झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी - बिरसा मुंडा PDF

Summary

यह दस्तावेज़ झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी, बिरसा मुंडा के बारे में जानकारी प्रदान करता है। इसमें बिरसा मुंडा का जीवन, उनके जन्म की तिथि, आदिवासी/जनजातीय गौरव दिवस और उनके योगदान के बारे में विवरण शामिल हैं।

Full Transcript

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झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी Analyze4u App link https://sxawr.onapp.in/app/home?orgCode=sxawr&referrer=utm_source=copylink&utm_medium=tut or-app-referral3 1. बिरसा मंडा BIRSA MUNDA जन्म - रांची जजला के खंटी अनमंडल के तमाड़ थाना के उललहात गांव में - 15 नवंिर 1875 ई बिरसा मंडा के जन्म दिवस 15 नवंिर 2000 को झारखंड राज्य का ननमााण हआ था | बिरसा मंडा को धरती आिा के नाम से जाना जाता है बिरसा मण्डा के जन्मदिवस को केन्र सरकार ने वर्ा 2021 से आदिवासी/जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोर्णा की है । 15 नवंिर, 2021 को रााँची जेल पररसर में 'भगवान बिरसा मण्डा स्मनृ त उद्यान सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय' का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरे न्र मोिी द्वारा वीडडयो कॉफ्रेंलसंग के माध्यम से ककया गया। इनका जन्म सोमवार को हआ था परं त पररवार द्वारा िह ृ स्पनतवार के आधार पर इनका नाम बिरसा रखा गया। ✓ िचपन का नाम - िाउि मण्डा ✓ पपता का नाम - सगना मण्डा था ✓ माता का नाम - किमी मण्डा ✓ िड़े भाई का नाम - कोन्ता मण्डा ✓ प्रारं लभक लिक्षक का नाम - जयपाल नाग ✓ धालमाक गरू का नाम - आनंि पाण्डे [वैष्णव पंथ ] ✓ प्रारं लभक लिक्षा - जमान एवेंजेललकल चचा द्वारा संचाललत पवद्यालय बिरसा मण्डा झारखण्ड के प्रमख आदिवासी नेता थे। इन्होने 1895-1900 ई. के उलगलान पवरोह को नेतत्ृ व प्रिान ककया। डोम्िारी िरू पहाड़ बिरसा आंिोलन का प्रमख केन्र-बिन्ि था। यह झारखंड के खंटी जजले में जस्थत है | यहां 9 जनवरी 1899 ई में एक हत्याकांड अंग्रेजों द्वारा ककया गया था जि बिरसा मंडा अपने अनयानययों के साथ यहां सभा कर रहे थे | 1895 ई. में बिरसा मण्डा ने स्वयं को लसंगिोंगा का ित घोपर्त कर दिया। बिरसा मण्डा ने एक नये पंथ बिरसाइत पंथ की िरूआत की । इसमें अनेक िे वी-िे वताओं के स्थान पर केवल लसंगिोंगा की अराधना (एकेश्वरवाि) पर िल दिया गया। बिरसा मण्डा ने अदहंसा का समथान करते हए पि िलल का पवरोध ककया तथा हडड़या सदहत सभी प्रकार के मद्यपान के त्याग का उपिे ि दिया। अपने उपिे िों में बिरसा ने जनेऊ (यज्ञोपवीत) धारण करने पर िल दिया। 1895 ई. में बिरसा को अंग्रेज सरकार द्वारा र्ड़यंत्र रचने के आरोप में 2 वर्ा की जेल तथा 50 रुपये जमााने की सजा लमली थी। बिरसा मण्डा को जी. आर. के. मेयसा (डडप्टी सपररटे न्डेट) द्वारा गगरफ्तार ककया गया था। जमााना न चकाने के कारण सजा की अवगध को 6 माह के ललए पवस्ताररत कर दिया गया था। 1897 में उन्हें हजारीिाग जेल से ररहा कर दिया गया था 1900 ई. में उन्हें पनः गगरफ्तार ककया गया तथा 9 जन, 1900 ई. को रााँची जेल में है जा नामक िीमारी से बिरसा की मत्ृ य हो गयी। झारखण्ड के एकमात्र आदिवासी नेता बिरसा मण्डा हैं जजनका गचत्र संसि के केन्रीय कक्ष में लगाया गया है । प्रलसद्ध उपन्यासकार महाश्वेता िे वी ने बिरसा मण्डा के जीवन को आधार िनाकर 1975 ई. में 'अरण्येर अगधकार' (जंगल का अगधकार) नामक उपन्यास की रचना की है । He was born on November 15, 1875, in Ulihatu