जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समुदाय PDF

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This document discusses different types of societies, including nomadic and settled tribes in India. It explores how these societies were organised and functioned, and their interactions with other groups.

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5 जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समदु ाय अध्याय 2, 3 और 4 में आपने देखा कि किस प्रकार राज्यों का उत्थान और पतन हुआ। इस उठापटक के बीच ही कलाओ,ं दस्तकारियों और उत्पादक गतिविधियों की नयी किस्में शहरों और...

5 जनजातियाँ, खानाबदोश और एक जगह बसे हुए समदु ाय अध्याय 2, 3 और 4 में आपने देखा कि किस प्रकार राज्यों का उत्थान और पतन हुआ। इस उठापटक के बीच ही कलाओ,ं दस्तकारियों और उत्पादक गतिविधियों की नयी किस्में शहरों और गाँवों में फल-फूल रही थीं। एक लंबे चित्र 1 अतं राल में कई महत्त्वपरू ्ण राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन जनजातीय नृत्य: हुए। लेकिन सामाजिक परिवर्तन हर जगह एक समान नहीं संताल चित्र खर्रा थे, क्योंकि अलग-अलग किस्‍म के समाज अलग-अलग तरीकों से विकसित हुए। ऐसा कै से और क्यों हुआ, यह समझना महत्त्वपरू ्ण है। इस उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से में समाज, वर्ण के नियमानसु ार पहले से ही विभाजित था। ब्राह्मणों द्वारा सझु ाए गए ये नियम, बड़े-बड़े राज्यों के राजाओ ं द्वारा स्वीकार किए गए थे। इससे ऊँच और नीच तथा अमीर और गरीब के बीच का फ़ासला बढ़ा। दिल्ली के सल ु तानों और मग़ु लों के काल में श्रेणीबद्ध समाज ज़्यादा जटिल हो गया। बड़े शहरों से परे – जनजातीय समाज अलबत्ता, दसू रे तरह के समाज भी उस समय मौजद़ू थे। उपमहाद्वीप के कई समाज ब्राह्मणों द्वारा सझु ाए गए सामाजिक नियमों और कर्मकांडों को नहीं मानते थे और न ही वे कई असमान वर्गों में विभाजित थे। अकसर ऐसे समाजों को जनजातियाँ कहा जाता रहा है। प्रत्येक जनजाति के सदस्य नातेदारी के बंधन से जड़ु े होते थे। कई जनजातियाँ खेती से अपना जीविकोपार्जन करती थीं। कुछ दसू री जनजातियों के लोग शिकारी, सग्ं राहक या 49 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 49 15-06-2022 15:00:45 पशपु ालक थे। प्रायः वे अपने निवासस्थान के प्राकृतिक ससं ाधनों का परू ा-परू ा इस्तेमाल करने के लिए इन गतिविधियों का मिला-जल ु ा रूप अपनाते थे। कुछ जनजातियाँ खानाबदोश थीं और वे एक जगह से दसू री जगह घमू ती रहती ु रूप से भमि थीं। जनजातीय समहू , सयं क्‍त ू और चरागाहों पर नियंत्रण रखते थे और अपने खदु के बनाए नियमों के आधार पर परिवारों के बीच इनका बँटवारा करते थे। इस उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में कई बड़ी जनजातियाँ फली-फूलीं। ? सामान्यतः ये जंगलों, पहाड़ों, रे गिस्तानों और दसू री दर्गु म जगहों पर निवास उपमहाद्वीप का एक