अधिगम, शिक्षण एवं आकलन (A3) PDF

Summary

यह दस्तावेज़ B.Ed.Spl.Ed. द्वितीय सेमेस्टर के लिए अधिगम, शिक्षण एवं आकलन (A3) विषय पर इकाई १ और २ पर चर्चा करता है। इसमे सीखने या अधिगम का अर्थ, परिभाषा और सिद्धांतों पर विस्तार से चर्चा की गई है।

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अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem इकाई-1 सीखना या अधिगम Learning: 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्देश्य 1.2 अविगम का अर्थ एिं पररभाषा 1.4 अविगम के व...

अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem इकाई-1 सीखना या अधिगम Learning: 1.1 प्रस्तािना 1.2 उद्देश्य 1.2 अविगम का अर्थ एिं पररभाषा 1.4 अविगम के विद्धान्त-पररचय 1.5 वनबंिात्मक प्रश्न 1.1 प्रस्तावना (Introduction) िीखना या अविगम एक बहुत ही व्यापक एिं महत्िपूर्थ शब्द है। मानि के प्रत्येक क्षेत्र में िीखना जन्म िे लेकर मृत्यु पयथन्त तक पाया जाता है। दैवनक जीिन में िीखने के अनेक उदाहरर् वदए जा िकते हैं। िीखना मनुष्य की एक जन्मजात प्रकृवत है।प्रवतवदन प्रत्येक व्यवक्त अपने जीिन में नए अनुभिों को एकत्र करता रहता है, ये निीन अनुभि, व्यवक्त के व्यिहार में िवृ द्ध तर्ा िश ं ोिन करते हैं। इिवलए यह अनभ ु ि तर्ा इनका उपयोग ही िीखना या अविगम करना कहलाता है। इि इकाई में आप अविगम के विवभन्न विद्धांतों का अध्ियन करेंगे तर्ा उनके शैवक्षक वनवहतार्ों को जान पाएगं े। 1.2 उद्दे श्य इि इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप – 1. अविगम का अर्थ स्पष्ट कर िकें गें । 2. अविगम की पररभाषा दे पाएगं े । 3. अविगम की विशेषताओ ं की व्याख्या कर िकें गें । 4. अविगम के विद्धांतों की चचाथ कर पाएगं े । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 1 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 1.3 अधिगम का अर्थ एवं परिभाषा Meaning and Definition ofLearning अविगम या िीखना एक बहुत ही िामान्य और आम प्रचवलत प्रविया है । जन्म के तुरन्त बाद िे ही व्यवक्त िीखना प्रारम्भ कर देता है और विर जीिनपयथन्त कुछ ना कुछ िीखता ही रहताहै। िामान्य अर्थ में ‘िीखना’ व्यिहार में पररितथन को कहा जाता है। (Learning refers to change in behaviour) परन्तु िभी तरह के व्यिहार में हुए पररितथन को िीखना या अविगम नहीं कहा जा िकता । वुडवर्थ के अनुिार,“निीन ज्ञान और निीन प्रवतवियाओ ं को प्राप्त करने की प्रविया, िीखने की प्रविया है। ” “The process of acquiring new knowledge and new responses in the process of learning.” -Woodworth गेट्स एिं अन्य के अनुिार, “अनुभि और प्रवशक्षर् द्वारा व्यिहार में पररितथन लाना ही अविगम या िीखना है।” “Learning is the modification of behavior through experience and training.” क्रो एवं क्रो के अनुिार , “िीखना या अविगम आदतों, ज्ञान और अवभिृवत्तयों का अजथन है।” “Learning is the acquisition of habits knowledge and attitudes.” क्रॉनवेक के अनुिार, “िीखना या अविगम अनुभि के पररर्ाम स्िरूप व्यिहार में पररितथन द्वारा व्यक्त होता है।” “Learning is shown by a change in behavior as a result of experience.” मॉगथन और धगलीलैण्ड के अनुिार, “अविगम या िीखना, अनुभि के पररर्ाम स्िरूप प्रार्ी के व्यिहार में कुछ पररमाजथन है, जो कम िे कम कुछ िमय के वलए प्रार्ी द्वारा िारर् वकया जाता है।” उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 2 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem “Learning is some modification in the behaviour of the organism as a result of experience which is retained for at least certain period of time.” जी.डी. बोआज के अनुिार, “िीखना या अविगम एक प्रविया है वजिके द्वारा व्यवक्त विवभन्न आदतें, ज्ञान एिं दृविकोर् अवजथत करता है जो वक िामान्य जीिन की मााँगोंकोपूरा करने के वलए आिश्यक है।” “Learning is the process by which the individual acquires various habits, knowledge and attitudes that are necessary to meet the demand of life in general.” धिलगाडथ के अनुसार,“िीखना या अविगम एक प्रिम है वजििे प्रवतिल पररवस्र्वत िे प्रवतविया के द्वारा कोई विया आरम्भ होती है या पररिवतथत होती है, बशते वक विया में पररितथन की विशेषताओ ं को जन्मजात प्रिृवत्तयों,पररपक्िता और प्रार्ी की अस्र्ाई अिस्र्ाओ ं के आिार पर ना िमझाया जा िकता हो।” “Learning is the process by which an activity originates or is changed through reacting to an encountered situation, provided that the characteristics of the change in activity cannot be explained on the basis of native tendencies, maturation or temporary status of organism.” ब्लेयर,जोन्स और धसम्पसन के अनुसार,“व्यिहार में कोई पररितथन जो अनुभिों का पररर्ाम है और वजिके िलस्िरूप व्यवक्त आने िाली वस्र्वतयों का वभन्न प्रकार िे िामनाकरता है- अविगम कहलाता है।” “Any change of behaviour which is a result of experience and which causes people to face later situation differently may be called learning.” – Blair, Jones and Simpson सरटैन,नार्थ, स्‍टरेंज तर्ा चैपमैन के अनस ु ार के अनस ु ार:- '' िीखना एक ऐिी प्रविया है वजिके द्वारा अनुभूवत या अभ्याि के िलस्िरूप व्यिहार में अपेक्षाकृत स्र्ाई पररितथन होता है ।'' Learning may be defined as the process by which a relatively enduring change in behavior occurs as experience or practice”. उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 3 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem मागथन, धकंग, धवस्‍टज तर्ा स्‍टकॉपलर के अनसु ार:- ''अभ्याि या अनभ ु वू त के पररर्ामस्िरूप व्यिहार में होने िाले अपेक्षाकृत स्र्ाई परवितथन को िीखना कहा जाता है ।'' Learning can be defined as any relatively permanent change in behavior that occurs as a result of experience”. ऊपर की पररभाषाओ ं एिं अनेक अन्य मनोिैज्ञावनकों द्वारा दी गई लगभग िमान पररभाषाओ ं का यवद एक ियं क्ु त (analysis) विश्लेशर् वकया जाए , तो िीखने का स्िरूप बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है । इि तरह के विश्लेषर् करने पर हम वनम्नांवकत वनष्कषथ पर पहुाँचते हैं :- i.