village of Tamar police station in Khunti subdivision of Ranchi district. The state of Jharkhand was formed on 15 November 2000, the birthday of Birsa Munda. Birsa Munda is popularly known as Dharti Aba The Central Government has announced to celebrate the birthday of Birsa Munda as Tribal/ Tribal Pride Day from the year 2021. On November 15, 2021, the 'Bhagwan Birsa Munda Memorial Garden Freedom Fighters Museum' was inaugurated by Prime Minister Narendra Modi in Ranchi jail premises through video conferencing. He was born on Monday but was named Birsa by the family on Thursday. Childhood Name - Dawood Munda Father's Name was Sugna Munda Mother's Name - Kadmi Munda Elder Brother's Name - Konta Munda Name of The Elementary Teacher - Jaipal Nag Name of religious guru - Anand Pandey [Vaishnav panth ] Early Education - Schools run by the German Evangelical Church Birsa Munda was a prominent tribal leader of Jharkhand. He was born from 1895-1900. K. Ulgulan provided leadership to the rebellion. Dombari Buru Pahar was the main focal point of the Birsa movement. It is located in khunti district of Jharkhand. Here on 9 January 1899 AD, a massacre was committed by the British when Birsa Munda was meeting here with his followers. 1895 Birsa Munda declared himself the ambassador of Singbonga. Birsa Munda started a new sect Birsait Panth. In this, the emphasis was only on the worship of Singbonga (monotheism) in place of many gods and goddesses. Birsa Munda, while supporting non-violence, opposed animal sacrifice and preached the renunciation of all types of alcohol, including hadiya. In his sermons, Birsa emphasized on wearing janeu (yajnopavita). 1895 Birsa was sentenced to two years in jail and a fine of Rs 50 for conspiracy by the British government. Birsa Munda R. K. Meyers was arrested by (Deputy Superintendent). Due to non-payment of fine, the sentence period was extended for 6 months. In 1897, he was released from Hazaribagh jail 1900 A.D. He was arrested again on June 9, 1900. Birsa died of cholera in Ranchi jail. The only tribal leader from Jharkhand is Birsa Munda , whose portrait has been installed in the Central Hall of Parliament. Famous novelist Mahasweta Devi based the life of Birsa Munda in 1975 AD. He has written a novel titled 'Aranyar Adhikar' (Right to the Forest). 2. नतलका मााँझी नतलका मााँझी अंग्रेजों के पवरूद्ध पवरोह करने वाले प्रथम आदिवासी थे। अतः उन्हें 'आदि पवरोही' भी कहा जाता है । नतलका मााँझी का िसरा नाम जिरा पहाडड़या था। जन्म- 11 फरवरी, 1750 [ संथाल पररवार (मम)ा जनजानत] जन्म स्थान - नतलकपर गााँव (सल्तानगंज, भागलपर) पपता - सि ं रा ममा पवरोह का प्रारं भ - वनचरीजोर (भागलपर) से अंग्रज े ों के पवरूद्ध पवरोह साल पत्ता इस पवरोह का प्रतीक गचह्न था जजसके द्वारा घर-घर संिेि भेजकर संथालों को संगदित ककया गया। नतलका मााँझी ने जललवलैंड को 13 जनवरी को एक ताड़ के पेड़ पर िैिकर तीर से मार गगराया था। आयरकट के नेतत्ृ व में अंग्रज े ी सेना ने नतलका मांझी के अनयानययों पर हमला िोल दिया। नतलका मांझी िचकर भाग ननकला और सल्तानगंज की पहाडड़यों में जा निपा। 