भौतिक मानचित्र लेकर करती थीं। कभी-कभी जाति विभाजन पर आधारित अधिक शक्‍त‍िशाली वे इलाके बताइए जहाँ समाजों के साथ उनका टकराव होता था। कई मायनों में इन जनजातियों ने जनजातीय लोग रहते अपनी आज़ादी को बरकरार रखा और अपनी अलहदा ससं ्कृति को बचाया। रहे होंगे। लेकिन जाति-आधारित और जनजातीय समाज दोनों अपनी विविध किस्म की ज़रूरतों के लिए एक-दसू रे पर निर्भर भी रहे। टकराव और निर्भरता के इस सबं ंध ने दोनों तरह के समाजों को धीरे -धीरे बदलने का काम भी किया। जनजातीय लोग कौन थे? समकालीन इतिहासकारों और मसु ाफ़ि‍रों ने जनजातियों के बारे में बहुत कम जानकारी दी है। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो जनजातीय लोग भी लिखित दस्तावेज़ नहीं रखते थे। लेकिन समद्ध ृ रीति-रिवाजों और वाचिक/मौखिक परंपराओ ं का वे संरक्षण करते थे। ये परंपराएँ हर नयी पीढ़ी को विरासत में मिलती थीं। आज के इतिहासकार जनजातियों का इतिहास लिखने के लिए इन वाचिक परंपराओ ं को इस्तेमाल करने लगे हैं। जनजातीय लोग भारत के लगभग हर क्षेत्र में पाए जाते थे। किसी भी एक जनजाति का इलाका और प्रभाव समय के साथ-साथ बदलता रहता था। कुछ शक्‍त‍िशाली जनजातियों का बड़े इलाकों पर नियंत्रण था। पंजाब में खोखर जनजाति तेरहवीं और चौदहवीं सदी के दौरान बहुत प्रभावशाली थी। यहाँ बाद में गक्खर लोग ज़्यादा महत्त्वपरू ्ण हो गए। उनके मखिया ु , कमाल खान गक्खर को बादशाह अकबर ने मनसबदार बनाया था। मलु ्तान और सिंध में मग़ु लों द्वारा अधीन कर लिए जाने से पहले लंगाह और अरघनु लोगों का प्रभतु ्व अत्यंत विस्तृत क्षेत्र पर था। उत्तर-पश्‍च‍िम में एक और विशाल हमारे अतीत–2 50 2024-25 Chapter 5.indd 50 15-06-2022 15:00:45 मानचित्र 1 प्रमख ु भारतीय जनजातियों के क्षेत्र एवं शक्‍त‍िशाली जनजाति थी– बलोच। ये लोग अलग-अलग मखिय ु ों वाले कुल कई छोटे-छोटे कुलों में बँटे हुए थे। पश्‍च‍िमी हिमालय में गडड्ी गड़रियों की परिवारों या घरों के एक जनजाति रहती थी। उपमहाद्वीप के सदु रू उत्तर-पर्ू वी भाग पर भी नागा, अहोम ऐसे समहू को कुल और कई दसू री जनजातियों का परू ी तरह प्रभतु ्व था। कहते हैं जो एक ही मौजद़ू ा बिहार और झारखडं के कई इलाकों में बारहवीं सदी तक चेर पर्वू ज की संतान होने का सरदारशाहियों का उदय हो चका ु था। बादशाह अकबर के प्रसिद्ध सेनापति दावा करते हैं। जनजातीय राजा मान सिंह ने 1591 में चेर लोगों पर हमला किया और उन्हें परास्त संगठन प्रायः नातेदारी या कुल संबंधी निष्‍ठा पर किया। उन्हें लटू कर अच्छा-खासा माल इकट्ठा किया गया, लेकिन वे परू ी आधारित होते हैं। तरह अधीन नहीं बनाए गए। औरंगजे़ब के समय में मग़ु ल सेनाओ ं ने चेर लोगों के कई किलों पर कब्ज़ा किया और इस जनजाति को अपना अधीनस्थ बना लिया। इस क्षेत्र में रहने वाली महत्त्वपरू ्ण जनजातियों में मडंु ा और संताल थे, यद्यपि ये उड़ीसा और बंगाल में भी रहते थे। 