सीखना व्यविार में पररवतथन को किा जाता िै (Learning is the change in behaviour):- प्रत्येक िीखने की प्रविया में व्यवक्त के व्यिहार में पररितथन होता है । अगर पररवस्र्वत ऐिी है वजिमें व्यवक्त के व्यिहार में पररितथन नहीं होता है, तो उिे हम िीखना नहीं कहेंगें। व्यिहार में पररितथन एक अच्छा एिं अनुकूली (adaptive) पररितथन भी हो िकता है या खराब में कुिमंवजत (Maladaptive) पररितथन भी हो िकता है । ii.व्यविार में पररवतथन अभ्यास या अनुभूधत के फलस्‍टवरूप िोता िै (The change in behaviour occurs as a function of practice or experience) :- िीखने की प्रविया में व्यिहार में जो पररितथन होता है, िह अभ्याि या अनभ ु ूवत के िलस्िरूप होता है। iii.व्यविार में अपेक्षाकृतस्‍टर्ाईपररवतथन िोता िै (There is relatively permanent change in behaviour) :- ऊपर दी गई पररभाषाओ ं में इि बात पर विशेष रूप िे बल डाला गया है वक िीखने में व्यिहार में अपेक्षाकृत स्र्ाई पररितथन होता है । 1.4अधिगम के ससद्िान्त-परिचय िीखने के आिुवनक विद्धांतों को वनम्नवलवखत दो मख् ु य श्रेवर्यों में विभक्त वकया जा िकता है- a. व्यिहारिादी िाहचयथ विद्धान्त (Behavioural Associationist Theories) b. ज्ञानात्मक एिं क्षेत्र िंगठनात्मक विद्धान्त (Cognitive Organisational Theory) विवभन्न उद्दीपनों के प्रवत िीखने िाले की विशेष अनुवियाएाँ होती हैं। इन उद्दीपनों तर्ा अनुवियाओ ं के िाहचयथ िे उिके व्यिहार में जो पररितथन आते हैं उनकी व्याख्या करना ही पहले प्रकार के विद्धांतों का उद्देश्य है। इि प्रकार के विद्धांतों के प्रमुख प्रितथकों में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 4 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem र्ोनथडाइक, िाटिन और पैिलोि तर्ा वस्कनर का नाम विशेष रूप िे उल्ले खनीय है। जहााँ र्ोनथडाइक द्वारा प्रवतपावदत विचार प्रर्ाली को िंयोजनिाद (Connectionism) के नाम िे जाना जाता है, िहााँ िाटिन और पैिलोि तर्ा वस्कनर की प्रर्ाली को अनुबन्िन या प्रवतबद्धता (Conditioning) का नाम वदया गया है। दूिरे प्रकार के विद्धान्त िीखने को उि क्षेत्र में, वजिमें िीखने िाला और उिका पररिेश शावमल होता है, आए हुए पररितथनों तर्ा िीखने िाले द्वारा इि क्षेत्र के प्रत्यक्षीकरर् वकए जाने के रूप में देखते हैं। ये विद्धान्तिीखने कीप्रवियामें उद्देश्य (Purpose), अन्तदृथवि (Insight) और िूझबूझ (Understanding) के महत्ि को प्रदवशथत करते हैं। इि प्रकार के विद्धांतों के मख् ु य प्रितथकों में िदेमीअर (Werthemier), कोहलर (Kohler), और लेविन (Lewin) के नाम उल्लेखनीय है। इििे अगली इकाई में आप व्यिहारिादी िाहचयथ विद्धांतों का अध्ययन करेंगे। 1.5 ननबंिात्मक प्रश्न 1. अविगम की पररभाषा बताईये? 2. अविगम के विद्धांतों िे आप क्या िमझते हैं? उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 5 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem इकाई 2 - अधिगम ससद्िांत (Learning Theories) 2.1 प्रस्तािना 2.2 उद्देश्य 2.3 अविगम के व्यिहारिादी विद्धान्त 2.3.1 र्ॉनथडाइक का प्रयाि एिं त्रुवट का विद्धान्त 2.3.2 वस्कनर का विया प्रिूत अनुबन्िन का विद्धान्त 2.4 अविगम का िंज्ञानात्मकिाद विद्धांत 2.4.1 जयााँ वपयाजे 2.5 अविगम के िामावजक रचनािादी विद्धांत 2.5.1 िाइगोत्स्की 2.5.2 बॅण्डुरा 2.6 िारांश 2.7 शब्दािली 2.8 स्िमल्ू यांकन हेतु प्रश्न 2.9 िन्दभथ ग्रन्र् िूची 2.10 वनबंिात्मक प्रश्न 2.1 प्रस्तावना िीखना या अविगम एक बहुत ही व्यापक एिं महत्िपूर्थ शब्द है। िीखना मनुष्य की एक जन्मजात प्रकृवत है। नए ज्ञान को अवजथत करना तर्ा विवभन्न प्रकार के एकवत्रत ज्ञान, व्यिहार , कौशलों ,मूल्यों तर्ा जानकाररयों को िंश्लेवषत करना अविगम या िीखना कहलाता है। अविगम के िल ज्ञान का एक िग्रं ह न होकर एक प्रविया है।मानि के प्रत्येक क्षेत्र में िीखना जन्म िे लेकर मृत्यु पयथन्त्ाा तक पाया जाता है। दैवनक जीिन में िीखने के अनेक उदाहरर् वदए जा िकते हैं। िीखना एक िार् नहीं होता न ही एकाएक होता है यह तो पूिथ ज्ञान की िहायता िे वनवमथत ि विकवित होता है । प्रवतवदन प्रत्ये क व्यवक्त अपने जीिन में नए अनुभिों को एकत्र करता रहता है, ये निीन अनुभि, व्यवक्त के व्यिहार में िवृ द्ध तर्ा िंशोिन करते हैं। इिवलए यह अनभ ु ि तर्ा इनका उपयोग ही िीखना या अविगम करना कहलाता है। इि उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 6 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem इकाई में आप अविगम के विवभन्न विद्धांतों का अध्ियन करेंगे तर्ा उनके शैवक्षक वनवहतार्ों को जान पाएगं े। 2.2 उद्दे श्य इि इकाई के अध्ययन के पश्चात आप - 1. र्ॉनथडाइक के िीखने के विद्धान्त का िर्थन कर पाएगं े । 2. वस्कनर के विया अनुबंिन के विद्धान्त का िर्थन कर पाएगं े । 3. जयााँ वपयाजे के अविगम के िंज्ञानात्मकिाद विद्धांत की व्याख्या कर िकें गे । 4. िाइगोत्स्की के अविगम के िामावजक रचनािादी विद्धांत को स्पि कर िकें गे । 5. बॅण्डुरा के अविगम के िामावजक रचनािादी विद्धांत का िर्थन कर िकें गे । 6. अविगम के विवभन्न विद्धांतों के शैवक्षक वनवहतार्थ वलख पाएगं े । 7. अविगम के विवभन्न विद्धांतों के मध्य अंतर स्पि कर पाएगं े । अधिगम के धसद्धान्त िीखने के आिुवनक विद्धांतों को वनम्नवलवखत तीन मुख्य श्रेवर्यों में विभक्त वकया जा िकता है- a. व्यिहारिादी विद्धान्त (Behaviorism) i. र्ॉनथडाइक ii. वस्कनर b. िंज्ञानात्मक विद्धान्त (Cognitivism) i. जयााँ वपयाजे c. िामावजक िंरचनािाद विद्धांत (Social Constructivism) i. लेि िाइगोत्स्की ii. बॅण्डुरा इि इकाई में आप अविगम के विवभन्न विद्धांतों का अध्ययन करेंगे। