Sun Yat-sen and the Kuomintang Government in China PDF

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Summary

This document details the life and work of Dr. Sun Yat-sen, focusing on his role in the establishment of the Kuomintang government in China. It covers his early life, education, and political activism. It also provides insight into the organization and principles of the Kuomintang political party.

Full Transcript

# सुनयात सेन एवं चीन में कुओमिनतांग सरकार की स्थापना (SUN YAT SEN AND THE ESTABLISHMENT OF KUOMINTANG GOVERNMENT IN CHINA) - चीन की राज्य क्रान्ति 1911 ई. के पश्चात् युआन-शिकाई ने चीन में स्थापित उदारवादी गणतन्त्रात्मक सरकार के राष्ट्रपति पद को संभाला, परन्तु युआन-शिकाई ने शनैः-शनैः क्रान्ति के आदर...

# सुनयात सेन एवं चीन में कुओमिनतांग सरकार की स्थापना (SUN YAT SEN AND THE ESTABLISHMENT OF KUOMINTANG GOVERNMENT IN CHINA) - चीन की राज्य क्रान्ति 1911 ई. के पश्चात् युआन-शिकाई ने चीन में स्थापित उदारवादी गणतन्त्रात्मक सरकार के राष्ट्रपति पद को संभाला, परन्तु युआन-शिकाई ने शनैः-शनैः क्रान्ति के आदर्शों को ताक में रखकर चीन में निरंकुश शासन स्थापित करने का प्रयत्न किया, किन्तु शिकाई की मृत्यु (6 जून, 1916 ई.) के पश्चात् चीन में अव्यवस्था एवं अराजकता का ताण्डव दृष्टिगोचर होने लगा। शक्ति सिद्धान्त हीन प्रान्तीय राज्यपालों के हाथों में चली गयी। बीजिंग में थोड़े-थोड़े समय के लिए कठपुतली सरकार (सामन्तों की) बनने लगी। ऐसी स्थिति में डॉ. सुनयात सेन ने कैंटन में एक प्रतिद्वन्द्वी सरकार स्थापित कर 1921 ई. चीनी गणराज्य का स्वतः को अध्यक्ष घोषित किया। ## सुनयात सेन का जीवन परिचय (LIFE SKETCH OF SUN YAT SEN) - चीन की क्रान्ति के जनक डॉ. सुनयात सेन का जन्म 12 नवम्बर, 1866 ई. को दक्षिण चीन के कैंटन डेल्टा के 'हसीयांग शान' नामक गांव में हुआ था। - उसके बचपन का नाम सुन वेन था। - बचपन में पिता का देहावसान हो जाने के कारण उसका लालन-पोषण उनके चाचा ने किया। - बारह वर्ष की आयु में उसके बड़े भाई ने उसे हवाई बुलाकर 'होनूलूलू' में एक ईसाई स्कूल में प्रवेश दिला दिया जहां पर उनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा हुई। - 1879 ई. से 1882 ई. तक सुनयात सेन ने पश्चिमी ढंग की शिक्षा ग्रहण करने के साथ-साथ ईसाई-धर्म का ज्ञान भी प्राप्त किया। - 1882 ई. में सुनयात सेन चीन वापस आ गया और 1884 ई. में उनका विवाह हो गया। - पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित होकर डॉ. सेन ने ईसाई धर्म अंगीकार कर लिया। - 1887 ई. में उसने हांगकांग के मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया एवं पांच वर्ष तक चिकित्साशास्त्र का अध्ययन कर स्नातक की उपाधि प्राप्त की। - 1892 ई. में चिकित्साशास्त्र की स्नातक की उपाधि अर्जित करने के पश्चात् डॉ. सेन ने मकाओ में डाक्टरी प्रारम्भ की, किन्तु क्रान्तिकारी विचारों से