51 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 51 15-06-2022 15:00:46 कर्नाटक और महाराष्ट्र की पहाड़ियाँ– कोली, बेराद तथा कई दसू री जनजातियों के निवासस्थान थे। कोली लोग गजु रात के कई इलाकों में भी रहते थे। कुछ और दक्षिण में कोरागा, वेतर, मारवार और दसू री जनजातियों की विशाल आबादी थी। भीलों की बड़ी जनजाति पश्‍च‍िमी और मध्य भारत में फै ली हुई थी। सोलहवीं सदी का अतं आते-आते उनमें से कई एक जगह बसे हुए खेतिहर और यहाँ तक कि ज़मींदार बन चक ु े थे। तब भी भीलाें के कई कुल शिकारी-सग्ं राहक बने रहे। मौजदू ा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आध्रं प्रदेश में गोंड लोग बड़ी तादाद में फै ले चित्र 2 रात में भील लोग हिरन का शिकार कर रहे हैं। हुए थे। खानाबदोश और घुमंतू लोग कै से रहते थे खानाबदोश चरवाहे अपने जानवरों के साथ दरू -दरू तक घमू ते थे। उनका जीवन दधू और अन्य पशचु ारी उत्पादों पर निर्भर था। वे खेतिहर गहृ स्थों से अनाज, कपड़े, बर्तन और ऐसी ही चीज़ों के लिए ऊन, घी इत्यादि का विनिमय भी करते थे। कुछ खानाबदोश अपने चित्र 3 घमु तं ू व्यापारियों की ृंखलाएँ भारत को बाहरी दनि ु या से जोड़ती थीं। यहाँ मेवा इकट्ठा करके उसे ऊँटों पर लादा जा रहा है। मध्य एशिया के व्यापारी ऐसी वस्तुएँ भारत लाते थे और बंजारे एवं अन्य व्यापारी उन्हें स्थानीय बाज़ारों तक पहुचँ ाते थे। हमारे अतीत–2 52 2024-25 Chapter 5.indd 52 15-06-2022 15:00:49 जानवरों पर सामानों की ढुलाई का काम भी करते थे। एक जगह से दसू री जगह आते-जाते वे सामानों की खरीद-फ़रोख्त करते थे। खानाबदोश और बंजारा लोग सबसे महत्त्वपरू ्ण व्यापारी-खानाबदोश थे। उनका कारवाँ भ्रमणशील समूह खानाबदोश घमु तं ू लोग होते ‘टांडा’ कहलाता था। सल ु तान अलाउद्दीन ख़लजी (अध्याय 3) बंजारों का हैं। उनमें से कई पशचु ारी ही इस्तेमाल नगर के बाज़ारों तक अनाज की ढुलाई के लिए करते थे। बादशाह होते हैं जो अपनी रे वड़ जहाँगीर ने अपने ससं ्मरणों में लिखा है कि बंजारे विभिन्न इलाकों से अपने और पशवु ंदृ के साथ एक बैलों पर अनाज ले जाकर शहरों में बेचते थे। सैन्य अभियानों के दौरान वे चरागाह से दसू रे चरागाह मग़ु ल सेना के लिए खाद्यान्नों की ढुलाई का काम करते थे। किसी भी विशाल घमू ते रहते हैं। इसी तरह दस्तकार, फे रीवाले और सेना के लिए 1,00,000 बैल अनाज ढोते होंगे। नृतक-गायक एवं अन्य तमाशबीन भ्रमणशील समहू अपना कामधधं ा करते-करते बंजारे एक जगह से दसू री जगह की सत्रहवीं सदी के आरंभ में भारत आने वाले एक अँग्रेज़ व्यापारी, पीटर मडंु ी, यात्र पर रहते हैं। खानाबदोश ने बंजारों का वर्णन कियाः और भ्रमणशील समहू , दोनों सबु ह हमारी मल ु ाकात बंजारों की एक टांडा से हुई जिसमें 14,000 बैल अकसर उस जगह लौट कर थे। सारे पशु गेहूँ और चावल जैसे अनाजों से लदे हुए थे।... ये बंजारे लोग आते हैं जहाँ उन्होंने पिछले साल दौरा किया था। अपनी परू ी घर-गृहस्थी– बीवी और बच्चे– अपने साथ लेकर चलते हैं। एक टांडा में कई परिवार होते हैं। उनका जीने का तरीका उन भारवाहकों से मिलता-जल ु ता है जो लगातार एक जगह से दसू री जगह जाते रहते हैं। गाय-बैल उनके अपने होते हैं। कई बार वे सौदागरों के द्वारा भाड़े पर नियक्ु ‍त किए जाते हैं, लेकिन ज़्यादातर वे खदु सौदागर होते हैं। अनाज जहाँ सस्ता उपलब्ध है, वहाँ से वे खरीदते हैं और उस जगह ले जाते हैं जहाँ वह महँगा है। वहाँ से वे फिर ऐसी चीजें़ लाद लेते हैं जो किसी और जगह मनु ाफ़े के साथ बेची जा सकती हैं।...