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 7 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 2.3 अधिगम के व्यवहािवादी ससद्िान्त 2.3.1 र्ॉनथडाइक का अधिगम का प्रयास एवं त्रुधट का धसद्धान्त र्ॉनथडाइक(Thorndike) को प्रयोगात्मक पशु मनोविज्ञान (experimental psychology) के क्षेत्र में एक प्रमुख मनोिैज्ञावनक माना गया है। उन्होंने िीखने के एक विद्धान्त का प्रवतपादन (1898) में वकया। र्ॉनथडाइक ने िीखने की व्याख्या करते हुए कहा है वक जब कोई उद्दीपक (stimulus) व्यवक्त के िामने वदया जाता है तो उिके प्रवत िह अनुविया (response) करता है। अनुविया िही होने िे उिका िंबंि (connection) उिी विशेष उद्दीपक (stimulus) के िार् हो जाता है। इि िबं ि ं को िीखना (learning) कहा जाता है तर्ा इि तरह की विचारिारा को िबं ि ं िाद (Connectionism) की िंज्ञा दी गई है। र्ॉनथडाइक के अविगम के विद्धांत को प्रयाि एिं त्रुवट का विद्धांत (Theory of Trial and Error) तर्ा िबन्ििाद के नाम िे जाना जाता है। र्ॉनथडाइक ने अपने विद्धांत को प्रवतपावदत करने के वलए एक प्रयोग वकया । इि प्रयोग में एक भख ू ीवबल्ली को एक बॉक्ि में बदं कर के रखा गया। इि बॉक्ि के अन्दर एक वचटवकनी लगी र्ी, वजिको दबाने िे दरिाजा खुल जाता र्ा। दरिाजे के बाहर भोजन रख गया। चूाँवक वबल्ली भूखी र्ी, अत: उिने दरिाजा खोलकर भोजन खाने की पूरी कोवशश करनी शुरू कर दी। प्रारंभ के प्रयािों (trials) में जब वबल्ली को बॉक्ि के अन्दर रखा गया, तो बहुत िारे अवनयवमत व्यिहार जैिे उछलना, कूदना, आवद होते पाए गए। इिी उछल-कूद में अचानक उिका पज ं ा वचटवकनी पर पड़ गया वजिके दबने िे दरिाजा खुल गया और वबल्ली ने बाहर वनकलकर भोजन खा वलया। बाद के प्रयािों (trials) में वबल्ली द्वारा वकए जाने िाले अवनयवमत व्यिहार अपने आप कम होते गए तर्ा बॉक्ि में रखने के तरु न्त बाद वबल्ली िही अनवु ियाकरते पाई गई। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 8 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem र्ॉनथडाइक ने िीखने के विद्धान्त में तीन महत्िपूर्थ वनयमों का िर्थन वकया है जो वनम्नांवकत है:- (i) अभ्याि का वनयम (Law of exercise) (ii) तत्परता का वनयम (Law of readiness) (iii) प्रभाि का वनयम (Law of effect) इन िभी का िर्थन वनम्नांवकत है:- 1. अभ्यास का धनयम (Law of exercise) :- यह वनयम इि तथ्य पर आिाररत है वक अभ्याि िे व्यवक्त में पर् ू थता आती है (Practice makes man perfect) । वहलगाडथ तर्ा बॉअर (Hilgard& Bower, 1975) ने इि वनयम को पररभावषत करते हुए कहा है “अभ्याि वनयम यह बतलाता है वक अभ्याि करने िे (उद्दीपक तर्ा अनुविया का) िबं ि ं मजबतू होता है (उपयोग वनयम) तर्ा अभ्याि रोक देने िे िंबंि कमजोर पड़ जाता है या विस्मरर् हो जाता है (अनपु योग वनयम)” इि व्याख्या िे वबलकुल ही यह स्पष्ट है वक जब हम वकिी पाठ या विषय को बार-बार दुहराते है तो उिे िीख जाते हैं। इिे र्ॉनथडाइक ने उपयोग का वनयम (law of use) कहा है। दूिरी तरि जब हम वकिी पाठ या विषय को दोहराना बदं कर देते हैं तो उिे भल ू जाते हैं। इिे इन्होंने अनपु योग का वनयम (law of disuse) कहा है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 9 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 2. तत्परता का धनयम (Law of Readiness) :- इि वनयम को र्ॉनथडाइक ने एक गौर् वनयम माना है और कहा है वक इि वनयम द्वारा हमें वििथ यह पता चलता है वक िीखने िाले व्यवक्त वकन-वकन पररवस्र्वतयों में िंतष्ु ट होते हैं या उिमें खीझ उत्पन्न होती है। उन्होंने इि तरह की वनम्नांवकत तीन पररवस्र्वतयों का िर्थन वकया है- i. जब व्यवक्त वकिी कायथ को करने के वलए तत्पर रहता है और उिे िह कायथ करने वदया जाता है, तो इििे उिमें ितं ोष होता है। ii. जब व्यवक्त वकिी कायथ को करने के वलए तत्पर रहता है परन्तु उिे िह कायथ नहीं करने वदया जाता है, तो इििे उिमें खीझ (annoyance) होती है। iii. जब व्यवक्त वकिी कायथ को करने के वलए तत्पर नहीं रहता है परन्तु उिे िह कायथ करने के वलए बाध्य वकया जाता है, तो इििे भी व्यवक्त में खीझ (annoyance) होती है। ऊपर के िर्थन िे यह स्पष्ट है वक िंतोष या खीझ होना व्यवक्त के तत्परता (readiness) की अिस्र्ा पर वनभथर करता है। 3. प्रभाव का धनयम (Law of Effect):- र्ॉनथडाइक के विद्धान्त का यह िबिे महत्िपर्ू थ वनयम है। इि वनयम के अनि ु ार व्यवक्त वकिी अनवु िया या कायथ को उिके प्रभाि के आिार पर िीखता है। वकिी कायथ या अनुविया का प्रभाि व्यवक्त में या तो िंतोषजनक (satisfying) होता है या खीझ उत्पन्न करने िाला (annoying) होता है।प्रभाि ितं ोषजनक होने पर व्यवक्त उि अनवु िया को िीख लेता है तर्ा खीझ उत्पन्न करने िाला होने पर व्यवक्त उिी अनुविया को दोहराना नहीं चाहता है। िलत: उिे िह भल ू जाता है। इि प्रकार िे यह स्पष्ट है वक प्रभाि वनयम के अनुिार व्यवक्त वकिी अनुविया को इिवलए िीख लेता है क्योंवक व्यवक्त में उि अनुविया को करने के बाद िंतोषजनक प्रभाि (satisfying effect) होता है। इन प्रमुख वनयमों के अलािा भी र्ॉनथडाइक ने िहायक वनयमों (subordinate laws) का भी प्रवतपादन वकया परन्तु ये िभी वनयम बहुत महत्िपूर्थ नहीं हो पाए क्योंवक िे स्पष्ट रूप िे प्रमुख वनयमों िे ही िंबंवित र्े। िंक्षेप में इन िहायक वनयमों का िर्थन इि प्रकार है:- i. बिुधक्रया (Multiple Response)- इि वनयम के अनि ु ार वकिी भी िीखने की पररवस्र्वत में प्रार्ी अनेक अनुविया (response) करता है वजिमें िे प्रार्ी उन अनुविया को िीख लेता है वजििे उिे ििलता वमलती है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 10 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem ii. तत्परता या मनोवधृ ि (Set or Attitude)- तत्परता या मनोिवृ त्त िे इि बात का वनिाथरर् होता