1785 ई. में नतलका मांझी को धोखे से पकड़ ललया गया और उसे रस्सी से िााँधकर चार घोड़ों द्वारा घसीटते हए भागलपर लाया गया, जहााँ उसे िरगि के पेड़ पर लटका कर फााँसी िे िी गई। वह स्थान आज 'नतलका मांझी चौक के नाम से जाना जाता है । झारखण्ड के स्वतंत्रता सेनाननयों में सवाप्रथम िहीि होने वाले स्वतंत्रता सेनानी नतलका मााँझी हैं। नतलका मााँझी के नाम पर ही 1991 में भागलपर पवश्वपवद्यालय का पनः नामकरण नतलका मााँझी भागलपर पवश्वपवद्यालय के रूप में ककया गया। Tilka Manjhi was the first tribal to revolt against the British. Therefore, he is also called 'Adi Vidrohi'. Tilka Manjhi's other name was Jabra Paharia. Born- February 11, 1750 [Santhal family (Murmu) tribe] Place of Birth - Tilakpur Village (Sultanganj, Bhagalpur) Father - Sundara Murmu Beginning of rebellion - Rebellion against the British from Vancharijor (Bhagalpur) Sal Patta was the symbol of this rebellion by which the Santhals were organized by sending messages from house to house. Tilka Manjhi killed Cleveland with an arrow while sitting on a palm tree on January 13. Under the leadership of Ayrakoot, the English army attacked the followers of Tilka Manjhi. Tilka Manjhi escaped and hid in the hills of Sultanganj. 1785 A.D. Tilka Manjhi was fraudulently captured and tied with a rope and dragged by four horses to Bhagalpur, where he was hanged from a banyan tree. That place is today known as 'Tilka Manjhi Chowk'. Among the freedom fighters of Jharkhand, the first freedom fighter to be martyred is Tilka Manjhi. Bhagalpur University was renamed as Tilka Manjhi Bhagalpur University in 1991 after the name of Tilka Manjhi. 3.लसद्ध-कान्ह SIDHO KANHO 1855-56 में संथाल पवरोह का नेतत्ृ व चार ममा नेताओं लसद्ध कान्ह, चााँि तथा भैरव ने ककया। लसद्ध का जन्म - 1815 ई. कान्ह का जन्म - 1820 ई. चााँि का जन्म - 1825 ई. भैरव का जन्म 1835 ई. पपता - चन्नी मााँझी 30 जन, 1855 को भोगनाडीह (संथाल परगना जजलान्तगात राजमहल सिडडवीजन के िामीन इलाकों के मध्य िरहे ट के ननकट ममा िंधओं का गााँव) की सभा में 6000 संथाल एकत्र हए और एक स्वर से पवरोह ('हल') का ननणाय ललया। इस सभा में लसद्ध (लसिो) को राजा एवं कान्ह (कान) को मंत्री चना गया। लसद्ध ने गजाना की 'करो या मरो, अंग्रज े ों हमारी माटी िोड़ो'। जल्ि ही यह पवरोह भागलपर से विा वान तक के पवस्तत ृ क्षेत्र में फैल गया अंग्रेजों द्वारा संथाल पवरोह के पवरूद्ध कारा वाई में चााँि तथा भैरव की गोली लगने से मौत हई और लसद्ध तथा कान्ह को गगरफ्तार कर फााँसी िी गई। लसद्ध की पत्नी का नाम समी था। In 1855-56, the Santhal rebellion was led by four Murmu leaders Sidhu Kanhu, Chand and Bhairav. Sidhu was born in 1815. Kanhu was born in 1820. Birth of the Moon - 1825 AD Bhairav was born in 1835 AD. Father - Chuni Manjhi On June 30, 1855, 6000 Santhals gathered at the meeting of Bhognadih (the village of Murmu brothers near Barhet in the middle of Damin areas of Rajmahal subdivision under Santhal Pargana district) and decided to revolt in one voice. In this meeting, Sidhu (Sido) was elected king and Kanhu (Kanu) was elected minister. Sidhu roared, 'Do or die, The British leave our soil'. Soon the rebellion spread over a wide area from Bhagalpur