वर्धन वंश PDF

Summary

इस दस्तावेज़ में वर्धन वंश के इतिहास, उनके शासकों, साहित्य, कला और संस्कृति पर जानकारी दी गई है। दस्तावेज़ में प्राचीन भारतीय इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। इसमें हर्षवर्धन, पुष्यभूति वंश जैसे प्रमुख व्यक्तियों और वंशों का भी जिक्र किया गया है।

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# वर्धन वंश | पुष्यभूति वंश ## जानकारी के परिण्य - **हिर्षवर्धन** - **स्रोत** - **आरम्भिक** - **साहित्यिक** - भारतीय साहित्य - भारतीय - चीनी - विविध - **पुरातात्विक** - बासखड़।...

# वर्धन वंश | पुष्यभूति वंश ## जानकारी के परिण्य - **हिर्षवर्धन** - **स्रोत** - **आरम्भिक** - **साहित्यिक** - भारतीय साहित्य - भारतीय - चीनी - विविध - **पुरातात्विक** - बासखड़। - मधुबन - नालंदा - सोनीपत - **मूलस्थान** - थानेश्वर - **परिण्य** - **प्रशासन व संस्कृति** ## प्रशासन व संस्कृति ### 1) बाठामट्ट साहित्यः - बिहार के सोन नदी के किनारे स्थित गांव प्रतिकूट के बाहमण थे। - अपने भाई श्यामल के आग्रह पर हर्षवर्धन पर विस्तार से लिखने हेतु "हर्षचरित लिखा। - इसका लेखन हर्षवर्धन से मिलने के पूर्व ही आरंभ कर दिया । - तत्पश्चात अचिरावति नदी के किनारे स्थित मणितार। स्कन्धवार में हर्ष वर्धन व बाणभट्ट की पहली मुलाकात हुई। - बाणभट्ट द्वारा निम्न साहित्य रचा गया- ### हर्षचरितः - गद्‌य शैली | काव्य रूप | चरित का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। - यहग्रन्थ⑧ उच्छ‌वासों (अध्यायों) में लिख गया है- - प्रथमः बाण भट्ट की जीवन वृहत्कथा व वासवदत्ता (सुबन्धु हन) से लिया गया ही - द्वितीयः हर्ष से भेटे - तृतीयः श्रीकण्ड जनण्द । एठयभूति - मैरखानंद की भेंट | - चतुर्थ : प्रभाकरवर्धन । राज्यवर्धन । हर्षवर्धन | राज्यधी - पंचम : इण उपद्रव रोकने हेतु राज्यवर्धन को भेजना। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु - एडम : राज्यवर्धन द्वारा राज्य ग्रहण । ग्रहवर्मा - सप्तम : हर्षवर्धन की दिग्विजय यात्री - आठवांः राज्यधी प्राप्ति । विन्धयन निवेशन भाग - कुष्ठ रोग का मर्ज ### ② कादम्बरी - संस्कृत साहित्य का श्रेष्ठ उपन्यास - पूर्वभाग) (बाणभट्ट) उत्तरभाग (पुलिद भट्ट | भूषणभट्ट - बाण का पुत्र) - थॉमस द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद - शकर मार्य ### ③ चण्डीशतक | दुर्गाशतक : - लकवा का इलाज | मार्कण्डय पुराण के । ० ७५, जिसमें दुगीस्तुति - मयूरमटर : सूर्य शतक । मयूर शतक - कुष्ठ रोग का मर्ज ### ④ चन्द्रायीड व काढलबरी पर आधारित - चण्डीशतक | दुर्गाशतक : ### ⑤ मुकुतताटितकः - चंदपाल व गुण विनय ने वलचंपु की टीका लिखी, इसमेंइन्होंने इस रचना को बाण भट्ट की रचना बताया. - उसके कुछ उद्धरण श्रृंगार प्रकाश ग्रन्थ से प्राप्त होते. - इसमें भीम द्वारा दुर्योधनके मुकुट तोड़ने का कथानक (महाभारत पर) ### 5) पार्वती परिणय - कुछ विद्वान बाणभट्‌ट यह