ओत-प्रोत डॉ. सेन के लिए यह असह्य हो उठा कि विदेशी शक्तियां चीनी खरबूजे का अपने हितों में शोषण करें। - चीन का जिस प्रकार शोषण किया जा रहा था उसके लिए डॉ. सेन ने मंचू राजवंश को उत्तरदायी माना और मंचू शासन को अपदस्थ करने के लिए क्रान्ति की योजना पर विचार करना प्रारम्भ कर दिया। - अतः उसने कुछ साथियों को संगठित कर मंचू प्रशासन का विरोध प्रारम्भ कर दिया। - इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने 'सोसाइटी फार दी रीजनेरेशन ऑफ चायना (Hsing-Chung Hui-हिसंग-चुंग हुई) का गठन किया। - लाइने-बारगर के शब्दों में, "1894-95 के चीन जापान युद्ध के समय तक सुनयात सेन का क्रान्तिकारी संगठन आधुनिकतावादी, राष्ट्रवादी और राजतन्त्र विरोधी हो गया था, जबकि आरम्भ में केवल देशभक्त एवं राजवंश विरोधी था।'' - 1894 में इस संस्था का मुख्य कार्यालय हांगकांग में खोला गया। - चीन में बढ़ते विदेशी प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से डॉ. सेन ने एक क्रान्तिकारी सेना का गठन कर कैंटन पर अधिकार करने की योजना बनाई, परन्तु योजना के विषय में चीनी सरकार को पता चल जाने से योजना असफल रही और डॉ. सेन को चीन से पलायन करना पड़ा। - 1895 ई. सेन हांगकांग पहुंचा और वहां से फिर जापान जाने में सफल रहा। - जापान से निकलकर डॉ. सेन ने यूरोपीय देशों का भ्रमण किया और अमेरिका होते हुए इंग्लैण्ड पहुंचा, जहां उसे चीनी दूतावास में अवैध तरीके से कैद कर लिया गया। - पश्चात् में ब्रिटिश विदेश मन्त्रालय के हस्तक्षेप के कारण इंग्लैण्ड स्थित चीनी दूतावास को डॉ. सेन को छोड़ना पड़ा। - डॉ. सेन का यह यूरोप भ्रमण व्यर्थ नहीं गया। - इस दौरान वह यूरोप में साम्राज्यवादी आन्दोलनों के सम्पर्क में आया और उसने कार्ल मार्क्स के 'दास कैपीटल' का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा, जिससे उसके विचारों में समाजवादी विचारधारा का समावेश हुआ। - 1899 ई. में वह योकोहामा की चीनी बस्ती में बस गया और वहीं से अपने विचारों का प्रसार करने लगा। - 1899 ई. में चीन में होने वाले बॉक्सर विद्रोह का लाभ उठाते हुए उसने विदेशों में रहने वाले चीनियों को अपनी ओर आकर्षित करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। - उसने अपनी 'आत्मकथा' में इस सफलता के विषय में लिखा है, '1895 ई. की मेरी असफलता के पश्चात् लोग मुझे विद्रोही तथा डाकू समझते थे, लेकिन 1900 ई. की असफलता के पश्चात् (बॉक्सर विद्रोह की असफलता) लोगों ने न केवल मुझे गाली देना बन्द कर दिया, अपितु उनमें जो प्रगतिवादी विचारों के व्यक्ति थे, वे मुझे मुसीबतों में फंसा देखकर मेरे प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने लगे। " ## कुओमिनतांग का संगठन (ORGANISATION OF KUOMINTANG) - कुओमिनतांग तीन शब्दों से मिलकर बना है। - चीनी भाषा में कुओ का अर्थ देश, मिन का अर्थ जनता एवं तांग का अर्थ दल से है। - इस प्रकार कुओमिनतांग का शाब्दिक अर्थ "देश की जनता का दल" है। - वास्तव में डॉ. सेन देश की जनता के एक ऐसे दल को सुदृढ़ संगठन चाहता था जो कि चीन की राष्ट्रीय एकता का पक्षपाती हो। - उल्लेखनीय है कि प्रारम्भ में इस दल के सदस्य केवल डॉ. सेन के अनुयायी ही थे। - अतः इसे सम्पूर्ण चीन की जनता का दल नहीं माना जाता था। - दक्षिणी चीन के अनेक लोग इस दल के विरोधी थे। - अतः डॉ. सेन ने सत्ता हाथ में आते ही इस दल को राष्ट्रीय दल के रूप में परिणत करने का प्रयत्न किया। - उसने सोवियत दूत जोफे (Joffe) की सहायता से कुओमिनतांग के संगठन की विधिवत् घोषणा की और 1923 ई. में रूस से माइकेल बोरोडिन (Michael Borodin) को दल का संगठन करने के उद्देश्य से आमन्त्रित किया गया। - सितम्बर, 1923 ई. बोरोडिन कैण्टन पहुंचा और उसने कुओमिनतांग को इस प्रकार संगठित करने का प्रयास किया कि उनके सदस्य चीन की जनता से अधिक जुड़ जाएं न कि डॉ. सेन के व्यक्तित्व से। - अतः दल की अनेक शाखाएं चीन के विभिन्न भागों में स्थापित की गयीं। - स्थानीय शाखाओं के सदस्य एक प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करते थे। - इस प्रतिज्ञा-पत्र में वे दल के सिद्धान्तों के अनुपालन की प्रतिज्ञा करते थे। - प्रत्येक स्थानीय शाखा के सदस्य एक प्रधान संचालक का चयन करते थे। - स्थानीय शाखाओं की बैठक माह में दो बार निश्चित की गई। - इस बैठक में दल के संगठन, प्रसार आदि पर विचार-विमर्श किया जाता था। - स्थानीय शाखाओं के आय-व्यय पर भी नियन्त्रण स्थापित किया गया। ## सुनयात सेन अथवा कुओमिनतांग के सिद्धान्त (PRINCIPLES OF SUN YAT SEN OR KUOMINTANG) - डॉ. सेन के प्रयासों से जिस समय कुओमिनतांग के संगठन का कार्य चल रहा था उसी समय उसने (डॉ. सेन ने) दल को निश्चित सिद्धान्तों के अनुरूप ढालने पर भी विचार किया। - डॉ. सेन की यह विचारधारा उसके कई प्रलेखों में स्पष्ट मुखरित हुई। - उसकी इस विचारधारा को 'सानमिन चू' (जनता के तीन सिद्धान्त) के नाम से जाना जाता है। - 'सान मिन चू' के नाम से प्रख्यात डॉ. सेन के सिद्धान्त कुओमिनतांग के उद्देश्य के प्रमुख आधार स्तम्भ बने। - डा. सेन ने अपने 'सान मिन चू' का उल्लेख स्पष्ट रूप से 1905 ई. में ब्रसेल्स के विद्यार्थियों की एक सभा में किया, परन्तु 1924 में कैण्टन आकर उसने इस सन्दर्भ में ठोस कदम उठाए। - डॉ. सेन के सान मिन चू (जनता के तीन सिद्धान्त) राष्ट्रवाद, लोकतन्त्र एवं सामाजिक न्याय के उसके सिद्धान्तों का विवरण निम्नवत् है : **1. राष्ट्रवाद का सिद्धान्त (Principle of Nationality)** - डॉ. सेन के 'सान मिन चू' में पहला सिद्धान्त राष्ट्रीयता का था। - उसकी धारणा में चीन में सांस्कृतिक एकता तो थी, परन्तु राष्ट्रीय एकता का अभाव था। - यही कारण था कि उसने चीनी समाज की तुलना बालू की परत से की थी जिसे सुदृढ़ करने के लिए सीमेण्ट की आवश्यकता थी। - इतिहासकार पामर ने लिखा है कि डॉ. सेन के अनुसार यह सीमेण्ट राष्ट्रीयता का था जो चीन के सांस्कृतिक समाज को सत्ता वृद्धि के साथ-साथ राजनीतिक समाज में परिवर्तित कर सकने में सक्षम था। - डॉ. सेन की विचारधारा थी कि चीनी समाज को आवश्यकता इस बात की है कि वह अपने