Chapter 3 Human Reproduction Notes PDF
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Tagore International School Jaipur
Sonu Sir
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These notes cover human reproduction, including the male and female reproductive systems. The document describes the organs and processes involved in reproduction.
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मानव जनन (Human Reproduction):- मनुष्य एकल ग िं ी प्राणी है जिसमे नर िनन तिंत्र अ ग िीव मे तथा मादा िनन तिंत्र अ ग िीव में पाया िाता हैं | ❑ नर िनन तिंत्र नर यानन Male में पाया िाता है , न िनन तिंत्र मे नर युग्मक यानन शक्र ु ाणु का ननमााण होता है । ❑ मादा िनन तिंत्र मादा य...
मानव जनन (Human Reproduction):- मनुष्य एकल ग िं ी प्राणी है जिसमे नर िनन तिंत्र अ ग िीव मे तथा मादा िनन तिंत्र अ ग िीव में पाया िाता हैं | ❑ नर िनन तिंत्र नर यानन Male में पाया िाता है , न िनन तिंत्र मे नर युग्मक यानन शक्र ु ाणु का ननमााण होता है । ❑ मादा िनन तिंत्र मादा यानन female में पाया िाता है , मादा िनन तिंत्र मे मादा युग्मक यानन अण्डाणु का ननमााण होता है । मानव जनन तंत्र (Human Reproductive System)= वे अिंग िो मानव िनन में सहायक होते हैं, मानव िनन तिंत्र कह ाते है । जिन्हें ननम्नल खित दो भागों में बााँटा गया है । 1. प्राथममक जनन अंग (primary Reproduction Organ) नर → मख् ु य िनन अिंग → वष ृ ण → जिसमे शुक्राणु बनते हैं। मादा → मख् ु य िनन अिंग → अण्डाशय → जिसमे अण्डाणु बनते है । 2. द्ववतीयक जनन अंग (Secondary Reproductive Organ) नर सहायक अंग → वष ृ ण कोष, अधिवष ृ ण, शुक्रवाहहननया, शुक्राशय, लशश्न, प्रोस्टे ट ग्रिंधथयााँ, काउपर ग्रिंधथयााँ आहद | मादा सहायक अंग → गभााशय, अण्डवाहहननयााँ, योनन, भग, स्तन ग्रिंधथयााँ आहद | मुख्य या प्राथममक अंग : वष ृ ण:- पुरुषों मे एक िोडी वष ृ ण (Testes) उदरगह ु ा से बाहर थै ीनुमा सिंरचना में पाये िाते है , जिसे वष ृ ण कोष (Scrotum) कहते हैं। वष ृ ण एक अण्डाकार 4-5 cm म्बा व 2-3 cm चौडा होता है , यह बाहर से दो खिल् ीयो से निरा होता है । आिंतररक खिल् ी वष ृ ण के अन्दर अन्तवनतात होकर 250-300 कोष्ठो का ननमााण करती है , जिसे वष ृ ण पाल यााँ कहते है । शक्र ु जनन नामिका की आंतररक संरचना वष ृ ण के अन्दर शक्र ु िनन नल काएाँ होती है इसके भीतर तीन प्रकार की कोलशकाएाँ उपजस्थत है । 1.शक्र ु ाणि ु नन कोलशकाएाँ (spermatogonia, Germ cells) 2.सरटो ी कोलशकाएाँ (Sertoli cells) 3.