to Burdwan. In the action against the Santhal rebellion by the British, Chand and Bhairav were shot dead and Sidhu and Kanhu were arrested and hanged. Sidhu 's wife's name was Sumi. 4. फूलो और झानो Phoolo-Jhano Chand, Bhairav Sidhu and Kanhu were the brothers of Phoolo and Jhano. Jhano played an important role in the Santhal Rebellion of 1855–1856. Hul i.e. Santhal Revolt in Jharkhand was the first such movement in the world, in which women like Phoolo-Jhano had participated. Born - Bhoganadih village of Santhal Pargana. father’s name - Chunni Murmu.. On June 30, 1855, at the Bhaganadih meeting, Sidhu was chosen as Raja, Kanhu as minister, Chand as administrator, Bhairava as commander and Phoolo Jhano as key allies. Sidhu, asked Phoolo-Jhano to walk from village to village and the villagers should be ready for Santhal Rebellion. On 7 July 1855, the tyrannical Mahesh Lal and Pratap Narayan of Jangipura were killed. Phoolo-Jhano had a big hand in it. Phoolo-Jhano used to go from village to village by sitting on horses and asked people to join them when ever got a chance, the British they would pick up the soldiers and kill them. After Sidhu-Kanhu were injured in the Maheshpur encounter, Santhal rebellish was succeeded by Phoolo-Jhano. 1. चंद, भैरव सिद्धू और कान्हू फूलो और झानो के भाई थे। 2. झानो ने 1855-1856 के िंथाल ववद्रोह में महत्वपूर्ण भूसमका ननभाई। 3. झारखंड में हूल यानी िंथाल ववद्रोह दनु नया का पहला ऐिा आंदोलन था, जििमें फूलो-झानो िैिी महहलाओं ने हहस्िा सलया था. 4. िन्म - िंथाल परगना का भोगनाडीह गांव। 5. वपता का नाम - चन् ु नी मुम।ूण. 6. 30 िून, 1855 को भागनाडीह बैठक में, सिद्धू को रािा के रूप में , कान्हू को मंत्री के रूप में, चंद को प्रशािक के रूप में , भैरव को कमांडर के रूप में और फूलो झानो को प्रमख ु िहयोगगयों के रूप में चुना गया था। 7. सिद्धू ने फूलो-झानो को गांव-गांव चलने और ग्रामीर्ों को िंथाल ववद्रोह के सलए तैयार रहने को कहा। 7 िल ु ाई 1855 को िंगीपुरा के अत्याचारी महे श लाल और प्रताप नारायर् की हत्या कर दी गई। इिमें फूलो-झानो का बडा हाथ था। फूलो-झानो घोडों पर बैठकर गांव-गांव िाते थे और लोगों िे कहते थे कक मौका समलने पर उनके िाथ शासमल हो िाएं, अंग्रेि िैननकों को उठाकर मार दें गे। महे शपुर मुठभेड में सिद्धू-कान्हू के घायल होने के बाद, िंथाल को कफर िे बहाल करने के बाद फूलो-झानो ने उनकी िगह ली। 5. भागीरथ मााँझी BHAGIRATH MANJHI भागीरथ मााँझी का जन्म गोंडा जजले के तलडीहा (गोड्डा) में खरवार जनजानत में हआ था। भागीरथ मााँझी को लोक प्रेम पवाक िािाजी के नाम से भी पकारते थे भागीरथ मााँझी ने 1874 ई. में खरवार आंिोलन का प्रारं भ ककया। प्रारं भ में यह आंिोलन एकेश्वरवाि तथा सामाजजक सधार की लिक्षा के प्रसार पर केंदरत था, परन्त िाि में यह आंिोलन राजस्व िन्िोिस्ती के पवरुद्ध एक जन आंिोलन में पररणत हो गया। उन्होंने घोर्णा की कक उन्हें लसंगिोंगा का ििान हआ है और लसंगिोंगा ने उन्हें िााँसी गांव का राजा ननयलत ककया है । इसललए उन्होंने स्वयं को राजा घोपर्त ककया और बिदटि सरकार, जमींिार को कर नहीं िे ने की घोर्णा की। उन्होंने लोगों पर लगान तय ककए और उन्हें रसीि दिये तथा लगान की वसली करना िरू कर दिया। उनकी इस हरकत के कारण उन्हें गगरफ्तार कर ललया गया। नवम्िर, 1877 ई. में उन्हें ररहा कर दिया गया। 