कबीले या गांव के प्रति भक्ति को सम्पूर्ण देश के प्रति भक्ति के रूप में प्रकट करे। - देश के प्रति राष्ट्रीयता की भावना का विकास देश के प्रति भक्ति, कर्तव्यनिष्ठा, परोपकार, शान्तिप्रियता एवं ईमानदारी - इन पांच गुणों के माध्यम से हो सकने की बात भी डॉ. सेन ने स्पष्ट की। - वास्तव में, डॉ. सेन का मूल उद्देश्य चीन की जनता के मानसिक धरातल में परिवर्तन करना था। **2. प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) का सिद्धान्त (Principle of Democracy)** - डॉ. सेन का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धान्त प्रजातन्त्र का सिद्धान्त था। - डॉ. सेन के 'शब्दों में, "लोकतन्त्र से तात्पर्य मताधिकार, उपक्रम, जनमत संग्रह और वापस बुलाने का अधिकार है। - ये अधिकार व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, परीक्षा एवं नियन्त्रण पर आधारित हैं। - हम जिस लोकतन्त्र की स्थापना चाहते हैं वह जनता का होगा। - इस पर कुछ ही विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का अधिकार नहीं होगा। - केवल उन्हीं लोगों को राजनीतिक अधिकार दिया जाना चाहिए जो गणतन्त्र के प्रति भक्तिभाव रखते हों।" - वस्तुतः डॉ. सेन ने इस सिद्धान्त पर स्विट्जरलैण्ड की प्रजातन्त्रात्मक पद्धति का प्रभाव स्पष्ट किया कि जनता की सम्प्रभुता शक्ति और सरकार की शासन शक्ति में पर्याप्त अन्तर है। - सरकार तभी ठीक से कार्य कर सकती है, जबकि सरकार शासन संचालन योग्य व्यक्तियों के हाथ में हो। - अतः डॉ. सेन सच्ची प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था की तीन अवधियों को पार करने के पश्चात् प्राप्त करने की बात करते हैं। - इस प्रकार डॉ. सेन का प्रजातन्त्र का सिद्धान्त 'प्रजातन्त्र पर सरकार की शक्ति का अध्यारोपण' (Super imposition of State authority on democracy) कहा जा सकता है। **3. सामाजिक न्याय का सिद्धान्त (Principle of Social Justice)** - डॉ. सेन का तीसरा महत्वपूर्ण सिद्धान्त सामाजिक न्याय का सिद्धान्त के नाम से जाना जाता है। - डॉ. सेन का विश्वास था कि भूमि का समान वितरण होना चाहिए। - उसकी धारणा थी कि इसके बिना चीन की खाद्य समस्या का निदान नहीं हो सकता, क्योंकि चीन में समस्या उत्पादन की है न कि वितरण की। - डॉ. सेन के शब्दों में, "चीन की जनता निर्धनता से पीड़ित है। - धन के असमान वितरण का प्रश्न बाद का है।" - यही कारण था कि डॉ. सेन ने मार्क्स के भौतिकवादी सिद्धान्त की आलोचना की। - अतः चीन की जनता को सामाजिक न्याय देने के लिए डॉ. सेन ने विदेशी पूंजीपतियों का जोरदार विरोध किया। - स्पष्ट है कि उसका यह सिद्धान्त समाजवादी विचारधारा से अत्यन्त प्रभावित है। - यही कारण है कि डॉ. सेन के विषय में कहा जाता है कि डॉ. सेन एक समाज सुधारक थे जो सामाजिक साधनों के पक्षपाती थे और यह कहना और भी अधिक उचित प्रतीत होता है कि वह एक ऐसे सामाजिक क्रान्तिकारी थे जो पूंजीवाद से समझौते के पक्षपाती थे। - इस प्रकार डॉ. सेन के प्रयत्नों ने कुओमिनतांग को अपने तीन प्रमुख