है वक प्रार्ी वकि अनुविया को करेगा, वकि अनुविया को करने िे कम िंतवु ि तर्ा वकि अनुविया को करने िे अविक िंतुवि आवद वमलेगी। iii. सादृश्य अनुधक्रया (Response by Similarity or Analogy)- इि वनयम के अनुिार प्रार्ी वकिी नई पररवस्र्वत में िैिी ही अनुविया को करता है जो उिके गत अनभ ु ि या पहले िीखी गई अनवु िया के िदृश होता है। iv. सािचयाथत्मक स्‍टर्ानान्तरण (Associative Shifting):- इन वनयम के अनुिार कोई अनुविया वजिके करने की क्षमता व्यवक्त में है, एक नए उद्दीपक (stimulus) िे भी उत्पन्न हो िकती है। यवद एक ही अनुविया को लगातार एक ही पररवस्र्वत में कुछ पररितथन के बीच उत्पन्न वकया जाता है तो अन्त में िही अनवु िया एक वबल्कुल ही नए उद्दीपक िे भी उत्पन्न हो जाती है। स्‍टवमूलयांकन िेतु प्रश्न 1. र्ॉनथडाइक के िीखने के विद्धांत को _____________ के नाम िे जाना जाता है। 2. र्ॉनथडाइक ने िीखने के तीन महत्िपूर्थ वनयमों के नाम वलवखए। 3. जब हम वकिी पाठ या विषय को बार-बार दुहराते है तो उिे िीख जाते हैं, इिे र्ॉनथडाइक ने _____________ कहा है। 4. जब हम वकिी पाठ या विषय को दोहराना बंद कर देते हैं तो उिे भूल जाते हैं, इिे र्ॉनथडाइक ने _____________ कहा है। 2.3.2 धस्‍टकनर का धक्रयाप्रसतू अनबु न्िन का धसद्धान्त (Operant ConditioningTheory of Skinner) वस्कनर (1938) द्वारा प्रवतपावदत विद्धान्तिविय अनुबन्िन या विया प्रिूत अनुबन्िन कहा जाता है। िविय अनुबंिन की अििारर्ा यह है वक प्रार्ी को िांवछत उद्दीपक या पररर्ाम प्राप्त करने या किदायक उद्दीपक िे बचने के वलए प्रत्यावशत, उवचत या िही अनवु िया (व्यिहार) पहले स्ियं प्रदवशथत करनी होती है। अर्ाथत उद्दीपक या पररवस्र्वत के वनवमत्त प्रार्ी द्वारा वकया जाने िाला व्यिहार ही पररर्ाम का स्िरूप वनिाथररत करता है। इिी कारर् इिेिविय अनुबंिन कहते हैं (Hulse et. al. 1975)। इिी आिार पर इिे वियाप्रिूत अविगम (Operant learning) भी कहा जाता है (Hilgard and Bower, 1981)। धस्‍टकनर का प्रयोग उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 11 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem वस्कनर ने चूहों पर प्रयोग वकया। प्रयोग करने के वलए उन्होंने एक विशेष बक्िे के आकार का एक यंत्र बनाया वजिे उन्होंनेवियाप्रिूत अनुबन्िन कक्ष की िंज्ञा दी, लेवकन बाद में इिको वस्कनर बाक्ि (Skinner Box) कहा गया। वस्कनर के लीिरबाक्ि में लीिर को दबाने पर प्रकाश या वकिी विशेष आिाज होने के िार्- िार् भोजन-तश्तरी में र्ोड़ा-िा भोजन आ जाता है। प्रयोग के अिलोकनों को वलवपबद्ध करने के वलए लीिरका िम्बन्ि एक ऐिी लेखन व्यिस्र्ा (Recoding System) में रहता है जो प्रयोगके बीच में िमय के िार्-िार् लीिर दबाने की आिृवत्त की िंचयी ग्राि (Cumulative Graph) के रूप में अंवकत करती रहती है। प्रयोग हेतु वस्कनर ने एक भूखे चूहे को वस्कनर बाक्ि में बदं कर वदया। प्रारम्भ में चूहाबाक्ि में इिर-उिर घूमता रहा तर्ा उछल-कूद करता रहा । इिी बीच में लीिर दब गया, घण्टी की आिाज हूई और खाना तश्तरी में आ गया। चूहा तरु न्त भोजन को नहीं देख पाता है लेवकन बाद में देखकर खा लेताहै। इिी तरह कई प्रयािों के उपरान्त िह लीिर दबाकर भोजन वगराना िीख जाता है। इि प्रयोग में चूहा लीिर दबाने के वलए स्ितन्त्र होता है िह वजतनी बार लीिर दबाएगा घण्टी की आिज होगी और भोजन तश्तरी में वगर जाएगा। वस्कनर ने भोजन प्राप्त करने के बाद िे िमय अन्तराल में लीिर दबाने के चूहे के व्यिहार का विश्लेषर् करके वनष्कषथ वनकाला वक भोजन रूपी पुनिथलन (Reinforcement) चूहे को लीिर दबाने के वलए प्रेररत करता है एिं पुनबथलन के िलस्िरूप चूहा लीिर दबाकर भोजन प्राप्त करना िीख जाता है। अर्ाथत विया प्रिूत (Operant Response) के बाद पुनबथवलत उद्दीपक (Reinforcement Stimulus) वदया जाता है तो प्रार्ी उिे बार-बार देाहराता है और इि प्रकार िे वमले पुनबथलन िे िीखने में स्र्ावयत्ि आ जाता है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 12 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem सधक्रय अनबु ि ं न में पनु बथलन (Reinforcement in Operant Conditioning) नैवमवत्तक अनबु ि ं न, िविय अनबु ि ं न या िवं ियात्मक अनबु ि ं न में पुनबथलन की विशेष भूवमका होती है। जैिे-उवचत या िही व्यिहार (अनुविया)वकएजाने पर िनात्मक पुनबथलन (Positive Reinforcement) की आपूवतथ की जाती है या अनुवचत व्यिहार वकए जाने पर नकारात्मक पनु बथलन(दण्ड) का उपयोग वकया जाता है तावक उिकी पनु रािृवत्त न हो िके । प्रबलनों को चार िगों में विभक्त कर िकते हैं – 1. िनात्मक पुनबथलन (Positive Reinforcement) - कोई भी िुखद िस्तु या उद्दीपक जो उवचत व्यिहार होने पर प्रयोजय को प्राप्त होता है। जैिे-अच्छे अंक प्राप्त करना। यह िम्बवन्ित व्यिहार के प्रदशथन की िंभािना में िृवद्ध करता है। 2. नकारात्मक पुनबथलन (Negative Reinforcement) - वकिी उवचत व्यिहार के प्रदवशथत होने पर किप्रद िस्तु की आपवू तथ रोक देना। इििे उवचत व्यिहार के घवटत होने की िंभािना बढ़ती है। जैिे-शरारत कर रहे वकिी बच्चे को तब जाने देना जब िह नोक-झोंक बन्द कर दे। 3. िनात्मक दण्ड (Positive Punishment) - वकिी अनवु चत व्यिहार के घवटत होने पर वकिी किप्रद िस्तु या उद्दीपक को प्रस्तुत करना। जैिे-परीक्षा में कम अंक प्राप्त करने पर छात्रा की प्रशंिा न करना या वनन्दा करना। इििे अनुवचत व्यिहार की पुनरािृवत्त की िंभािना घटती है। 4. नकारात्मक दण्ड (Negative Punishment) - वकिी अनुवचत व्यिहार के घवटत होने पर िख ु द िस्तु की आपवू तथ रोक देना। इििे अनवु चत व्यिहार की िभ ं ािना घटती है। जैिे-उदण्ड व्यिहार कर रहे बालक को टीिी देखने िे रोक देना। पुनबथलन अनुसूची (Schedule of Reinforcement) पुनबथलन की आपूवतथ कई रूपों में की जा िकती है। 1. वस्र्र अनपु ात िच ू ी (Fixed Ratio Schedule) - वनवित िख् ं या में अनवु िया करने पर पुरस्कार देना। 