1879 ई. में उनकी मत्ृ य हो गई। Bhagirath Manjhi was born in the Kharwar tribe at Taldiha (Godda) in Gonda district. Bhagirath Manjhi was also affectionately called Babaji by the people Bhagirath Manjhi was born in 1874. He started the Kharwar movement. Initially, this movement focused on spreading the teachings of monotheism and social reform, but later this movement turned into a mass movement against the revenue settlement. He announced that he had a vision of Singbonga and that Singbonga had appointed him the king of Bansi village. So he declared himself king and announced that the British government would not pay taxes to the landlord. They fixed taxes on people and gave them receipts and started collecting the taxes. Due to his act, he was arrested. November 1877 They were released in 2008. 1879 He died there. 6. जतरा भगत JATRA BHAGAT (1888-1916 ई०) इनका वास्तपवक नाम जतरा उरााँव था ककं विन्ती है कक जि जतरा हे सराग गााँव के श्री तरीया भगत से ओझा का प्रलिक्षण ले रहे थे तो 1914 ई. में उन्हें अचानक आत्मिोध (आत्म ज्ञान) हआ। जतरा उरााँव जतरा भगत कहलाने लगे। जन्म- 2 अलटिर, 1888 ई. को गमला जजले के पविनपर प्रखंड के गचंगरी नावाटोली गााँव के एक उरााँव पररवार में ये टाना भगत आंिोलन के जनक थे| पपता - कोहरा भगत माता - ललवरी भगत पत्नी - िधनी भगत उन्होंने अप्रैल, 1914 ई. में टाना भगत आंिोलन का आरं भ ककया। यह एक प्रकार संस्कृतीकरण आंिोलन (Sanskritization Movement) था। अपने अनयानययों को मजिरी करने से रोकने के अपराध में जतरा भगत को उसके सात अनयानययों के साथ गमला के अनमंडल पिागधकारी की कचहरी में उपजस्थत ककया गया। 1916 ई. में जतरा भगत को एक वर्ा की सजा हई। िाि में उसे इस िता पर िोड़ा गया कक वह अपने नये लसद्धांतों का प्रचार नहीं करे गा और िांनत िनाये रखेगा। ककन्त जेल में लमली घोर प्रताड़ना के फलस्वरूप जेल से िाहर आने के िो महीने के भीतर ही उनकी मत्ृ य हो गई। जतरा भगत के आििों से अनप्राणणत टाना भगतों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग ललया। स्वतंत्र होने पर 1948 ई. में सरकार ने टाना भगत रै यत कृपर् भलम पनवाापसी अगधननयम पाररत ककया । His real name was Jatra Oraon Legend has it that when Jatra was taking training in Ojha from Shri Turiya Bhagat of Hesrag village, he was born in 1914 AD.He suddenly had self-realization (self-knowledge). Jatra Oraon came to be known as Jatra Bhagat. He was born on October 2, 1888. In a Oraon family of Chingari Navatoli village in Bishunpur block of Gumla district. He was the father of the Tana Bhagat movement. Father - Kohra Bhagat Mother - Livery Bhagat Wife - Budhni Bhagat He was born in April 1914. He started the Tana Bhagat movement. It was a kind of culturalization movement. Jatra Bhagat was produced in the court of the sub-divisional officer of Gumla along with seven of his followers for preventing his followers from working as labourers. 