भट्ट वगण भीती. ### Ⓑ हर्षवर्धन का साहित्यः - हषवर्धन ने निम्न तीन गन्धों की रचना की - ### ⅰ) प्रियदर्शिका : - अंग शासक हठवर्मा की पुत्री प्रियदर्शिका तथा वत्सगज उद‌यन का प्रणय - इसकी विषयवस्तु कथासरित्सागर व बृहत्कथामंजरी से लिया है, । इसके 4 माग है. ### ⅱ) रत्नावली :- - रत्नावली (सागरिका) (विक्रमबाहु की पुत्री) तथा वत्यराज उदयन का प्रणय । वासवदत्ता - 4 भाग ### ③ नागानंदः - जीमूतवाहन व मलयवती का प्रणयन - जीमूतवाहन ने कानून ग्रन्थ दायभाग की रचना की थी, इस नागानंद को दायभाग की टी का रूप में। - जीमूतवाहन द्वारा आत्महत्या की गई. ### विदेशी साहित्य - **हवेनत्सांग** - **परिचय** - **> जीवन परिचय** - **यात्रा का माणीक्षेत्र** - **यात्रा संस्मरण** - **संस्मरण कासार** - **गठणपत शास्त्री द्वारा 1925 में प्रकाशित** - 1000 श्लोक - 4602 - 664 में मृत्य - 4629-645 (भारत यात्रा 16 वर्ष - 4630-645 भारत में गहरा थान - - म्हा यात्रा का उद्देश्य र - - बौद्ध ग्रन्छों की लाना - - वर्तमान का शाक्यमुनि - - कानून का देवता - **यात्रियों रामकुमार देशों की यात्रा - बौद्ध ग्रन्छों की लाना - उद्देश्य र - '' meed Let's Learn me ed, training (ther bilguin, de win in - हर्षवर्धन हेतु शब्द - - वर्तमान का शाक्यमुनि - - कानून का देवता** ## मार्गक्षेत्र - **① سिल्क मार्ग के सहारे मध्य एशिया होते हुए, सर्वप्रथम भारत में कपिशा पह** - **Hiuen Tsangs (Xuanzang) Pilgrimage Route from China to India and return** - Uzbekistan - Tokmak - Kucha - Samarkand - Eishok - Kyrgyzstan - Aghanistan - Pakistan - Kashmir - Baluka of Aksaa Yang - Khoton - Srinagar - Poonch - Kulu - Chitan - Mathura - Beervol - Kapilavastu - Kanyakutija (Kan - Nalanda - Ajanta - Nasko - Mumbei - Kanchipuram - Buddha Gaya - Mongolia - Hami (Kuma) - Tambympt - Guwahati - Gonpara - (Anix) - Wars - Liangzhou - China - Luoyang - Chang'an (Oven) - Huen Tsangs (Xuanzang) Piligrissage Route - From China to India - From India back to India - Murakisabas mat - **② अफगानिस्तान (लंपक, जलालाबाद, पेशावर, काबुल तक्षशिला, जालदर, इत्यादि** - **③ मधुरा सहित सभी उतर भारत के नगर देख** - **दक्षिणी भारत** - **बंगाल, उड़ीसा** - **- पल्लव राजधानी** - **कांची (द. का अत्तिम)** - **गया-नरसिंह वर्मन** - **5 महा गान्ट** - **महामल्ल** - **- पुलकेशिन** - **केदरबार में -मड़ाच भीनमला - वल्लभी, बराठ** - **इस प्रकार ३.६.५.५. सभी क्षेत्रों की यात्रा की, ७३८ में ककौआ गया था। कामरूप के भास्करवार्मा का सन्देश मिलने पर पुनः पूर्व की यात्री बरन की** ## कश्मीर - **७** - **कश्मीर** - **नालंदा** - **18 माह में रूका** - **कजंगल** - **स्कन्धवार में हजवधन व से योगशास्त्र की शिक्षा अर्जित की।