2. पररितथनीय अनुपात अनुिूची (Variable Ratio Schedule) - वभन्न-वभन्न िंख्या में अनुवियाएाँ करने पर पुरस्कार देना। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 13 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 3. वस्र्र अन्तराल अनि ु च ू ी (Fixed Interval Schedule) - एक वनवित अन्तराल पर पुरस्कार की आपूवतथ करना। 4. पररितथनीय अन्तराल अनुिूची (Variable Interval Schedule) - वभन्न-वभन्न अन्तरालों पर पुनबथलन या पुरस्कार की आपूवतथ करना।प्राचीन एिं नैवमवत्तक अनुबंिन की प्रवियाओ ं में कुछ विशेष प्रकार की घटनाएाँ प्राप्त होती हैं। इन्हें अनबु ि ं न के गोचर कहा जाता हैं । धक्रया प्रसूत अनुबन्ि के िैधक्षक धनधितार्थ Educational Implications of Operant Conditioning विया प्रिूत अविगम का वशक्षा में कई प्रकार िे प्रयोग होता है। 1. इि अविगम में अभ्याि द्वारा विया पर विशेष बल वदया जाता है। यह आिश्यक है वक वशक्षक बालक को उवचत कायथ के वलए िमय-िमय पर पुनबथलन देते रहें । 2. इि विद्धान्त के माध्यम िे वशक्षक बालक के िीखे जाने िाले व्यिहार को स्िरूप प्रदान करता है। 3. बालकों में शब्द भण्डार को बढ़ाने के वलए वियाप्रितू अविगम विद्धान्त का प्रयोग वकया जाता है। 4. काम की िमावप्त पर या ििलता वमलने पर प्रिन्नता होती है वजििे िंतोष प्राप्त होता है और जो विया को बल देता है। 5. विया प्रिूत विद्धान्त मन्द बवु द्ध िाले तर्ा मानविक रोवगयों को आिश्यक व्यिहार के िीखने में िहायता देता है। 6. विया प्रिूत अविगम में िीखी जाने िाली विया को कई छोटे -छोटे िोपानों में बााँट वलया जाता है। वशक्षा में इि विवि का प्रयोग करके िीखने की गवत तर्ा ििलता में िृवद्ध की जा िकती है। 7. िीखने के अन्तगथत अवभिवमत िम्बन्िी विवि प्रकाश में आई है वजिको वक विया प्रिूत अनुबन्ि द्वारा गवत दी जा िकती है। 8. वस्कनर के अनुिार यवद व्यवक्त को कायथ के पररर्ामों की जानकारी होती है तो उिके िीखने में इिका कािी प्रभाि पड़ता है उिका व्यिहार प्रभावित होता है। घर के कायथ में िश ं ािन का भी छात्र के िीखने की गवत तर्ा गर् ु पर प्रभाि पड़ता है। 9. वस्कनर का यह विद्धांत अवभप्रेरर्ा पर बल देता है। अत: वशक्षक का कायथ हे वक िह बालकों को, विषय-िस्तु के उद्देश्य को स्पष्ट करके , उद्देश्य पूवतथ के वलए प्रोत्िावहत करता रहे। बालक िदैि वियाशील रहें इिके वलए उन्हें प्रेरर्ा प्रदान करनी चावहए। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 14 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 10. वशक्षक को बालक को विखाने के वलए अभ्याि एिं पनु रािवृ त्त जैिी विवियों पर विशेष बल देना चावहए। आलोचनाएँ 1. मनोिैज्ञावनकों का मानना है वक पशुओ ं पर वकए गए प्रयोगों के आिार पर उिकी िमानता िामावजक अविगम पररवस्र्वतयों िे कै िे की जा िकती है। 2. विया-प्रिूत (Operant) और उत्तेजक या उद्दीपन प्रिूत (Respondent) में भ्रम रहता है वजििे विया-प्रिूत अनुबन्िन और उद्दीपन प्रिूत अनुबन्िन में िाि अन्तर नहीं वकया जा िकता है। 3. वस्कनर विया-कलाप और अविगम (Performance and Learning) में कोई अन्तर नहीं करते हैं जबवक कई मनोिैज्ञावनक इि वनष्कषथ पर पहुाँचे हैं वक पुनबथलीकरर् िीखने की अपेक्षा अक्ष्यत: विया-कलाप को प्रभावित करता है। स्‍टवमूलयांकन िेतु प्रश्न 5. विया प्रिूत अनुबंिन में __________की विशेष भूवमका होती है। 6. कोई भी िख ु द िस्तु या उद्दीपक जो उवचत व्यिहार होने पर प्राप्त होता है_________कहलाता है । 7. वकिी अनुवचत व्यिहार के घवटत होने पर िुखद िस्तु की आपूवतथ रोक देना _________ कहलाता है । 2.4 अधिगम कासंज्ञानात्मकवाद ससद्िांत 2.4.1 धपयाजे का संज्ञानात्मक धवकास का धसद्धांत जयााँ वपयाजे (Jean Piaget 1896-1980) िंज्ञानात्मक विकाि के क्षेत्र में कायथ करने िाले मनोविज्ञावनकों में ििाथविक प्रभािशाली माने जाते हैं। वपयाजे का जन्म, 9 अगस्त1896 को वस्िट्जरलैंड में हुआ र्ा। उन्होंने जन्तु-विज्ञान में पी-एच०डी० की उपावि प्राप्त की।विकािात्मक मनोविज्ञान के अनेक विद्धांतों में िे एक बहुत ही महत्िपूर्थ विद्धान्त जयााँ वपयाजे का िज्ञं ानात्मक विकाि का विद्धान्त है। िज्ञं ानात्मक विकाि के अध्ययन में जयााँ वपयाजे का अभूतपूिथ योगदान है। वपयाजे ने अपने विद्धान्त में शैशिािस्र्ा िे ियस्कािस्र्ा के बीच वचन्तन-विया में जो विकाि होते हैं उनकी व्याख्या की है। इि विद्धांत को जयााँ उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 15 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem वपयाजे द्वारा प्रवतपावदत वकया गया ओर इिमें यह पररकल्पना की गई वक मानि वशशु विकवित होने के िम में चार स्तरों िे गुजरता है। िामान्यतया यह चार अिस्र्ाएं विशेष आयु िगथ िे िम्बंवित होती हैं । वजन चार अिस्र्ाओ ं को जयााँ वपयाजे द्वारा प्रवतपावदत वकया गया है, इनका वििरर् वनम्नित प्रस्तुत है – 1. इन्रीय जधनत गामक अवस्‍टर्ा (Sensory Motor Stage)- िज्ञं ानात्मकविकाि की यह अिस्र्ा जन्म िे लेकर 02 िषथ की आयु तक चलती है। इि अिस्र्ा में वशशु की मानविक वियाएाँ उिकी इवन्ियों िे जुड़ी हुई गामक वियाओ ं के रूप में दृविगोचर होती हैं । बोलचाल की भाषा को उपयोग न कर िकने के कारर् वशशु इि उि िस्तु को वदखाकर अपने को व्यक्त करने का प्रयाि करते हैं। वशशु अपनी िमझ को व्यक्त करने के वलए विवभन्न गामक वियाओ ं का उपयोग करते हैं । यही कारर् है वक इि अिस्र्ा में जो िस्तु उिके िामने होती है उिी का उिके वलए अवस्तत्ि होता है ।आाँखों िे ओझल होते ही िस्तु क अवस्तत्ि भी नहीं रहता है ।यही कारर् है वक इि अिस्र्ा में वशशु ‘वखलौने को बन्दर ले गया’ जैिी बातों को मानने लगता है । इिी प्रकार वकिी िस्तु को वकिी चीज िे ढ़क कर छुपाने पर िह वशशु उिको बाद में ढूढ़ने का प्रयाि भी करता है । 