1916 Jatra Bhagat was sentenced to one year in prison. He was later released on the condition that he would not preach his new principles and maintain peace. But as a result of the severe torture he received in jail, he died within two months of coming out of jail. Inspired by the ideals of Jatra Bhagat, Tana Bhagats participated in the freedom struggle. After independence in 1948. The Government passed the Tana Bhagat Rayat Agricultural Land Return Act. 7. गंगा नारायण लसंह (मत्ृ य 1833 ई.) GANGA NARAYAN SINGH गंगा नारायण लसंह का जन्म िड़ाभम (वीरभम ) राज पररवार में हआ था। उन्होंने 1832-33 ई. में मानभम में हए भलमज आदिवालसयों के पवरोह का नेतत्ृ व ककया। इनतहासकारों ने इसे चआड़ पवरोह के नाम से भी ललखा है अंग्रेजों ने इस पवरोह को 'गंगा नारायण का हं गामा' की संज्ञा िी। यह पवरोह िड़ाभम राजा एवं उसके िीवान, पललस अगधकाररयों, मंलसफ, नमक िारोगा तथा अन्य दिकओं के पवरुद्ध था । 7 फरवरी, 1833 ई. को गंगा नारायण लसंह खरसव के िाकर चेतन लसंह के सैननकों के हाथों मारे गए। Ganga Narayan Singh was born in the Barabhum (Birbhum ) royal family. He died in 1832-33. He led the revolt of bhumij tribals in Manbhum. Historians have also written it as the Chuad Rebellion. The British called this rebellion 'Ganga Narayan's uproar'. This revolt was against the King of Badabhum and his diwans, police officers, munsif, salt daroga and other dikus. February 7, 1833 Ganga Narayan Singh was killed by the soldiers of Thakur Chetan Singh of Kharsaw. 8. रघनाथ महतो RAGHUNATH MAHTO जन्म - सरायकेला-खरसावां के नीमडीह प्रखंड के घदटवाडीह गााँव में रघनाथ महतो ने चआर पवरोह के प्रथम िौर का नेतत्ृ व ककया। 1769 ई. में नारा -: 'अपना गााँव अपना राज, िर भगाओ पविे िी राज'। उन्होंने अपने सहयोगगयों के साथ िापामार पद्धनत से पवरोह अलभयान चलाकर अंग्रेजों के नाक में िम कर दिया। लेककन अंततः जि वे 1778 ई. में लोटागााँव के समीप सभा कर रहे थे, तो अंग्रेजों के सैननकों द्वारा की गई गोलीिारी में गोली लगने से उनकी मत्ृ य 1778 ई में हो गई। ❖ क्या होता है गुरिल्ला युद्ध गुरिल्ला एक युद्ध पद्धतत है। इसको आम भाषा में छापामाि युद्ध भी बोला जाता है। गुरिल्ला (Guerrilla) स्पेनिश भाषा का शब्द है। जहाां इसका अर्थ होता है छोटी लडाई। इस युद्ध पद्धतत में छोटी सैन्य टुकरडयाां शत्रुसेिा के पीछे से आक्रमण कि व्यापक िुकसाि पहांचाती हैं। गुरिल्ला युद्ध का नसद्धाांत- छापामाि सैनिकों का नसद्धाांत होता है - 'मािो औि भाग जाओ'। ये अचािक आक्रमण किते हैं औि गायब हो जाते हैं। गुरिल्ला अपिे पास बहत कम सामाि िखते हैं , नजससे के हमला कि तेजी से उस स्थाि से निकलिे में मदद नमलती है। Born - in Ghutiwadih village of Neemdih block of Saraikela-Kharsawan Raghunath Mahato led the first round of the Chuar rebellion. 1769 A.D. The slogan in the slogan : 'Your village is your kingdom, drive away foreign raj'. He, along with his colleagues, carried out a guerrilla campaign and killed the British in the nose. But finally when they arrived in 1778 AD. He died in 1778 AD after being shot in the firing by the British soldiers. What is guerrilla warfare? Guerrilla is a war method. It is also called guerrilla war in common language. Guerrilla is a Spanish word. Where it means a small fight. In this war method, small military troops attack from behind the enemy army and cause extensive damage. The principle of guerrilla warfare is the principle of guerrilla soldiers - 'kill and run away'. They suddenly invade and disappear. Guerrillas keep very little luggage with them, which helps them to attack and get out of that place faster. 