निज के ही उन्मादक परिमल के पीछे धावित हो-होकर तरल-तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है। बादल को घिरते देखा है। निज के ही उन्मादक परिमल के पीछे धावित हो-होकर तरल-तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है। बादल को घिरते देखा है।

Question image

Understand the Problem

यह प्रश्न एक कविता की पंक्ति है। इसमें 'निज के ही उन्मादक परिमल' और 'तरल-तरुण कस्तूरी मृग' जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। यह एक साहित्यिक प्रश्न है।

Answer

कवि नागार्जुन ने कस्तूरी मृग का वर्णन किया है जो अपनी कस्तूरी की खुशबू के पीछे भागता है और अंत में अपने आप पर ही क्रोधित होता है।

इन पंक्तियों में, कवि नागार्जुन ने कस्तूरी मृग का वर्णन किया है जो अपनी नाभि से निकलने वाली कस्तूरी की खुशबू से मोहित होकर उसके पीछे भागता है, लेकिन कभी उसे पकड़ नहीं पाता और अंत में अपने आप पर ही क्रोधित होता है।

Answer for screen readers

इन पंक्तियों में, कवि नागार्जुन ने कस्तूरी मृग का वर्णन किया है जो अपनी नाभि से निकलने वाली कस्तूरी की खुशबू से मोहित होकर उसके पीछे भागता है, लेकिन कभी उसे पकड़ नहीं पाता और अंत में अपने आप पर ही क्रोधित होता है।

More Information

यह कविता नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है और इसमें प्रकृति के सुंदर दृश्यों का वर्णन है।

Tips

कस्तूरी मृग की कहानी को ध्यान से समझें।

AI-generated content may contain errors. Please verify critical information

Thank you for voting!
Use Quizgecko on...
Browser
Browser