टांडा में छह से सात सौ तक लोग हो सकते हैं।... वे एक दिन में 6 या 7 मील से ज़्यादा सफ़र नहीं करते– यहाँ तक कि ठंडे मौसम में भी। अपने गाय-बैलों पर से सामान उतारने के बाद वे उन्हें चरने के लिए खल ु ा छोड़ देते हैं, क्योंकि यहाँ जमीन पर्याप्‍त है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं। पता करें कि आजकल गाँव से शहरों तक अनाज ले जाने का काम ? कै से होता है। बंजारों के तौर-तरीकों से यह किन मायनों में भिन्न या समान हैं? 53 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 53 14-03-2024 09:55:28 कई पशचु ारी जनजातियाँ मवेशी और घोड़ों, जैसे जानवरों को पालने- पोसने और संपन्न लोगों के हाथ उन्हें बेचने का काम करती थीं। छोटे-मोटे फे रीवालों की विभिन्न जातियाँ भी एक गाँव से दसू रे गाँव भ्रमण करती थीं। ये लोग रस्सी, सरकंडे की चीजें़, फूस की चटाई और मोटे बोरे जैसे माल बनाते और बेचते चित्र 4 थे। कभी-कभी भिक्षुक लोग भी घमू तं ू सौदागरों का काम करते थे। नर्तकों, कांस्य मगरमच्छ कुट्टिया गायकों और अन्य तमाशबीनों की भी जातियाँ थीं जो विभिन्न नगरों और कोंड जनजाति, उड़ीसा गाँवों में कमाई के लिए अपनी कला का प्रदर्शन करती थीं। बदलता समाज – नयी जातियाँ और श्रेणियाँ जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था और समाज की ज़रूरतें बढ़ती गर्इं, नए हुनर वाले लोगों की आवश्यकता पड़ी। वर्णों के भीतर छोटी-छोटी जातियाँ उभरने लगीं। उदाहरण के लिए, ब्राह्मणों के बीच नयी जातियाँ सामने आर्इं। दसू री ओर, कई जनजातियों और सामाजिक समहू ों को जाति-विभाजित समाज में शामिल कर लिया गया और उन्हें जातियों का दर्जा दे दिया गया। विशेषज्ञता प्राप्‍त शिल्पियों– सनु ार, लोहार, बढ़ई और राजमिस्‍त्री– को भी ब्राह्मणों द्वारा जातियों के रूप में मान्यता दे दी गई। वर्ण की बजाय जाति, समाज के संगठन का आधार बनी। जाति पर विचार-विमर्श वर्तमान तमिलनाडु के तिरूचिरापल्ली ताल्लुक में स्थित उईयाकोंडन उदेयार के बारहवीं शताब्दी के अभिलेख में ब्राह्मणों की एक सभा (अध्याय 2) के विचार-विमर्श का वर्णन मिलता है। वे रथकारों (शाब्दिक अर्थ, रथ बनाने वाले लोग) की सामाजिक स्थिति पर विचार-विमर्श कर रहे थे। उन्होंने इस जाति के कामकाज तय किए जिनमें वास्तुकला, रथों और गााड़ियों का निर्माण, मदि ं र द्वार बनाना, मर्तिया ू ँ स्थापित करना, बलि के लिए लकड़ियों से बने साज-सामान तैयार करना, मडं प बनाना और राजा के लिए जेव़ र बनाना शामिल थे। हमारे अतीत–2 54 2024-25 Chapter 5.indd 54 15-06-2022 15:00:51 ग्यारहवीं और बारहवीं सदी तक