** - **२-१०१० - यहां के प्रावार्यशीलगद ट्रेनसांग की मुलाकात हुई. ** ## यात्रा के संस्मरण :- - उक्त यात्रा के बाद 646 ई. में हनसांग ने अपना यात्री विवरण मंदारिन भाषा में 'सीयू की' नाम से लिखा, जिसके निम्न अनुवाददुस- - जुलियन स्टानिसल द्वारा 1857 में इस‌का पहला अनुवाद किया, जोकि फ्रांसिस भाषा में था। - **सार** - भारत ब्राह‌मणों का देश है, जिसमें निराश्य हे व अर्धचन्द्राकार आकार ही - नगर प्राचीरबट्टी, गांव के मार्ग छोटे ६ - नागरिक शान्त । अपराध न के बराबर । दण्ड यातनाएँ। जुर्माना चाण्डाल । - "सी-यू-की: Budhist Record - उत्चवर्ग साफ सुथरे | वर्णसंक वर्णसंकर - चाण्डाल । कसाई इत्यादि - सैम्यूल बील द्वारा 1884 में अंग्रेजी अनुवाद - "सी-यू-की": Budhist Record of western word "नाम से किया। - वाटर घामस ने 1904 में एनेसांगः ट्रेवल इन इण्डिया" - लिं - "ल शाकटी द्वारा: "great Tong Rocard & Western Region - भारतीय लिपि ब्रहमदेव गंदगी रहतीली बनाई - 1990-95 - नहा प्रदाय # इतिसँग (635-713) ## जीवन परिचय - **• I-ching | I- Tsing | इन्सिंग | yizing)** - **• 672-688 तक भारत की यात्र की** - ↳ 16/17 वर्ष - **• बाह ग्रन्थ रण्कत्रित करन।** - **• हीनयान प्रभाव** - | धार्मिक स्थानों की यात्रा करनी ## यात्रा मार्ग - 672-688 - (भारत) - • जल मार्ग त्य - आया Ja व जलमार्ग से पन गया । - • ताम्रलिरित - संस्कृत सीखी - • नालंदा में - ①र्ष 221 - ৩. - • 3. भारत क नगरों में गया, - **YUVING (635-713) TRAVELLED 671-695** ## इतिहास - **Pal** - **Kedah** - **Chang** - **Louyang** - **Yangzhou** - **वैशाली,** - **बाहगया** - **श्रावस्ती** - **कपिलवस्तु** - **कन्नौज का** - **भ्रमण किया।।** ## यात्रा विव२०० - इसने अपनी सम्पूर्ण छाला का वि०२८न, लिखा, जिसे आगे चलकर आणनी बौद्ध भिक्षु पुक्कुस् ने "The Records of Budhist Religia" नाम से अंग्रेजी में अनुदित किया, जिसमें 6 पुस्तकों का संकलन - विवरणह - ⅰ) भारत आर्यदेश है। - ⅱ) राजा का वर्णन नहीं किया। [2 - ⅲ चिकित्सा विज्ञान पर लिखा [ इसमे निल - यह हबन्छन के काल में कसें आया था जन्तुवर्धन - १०) अश्वघोषा कृत बुरुचरित, पाणिनिभूत, जमादित्य कृत काशिकाहन्ति जैसे ग्रन्थों का उल्लेख । - भूतहार सूत्र भी - v) नालंदा व विक्रमशीला की प्रशंसा - vⅰ) भारतीय प्याज कहीं खाते । ## हिवली ने ह‌वेनसांग की जीवनी लिखी थी. - जिसका अंग्रेजी अनुवाद सैम्यूलनिल से - Chang - Louyang - Yangzhou - वैशाली, - बाहगया - श्रावस्ती - कपिलवस्तु - कन्नौज का - भ्रमण किया।। - 400 420 - के ट्याब गपल - गया। # ①बांसखेड़। ताम्रलेख (UP, शाहजहाँपुर) - **6285** - **1894 में खोज** - **नरवर्धन से लेकर राज्यवर्धन तक की वंज्ञावली व राजमाताओं के नाम** - **• मर्कटसागर ग्राम हर्ष हारा** - **इसम हर्षवर्धन के हस्ताक्षर साथ ही महाराजधिराज शब्द विरुद के रूप में।** - **✓ राज्यवर्धन द्वारा मालवराजदेवगरत को पराजित करना तथा द्वारा छल से राज्यवर्धन बालचन्द्र भस्ट सानी चुदा समय की हत्या करने। |** - **को दान में दिया का उल्लेखही.