सिद्धान्तों से एक नई दिशा प्रदान की। - दल को ही नहीं उसके इन तीनों सिद्धान्तों ने चीन में राष्ट्रवाद, प्रजातन्त्र एवं न्याय की महत्ता को स्पष्ट कर दिया। - विनाकी ने ठीक ही लिखा है "डॉ. सेन दल के पवित्र नेता तथा उनके तीन सिद्धान्त राष्ट्रीय बाइबिल बन गए।" ## राष्ट्रीय एकता के लिए सुनयात सेन के प्रयास (EFFORTS OF NATIONAL INTEGRATION) - सुनयात सेन चीन में राष्ट्रीय एकता का पक्षपाती था। - यह उसके राष्ट्रवाद के सिद्धान्त से स्पष्ट हो जाता है। - उसने प्रारम्भ से ही कुओमिनतांग में राष्ट्रीय एकता पर विशेष बल दिया था। - दल में एकता स्थापित करने का प्रयास डॉ. सेन ने इसलिए किया, क्योंकि दल में दो प्रकार की विचारधारा वाले लोग थे। - डॉ. सेन के विचारों से समानता रखने वाले लोग राष्ट्रीय एकता के लिए कृषक एवं मजदूर वर्ग का सहयोग आवश्यक मानते थे, जबकि कैण्टन के कतिपय पूंजीवादियों के लिए यह हानिकारक था। - अतः पूंजीवादी वर्ग ने विदेशों से अस्त्र-शस्त्र मंगाकर अपने हितों की पूर्ति हेतु सेना का गठन आरम्भ कर दिया। - डॉ. सेन ने इस स्थिति से निपटने के लिए कैण्टन के पूंजीवादी सेना के अभियान को कुचलने का दृढ़ संकल्प कर लिया। - उसने केन्द्रीय सेना को आदेश दे दिया कि वह कैण्टन में पूंजीवादियों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करे। - पूंजीवादियों का दमन कर दिया गया। - समस्या का अन्त यहीं नहीं हो गया। - राष्ट्रीय एकता के मार्ग में पीकिंग के सूबेदार 'वू पेई फू' ने पीकिंग पर अधिकार कर भयंकर बाधा खड़ी कर दी। - डॉ. सेन इस बात के पक्षपाती थे कि पीकिंग के साथ कोई समझौता हो जाए जिससे चीन के एकीकरण में आसानी हो सके और राष्ट्रीय भावना का विकास सम्भव हो सके। - अतः उसने 'वू पेई फू' के विरुद्ध तुआन, चांग एवं फैंग नामक सूबेदारों के साथ समझौते का प्रस्ताव रखा। - डॉ. सेन को चीन के एकीकरण पर प्रस्ताव वार्ता करने के लिए तीनों सूबेदारों ने पीकिंग आमन्त्रित किया। - दिसम्बर 1924 ई. में डॉ. सेन के पीकिंग पहुंचने तक महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा चुके थे। - इससे डॉ. सेन अत्यन्त निराश हुए और लगातार अस्वस्थता के कारण पीकिंग में 12 मार्च, 1925 को इसका निधन हो गया। - मृत्यु के समय उसने अपने अनुयायियों को अपने अधूरे कार्य को पूर्ण करने का सन्देश दिया। - क्लाइड के शब्दों में, “निधन के पश्चात् डॉ. सेन राष्ट्रवादी आन्दोलन के सम्पूर्ण आदर्शवाद का प्रतीक बन गया, पुनर्गठित कुओमिनतांग का सारा क्रान्तिकारी उत्साह उसमें मूर्तिमान हो उठा।" ## डॉ. सुनयात सेन का इतिहास में स्थान (PLACE OF DR. SUN YAT SEN IN HISTORY) - चीन में क्रान्ति के जनक के नाम से विश्व के महानतम व्यक्तियों में डॉ. सुनयात सेन का स्थान है। - वह एक ऐसा मानव था जिसने सोए हुए चीन को राष्ट्रवाद की भावना करने का अभूतपूर्व प्रयास किया। - डॉ. सेन का चीन के इतिहास में स्थान निम्नवत् इंगित किया जा सकता है : **1. महामानव के रूप में** - चीन के इतिहास में डॉ. सेन को वही स्थान प्राप्त है जो कि