आते-आते क्षत्रियों के बीच नए राजपतू गोत्रों की ताकत में काफ़ी इजाफ़ा हुआ। वे हूण, चदं ल े , चालकु ्य और कुछ दसू री वश ं -परंपराओ ं से आते थे। इनमें से कुछ पहले जनजातियों में आते थे और बाद में कई कुल राजपतू मान लिए गए। धीरे -धीरे उन्होंने परु ाने शासकों की जगह ले ली विशेषतः कृषि वाले क्षेत्रों में। यहाँ कई तरह के परिवर्तन हो रहे थे और शासकों ने शक्‍त‍िशाली राज्यों के निर्माण में अपनी सपं दा का इस्तेमाल किया। शासकों के रूप में राजपतू गोत्रों के उदय के उदाहरण का जनजातीय लोगों ने अनसु रण किया। धीरे -धीरे ब्राह्मणों के समर्थन से कई जनजातियाँ, जाति व्यवस्था का हिस्सा बन गर्इं। लेकिन के वल प्रमख ु जनजातीय परिवार ही शासक वर्ग में शामिल हो पाए। उनकी बहुसंख्यक आबादी, समाज की छोटी जातियों में ही जगह बना पाई। दसू री तरफ़ पंजाब, सिंध और उत्तर-पश्‍च‍िमी सरहद की प्रभतु ्वशाली जनजातियों ने काफ़ी पहले इस्लाम को अपना लिया था। वे जाति व्यवस्था को नकारते रहे। सनातनी हिदं ू धर्म के द्वारा प्रस्तावित गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था इन इलाकों में बड़े पैमाने पर स्वीकार नहीं की गई। राज्यों की उत्पत्ति, जनजातीय लोगों के बीच हुए सामाजिक बदलाव से गहराई से संबंधित है। हमारे इतिहास के इस महत्त्वपरू ्ण हिस्से के दो उदाहरण चित्र 5 नीचे उल्लिखित हैं। गोंड महिला नज़दीक से एक नज़र गोंड स्थानांतरीय कृषि किसी वनप्रांत के पेड़ों गोंड लोग, गोंडवाना नामक विशाल वनप्रदेश में रहते थे। वे स्थानांतरीय और झाड़ियों को पहले कृषि अर्थात् जगह बदल-बदल कर खेती करते थे। विशाल गोंड जनजाति काटा और जलाया जाता है। कई छोटे-छोटे कुलों में भी बँटी हुई थी। प्रत्येक कुल का अपना राजा या उसकी राख में ही फ़सल राय होता था। जिस समय दिल्ली के सल ु तानों की ताकत घट रही थी, उसी बो दी जाती है। जब यह समय कुछ बड़े गोंड राज्य छोटे गोंड सरदारों पर हावी होने लगे थे। अकबर ज़मीन अपनी उर्वरता खो के शासनकाल के एक इतिहास अकबरनामा में उल्लिखित है कि गढ़ कटंगा देती है, तब ज़मीन का दसू रा के गोंड राज्य में 70,000 गाँव थे। टुकड़ा साफ़ किया जाता है और इसी तरह से फ़सल इन राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था कें द्रीकृत हो रही थी। राज्य, गढ़ों उगाई जाती है। में विभाजित थे। हर गढ़ किसी खास गोंड कुल के नियंत्रण में था। ये पनु ः चौरासी गाँवों की इकाइयों में विभाजित होते थे, जिन्हें चौरासी कहा 55 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 55 15-06-2022 15:00:51 जाता था। चौरासी का उप-विभाजन बरहोतों में होता था, जो बारह-बारह गाँवों को मिला कर बनते थे। बड़े राज्यों के उदय ने गोंड समाज के चरित्र को बदल डाला। उनका मल ू तः बराबरी वाला समाज धीरे -धीरे असमान सामाजिक वर्गों में विभाजित हो गया। ब्राह्मण लोगों ने गोंड राजाओ ं से अनदु ान में भमि ू प्राप्‍त की और अधिक प्रभावशाली बन गए। गोंड सरदारों को अब राजपतू ों के रूप में मान्यता