** - **sva ha sto Kama charajadhiraja eri Horshasya** - **AUTOGRAPH OF KING HARSHA.** # 2) मधु‌बन ताम्रलेख : - **631 ई.** - **• आजमगढ (UP)** - **• ग्रावस्ती युक्ति के सोमकुण्ड ग्राम को वातस्वामी मट्टको दान देने का उल्लेख थे.** # ③ नालंदा व सोनिपत मुहर ## वर्धन कौन थे? - हवेनसांग ने फीगे (वैश्य) - **R.P. त्रिपाठी** - **V.S.पाठ** - **UN.बोषल** - -> आर्य मंजुश्री (गुहिदत) - - ८०५वंगी - **क्षत्रिय** - **Let's Learn Hisतराय (वाणगट‌र ने पुति को - **चन्द्र पुजारी)** - - क्षत्रियः जायसवाल । पीटर‌सन # इतिहास - **INDIA** - **VII. CENTURY A. D.** - **Craliah: Mos** - **LAMAROPA** - **थानेश्वर (भीण्ड)** - **कन्नौज** - **> पाटलीपुत्त्र** - **इनका मूल केन्द्र थानेश्वर था, जोथी कण्ठ जनपद का भाग था।** # पुष्यभूति - वर्धनवंश के आरम्भिक शासक - **बाण भट्ट के अनुसार वर्धन वंश का आदिपुरुष पुष्यभूति था। जोकि शैव भैरवाचार्य से तांत्रिक विद्या खीखता था • इस कारण इस वंश को पुष्यामृति वंश कहते ही राजधानी थानेश्वर** # नवर्धन - **• हर्षके ताम्र लेख (बासखेड़ा व मधुबन) व मुहरे (नालंदा व सोनीपत) नर वर्धन को इस ठंडा का प्रथम शासक बताती ही.** - **• राजधानी थानेश्वर** #   नवर्धन: - **प्रथम शासक** - **वत्रिणी देवी (राजमहिषी)** - **आसरा देवी (राजमहिषी)** # २) राज्यवर्धन # 3) आदित्यवर्धन - **महा सेनगुप्त देवी** - **उक्त तीनों ने महाराजका उणधिली थी, इस कारण हव्ह स्वतन्य शासक नहीं माना जाता बल्कि सामन्त माना जाता है इनकी जानकारी हर्ष के से प्राप्त होतील** # ५) प्रभाकरवर्धन - **यह वर्धन वंश का पहला शासक जिसने महाराजधिराज परमम‌टारक प्रभाकरवर्धन की प्रभाव की उपाधि ली, इस ‌आधार इसे वर्धन वंश का पहला स्वर्तन शासक माना जाताध** - **इन उपमाओं के आधार पर मानी जाती है कि गुर्जरात सिन्धु मालवा गांधार प्रदेश इनका उल्लेख अन्य स्रोतों से प्राप्त नहीं होता।** ### हर्षचरित में प्रभाकरवर्धन हेतु निम्न विरूव प्रयुक्त हुए- - **1) हण हरिण केसरी** - **२) सिन्धुराज ज्वर** - **३) गुर्जगने प्रभागर (गुर्जर शासकों को चैन से न सोने देने निदने वाली)** - **५) लॉटपाट व पाटचार । (लाए देश की चालाकियों का अन्त करने वाला)** - **5) गांधार हस्ती ज्वर** - **6.) मालव लता लक्ष्मी परशु** # 1) राज्यवर्धन : - प्रभाकरवर्धन व राजमहिनी यशोमती के तीन संतान थी - - ⅱ) हर्षवर्धन : तारक ज्योतिषाने चकन्नी स‌म्राट की मठिष्यवाणी - नⅲ) राज्य थी - इसका विवाह कनौज के मौखरी वंश के शासक ग्रहवर्मा से कर दिai इससे वर्धन-मौख्खी गठबन्धन वन गया, जिसके जवाब में मालवा व गौड (शशांक) गठबन्धन बन।। - (देवगुप्त) - देवगरत ने कन्नौज पर आक्रमण किया, ग्रहवर्मा की हत्या की तथा राज्यपी को कफौज में कैद किया गया।। # हुण आक्रमणः (604) - प्रमाकर वर्धन के अन्तिम समय में हुण आकर्मण हुआ, दमन हेतु राज्यवर्धन व हर्षवर्धन को भेजा, कुरंगक दूत द्वारा प्रभाकरवर्धन की रुग्णता की सूचना पाकर हर्षवर्धन पुनः थानेश्वर आ गये।