9. रानी सवेश्वरी (मत्ृ य : 1807 ई.) Rani Sarveshwari 1781-82 ई. में संथाल परगाना जजला के सल्तानािाि (महे िपर राज) की रानी सवेश्वरी ने पड़दहया सरिारों के सहयोग से कम्पनी िासन के पवरुद्ध पवरोह ककया। यह पवरोह उनकी जमीन को िालमन ए कोह िनाये जाने के पवरुद्ध था| भागलपर के जजलाधीि जललललैण्ड के सझाव पर सरकार ने रानी सवेश्वरी की जमींिारी िीन ली और उसे िालमन-ए-कोह में िालमल कर ललया और उसे सरकारी संपपत्त घोपर्त कर दिया। अपनी जजन्िगी के आणखरी दिन रानी सवेश्वरी ने भागलपर जेल में बिताये, जहााँ 6 मई, 1807 ई. को उनकी मत्ृ य हो गई । 1781-82 AD Rani Sarveshwari of Sultanabad (Maheshpur Raj) of Santhal Pargana district rebelled against the Company rule with the help of Padhiya chieftains. This revolt was against the conversion of their land into Damin-e-Koh. On the suggestion of Bhagalpur District Magistrate Klicland, the government took away the land of Rani Sarveshwari and included her in Damin-e-Koh and declared it as government property. Rani Sarveshwari spent the last days of her life in Bhagalpur Jail, where she was born on May 6, 1807. He died. 10. तेलंगा खडड़या TELANGA KHARIA जन्म - 9 लसतम्िर, 1806 ई. को मगे गााँव (गमला) में जानत - खडड़या पपता - हइया खडड़या माता - येतो खडड़या तेलंगा खडड़या ने 1849-50 ई. में अंग्रेजों के पवरूद्ध पवरोह का नेतत्ृ व ककया। 22 अप्रैल, 1880 को िोधन लसंह नामक व्यजलत ने गोली मारकर उनकी हत्या कर िी। गमला में उनके िव को िफनाये गये स्थान को 'तेलग ं ा तोपा टांड' कहा जाता है । He was born on September 9, 1806. Ko Murge in village (Gumla) Caste - Khadia Father - Huia Khadia Mother - Coming Telanga Khadia in 1849-50 AD. He led a rebellion against the British. On April 22, 1880, a man named Bodhan Singh shot him dead. The place where his body was buried in Gumla is called 'Telanga Topa Tand'. 11. पोटो सरिार POTO SARDAR पोटो सरिार का संिध ं मंडा जनजानत से था इन्होनें लसंहभम में लोगों को एकजट कर कई अंग्रेज सैननकों की हत्या की थी। बिदटि सरकार द्वारा 1 तथा 2 जनवरी 1838 को पोटो सरिार सदहत 7 हो (मंडा) आदिवालसयों को लसंहभम में बिदटि सैननकों की हत्या के आरोप में फााँसी की सजा सनाई गयी। 12. िध भगत BUDHU BHAGAT पवरोह - 1828-32 तक हए लरका महापवरोह , 1831-32 के कोल पवरोह जन्म - 18 फरवरी, 1792 ई. को लसल्ली गााँव (रााँची) में एक उरााँव पररवार में िध भगत िोटानागपर के प्रथम क्ांनतकारी थे जजन्हें पकड़ने के ललए अंग्रेज सरकार ने 1,000 रूपये ईनाम की घोर्णा की थी। मत्ृ य- 14 फरवरी, 1832 ई. को कैप्टे न इम्पे के नेतत्ृ व में सैननक कारा वाई में हयी जजसमें उनके साथ भाई, िेटे व भतीजे सदहत लगभग 150 लोगों की मत्ृ य हो गयी। Rebellion - Larka Great Rebellion from 1828-32, Kol Rebellion of 1831-32 BORN- He was born on February 18, 1792. In a Oraon family in Silli village (Ranchi) Budhu Bhagat was the first revolutionary of Chotanagpur, for whom the British government announced a reward of 1,000 rupees. He died on February 14, 1832. About 150 people, including his brother, son and nephew, were killed in military action led by Captain Impey.

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