अन्तरा ी कोलशका ( ीडडग कोलशका) (a) शुक्राणज ु नन कोमशका – यह नर िनननक कोलशकाएिं होती है िो अर्दािसत्र ू ी ववभािन र्दवारा शक्र ु ाणु (Sperm) का ननमााण करती है । (b) सर टोिी कोमशकाएँ – यह वपरालमड आकार की कोलशका है िो बनते हुए नर यग्ु मक कोलशका को पोषण प्रदान करती है । (C) अन्तरािी कोमशका (िीड ग ं कोमशका)- वष ृ ण पाल में शुक्रिनन नल काओिं के चारों ओर अिंतरा ी अवकाश होता है । इसमे कही- कही छोटी-छोटी रक्त वाहहकाएाँ व ीडडिंग कोलशकाएिं होती है इसे ही अिंतरा ी कोलशकाएाँ भी कहा िाता है । ये टे स्टोस्टे रॉन का स्त्रावण करती है । इनकी कुछ कोलशकाएाँ प्रनतर्ा्मक भी होती है । सहायक या द्ववतीयक अंग वष ृ ण कोष → वष ृ ण जिस थै ीनुमा सिंरचना में उपजस्थत होता है उसे वष ृ ण कोष कहते हैं। वष ृ ण कोष उदर गह ु ा के बाहर इसल ए उपजस्थत होता है जिससे वष ृ ण का तापमान शरीर के तापमान से 2oC से 3oC कम हो । अधिवष ृ ण → शक्र ु वाहहकाएाँ वष ृ ण से ननक कर वष ृ ण के पश्च सतह पर अधिवष ृ ण में िु ती है । अधिवष ृ ण पत ी व म्बी नल का के अ्यधिक किंु ड न से बनी होती है । इसमें शुक्राणओ ु िं के पररपक्वन का काया होता है । शुक्रवाहक नमिका →अधिवष ृ ण के पश्च भाग से ननक कर यह शुक्रवाहक नल का उदर तक िाकर मत्र ु ाश्य से ऊपर एक प ू बनाती है । रस्खिन नमिका → उदर गह ु ा में शक्र ु ाशय से ननक ी एक नल का शक्र ु वाहक मे िु ती है । यह दोनों लम कर एक रस्ि न नल का कह ाती है । मशश्न → यह बाह्य िननें हिय है । मत्र ू नाल का लशश्न के रास्ते बाहर िु ती है । मत्र ू नल का वीया व मत्र ू दोनों का पररवहन करती है । शक्र ु ाश्य → यह एक िोडी मत्र ु ाश्य के पीछे -पीछे जस्थत होते हैं तथा ये वीया का गभग 60% बनाते है । सहायक ग्रंधथयाँ प्रोस्टे ट ग्रंधथ → यह एक सिन ग्रजन्थ है िो मत्र ू नल का के आिार के चारों ओर होती है । ये वीया का गभग 20-25% भाग बनाती है । काउपर ग्रंधथ → इसका स्त्रवण लशश्न मे स्नेहन का काया करता है । यह एक िोडी होता है | टे स्टोस्टे रॉन → यह नर हामोन है । िो अन्तरा ी कोलशका से स्त्राववत होता है । यह नर िनन अिंगों के ववकास व शुक्राणु पररपक्वन में सहायक है । स्त्री जनन तंत्र (Female Reproductive System) स्त्री िनन तिंत्र िनन प्रक्रक्रया के अनतररक्त भी कई कायों का ननवााहन करती है , िैसे ननषेचन, भ्रण ू का ववकास,. गभािारण, दग्ु िन आहद। स्त्री िनन तिंत्र के भाग है प्राथममक या मख् ु य अंग अण् ाशय यह मादा का प्राथलमक धैं गक अिंग है , िो मािंदा यग्ु मक (अण्ड) का ननमााण व स्टीरॉइड हामोन का उ्पादन करता है । उदर के नीचे दोनों ओर एक- एक अण्डाशय (एक िोडी) होते हैं। प्र्येक अण्डाशय 2 से 4 cm म्बी 1.5 cm चौडी तथा गभग 1 cm मोटी बादाम के आकार की सिंरचना होती है यह श्रोखण लभवि (Pelvic wall) से