, राजवेड्‌य रसायन व सुबैन के प्रयासों के बावजूद प्रभाकर वर्धन की मृत्यु हो गई। यशोमती सरस्वती किनारे सती है। गई। # हर्षवधन [606-647) ## राज्य की प्राप्ति - राजदूत कुंतल से हबर्धन को सूचना मिली, की, राज्यवर्धन की हत्या राजीक ने कर दी है, इस समय हर्षन्धन "पृथ्वी को गाँड़ों से मुक्त करने की प्रतिज्ञा।" लेकर अभियान पर निकलता हो पहले दिन 8 काँस दूरी तय की, ## आरम्भिक चुनौतियाँ - **राज्य श्री को प्राप्त करना** - **शशांक का दमन** - **वल्लभी** - **त्सिन्धु** - **पुलकेशिनी** - **नोति** - **चीनले** ## विदेश प्रशासन - **इस समय दो लोग मिलें - ** - **हसबेगः कामरूय शासक मास्करवर्माकान्त जो मित्रता प्रस्ताव लेकर हर्ष पास आया था। दोनाम मित्रता हुडी.** - **सम्बध साथ** - **भण्डि : ममेरा भाई। इसने राज्यश्री का विध्यन प्रवास तथा कन्नौज पर किसी "गुप्त " अधिकारी के माक्रमण की सूचना बी।** ## शशांक के विरुद्धअभियान | पूर्वी अभियान - **यह सूचना मिलने के बाद हर्ष व माधवगुप्त राज्यश्री को बचाने हेतु विध्यन श्रेणी की ओर निकलते है, तथा मुख्य से भण्डि के नियन्त्रण में रखते हो. आगे चलकर मित्र बोह दिवाकर, त्याघ्रकुमार की सहायता सेर्ष हर्षवर्धन ने अभियान किये राज्य तक पहुँच आनंद, तथा राज्यश्री को बचा लिया जाता है, लाया जाता है।** - **बोनी (पानी) का आग्रह कि तथा पुनः कन्नौज हर्ष ककौज पर शासन करें की परामर्श के बाद हर्ष ने अस्वीकार कर दिया।। परन्तु अग्लोकितेश्वर बोधिसत्व कन्नौज के सम्बन्ध में निम्न निर्णय लिए -** - **1. हर्ष ने कभोज पर अपना अधिकार स्थापित किया, तथ ककौज को राजधानी बनाय ।।** - **२) शशांक को पराजित किया।** - **महराज की उपाधि की बजाए आर्यपुन कुमार। राजपुत्र की उपाधि शन्तिक अपहरण ९ प्रिण्डrn History ली तथा शिलादित्य नाम से शासन किया।** - **3) 606 में हर्ष संवत आरंभ किया।** ## हर्षचरित में शशांक को गौड़ाधिपति, गौड़ाधिराज जैसे नाम तो हनेसांग ने शशांक को काचेचांग नाम दिया ही शशांक - प्रशैव मतानुयायी - बौद्ध विरोधी - बोधिवृक्ष करवाया, विहार नष्ट किये - मगध । बंगाल । उड़ीसा क्षेत्र इसके अधीन - कर्ण सुवर्ण इस‌की राजधानी थी # ② हितीय अभियान: - महासामन्त माधवराज के गंजाम अभिलेख (619ई.) में शशांक के लिए महाराजाधिराज विरूद का उपयोग होना, वहीं 623 के मिदनापुर लेख में ऐसा कोई विरूद नहीं मिलन। इस बात का संकेत की शशांक को द्वितीय अभियान में भी पराजित कर सम्राज्य हडप्प लिया। - • अन्य साएयः- - ⅰ) शे किया जंगचेः हर्ष ने कुमारराज (भास्कर) के साथ मिलकर शशांक का दमन" - iⅱ) आर्यमंजूषीमूलकल्पः ह नामक शासन ने सोन (शशांक) को पगजित किया। - iii) निधानपुर अभिलेख (भास्कर) - iv) मात्वालिनः ८या में हर्षवर्धन को मगधराज कहाली # ४) हर्षवर्धन द्वारा बंगाल क्षेत्र में स्कन्धवार स्थापित करना - ## दिग्विजय नीति - **वर्धमानपुर अयस्कन्धवार : बांसखेड़ी