प्राप्‍त करने की चाहत हुई। इसलिए गढ़ कटंगा के गोंड राजा अमन दास ने संग्राम शाह की उपाधि धारण की। उसके पत्रु दलपत ने महोबा के चदं ल े राजपतू राजा सालबाहन की पत्री ु राजकुमारी दर्गाव ु ती से विवाह किया। मानचित्र 2 गोंडवाना दलपत की मतृ ्यु कम उम्र में ही हो गई। रानी दर्गाव ु ती बहुत योग्य थी और उसने अपने पाँच साल के पत्रु बीर नारायण के नाम पर शासन की कमान सँभाली। उसके समय में राज्य का और अधिक विस्तार हुआ। 1565 में आसिफ़ खान के नेततृ ्व में मग़ु ल सेनाओ ं ने गढ़ कटंगा पर हमला ु ती ने इसका किया। रानी दर्गाव जम कर सामना किया। उसकी हार हुई और उसने समर्पण चित्र 6 एक नक्काशीदार दरवाज़ा, गोंड जनजाति, बस्तर क्षेत्र, मध्य प्रदेश हमारे अतीत–2 56 2024-25 Chapter 5.indd 56 15-06-2022 15:00:53 करने की बजाय मर जाना बेहतर समझा। उसका पत्रु भी तरु ं त बाद लड़ता असम में लाचित बरफुकन ने मुग़ल सेना को हराया हुआ मारा गया। गढ़ कटंगा एक समद्ध ृ राज्य था। इसने हाथियों को पकड़ने और दसू रे राज्यों में उनका निर्यात करने के व्यापार में ख़ासा धन कमाया। जब मग़ु लों ने गोंडों को हराया, तो उन्होंने लटू में बेशकीमती सिक्के और हाथी बहुतायत लाचित बरफुकन अहोम सेना के में हथिया लिए। उन्होंने राज्य का एक भाग अपने कब्जे़ में ले किया और शेष सेना‍पति थे। 1671 में सरायघाट के यद्ध ु में लाचित बरफुकन ने बीर नारायण के चाचा चदं र शाह को दे दिया। गढ़ कटंगा के पतन के बावजद़ू मग़ु ल शासक औरंगजेब की सेना को पराजित किया था। मग़ु ल सेना गोंड राज्य कुछ समय तक चलता रहा। लेकिन वे काफ़ी कमज़ाेर हो गए में 18000 घड़ु सवार, 30000 और बाद में अधिक शक्‍त‍िशाली बंदु ल े ों और मराठों के खिलाफ़ उनके सघं र्ष सैनिक, 15000 तीरंदाज, 5000 बंदक ू सैनिक और 1000 तोप थे। असफल रहे। जिसका नेतत्ृ ‍व अबं र के शासक राम सिंह द्वारा किया गया था। अहोम लाचित के सैन्‍य कौशल से मग़ु ल सेना के विस्‍तार पर रोक लग अहोम लोग मौजदू ा म्यानमार से आकर तेरहवीं सदी में ब्रह्मपत्रु घाटी में गई। नौसेना द्वारा ब्रहमपत्रु नदी में लड़ी गई यह लड़ाई इतिहास आ बसे। उन्होंने भइु याँ (भसू ्वामी) लोगों की परु ानी राजनीतिक व्यवस्था में सरायघाट के यद्ध ु के नाम से प्रसिद्ध है। का दमन करके नए राज्य की स्थापना की। सोलहवीं सदी के दौरान उन्होंने (स्रोत: लचित बरफुफन, चटिु यों (1523) और कोच-हाजो (1581) के राज्यों को अपने राज्य जनसंयोग असम, डायरे क्‍टोरे ट ऑफ इन्‍फारमेशन एण्‍ड पब्लिक में मिला लिया। उन्होंने कई अन्य जनजातियों को भी अधीन कर लिया। रिलेशसं , गवर्नमटें आॅफ असम, अहोमों ने एक बड़ा राज्य बनाया और इसके लिए 1530 के दशक में ही, दिसपरु गवु ाहाटी मानचित्र 3 इतने वर्षों पहले, आग्नेय अस्‍त्रों का इस्तेमाल किया। 1660 तक आते-आते पर्ू वी भारत की जनजातियाँ वे उच्चस्तरीय बारूद और तोपों का निर्माण करने में सक्षम हो गए थे। लेकिन अहोम लोगों को दक्षिण-पश्‍चि‍म से कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा। 