पर बल देता है। गेने का वर्गीकरण अधिगम के प्रकारों (Types of Learning) से सम्बन्धित है, जबकि ब्लूम और क्राथवोल्ट का वर्गीकरण अधिगम के प्रतिफलों पर आधारित है। गेने के अनुसार, "दी कंडिशन्स ऑफ़ लर्निंग" में सीखने के आठ प्रकार बताये गये हैं वे सभी श्रृंखलाबद्ध क्रम में होते हैं। वर्णित आठ अधिगम प्रकारों को एक-दूसरे की परम आवश्यकता है अर्थात् यदि अधिगम के दूसरे प्रकार की जानकारी प्राप्त करनी है तो, अधिगम के पहले प्रकार का ज्ञान अपेक्षित है। 1. संकेत अधिगम (Signal Learning)- इस स्तर पर व्यक्ति बहुत ही मोटे तौर पर किसी सामान्य संकेत के प्रति अनुक्रिया करता है। संकेत अधिगम के विशिष्ट उद्दीपकों के लिये विशिष्ट अनुक्रिया की जाती है, जिसे उद्दीपन अनुक्रिया अधिगम (S-R-Learning) भी कहते हैं। इसके लिये पूर्व स्थितियाँ अज्ञात हैं। इसमें छात्र उद्दीपन तथा अनुक्रिया को किसी एक व्यवस्था एवं परिस्थिति में बार-बार दोहराते हैं, जिससे उस उद्दीपन तथा अनुक्रिया में स्थापित सम्बन्ध सुदृढ़ हो जायें। जैसे-सड़क पर लाल बत्ती देखकर रुक जाना। इस अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक सर्वप्रथम छात्रों के सामने उद्दीपन प्रस्तुत करता है और उन्हें अनुक्रिया करने के लिये बाध्य करता है। यदि छात्र की अनुक्रिया गलत होती है तो शिक्षक उस अनुक्रिया की अवहेलना करता है। सही अनुक्रिया करने पर शिक्षक छात्र को पुनर्बलन प्रदान करता है। यह ध्यान रखने योग्य है कि तत्काल प्रतिपुष्टि (Feedback) पुनर्बलन (Reinforcement) के लिये उत्तम स्रोत (माध्यम/सहारा) होती है। शिक्षक पुनर्बलन के सहारे नहीं अनुक्रिया का अभ्यास करते हुये छात्र को दक्षता और नैपुण्य (Mastery) की ओर ले जाते हैं। अतः इस अधिगम-प्रक्रिया में शिक्षक को निम्नांकित शिक्षण-युक्तियों का प्रयोग करना चाहिए- (i) उद्दीपन-अनुक्रिया में सामीप्य की स्थापना। (ii) सही अनुक्रिया पर पुनर्बलन प्रदान करना। (iii) निरन्तर अभ्यास और समुचित पुनर्बलन का प्रयोग करना। **सीखना (Learning)** **समस्या समाधान अधिगम (Problem Solving Learning)** **सिद्धान्त अधिगम (Principle Learning)** **संप्रत्यय अधिगम (Concept Learning)** **विभेदात्मक अधिगम (Discrimination Learning)** **शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Association Learning)** **श्रृंखला अधिगम (Chain Learning)** **उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम (Stimulus Response Learning)** **संकेत अधिगम (Signal Learning)** 2. उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम (Stimulus Response Learning) - गेने के अनुसार अधिगम दूसरे प्रकार का सीखना है। इसका सम्बन्ध बी. एफ. स्किनर द्वारा प्रदत्त उद्दीपक-अनुक्रिया अनुबंध से है जिसमें अनुक्रिया सतत या संभावित होती है। उस समय सक्रियता की शक्ति बढ़ जाती है, जब उसे पुनर्बलन मिलता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी उद्दीपक की उपस्थिति से जब किसी अनुक्रिया का होना संभव हो जाये, तो वहाँ हम उद्दीपक अनुक्रिया अधिगम की परिस्थिति कहेंगे। स्किनर के सक्रिय अनुबंध के सिद्धान्त में अनुक्रिया की पुष्टि पुनर्बलन का काम करती है। इसमें पॉवलव के अनुसार-उद्दीपक तथा अनुक्रिया में पूर्व निर्धारित सम्बन्ध नहीं रहता, बल्कि अनुक्रिया का सम्बन्ध परिवेश एवं जीव की सक्रियता से होता है तथा इसमें प्राणी सही अनुक्रिया से नवीन सीखता है तथा साथ ही उसे अग्रिम क्रिया के लिये भी पुनर्बलन मिलता है। 