ल गामेट र्दवारा उदरीय गह ु ा मे टके होते है । प्र्येक अण्डाशय बाहर की ओर एक पत ी िनन एपीथील यम सें स्तररत होता है । व अन्दर अण्डाश्य पीहठका (stroma) होती है । जिसमे दो भाग है - पररिीय (cortex), केन्िीय (Medulla) | अण्डाश्य के मेड्यू ा भाग में अनेक अण्डाकार गो रचनाएाँ बबिरी होती है, इसे प्राथलमक पुहटकाएाँ (primary follicles) या अण्डाश्य पहु टकाएाँ कहते हैं। प्राथलमक पहु टकाएाँ पररपक्व होकर ग्राक्रियन िॉल क बनाती है । सहायक अंग अण् वाहहनी यह एक िोडी, पेशीय व नल काकार होती है । यह अण्डाश्य से गभााश्य तक इसकी गह ु ा पक्ष्माभी एपीथील यम से स्तररत होती हैं। प्र्येक अण्डवाहहनी में तीन भाग है । (i) कीपक (Infindibulam) (ii) तुजम्बका (Ampulla) (iii) सिंकीणा पथ (Isthmus) गर्ााश्य मादा मे. केव एक गभााश्य पाया िाता है । जिसे बच्चेदानी कहते है । यह 8 cm म्बी, िोि ी, पेशीय होती है । इसमें रक्त की प्रचरु मात्रा में पनू ता होती है । यह भी श्रोखण लभवि से ल गामेन्ट र्दवारा िड ु ी होती है । इसका ऊपरी भाग िै ोवपयन नल का मे िु ता है व नीच ा सिंकीणा भाग गभााशय ग्रीवा (Cervix) कह ाता है । गर्ााश्य मर्वि के तीन स्तर होते है – (a) पत ा खिल् ीमय – पररगभााशय (b) मध्य मोटा – गभााशय पेशी स्तर मध्य (c) आन्तररक ग्रजन्थ स्तर – अन्तः स्तर योनन गभााशय पत ी ग्रीवा र्दवारा योनन में बद ता है । योनन मैथुन के समय से पुरुष से वीया ग्रहण करने का काया करती है । बाह्य जननांग(External Organ) स्त्री मे वह ृ त ओष्ठ, िु ओष्ठ, हाइमन व भगशेि स्त्री के बाह्य िननािंग हैं। स्थन ग्रिंधथ स्तन ग्रजन्थ सभी मादा स्तनिाररयों का अलभ ्ण है । स्तनों मे ववलभन्न मात्रा मे वसा व ग्रजन्थ ऊतक होते है । प्र्येक स्तन में 15-20 मे ग्रजन्थ ऊतक की पाल यााँ होती है । प्र्येक पाल मे कुवपका कोलशकाओिं के समह ू होते हैं। यह कूवपका दग्ु ि स्त्रावण करती है । कूवपका से दग्ु ि स्त्राववत होकर स्तन नल काओ मे िाता है । प्र्येक पाल की स्तन नल काएाँ लम कर स्तनवाहहनी बनाती है । प्र्येक स्तनवाहहनी तजु म्बका बनाती है िो दग्ु ि वाहहनी से िड ु ा होता है । यग्ु मक जनन (Gametogenesis) िनननक एवपधथल यम की कोलशकाओिं र्दवारा युग्मक ननमााण की क्रक्रया को युग्मकजनन (Gametogenesis) कहते हैं। नर मे यग्ु मकों के ननमााण की क्रक्रया को शक्र ु जनन (Spermatogenesis) कहते है । मादा मे यग्ु मकों के ननमााण की क्रक्रया को अण् जनन (Oogenesis) कहते है । शक्र ु जनन (Spermatogenesis) वष ृ ण में जस्थत र्दववगखु णत िनननक एवपधथल यम कोलशकाओिं जिन्हें स्पमेटोगोननया (spermalogonia) कहते हैं, मे अर्दािसत्र ू ी ववभािन र्दवारा अगखु णत, कायाशी शक्र ु ाणओ ु िं का ननमााण शक्र ु जनन कह ाता है । यह प्रक्रक्रया शुक्रिनन नल काओिं में होती है । इस प्रक्रक्रया को दो र्ागो मे बाँटा गया है । 