2. पूवथ- संधक्रयात्मक अवस्‍टर्ा (Pre-Operational Stage 02-07 Years)- िंज्ञानात्मक विकाि की पिू थ-िंवियात्मक अिस्र्ा लगभग दो िाल िे प्रारंभ होकर िात िाल तक चलती है। इि अिवि में शब्दों , िाक्यों क उपयोग कर वशश/ु बच्चा अपनी बात कहना शुरू कर देता है िंज्ञानात्मक विकाि की पूिथ-िंवियात्मक अिस्र्ा लगभग दो िाल िे प्रारंभ होकर िात िाल तक होती है। इि प्रकार अवभव्यवक्त का माध्यम गामक वियाओ ं के स्र्ान पर भाषा बनाने लगती है। इि अिस्र्ा में मानविक विकाि की कुछ विशेषताएाँ इि प्रकार हैं – i. इि अिस्र्ा में िप्रं त्यय वनमाथर् (Concept Formation) की प्रविया शरू ु हो जाती है । बच्चे अपने िातािरर् में विद्यमान िस्तओ ु ं के नाम ओर उनमें अंतर िमझना प्रारम्भ कर देते हैं। उदाहरर् – चार पैरों िाली प्रावर्यों के दो िगों जैिे ‘कुत्ता और गाय ’ में अंतर कर िकना प्रारम्भ हो जाता है । ii. वनजीि ि िजीि िस्तुओ ं में अंतर कर िकना प्रारम्भ हो जाता है । प्रारम्भ में बच्चे वखलौनों को भी िजीि िमझते हैं बाद में िे िब िमझ जातें हैं वक वनजीि िस्तुओ ं को िदी ि गमी नहीं लगती है। इिी प्रकार उनकी िमझ में आ जाता है वक गवु ड़या या वखलौनों को भूख नहीं लगती है और िे दूि नहीं पीते हैं ।इिको प्याजे ने जीििाद कहा है।में बालक वनजीि िस्तुओ ं को भी िजीि िमझने लगता है उनके अनुिार जो भी िस्तुएाँ वहलती हैं या घूमती हैं उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 16 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem िे िस्तएु ाँ िजीि हैं। जैिे िरू ज, बादल, पख ं ा ये िभी अपना स्र्ान पररितथन करते हैं, ि पंखा घूमता है, इिवलए ये िभी िजीि हैं। iii. इि अिस्र्ा में बच्चे अत्यविक आत्मकें वित (Egocentrism) होते हैं । उनको लगता है वक आि-पाि की िभी चीजें के िल उन्हीं के वलए हैं ।अपने माता-वपता को िो के िल अपना ही मानते हैं तर्ा उन पर दूिरों का अविकार नहीं िमझते हैं ।बाद में िीरे - िीरे आत्मकें वित रहने की वस्र्वत िे िे िामावजकता की ओर बढ़ना प्रारम्भ कर देते हैं। िार् ही दूिरों के िार् चीजों को लेना देना प्रारम्भ हो जाता है और िे दूिरों को भी अपना जैिा िमझना शुरू कर देते हैं । iv. इि अिस्र्ा में बच्चे कल्पनाशील होते हैं परन्तु इि कल्पना िे कुछ नई चीज बनाने की क्षमता उनमें नहीं होती है । अपने द्वारा बनाए गए कागज़ के हिाई जहाज को िो िास्तविक हिाई जहाज िमझते हैं । इि अिस्र्ा में उन्हें पररयों और जादू की कहावनयााँ अच्छी लगाने लगती हैं । तकथ पर आिाररत वचंतन करने की क्षमता उनमें नहीं होती है और िे के िल हिाई वकले बनाते हैं । v. वपयाजे के अनुिार इि उम्र के बच्चों में तावकथ क वचन्तन की कमी रहती है, वजिे वपयाजे ने िंरक्षर् का विद्धान्त (Law of conservation)कहा है। उदािरण के धलए :-दो अलग-अलग आकार प्रकार के कांच के बतथनों में िमान मात्रा में रखे गए दूि को इि अिस्र्ा के बच्चे िमान या बराबर नहीं मान पाते हैं। कम चौड़ाई के लबं े बतथन में रखे िमान मात्रा के दूि को बच्चे अविक चौड़ाई के छोटे बतथन में रखे िमान मात्रा के दूि के बराबर नहीं मान पाते हैं । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 17 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem िमान मात्रा बटनों को ढेर बनाकर वदखाने तर्ा उन्हीं बटनों को िै लाकर वदखाने पर बच्चे िै ले हुए बटनों को अविक मानते हैं । अपने घर िे दोस्त के घर की 2 km की दूरी को और अपने उिी दोस्त के घर िे अपने घर की दूरी को बराबर मानने की िमझ उनमें नहीं होती है । 3. मतू थ सधं क्रयात्मक अवस्‍टर्ा (Concrete Operational Stage) - यह अिस्र्ा 7 िाल िे 11 िाल तक चलती है।इि अिस्र्ा में मानविक विकाि की विशेषताएाँ वनम्नित हैं – i. विवभन्न प्रकार के िंप्रत्ययों की िमझ स्पि हो जाती है।गाय, पेड़, जंगल , खेत , तालाब आवद िंप्रत्यय स्पि हो जाते हैं । िस्तुओ ं को पहचानना , उनको अलग- अलग िगों में विभावजत करना तर्ा िस्तओ ु ं में अंतर कर िकने की क्षमता विकवित हो जाती है । ii. इि अिस्र्ा में बच्चे चीजों के बीच की िमानता , अंतर , िम्बन्ि और दूरी को िमझेने लगते हैं। िे 05 आमों और 10 आमों के िंबि ं ों का िमझाना प्रारम्भ कर देतें हैं । दो अलग-अलग िगों के प्रावर्यों में अंतर स्पि होने लगता है। िे िमझने लगते हैं वक कुछ प्रार्ी ‘गाय’ होते हैं कुछ प्रार्ी ‘कुत्ता ’ होते उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 18 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem हैं तर्ा कुछ ‘वबल्ली’ होते हैं। इि अिस्र्ा में िस्तओ ु ं के िामने ना होने पर भी िे उन पर अमूतथ रूप िे विचार प्रारम्भ कर देते हैं । iii. उनके विचार करने के तरीके में िमबद्धता तर्ा तावकथ कता आनी प्रारम्भ हो जाते है ।उनकी कल्पनाशीलता िीरे- िीरे यर्ार्थ पर आिाररत होने लगती है । iv. पलट कर के िोचने की िमझ तर्ा िख् ं या तर्ा पररमार् के आिार पर िही िमझ भी िीरे- िीरे विकवित होने लगती है । अविक या कम बटनों को िे िंख्या के आिार पर िमझना प्रारम्भ कर देते हैं ।उनकी िमझ में यह बात भी आ जाती है वक िमान मात्रा का दूि अलग- अलग आकार के के बतथनों में होने के बाद भी बराबर होता है ।इतना होने पर भी इि अिस्र्ा में मानविक वियाएं अविकांशत मतू थ या स्र्ल ू रूप में ही उपयोग में लाई जाती है । 4. अमूतथ संधक्रयात्मक अवस्‍टर्ा (Period of Formal Operations) – यह िज्ञं ानात्मक विकाि की अवं तम अिस्र्ा है जो लगभग 11-15 की आयु तक होती है । इि अिस्र्ा की मानविक विकाि के महत्िपूर्थ वबदं ु वनम्नित हैं- i. िंप्रत्ययों की िमझ पूर्थ रूप िे विकवित हो जाती है भाषाई दक्षता एिं िम्प्रेषर् तक पहुाँचने के वलए विचार, िोच , तकथ , कल्पना, वनरीक्षर्, पररक्षर् , अिलोकन, प्रयोग आवद करने के योग्य हो जाता है । ii. स्मरर् करने की योग्यता रटने के स्र्ान पर तकथ एिं िमझ पर वनभथर करने लगती है । iii. वचंतन करने के वलए चीजों का मूतथ रूप में वदखाना आिशयक नहीं रह जाता है । अ, बी, ि, द एक चतुभथज ु है, गुरुत्िाकषथर् का विद्धांत आवद की कल्पना िंभि हो जाती है।