अमेरिका में लिंकन को, इटली में मेजिनी, गैरीबाल्डी एवं कैबूर को तथा भारत में महात्मा गांधी को। - इसका बड़ा कारण यह है कि डॉ. सेन के सन्देशों पर चलकर ही कालान्तर में चीन ने अपना मार्ग प्रशस्त किया। - चीन के विद्यालयों एवं कार्यालयों में आज भी डॉ. सेन के चित्र देखे जा सकते हैं। **2. देशभक्त के रूप में** - डॉ. सेन का नाम चीन के इतिहास में महान देशभक्त के रूप में इंगित किया जाता है। - उसने 'सोए हुए अजगर' (चीन) को जगाकर राष्ट्रवाद की भावना भरने का जो प्रयास किया वह अतुलनीय है। - उसने चीन को विदेशी आधिपत्य के प्रभाव से मुक्त कराने का जो स्वप्न देखा था कि उसके लिए जीवन-पर्यन्त संघर्ष किया। - चीन की एकता के लिए उसने अभूतपूर्व बलिदान किया था। - इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि चीन की एकता का प्रश्न उठने पर उसने बेहिचक कैण्टन सरकार के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था। - यह उसके असीम धैर्य एवं त्याग का ज्वलन्त उदारहण है। **3. संगठनकर्ता के रूप में** - डॉ. सुनयात सेन एक महान संगठनकर्ता थे। - उसमें संगठन की अभूतपूर्व क्षमता थी। - उसने प्रवासी का जीवन व्यतीत करते हुए भी 'भुंग मेंग हुई' नामक संस्था का संगठन किया था। - पश्चात् में उसने रूस की सहायता से 'कुओमिनतांग' को संगठित करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। - यह उसके प्रयासों का ही परिणाम था कि उसकी मृत्यु के दो वर्ष के भीतर ही कुओमिनतांग सेना से सैनिक सामन्तों की शक्ति को कुचलकर रख दिया था और एक हद तक देश में एकता कायम रखने में सफलता भी प्राप्त की थी। **4. उपदेशक के रूप में** - डॉ. सेन के व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते हुए इतिहासकार जान गुन्थर ने उनकी तुलना मुहम्मद साहब से की है। - जान गुन्थर के शब्दों में “डॉ. सेन एक पैगम्बर थे। - वह एक क्रियाशील व्यक्ति थे, किन्तु उनकी विशाल दृष्टि थी, उनके द्वारा कुओमिनतांग को क्रान्ति का प्रमुख आधार बनाए जाने की, तुलना मुहम्मद के द्वारा इस्लाम की स्थापना से की जा सकती है।'' **5. सिद्धान्तवादी के रूप में** - डॉ. सुनयात सेन ने 'कुओमिनतांग' एवं चीन को राष्ट्रवाद, प्रजातन्त्र एवं सामाजिक न्याय सम्बन्धी जो सिद्धान्त दिए वे राजनीतिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण थे। - उनकी मृत्यु से पूर्व लोगों ने उसे स्वप्नदृष्टा की संज्ञा दी, परन्तु कालान्तर में उसके सिद्धान्त चीन की जनता के लिए ज्ञान एवं विवेक के स्रोत बन गए। - उनके सिद्धान्त 'सुनयात सेनवाद' के नाम से जाने गए। - उनके सिद्धान्त राष्ट्रवादियों का धर्मग्रन्थ बन गए। - इस प्रकार चीन के निर्माता के रूप में डॉ. सुनयात सेन को आज भी स्मरण किया जाता है। - चीन में कन्फ्यूशियस के पश्चात् आज तक जितना सम्मान डॉ. सेन को प्राप्त है उतना अन्य किसी को नहीं। - इसका सबसे बड़ा उदाहरण उनकी वह कब्र है जिसे आज भी राष्ट्रीय स्मारक के नाम से सम्मान दिया जाता है।

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