1662 में मीर जमु ला के नेततृ ्व में मग़ु लों ने अहोम राज्य पर हमला किया। बहादरु ी से सामना करने के बावजद़ू अहोम लोगों की पराजय हुई। लेकिन उस क्षेत्र पर मग़ु लों का प्रत्यक्ष नियंत्रण ज़्यादा समय तक बना नहीं रह सका। 57 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 57 12-04-2024 14:55:50 अहोम राज्य, बेगार पर निर्भर था। राज्य के लिए जिन लोगों से जबरन काम लिया जाता था, वे ‘पाइक’ कहलाते थे। अहोम राज्य में एक जनगणना की गई थी। प्रत्येक गाँव को अपनी बारी आने पर निश्‍चि‍त संख्या में पाइक भेजने होते थे। इसके लिए जनगणना के बाद सघन आबादी वाले इलाकों से कम आबादी वाले इलाकों में लोगों को स्थानांतरित किया गया था। इस ू परू ा होते-होते प्रशासन प्रकार अहोम कुल टूट गए। सत्रहवीं शताब्दी का पर्वार्द्ध खासा कें द्रीकृत हो चका ु था। चित्र 7 लगभग सभी वयस्क परुु ष यद्ध ु के दौरान सेना में अपनी सेवाएँ प्रदान कान के आभषू ण, कबोई करते थे। दसू रे समय में वे बाँध, सिचाई व्यवस्था इत्यादि के निर्माण या अन्य नागा जनजाति, मणिपरु सार्वजनिक कार्यों में जटु े रहते थे। अहोम लोग चावल की खेती के नए तरीके भी अमल में लाए। अहोम समाज, कुलों में विभाजित था, जिन्हें ‘खेल’ कहा जाता था। वहाँ दस्तकारों की बहुत कम जातियाँ थीं। इसलिए अहोम क्षेत्र में दस्तकार निकटवर्ती क्षेत्रों से आए थे। एक खेल के नियंत्रण में प्रायः कई गाँव होते थे। किसान को अपने ग्राम समदु ाय के द्वारा ज़मीन दी जाती थी। समदु ाय की सहमति के बगैर राजा तक इसे वापस नहीं ले सकता था। शरुु आत में अहोम लोग, अपने जनजातीय देवताओ ं की उपासना करते ू में ब्राह्मणों के प्रभाव में बढ़ोत्तरी हुई। थे। लेकिन सत्रहवीं सदी के पर्वार्द्ध ? मदिं रों और ब्राह्मणों को राजा के द्वारा भमि ू अनदु ान में दी गई। सिब सिंह आपके विचार में मग़ु लों ने अहोम प्रदेश को (1714– 44) के काल में हिदू धर्म वहाँ का प्रधान धर्म बन गया था। लेकिन जीतने का प्रयास अहोम राजाओ ं ने हिदू धर्म को अपनाने के बाद अपनी पारंपरिक आस्थाओ ं क्यों किया? को परू ी तरह से नहीं छोड़ा था। अहोम समाज, एक अत्यंत परिष्कृ त समाज था। कवियों और विद्वानों को अनदु ान में ज़मीन दी जाती थी। नाट्य-कर्म को प्रोत्साहन दिया जाता था। ससं ्कृ त की महत्त्वपरू ्ण कृतियोें का स्थानीय भाषा में अनवा ु द किया गया था। बरु ं जी नामक ऐतिहासिक कृतियों को पहले अहोम भाषा में और फिर असमिया में लिखा गया था। निष्कर्ष जिस यगु की हम चर्चा करते आए हैं, उस यगु के दौरान उपमहाद्वीप में काफ़ी सामाजिक परिवर्तन हुआ। वर्ण आधारित समाज और जनजातीय हमारे अतीत–2 58 2024-25 Chapter 5.indd 58 15-06-2022 15:00:54 लोग एक-दसू रे के साथ लगातार सपं र्क में आते रहे। इस आदान-प्रदान ने दोनों तरह के समाजों में अनक ु ू लन और बदलाव की प्रक्रिया चलाई। बहुत-सी विभिन्न प्रकार की जनजातियाँ थीं और उन्होंने विभिन्न प्रकार की जीविकाएँ अपनार्इं। कालांतर में उनमें से कई जाति आधारित समाज में शामिल