ताम्रलेख अनावरण** - **कंजगल स्कन्धवार - हर्ष बहेनसांग मलाकात** - **बाणभट्ट ने हर्षवर्धन हेतु उक्त उपाधियों का प्रयोग होना इस बात का प्रमाणले कि हर्ष ने एक दिग्विजय नीति अपनायी थी, जिसके अन्तर्गत हर्ष द्वारा निम्न अभियान किये गये** ### चतुः समुद्राधिपति ### सर्वचक्रवर्तिन ### महाराजधिराज परमेश्वर ### सकलराज चुडामणि। # सिंधः - **यह राजा शूद्र था। बौद्ध मतानुवाची था** - **हर्ष ने पगजित किया, तथा उपहार लेकर छोड़ दिवा, इस प्रकार अई-स्वतंत्र गभ्य बना दिया।** - **साहसीराय शाएक** # २) वल्लीः - **जान स्त्रीत** - **जयभट्‌ट । ने नवसानी नानपत्र (706) भंभानकारी** - **दद्द-कर।** - **629. १ संखेड़ । दानपत्र (629)** - **639** - *** बुन्सेन ही मंत्रक झासक था** - **ध्रुवसेन पराजित हुआ, तथा गुर्जरशास‌क ब‌द्‌दी की शरण में गया। हर्ष ने भुटनीतिक जरिए से अजी पुत्री पुलकेशिनी का सामन्तथा History दियं ।** - **का विवाह युवसेन से किया तथा मैत्री संबन्ध बना** # 3. पुलकेशिनरी (चालुक्य) - **ⅰ) कब ? - हवनत्यांग: 606-612 के मध्य हर्ष ने अभियान करने हुनत (पंचम्मर) क्षेत्र (पंजाब, मिथिला, उड़ीसा, कनौज, गौड) को अपने अधीन किया। इस आधार पर ७लीट ने यह अभियान 612 का बताय।** - **हंदराबाददानपत्र : पुलकेशिन के लिए, अनेक युद्धों का स्वामी, परमेश्वर, दक्षिणाण्यार्थित्याखामी इत्यादि विरुदत्संयुक्त हुन्। हा का उल्लेख नहीं (पुलके. ८135)** - **एहील प्रनास्तिः (634 पुलके) - पुलकेशिनी ने हर्षवर्धन को पराजित किया। वहीं 630ई. के लाहनारा अभिलेख में इस युद्ध का कोई विवरण नहीं है, अतः यह युद्ध 630-634ई के मध्य हुआ होगा ।** ## ii) परिणाम क्या रहे ? - **इस युद्ध में हर्षवर्धन पराजित हुए, जिसकी जानकापी के निम्न प्रमाण-** - **• हेनसांगः पुलकेशिन ने शिलादित्य के समक्षा अधीनता स्वीकार नहीं की।** - **• हिवली: हर्षवर्धन पगजित हुआ था।** - **• एहोल अभिलेख : सकलउतरापथस्वामी (हर्षवर्धन) अपने दर्शपात (हर्षकागज) उसकी गजसेवा मारी जा ! पर बैठा दुखी हो ग्रा हव्‌ई।** # ५) कांगोद अभियान - **603 में अभियान** - **हर्ष व्यफल** - **जीवन का आखिरी अभियान था** - **इसकी जानकारी - हिवली देता है।** - **- इतिहासकारों के अनुसार** - **गद्द‌मने लेख** - **(कर्नाटक)** - **शिलादित्य के सेनापति पेटटवी सत्यांक ने पल्लव महेन्द्रवर्मन को पराजित किया था।** - **कुंतला, मध्यदेश, चोलराज व विजय के बाद हर्ष दक्षिण भारत - १ मयूर भट‌ट पल्लव क्षेत्र को विजित किया।** - **उक्त साक्ष्यों के आधार पर हर्ष की दक्षिण विश्रय मानी जावी है, परन्तु यह मत निर्बले ब** # 5. नेपाल: - **1) हर्षवरितः हर्षवर्धन हिमाच्छादित दुर्गम क्षेत्र (नेपाल) से कर वसूलतीया** - **ii) नेपाल के समकालिक शासन अंशुवर्मा के अभिलेखों में हर्षसंवत का उपयोग हुआ है। (R.C.मुखजी)** - **उक्त प्याथों के आधार पर नेपालको मित्र राष्ट्र के रूप में माना जा सकता है, न कि सम्राज्य के भाग के रूप में।