िस्तुओ ं का वनमाथर् करने के वलए कल्पनाशवक्त क प्रयोग प्रारम्भ हो जाता है। तथ्यों , िच ू नाओ ं िे होते हुए वनयमों और विद्धांतों की िमझ विकवित होने लगती है। िृजनात्मकता के वलए आिश्यक योग्यताएं जैिे खोज करना, रचना करना, मौवलक वचंतन करना आवद बौवद्धक योग्यताएं विकवित हो जाती हैं। वपयाजे द्वारा प्रवतपावदत इि विद्धांत के शैवक्षक वनवहतार्थ वनम्न हैं – i. िीखने के प्रविया िहज िरल ि िुगम बन िके इि के वलए यह आिश्यक है वक बच्चों की आयु के अनुरूप वशक्षर् व्यिस्र्ा का आयोजन वकया जाए । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 19 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem ii. प्रारम्भ में भाषा आिाररत शब्दों िे जड़ु े िप्रं त्ययों को अविकाविक मतू थ रूप में प्रस्तुत वकया जाना चावहए । iii. अिस्र्ा आिाररत विशेषताओ ं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यिस्तु का वनिाथरर् एिं पाठ्य िामग्री का वनमाथर् वकया जाना चावहए । iv. औपचाररक वशक्षा 07िषथ िे प्रारम्भ करनी चावहए। इि व्यिस्र्ा के अंतगथत मूतथ वचंतन िे अमोटथ वचंतन की ओर बढ़ने के अििर उपलब्ि कराने के प्रयाि वकए जाने चावहए । v. वनरीक्षर्, प्रयोग, तर्ा खोज करने के पयाथप्त अििर उपलब्ि कराए जाने चावहए । vi. िस्तुओ ं की पहचान तर्ा िम्प्रत्ययों के िमझ विकवित करने के उपरान्त िच ू नाओ ं तर्ा तथ्यों के आिार पर वनयमों एिं विद्धांतों की िमझ विकवित करने हेतु उपयुक्त प्रयाि वकए जाने चावहए । vii. विद्यालयों एिं कक्षा-कक्षों में ऐिा िातािरर् िृवजत वकया जाना चावहए वजििे 11-15 िषथ की आयु के विद्यार्ी कर की िीखना, वनष्कषों तर्ा पररर्ामों तक पहुाँचने के वलए आगमन तर्ा वनगमन विवियों का उपयोग करना, िमबद्ध तरीके िे तावकथ क वचंतन करने की योग्यता प्राप्त कर िकें । viii. इि कायथ को करने हेतु िुिवजजत प्रयोगशालाओ ं के िार्- िार् शैवक्षक भ्रमर्ों, योजना विवि, विज्ञान िंग्रहालय तर्ा प्रकृवत िे प्रत्यक्ष िंपकथ स्र्ावपत करने के पयाथप्त अििर उपलब्ि कराए जाने चावहए । स्‍टवमूलयांकन िेतु प्रश्न 8. जयााँ वपयाजे के अनुिार िंज्ञानात्मक विकाि की __________अिस्र्ाएाँ होती हैं। 9. िज्ञं ानात्मक विकाि ______________ अिस्र्ा जन्म िे लेकर 02 िषथ की आयु तक चलती है। 10. पूिथ-िंवियात्मक अिस्र्ा _______ िे _______ तक चलती है। 11. पिू थ-िवं ियात्मक अिस्र्ा में _________की प्रविया शरू ु हो जाती है । 12. िंज्ञानात्मक विकाि की अंवतमअिस्र्ा को __________कहते हैं जो लगभग 11 िाल िे 15 िाल की आयु तक होती है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 20 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem 2.5 अधिगम के सामाजिक िचनावादी ससद्िांत 2.5.1 वाइगोत्स्‍टकी का सामाधजक संरचनावाद का धसद्धांत लेि विमनोविच िाइगोत्िकी(1896 -1934) िोवियत िघं के मनोिैज्ञावनक र्े । उन्होंने मानि के िांस्कृवतक तर्ा जैि-िामावजक विकाि का विद्धान्त वदया वजिे िांस्कृवतक- ऐवतहाविक मनोविज्ञानकहा जाता है।उन्होंने बच्चों में उच्च िज्ञं ानात्मक कायों के विकाि िे िम्बवन्ितएक विद्धान्त प्रस्तुत वकया। िाइगोत्स्की का िामावजक दृवषटकोर् िंज्ञानात्मक विकाि का एक प्रगवतशीलविश्ले षर् प्रस्तुत करता है। िस्तुत: िाइगोत्िकी ने बालक के िज्ञं ानात्मकविकाि में िमाज एिं उिके िांस्कृवतक िबं न्िों के बीच ििं ाद को एकमहत्त्िपूर्थ आयाम माना । जयााँवपयाजे की तरह िाइगोत्स्की का भी मत र्ा वक बच्चे ज्ञान का वनमाथर् करते हैं लेवकनयह भाषा-विकाि, िामावजक-विकाि, यहााँ तक वक शारीररक- विकाि के िार्-िार् िामावजक-िांस्कृवतक िंदभथ में होता है।इि विद्धान्त के अनुिार िामावजक अन्तःविया ही बालक की िोच ि व्यिहार में वनरन्तर बदलाि लाती है ।िाइगोत्स्की ने अपने विद्धान्त में िंज्ञान और िामावजक िातािरर् का वमश्रर् वकया। लेि िाइगोत्स्की का मानना है वक मानि वियाएं िांस्कृवतक पररिेश में होती हैं और इन्हें इि पररिेश िे पृर्क कर नहीं िमझा जा िकता है । उनका एक मख् ु य विचार र्ा वक हमारी मानविक िंरचनाएं एिं प्रवियाएं , हमारी अन्य व्यवक्तयों िे पारस्पररक अन्तविथ याओ ं में खोजी जा िकती हैं। ये िामावजक अंतविथ याएं हमारे िज्ञं ानात्मक विकाि को के िल प्रभावित ही नहीं करती हैं िरन ये हमारी िंज्ञानात्मक िंरचनाओ ं और वचंतन प्रवियाओ ं को िृवजत भी करती हैं । िाइगोत्स्की द्वारा वलवखत िामग्री यह स्पि करती है वक िामावजक प्रवियाएं अविगम एिं वचंतन को वकि प्रकार वनवमथत करती हैं ।इिके िार् ही िैयवक्तक वचंतन के िामावजक स्रोतों तर्ा अविगम एिं विकाि में िांस्कृवतक उपकरर्ों की भूवमका को भी यह िमझने का प्रयाि करती हैं । विशेष रूप िे भाषा को एक उपकरर् के रूप में तर्ा विकाि के उच्चतम क्षेत्र तक पहुाँचाने की प्रविया भी इनके द्वारा प्रस्तुत विचारों िे िमझी जा िकती है । िाइगोत्स्की द्वारा प्रवतपावदत िामावजक िांस्कृवतक विद्धांत भाषा एिं वचंतन, कला, अविगम तर्ा विकाि का मनोविज्ञान एिं विशेष आिश्यकता िाले विद्यावर्थयों को वशवक्षत करने िे िम्बंवित है । इि रूिी मनोिैज्ञावनक के काम की रूि में कई िषों तक प्रवतबंवित उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 21 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem रखा गया क्योंवक इन्होंने पािात्य मनोिैज्ञावनकों को भी िदं वभथत वकया र्ा लेवकन वपछले 20 िषों िे िाइगोत्स्की के विचार मनोविज्ञान एिं वशक्षा में महत्िपूर्थ िमझे जा रहे हैं । सांस्‍टकृधतक उपकरण और संज्ञानात्मक धवकास िाइगोत्स्की के अनुििार िंज्ञानात्मक विकाि में िांस्कृवतक उपकरर्ों की महत्िपूर्थ भूवमका है । इि उपकरर्ों के उपयोग िे एक िमाज/ िमूह के व्यवक्त पारस्पररक िंिाद कर िकने में िमर्थ होते हैं । िार् ही इनका उपयोग वचंतन करने, िमस्या िमािान करने तर्ा ज्ञान के िृजन में भी होता है । इन उपकरर्ों को तीन प्रकारों में िागीकृत वकया जा िकता है 1. िास्तविक उपकरर् – पैमाने, कम्प्यूटिथ आवद । 2. िांकेवतक उपकरर् – अंक , भाषा , ग्राि 3. िामवग्रयां –वप्रवं टंग प्रेि ; खेती करने में काम आने िाले उपकरर् ; लकड़ी, स्टील या प्लावस्टक का स्के ल, अबेकि , ग्राि पेपर, PDAs, कम्प्यूटिथ, इटं रनेट आवद । 