1.शुक्राणु प्रसू या स्पमेहटड (spermatids) का ननमााण | 2.स्पमेहटक का शुक्राणओ ु िं (Sperm) मे रुपान्तरण अथाात शुक्राणि ु नन या स्पलमायोिेनेलसस (Spermiogenesis) | 1. शक्र ु ाणु प्रसू या स्पमेहटङ का ननमााण:- यह क्रक्रया िनन का मे प्रारम्भ होती है । इसे ननम्नप्रावस्था में बााँटा गया है । (i) गण ु न प्रावस्था (Multiplication Phase):- िनननक एवपधथल यम की कुछ कोलशकाएाँ आकार मे बडी होकर अन्य कोलशकाओिं से लभन्नता प्रकट करती है , इन्हें प्राथलमक िनन कोलशका कहते हैं, इसमें कई बार समसत्र ू ी ववभािन होता है , जिसके ि स्वरूप spermatogonia (शक्र ु जनन कोमशका) का ननमााण होता है । (ii) वद् ृ धि प्रावस्था (GrowthPhase):- इस प्रावस्था मे स्पमेटोगोननया कोलशका वर्द ृ धि करके प्राथलमक शक्र ु ाणु कोलशका या प्राइमरी स्पमेटोसाइट (primary spermatocyte) में बद िाती है । (iii) पररपक्वन प्रावस्था (Maturation Phase) → इस प्रावस्था मे प्राइमरी स्पमेटोसाइट कोलशका मे अिासत्र ू ी ववभािन होता है । अिासत्र ू ी ववभािन के पह े चरण में प्राइमरी स्पमेटोसाइट से दो अगखु णत (n) कोलशकाओिं का ननमााण होता है । इसके बाद अर्दािसत्र ू ी ववभािन का दस ू रा चरण सम्पन्न होता होता है । जिससे एक प्राइमरी स्पमेटोसाइट से चार स्पमेहटड्स का ननमााण होता है । शक्र ु ाणु की संरचना प्र्येक शक्रु ाणु पत े व म्बे होते हैं, जिन्हें केव सक्ष् ू मदशी से की सहायता से दे िा िा सकता है । इसके ननम्नल खित भाग होते हैं। 1. Head:- यह शक्र ु ाणओ ु िं का शीषा भाग होता है जिसमें बडा तथा अगखु णत केन्िक होता है , जिसके आगे एक टोपीनम ु ा सिंरचना होती है जिसे एक्रोसोम कहते है । यह ननषेचन के समय अण्डाणु के खिल् ी को नष्ट करता है । 2. Nack:- यह छोटा भाग होता है , इसमे दो तारकेंन्ि होते हैं:- (a). अग्रस्थ तारकेन्ि (b). इरस्त तारकेन्ि 3. Middle part:- इस भाग को शक्र ु ाणओ ु िं का शजक्तग्रह कहते हैं, इसमे सक्ष् ू म नल काएिं होती है जिसमे माइट्रोकाडिया पाये िाते हैं। िो शक्र ु ाणओ ु िं को गनत प्रदान करने के ल ए ऊिाा दे ते हैं। 4. Tail:- यह शुक्राणु का अजन्तम म्बा भाग है िो िीव ि्य की खिल् ी से बना होता है । अण् जनन (Oogenesis) अण्डाशय में जस्थत र्दववगखु णत अण्ड मातक ृ ोलशका या ऊगोननया से अर्दािसत्र ू ी ववभािन र्दवारा अगखु णत पररपक्व मादा यग्ु मक का ननमााण अण्डिनन कह ाता है । एक स्त्री के अण्डाश्य मे अण्डिनन की प्रक्रक्रया तब ही प्रारम्भ हो िाती है । िब वह स्त्री अपने मााँ के गभा में होती है । इसी भ्रण ू ीय