मूल्यांकन की विशेषताएँ PDF

Summary

इस दस्तावेज़ में मूल्यांकन की विभिन्न विशेषताओं का विवरण दिया गया है। इसमें वैधता, विश्वसनीयता, वस्तुनिष्ठता, व्यवहारिकता, उद्देश्यपूर्णता, विभेदकारिता, व्यापकता, नैदानिकता, सतत प्रक्रिया और सामाजिकता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

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  My Library REET Child Dev.. मूल्यांकन मूल्यांकन की वि.. मूल्यांकन की विशेषताएँ :- - किसी भी मूल्यांकन की श्रेष्ठता उसकी विशेषताओं से प्रकट होती है। मूल्यांकन की महत्वपूर्ण विशेषता निम्न है -...

  My Library REET Child Dev.. मूल्यांकन मूल्यांकन की वि.. मूल्यांकन की विशेषताएँ :- - किसी भी मूल्यांकन की श्रेष्ठता उसकी विशेषताओं से प्रकट होती है। मूल्यांकन की महत्वपूर्ण विशेषता निम्न है - 1. वैद्यता – जब मूल्यांकन किया जाता है, तब उसी विषय-वस्तु का मापन हो जिसके लिए मूल्यांकन का आयोजन हो रहा है , तो यह आदर्श स्थिति मूल्यांकन की वैद्यता को दर्शाती है। 2. विश्वसनीयता:- मूल्यांकन के - बाद प्राप्त परिणामों में अलग अलग व्यक्तियों से जाँच करवाने के बाद भी कोई परिवर्तन नजर नहीं आता है या परिणाम यथावत रहते है तो यह मूल्यांकन की विश्वसनीयता होती है। 3.वस्तुनिष्ठता:- ऐसा मूल्यांकन जिस पर किसी भी जाँचकर्ता/शिक्षक की रूचि, अभिरूचि, आदत या मनोवृत्ति का प्रभाव नहीं पड़ता हो तथा सभी के लिए एक समान परिणाम में निष्ठा हो। 4. व्यवहारिकता:- जब मूल्यांकन में सरलता तथा कम परिश्रम में, कम खर्चे केद्वारा किसी परिणाम को प्राप्त करने की , क्षमता होती है तो वह मूल्यांकन अपने आप में सभी लोगों के लिए उपयोगी बन जाता है जो उसकी व्यवहारिकता को दर्शाता है। 5. उद्देश्यमूलकता:- किसी भी मूल्यांकन में उसका कोई उद्देश्य निहित होता है, उस उद्देश्य की पूर्ति का होना अनिवार्य है जैसे एक बालक को आवश्यक सीमा तक अधिगम हुआ या नहीं यह जानने के लिए किये गये मूल्यांकन में इसका पता लगाना चाहिए। 6. विभेदकारिता:- किसी भी मूल्यांकन के / द्वारा जब बालकों को वर्ग श्रेणीवार वर्गीकरण में आसानी हो जाती है तो यह मूल्यांकन की विभेदकारिता कहलाती है। 7. व्यापकता:- जब मूल्यांकन में सम्पूर्ण विषय-वस्तु को समावेशित किया जाता है अथवा बालक विषयगत ज्ञान के अलावा सहशैक्षणिक उपलब्धि के व्यवहार को भी सम्मिलित किया जाता है तो यह मूल्यांकन की व्यापकता को दर्शाता है। 8. नैदानिकता:- मूल्यांकन के बाद जब एक बालक में कमी नजर आती है या फिर वह आवश्यक सीमा तक अधिगम नहीं कर पाता है , तो अधिगम नहीं कर पाने के कारणों का पता लगाना नैदानिक व्यवहार होता है , जिससे कारण जानकर पुन: उपचारात्मक शिक्षण द्वारा बालक को आवश्यक सीमा तक अधिगम करवाया जा सकता है। 9.सतत् प्रक्रिया:- मूल्यांकन शैक्षिक प्रक्रिया का अंग है, जो कि जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, इसलिए सतत् प्रक्रिया है। 10. सामाजिकता:- मूल्यांकन के समय प्रतिभागी के सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए मूल्यांकन को परिणामों तक ले जाना ही उसकी सामाजिकता को प्रकट करता है। CONTACT US QUICK LINKS JOIN US ON  UTKARSH CLASSES & EDUTECH PVT About Us      LTD FAQ's Vyas Bhawan, 1st A Road, Sardarpura, Jodhpur Rajasthan, 342001 Contact Us DOWNLOAD OUR APP  +91-9116691119 Ebooks, Test Prepration, Video Lectures  [email protected] © 2023 Utkarsh Classes & Edutech Pvt. Ltd. All Right Reserved Privacy Policy Refund Policy Terms & Conditions

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