हो गर्इं। लेकिन कईयों ने जाति व्यवस्था और सनातनी हिदं ू धर्म, दोनों को ही नकार दिया। कुछ जनजातियों ने ससु गं ठित प्रशासनिक व्यवस्था वाले विस्तृत राज्यों की स्थापना की। इस तरह वे राजनीतिक रूप से ताकतवर हो गए। इसने उन्हें बहृ त्तर और अधिक जटिल राज्यों और साम्राज्यों के साथ सघं र्ष की स्थिति में ला खड़ा किया। कल्पना करें आप एक ऐसे खानाबदोश समदु ाय के सदस्य हैं, जो हर तीन महीने बाद अपना निवासस्थान बदलता है। बीज शब्द इसका आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?  वर्ण जाति फिर से याद करें टांडा गढ़ 1. निम्नलिखित में मेल बैठाएँ: चौरासी गढ़ खेल बरहोत टांडा चौरासी श्रमिक कारवाँ भइु याँ कुल गढ़ कटंगा पाइक सिब सिंह अहोम राज्य खेल दर्गाव ु ती पाइक बरु ं जी 2. रिक्‍त स्थानों की पर्ू त्ति करें : जनगणना (क) वर्णों के भीतर पैदा होती नयी जातियाँ ____________  कहलाती थीं। 59 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 59 15-06-2022 15:00:54 (ख) _____________________ अहोम लोगों के द्वारा लिखी गई ऐतिहासिक कृतियाँ थीं। (ग) _______________________ ने इस बात का उल्लेख किया है कि गढ़ कटंगा में 70,000 गाँव थे। (घ) बड़े और ताकतवर होने पर जनजातीय राज्यों ने _________ और ______________ को भमि ू -अनदु ान दिए। 3. सही या गलत बताइए: (क) जनजातीय समाजों के पास समद्ध ृ वाचक परंपराएँ थीं। (ख) उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्‍च‍िमी भाग में कोई जनजातीय समदु ाय नहीं था। (ग) गोंड राज्यों में अनेक नगरों को मिला कर चौरासी बनता था। (घ) भील, उपमहाद्वीप के उत्तर-पर्ू वी भाग में रहते थे। 4. खानाबदोश पशचु ारकों और एक जगह बसे हुए खेतिहरों के बीच किस तरह का विनिमय होता था? आइए समझें 5. अहोम राज्य का प्रशासन कै से सगं ठित था? 6. वर्ण आधारित समाज में क्या परिवर्तन आए? 7. एक राज्य के रूप में संगठित हो जाने के बाद जनजातीय समाज कै से बदला? आइए विचार करें 8. क्या बंजारे लोग अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपरू ्ण थे? 9. गोंड लोगों का इतिहास, अहोमों के इतिहास से किन मायनों में भिन्न था? क्या कोई समानता भी थी? हमारे अतीत–2 60 2024-25 Chapter 5.indd 60 15-06-2022 15:00:55 आइए करके देखें 10. एक मानचित्र पर इस अध्याय में उल्लिखित जनजातियों के इलाकों को चिह्नित करें । किन्हीं दो के संबंध में यह चर्चा करें कि क्या उनके जीविकोपार्जन का तरीका अपने-अपने इलाकों की भौगोलिक विशेषताओ ं और पर्यावरण के अनरू ु प था? 11. जनजातीय समहू ों के सबं ंध में मौजदू ा सरकारी नीतियों का पता लगाएँ और उनके बारे में एक बहस का आयोजन करें । 12. उपमहाद्वीप में वर्तमान खानाबदोश पशचु ारी समहू ों के बारे में और पता लगाएँ। वे कौन-से जानवर रखते हैं? वे प्रायः किन इलाकों में जाते रहते हैं? 61 जनजातियाँ, खानाबदोश... 2024-25 Chapter 5.indd 61 15-06-2022 15:00:55

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