अण्डाश्य मे कई अवस्था होती है । a. गण ु न प्रावस्था (Multiplication Phase) –इस अवस्था में अण्डाशय की िनननक एवपधथल यम की कुछ कोलशकाएाँ आकार एविं आकृनत में बडी हो िाती है । जिसमें कई बार समसत्र ू ी ववभािन होता है जिससे ऊगोननया (अण्डिननी) कहते है । लशशु िन्म के समय पहु टकाओिं की सिंख्या 20 से 20 ाि होती हैं इसमें से गभग 400 से 450 प्राथलमक ऊसाइट मे ववकलसत हो पाती है । b. वद् ृ धि प्रावस्था (Growth phase)-यह प्रावस्था म्बी होती हैं, िो भ्रण ू ावस्था से प्रारम्भ हो िाती है और िब तक पररपक्वन अवस्था नहीिं आती तब तक ये बनी रहती है ।इस प्रावस्था मे ऊगोननया की कोलशकाएाँ पोषक त्वों को ग्रहण करके आकार में बडी हो िाती है इनका केन्िक भी आकार में बडा हो िाता है । c. पररपक्वन प्रावस्था(Maturation Phase)- वर्द ृ धि प्रावस्था के बाद बनी कोलशका को प्राथलमक ऊसाइट कहते हैं, जिनमें अिासत्र ू ी (I) के ि स्वरूप एक छोटी तथा एक बडी कोलशका बनती है । छोटी कोलशका को ध्रुवीय केन्िक तथा बडी कोलशका को र्दववतीयक ऊसाइट कहते है । पुनः इन कोलशकाओिं मे अिासत्र ू ी ववभािन (II) के ि स्वरूप एक बडी अण्ड कोलशका बनती है तथा तीन ध्रव ु ीय केन्िक बनते है िो प्रायः नष्ट हो िाते हैं। अिासत्र ू ी (I) अण्डो्सगा के समय होता है । िबक्रक अिारत्री (II) ननषेचन के समय होता है । अण् ाणु की संरचना अण्डाणु के मध्य मे एक केन्िक (n) पाया िाता है । अण्डाणु के चारो ओर एक परत पाई िाती है जिसे िोना – पेल्युलसडा कहते है । बाहर की ओर एक और परत होती है जिसे कोरोना रे डडएटा कहते है । आताव चक्र / रजोिमा (Menstrual cycle) मादा मे रिोिमा यौवनारम्भ प्रारम्भ होने पर प्रारम्भ होता है । यह 12 से 13 वषा के आयु का में प्रारम्भ होता है तथा 45 से 50 की आयु तक समाप्त हो िाता है । ननषेचन न होने की दशा में गभााशय के दीवार तथा अण्डाशय में चक्रीय पररवतान होता है , इस चक्र को मालसक चक्र कहते है । यह गभग 28 हदन का होता है । इसके बाद रुधिर का स्त्राव शरू ु हो िाता है , इसी रुधिर के साथ अननषेधचत नष्ट हो चुका अण्डा भी योनन मागा से बाहर आता है , इसे मालसक िमा कहते हैं। रुधिर स्त्राव गभग 4 से 5 हदनों तक होता है । क्रकसी बाल का के िीवन का में प्रथम बार रिोिमा होने की ििंटना को रजोदशान (Menarche) कहते है । मादा मे स्थायी रूप से मालसक चक्र को रुकने को सिोननवनृ त (Menopause) कहते है । FSH, LH हामोन के ननयिंत्रण से ही यह प्रक्रक्रया होती है । ननषेचन (Fertilization) नर यग्ु मक (शक्र ु ाण)ु के मादा यग्ु मक (अण्डाणु ) के साथ सिं यन से यग्ु मनि (2n) बनने की क्रक्रया को ननषेचन कहते है । ननषेचन के ल ए नर मैथन ु क्रक्रया र्दवारा sperm को मादा िनन