4. मनोिैज्ञावनक उपकरर्- वचन्ह, िंकेताक्षर, अंक, गवर्तीय, िंप्रत्यय, ब्रेल वलवप, िांकेवतक भाषा, मानवचत्र, कला कृवतयााँ, कूट- भाषा तर्ा बोवलया/ं भाषाएं िास्ति में दैवनक जीिन में काम आने िाली चीजें िंज्ञानात्मक विकाि में उपयोग में आती ही हैं ।शून्य, अंश, घनात्मक रावश, ऋर्ात्मक रावश, युक्त अंक प्रर्ाली भी एक मनोिैज्ञावनक उपकरर् के रूप में अविगम तर्ा िंज्ञानात्मक विकाि में िहायक होती है । यह उपकरर् वचंतन की प्रविया को पररिवतथत करती है । समीपस्‍टर् धवकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development) यह िह क्षेत्र है वजिमें बालक िम्बंवित कायथ पर दक्षता प्राप्त कर िकता है यवद उिे यर्ोवचत िहायता तर्ा मदद प्रदान जाए । यह बालक के विकाि के ितथमान स्तर तर्ा िहायता वमलने के उपरांत प्राप्त होने िाले विकाि के स्तर के मध्य का क्षेत्र है । बालक को वशक्षक (या वकिी अन्य ियस्क, योग्य िार्ी) द्वारा प्रदान की जाने िाली िहायता ‘स्के िोवल्डंग’ (Scaffolding)कहलाती है । इिको एक ‘ढााँचे’ के रूप में िमझा जा िकता है वजिका उपयोग बालक वकिी एक िमस्या का िमािान करने या वकिी एक कायथ को िंपावदत करने में कर िकता है । यह िहायता मौवखक अनुबोिन (Prompting) तर्ा िक ं े तो/ इशारों के रूप में होती है । इिके अंतगथत ित्रू (Clue), अनि ु रर्, प्रोत्िाहन, उदाहरर् आवद का उपयोग कर िीखने िाले को मदद की जाते है । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 22 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem धिक्षण में वाईगोत्स्‍टकी के धवचारों का उपयोग जब विद्यार्ी नए कायों को प्रारम्भ कर रहे होते हैं या नए प्रकरर्ों को िीख रहे होते हैं तब वनम्नवलवखत का उपयोग कर उनकी िहायता की जा िकती है – 1. प्रवतमान (Models),अनुबोिन (Prompting), िाक्य वनवमथत करने हेतु िंकेत/ इशारे, प्रवशक्षर् (Coaching) , प्रवतपुवि (feedback)- िीरे-िीरे जब विद्यार्ी कायथ करने ने दक्ष होने लगते हैं तो इि प्रकार की िहायता को कम कर देना चावहए तर्ा स्िनात्र रूप िे कायथ करने ने अििर उपलब्ि कराने चावहए । 2. वचंतन में िहायक प्रभािी उपकरर्ों का िमुवचत उपयोग- i. शब्दकोष , विश्वकोष , कम्प्यूटिथ (िचथ स्प्रेडशीट, िाडथ प्रोिेविगं प्रोग्राम्ि आवद) ii. योजना वनमाथर् तर्ा िमय प्रबि ं न हेतु एपोईटमें ं ट बकु यााँ इलैक्रोवनक नोट बुक 3. विद्यावर्थयों के िांस्कृवतक ज्ञान भण्डार क उपयोग – i. विद्यावर्थयों के पररिारों के वियाकलापों तर्ा उनिे जड़ु ी जानकाररयों का िम्यक उपयोग –कृवष, िनाजथन , पद्धवतयााँ, उत्पादन के तौर- तरीके , गृह प्रबिन, दिा और बीमारी, िावमथक वियाए,ं पालन-पोषर् की पद्धवतयााँ, खान-पान िंबंिी जानकाररयों/ वियाए।ं ii. उपयथक्त ु जानकाररयों िे जुड़ी छोटी-छोटी पररयोजनाओ ं के वलए विद्यावर्थयों को अििर प्रदान करने चावहए तर्ा इन गवतविवियों का मूल्यांकन िमाज में उपलब्ि विशेषज्ञों द्वारा करिाया जाना चावहए । 4. विचार विमशथ /िाद-वििाद तर्ा िमूह अविगम - i. विद्यावर्थयों को प्रश्न पूछने के वलए प्रेररत करना, उपयोगी स्पिीकरर् प्रदान करना, िंगी-िावर्यों िे महत्िपूर्थ विषयिस्तु िाताथलाप के अििर उपलब्ि करना । ii. िहयोगात्मक अविगम कौशलों का उपयोग वकया जाना चावहए। ज्ञान का धनमाथण अविगम और ज्ञान िबं ि ं ी अििारर्ाएं – िाईगोत्स्की के अनि ु ार ज्ञान का वनमाथर् िामावजक अन्तविथ याओ ं तर्ा अनभ ु िों पर आिाररत होता है । िंस्कृवत, भाषा , विश्वािों, अन्य व्यवक्तयों िे अंतविथ या, प्रत्यक्ष वशक्षर् तर्ा प्रवतमानों (Models)िे प्रभावित ि छवनत बाह्य जगत का प्रवतवबम्बन ही ज्ञान है । उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 23 अधिगम, धिक्षण एवं आकलन(A3) B.Ed.Spl.Ed.II Sem वनदेवशत खोज, वशक्षर्, प्रवतमान तर्ा कोवचंग के िार्- िार् व्यवक्त का पिू थ ज्ञान, उिके विश्वाि तर्ा वचंतन अविगम को प्रभावित करने हैं । धस्‍टर्त अधिगम (Situated Learning) िास्तविक जगत में िीखना विद्यालय में अध्ययन करने जैिा नहीं है । इि बात पर विशेष बल देना ‘वस्र्त अविगम ’ िे पररलवक्षत होता है । कौशल तर्ा ज्ञान उि पररवस्र्वत िे जुड़े होते हैं वजनमें उनको िीखा गया होता है तर्ा इनको नई पररवस्र्वत में उपयोग में लाना कवठन होता है । विद्यालय में िीखी गई चीजों को विद्यालय िे बाहर की वस्र्वतयों में लागू करने के वलए विशेषज्ञ वनदेशक तर्ा प्रवतमानों िे मदद की आिश्यकता होती है । अविगम (या ज्ञान) के स्र्ानांतरर् के कारर् एक पररवस्र्वत में प्राप्त कौशल तर्ा ज्ञान दूिरी पररवस्र्वतयों में कुछ शतों के िार् उपयोग में लाया जा िकता है । िीखने के स्र्ानांतरर् का ‘िमान तत्िों का विद्धांत’ इिी अििारर्ा की पवु ि करता है । 2.5.2 बॅण्डुरा का सामाधजक अधिगम धसद्धांत (Social Learning Theory of Bandura) अॅल्बटथ बॅण्डुरा का जन्म 4 वदिंबर 1925 में हुआ।बॅण्डुरा एक प्रभािशाली िामावजक िज्ञं ानात्मक मनोिैज्ञावनक हैं। बॅण्डुरा द्वारा िामावजक अविगम विद्धांत का प्रवतपादन वकया गया ।इि विद्धांत में स्िवनदेवशत अविगम के प्रत्यय को प्रमुख स्र्ान प्रदान वकया गया है । एक बालक /वकशोर के रूप में बॅण्डुरा को अपने वपताके रूप में एक ऐिे प्रेरक का िावनध्य प्राप्त हुआ र्ा जो विद्यालयी वशक्षा िे िंवचत रहने पर भी तीन भाषाओ ं को अपने स्ियं के प्रयाि िे पढ़ाना िीखने में ििल हुए र्े। इि विद्धांत के िमर्थक इि बात पर बल देतें हैं वक हम जो कुछ भी िीखतें हैं उिका अविकांश भाग हम दूिरों को देखकर तर्ा दूिरों की बातों को िनु कर िीखतें हैं । छोटे-छोटे बच्चे प्रारम्भ िे ही दूिरों के व्यिहारों को ध्यानपूिथक देखना शुरू कर देते हैं ।आि- पाि के लोग जैिे माता -वपता, पररिार के अन्य िदस्यों, वशक्षकों , िमाज के अन्य ियस्क िदस्यों के व्यिहार को देखते हैं । बच्चे इि व्यिहारों का अनुिर

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