** # ⑥ कश्मीर - **समकालिक शासक दुर्लमर्थन था, जोकि बाँह माना जाताब : राजतरंगिणी के अनुसार कश्मीर पर हर्षवर्धन का शासन रहा था.** - **• दुर्लभवर्धन के पास महात्मा बुद्ध का दांत था। जिसे हर्षवर्धन ले गया, इससे दोनों राज्यों के मध्य मैत्री स्थापित हो गई, और हर्ष ने कन्नौज में दन्त पर स्तूप बनाया।** ## सिन्ध - **शूद्रराजा । बाह धुवसेन** - **(दुर्लभ भन्‌ट / धुन भाट)** # इतिहास - **INDIA** - **VII. CENTURY A. D.** - **कश्मीर** - **- दर्लभवर्धन તાવ દ્યન** - **नेपालः अंशुवर्मा** - **मास्करखर्मा** - **माधवगुप्त** - **काँगोद अभिमन** - **(अन्तिम** - **हर्ष के अधीन** - **क्षेत्र** - **- पंचभारत** - **वल्लभी** - **सिन्ध** ## निष्कर्ष: - **उक्त नीति के बाद निष्कर्ष निकलता है कि उस समय के विभिल राज्यों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकती-** - **अर्द्ध-स्वतंत्र** - **वल्लभी** - **सिन्ध** - **मित्र राज्य** - **नेपाल** - **कश्मीर** - **कामरूप** - **- प्रज्मालवा** ## विदेशी संबन्ध - मात्वालिन के अनुसार हर्षवर्धन ने चीन के तांग वंग (Tony) के शासक ताइजोंग (ताइसोंग) के दरबार में नया ई. में एक दूत भेजा, जिसके प्रत्युत्तर में चीनी स‌म्राट ने ③ दूत मण्डल हर्षवर्धन के दरबार में भेजे - ५) लियोग होई-किंग - २) लि-घि-पियाओं - ६१३ | इसके साथ Wang Yuance (वांग - Grand Masters for closing - अधिकारी - 647 - यह भावना - cow (अरुणाल को हराने पर यह उपाधि) - शुआपसे | मुआब्से) - बार भारत आया । (तीसरी बार 657-661] - मृत्यु हो गई थी, कन्नौज - आवाइस समय हर - हर्ष की - पर राजा अरुणास का अस्थायी शासन था, अरुणास ववांग के मध्य युद्ध हुमा। जियांग शिरन साथ में था। ## हर्षवर्धन का धर्म :- - विभिन्न स्रोतों के आधार पर यह माना जाता है कि हर्षवर्धन आरंभ में शैव था, परन्तु कालान्तर में बौद्ध दिवाकर मित्र के, प्रभाव में आकर बौद्ध धर्म ग्रहण किय ।। - **प्रेोवार** - शैव था। - 1. हर्षचरित धानेश्वर के हर घर में खण्ड परशु (शे०) की पूजा होती थी । पुष्य. - २. वागणारी (गह।1०,०० शैव ६) व मालवा (उज्जैन) बड़े शेव केन्द्र थे। - 100F+ ऊँची प्रतिमा | - 3. मधुबन, बांसखेड़ा, नालन्दा, सोनीपत मुहरे व लेख हर्ष को ममहेश्वर (२१) बताते हल. - ५. राजतरंगिणी : "हर्ष बौद्ध बनने से पूर्व शैव था। - 5. हर्षचरितः शशांक के विरुद्ध युद्ध अभियान से पूर्व हर्ष नीललोहित शिव की पूजा करता ब - 6. फरन्खर्खाबाद से प्राप्त हर हर्ष की स्वर्ण मुद्रा पर शिव-पार्वती-नंदी का उत्कीर्णन - 7. न्मिनौरा (UP) से प्राप्त रजत मुद्धा पर उमामळेश्वर उपाधि । ## ögen! - 1) हेनसांग - शिलादित्य बौद्ध धर्म का अनुयायी है। - २) कलाज में दंत पर स्तूप - ३) नालंदा को 100 गांवों को राजस्व । - ५) गंगा तट पर 1000 स्तूप बनना - 5) मंसांहार व जीव हत्या पर पर प्रतिबन्ध - 6) नालंदा से भिक्षु धर्म प्रचार हेतु उड़ीसा मेमे - -

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