पथ पर स्िल त करता है । मनुष्य मे आन्तररक ननषेचन होता है । ननषेचन की क्रक्रया िै ोवपयन नल का मे होती है । शुक्राणु गनत करते हुए अण्डाणु तक पहुाँचते हैं। अण्डाणु के कोलशका िव्य में उपजस्थत अगखु णत केन्िक के साथ शुक्राणु मे उपजस्थत अगखु णत केन्िक लम ता है , जिसके ि स्वरूप (2n) गणु णत यग्ु मनज का formation होते हैं। ननषेचन का महत्व ननषेचन र्दववतीयक अण्डक को अिासत्र ू ी ववभािन II पण ू ा करने के ल ए प्रेररत करता है । ननषेचन र्दववगखु णत अवस्था (अथाात मनुष्य मे 2n=46) की पुनस्थाापना करता है । यह दो िनको के गण ु ों को लम ाकर आनुवािंलशक वववविता पैदा करता है । प्रारम्भर्क ववदिन व अन्तरोपण(Primary Cleavage And Implantation) ननषेचन के बाद यग्ु मनि अण्डवाहहनी के इस्थमस वा े ्ेत्र से होता हुआ गभााशय की ओर गनत करता है । अण्डवाहहनी के सील या युग्मनि को अण्डवाहहनी मे गभााशय की हदशा मे िके ने का काया करते है । इसी गनत के दौरान युग्मनि में ववद न होते रहते है । 8 से 16 कोरक िण्डो (Blastomears) वा ा भ्रण ू तूतक या मोरु ा कह ाता है । ट्रोिोब् ास्ट स्तर अब गभााशयी लभवि के आन्तररक स्तर एण्डोमेहट्रयम सें सिं ग्न हो िाता है तथा अिंतर कोलशका समह ू अब भ्रण ू के रूप मे ववभेहदत हो िाता है । ब् ास्टोलसस्ट के सिं ग्न होने पर गभााशयी कोलशकाएिं तेिी से ववभाजित होकर ब् ास्टोलसस्ट को ढक ेती है । इसके ि स्वरूप ब् ास्टोलसस्ट गभााशय की एण्डोमेहट्रयम मे िाँस िाती है या अन्त: स्थावपत हो िाती है । यही अन्तारोपण कह ाता है । प्रसव (Parturition) मनुष्य में लशशु का िन्म तकनीकी रूप से प्रसव या पारट्यूररशन कहा िाता है । इसकी तीन मख् ु य अवस्थाएाँ होती है 1.पह ी अवस्था में गभााशयी ग्रीवा मे िै ाव या प्रसरण लशशु को बाहर आने का मागा सु भ कराता है । एजम्नऑन इस समय िट िाती है त एजम्नयोहटक िव बाहर आने गता है । 2.दस ू री अवस्था लशशु िन्म की है । लशशु के स्वतः श्वसन प्रारम्भ कर दे ने के बाद नालभना काटा िाता है । 3.तीसरी अवस्था मे अपरा भी गभााशय से योनन के रास्ते बाहर ननक आता है । प्रसव एक जहटि तंत्रत्रकीय- अंतस्त्रावी क्रक्रयाववधि है । दग्ु ि स्त्रावण या िैक्टे शन सिंगभाता के समय स्त्री की स्तन ग्रजन्थयो मे अनेक बद ाव होते है तथा स्तन ग्रिंधथयों में हुए लभन्नन के कारण यह सगभाता की समाजप्त के आने पर दग्ु ि स्त्रावण प्रारम्भ कर दे ती है । लशशु के िन्म के बाद स्तन ग्रिंधथयों र्दवारा दग्ु ि का उ्पादन व स्ताविंण ; दग्ु ि स्त्रावण कह ाता हैं। मानवीय दि ू मे लशशु के पोषण के ल ए पोषक पदाथों का आदशा सिंतु न होता है । दग्ु ि स्त्रावण के आरजम्भक कुछ हदनों तक ननक ने वा ा दग्ु ि प्रथम स्तन्य या िीस कह ाता है ।