3. श्रृंखला अधिगम (Chain Learning) - व्यक्ति जब प्रथम स्तर के अधिगम एवं द्वितीय स्तर के अधिगम अर्थात् संकेत अधिगम एवं उद्दीपक-अनुक्रिया अधिगम से परिचित हो जाता है। तभी श्रृंखला अधिगम की प्रक्रिया प्रारम्भ कर सकता है। स्किनर ने भी इस प्रकार के अधिगम की व्याख्या की है। इसमें उद्दीपक अनुक्रिया को लगातार एक क्रम से उपस्थित किया जाता है जिससे श्रृंखला अधिगम की स्थिति उत्पन्न होती है। "Chaining is the connection of a set of individual motivation (S-R) in sequence." -R. M. Gagne श्रृंखला अधिगम में बालक दो या दो से अधिक उत्तेजक अनुक्रिया के सम्बन्धों से सीखता है तथा वह एक क्रमबद्ध तरीके से विचार (ज्ञान) पिरोना सीख लेता है। अनुक्रिया को व्यक्ति के सीखने के क्रम में एक साथ जोड़ना या सम्बन्धित करना श्रृंखला अधिगम होता है। गेने ने दो प्रकार के श्रृंखला अधिगम की व्याख्या की है- (अ) शाब्दिक श्रृंखला अधिगम (Verbal Chain Learning) (आ) अशाब्दिक श्रृंखला अधिगम (Non-Verbal Chain Learning) शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से शिक्षण प्रतिमानों में शाब्दिक श्रृंखला अधिगम की ही परिस्थिति उत्पन्न की जाती है। 4. शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Association Learning)- सरल श्रृंखलाबद्ध सीखने के पश्चात् ज्ञान को शाब्दिक रूप प्रदान कर किसी भी वस्तु से सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य शाब्दिक साहचर्य सीखने के अन्तर्गत आता है जिससे सीखी हुई वस्तु को स्थायित्व मिले। श्रृंखला अधिगम के शाब्दिक अधिगम द्वारा विचारों को क्रम में पिरोना तो सीख लेता है व अशाब्दिक अधिगम भी कौशल अधिगम द्वारा सीख लेता है, लेकिन जब तक ज्ञान को शाब्दिक साहचर्य से सम्बन्धित न करवाया जाये तब तक बालक का अधिगम अपूर्ण रहता है। जैसे-कविता पाठ, अक्षरों व शब्दों को क्रमानुसार सीखना। शृंखला अधिगम होने के कारण इसके अंतर्गत शाब्दिक तथा शारीरिक (पेशीय) अनुक्रियाओं का निश्चित क्रम सम्मिलित होता है। इसके लिये संकेत अधिगम अथवा स्वरूप आवश्यक होता है। 5. विभेदात्मक अधिगम (Discrimination Learning) - अधिगमकर्त्ता एक ही प्रकार के अथवा समान दो पदों से अधिक उद्दीपनों को सही-सही पहचानकर उनमें भेद कर सकता है। शिक्षण के विभेदात्मक अधिगम में संकेत तथा श्रृंखला (शाब्दिक या कौशल अधिगम) की परिस्थितियाँ सम्मिलित हैं। इस अधिगम में एक तथ्य को दूसरे से अंतर, पूर्व में सीखा हुआ ज्ञान करने पर बल दिया जाता है। इसके अंतर्गत उद्दीपन तथा अनुक्रिया का सम्बन्ध भ्रांतिपूर्ण होता है। उदाहरणार्थ- घनत्व व भार में अंतर समझना, हिन्दी के ब और व में, भ और म में तथा ध और घ में भेद समझ लेना। इसके लिये आवश्यक है कि शिक्षक प्रत्येक उद्दीपक तथा अनुक्रिया को स्पष्ट करे और जिन-जिन वस्तुओं व तथ्यों में भेद करना है, उन्हें एक साथ प्रस्तुत करे इसमें विभिन्न वर्गों के तथ्यों या घटनाओं को अलग कर पहचानने का कार्य किया जाता है। 6. संप्रत्यय अधिगम (Concept Learning) - इस अधिगम परिस्थिति के लिये विभेदात्मक अधिगम (Discrimination Learning) का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। केण्डलर 1964 ने सर्वप्रथम सम्प्रत्यय अधिगम को उल्लेख किया है। गेने ने इसको आगे बढ़ाया। गेने ने संप्रत्यय अधिगम को परिभाषित करते हुये कहां है- "जो अधिगम व्यक्ति में किसी वस्तु या घटना को एक वर्ग के रूप में अनुक्रियां करना संभव बनाते हैं उन्हें हम संप्रत्यय अधिगम कहते हैं।" बालक किसी संप्रत्यय का अनुभव तथा अधिगम क्रिया-प्रक्रिया से करता है। इस प्रकार के संप्रत्यय विकास की यह प्रक्रिया चार स्तरों से गुजरती है या दूसरे शब्दों में संप्रत्यय अधिगम या विकास के चार स्तर कह सकते हैं। ये स्तर निम्नलिखित हैं- (क) मूर्त स्तर (Concrete Level)- जब बालक प्रत्यक्ष देखे गये पदार्थों या वस्तुओं की उपस्थिति होने पर उन्हें पहचानने में सक्षम हो जावा है, तो इसे संप्रत्यय अधिगम का मूर्त स्तर कहते हैं। (ख) परिचयात्मक स्तर (Indentity Level) - जब बालक भिन्न परिवर्तित दशाओं में पदार्थों के विभिन्न गुणों का सामान्यीकरण करने की योग्यता को प्राप्त कर ले, तो यह कहा जा सकता है कि उसने संप्रत्यय अधिगम के परिचयात्मक स्तर को प्राप्त कर लिया है। (ग) वर्गीकरण स्तर (Classification Level)- जब बालक के कम से कम एक ही वर्ग में जो दृष्टांतों या उदाहरणों का एक तरह की समझने की क्षमता विकसित कर ले तब संप्रत्यय अधिगम के इस स्तर की उपलब्धि मानी जा सकती है। (घ) औपचारिक स्तर (Formal Level)- जब बालक संप्रत्यय की विशेषताओं के आधार पर विशिष्ट वर्ग में होना व उसका आधार स्पष्ट कर सके तब यह कहा जा सकता है कि उसने संप्रत्यय अधिगम के औपचारिक स्तर को प्राप्त कर लिया है। इसमें संपूर्ण तथ्य से सम्बन्धित सामान्यीकरण की क्रियायें सम्मिलित होती हैं अर्थात् एक ही वर्ग के दो या दो से अधिक विभिन्न उद्दीपनों के प्रति कोई एक सामान्य व्यवहार अन्तर्निहित होता है। इसके लिये बहु-विभेदात्मक अधिगमः पूर्ण परिस्थिति मानी जाती है। तथ्यों के समूह एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। परन्तु उसमें सम्मिलित घटकों/ तत्त्वों के लिये छात्र सामान्यीकरण कर सकते हैं। जैसे-पौधों एवं पशुओं का वर्गीकरण करना। 7. नियम अधिगम (Rule or Principal Learning)- इस स्तर पर अधिगमकर्त्ता किसी नियम को सीखता है और उनको नई परिस्थितियों में प्रयोग कर सकता है। नियम या सिद्धान्त अधिगम में दो या दो से अधिक प्रत्ययों की श्रृंखला सम्मिलित होती है। जिस प्रकार एक संप्रत्यय में अनेक तथ्यों एवं विशेषताओं की श्रृंखला होती है, उसी प्रकार एक नियम/सिद्धान्त में कई संप्रत्ययों की श्रृंखला होती है। उदाहरणार्थ- बर्फ का गर्मी पाकर पिघलना। इस सिद्धान्त में तीन संप्रत्ययों, 'बर्फ', 'गर्मी' व 'पिघलना' का श्रृंखलन किया गया है और इसमें एक ही सिद्धान्त का बोध होता है। सिद्धान्त अधिगम में छात्र को प्रत्ययों का प्रत्यास्मरण (Recall) करना होता है, जिससे सिद्धान्त का बोध होता है। 8. समस्या समाधान अधिगम (Problem Solving Learning) - अधिगमकर्त्ता इस स्तर पर सीखे हुये दो या दो से अधिक नियमों का समन्वय कर किसी नई समस्या के समाधान की योग्यता प्राप्त कर लेता है। इस प्रकार उच्च स्तरीय सिद्धान्त के रूप में सम्बद्ध करना ही समस्या समाधान अधिगम है। अधिगम की प्रक्रिया में तीन प्रमुख चर (Variables) कार्यरत होते हैं- अधिगमकर्त्ता, उद्दीपन-परिस्थिति तथा अनुक्रिया। समस्या समाधान एक जटिल अधिगम है। इसमें संप्रत्यय अधिगम और सिद्धान्त अधिगम दोनों ही सम्मिलित हो जाते हैं। सफल समस्या-समाधान का वर्णन अधिगम के धनात्मक स्थानान्तरण/संक्रमण (Positive Transfer of Learning) के रूप में किया जा सकता है। इसलिये इसे जटिल तथा व्यक्तिगत अधिगम की संज्ञा दी गई है। जैसे-रेखागणित के किसी प्रमेय को सिद्ध करना। जीवन की समस्याओं का समाधान व्यक्ति अपने पूर्व-अनुभवों की सहायता से करता है। पूर्व अनुभव व्यक्ति का अधिगम होता है। अधिगम समस्या समाधान में सहायक होती है।